इलाहाबाद के इस अनोखे कुंड में होता है सात समुद्रों का मिलन
संगम नगरी इलाहाबाद में केवल तीन नदियों के पानी का ही नहीं, ब्लकि सात समुंद्र के पानी का मिलन भी होता है। यह सुनने मे ज़रूर अजीब है पर यह सच है। इलाहाबाद मे एक ऐसा कुंआ है जो कई हज़ार साल पुराना है और सैकड़ों फीट गहरा है। पुराणों में यह वर्णन मिलता है कि इस कुंए मे सात समुद्रों का जल आकर मिलता है। वर्तमान में यह कूप गंगा के किनारे एक विशाल, उंचे टीले पर स्थित है।
इस कूप का व्यास लगभग 22 फीट है। पत्थरों से बने इस कूप के जगत पर विष्णु का पदचाप एवं शिवजी की मूर्ति है। इस कूप को समुद्र कूप की संज्ञा दी गई है। समुद्रकूप का पूरा परिसर 10 से 12 फीट ऊंची ईंट की चहारदीवारी से घिरा है। समुद्रकूप के पास एक आश्रम भी है जहां यह वर्णन मिलता है कि द्वापर युग मे पांडव लाक्षागृह से बचने के बाद यहां आए थे।
पद्म पुराण और भागवत पुराण मे यह वर्णन मिलता है कि कई ह़जार वर्ष पहले चंद्र वंश के पहले पुरुष राजा पुरुरवा ने इलाहाबाद के समीप गंगा नदी के किनारे प्रतिष्ठान पुरी नामक नगर बसाया था। जो वर्तमान मे झूंसी कहलाता है। उन्होंने कई 100 सालों तक यही रह कर अपना शासन किया। उनके शासन के दौरान स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी भी उनके साथ करीब 100 साल तक उनके साथ यहीं रही। उर्वशी को ऋषि दुर्वासा ने तप मे बाधा उत्पन करने के कारण मृत्युक लोक मे रहने का श्राप दिया था। इन्ही राजा पुरुरवा और उर्वशी की संतान से चंद्र वंश चला और इशी चंद्र वंश की 65 कडी मे भगवान् कृष्ण ने जन्म लिया।
उन्ही राजा पुररवा ने ही इस समुद्र कूप का निर्माण करवाया था। राजा ने कई यज्ञ और अनुष्ठान के लिए सातों समुद्रों का आह्वान इस कूप मे किया था। तभी से इस कूप मे सातों समुंदरों का जल पाया जाता है। इस कूप का कुल व्यास करीब 22 मीटर का है तथा इसकी गहराई के बारे मे कोई अंदाजा नही लगया जा सकता। ऊपर से देखने पर यह करीब 100 फीट गहरा दिखाई देता है। पर जिन लोगों ने इस कुए में प्रवेश किया है, उनका मानना है कि इस कुएं की सतह पर एक लोहे का तवा रखा हुआ है, जिसके अन्दर ना जाने कितना और गहरा इसका स्रोत है। इस कूप के चारो तरफ़ 10 से 12 फीट उची दीवार है। गंगा नदी के किनारे होने के बावजूद आज भी इस कुंए का पानी समुद्र के पानी की तरह खारा है जिससे यह साबित होता है कि इस कूप मे समुद्र का जल है।
इस समुद्र कूप के पुजारी महंत बाल कृष्ण कहते है कि इस समुद्र कूप का वर्णन पद्म पुराण और मत्स्य पुराण में भी मिलता है। जब द्वापर युग मे पांचो पांडव लाक्षा गृह से बच के आए थे तो उन्होंने यही पर रह कर इस कुंए के जल से अश्वमेघ यज्ञ किया था। यहीं से उनकी विजय के लिए ब्रह्मा जी ने उन्हे वरदान दिया था। पद्म पुराण मे यह वर्णन भी मिलता है कि एक मुनि ने इस कूप के बारे मे युधिष्ठि्र को बताया था।
यह वर्णन मिलता है कि इस कूप के किनारे ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए क्रोध को शांत करके तीन रात तक यहां विश्राम कर ले तो उसके सब पाप कट जाते हैं। इसके जल का आचमन करने से परमपद की प्राप्ति होती है।
इस कूप के बारे मे मत्स्य पुराण मे भी लिखा गया है कि प्रतिष्ठान पुरी में एक महान कूप है जिसके दर्शन मात्र से मनुष्य पाप रहित हो जाता है। अमावस्या पूर्णिमा और चंद्रग्रहण के समय इस कूप की परिक्रमा से पृथ्वी की परिक्रमा का फल मिलता है। यहां पर स्नान दान करने से यश प्राप्त होता है और अंत में इंसान स्वर्ग को प्राप्त होता है। कहा जाता है कि महाकुम्भ में संगम किनारे कल्पवास करने की बाद अगर इस समुन्द्र्कूप के दर्शन नहीं किए जाये तो कल्पवास का सारा फल व्यर्थ हो जाता है।
संगम नगरी इलाहाबाद में केवल तीन नदियों के पानी का ही नहीं, ब्लकि सात समुंद्र के पानी का मिलन भी होता है। यह सुनने मे ज़रूर अजीब है पर यह सच है। इलाहाबाद मे एक ऐसा कुंआ है जो कई हज़ार साल पुराना है और सैकड़ों फीट गहरा है। पुराणों में यह वर्णन मिलता है कि इस कुंए मे सात समुद्रों का जल आकर मिलता है। वर्तमान में यह कूप गंगा के किनारे एक विशाल, उंचे टीले पर स्थित है।
इस कूप का व्यास लगभग 22 फीट है। पत्थरों से बने इस कूप के जगत पर विष्णु का पदचाप एवं शिवजी की मूर्ति है। इस कूप को समुद्र कूप की संज्ञा दी गई है। समुद्रकूप का पूरा परिसर 10 से 12 फीट ऊंची ईंट की चहारदीवारी से घिरा है। समुद्रकूप के पास एक आश्रम भी है जहां यह वर्णन मिलता है कि द्वापर युग मे पांडव लाक्षागृह से बचने के बाद यहां आए थे।
पद्म पुराण और भागवत पुराण मे यह वर्णन मिलता है कि कई ह़जार वर्ष पहले चंद्र वंश के पहले पुरुष राजा पुरुरवा ने इलाहाबाद के समीप गंगा नदी के किनारे प्रतिष्ठान पुरी नामक नगर बसाया था। जो वर्तमान मे झूंसी कहलाता है। उन्होंने कई 100 सालों तक यही रह कर अपना शासन किया। उनके शासन के दौरान स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी भी उनके साथ करीब 100 साल तक उनके साथ यहीं रही। उर्वशी को ऋषि दुर्वासा ने तप मे बाधा उत्पन करने के कारण मृत्युक लोक मे रहने का श्राप दिया था। इन्ही राजा पुरुरवा और उर्वशी की संतान से चंद्र वंश चला और इशी चंद्र वंश की 65 कडी मे भगवान् कृष्ण ने जन्म लिया।
उन्ही राजा पुररवा ने ही इस समुद्र कूप का निर्माण करवाया था। राजा ने कई यज्ञ और अनुष्ठान के लिए सातों समुद्रों का आह्वान इस कूप मे किया था। तभी से इस कूप मे सातों समुंदरों का जल पाया जाता है। इस कूप का कुल व्यास करीब 22 मीटर का है तथा इसकी गहराई के बारे मे कोई अंदाजा नही लगया जा सकता। ऊपर से देखने पर यह करीब 100 फीट गहरा दिखाई देता है। पर जिन लोगों ने इस कुए में प्रवेश किया है, उनका मानना है कि इस कुएं की सतह पर एक लोहे का तवा रखा हुआ है, जिसके अन्दर ना जाने कितना और गहरा इसका स्रोत है। इस कूप के चारो तरफ़ 10 से 12 फीट उची दीवार है। गंगा नदी के किनारे होने के बावजूद आज भी इस कुंए का पानी समुद्र के पानी की तरह खारा है जिससे यह साबित होता है कि इस कूप मे समुद्र का जल है।
इस समुद्र कूप के पुजारी महंत बाल कृष्ण कहते है कि इस समुद्र कूप का वर्णन पद्म पुराण और मत्स्य पुराण में भी मिलता है। जब द्वापर युग मे पांचो पांडव लाक्षा गृह से बच के आए थे तो उन्होंने यही पर रह कर इस कुंए के जल से अश्वमेघ यज्ञ किया था। यहीं से उनकी विजय के लिए ब्रह्मा जी ने उन्हे वरदान दिया था। पद्म पुराण मे यह वर्णन भी मिलता है कि एक मुनि ने इस कूप के बारे मे युधिष्ठि्र को बताया था।
यह वर्णन मिलता है कि इस कूप के किनारे ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए क्रोध को शांत करके तीन रात तक यहां विश्राम कर ले तो उसके सब पाप कट जाते हैं। इसके जल का आचमन करने से परमपद की प्राप्ति होती है।
इस कूप के बारे मे मत्स्य पुराण मे भी लिखा गया है कि प्रतिष्ठान पुरी में एक महान कूप है जिसके दर्शन मात्र से मनुष्य पाप रहित हो जाता है। अमावस्या पूर्णिमा और चंद्रग्रहण के समय इस कूप की परिक्रमा से पृथ्वी की परिक्रमा का फल मिलता है। यहां पर स्नान दान करने से यश प्राप्त होता है और अंत में इंसान स्वर्ग को प्राप्त होता है। कहा जाता है कि महाकुम्भ में संगम किनारे कल्पवास करने की बाद अगर इस समुन्द्र्कूप के दर्शन नहीं किए जाये तो कल्पवास का सारा फल व्यर्थ हो जाता है।
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