यह ब्लॉग खोजें

रविवार, 28 अगस्त 2022

ऐसा मंदिर जहां भूख से दुबले हो जाते हैं श्रीकृष्ण

*ऐसा मंदिर जहां भूख से दुबले हो जाते हैं श्रीकृष्ण*

यह विश्व का ऐसा अनोखा मंदिर है जो 24 घंटे में मात्र दो मिनट के लिए बंद होता है। यहां तक कि ग्रहण काल में भी मंदिर बंद नहीं किया जाता है। कारण यह कि यहां विराजमान भगवान कृष्ण को हमेशा तीव्र भूख लगती है। भोग नहीं लगाया जाए तो उनका शरीर सूख जाता है। अतः उन्हें हमेशा भोग लगाया जाता है, ताकि उन्हें निरंतर भोजन मिलता रहे। साथ ही यहां आने वाले हर भक्त को भी प्रसादम् (प्रसाद) दिया जाता है। बिना प्रसाद लिये भक्त को यहां से जाने की अनुमति नहीं है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इसका प्रसाद जीभ पर रख लेता है, उसे जीवन भर भूखा नहीं रहना पड़ता है। श्रीकृष्ण हमेशा उसकी देखरेख करते हैं।

डेढ़ हजार वर्ष पुराना मंदिर ~~~~~~~~~~~~~~
केरल के कोट्टायम जिले के तिरुवरप्पु में स्थित यह मंदिर लगभग डेढ़ हजार साल पुराना है। लोक मान्यता के अनुसार कंस वध के बाद भगवान श्रीकृष्ण बुरी तरह से थक गए थे। भूख भी बहुत अधिक लगी हुई थी। उनका वही विग्रह इस मंदिर में है। इसलिए मंदिर सालों भर हर दिन मात्र खुला रहता है। मंदिर बंद करने का समय दिन में 11.58 बजे है। उसे दो मिनट बाद ही ठीक 12 बजे खोल दिया जाता है। पुजारी को मंदिर के ताले की चाबी के साथ कुल्हाड़ी भी दी गई है। उसे निर्देश है कि ताला खुलने में विलंब हो तो उसे कुल्हाड़ी से तोड़ दिया जाए। ताकि भगवान को भोग लगने में तनिक भी विलंब न हो। चूंकि यहां मौजूद भगवान के विग्रह को भूख बर्दाश्त नहीं है, इसलिए उनके भोग की विशेष व्यवस्था की गई है। उनको 10 बार नैवेद्यम (प्रसाद) अर्पित किया जाता है।

मंदिर खोले रखने की व्यवस्था आदि शंकराचार्य की 

ऐसा मंदिर जहां श्रीकृष्ण से भूख बर्दाश्त नहीं होता है। पहले यह आम मंदिरों की तरह बंद होता था। विशेष रूप से ग्रहण काल में इसे बंद रखा जाता था। तब ग्रहण खत्म होते-होते भूख से उनका विग्रह रूप पूरी तरह सूख जाता था। कमर की पट्टी नीचे खिसक जाती थी। एक बार उसी दौरान आदि शंकराचार्य मंदिर आए। उन्होंने भी यह स्थिति देखी। तब उन्होंने व्यवस्था दी कि ग्रहण काल में भी मंदिर को बंद नहीं किया जाए। तब से मंदिर बंद करने की परंपरा समाप्त हो गई। भूख और भगवान के विग्रह के संबंध को हर दिन अभिषेकम के दौरान देखा जा सकता है। अभिषेकम में थोड़ा समय लगता है। उस दौरान उन्हें नैवेद्य नहीं चढ़ाया जा सकता है। अतः नित्य उस समय विग्रह का पहले सिर और फिर पूरा शरीर सूख जाता है। यह दृश्य अद्भुत और अकल्पनीय सा प्रतीत होता है लेकिन है पूर्णतः सत्य।

प्रसादम् लेने वाले के भोजन की श्रीकृष्ण करते हैं चिंता ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
इस मंदिर के साथ एक और मान्यता जुड़ी हुई है कि जो भक्त यहां पर प्रसादम चख लेता है, फिर जीवन भर श्रीकृष्ण उसके भोजन की चिंता करते हैं। यही नहीं उसकी अन्य आवश्यकताओं का भी ध्यान रखते हैं। प्राचीन शैली के इस मंदिर के बंद होने से ठीक पहले 11.57 बजे प्रसादम् के लिए पुजारी जोर से आवाज लगाते हैं। इसका कारण मात्र यही है कि यहां आने वाला कोई भक्त प्रसाद से वंचित न हो जाए। यह अत्यंत रोचक है कि भूख से विह्वल भगवान अपने भक्तों के भोजन की जीवन भर चिंता करते हैं। उनके अपनी भूख की यह हालत है कि
उसे देखते हुए मंदिर को नित्य दो मिनट बंद रखा जाता है। इसका कारण भगवान को सोने का समय देना है। अर्थात इस मंदिर में वे मात्र दो मिनट सोते हैं।

🌹 जय श्री कृष्ण 🌹

किस ध्वज से भारत विजय होगी और किस ध्वज से विश्व विजय.....यह मोदी अच्छी तरह से जानते हैं और पहले से ही तय किये हुए हैं.....

नूपुर शर्मा को पार्टी से निष्कासित कर दिया....
टी राजा को भी निष्कासित कर दिया.....
कपिल मिश्रा को भी अकेला छोड़ दिया....
😡🤔🤔🤔😡
👉मोदी बड़ा घमंडी है....
👉हिंदूवादी नेताओं को पार्टी से निकाल लिया है....
👉हम मोदी का घमंड तोड़ देंगे....
👉हम 2024में मोदी को सबक सिखा देंगे.....
👉हमें अभिव्यक्ति की आजादी है.. हमें जो सही गलत जैसा भी समझ आता है या माहौल बना कर समझाया जाता है उसके आधार पर मोदी का विरोध करेंगे....
👉हम जाग्रत हिन्दू हैं और वो भी कट्टर हिन्दू.... हम अंधभक्त नहीं है जो मोदी का आंख बंद करके सही गलत दोनों का समर्थन करते रहेंगे........
👉हम कोई बंधुआ थोड़े ही है मोदी के......
नूपुर शर्मा,टी राजा व कपिल मिश्रा के साथ मोदी, शाह, नड्डा ने अच्छा नहीं किया.....
👉आने दो चुनाव....सबक सिखाने के लिए तैयार है हम......
🙏🙏🚩😀😀🤔😀😀🚩🙏🙏

ये सब कुछ या तो आपने सोचा है या कर दिया है या सोशल मीडिया पर लिखकर बस करने ही वाले हैं और लोगों की देखादेखी.....🤔🤔🤔🤔🤔🤔
तो रुकिए........और सोचिए......
कि मोदी योगी के तो संतान है ही नहीं..........
उनको सबक सिखाने के बाद तुम्हारे बच्चों के भविष्य का क्या अंजाम होने वाला है....
यह भी अच्छी तरह सोच लीजिए......
🙏🙏🚩🚩🙏🙏
गौर से पढ़िए.......
👉👉👉👉👉👉👉
👉कब घटोत्कच को कुरुक्षेत्र में बुलाना है 
और कब अभिमन्यु को चक्रव्यूह भेदने की जिम्मेदारी सौंपनी है..
यह युद्ध करने व कराने वाले को तय करने दीजिए..
🙏🙏🚩🚩🙏🙏
आप और हम युद्धनीति नहीं जानते हैं और न ही हथियार उठाने में सक्षम हैं सामुहिक रूप से..
हिन्दू राष्ट्र सिर्फ राजनीति के माध्यम से ही नहीं बनने वाला है हिन्दूओ...
इसके लिए बहुआयामी व चहुमुखी मोर्चों पर मोदी 1994 से तैयारी कर रहे हैं...
आज सोशल मीडिया पर मोदी को ज्ञान देने वाले अधिकतर लोगों का जन्म भी नहीं हुआ था तब से मोदी हिन्दू राष्ट्र के लक्ष्य के लिए निरंतर प्रकल्पों की रणनीति व कूटनीति पर काम कर रहे हैं.....
हमें जाग्रत हुए ज्यादा से ज्यादा 2014से 2022...यानि कि 8 वर्ष ही तो हुए हैं.. . जबसे सोशल मीडिया इंटरनेट सस्ता करवाया गया है इसी मोदी के द्वारा......
भूल गए क्या हम..कि इंटरनेट तो दूर, फोन पर बात करने की जगह ज्यादातर मिस कॉल मारकर अपना मेसेज देते थे अगले व्यक्ति को.....
फोन करने व उठाने.. यानि कि आउटगोइंग व इनकमिंग दोनों के लिए प्रति मिनट 3 से5 रुपए लगते थे.....1GB डेटा 399 से599 रुपए खर्च करने के बाद मिलता था...1-1MB सोच समझ कर इस्तेमाल करते थे आप और हम सभी लोग....

ये जो कुछ भी किया जा रहा है इसकी रणनीति आज से 20 से 15 साल पहले ही तैयार कर दी गई थी मोदी के द्वारा ...मुख्यमंत्री रहते विदेशी तकनीकी व्यवस्था के लिए जापान, चीन, ताइवान व अन्य कई देशों की यात्राएं लगातार करते हुए....

इसके द्वारा दशकों पहले ही प्लान तैयार कर दिए गए हैं...
हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए 3 चरणों में काम कर रहे हैं ये लोग।।

1.ऑर्गेनाइजेशन
2.मोबिलाइजेशन
3.एक्शन

पहला व दूसरा चरण पूर्णता की ओर अग्रसर हो चुका है और जल्द तीसरे चरण की ओर बढ़ने के संकेत लगातार लाल कोट की प्राचीरों से हिन्दूराजा दे रहे हैं......

भारत के आंतरिक गद्दार न तो प्रधानमंत्री आवास में निवास करते हैं और न ही राष्ट्रपति भवन में.....
वो सभी गद्दार आपके व हमारे आसपास हमारी ही गली मोहल्लों में रह रहे हैं और वहां से ही वो भारत के एक और विभाजन के षड्यंत्र रचा रहे हैं और लगभग हरेक गली मोहल्ले में वो लोग शस्त्रसंधानित तैयारियां शुरू कर चुके हैं....

अब आप सोचिए कि जागने की आवश्यकता हमें ज्यादा है या जो सब कुछ जानता, समझता व उसको काबू में करने के उपाय कर रहा है... उसे ज्यादा जरूरत है....

अब आप बताइए कि हमें जगायेगा कौन?
अगर हम स्वतः ही जाग सकते थे तो इतनी गुलामी के 7 दशक देखने के बाद भी नहीं जाग पाए बड़े पैमाने पर... तो स्वतः जागना हमें सिखाया ही नहीं गया।।।।।
हमें नशाखोरी, हरामखोरी, मक्कारी, बेईमानी,धोखा, शराबखोरी आदि बर्बाद करने वाली आदतें सिखाई जाती रही70 सालों तक...
इसी कारण हम न तो जाग सके और न ही विभाजन करने वाले ग़द्दारों की असलियत जान सके....
खाये पीए कमाए, घूमे फिरे ऐशोआराम किये......
उधर वो लोग लगातार जनसंख्या वृद्धि करते हुए शस्त्रसंधानित तैयार होते गए.....

वर्तमान समय में जो कुछ भी शीर्ष नेतृत्व कर रहा है चाहे वो नूपुर शर्मा के द्वारा, टी राजा के द्वारा,कपिल मिश्रा के द्वारा..... यह सब कुछ पूरे होशोहवास में किया जा रहा है......

कौन किस मोर्चे पर लड़ेगा ये तय करने के बाद ही जिसे राजनीति के माध्यम बनाने है उन्हें राजनीति से काम करने का आदेश है और जिन्हें समाज में आपको व हमें जाग्रत करने के काम करने की जिम्मेदारी सौंपी जा रही है उन्हें पार्टी से इतर जनसैलाब तैयार करने के लिए जमीनी स्तर पर उतारा जा रहा है......

तुम नूपुर शर्मा के साथ हों या टी राजा के साथ, तुम कपिल मिश्रा के साथ हो या मोदी-योगी के साथ......
तुम सभी हो तो हिंदुत्व के साथ ही....

जिस प्रकार लँकायुद्ध व महाभारत में सैकड़ों ध्वजाओं तले युद्ध लड़ने के लिए आए महारथियों, राजाओ व योद्धाओं ने एकत्रित होने के बाद भगवा ध्वज तले धर्मयुद्ध लड़ा था.....
ठीक उसी प्रकार वर्तमान में व्यवस्था की जा रही है.....
किसे कब कहाँ भेजना है, किससे कब क्या कहलवाया जाना है, किसे कब पार्टी में लेना है और किसे कब क्या करवाने के बाद निलम्बित करना है.. यह सब कुछ वो आपसे व मुझसे ज्यादा अच्छी तरह व भलीभांति जानता है......

विपक्षी तिलों में कितना तेल है यह थाह मोदी ने कब का लगा लिया है..... किससे कैसे और कब निपटना है ...वो आपसे व मुझसे ज्यादा जानता है.....

आप बताइए, विपक्ष के समस्त लोग किसका विरोध कर रहे हैं2002 से ही....
आपका व मेरा तो कर नहीं रहे हैं.....

आधी दुनिया व पूरा विपक्ष सिर्फ और सिर्फ हिन्दूराजा के विरोध में लोकतंत्र के चारों स्तम्भों के लोगों को #साम #दाम #दण्ड व #भेद से खरीदकर हिन्दूराजा के विरुद्ध इस्तेमाल कर रहे हैं......

आप धैर्य रखना सीख लीजिए बस....
हिन्दू राष्ट्र के लिए आपका इतना ही योगदान मांग रहा है हिन्दूराजा......
कब कर्ण से कवच कुंडल मांगने है,कब भीष्म से उसके वध का उपाय पूछने युधिष्ठिर को भेजना है, कब द्रोणाचार्य से शस्त्र त्याग करवाने हैं, कब बर्बरीक से शीश दान में मांगना है, कब जरासंध का वध करवाना है, कब शिशुपाल को मारना है, कब दुस्साशन की छाती फड़वाकर द्रोपदी के केश धुलवाने हैं, कब अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से उत्तरा की कोख में पल रहे परीक्षित की रक्षा करना है.....
यह सब कुछ पांडवों ने भी तो भगवान श्री कृष्ण पर छोड़ दिया था न.......बताइये छोड़ा था कि नहीं....

पढ़े हैं कभी महाभारत आपने.....
अगर अपने धर्मग्रंथों को पढ़ा होता तो नियति जो कुछ भी कर रही है और करवा रही है वर्तमान शीर्ष नेतृत्व के समय द्वारा निर्धारित किये गए नायकों से.....

तो मेरा दावा है कि आप तनिक भी व्याकुलता प्रदर्शित नहीं करते...
और न ही विरोध करते......

अब जाग उठ जाओ हिन्दूओ.....
धर्मयुद्ध तुम्हारी चौखट पर दस्तक दे रहा है.....
आधुनिक युग के वर्तमान पांडवों का विरोध करके स्वयं को राजदोष का  पापी मत बनाओ अनजाने में.....
अपना प्रजाधर्म पालन करो.....
🙏🙏🚩🚩🙏🙏
मोदी किससे क्या करवा रहा है और किससे साथ क्या कर रहा है....यह सब कुछ आप व मुझसे बेहतर जानता है मोदी......
उसे उसके लक्ष्य की ओर बढ़ने दीजिए.......
अब तो बस थोड़े से समय का इंतजार है.......
बस कुछ वर्ष और....
फिर.....
जयतु जयम हिन्दू राष्ट्रम......
किस ध्वज से भारत विजय होगी और किस ध्वज से विश्व विजय.....यह मोदी अच्छी तरह से जानते हैं और पहले से ही तय किये हुए हैं.....
जिसने तुम्हें तिरँगा थमाया है वो समय आने पर तुम्हारे हाथों में भगवा भी थमा देगा....
🖋️................
हिन्दूधर्मध्वजावाहक
हिन्दू 
🙏🙏🚩🚩🙏🙏

गुरुवार, 25 अगस्त 2022

प्रकाण्ड विद्वान #अष्टावक्र

प्रकाण्ड विद्वान  #अष्टावक्र


#अष्टावक्र  इतने प्रकाण्ड विद्वान थे  कि  माँ के गर्भ से ही अपने पिताजी  "कहोड़" को अशुद्ध वेद पाठ करने के लिये टोंक दिए जिससे क्रुद्ध होकर पिताजी ने आठ जगह से टेड़ें हो जाने का श्राप दे दिया था। 

 पौराणिक_कथा

.
अष्टावक्र अद्वैत वेदान्त के महत्वपूर्ण ग्रन्थ अष्टावक्र गीता के ऋषि हैं। अष्टावक्र गीता अद्वैत वेदान्त का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। 

'अष्टावक्र' का अर्थ 'आठ जगह से टेढा' होता है। 
कहते हैं कि अष्टावक्र का शरीर आठ स्थानों से टेढ़ा था।

उद्दालक ऋषि के पुत्र का नाम श्‍वेतकेतु था। उद्दालक ऋषि के एक शिष्य का नाम कहोड़ था। कहोड़ को सम्पूर्ण वेदों का ज्ञान देने के पश्‍चात् उद्दालक ऋषि ने उसके साथ अपनी रूपवती एवं गुणवती कन्या सुजाता का विवाह कर दिया। कुछ दिनों के बाद सुजाता गर्भवती हो गई। एक दिन कहोड़ वेदपाठ कर रहे थे तो गर्भ के भीतर से बालक ने कहा कि पिताजी! आप वेद का गलत पाठ कर रहे हैं। यह सुनते ही कहोड़ क्रोधित होकर बोले कि तू गर्भ से ही मेरा अपमान कर रहा है इसलिये तू आठ स्थानों से वक्र (टेढ़ा) हो जायेगा।

हठात् एक दिन कहोड़ राजा जनक के दरबार में जा पहुँचे। वहाँ बंदी से शास्त्रार्थ में उनकी हार हो गई। हार हो जाने के फलस्वरूप उन्हें जल में डुबा दिया गया। इस घटना के बाद अष्टावक्र का जन्म हुआ। पिता के न होने के कारण वह अपने नाना उद्दालक को अपना पिता और अपने मामा श्‍वेतकेतु को अपना भाई समझता था। एक दिन जब वह उद्दालक की गोद में बैठा था तो श्‍वेतकेतु ने उसे अपने पिता की गोद से खींचते हुये कहा कि हट जा तू यहाँ से, यह तेरे पिता का गोद नहीं है। अष्टावक्र को यह बात अच्छी नहीं लगी और उन्होंने तत्काल अपनी माता के पास आकर अपने पिता के विषय में पूछताछ की। माता ने अष्टावक्र को सारी बातें सच-सच बता दीं।

अपनी माता की बातें सुनने के पश्‍चात् अष्टावक्र अपने मामा श्‍वेतकेतु के साथ बंदी से शास्त्रार्थ करने के लिये राजा जनक के यज्ञशाला में पहुँचे। वहाँ द्वारपालों ने उन्हें रोकते हुये कहा कि यज्ञशाला में बच्चों को जाने की आज्ञा नहीं है। इस पर अष्टावक्र बोले कि अरे द्वारपाल! केवल बाल श्वेत हो जाने या अवस्था अधिक हो जाने से कोई बड़ा व्यक्ति नहीं बन जाता। जिसे वेदों का ज्ञान हो और जो बुद्धि में तेज हो वही वास्तव में बड़ा होता है। इतना कहकर वे राजा जनक की सभा में जा पहुँचे और बंदी को शास्त्रार्थ के लिये ललकारा।

राजा जनक ने अष्टावक्र की परीक्षा लेने के लिये पूछा कि वह पुरुष कौन है जो तीस अवयव, बारह अंश, चौबीस पर्व और तीन सौ साठ अक्षरों वाली वस्तु का ज्ञानी है? राजा जनक के प्रश्‍न को सुनते ही अष्टावक्र बोले कि राजन्! चौबीस पक्षों वाला, छः ऋतुओं वाला, बारह महीनों वाला तथा तीन सौ साठ दिनों वाला संवत्सर आपकी रक्षा करे। अष्टावक्र का सही उत्तर सुनकर राजा जनक ने फिर प्रश्‍न किया कि वह कौन है जो सुप्तावस्था में भी अपनी आँख बन्द नहीं रखता? जन्म लेने के उपरान्त भी चलने में कौन असमर्थ रहता है? कौन हृदय विहीन है? और शीघ्रता से बढ़ने वाला कौन है? अष्टावक्र ने उत्तर दिया कि हे जनक! सुप्तावस्था में मछली अपनी आँखें बन्द नहीं रखती। जन्म लेने के उपरान्त भी अंडा चल नहीं सकता। पत्थर हृदयहीन होता है और वेग से बढ़ने वाली नदी होती है।

अष्टावक्र के उत्तरों को सुकर राजा जनक प्रसन्न हो गये और उन्हें बंदी के साथ शास्त्रार्थ की अनुमति प्रदान कर दी। बंदी ने अष्टावक्र से कहा कि एक सूर्य सारे संसार को प्रकाशित करता है, देवराज इन्द्र एक ही वीर हैं तथा यमराज भी एक है। अष्टावक्र बोले कि इन्द्र और अग्निदेव दो देवता हैं। नारद  तथा पर्वत दो देवर्षि हैं, अश्‍वनीकुमार भी दो ही हैं। रथ के दो पहिये होते हैं और पति-पत्नी दो सहचर होते हैं। बंदी ने कहा कि संसार तीन प्रकार से जन्म धारण करता है। कर्मों का प्रतिपादन तीन वेद करते हैं। तीनों काल में यज्ञ होता है तथा तीन लोक और तीन ज्योतियाँ हैं। अष्टावक्र बोले कि आश्रम  चार हैं, वर्ण चार हैं, दिशायें चार हैं और ओंकार, आकार, उकार तथा मकार ये वाणी के प्रकार भी चार हैं। बंदी ने कहा कि यज्ञ पाँच प्रकार के होते हैं, यज्ञ की अग्नि पाँच हैं, ज्ञानेन्द्रियाँ पाँच हैं, पंच दिशाओं की अप्सरायें पाँच हैं, पवित्र नदियाँ पाँच हैं तथा पंक्‍ति छंद में पाँच पद होते हैं। अष्टावक्र बोले कि दक्षिणा में छः गौएँ देना उत्तम है, ऋतुएँ छः होती हैं, मन सहित इन्द्रयाँ छः हैं, कृतिकाएँ छः होती हैं और साधस्क भी छः ही होते हैं। बंदी ने कहा कि पालतू पशु सात उत्तम होते हैं और वन्य पशु भी सात ही, सात उत्तम छंद हैं, सप्तर्षि  सात हैं और वीणा में तार भी सात ही होते हैं। अष्टावक्र बोले कि आठ वसु हैं तथा यज्ञ के स्तम्भक कोण भी आठ होते हैं। बंदी ने कहा कि पितृ यज्ञ में समिधा नौ छोड़ी जाती है, प्रकृति नौ प्रकार की होती है तथा वृहती छंद में अक्षर भी नौ ही होते हैं। अष्टावक्र बोले कि दिशाएँ दस हैं, तत्वज्ञ दस होते हैं, बच्चा दस माह में होता है और दहाई में भी दस ही होता है।  बंदी ने कहा कि ग्यारह रुद्र हैं, यज्ञ में ग्यारह स्तम्भ होते हैं और पशुओं की ग्यारह इन्द्रियाँ होती हैं। अष्टावक्र बोले कि बारह आदित्य होते हैं बारह दिन का प्रकृति यज्ञ होता है, जगती छंद में बारह अक्षर होते हैं और वर्ष भी बारह मास का ही होता है। बंदी ने कहा कि त्रयोदशी उत्तम होती है, पृथ्वी पर तेरह द्वीप हैं।...... इतना कहते कहते बंदी श्‍लोक की अगली पंक्ति भूल गये और चुप हो गये। इस पर अष्टावक्र ने श्‍लोक को पूरा करते हुये कहा कि वेदों में तेरह अक्षर वाले छंद अति छंद कहलाते हैं और अग्नि, वायु तथा सूर्य तीनों तेरह दिन वाले यज्ञ में व्याप्त होते हैं।

इस प्रकार शास्त्रार्थ में बंदी की हार हो जाने पर अष्टावक्र ने कहा कि राजन्! यह हार गया है, अतएव इसे भी जल में डुबो दिया जाये। तब बंदी बोला कि हे महाराज! मैं वरुण का पुत्र हूँ और मैंने सारे हारे हुये ब्राह्मणों को अपने पिता के पास भेज दिया है। मैं अभी उन सबको आपके समक्ष उपस्थित करता हूँ। बंदी के इतना कहते ही बंदी से शास्त्रार्थ में हार जाने के पश्चात जल में डुबोये गये सार ब्राह्मण जनक की सभा में आ गये जिनमें अष्टावक्र के पिता कहोड़ भी थे।

अष्टावक्र ने अपने पिता के चरणस्पर्श किये। तब कहोड़ ने प्रसन्न होकर कहा कि पुत्र! तुम जाकर समंगा नदी में स्नान करो, उसके प्रभाव से तुम मेरे शाप से मुक्त हो जाओगे। तब अष्टावक्र ने इस स्थान में आकर समंगा नदी में स्नान किया और उसके सारे वक्र अंग सीधे हो गये।। 

*धन्य है हमारी सनातन संस्कृति*

इस तस्वीर को देखने और चिंतन करने के बाद आपको गांधियों से नफरत हो जाएगी... और हां ये तस्वीर तब की है जब नेहरू का कपड़ा और जूता विशेष विमान से आता था


इस तस्वीर को देखने और चिंतन करने के बाद आपको गांधियों से नफरत हो जाएगी... और हां ये तस्वीर तब की है जब नेहरू का कपड़ा और जूता विशेष विमान से आता था...
यह एक तस्वीर है 1948 के ओलंपिक की जो लंदन में हुआ था।
हमारी फुटबॉल टीम ने फ्रांस के साथ मैच 1-1 से बराबर किया था।
हमारे खिलाड़ी  इसलिए जीत न सके क्योंकि उनके पास जूते ही नहीं थे । 
और वह नंगे पैर पूरा मैच खेले थे।
जिसके कारण बहुत ही खिलाडियों को दूसरी टीम के खिलाडियों के जूतों से चोट भी लगी थी।
फिर भी मुकाबला बराबरी का रहा।         
इस टीम के कप्तान थे शैलेन्द्र नाथ मन्ना। वो विश्व के बेहतरीन खिलाडियों मैं से एक थे।
सरकार ने जूते क्यों नहीं दिए क्योंकि सरकार के पास इतने पैसे भी नही थे।
 यह वो वक्त था जब नेहरू के कपड़े पेरिस से ड्राइक्लीन हो कर आते थे।और साहब अपने कुत्ते के साथ प्राइवेट जेट मैं घूमते थे।
नतीजा यह हुआ के फीफा ने 1950 वर्ल्डकप मैं इंडिया को बैन कर दिया क्योंकि बिना जूते के कोई भी टीम मैच नही खेल सकती थी।
 फिर कभी भारतीय टीम फीफा वर्ल्ड कप मैं नही गई।                   

परंतु आज देश मैं कई स्टेडियम नेहरू गांधी परिवार के नाम पर 😏

मंगलवार, 23 अगस्त 2022

इस साल अजा एकादशी का व्रत 23 अगस्त 2022 को रखा जाएगा।


 अजा एकादशी आज
*******
अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य फल देने वाला है ये व्रत
==========================
एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित माना गया है। वहीं अजा एकादशी का व्रत भाद्रपद मास में पड़ता है। मान्यता है कि इस व्रत को रखने और विष्णु जी के पूजन से अश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य फल प्राप्त होता है।

हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हर साल 24 एकादशी व्रत पड़ते हैं। ये व्रत भगवान विष्णु को समर्पित हैं। इनमें से एक अजा एकादशी का व्रत भाद्रपद (भादो) मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को आता है। इस साल अजा एकादशी का व्रत 23 अगस्त 2022 को रखा जाएगा।
 
अजा एकादशी की तिथि
==================
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 23 अगस्त 2022 को सुबह 07:02 बजे से होगा और एकादशी तिथि का समापन 24 अगस्त 2022 को सुबह 05:09 बजे होगा।

अजा एकादशी व्रत की पूजा विधि
=======================
अजा एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें और नित्य कर्मों से निपटकर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी व्रत में बाल धोकर नहीं नहाना चाहिए। वहीं इस दिन साबुन और शैंपू के इस्तेमाल की भी मनाही है।

इसके बाद घर के पूजा स्थल की सफाई करके पूर्व दिशा की तरफ एक लकड़ी की चौकी रखें। इस पर एक पीला कपड़ा बिछाएं। इसके पश्चात चौकी पर भगवान विष्णु की या तस्वीर स्थापित करें। विष्णु जी को चंदन का तिलक लगाकर अक्षत, फूल, माला, फल और नैवेद्य आदि अर्पित करें। ध्यान रहे कि विष्णु जी की पूजा में तुलसी दल जरूर चढ़ाएं। पूजन के बाद अजा एकादशी व्रत की कथा पढ़ें और सुनें। माना जाता है कि इस दिन विष्णु चालीसा और विष्णु स्तुति का पाठ करने से जीवन में सुख-समृद्धि का आती है। फिर आखिर में भगवान विष्णु की आरती उतारें।

अजा एकादशी व्रत का महत्व
====================
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीराम ने अपने समय में अश्वमेध यज्ञ किया था और इसी यज्ञ के फलस्वरूप उन्हें लव कुश से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ था। धार्मिक मान्यता है कि अजा एकादशी के व्रत को करने से मनुष्य के पिछले जन्म के सभी पापों का नाश होता है और उसे अश्वमेध यज्ञ को करने के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

अजा एकादशी व्रत कथा
=================
ऐसा कहा जाता है कि राजा हरिश्चन्द्र अपनी सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के लिए जाने जाते थे। एक बार देवताओं ने इनकी परीक्षा लेने की योजना बनाई। राजा ने स्वप्न में देखा कि ऋषि विश्वामित्र को उन्होंने अपना राजपाट दान कर दिया है। जब अगले दिन राजा हरिश्चन्द्र विश्वामित्र को अपना समस्त राज-पाठ को सौंप कर जाने लगे तो विश्वामित्र ने राजा हरिश्चन्द्र से दक्षिणा स्वरुप 500 स्वर्ण मुद्राएं दान में मांगी। राजा ने उनसे कहा कि पांच सौ क्या, आप जितनी चाहे स्वर्ण मुद्राएं ले लीजिए। इस पर विश्वामित्र हँसने लगे और राजा को याद दिलाया कि राजपाट के साथ राज्य का कोष भी वे दान कर चुके हैं और दान की हुई वस्तु को दोबारा दान नहीं की जाती। तब राजा ने अपनी पत्नी और पुत्र को बेचकर स्वर्ण मुद्राएं हासिल की, लेकिन वो भी पांच सौ नहीं हो पाईं। राजा हरिश्चंद्र ने खुद को भी बेच डाला और सोने की सभी मुद्राएं विश्वामित्र को दान में दे दीं। राजा हरिश्चंद्र ने खुद को जहां बेचा था वह श्मशान का चांडाल था। चांडाल ने राजा हरिश्चन्द्र को श्मशान भूमि में दाह संस्कार के लिए कर वसूली का काम दे दिया।

एक दिन राजा हरिश्चंद्र ने एकादशी का व्रत रखा हुआ था। आधी रात का समय था और राजा श्मशान के द्वार पर पहरा दे रहे थे। बेहद अंधेरा था, इतने में ही वहां एक लाचार और निर्धन स्त्री बिलखते हुए पहुंची जिसके हाथ में अपने पुत्र का शव था। राजा हरिश्चन्द्र ने अपने धर्म का पालन करते हुए पत्नी से भी पुत्र के दाह संस्कार हेतु कर मांगा। पत्नी के पास कर चुकाने के लिए धन नहीं था इसलिए उसने अपनी साड़ी का आधा हिस्सा फाड़कर राजा का दे दिया। उसी समय भगवान प्रकट हुए और उन्होंने राजा से कहा, “हे हरिश्चंद्र, इस संसार में तुमने सत्य को जीवन में धारण करने का उच्चतम आदर्श स्थापित किया है। तुम्हारी कर्त्तव्यनिष्ठा महान है, तुम इतिहास में अमर रहोगे।” इतने में ही राजा का बेटा रोहिताश जीवित हो उठा। ईश्वर की अनुमति से विश्वामित्र ने भी हरिश्चंद्र का राजपाट उन्हें वापस लौटा दिया।

function disabled

Old Post from Sanwariya