शास्त्रो
में भगवान शिव को वेद या ज्ञान स्वरूप माना गया है। इसलिए शिव भक्ति मन की
चंचलता को रोक व्यक्ति को दुःख व दुर्गति से बचाने वाली मानी जाती है।
भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए ही धर्म व लोक परंपराओं में अभिषेक, पूजा व
मंत्र जप आदि किए जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि तन, मन और वचन के
स्तर पर सच्ची शिव भक्ति, उपासना, साधना और सेवा के सही तरीके या विधान
क्या हैं? इसका जवाब शिवपुराण में मिलता है, जिसमें शिव सेवा को 'शिव धर्म'
भी बताया गया है। जानिए, शिव भक्ति और सेवा के ये खास तरीके -
शिवपुराण के मुताबिक भक्ति के तीन रूप हैं। यह है मानसिक या मन से, वाचिक
या बोल से और शारीरिक यानी शरीर से। सरल शब्दों में कहें तो तन, मन और वचन
से देव भक्ति।
इनमें भगवान शिव के स्वरूप का चिन्तन मन से, मंत्र
और जप वचन से और पूजा परंपरा शरीर से सेवा मानी गई है। इन तीनों तरीकों से
की जाने वाली सेवा ही शिव धर्म कहलाती है। इस शिव धर्म या शिव की सेवा के
भी पांच रूप हैं, जो शिव भक्ति के 5 सबसे अच्छे उपाय भी माने जाते हैं।
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ध्यान - शिव के रूप में लीन होना या चिन्तन करना ध्यान कहलाता है।
कर्म - लिंगपूजा सहित अन्य शिव पूजन परंपरा कर्म कहलाते हैं।
तप - चान्द्रायण व्रत सहित अन्य शिव व्रत विधान तप कहलाते हैं।
जप - शब्द, मन आदि द्वारा शिव मंत्र का अभ्यास या दोहराव जप कहलाता है।
ज्ञान - भगवान शिव की स्तुति, महिमा और शक्ति बताने वाले शास्त्रों की शिक्षा ज्ञान कही जाती है।
इस तरह शिव धर्म का पालन या शिव की सेवा हर शिव भक्त को बुरे कर्मों, विचारों व इच्छाओं से दूर कर शांति और सुख की ओर ले जाती है।
ध्यान - शिव के रूप में लीन होना या चिन्तन करना ध्यान कहलाता है।
कर्म - लिंगपूजा सहित अन्य शिव पूजन परंपरा कर्म कहलाते हैं।
तप - चान्द्रायण व्रत सहित अन्य शिव व्रत विधान तप कहलाते हैं।
जप - शब्द, मन आदि द्वारा शिव मंत्र का अभ्यास या दोहराव जप कहलाता है।
ज्ञान - भगवान शिव की स्तुति, महिमा और शक्ति बताने वाले शास्त्रों की शिक्षा ज्ञान कही जाती है।
इस तरह शिव धर्म का पालन या शिव की सेवा हर शिव भक्त को बुरे कर्मों, विचारों व इच्छाओं से दूर कर शांति और सुख की ओर ले जाती है।
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