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सोमवार, 7 अक्तूबर 2013

रहस्य: जानिए, क्यों करते हैं पूजा-पाठ?

रहस्य: जानिए, क्यों करते हैं पूजा-पाठ?

प्राचीन काल की बात है। मिथिला में एक वेश्या रहती थी। उसका नाम था पिंगला। मैंने उससे कुछ शिक्षा ग्रहण की। वेश्या को केवल देह से न जोड़ा जाए। यह तो एक वृत्ति है। वेश्या शब्द के आसपास है यह शब्द। वेश्या वह जो व्यवसाय करे। देह को भी व्यापार साधन बनाने के कारण यह शब्द दिया गया। आज के समय में देह का कई तरह से व्यापारिक उपयोग हो रहा है। इस स्त्री के माध्यम से संदेश यह दिया जा रहा है कि शरीर के और भी अच्छे उपयोग हो सकते हैं। चलिए कुछ जानते हैं।

उसे पुरुष की नहीं, धन की कामना थी और उसके मन में यह कामना इतनी दृढ़मूल हो गई कि वह किसी भी पुरुष को उधर से आते-जाते देखकर यही सोचती कि यह कोई धनी है और मुझे धन देकर उपभोग करने के लिए ही आ रहा है। राजन! सचमुच आशा और सो भी धन की, बहुत बुरी है। धनी की बाट जोहते-जोहते उसका मुंह सूख गया, चित्त व्याकुल हो गया। अब उसे इस वृत्ति से बड़ा वैराग्य हुआ। जब पिंगला के चित्त में इस प्रकार वैराग्य की भावना जाग्रत हुई, तब उसने एक गीत गाया। वह मैं तुम्हें सुनाता हूं। पिंगला ने गाया था- मैं इन्द्रियों के अधीन हो गई। भला! मेरे मोह का विस्तार तो देखो, मैं इन दुष्ट पुरुषों से, जिनका कोई अस्तित्व ही नहीं है, विषय सुख की लालसा करती हूं। मैं मूर्ख हूं। देखो तो सही, मेरे निकट से निकट हृदय में ही मेरे सच्चे स्वामी भगवान विराजमान हैं। वे वास्तविक प्रेम सुख और परमार्थ का सच्चा धन भी देने वाले हैं।

शरीर परमात्मा से जुड़ जाए तो आत्मा तक पहुंचना सरल हो जाएगा। हिन्दुओं ने मूर्ति पूजा तथा अन्य कर्मकाण्ड इसीलिए रखे हैं कि देह का सद्पयोग होता रहे। शरीर को एक पड़ाव मानें, कुछ लोग पड़ाव को ही मंजिल मान लेते हैं।शरीर क्या है? शरीर एक साधन हो सकता है। यह कभी साध्य नहीं हो सकता। जो लोग देह पर टिक जाते हैं वे परमात्मा तक पहुंच नहीं पाते और जो देह से परे हैं वे ही परमात्मा तक पहुंच पाते हैं। राजा भृतहरि की कथा इसमें सबसे अच्छा उदाहरण हो सकती है। जब तक वे पत्नी की देह और रूप में आसक्त रहे तब तक परमात्मा दूर रहा। जब आसक्ति टूटी तो परम योगी हो गए। देह आपको थोड़ी देर बांधे रख सकती है लेकिन यह आपके लिए मंजिल नहीं हो सकती। मंजिल तो देह से परे आत्मा है।इस देह को पवित्र कामों में लगाना ही श्रेयस्कर होता है। अगर केवल भोग-विलास में ही रमे रहे तो बाद में पछताना भी पड़ सकता है। हिंदू संस्कृति में इस बात को बहुत गंभीरता से लिया और उन्होंने ऐसे नियम, परम्पराएं बनाई जो व्यक्ति की देह को अच्छे कामों में लगा सके। ये मंदिर, मूर्तियां और तीर्थ इसीलिए बनाए गए हैं कि जब व्यक्ति इनमें प्रवेश करे, पूजा शुरू करे तो उसे देह की पवित्रता का एहसास होता रहे।

यह एहसास ही हमारे अंतर्मन को अच्छे कामों के लिए, परमात्मा की प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है। जब देह परमात्मा की तलाश में निकल पड़े तो मन और आत्मा खुद उसका साथ देने लगते हैं। इसलिए ध्यान रखें कि मन और आत्मा भी तब तक शुद्ध नहीं हो सकते तब तक शुद्ध नहीं हो सकते हैं जब तक देह पवित्र न हो। देह को भी संभालें, यह परमात्मा का सबसे सुंदर उपहार है। परमात्मा से जुड़ जाए तो आत्मा तक पहुंचना सरल हो जाएगा। हिन्दुओं ने मूर्ति पूजा तथा अन्य कर्मकाण्ड इसीलिए रखे हैं कि देह का सद्पयोग होता रहे। शरीर को एक पड़ाव मानें, कुछ लोग पड़ाव को ही मंजिल मान लेते हैं।

शनिवार ही नहीं, बाकी दिनों में इन उपायों से भी शनि चमकाते हैं किस्मत

शनिवार ही नहीं, बाकी दिनों में इन उपायों से भी शनि चमकाते हैं किस्मत

धर्मशास्त्रों के मुताबिक सकारात्मक नजरिए से शनि ऐसे देवता हैं जो अच्छे कामों व मेहनत के बूते खुशहाल बनने की प्रेरणा देते हैं। हालांकि शिव से मिली न्यायाधीश की जिम्मेदारी से शनि कड़ा रुख अपनाते हैं। फिर भी इसके जरिए वे अनुशासन, संयम, पवित्रता और संकल्प के साथ मकसद को पूरा करने का सबक ही देते हैं।
इस पहलू को अनदेखा कर जब इंसान बुरी सोच के साथ काम व बर्ताव करता है तो शनिदेव सजा देकर गलतियों का एहसास कराने से भी नहीं चूकते। यही वजह है कि शनि कृपा जहां भाग्य संवारने वाली तो दण्ड मुश्किलें पैदा करने वाला माना जाता है।
शास्त्रों के मुताबिक शनि कृपा से लाभ पाने और साढ़े साती, ढैय्या या शनि के बुरे असर से बचने के लिए हर दिन कुछ सरल उपाय भी हैं। इनको अपनाकर शनि के साथ अन्य देवताओं की कृपा भी सुख-संपत्ति देने वाली साबित हो सकती है।
मंगलवार व शनिवार को श्रीहनुमान को सिंदूर का चोला चढ़ाएं। श्रीहनुमान ऐसे देवता माने जाते हैं जिन पर शनि की क्रूर दृष्टि भी बेअसर हुई।

बुधवार को श्री गणेश को दूर्वा चढ़ाकर मोदक का भोग लगाएं। पौराणिक मान्यता है कि गणेश श्रीकृष्ण के अवतार हैं व शनि श्रीकृष्ण के परम भक्त हैं।

गुरुवार को इष्ट या गुरु मंत्रों का ध्यान करें, क्योंकि गुरु व बड़ों का आदर शनि को प्रसन्न करता है।

शुक्रवार को नवदुर्गा की उपासना कर घर में बनी खीर का भोग लगाएं। देवी उपासना शनि सहित हर ग्रहदोष शांत कर देती है

शनिवार को शनि को सरसों का तेल, काले वस्त्र, काली उड़द, काले तिल चढ़ाएं। शनि मंत्रों का जप करें। तेल के पकवान का भोग लगाएं।
रविवार व हर रोज ही जल में काले तिल डाल स्नान करें। देववृक्ष पीपल की जड़ में दूध व काले तिल चढ़ाएं।
शनि के स्वामी व गुरु भगवान शिव माने जाते हैं। सोमवार को शिव पूजा व मंत्र जप करें।

हनुमानजी को सिंदूर चढ़ाने की ये है असली वजह, कम ही लोग जानते हैं

हनुमानजी को सिंदूर चढ़ाने की ये है असली वजह, कम ही लोग जानते हैं

वैसे तो सिंदूर सुहाग का प्रतीक है और इसे सभी सुहागन स्त्रियों द्वारा मांग में लगाने की परंपरा है। सिंदूर का पूजन-पाठ में भी गहरा महत्व है। बहुत से देवी-देवताओं को सिंदूर अर्पित किया जाता है। श्री गणेश, माताजी, भैरव महाराज के अतिरिक्त मुख्य रूप से हनुमानजी को सिंदूर चढ़ाया जाता है।
यहां जानिए बजरंग बली को सिंदूर क्यों चढ़ाया जाता है? हनुमानजी का चोला सिंदूर से ही क्यों चढ़ाया जाता है?
हनुमानजी का पूरा शृंगार ही सिंदूर से किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार हर युग में बजरंग बली की आराधना सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाली मानी गई है। हनुमानजी श्रीराम के अनन्य भक्त हैं और जो भी इन पर आस्था रखता है उनके सभी कष्टों को ये दूर करते हैं। हनुमानजी को सिंदूर क्यों लगाया जाता है? इस संबंध में शास्त्रों में एक प्रसंग बताया गया है, जो कि काफी प्रचलित है। इसके अलावा सिंदूर से चोला चढ़ाने के पीछे कुछ और भी कारण हैं।
मूर्तियों का शृंगार करने के पीछे एक कारण यह भी है कि शृंगार से मूर्तियों की सुंदरता बढ़ती है। भगवान की शक्ल शृंगार से ही अधिक उभरती है, जिससे उनकी भक्ति करने वाले भक्त को देवी-देवताओं के होने का आभास प्राप्त होता है। इसके अलावा शृंगार से मूर्ति की सुरक्षा भी होती है। यदि शृंगार न किया जाए तो मूर्तियां समय के साथ पुरानी होकर खंडित हो सकती है। शृंगार के अभाव में मूर्ति से देवी-देवताओं के चेहरे दिखाई देना बंद हो सकते हैं।
इन्हीं कारणों से हनुमानजी के मूर्तियों पर भी सिंदूर से चोला चढ़ाया जाता है ताकि मूर्ति की सुंदरता भी बनी रहे और उसकी सुरक्षा भी होती रहे।

श्रीरामचरित मानस के अनुसार एक बार हनुमानजी ने माता सीता को मांग में सिंदूर लगाते हुए देखा। तब उनके मन में जिज्ञासा जागी कि माता मांग में सिंदूर क्यों लगाती है? यह प्रश्न उन्होंने माता सीता से पूछा। इसके जवाब में सीता ने कहा कि वे अपने स्वामी, पति श्रीराम की लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन की कामना के लिए मांग में सिंदूर लगाती हैं। शास्त्रों के अनुसार सुहागन स्त्री मांग में सिंदूर लगाती है तो उसके पति की आयु में वृद्धि होती है और वह हमेशा स्वस्थ रहते हैं।

माता सीता का उत्तर सुनकर हनुमानजी ने सोचा कि जब थोड़े सा सिंदूर लगाने का इतना लाभ है तो वे पूरे शरीर पर सिंदूर लगाएंगे तो उनके स्वामी श्रीराम हमेशा के लिए अमर हो जाएंगे। यही सोचकर उन्होंने पूरे शरीर पर सिंदूर लगाना प्रारंभ कर दिया। तभी से बजरंग बली को सिंदूर चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।

वैसे तो सभी के जीवन में समस्याएं सदैव बनी रहती हैं लेकिन यदि किसी व्यक्ति के जीवन में अत्यधिक परेशानियां उत्पन्न हो गई है और उसे कोई रास्ता नहीं मिल रहा हो तब हनुमानजी की सच्ची भक्ति से उसके सारे बिगड़े कार्य बन जाएंगे। दुर्भाग्य सौभाग्य में बदल जाएगा। प्रतिदिन हनुमान के चरणों का सिंदूर अपने सिर या मस्तक पर लगाने से मानसिक शांति प्राप्त होती है और विचार सकारात्मक बनते हैं। जीवन की परेशानियां दूर हो जाती हैं।

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