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मंगलवार, 6 नवंबर 2012

यह दूध कुछ खास है। तभी तो इसकी कीमत 75 रुपए प्रति लीटर है।

पुणे। यह दूध कुछ खास है। तभी तो इसकी कीमत 75 रुपए प्रति लीटर है। इसके ग्राहकों में शामिल हैं पुणे और मुंबई की 4 हजार से ज्यादा नामी हस्तियां।

मसलन मुकेश अंबानी, सचिन तेंडुलकर, रितिक रोशन, शिल्पा शेट्टी, आदि गोदरेज, गरवारे, शबाना आजमी आदि। पूरी तरह कम्प्यूटराइज्ड दूध उत्पादन की प्रक्रिया में इंसानी हाथों का स्पर्श कतई नहीं है। सब तरह के रसायनों से मुक्त ऑर्गनिक दूध।

यह दूध गायों का है और गायों
का रुतबा भी ‘वीआईपी’ से कम नहीं है। खानपान और रहन-सहन सब कुछ आलीशान। भीमाशंकर के पास स्थित 35 करोड़ रुपए लागत के इस फार्म की हर गाय के लिए कॉयरफोम का केरल से मंगाया रबर-कोटिंग वाला खास गद्दा है।

रेक की कीमत सात हजार रुपए। खाने में अल्फा-अल्फा घास, ओट्स, कॉटनसीड्स जैसी हाईप्रोटीन डाइट का बुफे। रोज नहाने के लिए मल्टीजेट शॉवर।

वे 35 एकड़ के फॉर्म में खुला घूमती हैं। उनके रहने के लिए अलग जगह है, खाने की अलग और सोने के लिए एकदम अलग। डेयरी के अध्यक्ष देवेंद्र शहा कहते हैं, ‘हमारे उपभोक्ता क्वालिटी के प्रति बेहद जागरूक हैं।

ईश्वरलाभ की संपदा

ईश्वरलाभ की संपदा


एक गांव में एक लकडहारा रहा करता था।वह हर रोज जंगल में जाकर लकडी काटता और उसे बाजार में बेच देता। किन्तु कुछ समय से उसकी आमदनी घटती चली जा रही थी,ऐसी परिस्थिति में उसकी एक संन्यासी से भेंट हुई। लकडहारे ने संन्यासी से विनम्र बिनती की और बोला ''महाराज कृपा करें। मेरी समस्या का कोई उपाय बताइये।''
इसपर उस सन्यासी ने लकडहारे को कहा ''जा आगे जा।''
उस सन्यासी के आदेश पर या तो कहें शब्दों पर विश्वास रख आगे की ओर निकल चला। तब कुछ समय पश्चात सुदूर उसे चंदन का वन मिला। वहां की चंदन की लकडी बेच-बेच कर लकडहारा अच्छा-खासा धनी हो गया। ऐसे सुख के दिनों में एक दिन लकडहारे के मन में विचार आया कि ''सन्यासी ने तो मुझे आगे जा कहा था। लेकिन मैं तो मात्र चंदन के वन में ही घिर कर रह गया हूं। मुझे तो और आगे जाना चाहिये।''
यह विचार करते-करते वह और आगे निकल गया , आगे उसे एक सोने की खदान दिखाई दी। सोना पाकर लकडहारा और अधिक धनवान हो गया। उसके कुछ दिन के पश्चात लकडहारा और आगे चल पडा। अब तो हीरे-माणिक और मोती उसके कदम चूम रहे थे। उसका जीवन बहुत सुखी और समृध्द हो गया।
किंतु लकडहारा फिर सोचने लगा ''उस सन्यासी को इतना कुछ पता होने के बावजूद वह क्यों भला इन हीरे माणिक का उपभोग नहीं करता।'' इस प्रश्न का समाधानकारक उत्तर लकडहारे को नहीं मिला। तब वह फिर उस सन्यासी के पास गया और जाकर बोला''महाराज आप ने मुझे आगे जाने को कहा और धन-समृधि का पता दिया लेकिन आप भला इन सब सुखकारक समृध्दि का लाभ क्यों नहीं उठाते?
इसपर संन्यासी ने सहज किन्तु अत्यंत सटीक उत्तर दिया। वह बोले ''भाई तेरा कहना उचित है, लेकिन और आगे जाने से ऐसी बहुत ही खास उपलब्धि हाथ लगती है जिसकी तुलना में ये हीरेऔर माणिक केवल मिट्टी और कंकर के बराबर महसूसहोते हैं। मैं उसी खास चीज की तलाश में प्रवृत्त हूं। उस मूल्यवान चीज का नाम है 'ईश्वरलाभ'। ''
सन्यासी के इस साधारण मगर गहरे अर्थ वाले कथनसे लकडहारे के मन में भी अब विवेक-विचार जागृत हुआ। वो समझ गया था कि कोई भी संपदा की तलाश ईश्वर के बिना पूर्ण नही होती क्योकि मनतब तक संतुष्ट नहीं हो सकता जब तक ईश्वरलाभ की संपदा हाथ न लग जाये।

जय माता दी....

..तांत्रिकोंके देवता शिव..

...................तांत्रिकोंके देवता शिव........................

देवाधिदेव भगवान शिव तंत्र और तांत्रिकों के देवता हैं। तभी तो सभी तंत्र-शास्त्रोंया ग्रथों का प्रारंभ भगनान शिव के उपदेशों से ही होता है। भगवान शंकर तांत्रिकों के देवता हीे नहीं आदि गुरु भी हैं। शिव और शिवा के द्वित्व का एकत्व ही तंत्र का वर्णनीय विषय है। इतना ही नहीं तंत्र शास्त्र की विश्वसनीयता अथवा प्रामाणिकता को सिद्ध करने के लि
ये तंत्र के प्रत्येक ग्रंथ के प्रारंभ में भगवान शंकर के उपदेश, शिक्षाएं एवं निर्देश दिये गए होते हैं। आइये जाने तंत्र के बारे में कुछ खास बातें- १. लगभग १००० वर्षों तक तंत्र का प्रभाव एवं वर्चस्व रहा है। २. तंत्र का वर्चस्व एवं विस्तार भारत ही नहीं सुदूर एशिया भर में रहा है। ३. ईसा पूर्व से लेकर तेरहवीं शताब्दी तक भारत के साथ-साथ चीन, तिब्ब्त, थाइलेंड, मंगोलिया, कंबोज, आदि देशों में भी तंत्र का प्रभाव रहा है। ४. हाथों में लगाई जाने वाली मेंहदी, घर के आंगन और द्वारों पर चित्रित अल्पना, संझ्या, बालक होने या कोई शुभ कार्य होने पर बनाए जाने वाले स्वास्तिक और डलिया की आकृतियां ये सब तंत्र के ही प्रतीक चिन्ह हैं।

आयुर्वेद .....वात, पित्त कफ::दोष और उपचार

आयुर्वेद .....वात, पित्त कफ::

आयुर्वेद मुख्यतः पारंपरिक और महर्षि होते हैं । जो महर्षि आयुर्वेद
है वो पारंपरिक आयुर्वेद पर हीं आधारित है जिसे योगी महेश ने
शास्त्रीय ग्रंथों का अनुवाद करके लिखा है। दोनों प्रकार के
आयुर्वेदिक उपचार में शरीर के दोष को दूर किया जाता है और लगभग
एक हीं तरह का उपचार किया जाता है । आयुर्वेद के अलावा महर्षि
महेश ने अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने मंा परम चेतना की भूमिका पर जोर
दिया है, जिसके लिए उन्होनें ट्रान्सेंडैंटल ध्यान (टीएम) को
प्रोत्साहित किया है । इसके अलावा महर्षि महेश के विचार सकारात्मक
भावनाओं पर जोर देती है जो शरीर की लय को प्राकृतिक जीवन के साथ
समायोजित करती है ।

दोष और उपचार

आयुर्वेद मानता है कि जिस तरह प्रत्येक व्यक्ति के उँगलियों के
निशान अलग अलग होते हैं उसी तरह हर किसी की मानसिक और
भावनात्मक ऊर्जा अलग अलग पैटर्न की होती है । आयुर्वेद के अनुसार हर
व्यक्ति में तीन बुनियादी ऊर्जा मौजूद होती हैं जिन्हें दोष कहा
जाता है , जो निम्न प्रकार के होते हैं :

• वात: यह शारीरिक ऊर्जा से संबंधित कार्यों की गति को नियंत्रण में
रखता है, साथ ही रक्त परिसंचरण, श्वशन क्रिया , पलकों का झपकाना , और
दिल की धड़कन में उचित संतुलन ऊर्जा भेजकर उससे सही काम करवाता है ।
वात आपके सोचने समझने की शक्ति को बढ़ावा देता है, रचनात्मकता को
प्रोत्साहित करता है लेकिन अगर यह असंतुलित हो गया तो घबराहट
एवं डर पैदा करता है।

• पित्त: यह शरीर की चयापचय क्रिया पर नियंत्रण रखता है, साथ ही
पाचन, अवशोषण, पोषण, और शरीर के तापमान को भी संतुलित रखता है। अगर
पित्त की मात्रा संतुलन में हो तो यह मन में संतोष पैदा करता
है तथा बौधिक क्षमता को बढाता है लेकिन यह अगर असंतुलित हो
गया तो अल्सर एवं क्रोध पैदा करता है।

• कफ: यह ऊर्जा शरीर के विकास पर नियंत्रण रखता है । यह शरीर के सभी
भागों को पानी पहुंचाता है, त्वचा को नम रखता है और शरीर की रोग
प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है । उचित संतुलन में कफ की ऊर्जा
मनुष्य के भीतर प्यार और क्षमा की भावना भर देती है लेकिन इसके
असंतुलन पर मनुष्य ईर्ष्यालू हो जाता है और वह खुद को असुरक्षित
महसूस करने लगता है ।
आयुर्वेद के अनुसार हर व्यक्ति में ये तीन दोष पाए जाते हैं , लेकिन
किसी किसी व्यक्ति में केवल 1 या 2 दोष ही पूरी तरह से सक्रिय
रहतें हैं । इन दोषों का संतुलन कई कारणों से असंतुलित हो
जाता है मसलन तनाव में रहने से या अस्वास्थ्यकर आहार खाने से
या प्रतिकूल मौसम की वजह से या पारिवारिक रिश्तों में दरार के
कारण । तत्पश्चात दोषों की गड़बड़ी शरीर की बीमारी के रूप में उभर कर
सामने आती!!

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वन्देमातरम !!

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