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शनिवार, 13 जनवरी 2024

निर्माणाधीन (शिखर, कलश, ध्वजादि रहित) मंदिर में प्राणप्रतिष्ठा की अशास्त्रीयता-- सर्वत्र प्रसारित करें!!

निर्माणाधीन (शिखर, कलश, ध्वजादि रहित) मंदिर में प्राणप्रतिष्ठा की अशास्त्रीयता-- सर्वत्र प्रसारित करें!!
सावधान
राजनैतिक हिंदू पोस्ट से दुर रहे।
पोस्ट से पुर्व अज्ञानी हिंदु के लिए गीता मे भगवान श्रीकृष्ण का आदेश 
अवश्य स्मरण करने योग्य है।
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श्रीमद्भगवद्गीता 
अध्याय १६ श्लोक २३

यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः।
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्।।16.23।।

देवप्रासाद(मन्दिर) निर्माण के प्रमुख हेतु के विषय में बताते हुए कहा गया है कि देवप्रासाद के प्रत्येक अङ्ग और उपाङ्गो में देव और देवियों के विन्यास करके देवप्रतिष्ठा के समय उसका अभिषेक किया जाता है। इसलिए देवप्रासाद सर्वदेवमय बन जाता है। 

देवप्रासाद को स्थाप्यदेवता/श्रीहरि का स्थूल विग्रह माना गया है। यथा-

'प्रासादो वासुदेवस्य मूर्तिरूपो निबोध मे॥' 
'निश्श्चलत्वं च गर्भोऽस्या अधिष्ठाता तु केशवः।
एवमेष हरिः साक्षात्प्रासादत्वेन संस्थितः॥'
(आग्नेयमहापुराण ६१।१९,२६)

'प्रासादं देवदेवस्य प्रोच्यते तात्त्विकी तनुः।
तत्त्वानि विन्यसेत्पीठे यथा तत्त्वाधिवासकः॥'
(विश्वामित्रसंहिता १४।८४)

'प्रासादो देवरूपः स्यात्...'
(विश्वकर्माविरचित क्षीरार्णव २)

अतः देवप्रासाद की प्रतिष्ठा (विधानवर्णन- आग्नेयमहापुराण १०१ में) के पश्चात प्रासाद का देवता के विग्रह के रूप में ध्यान किया जाता है, जिसमें प्रासाद के मूल या भूतलवर्ती हिस्सों से लेकर शिखर और ध्वज पर्यन्त विभिन्न अंशों में स्थाप्य देवता के विभिन्न अवयवों(अंगों) की कल्पना की जाती है।

ईश्वर उवाच-
प्रासादस्थापनं वक्ष्ये तच्चैतन्यं स्वयोगतः।
शुकनाशासमाप्तौ तु पूर्ववेद्याश्च मध्यतः॥
(आग्नेयमहापुराण १०१।१)
श्रीशिवजी ने कहा- 
स्कन्द! अब मैं मन्दिर की प्रतिष्ठा का वर्णन कर रहा हूँ और उसमें चैतन्य का योग बतला रहा हूँ।

विधायैवं प्रकृत्यन्ते कुम्भे तं विनिवेशयेत्॥
(आग्नेयमहापुराण १०१।१३)
विधिपूर्वक समस्त उपदिष्ट कर्मों को करने के पश्चात उस पुरुष को कलश में स्थापित करना चाहिए।

उक्त श्लोकों के आधार पर यह तथ्य सुस्पष्ट हो जाता है कि प्रासाद(मन्दिर) भगवान् वासुदेव का (स्थूल) मूर्तिरूप है-

पत्ताकां प्रकृतिं विद्धि दण्डं पुरुषरूपिणंम्।
प्रासादो वासुदेवस्य मूर्तिरूपो निबोध मे॥
धारणाद्धरणीं विद्धि आकाशं सुषिरात्मकम्।
तेजस्तत्पावकं विद्धि वायुं स्पर्शगतं तथा॥
पाषाणादिष्वेवजलं पार्थिवं पृथिवीगुणम्।
प्रतिशब्दोद्भवं शब्दं स्पर्श स्यात्कर्कशादिकम्॥
शुक्लादिकं भवेद्रूपं रसमाह्लाद दर्शकम्।
धूपादिगन्धं गन्धं तु वाग्भेर्यादिषु संस्थिता॥
शुकनासाश्रिता नासा बाहू भद्रात्मकौ स्मृतौ।
शिरस्त्वण्डं निगदितं कलशाः मूर्धजाः स्मृताः॥
कण्ठं कण्ठमितिज्ञेयं स्कन्धो वेदी निगद्यते।
पायूपस्थे प्रणाले तु त्वक्सुधा परिकीर्तिता॥
मुखं द्वारं भबेदस्य प्रतिमा जीव उच्यते।
तच्छक्तिं पिण्डिकां विद्धि प्रकृतिं च तदाकृतिम्॥
निश्श्चलत्वं च गर्भोऽस्या अधिष्ठाता तु केशवः।
एवमेष हरिः साक्षात्प्रासादत्वेन संस्थितः॥
जङ्घं त्वस्य शिवो ज्ञेयः स्कन्धे धाता व्यवस्थितः।
ऊर्ध्वभागे स्थितो विष्णुरेवं तस्य स्थितस्य हि॥
(आग्नेयमहापुराण ६१।१९-२७)

'मध्ये ब्रह्मा शिवोऽन्ते स्यात् कलशे तु स्वयं हरिः॥ 
कलशान्ते महाविष्णुः सदाविष्णुस्तदग्रतः।....'
'मेखला रशना कुक्षिर्गर्भः स्तम्भाश्च बाहवः।
मध्यं नाभिश्च हृत् पीठमपानं जलनिर्गमः॥
पादाधारस्त्वहंकारः पिण्डिका बुद्धिरुच्यते।
तदन्ते प्रकृतिः पद्मं प्रतिमा पुरुषः स्मृतः॥
पादाधारस्त्वहंकारः पिण्डिका बुद्धिरुच्यते।
तदन्ते प्रकृतिः पद्मं प्रतिमा पुरुषः स्मृतः॥
घण्टा जिह्वा मनो दीपो दारु स्नायुः शिलाऽस्थि च।
त्वक् सुधा लेपनं मांसं रुधिरं तत्र यो रसः॥
चक्षुः शिखरपार्श्वे तु ध्वजाग्रं च शिखा भवेत्।
तलकुम्भो भवेत् पाणिर्द्वारं प्रजननं स्मृतम्॥
शुकनासैव नासोक्ता गवाक्षं श्रवणं विदुः।
कपोतालिं तथा स्कन्धं कण्ठं चामलसारकम्॥
घटं शिरो घृतं मज्जा वाङ् मन्त्रः सेचन पयः।
नामशैत्यादिवर्णान्नधूपेषु विषयाः स्थिताः॥
रन्ध्रे वातायने धाम्नि लेपे स्थैर्य च खादयः।
पर्वाणि सन्धयो ज्ञेया लोहबन्धास्तथा नखाः॥
केशरोमाणि चैवास्य विज्ञेया दुग्धकूर्चकाः।
प्रासादपादमात्रोच्चः प्राकारः परितो भवेत्॥'
(विष्णुसंहिता १६।६३-७०)

'तत्रापि तत्त्वविन्यासं वक्ष्यामि शृणु तत्त्वतः॥
शिला ध्यातास्य पृथिवी स्नानवेद्याप उच्यते।
तेजो रविकराः ज्ञेयाः जालान्तर्गताः मुने॥
गवाक्षस्तु समीरस्स्यात् गगनं गगनं स्मृतम्।
प्राग्द्वारमुच्यते तस्य कवाटौ कीर्तितौ करौ॥
पादाः पादास्तु विज्ञेयाः पायुः स्याज्जलनिर्गमः।
योनिराणि समाख्याता विमानस्याग्रतो मुने॥
श्रोत्रे कपोतपाली तु त्वक् सुधा परिकीर्तिता।
नेत्रे शिखरपार्श्वे तु जिह्वा ज्ञेया च वेदिका॥
घ्राणं नासा समाख्याता गीर्वाणनिकरान्विता।
श्यामकृष्णौ तथा पीतं रक्तश्वेतौ यथाक्रमम्॥
गन्धमात्रादिकाः पञ्च वर्णास्तु परिकीर्तिताः।
मनो दीपस्तु विज्ञेयः पिण्डिका बुद्धिरुच्यते॥
पादाधारो विमानस्तु प्रकृतिः पिण्डिकान्तरम्।
पञ्चविंशतिको ज्ञेयः प्रतिमा पुरुषः परः॥
विज्ञेया दण्डकूर्चास्तु केशरोमाणि सर्वतः।
विमानमेवं सङ्कल्प्य सर्वतत्त्वसमन्वितम्॥'
(नारदसंहिता १५।१७३-१८१)

ध्वजादि अंगों से रहित देवालयों में तो असुर वास करते हैं। यथा-
ततो ध्वजस्य विन्यासः कर्तव्यः पृथिवीपते।
असुरा वासमिच्छन्ति ध्वजहीने सुरालये॥
(विष्णुधर्मोत्तरपुराण ९४।४४)
अर्थात- हे राजन! तत्पश्चात देवमन्दिर में ध्वज को प्रतिष्ठित करना चाहिए। (क्योंकि) ध्वजविहीन देवालय में असुर वास करना चाहते हैं!

तथा ध्वजारोह करने से भूताप्रेतादि नष्ट होते हैं ऐसा शास्त्रों का स्पष्ट निर्देश है-
चत्वारो वा चतुर्दिक्षु स्थापनीया गरुत्मतः।
ध्वजारोहं प्रवक्ष्यामि येन भूतादि नश्यति॥
प्रासादस्य प्रतिष्ठां तु ध्वजरूपेण मे शृणु। 
ध्वजं कृत्वा सुरैर्दैत्या जिताः शस्त्रादिचिह्नितम्॥
(आग्नेयमहापुराण ६१।१६, २८)

हरिप्रोक्त तथा श्रीविश्वकर्मा विरचित ग्रंथ 'क्षीरार्णव' में विश्वकर्मा जी कहते हैं-
प्रासादो देवरूपः स्यात् पादौ पाद शिलास्तथा। 
गर्भश्चैवोदरं ज्ञेयं जंघा पादोर्ध्व मुच्यते॥
स्तंभाश्च जानवो ज्ञेया घंटा जिह्वा प्रकीर्तिता।
दीपः प्राण रूपो ज्ञेया ह्यपाने जल निर्गतः॥
ब्रह्मस्थानं यदैतच्च तन्नाभिः परिकीर्तिता।
हृदयं पीठिका ज्ञेया प्रतिमा पुरुषः स्मृतः॥
पादचारस्त्वहंकारो ज्योतिस्तच्चक्षुरुच्यते।
तदूर्ध्वं प्रकृतिस्तस्य प्रतिमात्मा स्मृतौ बुधैः॥
तलकुंभादधोद्वार तस्य प्रजननं स्मृतम्।
शुकनासा भवेन्नासा गवाक्षः कर्णउच्यते॥
कायापाली स्मृतः स्कंधे ग्रीवा चामलसारिका। 
कलशस्तु शिरोज्ञेयो मज्जादित्पर संयुतं॥
मेदश्च वसुधा विद्यात् प्रलेपो मासमुच्यते।
अस्थिनो च शिलास्तस्य स्नायुकीलादयः स्मृताः॥
चक्षुषि शिखरास्तस्य ध्वजाकेश प्रकीर्तिताः।
एव पुरुषरूपं तु ध्यायेच्च मनसा सुधीः॥
(विश्वकर्माविरचित क्षीरार्णव, श्लोक- २-९)

यहाँ देवप्रासाद(देवमन्दिर) को अधिष्ठित देवता का शरीररूप माना गया है। देवप्रासाद के कलश को देवता का शिर/मस्तक जानना चाहिए। शिखर को देवता का नेत्र तथा ध्वजा को केश जानना चाहिए।

इन्हीं श्लोकों को प्रतिष्ठामयूख में श्रीनीलकण्ठभट्ट ने उद्धृत किया गया है-

पादौ पादशिलास्तस्य जङ्घा पादोर्ध्वमुच्यते।
गर्भश्चैवोदरं ज्ञेयं कटिश्च कटिमेखला॥
स्तम्भाश्च बाहवो ज्ञेया घण्टा जिह्वा प्रकीर्तिता।
दीपः प्राणोऽस्य विज्ञेयो ह्यपानो जलनिगमः॥
ब्रह्मस्थानं यदेतच्च तन्नाभिः परिकीर्तिता।
हृत्पद्म पिण्डिका ज्ञेया प्रतिमा पुरुषः स्मृतः॥
पादचारस्त्वहङ्कारो ज्योतिस्तच्चक्षुरुच्यते।
तदूर्ध्वं प्रकृतिस्तस्य प्रतिमात्मा स्मृतो बुधः॥
नलकुम्भादधोद्वारं तस्य प्रजननं स्मृतम्।
शुकनासा भवेन्नासा गवाक्षः कर्ण उच्यते॥
कपोतपाली स्कन्धोऽस्य ग्रीवा चामलसारिका।
कलशस्तु शिरो ज्ञेयं मज्जादिप्रदसंहितम्॥
मेदश्चैव सुधां विद्यात्प्रलेपो मांसमुच्यते।
प्रस्थीनि च शिलास्तस्य स्नायुः कीलादयः स्मृताः॥
चक्षुषी शिखरास्तस्य ध्वजाः केशाः प्रकीर्तिताः।
एवं पुरुषरूपं त ध्यात्वा च मनसा सुधीः॥
प्रासादं पूजयेत्पश्चाद्‌गन्धध्वजादिभिः शुभेः।
सूत्रण वेष्टयेद्देवं वासस्तत्परिकल्पयेत्॥
प्रासादमेवमभ्यर्च्य वाहनं चाग्रमण्डपे। इति।
(प्रतिष्ठामयूखे, श्रीनीलकण्ठभट्ट)

अर्थात- देवप्रासाद में पादशिला को प्रासादरूपी देवता(श्रीहरि) के दोनों चरणों के रूप में ध्यान करे। पाद के ऊपर के भाग को प्रासादरूपी देवता के जंघाओं के रूप में ध्यान करे। गर्भगृह को श्रीहरि का उदर (पेट) समझना चाहिए और प्रासाद के कटिभाग को कटि की मेखला समझना चाहिए। प्रासाद के स्तम्भों को प्रासाद रूपी देवता की भुजाएँ समझना चाहिए। घण्टा को जिह्वा, दीपक को प्राण और जलनिर्गम को अपान समझना चाहिए। प्रासाद के गर्भगृह की भूमि के मध्य में स्थित ब्रह्मस्थान को श्रीहरि की नाभि कहा गया है। पिण्डिका को हृदय कमल समझना चाहिए और पिण्डिका के ऊपर स्थापित प्रतिमा को पुरुष (आत्मा) समझना चाहिए। पादचार को उस प्रासाद रूपी देवपुरुष का अहङ्कार, ज्योति को नेत्र, उसके ऊपर के भाग को प्रकृति और प्रतिमा को विद्वानों ने आत्मा कहा है। नलकुम्भ के अधोवर्ती द्वार को उसका जननेन्द्रिय कहा गया है। शुकनासा को उसकी नासिका और गवाक्ष को कान कहा गया है। कपोतपाली को उसका (श्रीहरि का) स्कन्ध (कन्धा), अमलसारिका को ग्रीवा (गरदन), प्रासाद-शिखरस्थ कलश को शिर और ईंट-पत्थर आदि को जोड़ने के लिए प्रयुक्त गारे को मज्जा आदि समझना चाहिए। सुधा के लेप को मेद, प्रलेप को मांस, शिलाओं, इंटो आदि को अस्थियाँ और कोलो आदि को स्नायु समझे। मन्दिर के शिखरों को श्रीहरि के दोनों नेत्र, ध्वजों और पताकाओं को केश कहा गया है। इस प्रकार विद्वान् आचार्य अपने मन में उस प्रासाद का पुरुष रूप में ध्यान करके शुभ गन्धों और ध्वजाओ आदि से उस प्रासाद का पूजन करे। उस प्रासाद रूपी देव को सूत्र से वेष्टित करे बऔर उस वेष्टन-सूत्र में प्रासादरूपी देवता के वस्त्र की कल्पना करें।

उक्त शास्त्रीयसंदर्भों के आधार पर मन्दिरको अधिष्ठित देवता का शरीर माना जाता है। कलश को देवता का शिर, शिखर को देवता का नेत्र तथा ध्वजा को केश जानना चाहिए।

तब इन अंगों से विहीन शरीर में आत्मा(मूर्ति) की प्रतिष्ठा कैसै हो सकती है? बिना शिर वाले, बिना नेत्र वाले, बिना केश वाले ऐसे निर्माणाधीन प्रासादपुरुष के शरीर(मन्दिर) में आत्मा की प्रतिष्ठा पूर्णतः अशास्त्रीय ही सिद्ध होती है! विष्णुधर्मोत्तरपुराण के अनुसार ऐसे हीनांग ध्वाजादि रहित प्रासाद में तो असुर ही निवास करेंगे-
असुरा वासमिच्छन्ति ध्वजहीने सुरालये॥
(विष्णुधर्मोत्तरपुराण ९४।४४)

हर हर महादेव
आध शंकराचार्य भगवान कि जय हो
हर हर शंकर
जय जय शंकर


🚩 *राम काज किये बिना मोहें कहा विश्राम*
🙏🏻🚩 *जय श्रीराम* 🙏🏻🚩

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शुक्रवार, 12 जनवरी 2024

जानकारी काबीले तारीफ है... गौर किजीये !

जानकारी काबीले तारीफ है... गौर किजीये !
I N D I A N R U L E R S 
भारत के शासक

गुलाम वंश
1=1193 मुहम्मद गोरी
2=1206 कुतुबुद्दीन ऐबक
3=1210 आराम शाह
4=1211 इल्तुतमिश
5=1236 रुकनुद्दीन फिरोज शाह
6=1236 रज़िया सुल्तान
7=1240 मुईज़ुद्दीन बहराम शाह
8=1242 अल्लाउदीन मसूद शाह
9=1246 नासिरुद्दीन महमूद 
10=1266 गियासुदीन बल्बन
11=1286 कै खुशरो
12=1287 मुइज़ुदिन कैकुबाद
13=1290 शमुद्दीन कैमुर्स
1290 गुलाम वंश समाप्त्
(शासन काल-97 वर्ष लगभग )

👉खिलजी वंश
1=1290 जलालुदद्दीन फ़िरोज़ खिलजी
2=1296
अल्लाउदीन खिलजी
4=1316 सहाबुद्दीन उमर शाह
5=1316 कुतुबुद्दीन मुबारक शाह
6=1320 नासिरुदीन खुसरो शाह
7=1320 खिलजी वंश स्माप्त
(शासन काल-30 वर्ष लगभग )

👉तुगलक वंश
1=1320 गयासुद्दीन तुगलक प्रथम
2=1325 मुहम्मद बिन तुगलक दूसरा 
3=1351 फ़िरोज़ शाह तुगलक
4=1388 गयासुद्दीन तुगलक दूसरा
5=1389 अबु बकर शाह
6=1389 मुहम्मद तुगलक तीसरा
7=1394 सिकंदर शाह पहला
8=1394 नासिरुदीन शाह दुसरा
9=1395 नसरत शाह
10=1399 नासिरुदीन महमद शाह दूसरा दुबारा सता पर
11=1413 दोलतशाह
1414 तुगलक वंश समाप्त
(शासन काल-94वर्ष लगभग )

👉सैय्यद वंश
1=1414 खिज्र खान
2=1421 मुइज़ुदिन मुबारक शाह दूसरा
3=1434 मुहमद शाह चौथा
4=1445 अल्लाउदीन आलम शाह
1451 सईद वंश समाप्त
(शासन काल-37वर्ष लगभग )

👉लोदी वंश
1=1451 बहलोल लोदी
2=1489 सिकंदर लोदी दूसरा
3=1517 इब्राहिम लोदी
1526 लोदी वंश समाप्त
(शासन काल-75 वर्ष लगभग )

👉मुगल वंश
1=1526 ज़ाहिरुदीन बाबर
2=1530 हुमायूं
1539 मुगल वंश मध्यांतर

👉सूरी वंश
1=1539 शेर शाह सूरी
2=1545 इस्लाम शाह सूरी
3=1552 महमूद शाह सूरी
4=1553 इब्राहिम सूरी
5=1554 फिरहुज़् शाह सूरी
6=1554 मुबारक खान सूरी
7=1555 सिकंदर सूरी
सूरी वंश समाप्त,(शासन काल-16 वर्ष लगभग )

मुगल वंश पुनःप्रारंभ
1=1555 हुमायू दुबारा गाद्दी पर
2=1556 जलालुदीन अकबर
3=1605 जहांगीर सलीम
4=1628 शाहजहाँ
5=1659 औरंगज़ेब
6=1707 शाह आलम पहला
7=1712 जहादर शाह
8=1713 फारूखशियर
9=1719 रईफुदु राजत
10=1719 रईफुद दौला
11=1719 नेकुशीयार
12=1719 महमूद शाह
13=1748 अहमद शाह
14=1754 आलमगीर
15=1759 शाह आलम
16=1806 अकबर शाह
17=1837 बहादुर शाह जफर
1857 मुगल वंश समाप्त
(शासन काल-315 वर्ष लगभग )

👉ब्रिटिश राज (वाइसरॉय)
1=1858 लॉर्ड केनिंग
2=1862 लॉर्ड जेम्स ब्रूस एल्गिन
3=1864 लॉर्ड जहॉन लोरेन्श
4=1869 लॉर्ड रिचार्ड मेयो
5=1872 लॉर्ड नोर्थबुक
6=1876 लॉर्ड एडवर्ड लुटेनलॉर्ड
7=1880 लॉर्ड ज्योर्ज रिपन
8=1884 लॉर्ड डफरिन
9=1888 लॉर्ड हन्नी लैंसडोन
10=1894 लॉर्ड विक्टर ब्रूस एल्गिन
11=1899 लॉर्ड ज्योर्ज कर्झन
12=1905 लॉर्ड TV गिल्बर्ट मिन्टो
13=1910 लॉर्ड चार्ल्स हार्डिंज
14=1916 लॉर्ड फ्रेडरिक सेल्मसफोर्ड
15=1921 लॉर्ड रुक्स आईजेक रिडींग
16=1926 लॉर्ड एडवर्ड इरविन
17=1931 लॉर्ड फ्रिमेन वेलिंग्दन
18=1936 लॉर्ड एलेक्जंद लिन्लिथगो
19=1943 लॉर्ड आर्किबाल्ड वेवेल
20=1947 लॉर्ड माउन्टबेटन

ब्रिटिस राज समाप्त शासन काल 90 वर्ष लगभग

🇮🇳आजाद भारत,प्राइम मिनिस्टर🇮🇳
1=1947 जवाहरलाल नेहरू
2=1964 गुलजारीलाल नंदा
3=1964 लालबहादुर शास्त्री
4=1966 गुलजारीलाल नंदा
5=1966 इन्दिरा गांधी
6=1977 मोरारजी देसाई
7=1979 चरणसिंह
8=1980 इन्दिरा गांधी
9=1984 राजीव गांधी
10=1989 विश्वनाथ प्रतापसिंह
11=1990 चंद्रशेखर
12=1991 पी.वी.नरसिंह राव
13=अटल बिहारी वाजपेयी
14=1996 ऐच.डी.देवगौड़ा
15=1997 आई.के.गुजराल
16=1998 अटल बिहारी वाजपेयी
17=2004 डॉ.मनमोहनसिंह
18=2014 से नरेन्द्र मोदी

764 सालों बाद मुस्लिमों तथा अंग्रेज़ों के ग़ुलामी से आज़ादी मिली है। ये हिन्दुओं का देश है। यहाँ बहुसंख्यक होते हुए भी हिन्दू अपने ही देश ग़ुलाम बन के रहे और आज लोग कह रहे है। हिन्दू साम्प्रदायिक हो गए ,
 
सदियों बाद नरेन्द्र मोदी तथा महाराज बाबा योगी आदित्यनाथ जी के रूप में हिन्दू की सरकार आयी है। सभी भारतियों को इन पर गर्व करना चाहिए।

ये महत्वपूर्ण जानकारी ज्यादा से ज्यादा ग्रुपों में भेजें सब युवाओं के ध्यान में रहें।

हरि ॐ

अजब-गजब

अहमदाबाद:- में अहमद कौन है?
मुरादाबाद:- में मुराद कौन है?
इलाहाबाद:- में इलाहा कौन है?
औरंगाबाद:- में औरंगजेब कौन है?
फैजाबाद:- में फैज कौन है?
फर्रुखाबाद:- में फारूख कौन है?
आदिलाबाद:- में आदिल कौन है?
साहिबाबाद:- में साहिब कौन है?
हैदराबाद:- में हैदर कौन है?
सिकंदराबाद:- में सिकंदर कौन है?
फिरोजाबाद:- में फिरोज कौन है?
मुस्तफाबाद:- में मुस्तफा कौन है?
तुगलकाबाद:- में तुगलक कौन है?
फतेहाबाद:- में फतेह कौन है?
बख्तियारपुर:- में बख्तियार कौन है?
महमूदाबाद:- में महमूद कौन है?
मुजफ़्फ़रपुर और मुजफ़्फ़र नगर:- में मुजफ़्फ़र कौन है?
बुरहानपुर:- मे बुरहान कौन?

ये सब कौन हैं? ये वही लोग हैं जिन्होंने आपके संस्कृति नष्ट की आपके मंदिर तोड़े मूर्तियों को भ्रष्ट किया और हिंदुओं को तलवार के जोर पर इस्लाम में धर्मांतरण किया । भारत के इतिहास में इनका यही योगदान है। इसके बावजूद हम लोग उनके नाम पर शहरों के नाम रख कर किस लिए याद करते हैं?

मित्रों,
योगी जी की कार्य-प्रणाली को देखकर"वास्तव"फिल्म का एक दृश्य याद आ रहा है, जिसमें संजय दत्त एक गैंगस्टर है और दीपक तिजोरी एक पुलिस अधिकारी---दोंनों बचपन के मित्र हैं!
दीपक तिजोरी--संजय दत्त को समझाते हैं कि अपराध की दुनियां को छोड़ दो अन्यथा किसी दिन पकड़े जाओगे या एनकाउंटर हो जायेगा---पलटकर गैंगस्टर संजय दत्त, पुलिस अधिकारी दीपक तिजोरी से पूछता है! मुझे पकड़ेगा कौन---यह तुम्हारी निकम्मी पुलिस,जो मेरे सामनें कुत्तों की तरह दुम हिलाती है!
पुलिस अधिकारी बनें दीपक तिजोरी नें बहुत सुन्दर जवाब दिया था---पुलिस निकम्मी नहीं है,तेरे ऊपर भ्रष्ट और गद्दार नेताओं और सत्ता का हांथ है---जिस दिन कोई ईमानदार नेता सत्ता संभालेगा,उस दिन यही पुलिस तुझे कुत्तों की तरह घसीटते हुए ले जायेंगी---आज इन भ्रष्ट और निकम्में नेताओं नें पुलिस के हांथ बांध रखे हैं!
ये उदाहरण मैंने इस लिए दिया,ताकि आप याद कर सकें वह वक्त---जब आज़म खान नें तीन घंटे एक S.S.P. को अपनें घर के बाहर खड़ा रहनें का आदेश दे दिया था---जब आज़म खान ने जिलाधिकारी से जूते साफ करवाने की बात कही थी---जब मुख्तार अंसारी ने कोतवाली में ताला डलवा दिया था---जब अतीक अहमद नें बीस पुलिस वालों को अपनें घर में कैद कर लिया था---जब इनके मुकदमों को सुनने से मजिस्ट्रेट भी मना कर दिया करते थे!
वक्त बदला--एक ईमानदार संन्यासी नेता बनकर प्रदेश की गद्दी पर बैठा---देखते-देखते सब कुछ बदल गया, असहाय सी लगनें वाली पुलिस इनको घसीट-घसीट कर थानों में लाने लगी,इनके घर में घुसकर ढिंढोरा पीटने लगी, नीलामियां होनें लगीं, धड़ाधड़ बुलडोजर चलनें लगे, बड़े से बड़े माफिया और डांन सरेंडर करनें लगे!
मैं केवल आपको इतना कहना चाह रहा हूं कि--जब सत्ता पर बैठा व्यक्ति ईमानदार और चरित्रवान होता है तो सबकी खुशहाली होती है, समाज का उत्थान होता है!
चुनावी बिगुल बज चुका है,आप समझदार हैं, सत्ता किनके हाथों में सौंपनी है,यह आपको सोचना है!
             🇮🇳 धन्यवाद 🇮🇳

👉नवाब मलिक भांग बेचकर 3000 करोड़ का नवाब हो गया।
मुलायम सिंह प्राइमरी के मास्टर होते हुए भी अपने पूरे परिवार को हजारों करोड़ का मालिक बना चुके हैं
गरीब परिवार से आई हुई दलित मायावती बिना कोई रोजगार किये ही हज़ारों करोड़ की मालकिन हैं
👉लालू गाय-चारा-गोबर खाकर 2000 करोड़ का मालिक बन गया।
👉चिदंबरम गमला में गोभी उगा कर 4000 करोड़ का मालिक बन गया।
👉 शरद पवार की बेटी सुले 10 एकड़ जमीन में सब्जियों उगाके अरबों खरबों की मालिक बन गई।
👉और तो और फ़र्ज़ी गाँधी बिना कुछ किए 80000 करोड़ के मालिक बन गए। सोनिया गांधी विश्व की चौथी सबसे अमीर महिला बन गयी
👉*टिकैत अनाज बेच कर 1500 करोड़ का मालिक बन गया।
पर ताज़्जुब यह कि मोदी जी और योगी जी देश बेच कर भी फ़कीर का फ़कीर ही है.
जागरूक नागरिकों उपर्युक्त विवरण में ही आपका और आने वाली संतानों का भविष्य छुपा है

सक्षम हिंदुओ को,यह पोस्ट भारत के प्रेत्येक न्यूज पेपर में छपवाना चाहिए।

यह यज्ञ के बराबर फलदाई है।
जो समाज सेवा के नाम पर लाखों करोड़ों खर्च करते है।
यहां वहां दान देते हैं।वह भी इस धार्मिक कार्य को कर सकते हैं।

धर्म रक्षा के लिए अतिआवश्यक है।

यूरिक एसिड को समाप्त करने का नुस्खा .....

यूरिक एसिड को समाप्त करने का नुस्खा .....

जोड़ों के दर्द में आमतौर पर रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है !

25-30 ग्राम पुदीना की पत्तियाँ व उसके कोमल तने को एक गिलास पानी में उबालें 8-10 उफान आने पर उसे छानकर पी लें ! कुछ दिन प्रातः खाली पेट इसका सेवन करने से रक्त से यूरिक एसिड की मात्रा कम होने लगती है !

जाने यूरिक एसिड के बारे में। अगर कभी आपके पैरों उंगलियों, टखनों और घुटनों में दर्द हो तो इसे मामूली थकान की वजह से होने वाला दर्द समझ कर अनदेखा न करें यह आपके शरीर में यूरिक एसिड बढ़ने का लक्षण हो सकता है। 

इस स्वास्थ्य समस्या को गाउट आर्थराइट्सि कहा जाता है। क्यों होता है ऐसा...

1. यह समस्या शरीर में प्रोटीन की अधिकता के कारण होती है। प्रोटीनएमिनो एसिड के संयोजन से बना होता है। पाचन की प्रक्रिया के दौरान जब प्रोटीन टूटता है तो शरीर में यूरिक एसिड बनता है, जो कि एक तरह का एंटी ऑक्सीडेंट होता है। 

आमतौर सभी के शरीरमें सीमित मात्रा में यूरिक एसिड का होना सेहत के लिए फायदेमंद साबित होता है, लेकिन जब इसकी मात्रा बढ़ जाती है तो रक्त प्रवाह के जरिये पैरों की उंगलियों, टखनों, घुटने, कोहनी, कलाइयों और हाथों की उंगलियों के जोड़ों में इसके कण जमा होने लगते हैं और इसी के रिएक्शन से जोड़ों में दर्द और सूजन होने लगता है।

2. यह आधुनिक अव्यवस्थित जीवनशैली से जुड़ी स्वास्थ्य समस्या है। 

इसी वजह से 25 से 40 वर्ष के युवा पुरुषों में यह समस्या सबसे अधिक देखने को मिलती है। स्त्रियों में अमूमन यह समस्या 50 वर्ष की उम्र के बाद देखने को मिलती है।

3. रेड मीट, सी फूड, रेड वाइन, प्रोसेस्डचीज, दाल, राजमा, मशरूम, गोभी, टमाटर, पालक आदि के अधिक मात्रा में सेवन से भी यूरिक एसिड बढ़ जाता है।

4.अधिक उपवास या क्रैश डाइटिंग से भी यह समस्या बढ़ जाती है।

5. आमतौर पर किडनी रक्त में मौजूद यूरिक एसिड की अतिरिक्त मात्रा को यूरिन के जरिये बाहर निकाल देती है, लेकिन जिन लोगों की किडनी सही ढंग से काम नहीं कर रही होती, उनके शरीर में भी यूरिक एसिड बढ़ जाता है।

6.अगर व्यक्ति की किडनी भीतरी दीवारों की लाइनिंग क्षतिग्रस्त हो तो ऐसे में यूरिक एसिड बढ़ने की वजह से किडनी में स्टोन भी बनने लगता है।

बचाव.....

1. अधिक से अधिक मात्रा में पानी पीने की कोशिश करें।

इससे रक्त में मौजूद अतिरिक्त यूरिक एसिड यूरिन के जरिये शरीर से बाहर निकल जाता है।

2. दर्द वाले स्थान पर कपड़े में लपेटकरबर्फ की सिंकाई फायदेमंद साबित होती है।

3. संतुलित आहार लें...जिसमें, कार्बोहइड्रेट, प्रोटीन, फैट, विटमिन और मिनरल्स सब कुछ सीमित और संतुलित मात्रा में होना चाहिए। आम तौर पर शाकाहारी भारतीय भोजन संतुलित होता है और उसमें ज्यादा फेर-बदल की जरूरत नहीं होती।

4. नियमित एक्सराइज इस समस्या से बचने का सबसे आसान उपाय है क्योंकि इससे शरीर में अतिरिक्त प्रोटीन जमा नहीं हो पाता।

5. इस समस्या से ग्रस्त लोगों को नियमित रूप से दवाओं का सेवन करते हुए हर छह माह के अंतराल पर यूरिक एसिड की जांच करानी चाहिए।

धनबाद की सरस्वती हैं आज की शबरी, 30 साल बाद रामलला के चरणों में तोड़ेंगी मौन व्रत

*धनबाद की सरस्वती हैं आज की शबरी, 30 साल बाद रामलला के चरणों में तोड़ेंगी मौन व्रत*
*धनबाद :* शबरी की आस्था प्रभु श्रीराम को उनकी कुटिया तक ले आयी. ऐसी ही आस्था धनबाद के करमटांड़ निवासी 85 वर्षीय सरस्वती अग्रवाल की है, जिन्होंने 30 साल पहले अयोध्या में राम मंदिर बनने का संकल्प लेकर मौन व्रत शुरू किया. 22 जनवरी को अयोध्या में प्रभु श्रीराम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के दिन ‘राम..., सीताराम...’ शब्द इनका मौन व्रत टूटेगा. प्रभु राम के चरणों में अपना जीवन समर्पित करनेवाली सरस्वती अग्रवाल का अधिकतर समय अयोध्या में ही बीतता है. वे बेहद खुश हैं और लिख कर बताती हैं, ‘मेरा जीवन धन्य हो गया. रामलला ने मुझे प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होने के लिए बुलाया है. मेरी तपस्या, साधना सफल हुई. *30 साल के बाद मेरा मौन ‘राम नाम’ के साथ टूटेगा.’*
बता दें कि दिसंबर 2021 के अंतिम सप्ताह में ही सरस्वती अग्रवाल को श्रीराम मंदिर, अयोध्या से प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने का निमंत्रण आया है. निमंत्रण मिलने से इनका पूरा परिवार खुश है. आठ जनवरी को इनके भाई इन्हें अयोध्या लेकर जायेंगे. परिवार के किसी अन्य सदस्य को समारोह में शामिल होने की अनुमति नहीं है. राम जन्मभूमि न्यास और श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के प्रमुख महंत नृत्य गोपाल दास के शिष्य मनीष दास व शशि दास अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन पर सरस्वती अग्रवाल की अगवानी करेंगे. रेलवे स्टेशन से वे सीधे स्वामी जी के आश्रम पत्थर मंदिर छोटी छावनी जायेंगी. वहां इनके लिए कमरा बना हुआ है, जहां ये चार महीने रहेंगी.
*छह दिसंबर 1992 से धारण कर रखा है मौन व्रत*
सरस्वती अग्रवाल मई 1992 में अयोध्या गयी थीं. वहां ये राम जन्म भूमि न्यास के प्रमुख महंत नृत्य गोपाल दास सेमिलीं.एनएफ उन्होंने इन्हें कामतानाथ पहाड़ की परिक्रमा करने का आदेश दिया. आदेश मिलने के बाद ये चित्रकूट चली गयीं. साढ़े सात महीने कल्पवास में एक गिलास दूध पीकर रहीं. साथ ही रोजाना कामतानाथ पहाड़ की 14 किमी की परिक्रमा की. परिक्रमा के बाद अयोध्या लौटीं. छह दिसंबर 1992 को ये स्वामी नृत्य गोपाल दास से मिलीं. उनकी प्रेरणा से मौन धारण किया. संकल्प लिया कि जिस दिन राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होगी, उसी दिन मौन तोड़ेंगी.
*कभी स्कूल नहीं गयीं, पति ने दिया था अक्षर ज्ञान*
सरस्वती अग्रवाल 65 साल पहले भौंरा के देवकीनंदन अग्रवाल (अब स्वर्गीय) से विवाह बंधन में बंध राजस्थान से आयी थीं. सरस्वती देवी कभी स्कूल नहीं गयीं. उनके पति ने उन्हें अक्षर ज्ञान दिया था. उसके बाद किताबें देखकर पढ़ना लिखना-सीखा. राम चरित मानस व अन्य धार्मिक ग्रंथ रोज पढ़ती हैं. दिन में एक बार सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं. 35 साल पहले इनके पति का निधन हो गया था. इनके आठ बच्चे थे. चार बेटा, चार बेटी ( जिनमें तीन स्वर्गीय हो गये). जब परिवार को इनके मौन धारण करने की जानकारी मिली, तो परिवार वालों ने इनका स्वागत व सहयोग किया.


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1947 से 2024 तक, सनातन धर्म के उत्थान में अपना योगदान बतायें 🌹श्री श्री 1008 महाचार्यों ?

🔸️जब द्रोपदी का चीर हरण हो रहा था तब पितामह भीष्म चुप्पी साधकर बैठे थे...
...जब कांची कामकोटि पीठम के शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी को दिवाली के दिन पूजा करते समय घसीटते हुए गिरफ्तार किया था, तब शेष तीनों शंकराचार्य मौन थे।
🔸️जब पांडवों को वनवास और अज्ञातवास पर भेजा जा रहा था, उन्हें लाक्षागृह में भस्म करने का प्रयास किया जा रहा था, तब भी भीष्म पितामह चुप थे।

...जब कश्मीर में हिंदुओं का नरसंहार और निष्कासन हो रहा था, तब सभी शंकराचार्य चुप थे।

🔸️महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह ने अपनी व्यक्तिगत प्रतिज्ञा और प्रतिष्ठा को धर्म के ऊपर रखा और अस्त्र-शस्त्र लेकर अधर्मी कौरवों के पक्ष में खड़े हो गए...

...आज जब हिंदू विरोधी सेनाएँ कुरुक्षेत्र (राम-मंदिर) के मैदान में खड़े होकर हमारे ऊपर तीर पर तीर छोड़ रही हैं तब शंकराचार्य अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को सर्वोपरि रखकर अधर्मियों के पक्ष में खड़े होकर तीर चला रहे हैं।

🔸️भीष्म पितामह हस्तिनापुर के समर्पित योद्धा थे, ज्ञानी थे सच्चरित्र थे लेकिन अन्याय को मौन समर्थन दिया इसलिए वह शरशय्या के अधिकारी बने, सिंहासन के नहीं...

...शंकराचार्य भी कितने ही ज्ञानी हों धर्माचार्य हों (जो कि शायद ही हों) लेकिन अन्याय के समय मौन रहने और युद्ध के समय अधर्मी कौरवों के पक्ष में खड़े होने के अपराध में उन्हें भी शरशय्या पर लेटना ही होगा।

जब श्री राम टाट के टेंट में थे, ये चारों शंकराचार्य सोने के सिंघासनो पर चढ़ कर हाथी की सवारी करते थे, कोई योगदान नहीं था, इन का रामजन्मभूमि के आंदोलन में.. अब क्रुद्ध हो रहे हैं... केवल इसलिये कि इनसे प्राण प्रतिष्ठा नहीं कराई जा रही, और कराई भी क्यों जाए, पता नहीं इन्हें कितना ज्ञान है?

जिज्ञासु मन का अति विनम्रता से एक प्रश्न:
1947 से 2024 तक, सनातन धर्म के उत्थान में अपना योगदान बतायें 🌹श्री श्री 1008 महाचार्यों ?


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गुरुवार, 11 जनवरी 2024

नए वाहन कानून में अज्ञानता और बहकावे के चलते ट्रक ड्राइवर हड़ताल पर जा रहे हैं । हड़ताल पर जाने से पहले ये समझें और सभी को समझाएं*🙏🏼जनहित में जारी🙏🏼


*नए वाहन कानून में अज्ञानता और बहकावे के चलते ट्रक ड्राइवर हड़ताल पर जा रहे हैं । हड़ताल पर जाने से पहले ये video जरूर सुने,समझें और सभी को समझाएं*🙏🏼जनहित में जारी🙏🏼

ड्राइवर की हड़ताल के पीछे संपूर्ण विपक्ष की चाल है राम मंदिर स्थापना महोत्सव में विघ्न डालने का आप समझिए tulkit गैंग की प्लानिंग को
मारना चाहिए इन लोगों को जनता ने भी जो नए कानून का विरोध कर रहे यह कानून इसीलिए लाया गया है की लापरवाही से जो कट मार के गाड़ियां चलाते हैं उनको सख्त सजा का प्रावधान हो तो सड़क हादसे रुकेंगे आए दिनों कई घर बर्बाद हो रहे लापरवाही से गाड़ियां चलाने वाले ना जाने कितने परिवार के लोगो युवाओं की जान ले रहे हैं नशा करके उनकी गति पर नियंत्रण होना जरूरी है
राम मंदिर के खिलाफ षडयंत्र है ट्रांसपोर्ट हड़ताल!!! मैंने आपसे पहले ही कहा था सावधान रहने की और षडयंत्र समझने की आवश्यकता है। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के यज्ञ में आसुरी शक्तियों ने हड्डी डालना शुरू कर दिया है। अब इसी से जुड़ी ट्रांसपोर्ट हड़ताल की "हड्डी प्लानिंग" को समझिए - 
1. ट्रांसपोटर्स हड़ताल करेंगे तो आम जनता को हर वस्तु की तंगी होगी। पेट्रोल पंप पर लाइन लगेगी आदि इत्यादि। जनता परेशान होगी। यानी राम मंदिर की खुशियों में खलल पड़ेगा।

2. इस देश की ट्रांसपोर्ट यूनियन पर किनका कब्ज़ा है? ये वही लोग हैं जो किसान आंदोलन के दौरान देश में अराजकता फैला रहे थे। सबसे ज़्यादा ट्रांसपोर्ट के व्यपार से कौन जुड़ा है? 

3. देखिएगा... इस आंदोलन को सबसे ज़्यादा हवा कौन देंगे... वही दल जिनके रामद्रोही होने का पुराना रिकॉर्ड है। 

4. अब पूरा टूलकिट गैंग ट्रक ड्राइवर की मजबूरी बताएगा। लेकिन वो ये नहीं बताएंगे कि सड़क पर वाहन चलाने वाले हम और आप जैसे 95% लोग हैं। नया कानून सब पर लागू होगा, फिर सिर्फ 5% को ही क्यों भड़काया जा रहा है?

5. ये टूलकिट गैंग ट्रक ड्राइवर्स का रोना बतायेगा... लेकिन ये उन लोगों का दर्द नहीं बाटेंगे जिनके अपने ट्रकों के पहिये के नीचे रौंदे गए हैं। 

6. नए कानून करीब 10 दिन पहले पास हुए। हड़ताल अब क्यों? राम मंदिर का डर इन असुर शक्तियों को भयभीत कर रहा है।

7. आप खुद सोचिए... जब आप हाइवे पर वाहन चलाते हैं तो क्या ये ट्रक सबसे ज़्यादा कानून नहीं तोड़ते? अपने अनुभव के आधार पर सोचिए। क्या इन पर लगाम नहीं लगाया जाना चाहिए?

जान लीजिए, ये सब राम मंदिर के खिलाफ देश विरोधी और सनातन के दुश्मनों का षड्यंत्र है। अब आप वही गलती मत करना, जो आपने CAA विरोधी आंदोलन, किसान आंदोलन और पहलवान आंदोलन में की थी!!!

स्वामी विवेकानंद जयंती। 12 जनवरी देशभर में मनाया जाएगा राष्ट्रीय युवा दिवस

स्वामी विवेकानंद जयंती आज
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देशभर में मनाया जाएगा राष्ट्रीय युवा दिवस
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हर साल 12 जनवरी को पूरे भारतवर्ष में उत्साह और खुशी से राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। इसी दिन स्वामी विवेकानंद जी की जयंती भी होती है। 1984 में भारत सरकार द्वारा स्वामी विवेकानंद की जयंती के दिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की गई और 1985 से हर साल 12 जनवरी यानी स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन पर राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जा रहा है। इस दिन को युवा दिवस के रूप में मनाए जाने का उद्देश्य स्वामी विवेकानंद के विचार और आदर्शों के महत्व को बढ़ावा देना है।

क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय युवा दिवस?
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देश का भविष्य देश के युवाओं पर निर्भर करता है। इसलिए किसी भी देश के विकास में उस देश के युवाओं का अहम योगदान होता है। ऐसे में यह बेहद जरूरी हो जाता है कि, युवाओं को सही मार्गदर्शन मिले। इसी उद्देश्य से हर साल राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है।

स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी बातें 
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स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था।
विवेकानंद का असली नाम नरेंद्रनाथ दत्त था और ये विख्यात आध्यात्मिक गुरु थे।
विवेकानंद जब 25 साल के थे, तभी इन्होंने सांसारिक मोह माया का त्याग कर दिया और संन्यासी बन गए।
1897 में इन्होंने कोलकाता में रामकृष्ण मिशन और 1898 में गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की।
अपनी मृत्यु से दो साल पहले 1900 में स्वामी विवेकानंद यूरोप से आखिरी बार भारत आए और बेलूर की ओर चल पड़े।
उन्होंने अपना अंतिम समय शिष्यों के साथ बिताया और 04 जुलाई 1902 को विवेकानंद ने अंतिम सांस ली।

12 जनवरी को क्यों मनाया जाता है युवा दिवस?
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स्वामी विवेकानंद धर्म, दर्शन, इतिहास, कला, सामाजिक विज्ञान और साहित्य के ज्ञाता थे। भारतीय शास्त्रीय संगीत में भी इनकी गहरी रुचि थी। स्वामी जी के विचार और कार्य आज भी युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। विवेकानंद के अनमोल और प्रेरणादायक विचार युवाओं को प्रोत्साहित करते हैं। यही कारण है कि, स्वामी विवेकानंद की जयंती यानी 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन विद्यालयों और कॉलेजों में विभिन्न कार्यक्रम के आयोजन होते हैं, रैलियां निकाली जाती हैं और व्याख्यान होते हैं।


यह कहावत तो मशहूर हैं कि हमारे देश में दुध - दही की नदियाँ बहती थी ! यदि इतना दुध - दही था , तो पक्का घी भी बहुत मात्रा में होता होगा !

यह कहावत तो मशहूर हैं कि हमारे देश में दुध - दही की नदियाँ बहती थी ! यदि इतना दुध - दही था , तो पक्का घी भी बहुत मात्रा में होता होगा ! इससे हम अनुमान लगा सकते हैं कि भोजन घी में ही बनता होगा !!
महाभारत काल मे कृष्ण का मक्खन से संबंध बताया गया रामायण काल में लिखा है कि राम के आने पर घी के दिये जलाये गये !

हमारे यहाँ तेल का उल्लेख पुराने ज़माने में कम देखने को मिला है !

सबसे पुराना तेल ऑलिव ऑयल बना था , कहा जाता है ऑलिव नामक बीजों से फ़िलिस्तीनी और इज़राइल में यह बनाया गया , जिसे 3000 ईसा साल पुराना बताते हैं !

चीनी और जापानी ने सोया तेल का उत्पादन 2000 ईसा पूर्व के रूप में किया था !

मैक्सिको और उत्तरी अमेरिका में, मूंगफली और सूरजमुखी के बीज को पानी में उबालने कर उसका उपयोग करना शुरू किया था !!

सरसों कई सदियों से दुनिया में सबसे अधिक उगाए और इस्तेमाल किए जाने वाले मसालों में से एक रहा है। , ऐसा माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति प्राचीन मिस्र में हुई थी।

यूनानियों ने सरसों को औषधि और मसाले के रूप में प्रयोग किया रोमनों ने इसे भोजन और दवा दोनों के रूप में उपयोग किया जाता था । रोमन लोग सरसों को उत्तरी फ़्रांस में ले आए

पाम तेल सबसे पहले अफ़्रीका में बनाया गया परन्तु बाद में मलेशिया और इंडोनेशिया ने इसकी खेती शुरू कर दी और आज 85% पॉम ट्री यहीं है !

पॉम ऑयल सुगंधित नही होता है इसलिए विदेशों में इसे व्यंजन बनाने में काम लेते हैं और व्यंजनों को तलने के लिए भी काम लेते हैं !

यह सब जानने के बाद लगता है कि भारत में तेल का प्रयोग बहुत देरी से हुआ हैं , हमारे यहाँ घी का प्रयोग ही होता होगा ! हमारी प्राचीन संस्कृति मे बहुत तला - भूना भोजन का ज़िक्र भी नही आता है !!

नारियल के तेल का आयुर्वेद मे ज़िक्र आता है कि यह मालिश के लिए काम मे लिया जाता था !

आयुर्वेद में सिर्फ़ घी को ही सेहत के लिए लाभकारी बताया है , तेल का ज़िक्र सिर्फ़ मालिश के लिए ही आता है , कई जगह बताया गया है कि घी याददाश्त सुधारने में मददगार है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि घी हमें बुद्धिमान बनाता है !! घी में ब्यूटाइरेट होता है, जो शरीर की सूजन को दूर करता है। !!

विटामिन-ए की भरपूर मौजूदगी इसे खास बनाती है। यह उन लोगों के लिए भी रामबाण है, जिन्हें लैक्टोज इनटॉलरेंस है यानी जिन्हें दूध ठीक से नहीं पचता या पी नहीं पाते, वे घी हजम कर सकते हैं !!

राजस्थान राज्य के पारंपरिक भोजन का यदि ज़िक्र करूँ तो वहाँ राजा - महाराजा के ज़माने में भोजन घी में ही पकता था दाल , बाटी , चुरमा , घेवर , मालपुआ और अन्य मिठाइयाँ , पंजाब या अमृतसर की बात करें तो वहाँ भी पारंपरिक तरीक़े से घी में पके छोले और कुलचे घी में ही बनाये जाते हैं ! सरसों का साग दाल मक्खनी घी से ही बनता है ! वाराणसी की तरफ़ शुद्ध घी की चाट , पुडी देखने को मिलेगी ! दक्षिण भारत की तरफ़ आये तो आज भी पारंपरिक रेस्टोरेन्ट उपमा , हलवा , दाल सभी घी में बनाते हैं ! चावल और इडली में भी ऊपर से घी डालकर ही खाया जाता है

खिचड़ी का उल्लेख बहुत प्राचीन काल से होता आया है और वो शुद्ध देशी घी में ही बनती थी —
जय श्री राम

माता सीता की यह रोचक लोककथा आपका दिल जीत लेगी, धन के भंडार भर देगी..

*माता सीता की यह रोचक लोककथा आपका दिल जीत लेगी, धन के भंडार भर देगी...*
इस कहानी को सीता माता कहती थी और श्रीराम
सुना करते थे। एक दिन श्रीराम भगवान को किसी काम के लिए बाहर जाना पड़ गया तो सीता माता कहने लगी कि भगवान मेरा तो बारह वर्ष का नितनेम (नित्य नियम) है। अब आप बाहर जाएंगे तो मैं अपनी कहानी किसे सुनाऊंगी? श्रीराम ने कहा कि तुम कुएं की पाल पर जाकर बैठ जाना और वहां जो औरतें पानी भरने आएंगी उन्हें अपनी कहानी सुना देना। 

सीता माता कुएं की पाल पर जाकर बैठ जाती हैं। एक स्त्री आई उसने रेशम की जरी की साड़ी पहन रखी थी और सोने का घड़ा ले रखा था। सीता माता उसे देख कहती हैं कि बहन मेरा बारह वर्ष का नितनेम सुन लो। पर वह स्त्री बोली कि मैं तुम्हारा नितनेम सुनूंगीं तो मुझे घर जाने में देर हो जाएगी और मेरी सास मुझसे लड़ेगी। उसने कहानी नहीं सुनी और चली गई। उसकी रेशम जरी की साड़ी फट गई, सोने का घड़ा मिट्टी के घड़े में बदल गया।  
सास ने देखा तो पूछा कि ये किस का दोष अपने सिर लेकर आ गई है? बहू ने कहा कि कुएं पर एक औरत बैठी थी उसने कहानी सुनने के लिए कहा लेकिन मैने सुनी नही जिसका यह फल मिला। 
 
बहू की बात सुनकर अगले दिन वही साड़ी और घड़ा लेकर सास कुएं की पाल पर गई। सास को वहीं माता सीता बैठी मिलीं तो माता सीता ने कहा कि बहन मेरी कहानी सुन लीजिए...  सास बोली कि एक बार छोड़, मैं तो चार बार कहानी सुन लूंगी... . 
 
राम आए लक्ष्मण आए देश के पुजारी आए 
नितनेम का नेम लाए आओ राम बैठो राम
तपी रसोई जियो राम, माखन मिसरी खाओ राम
दूध बताशा पियो राम,सूत के पलका मोठो राम
शाल दुशाला पोठो राम, शाल दुशाला ओढ़ो राम
जब बोलूं जब राम ही राम, राम संवारें सब के काम
खाली घर भंडार भरेंगे सब का बेड़ा पार करेंगे
 
श्री राम जय राम जय-जय राम
 
सास बोली कि बहन कहानी तो बहुत अच्छी लगी। कहानी सुनकर सास घर चली गई और उसकी साड़ी फिर से रेशम जरी की बन गई। मिट्टी का घड़ा फिर सोने के घड़े में बदल गया। बहू कहने लगी सासू मां, आपने ये सब कैसे किया? सास ने कहा कि बहू तू दोष लगा के आई थी और मैं अब दोष उतारकर आ रही हूं. . . बहू ने फिर पूछा कि वह कुएं वाली स्त्री कौन है? सास बोली कि वे सीता माता थीं... वे पुराने से नया कर देती हैं, खाली घर में भंडार भर देती हैं, वह लक्ष्मी जी का वास घर में कर देती हैं, आदमी की जो भी इच्छा हो उसे पूरा कर देती हैं.... बहू बोली कि ऎसी कहानी मुझे भी सुना दो.... सास बोली कि ठीक है तुम भी सुनो और सास ने कहानी शुरु की...  

राम आए लक्ष्मण आए देश के पुजारी आए 
नितनेम का नेम लाए आओ राम बैठो राम
तपी रसोई जियो राम, माखन मिसरी खाओ राम
दूध बताशा पियो राम,सूत के पलका मोठो राम
शाल दुशाला पोठो राम, शाल दुशाला ओढ़ो राम
जब बोलूं जब राम ही राम, राम संवारें सब के काम
खाली घर भंडार भरेंगे सब का बेड़ा पार करेंगे
 
श्री राम जय राम जय-जय राम
 
कहानी सुनकर बहू बोली कि कहानी तो बहुत अच्छी है.. .. सास ने कहा कि ठीक है इस कहानी को रोज कहा करेगें। अब सास-बहू रोज सवेरे उठती, नहाती-धोती और पूजा करने के बाद नितनेम की सीता की कहानी कहती। एक दिन उनके यहां एक पड़ोस की औरत आई और बोली कि बहन जरा सी आंच देना तो वह बोली कि आंच तो अभी हमने जलाई ही नहीं।

 पड़ोसन ने कहा कि तुम सुबह चार बजे से उठकर क्या कर रही हो फिर? उन्होंने कहा कि सुबह उठकर हम पूजा करते हैं फिर सीता माता की नितनेम की कहानी कहते हैं। 

पड़ोसन ने उनकी बात सुनकर फिर कहा कि सीता माता की कहानी कहने से तुम्हें क्या मिला? वे बोली कि इनकी कहानी कहने से घर में भंडार भर जाते हैं। सारे काम सिद्ध होते हैं, मन की इच्छा भी पूरी होती है। पड़ोसन कहती है कि बहन ऎसी कहानी तो मुझे भी सुना दो फिर। वह बोली कि ठीक है तुम भी यह कहानी सुन लो... 
 
राम आए लक्ष्मण आए देश के पुजारी आए 
नितनेम का नेम लाए आओ राम बैठो राम ……………..

सारी कहानी सुनने के बाद पड़ोसन कहने लगी बहन कहानी तो मुझे बहुत अच्छी लगी। अब वह पड़ोसन भी नितनेम सीता माता की कहानी कहने लगी। कहानी कहने से सीता माता ने पड़ोसन के भी भंडार भर दिए। अब  तो पूरे मोहल्ले में नितनेम की कथा चल पड़ी.. हर किसी की मनोकामना पूरी होने लगी...

 
हे सीता माता ! जैसे आपने उनके भंडार भरे, वैसे ही आप हमारे भी भंडार भरना। कहानी सुनने वाले के भी और कहानी कहने वाले के भी।
 
उत्तरप्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा के कुछ क्षेत्रों में आज भी यह कथा सीता जयंती पर चाव से सुनाई जाती है।
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🚩 *राम काज किये बिना मोहें कहा विश्राम*
🙏🏻🚩 *जय श्रीराम* 🙏🏻🚩

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22 जनवरी को हम क्या करेंगे?.आपके जीवन में दो बार दिवाली मनाने का योग

*22 जनवरी को हम क्या करेंगे?*🚩
 √.घर के द्वार को सजाएंगे🚩
 √.रंगोली बनाएंगे🚩
 √.दीपों की माला पहनाएंगे🚩
 √.राम दीपक जलाएंगे🚩
 √. फूल और पत्तों के तोरण लगाएंगे🚩
 √. कंदील लगाएंगे🚩
 √.पटाखे फोड़ेंगे🚩
 √.घर में मिठाइयां बनाएंगे🚩
 √.मीठे भोजन का आनंद सभी को मिलेगा🚩
 √.नये कपड़े पहनकर मंदिर जायेंगे🚩
 √.झंडे लगाए जाएंगे🚩
 √.आपके जीवन में दो बार दिवाली मनाने का योग *500 साल के इंतजार के बाद आया है इसलिए ऐसा करें और अपने पड़ोसियों को भी बताएं।*
  हम सभी को गर्व है कि हम हिन्दू हैं में भी यह सब करुंगा

🚩 *राम काज किये बिना मोहें कहा विश्राम*
🙏🏻🚩 *जय श्रीराम* 🙏🏻🚩

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