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गुरुवार, 13 जुलाई 2023

कुदरत कुछ उधार नहीं रखती.. नदी ने पुल पर फेंक दिया सारा कचरा

भारी बारिश से निचले और पहाड़ी इलाकों में बाढ़ जैसे हालात हो गए हैं। कहीं चट्टान टूटकर गिर रही हैं तो कहीं सड़क धंस रही हैं। जी हां, सोशल मीडिया पर तबाही के तमाम वीडियो वायरल हो रहे हैं। इनमें एक वीडियो ऐसा है जिसे देखकर लोग बोल रहे हैं- कुदरत कुछ उधार नहीं रखती। यह वीडियो लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया है। इसमें एक पुल तमाम प्लास्टिक की बोतलों और अन्य मलबे से ढका नजर आ रहा है। यह मलबा बाढ़ के पानी के कारण ब्रिज पर इकट्ठा हो गया। जैसे ही IFS अधिकारी ने इस क्लिप को ट्विटर पर पोस्ट किया तो मामला वायरल हो गया, और यूजर्स इस मुद्दे पर अपनी राय रखने लगें।

यह वीडियो 11 जुलाई को 'भारतीय वन सेवा' (IFS) अधिकारी परवीन कासवान ने पोस्ट किया। उन्होंने कैप्शन में लिखा- प्रकृति -1, मनुष्य - 0। नदी ने सारा कचरा वापस हम पर फेंक दिया। फॉरवर्ड वीडियो। इस वायरल क्लिप में प्लास्टिक वेस्ट और मलबे से भरा एक पुल दिख रहा है। ऐसा लग रहा है कि बाढ़ के कारण नदी का सारा कचरा पुल पर इकट्ठा हो गया। अधिकारी के इस ट्वीट को खबर लिखे जाने तक 1 मिलियन व्यूज और 20 हजार से ज्यादा लाइक्स मिल चुके हैं। साथ ही, तमाम यूजर्स ने अपनी प्रतिक्रिया भी दी। एक यूजर ने लिखा- तेरा तुझ को अर्पण... वाले अंदाज में गंदगी वापिस लौटा दी। दूसरे ने लिखा - कुदरत कुछ उधार नहीं रखती है। वैसे इस पूरे मामले पर आपका क्या कहना है? कमेंट में बताइए।

 चप्पलें, प्लास्टिक की खाली बोतलें, पन्नी, खाने-पीने के सामान के खाली पैकेट, कपड़े, लकड़ी के टुकड़े और भी बहुत कुछ... नदी ने हमें हमारा सामान वापस कर दिया है। जी हां, आईएफएस अधिकारी प्रवीण कासवान ने एक वीडियो शेयर किया है जो हिमाचल प्रदेश बाढ़ का माना जा रहा है। वीडियो एक पुल का है जो कूड़े-कचरे से भरा दिखता है। 29 सेकेंड का वीडियो देखने के बाद ऐसा लगता है जैसे नाराज उफनाई नदी ने पुल के ऊपर तक हिलोरें मारकर हम इंसानों का फैलाया कचरा हमें वापस कर दिया है। लाखों लोग इस वीडियो को देख चुके हैं। कुछ कचरा तो घर के अवशेष लगते हैं। इस वीडियो को जिसने रिकॉर्ड किया, वह कहता है, 'ओह भाई साहब, मौत अगर देखनी हो तो यहां देखो

मैदानी लोग सिर्फ मौज के लिए जाते हैं पहाड़
पुल के नीचे नदी के पानी का शोर डराने वाला होता है। आजकल पहाड़ी राज्यों में ट्रेंड्स बनता जा रहा है कि आसपास के मैदानी इलाकों के लोग टूरिज्म के नाम पर बेरोकटोक गंदगी फैलाते हैं। दरअसल पहाड़ हो या जंगल, वहां के स्थानीय निवासियों को उसकी अहमियत ज्यादा पता होती है। शहर से गए लोग सिर्फ आनंद के लिए वहां पहुंचते हैं। पर्यटन अपनी जगह है लेकिन इसके नाम पर संसाधनों के साथ खिलवाड़ की इजाजत नहीं दी जा सकती है। यह वीडियो यही संदेश दे रहा है|

नदी कूड़ा लेकर चलने को मजबूर
कई लोगों ने इस वीडियो को देखने के बाद लिखा, प्रकृति-1 और इंसान- 0 ही रिजल्ट आखिर में होता है। भीम ने लिखा, 'तेरा तुझको अर्पण... वाले अंदाज में गंदगी वापस लौटा दी।' अजय सिंह ने अफसोस जताते हुए कहा कि मुझे हैरानी हो रही है कि नदी अपने साथ कितना कूड़ा लेकर चलने को मजबूर होती है। एक यूजर ने लिखा कि ये कई किलो है। मंजूनाथ ने ट्विटर पर लिखा कि हर बार बाढ़ के बाद ऐसा नजारा देखने को मिलता है फिर भी कुछ नहीं बदलता है। हम कूड़े का ठीक तरह से निपटारा नहीं करते। लिज मैथ्यू ने कहा कि सबक सीखने के लिए हमें और कितनी आपदा की जरूरत है?

हिमाचल में भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन के चलते अलग-अलग राज्यों के सैकड़ों लोग फंसे हुए हैं। वहां दुर्घटनाओं में 31 लोगों की मौत हुई है। 1300 सड़कों पर यातायात प्रभावित हुआ है और 40 बड़े पुलों को नुकसान पहुंचा है। कुल्लू के सैंज इलाके में ही 40 दुकानें और 30 मकान बह गए। सरकारी स्कूलों को 15 जुलाई तक बंद रखा गया है।

सुदूर उड़ीसा के जगन्नाथपुरी धाम में आज भी ठाकुर जी को सर्वप्रथम मारवाड़ की करमा बाई का भोग लगता है।



 विचित्र किन्तु सत्य
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*सुदूर उड़ीसा के जगन्नाथपुरी धाम में आज भी ठाकुर जी को सर्वप्रथम मारवाड़ की करमा बाई का भोग लगता है।


मारवाड़ प्रांत का एक जिला है नागौर। नागौर जिले में एक छोटा सा शहर है ..... मकराना

यूएन ने मकराना के मार्बल को विश्व की ऐतिहासिक धरोहर घोषित किया हुआ है .... ये क्वालिटी है यहां के मार्बल की ।

लेकिन क्या मकराना की पहचान सिर्फ वहां का मार्बल है ?? ....

जी नहीं ....

मारवाड़ का एक सुप्रसिद्ध भजन है ....

थाळी भरकर ल्याई रै खीचड़ो ऊपर घी री बाटकी ....
जिमों म्हारा श्याम धणी जिमावै करमा बेटी जाट की ....
माता-पिता म्हारा तीर्थ गया नै जाणै कद बै आवैला ....
जिमों म्हारा श्याम धणी थानै जिमावै करमा बेटी जाट की ....

मकराणा तहसील में एक गांव है “कालवा” .... कालूराम जी डूडी (जाट) के नाम पे इस गांव का नामकरण हुआ है “कालवा” ....

कालवा में एक जीवणराम जी डूडी (जाट) हुए थे भगवान कृष्ण के भक्त .... जीवणराम जी की काफी मन्नतों के बाद भगवान के आशीर्वाद से उनकी पत्नी रत्नी देवी की कोख से वर्ष 1615 AD में एक पुत्री का जन्म हुआ नाम रखा .... *         ”करमा बाई”*

करमा का लालन-पालन बाल्यकाल से ही धार्मिक परिवेश में हुआ .... माता पिता दोनों भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त थे घर में ठाकुर जी की मूर्ति थी जिसमें रोज़ भोग लगता भजन-कीर्तन होता था....

करमा जब 13 वर्ष की हुई तब उसके माता-पिता कार्तिक पूर्णिमा स्नान के लिए समीप ही पुष्कर जी गए .... करमा को साथ इसलिए नहीं ले गए कि घर की देखभाल, गाय भैंस को दुहना निरना कौन करेगा .... रोज़ प्रातः ठाकुर जी के भोग लगाने की ज़िम्मेदारी भी करमा को दी गयी ....

अगले दिन प्रातः नन्हीं करमा बाईसा ने ठाकुर जी को भोग लगाने हेतु खीचड़ा बनाया (बाजरे से बना मारवाड़ का एक शानदार व्यंजन) .... और उसमें खूब सारा गुड़ व घी डाल के ठाकुर जी के आगे भोग हेतु रखा ....

करमा;- ल्यो ठाकुर जी आप भोग लगाओ तब तक म्हें घर रो काम करूँ ....

करमा घर का काम करने लगी व बीच बीच में आ के चेक करने लगी कि ठाकुर जी ने भोग लगाया या नहीं .... लेकिन खीचड़ा जस का तस पड़ा रहा दोपहर हो गयी ....

करमा को लगा खीचड़े में कोई कमी रह गयी होगी वो बार बार खीचड़े में घी व गुड़ डालने लगी ....

दोपहर को करमा बाईसा ने व्याकुलता से कहा ठाकुर जी भोग लगा ल्यो नहीं तो म्हे भी आज भूखी रहूं लां ....

शाम हो गयी ठाकुर जी ने भोग नहीं लगाया इधर नन्हीं करमा भूख से व्याकुल होने लगी और बार बार ठाकुर जी की मनुहार करने लगी भोग लगाने को ....

नन्हीं करमा की अरदास सुन के ”ठाकुर जी की मूर्ति से साक्षात भगवान श्री-कृष्ण(ठाकुर जी) प्रकट हुए” और बोले .... करमा तूँ म्हारे परदो तो करयो ही नहीं म्हें भोग क्यां लगातो ?? ....

करमा;- ओह्ह इत्ती सी बात तो थे (आप) मन्ने तड़के ही बोल देता भगवान ....

करमा अपनी लुंकड़ी (ओढ़नी) की ओट (परदा) करती है और हाथ से पंखा झिलाती है .... करमा की लुंकड़ी की ओट में ठाकुर जी खीचड़ा खा के अंतर्ध्यान हो जाते हैं ....

करमा का ये नित्यक्रम बन गया ....

रोज़ सुबह करमा खीचड़ा बना के ठाकुर जी को बुलाती .... ठाकुर जी प्रकट होते व करमा की ओढ़नी की ओट में बैठ के खीचड़ा जीम के अंतर्ध्यान हो जाते ....

माता-पिता जब पुष्कर जी से तीर्थ कर के वापस आते हैं तो देखते हैं गुड़ का भरा मटका खाली होने के कगार पे है .... पूछताछ में करमा कहती है .... म्हें नहीं खायो गुड़ ओ गुड़ तो म्हारा ठाकुर जी खायो ....

माता-पिता सोचते हैं करमा ही ने गुड़ खाया है अब झूठ बोल रही है ....

अगले दिन सुबह करमा फिर खीचड़ा बना के ठाकुर जी का आह्वान करती है तो ठाकुर जी प्रकट हो के खीचड़े का भोग लगाते हैं ....

माता-पिता यह दृश्य देखते ही आवाक रह जाते हैं ....

देखते ही देखते करमा की ख्याति सम्पूर्ण मारवाड़ व राजस्थान में फैल गयी ....

जगन्नाथपुरी के पुजारियों को जब मालूम चला कि मारवाड़ के नागौर में मकराणा के कालवा गांव में रोज़ ठाकुर जी पधार के करमा के हाथ से खीचड़ा जीमते हैं तो वो करमा को पूरी बुला लेते हैं ....

करमा अब जगन्नाथपुरी में खीचड़ा बना के ठाकुर जी के भोग लगाने लगी .... ठाकुर जी पधारते व करमा की लुंकड़ी की ओट में खीचड़ा जीम के अंतर्ध्यान हो जाते ....

बाद करमा बाईसा का शरीर जगन्नाथपुरी में ही  मोक्ष ब्रहमलीन हो गया।

(1) जगन्नाथपुरी में ठाकुर जी को नित्य 6 भोग लगते हैं .... इसमें ठाकुर जी को तड़के प्रथम भोग करमा रसोई में बना खीचड़ा आज भी रोज़ लगता है ....

(2) जगन्नाथपुरी में ठाकुर जी के मंदिर में कुल 7 मूर्तियां लगी है .... 5 मूर्तियां ठाकुर जी के परिवार की है .... 1 मूर्ति सुदर्शन चक्र की है .... 1 मूर्ति करमा बाईसा की है।

(3) जगन्नाथपुरी रथयात्रा में रथ में ठाकुर जी की मूर्ति के समीप करमा बाईसा की मूर्ति विद्यमान रहती है .... बिना करमा बाईसा की मूर्ति रथ में रखे रथ अपनी जगह से हिलता भी नहीं है ....

मारवाड़ या यूं कहें राजस्थान के कोने कोने में ऐसी अनेक विभूतियां है जिनके बारे में आमजन अनभिज्ञ है। हमें उन्हें पढ़ना होगा। हमें उन्हें जानना होगा ।
जय श्रीकृष्ण

13 जुलाई/बलिदान-दिवस बाजीप्रभु देशपाण्डे का बलिदान

 13 जुलाई/बलिदान-दिवस


बाजीप्रभु देशपाण्डे का बलिदान

शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित हिन्दू पद-पादशाही की स्थापना में जिन वीरों ने नींव के पत्थर की भांति स्वयं को विसर्जित किया, उनमें बाजीप्रभु देशपाण्डे का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

एक बार शिवाजी 6,000 सैनिकों के साथ पन्हालगढ़ में घिर गये। किले के बाहर सिद्दी जौहर के साथ एक लाख सेना डटी थी। बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह ने अफजलखाँ के पुत्र फाजल खाँ के शिवाजी को पराजित करने में विफल होने पर उसे भेजा था। चार महीने बीत गये। एक दिन तेज आवाज के साथ किले का एक बुर्ज टूट गया। शिवाजी ने देखा कि अंग्रेजों की एक टुकड़ी भी तोप लेकर वहाँ आ गयी है। किले में रसद भी समाप्ति पर थी।

साथियों से परामर्श में यह निश्चय हुआ कि जैसे भी हो, शिवाजी 40 मील दूर स्थित विशालगढ़ पहुँचे। 12 जुलाई, 1660 की बरसाती रात में एक गुप्त द्वार से शिवाजी अपने विश्वस्त 600 सैनिकों के साथ निकल पड़े। भ्रम बनाये रखने के लिए अगले दिन एक दूत यह सन्धिपत्र लेकर सिद्दी जौहर के पास गया कि शिवाजी बहुत परेशान हैं, अतः वे समर्पण करना चाहते हैं।

यह समाचार पाकर मुगल सैनिक उत्सव मनाने लगे। यद्यपि एक बार उनके मन में शंका तो हुई; पर फिर सब शराब और शबाब में डूब गये। समर्पण कार्यक्रम की तैयारी होने लगी। उधर शिवाजी का दल तेजी से आगे बढ़ रहा था। अचानक गश्त पर निकले कुछ शत्रुओं की निगाह में वे आ गये। तुरन्त छावनी में सन्देश भेजकर घुड़सवारों की एक टोली उनके पीछे लगा दी गयी।

पर इधर भी योजना तैयार थी। एक अन्य पालकी लेकर कुछ सैनिक दूसरी ओर दौड़ने लगे। घुड़सवार उन्हें पकड़कर छावनी ले आये; पर वहाँ आकर उन्होंने माथा पीट लिया। उसमें से निकला नकली शिवाजी। नये सिरे से फिर पीछा शुरू हुआ। तब तक महाराज तीस मील पारकर चुके थे; पर विशालगढ़ अभी दूर था। इधर शत्रुओं के घोड़ों की पदचाप सुनायी देने लगी थी।

इस समय शिवाजी एक संकरी घाटी से गुजर रहे थे। अचानक बाजीप्रभु ने उनसे निवेदन किया कि मैं यहीं रुकता हूँ। आप तेजी से विशालगढ़ की ओर बढ़ें। जब तक आप वहाँ नहीं पहुँचेंगे, तब तक मैं शत्रु को पार नहीं होने दूँगा। शिवाजी के सामने असम॰जस की स्थिति थी; पर सोच-विचार का समय नहीं था। आधे सैनिक बाजीप्रभु के साथ रह गये और आधे शिवाजी के साथ चले। निश्चय हुआ कि पहुँच की सूचना तोप दागकर दी जाएगी।

घाटी के मुख पर बाजीप्रभु डट गये। कुछ ही देर में सिद्दी जौहर के दामाद सिद्दी मसूद के नेतृत्व में घुड़सवार वहाँ आ पहंँचे। उन्होंने दर्रे में घुसना चाहा; पर सिर पर कफन बाँधे हिन्दू सैनिक उनके सिर काटने लगे। भयानक संग्राम छिड़ गया। सूरज चढ़ आया; पर बाजीप्रभु ने उन्हें घाटी में घुसने नहीं दिया।

एक-एक कर हिन्दू सैनिक धराशायी हो रहे थे। बाजीप्रभु भी सैकड़ों घाव खा चुके थे; पर उन्हें मरने का अवकाश नहीं था। उनके कान तोप की आवाज सुनने को आतुर थे। विशालगढ़ के द्वार पर भी शत्रु सेना का घेरा था। उन्हें काटते मारते शिवाजी किले में पहुँचे और तोप दागने का आदेश दिया।

इधर तोप की आवाज बाजीप्रभु के कानों ने सुनी, उधर उनकी घायल देह धरती पर गिरी। शिवाजी विशालगढ़ पहुँचकर अपने उस प्रिय मित्र की प्रतीक्षा ही करते रह गये; पर उसके प्राण तो लक्ष्य पूरा करते-करते अनन्त में विलीन हो चुके थे। बाजीप्रभु देशपाण्डे की साधना सफल हुई। तब से वह बलिदानी घाटी (खिण्ड) पावन खिण्ड कहलाती है।



पंचवक्त्र शिव मंदिर, मंडी, हिमाचल प्रदेश, 16वीं शताब्दी - हिमाचल के मंडी जिले का पंचवक्त्र शिव मंदिर जस का तस खड़ा है।

 पानी का सैलाब भी भोलेनाथ के मंदिर को हिला नहीं सका, जानें हिमाचल के इस 'केदारनाथ' की कहानी
500 से भी ज्यादा साल पुराना यह मंदिर दिखने में हूबहू केदारन..

अभी हिमाचल प्रदेश के मंडी में एक प्राचीन मंदिर की खूब चर्चा हो रही है, क्योंकि यह व्यास नदी के रौद्र रुप के कारण हो रहे विनाश के बीच यह अडिग और अटल अविचल होकर शान से खड़ा है।

लोगों के लिए यह चमत्कार से कम नहीं है, लेकिन मैं इसे हमारी प्राचीन वास्तुकला का नायाब उदाहरण कहना चाहूंगा। लेकिन एक बात मुझे ये समझ में आई कि जब से दुनिया में प्रॉपर सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू हुई और इमारतें आधुनिक सिविल इंजीनियरिंग के अनुसार बनाई जाने लगीं तबसे कोई इमारत 100 साल से ज़्यादा नहीं टिकती, ज़्यादातर इमारतों सौ साल के पहले ही जर्जर और ध्वस्त हो जाती हैं, लेकिन हमारे पूर्वज जो आधुनिक सिविल इंजीनियरिंग का सी नहीं जानते थे उनकी बनाई इमारतें बड़ी से बड़ी आपदा झेलकर भी खड़ी हैं, जबकि आधुनिक इमारतें तास के पत्तों की तरह बह रही हैं।

जिस तरह काशी गंगा के किनारे बसा है, ठीक उसी तरह मंडी व्यास नदी के तट पर बसा है। भगवान शिव को समर्पित यह अद्भुत स्थल सुकेती और ब्यास नदियों के संगम पर स्थित है, जो पंचवक्त्र महादेव मंदिर के नाम विख्यात है।

पंचवक्त्र महादेव मंदिर का निर्माण मंडी के राजा सिद्ध सेन ने 16वीं सदी के पूर्वार्द्ध में करवाया था।

मंदिर एक विशाल पत्थर के चबूतरे पर खड़ा है और बहुत अच्छी तरह से सुनियोजित तरीके से बनाई गई है। इसके दीवारों में पत्थरों को इंटरलॉकिंग सिस्टम पर जोड़ा गया है। यह भूतनाथ और त्रिलोकीनाथ मंदिरों जैसा बनाया गया शिखराकार मंदिर है। मंदिर की छत बनाने में उत्तम तकनीक को प्रयुक्त किया गया है। ध्यान से देखें तो यह केदारनाथ के छत से मिलता जुलता है। मंदिर विशिष्ट शिखर वास्तुकला शैली में बनाया गया है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव की विशाल पंचमुखी प्रतिमा स्थापित है, जो भगवान शिव के विभिन्न रूपों अघोरा, ईशान, तत्पुरुष, वामदेव और रुद्र को दर्शाते हैं।

मंदिर का दरवाजा व्यास नदी की ओर है। दोनों ओर द्वारपाल हैं। मंदिर में कई स्थानों पर सांप की आकृतियां स्थित हैं। नंदी की मूर्ति भी भव्य है, जिसका मुख गर्भगृह की ओर है। पंचवक्त्र महादेव मंदिर संरक्षित स्मारकों में से एक है, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत आता है और इसे राष्ट्रीय स्थल घोषित किया गया है।

अभी फिलहाल यह मंदिर चर्चा में बना हुआ है, क्योंकि मंडी के "पंचवक्त्र महादेव" मंदिर ने फिर 10 साल बाद फिर केदारनाथ की याद दिला दी। हिमाचल में जहां कुछ दिन से जारी मूसलाधार बारिश, बादल फटने और बार बार लैंडस्लाइड होने से चारों तरफ तबाही का मंजर है, कई ऊंची इमारतें ताश के पत्तों की तरह नष्ट हो चुका है। इसके बावजूद भी हिमाचल के मंडी जिले का पंचवक्त्र शिव मंदिर जस का तस खड़ा है।

व्यास नदी के जलस्तर के बढ़ने से मंदिर के शिखर के पास तक ब्यास नदी का पानी पहुंचा लेकिन महादेव के इस मंदिर को नदी की धारा से कोई क्षति नहीं पहुंची है।

आधुनिक इंजीनियरिंग से बने पुल, फोरलेन सब टूट कर व्यास में समा गए परंतु यह मंदिर सैकड़ों बार व्यास के प्रचंड को सहता हुआ आज भी शान से खड़ा है।

इसीलिए मैं बार बार कहता हूं कि, आधुनिक दुनियाँ की सबसे उन्नत मशीनें और सबसे अधिक कुशल कारीगर भी मिलकर उस स्तर को नहीं प्राप्त कर सकते जिसे हमारे पूर्वजों ने सदियों पहले हासिल कर लिया था...!

(पंचवक्त्र शिव मंदिर, मंडी, हिमाचल प्रदेश, 16वीं शताब्दी)


बाबा बनकर अय्याशी करते अब्दुल्लाह…!


आजकल मुस्लिमो और उनके वोटखरीद विपक्षी दलों का पूरा जोर हिन्दू बाबाओं को बदनाम करने पर है । हिंदी कोरा में भी जितने कांगिये, आपिये, वामिये, मुस्लिम, हिन्दू नामधारी मुस्लिम, हिन्दू नाम से आईडी बनाये हुए पाकिस्तानी और बंगलादेशी तथा रोहिंग्या मुसलमान सब हिन्दू मुस्लिम सद्भाव की बात करते हैं और भगवाधारी, बजरंगी, आरएसएस निक्करधारी और हिन्दू बाबाओं पर जोरदार हमला बोलते हुए इन्हें शांति और भाईचारा के दुश्मन बताते हैं । एक ऐसा सद्भाव जो न कभी था न होगा । ठीक उसी प्रकार जैसे बन्दर, भेड़ियों को शाकाहारी घोषित करता है ।

आजकल अब्दुल हाथ मे कलावा बांधकर, रुद्राक्ष पहने माथे पर टीका लगाकर जिहाद करता है । और दारू पीकर अय्याशी भी करना हो तो भगवा पहनकर बाबा बनता है जिससे लोग जान भी जाएं तो बाबा ही बदनाम हों ।


कन्ना यानी आंखें अर्पित करने वाला नयनार यानी शिव भक्त।

 

एक मशहूर धनुर्धर थिम्मन एक दिन शिकार के लिए गए। जंगल में उन्हें एक मंदिर मिला, जिसमें एक शिवलिंग था। थिम्मन के मन में शिव के लिए एक गहरा प्रेम भर गया और उन्होंने वहां कुछ अर्पण करना चाहा। लेकिन उन्हें समझ नहीं आया कि कैसे और किस विधि ये काम करें। उन्होंने भोलेपन में अपने पास मौजूद मांस शिवलिंग पर अर्पित कर दिया और खुश होकर चले गए कि शिव ने उनका चढ़ावा स्वीकार कर लिया।

उस मंदिर की देखभाल एक ब्राह्मण करता था जो उस मंदिर से कहीं दूर रहता था। हालांकि वह शिव का भक्‍त था लेकिन वह रोजाना इतनी दूर मंदिर तक नहीं आ सकता था इसलिए वह सिर्फ पंद्रह दिनों में एक बार आता था। अगले दिन जब ब्राह्मण वहां पहुंचा, तो शिव लिंग के बगल में मांस पड़ा देखकर वह भौंचक्‍का रह गया। यह सोचते हुए कि यह किसी जानवर का काम होगा, उसने मंदिर की सफाई कर दी, अपनी पूजा की और चला गया। अगले दिन, थिम्मन और मांस अर्पण करने के लिए लाए। उन्हें किसी पूजा पाठ की जानकारी नहीं थी, इसलिए वह बैठकर शिव से अपने दिल की बात करने लगे। वह मांस चढ़ाने के लिए रोज आने लगे। एक दिन उन्हें लगा कि शिवलिंग की सफाई जरूरी है लेकिन उनके पास पानी लाने के लिए कोई बरतन नहीं था। इसलिए वह झरने तक गए और अपने मुंह में पानी भर कर लाए और वही पानी शिवलिंग पर डाल दिया।

जब ब्राह्मण वापस मंदिर आया तो मंदिर में मांस और शिवलिंग पर थूक देखकर घृणा से भर गया। वह जानता था कि ऐसा कोई जानवर नहीं कर सकता। यह कोई इंसान ही कर सकता था। उसने मंदिर साफ किया, शिवलिंग को शुद्ध करने के लिए मंत्र पढ़े। फिर पूजा पाठ करके चला गया। लेकिन हर बार आने पर उसे शिवलिंग उसी अशुद्ध अवस्था में मिलता। एक दिन उसने आंसुओं से भरकर शिव से पूछा, “हे देवों के देव, आप अपना इतना अपमान कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं।” शिव ने जवाब दिया, “जिसे तुम अपमान मानते हो, वह एक दूसरे भक्त का अर्पण है। मैं उसकी भक्ति से बंधा हुआ हूं और वह जो भी अर्पित करता है, उसे स्वीकार करता हूं। अगर तुम उसकी भक्ति की गहराई देखना चाहते हो, तो पास में कहीं जा कर छिप जाओ और देखो। वह आने ही वाला है। ”ब्राह्मण एक झाड़ी के पीछे छिप गया। थिम्मन मांस और पानी के साथ आया। उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि शिव हमेशा की तरह उसका चढ़ावा स्वीकार नहीं कर रहे। वह सोचने लगा कि उसने कौन सा पाप कर दिया है। उसने लिंग को करीब से देखा तो पाया कि लिंग की दाहिनी आंख से कुछ रिस रहा है। उसने उस आंख में जड़ी-बूटी लगाई ताकि वह ठीक हो सके लेकिन उससे और रक्‍त आने लगा। आखिरकार, उसने अपनी आंख देने का फैसला किया। उसने अपना एक चाकू निकाला, अपनी दाहिनी आंख निकाली और उसे लिंग पर रख दिया। रक्‍त टपकना बंद हो गया और थिम्मन ने राहत की सांस ली।
लेकिन तभी उसका ध्यान गया कि लिंग की बाईं आंख से भी रक्‍त निकल रहा है। उसने तत्काल अपनी दूसरी आंख निकालने के लिए चाकू निकाल लिया, लेकिन फिर उसे लगा कि वह देख नहीं पाएगा कि उस आंख को कहां रखना है। तो उसने लिंग पर अपना पैर रखा और अपनी आंख निकाल ली। उसकी अपार भक्ति को देखते हुए, शिव ने थिम्मन को दर्शन दिए। उसकी आंखों की रोशनी वापस आ गई और वह शिव के आगे दंडवत हो गया। उसे कन्नप्पा नयनार के नाम से जाना गया। कन्ना यानी आंखें अर्पित करने वाला नयनार यानी शिव भक्त।

हर हर महादेव 🔱🕉️


बुधवार, 12 जुलाई 2023

कामिका एकादशी आज

कामिका एकादशी आज
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सावन की कामिका एकादशी पर व्रत करने और दान करने से पितरों को मोक्ष मिलता है और पापों से मुक्ति मिलती है।

सावन महीने की शुरुआत हो चुकी है, इस महीने में पड़ने वाले हर व्रत और त्योहार का महत्व बेहद खास होता है। सावन महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर कामिका एकादशी मनाई जाती है। एकादशी में विष्णु भगवान की पूजा होती है, लेकिन माना जाता है कि सावन की कामिका एकादशी व्रत से शंकर भगवान भी प्रसन्न होते हैं। मान्यताओं के अनुसार सावन की कामिका एकादशी पर व्रत करने और दान करने से पितरों को मोक्ष मिलता है और पापों से मुक्ति मिलती है।

कामिका एकादशी की तारीख और शुभ मुहूर्त 
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इस साल सावन की कामिका एकादशी का व्रत 13 जुलाई 2023, गुरुवार को है. कृष्ण पक्ष की कामिका एकादशी तिथि 12 जुलाई 2023 को शाम 05.59 मिनट पर शुरू हो रही है और अगले दिन यानी 13 जुलाई 2023, गुरुवार को शाम 06.24 मिनट तक एकादशी रहेगी।

कामिका एकादशी व्रत का पारण  
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कामिका एकादशी व्रत का पारण शुक्रवार, 14 जुलाई 2023 को सुबह 05 बजकर 32 के बाद करना है। इस दिन सुबह 08 बजकर 18 मिनट तक पारण के लिए शुभ मुहूर्त रहेगा।

आहार से जुड़े नियम
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एकादशी के पारण से पहले आपको ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए और उसके बाद खुद भोजन करना चाहिए। पारण के वक्त एकदम सात्विक भोजन करें। इस भोजन में लहसुन, प्याज या फिर मांस-मच्छी को शामिल नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही ये भोजन शुद्ध घी में पका होना चाहिए। पारण के भोजन में सरसों तेल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
एकादशी व्रत के दिन अनाज का सेवन नहीं करना चाहिए। आप फलाहार कर सकते हैं। फल के अलावा दूध, दही और अन्य फलाहार जैसे साबूदाना, सिंघाड़े का आटा आदि से अपने लिए फलाहार तैयार कर सकते हैं।

कामिका एकादशी की व्रत कथा
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एक गाँव में एक वीर क्षत्रिय रहता था। एक दिन किसी कारण वश उसकी ब्राह्मण से हाथापाई हो गई और ब्राह्मण की मृत्य हो गई। अपने हाथों मरे गये ब्राह्मण की क्रिया उस क्षत्रिय ने करनी चाही। परन्तु पंडितों ने उसे क्रिया में शामिल होने से मना कर दिया। ब्राह्मणों ने बताया कि तुम पर ब्रह्म-हत्या का दोष है। पहले प्रायश्चित कर इस पाप से मुक्त हो तब हम तुम्हारे घर भोजन करेंगे।

इस पर क्षत्रिय ने पूछा कि इस पाप से मुक्त होने के क्या उपाय है। तब ब्राह्मणों ने बताया कि श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को भक्तिभाव से भगवान श्रीधर का व्रत एवं पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन कराके सदश्रिणा के साथ आशीर्वाद प्राप्त करने से इस पाप से मुक्ति मिलेगी। पंडितों के बताये हुए तरीके पर व्रत कराने वाली रात में भगवान श्रीधर ने क्षत्रिय को दर्शन देकर कहा कि तुम्हें ब्रह्म-हत्या के पाप से मुक्ति मिल गई है।

इस व्रत के करने से ब्रह्म-हत्या आदि के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और इहलोक में सुख भोगकर प्राणी अन्त में विष्णुलोक को जाते हैं। इस कामिका एकादशी के माहात्म्य के श्रवण व पठन से मनुष्य स्वर्गलोक को प्राप्त करते हैं। ॥ जय श्री हरि ॥

भगवान हनुमान को "बजरंग बली" क्यों कहा जाता है?


 

भगवान हनुमान को उनकी अपार शक्ति और शक्ति के कारण बजरंग बली के नाम से जाना जाता है। संस्कृत में "बजरंग" शब्द का अर्थ "हीरा" है, और ऐसा कहा जाता है कि हनुमान का शरीर हीरे के समान मजबूत है। यह भी कहा जाता है कि उसमें दस हजार हाथियों का बल था।

हनुमान को बजरंग बली के नाम से कैसे जाना जाने लगा, इसके बारे में कई किंवदंतियाँ हैं।

एक किंवदंती बताती है कि जब हनुमान बच्चे थे, तब वह जंगल में खेल रहे थे जब उन्होंने सूर्य को देखा और उसे एक पका हुआ फल समझ लिया। वह उसे खाने के लिए उछला, लेकिन देवताओं के राजा इंद्र ने उस पर वज्र से प्रहार कर दिया। हनुमान का शरीर बुरी तरह घायल हो गया था, लेकिन वायु के देवता वायु इतने क्रोधित थे कि उन्होंने बहना बंद कर दिया। इससे दुनिया में बड़ी अशांति फैल गई और देवताओं को हस्तक्षेप करने के लिए मजबूर होना पड़ा। उन्होंने हनुमान के घावों को ठीक किया और उन्हें हीरे की ताकत सहित कई वरदान दिए।


एक अन्य कथा यह बताती है

एक बार हनुमान ने राक्षस महिरावण को कुश्ती के लिए चुनौती दी। महिरावण बहुत शक्तिशाली राक्षस था, लेकिन हनुमान अपनी अविश्वसनीय ताकत से उसे हराने में सक्षम थे। मैच के बाद महिरावण हनुमान की शक्ति से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उन्हें बजरंग बली नाम दे दिया।बजरंगबली हनुमान के लिए एक लोकप्रिय विशेषण है और कई हिंदू उनकी शक्ति और सुरक्षा का आह्वान करने के लिए इसका उपयोग करते हैं।

कुछ अन्य कारण जिनकी वजह से हनुमान को बजरंग बली के नाम से जाना जाता है:

  • उनका शरीर हीरे के समान मजबूत बताया जाता है।
  • कहा जाता है कि उसमें दस हजार हाथियों का बल था।
  • वह लंबी दूरी तक छलांग लगाने और भारी वस्तुएं ले जाने में सक्षम है।
  • वह निडर है और जिस चीज में वह विश्वास करता है उसके लिए लड़ने को हमेशा तैयार रहता है।

जय बजरंग बली

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