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शनिवार, 23 फ़रवरी 2013
जानिए, शिव भक्ति और सेवा के ये खास तरीके -
शास्त्रो
में भगवान शिव को वेद या ज्ञान स्वरूप माना गया है। इसलिए शिव भक्ति मन की
चंचलता को रोक व्यक्ति को दुःख व दुर्गति से बचाने वाली मानी जाती है।
भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए ही धर्म व लोक परंपराओं में अभिषेक, पूजा व
मंत्र जप आदि किए जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि तन, मन और वचन के
स्तर पर सच्ची शिव भक्ति, उपासना, साधना और सेवा के सही तरीके या विधान
क्या हैं? इसका जवाब शिवपुराण में मिलता है, जिसमें शिव सेवा को 'शिव धर्म'
भी बताया गया है। जानिए, शिव भक्ति और सेवा के ये खास तरीके -
शिवपुराण के मुताबिक भक्ति के तीन रूप हैं। यह है मानसिक या मन से, वाचिक
या बोल से और शारीरिक यानी शरीर से। सरल शब्दों में कहें तो तन, मन और वचन
से देव भक्ति।
इनमें भगवान शिव के स्वरूप का चिन्तन मन से, मंत्र
और जप वचन से और पूजा परंपरा शरीर से सेवा मानी गई है। इन तीनों तरीकों से
की जाने वाली सेवा ही शिव धर्म कहलाती है। इस शिव धर्म या शिव की सेवा के
भी पांच रूप हैं, जो शिव भक्ति के 5 सबसे अच्छे उपाय भी माने जाते हैं।
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ध्यान - शिव के रूप में लीन होना या चिन्तन करना ध्यान कहलाता है।
कर्म - लिंगपूजा सहित अन्य शिव पूजन परंपरा कर्म कहलाते हैं।
तप - चान्द्रायण व्रत सहित अन्य शिव व्रत विधान तप कहलाते हैं।
जप - शब्द, मन आदि द्वारा शिव मंत्र का अभ्यास या दोहराव जप कहलाता है।
ज्ञान - भगवान शिव की स्तुति, महिमा और शक्ति बताने वाले शास्त्रों की शिक्षा ज्ञान कही जाती है।
इस तरह शिव धर्म का पालन या शिव की सेवा हर शिव भक्त को बुरे कर्मों, विचारों व इच्छाओं से दूर कर शांति और सुख की ओर ले जाती है।
" समर्पण " :- असीमित पुण्य
प्रणाम !!!
आप सभी का अभिनंदन हैं ||
" समर्पण " :-
एक बार गुजरात की एक रियासत की राजमाता मीलण देवी ने सोमनाथ जी का विधिवत
अभिषेक किया | उन्होंने सोने का तुलादान कर उसे सोमनाथ जी को अपित् कर दिया
| सोने का तुलादान कर उनके मन में अहंकार भर गया और वह सोचने लगी कि आज तक
किसी ने भी इस तरह भगवान का तुलादान नहीं किया होगा | इसके बाद वह अपने
महल मे आज गई |
रात में उन्हें सोमनाथ जी के दर्शन हुए | भगवान ने उनसे
कहा, मेरे मंदिर मे एक गरीब महिला दर्शन के लिए आई हैं | उसके संचित पुण्य
असीमित हैं | उसमें से कुछ पुण्य तुम उसे सोने की मुद्राएं लेकर खरीद लो
|परलोक मे काम आएंगे | नींद टूटते ही राजमाता बेचैन हो गई | उन्होंने अपने
सैनिकों को मंदिर से उस महिला को राजभवन लाने के लिए कहा |
सैनिक मंदिर पहुँचे और वहाँ से पकड़कर ले आए| गरीब महिला थर- थर कांप रही
थी | राजमाता ने उस गरीब महिला से कहा,मुझे अपने संचित पुण्य दे दो,बदले मे
मैं तम्हे सोने की मुद्राएं दूंगी| राजमाता की बात सुनकर वह बोली, महारानी
जी, मुझ गरीब से भला पुण्य कार्य कैसे हो सकते हैं |
मैं तो खुद
दर-दर भीख मागंती हूँ | भीख मे मिले चने चबाते-चबाते मैं तीर्थयात्रा को
निकली थी |कल मंदिर मे दर्शन करने से पहले एक मुट्ठी सत्तू मुझे किसी ने
दिए थे | उसमें से आधे सत्तू से भगवान सोमनाथ को भोग लगाया तथा बाकी सत्तू
एक भूखे भिखारी को खिला दिया | जब मैं भगवान को ठीक ढंग से प्रसाद ही नही
चढ़ा पाई तो मुझे पुण्य कहाँ से मिलेगा ? गरीब महिला की बात सुनकर राजमाता
का अंहकार नष्ट हो गया | वह समझ गई कि नि:स्वार्थ समर्पण की भावना से
प्रसन्न होकर ही भगवान सोमनाथ ने उस महिला को असीमित पुण्य प्रदान किए हैं |
इसके बाद राजमाता ने अहंकार त्याग दिया और मानव सेवा को ही अपना सवोर्परि
धर्म बना लिया |
विशेष :
प्रभु को वह भक्त अति प्रिय
होते है जो बिना किसी स्वार्थ से उन्हें पुजते है | सच्ची श्रद्धा-भाव और
अटूट विश्वास-आस्था ही सही मायने मे भक्ति कह लगती है | क्योंकि जहाँ भाव
है वही देव हैं |
ऊँ सोमेश्वराय: नमः !!!
:- रीना शिगांणे " भक्ति-सागर"
प्रभु के नाम का जयकारा जरूर लगाए | और जीवन को आनन्दमय बनाए |
आप सभी पर शिवाजी की कृपा बनी रहे और आप सभी का दिन मंगलमय हो |
यही हमारी प्रथना है |
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