पानी का सैलाब भी भोलेनाथ के मंदिर को हिला नहीं सका, जानें हिमाचल के इस 'केदारनाथ' की कहानी
500 से भी ज्यादा साल पुराना यह मंदिर दिखने में हूबहू केदारन..
लोगों के लिए यह चमत्कार से कम नहीं है, लेकिन मैं इसे हमारी प्राचीन वास्तुकला का नायाब उदाहरण कहना चाहूंगा। लेकिन एक बात मुझे ये समझ में आई कि जब से दुनिया में प्रॉपर सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू हुई और इमारतें आधुनिक सिविल इंजीनियरिंग के अनुसार बनाई जाने लगीं तबसे कोई इमारत 100 साल से ज़्यादा नहीं टिकती, ज़्यादातर इमारतों सौ साल के पहले ही जर्जर और ध्वस्त हो जाती हैं, लेकिन हमारे पूर्वज जो आधुनिक सिविल इंजीनियरिंग का सी नहीं जानते थे उनकी बनाई इमारतें बड़ी से बड़ी आपदा झेलकर भी खड़ी हैं, जबकि आधुनिक इमारतें तास के पत्तों की तरह बह रही हैं।
जिस तरह काशी गंगा के किनारे बसा है, ठीक उसी तरह मंडी व्यास नदी के तट पर बसा है। भगवान शिव को समर्पित यह अद्भुत स्थल सुकेती और ब्यास नदियों के संगम पर स्थित है, जो पंचवक्त्र महादेव मंदिर के नाम विख्यात है।
पंचवक्त्र महादेव मंदिर का निर्माण मंडी के राजा सिद्ध सेन ने 16वीं सदी के पूर्वार्द्ध में करवाया था।
मंदिर एक विशाल पत्थर के चबूतरे पर खड़ा है और बहुत अच्छी तरह से सुनियोजित तरीके से बनाई गई है। इसके दीवारों में पत्थरों को इंटरलॉकिंग सिस्टम पर जोड़ा गया है। यह भूतनाथ और त्रिलोकीनाथ मंदिरों जैसा बनाया गया शिखराकार मंदिर है। मंदिर की छत बनाने में उत्तम तकनीक को प्रयुक्त किया गया है। ध्यान से देखें तो यह केदारनाथ के छत से मिलता जुलता है। मंदिर विशिष्ट शिखर वास्तुकला शैली में बनाया गया है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव की विशाल पंचमुखी प्रतिमा स्थापित है, जो भगवान शिव के विभिन्न रूपों अघोरा, ईशान, तत्पुरुष, वामदेव और रुद्र को दर्शाते हैं।
मंदिर का दरवाजा व्यास नदी की ओर है। दोनों ओर द्वारपाल हैं। मंदिर में कई स्थानों पर सांप की आकृतियां स्थित हैं। नंदी की मूर्ति भी भव्य है, जिसका मुख गर्भगृह की ओर है। पंचवक्त्र महादेव मंदिर संरक्षित स्मारकों में से एक है, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत आता है और इसे राष्ट्रीय स्थल घोषित किया गया है।
अभी फिलहाल यह मंदिर चर्चा में बना हुआ है, क्योंकि मंडी के "पंचवक्त्र महादेव" मंदिर ने फिर 10 साल बाद फिर केदारनाथ की याद दिला दी। हिमाचल में जहां कुछ दिन से जारी मूसलाधार बारिश, बादल फटने और बार बार लैंडस्लाइड होने से चारों तरफ तबाही का मंजर है, कई ऊंची इमारतें ताश के पत्तों की तरह नष्ट हो चुका है। इसके बावजूद भी हिमाचल के मंडी जिले का पंचवक्त्र शिव मंदिर जस का तस खड़ा है।
व्यास नदी के जलस्तर के बढ़ने से मंदिर के शिखर के पास तक ब्यास नदी का पानी पहुंचा लेकिन महादेव के इस मंदिर को नदी की धारा से कोई क्षति नहीं पहुंची है।
आधुनिक इंजीनियरिंग से बने पुल, फोरलेन सब टूट कर व्यास में समा गए परंतु यह मंदिर सैकड़ों बार व्यास के प्रचंड को सहता हुआ आज भी शान से खड़ा है।
इसीलिए मैं बार बार कहता हूं कि, आधुनिक दुनियाँ की सबसे उन्नत मशीनें और सबसे अधिक कुशल कारीगर भी मिलकर उस स्तर को नहीं प्राप्त कर सकते जिसे हमारे पूर्वजों ने सदियों पहले हासिल कर लिया था...!
(पंचवक्त्र शिव मंदिर, मंडी, हिमाचल प्रदेश, 16वीं शताब्दी)
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