यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, 31 मई 2016

●देवी कवच<>चण्डी कवच●

वाराह-पुराणे श्रीहरिहरब्रह्म विरचितं देव्या: कवचम्
●देवी कवच<>चण्डी कवच●
विनियोग –
ॐ अस्य श्रीदेव्या: कवचस्य ब्रह्मा ऋषि:, अनुष्टुप् छन्द:, ख्फ्रें चामुण्डाख्या महा-लक्ष्मी: देवता, ह्रीं ह्रसौं ह्स्क्लीं ह्रीं ह्रसौं अंग-न्यस्ता देव्य: शक्तय:, ऐं ह्स्रीं ह्रक्लीं श्रीं ह्वर्युं क्ष्म्रौं स्फ्रें बीजानि, श्रीमहालक्ष्मी-प्रीतये सर्व रक्षार्थे च पाठे विनियोग:।
ऋष्यादि-न्यास –
ब्रह्मर्षये नम: शिरसि,
अनुष्टुप् छन्दसे नम: मुखे, ख्फ्रें चामुण्डाख्या
महा-लक्ष्मी: देवतायै नम: हृदि,
ह्रीं ह्रसौं ह्स्क्लीं ह्रीं ह्रसौं अंग-न्यस्ता देव्य: शक्तिभ्यो नम: नाभौ,
ऐं ह्स्रीं ह्रक्लीं श्रीं ह्वर्युं क्ष्म्रौं स्फ्रें बीजेभ्यो नम: लिंगे, श्रीमहालक्ष्मी-प्रीतये सर्व रक्षार्थे च पाठे विनियोगाय नम: सर्वांगे।
ध्यान-
ॐ रक्ताम्बरा रक्तवर्णा, रक्त-सर्वांग-भूषणा।
रक्तायुधा रक्त-नेत्रा, रक्त-केशाऽति-भीषणा।।1
रक्त-तीक्ष्ण-नखा रक्त-रसना रक्त-दन्तिका।
पतिं नारीवानुरक्ता, देवी भक्तं भजेज्जनम्।।2
वसुधेव विशाला सा, सुमेरू-युगल-स्तनी।
दीर्घौ लम्बावति-स्थूलौ, तावतीव मनोहरौ।।3
कर्कशावति-कान्तौ तौ, सर्वानन्द-पयोनिधी।
भक्तान् सम्पाययेद् देवी, सर्वकामदुघौ स्तनौ।।4
खड्गं पात्रं च मुसलं, लांगलं च बिभर्ति सा।
आख्याता रक्त-चामुण्डा, देवी योगेश्वरीति च।।5
अनया व्याप्तमखिलं, जगत् स्थावर-जंगमम्।
इमां य: पूजयेद् भक्तो, स व्याप्नोति चराचरम्।।6
।।मार्कण्डेय उवाच।।
ॐॐॐ यद् गुह्यं परमं लोके, सर्व-रक्षा-करं नृणाम्।
यन्न कस्यचिदाख्यातं, तन्मे ब्रूहि पितामह।।1
।।ब्रह्मोवाच।।
ॐ अस्ति गुह्य-तमं विप्र सर्व-भूतोपकारकम्।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं, तच्छृणुष्व महामुने।।2
प्रथमं शैल-पुत्रीति, द्वितीयं ब्रह्म-चारिणी।
तृतीयं चण्ड-घण्टेति, कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।3
पंचमं स्कन्द-मातेति, षष्ठं कात्यायनी तथा।
सप्तमं काल-रात्रीति, महागौरीति चाष्टमम्।।4
नवमं सिद्धि-दात्रीति, नवदुर्गा: प्रकीर्त्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि, ब्रह्मणैव महात्मना।।5
अग्निना दह्य-मानास्तु, शत्रु-मध्य-गता रणे।
विषमे दुर्गमे वाऽपि, भयार्ता: शरणं गता।।6
न तेषां जायते किंचिदशुभं रण-संकटे।
आपदं न च पश्यन्ति, शोक-दु:ख-भयं नहि।।7
यैस्तु भक्त्या स्मृता नित्यं, तेषां वृद्धि: प्रजायते।
प्रेत संस्था तु चामुण्डा, वाराही महिषासना।।8
ऐन्द्री गज-समारूढ़ा, वैष्णवी गरूड़ासना।
नारसिंही महा-वीर्या, शिव-दूती महाबला।।9
माहेश्वरी वृषारूढ़ा, कौमारी शिखि-वाहना।
ब्राह्मी हंस-समारूढ़ा, सर्वाभरण-भूषिता।।10
लक्ष्मी: पद्मासना देवी, पद्म-हस्ता हरिप्रिया।
श्वेत-रूप-धरा देवी, ईश्वरी वृष वाहना।।11
इत्येता मातर: सर्वा:, सर्व-योग-समन्विता।
नानाभरण-षोभाढया, नाना-रत्नोप-शोभिता:।।12
श्रेष्ठैष्च मौक्तिकै: सर्वा, दिव्य-हार-प्रलम्बिभि:।
इन्द्र-नीलैर्महा-नीलै, पद्म-रागै: सुशोभने:।।13
दृष्यन्ते रथमारूढा, देव्य: क्रोध-समाकुला:।
शंखं चक्रं गदां शक्तिं, हलं च मूषलायुधम्।।14
खेटकं तोमरं चैव, परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं च खड्गं च, शार्गांयुधमनुत्तमम्।।15
दैत्यानां देह नाशाय, भक्तानामभयाय च।
धारयन्त्यायुधानीत्थं, देवानां च हिताय वै।।16
नमस्तेऽस्तु महारौद्रे ! महाघोर पराक्रमे !
महाबले ! महोत्साहे ! महाभय विनाशिनि।।17
त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये ! शत्रूणां भयविर्द्धनि !
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री, आग्नेय्यामग्नि देवता।।18
दक्षिणे चैव वाराही, नैऋत्यां खड्गधारिणी।
प्रतीच्यां वारूणी रक्षेद्, वायव्यां वायुदेवता।।19
उदीच्यां दिशि कौबेरी, ऐशान्यां शूल-धारिणी।
ऊर्ध्वं ब्राह्मी च मां रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा।।20
एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शव-वाहना।
जया मामग्रत: पातु, विजया पातु पृष्ठत:।।21
अजिता वाम पार्श्वे तु, दक्षिणे चापराजिता।
शिखां मे द्योतिनी रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता।।22
मालाधरी ललाटे च, भ्रुवोर्मध्ये यशस्विनी।
नेत्रायोश्चित्र-नेत्रा च, यमघण्टा तु पार्श्वके।।23
शंखिनी चक्षुषोर्मध्ये, श्रोत्रयोर्द्वार-वासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्, कर्ण-मूले च शंकरी।।24
नासिकायां सुगन्धा च, उत्तरौष्ठे च चर्चिका।
अधरे चामृत-कला, जिह्वायां च सरस्वती।।25
दन्तान् रक्षतु कौमारी, कण्ठ-मध्ये तु चण्डिका।
घण्टिकां चित्र-घण्टा च, महामाया च तालुके।।26
कामाख्यां चिबुकं रक्षेद्, वाचं मे सर्व-मंगला।
ग्रीवायां भद्रकाली च, पृष्ठ-वंशे धनुर्द्धरी।।27
नील-ग्रीवा बहि:-कण्ठे, नलिकां नल-कूबरी।
स्कन्धयो: खडि्गनी रक्षेद्, बाहू मे वज्र-धारिणी।।28
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदिम्बका चांगुलीषु च।
नखान् सुरेश्वरी रक्षेत्, कुक्षौ रक्षेन्नरेश्वरी।।29
स्तनौ रक्षेन्महादेवी, मन:-शोक-विनाशिनी।
हृदये ललिता देवी, उदरे शूल-धारिणी।।30
नाभौ च कामिनी रक्षेद्, गुह्यं गुह्येश्वरी तथा।
मेढ्रं रक्षतु दुर्गन्धा, पायुं मे गुह्य-वासिनी।।31
कट्यां भगवती रक्षेदूरू मे घन-वासिनी।
जंगे महाबला रक्षेज्जानू माधव नायिका।।32
गुल्फयोर्नारसिंही च, पाद-पृष्ठे च कौशिकी।
पादांगुली: श्रीधरी च, तलं पाताल-वासिनी।।33
नखान् दंष्ट्रा कराली च, केशांश्वोर्ध्व-केशिनी।
रोम-कूपानि कौमारी, त्वचं योगेश्वरी तथा।।34
रक्तं मांसं वसां मज्जामस्थि मेदश्च पार्वती।
अन्त्राणि काल-रात्रि च, पितं च मुकुटेश्वरी।।35
पद्मावती पद्म-कोषे, कक्षे चूडा-मणिस्तथा।
ज्वाला-मुखी नख-ज्वालामभेद्या सर्व-सन्धिषु।।36
शुक्रं ब्रह्माणी मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा।
अहंकारं मनो बुद्धिं, रक्षेन्मे धर्म-धारिणी।।37
प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्।
वज्र-हस्ता तु मे रक्षेत्, प्राणान् कल्याण-शोभना।।38
रसे रूपे च गन्धे च, शब्दे स्पर्शे च योगिनी।
सत्वं रजस्तमश्चैव, रक्षेन्नारायणी सदा।।39
आयू रक्षतु वाराही, धर्मं रक्षन्तु मातर:।
यश: कीर्तिं च लक्ष्मीं च, सदा रक्षतु वैष्णवी।।40
गोत्रमिन्द्राणी मे रक्षेत्, पशून् रक्षेच्च चण्डिका।
पुत्रान् रक्षेन्महा-लक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी।।41
धनं धनेश्वरी रक्षेत्, कौमारी कन्यकां तथा।
पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमंकरी तथा।।42
राजद्वारे महा-लक्ष्मी, विजया सर्वत: स्थिता।
रक्षेन्मे सर्व-गात्राणि, दुर्गा दुर्गाप-हारिणी।।43
रक्षा-हीनं तु यत् स्थानं, वर्जितं कवचेन च।
सर्वं रक्षतु मे देवी, जयन्ती पाप-नाशिनी।।44
।।फल-श्रुति।।
सर्वरक्षाकरं पुण्यं, कवचं सर्वदा जपेत्।
इदं रहस्यं विप्रर्षे ! भक्त्या तव मयोदितम्।।45
देव्यास्तु कवचेनैवमरक्षित-तनु: सुधी:।
पदमेकं न गच्छेत् तु, यदीच्छेच्छुभमात्मन:।।46
कवचेनावृतो नित्यं, यत्र यत्रैव गच्छति।
तत्र तत्रार्थ-लाभ: स्याद्, विजय: सार्व-कालिक:।।47
यं यं चिन्तयते कामं, तं तं प्राप्नोति निश्चितम्।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्नोत्यविकल: पुमान्।।48
निर्भयो जायते मर्त्य:, संग्रामेष्वपराजित:।
त्रैलोक्ये च भवेत् पूज्य:, कवचेनावृत: पुमान्।।49
इदं तु देव्या: कवचं, देवानामपि दुर्लभम्।
य: पठेत् प्रयतो नित्यं, त्रि-सन्ध्यं श्रद्धयान्वित:।।50
देवी वश्या भवेत् तस्य, त्रैलोक्ये चापराजित:।
जीवेद् वर्ष-शतं साग्रमप-मृत्यु-विवर्जित:।।51
नश्यन्ति व्याधय: सर्वे, लूता-विस्फोटकादय:।
स्थावरं जंगमं वापि, कृत्रिमं वापि यद् विषम्।।52
अभिचाराणि सर्वाणि, मन्त्र-यन्त्राणि भू-तले।
भूचरा: खेचराश्चैव, कुलजाश्चोपदेशजा:।।53
सहजा: कुलिका नागा, डाकिनी शाकिनी तथा।
अन्तरीक्ष-चरा घोरा, डाकिन्यश्च महा-रवा:।।54
ग्रह-भूत-पिशाचाश्च, यक्ष-गन्धर्व-राक्षसा:।
ब्रह्म-राक्षस-वेताला:, कूष्माण्डा भैरवादय:।।55
नष्यन्ति दर्शनात् तस्य, कवचेनावृता हि य:।
मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजो-वृद्धि: परा भवेत्।।56
यशो-वृद्धिर्भवेद् पुंसां, कीर्ति-वृद्धिश्च जायते।
तस्माज्जपेत् सदा भक्तया, कवचं कामदं मुने।।57
जपेत् सप्तशतीं चण्डीं, कृत्वा तु कवचं पुर:।
निर्विघ्नेन भवेत् सिद्धिश्चण्डी-जप-समुद्भवा।।58
यावद् भू-मण्डलं धत्ते ! स-शैल-वन-काननम्।
तावत् तिष्ठति मेदिन्यां, जप-कर्तुर्हि सन्तति:।।59
देहान्ते परमं स्थानं, यत् सुरैरपि दुर्लभम्।
सम्प्राप्नोति मनुष्योऽसौ, महा-माया-प्रसादत:।।60
तत्र गच्छति भक्तोऽसौ, पुनरागमनं न हि।
लभते परमं स्थानं, शिवेन सह मोदते ॐॐॐ।।61
।।वाराह-पुराणे श्रीहरिहरब्रह्म विरचितं देव्या: कवचम्।।

शबरी के भावना से अर्पित जूठे बेरों की अपेक्षा

प्रस्तुत लेख आनंद रामायण से लिया गया है इसलिये यदि किसी प्रकार की कोई भी शंका हो तो कृप्या आनंद रामायण का अध्यन करे।
🌷(जब हनुमान जी देवी उर्मिला की सिद्धियों को देखकर दंग रह गए)
🎞आनंद रामायण के अनुसार जब हनुमानजी ने अपने बाएं हाथ पर संजीवनी पवर्त उठाया तो दिव्य गंधमय पुष्पों की वर्षा होने लगी व चारों ओर से मंगल-ध्वनि होने लगी।
हनुमानजी पर्वत सहित ऊर्ध्वगामी होकर संकल्प मात्र से वायु देव के 48 स्वरूपों को पार करके 49 वें स्वरूप पर पहुंच गए।
यहां से हनुमान जी को अयोध्या पुरी नज़र आई।
जिसे देखकर उनके मन में इच्छा जागृत हुई कि श्रीराम की नगरी व उनके परिवार जनों का दर्शन किया जाए।
पुरी अयोध्या को ‘रां’ बीज मंत्र द्वारा कीलित देखकर हनुमानजी को रोमांच हो आया। हनुमानजी ने हाथ जोड़कर नंदीग्राम सहित अयोध्या की परिक्रमा की।
फिर नंदीग्राम की एक कुटिया में खिड़की से झांका तो देखा कि भरत जी सिंहासन पर स्थापित चरण पादुकाओं के पास बैठकर ध्यान-मग्न थे।
अर्धरात्रि काल था, सभी सो रहे थे, कौशल्या जी, सुमित्रा जी व कैकयी जी को हनुमानजी ने शयन करते देखा।
उन्होंने देखा कि माता कौशल्या के पलंग पर ही, पैरों की ओर भरत पत्नी मांडवि जी लेटी थी।
ठीक यही स्थिति शत्रुघ्न-पत्नी श्रुतकीर्ति की माता सुमित्रा के पलंग पर थी।
केवल माता कैकयी अपने पलंग पर अकेली थीं।
हनुमानजी ने विचारा कि घर में एक राजबहू उर्मिला भी हैं, फिर माता कैकयी अकेली क्यों?
जिज्ञासा वश हनुमानजी ने ध्यान लगाया तो देखा कि उर्मिला जी ने 14 वर्षों की अवधि में विशेष साधनों का प्रण लिया है तथा वो विशिष्ट साधना में पूरे मनोयोग से जुट हुई हैं।
हनुमानजी ने देखा कि श्रीराम के वियोग में पूरा परिवार योगी-तपस्वी हो गया है।
हनुमान जी ने देखना चाहा कि देवी उर्मिला जी की साधना कहां तक पहुंची है।
देवी उर्मिला जी के भवन का द्वार बंद था, हनुमानजी सूक्ष्म रूप से भीतर प्रवेश कर गए।
हनुमानजी एक दृश्य देखकर चकित रह गए।
एक उच्च पीठासन पर मनोहर दीपक प्रज्वलित है, जिसके दिव्य प्रकाश से सारा कक्ष आलोकित हो रहा है।
उसी दीपक के नीचे ललित चुनरी कलात्मक ढंग से तह की हुई रखी है।
संजीवनी पर्वत पर दिव्य पुष्पों की जो सुगंध थी, वही सुगंध पूरे गर्भगृह को सुवासित किए हुए थी।
हनुमान जी अभी विस्मय से उबर भी नहीं पाए थे कि उन्हें नारी-कंठ की ध्वनि में सुनाई पड़ा, ‘‘आइए हनुमानजी आपका स्वागत है"।
यह ध्वनि देवी उर्मिला जी की है।
हनुमानजी अत्यंत विनम्र होकर बोले, ‘‘मुझे पूरा विश्वास है देवी कि आपकी साधना पूर्ण रूपेण सफल हो गई, तभी आपने मुझ अदृश्य को देख लिया और पहचान भी लिया।
हनुमान जी ने देवी उर्मिला जी से दर्शन देने की प्रार्थना की।
फिर एक कक्ष का द्वार खुला व एक अद्भुत घटना हुई।
प्रज्वलित दीपक की लौ बढ़कर द्वार तक गई व उर्मिला के मुख मंडल को आलोकित करती हुई उन्हीं के साथ चलती रही।
उर्मिला जी जब दीपक के पास आकर खड़ी हो गई, तब शिखा भी सामान्य शिखा में समाहित हो गई।
हनुमानजी ने भाव-विभोर होकर उर्मिला जी को प्रणाम किया व कहा "आप मुझे आज्ञा व आशीर्वाद दें, मुझे शीघ्र लंका पहुंचना है।’’
उर्मिला जी ने कहा, ‘‘मुझे ज्ञात है पुत्र! मेरे पतिदेव, मेघनाद की वीरघातिनी शक्ति से मूर्छित हैं, क्योंकि उन्होनें शबरी के भावना से अर्पित जूठे बेरों की अपेक्षा की थी।
अब उन्हीं बेरों के परिवर्तित रूप से आपके द्वारा सिंचित संजीवनी से उनकी मूर्छा दूर होगी, यही उनका प्रायश्चित है।"
उर्मिला जी ने कहा, ‘‘हे पुत्र हनुमान! आपके इस महान कार्य का एक दूसरा परिणाम यह भी हुआ है कि आपने बेर की पत्तियों का जो तांत्रिक प्रयोग किया है, उसने रावण के तांत्रिक प्रयोगों का निराकरण किया है।
यह कार्य आपके अतिरिक्त और कोई नहीं कर सकता था।’’
हनुमानजी बोले, ‘‘सब कुछ प्रभु श्रीराम की कृपा से हुआ है"।
उर्मिला जी ने कहा, ‘‘यह सत्य है कि सब राम कृपा से होता है, परंतु आप साधारण व्यक्ति नहीं हैं।
मैं जानती हूं, आप शिवशंकर के ग्यारहवें रुद्र के अवतार हैं।
अब जाओ वत्स! आगे का कार्य भी निर्विघ्न रूप से संपन्न करो।’’
हनुमानजी बोले, ‘‘आपका आशीर्वाद अवश्य फलीभूत होगा, आपकी साधना महान है।
आपने सर्वज्ञता की सिद्धि भी प्राप्त कर ली है"।
हनुमानजी ‘जय श्रीराम’ कहकर अदृश्य हो गए।

रविवार, 10 जनवरी 2016

कब-कब बँटा - अखंड भारत

अखंड भारत की कहानी
 

आज तक किसी भी इतिहास की पुस्तक में इस बात का उल्लेख नहीं मिलता की बीते 2500 सालों में हिंदुस्तान पर जो आक्रमण हुए उनमें किसी भी आक्रमणकारी ने अफगानिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, भूटान, पाकिस्तान, मालद्वीप या बांग्लादेश पर आक्रमण किया हो। अब यहां एक प्रश्न खड़ा होता है कि यह देश कैसे गुलाम और आजाद हुए। पाकिस्तान व बांग्लादेश निर्माण का इतिहास तो सभी जानते हैं। बाकी देशों के इतिहास की चर्चा नहीं होती। हकीकत में अंखड भारत की सीमाएं विश्व के बहुत बड़े भू-भाग तक फैली हुई थीं।

एवरेस्ट का नाम था सागरमाथा, गौरीशंकर चोटी

पृथ्वी का जब जल और थल इन दो तत्वों में वर्गीकरण करते हैं, तब सात द्वीप एवं सात महासमुद्र माने जाते हैं। हम इसमें से प्राचीन नाम जम्बूद्वीप जिसे आज एशिया द्वीप कहते हैं तथा इन्दू सरोवरम् जिसे आज हिन्दू महासागर कहते हैं, के निवासी हैं। इस जम्बूद्वीप (एशिया) के लगभग मध्य में हिमालय पर्वत स्थित है। हिमालय पर्वत में विश्व की सर्वाधिक ऊंची चोटी सागरमाथा, गौरीशंकर हैं, जिसे 1835 में अंग्रेज शासकों ने एवरेस्ट नाम देकर इसकी प्राचीनता व पहचान को बदल दिया।

ये थीं अखंड भारत की सीमाएं

 अखंड भारत इतिहास की किताबों में हिंदुस्तान की सीमाओं का उत्तर में हिमालय व दक्षिण में हिंद महासागर का वर्णन है, परंतु पूर्व व पश्चिम का वर्णन नहीं है। परंतु जब श्लोकों की गहराई में जाएं और भूगोल की पुस्तकों और एटलस का अध्ययन करें तभी ध्यान में आ जाता है कि श्लोक में पूर्व व पश्चिम दिशा का वर्णन है। कैलाश मानसरोवर‘ से पूर्व की ओर जाएं तो वर्तमान का इंडोनेशिया और पश्चिम की ओर जाएं तो वर्तमान में ईरान देश या आर्यान प्रदेश हिमालय के अंतिम छोर पर हैं।

एटलस के अनुसार जब हम श्रीलंका या कन्याकुमारी से पूर्व व पश्चिम की ओर देखेंगे तो हिंद महासागर इंडोनेशिया व आर्यान (ईरान) तक ही है। इन मिलन बिंदुओं के बाद ही दोनों ओर महासागर का नाम बदलता है। इस प्रकार से हिमालय, हिंद महासागर, आर्यान (ईरान) व इंडोनेशिया के बीच का पूरे भू-भाग को आर्यावर्त अथवा भारतवर्ष या हिंदुस्तान कहा जाता है।

अब तक 24 विभाजन

सन 1947 में भारतवर्ष का पिछले 2500 सालों में 24वां विभाजन है। अंग्रेज का 350 वर्ष पूर्व के लगभग ईस्ट इण्डिया कम्पनी के रूप में व्यापारी बनकर भारत आना, फिर धीरे-धीरे शासक बनना और उसके बाद 1857 से 1947 तक उनके द्वारा किया गया भारत का 7वां विभाजन है। 1857 में भारत का क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग किमी था। वर्तमान भारत का क्षेत्रफल 33 लाख वर्ग किमी है। पड़ोसी 9 देशों का क्षेत्रफल 50 लाख वर्ग किमी बनता है।

क्या थी अखंड भारत की स्थिति

सन 1800 से पहले विश्व के देशों की सूची में वर्तमान भारत के चारों ओर जो आज देश माने जाते हैं उस समय ये देश थे ही नहीं। यहां राजाओं का शासन था। इन सभी राज्यों की भाषा अधिकांश शब्द संस्कृत के ही हैं। मान्यताएं व परंपराएं बाकी भारत जैसी ही हैं। खान-पान, भाषा-बोली, वेशभूषा, संगीत-नृत्य, पूजापाठ, पंथ के तरीके सब एकसे थे। जैसे-जैसे इनमें से कुछ राज्यों में भारत के इतर यानि विदेशी मजहब आए तब यहां की संस्कृति बदलने लगी।

2500 सालों के इतिहास में सिर्फ हिंदुस्तान पर हुए हमले

इतिहास की पुस्तकों में पिछले 2500 वर्ष में जो भी आक्रमण हुए (यूनानी, यवन, हूण, शक, कुषाण, सिरयन, पुर्तगाली, फेंच, डच, अरब, तुर्क, तातार, मुगल व अंग्रेज) इन सभी ने हिंदुस्तान पर आक्रमण किया ऐसा इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में कहा है। किसी ने भी अफगानिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, भूटान, पाकिस्तान, मालद्वीप या बांग्लादेश पर आक्रमण का उल्लेख नहीं किया है।

रूस और ब्रिटिश शासकों ने बनाया अफगानिस्तान

1834 में प्रकिया शुरु हुई और 26 मई 1876 को रूसी व ब्रिटिश शासकों (भारत) के बीच गंडामक संधि के रूप में निर्णय हुआ और अफगानिस्तान नाम से एक बफर स्टेट अर्थात् राजनैतिक देश को दोनों ताकतों के बीच स्थापित किया गया। इससे अफगानिस्तान अर्थात पठान भारतीय स्वतंत्रतता संग्राम से अलग हो गए। दोनों ताकतों ने एक-दूसरे से अपनी रक्षा का मार्ग भी खोज लिया। परंतु इन दोनों पूंजीवादी व मार्क्सवादी ताकतों में अंदरूनी संघर्ष सदैव बना रहा कि अफगानिस्तान पर नियंत्रण किसका हो? अफगानिस्तान शैव व प्रकृति पूजक मत से बौद्ध मतावलम्बी और फिर विदेशी पंथ इस्लाम मतावलम्बी हो चुका था। बादशाह शाहजहां, शेरशाह सूरी व महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल में उनके राज्य में कंधार (गंधार) आदि का स्पष्ट वर्णन मिलता है।

1904 में दिया आजाद रेजीडेंट का दर्जा

मध्य हिमालय के 46 से अधिक छोटे-बडे राज्यों को संगठित कर पृथ्वी नारायण शाह नेपाल नाम से एक राज्य बना चुके थे। स्वतंत्रतता संग्राम के सेनानियों ने इस क्षेत्र में अंग्रेजों के विरुद्ध लडते समय-समय पर शरण ली थी। अंग्रेज ने विचारपूर्वक 1904 में वर्तमान के बिहार स्थित सुगौली नामक स्थान पर उस समय के पहाड़ी राजाओं के नरेश से संधी कर नेपाल को एक आजाद देश का दर्जा प्रदान कर अपना रेजीडेंट बैठा दिया। इस प्रकार से नेपाल स्वतन्त्र राज्य होने पर भी अंग्रेज के अप्रत्यक्ष अधीन ही था। रेजीडेंट के बिना महाराजा को कुछ भी खरीदने तक की अनुमति नहीं थी। इस कारण राजा-महाराजाओं में यहां तनाव था। नेपाल 1947 में ही अंग्रेजी रेजीडेंसी से मुक्त हुआ।

भूटान के लिए ये चाल चली गई

1906 में सिक्किम व भूटान जो कि वैदिक-बौद्ध मान्यताओं के मिले-जुले समाज के छोटे भू-भाग थे इन्हें स्वतन्त्रता संग्राम से लगकर अपने प्रत्यक्ष नियंत्रण से रेजीडेंट के माध्यम से रखकर चीन के विस्तारवाद पर अंग्रेज ने नजर रखना शुरु किया। यहां के लोग ज्ञान (सत्य, अहिंसा, करुणा) के उपासक थे। यहां खनिज व वनस्पति प्रचुर मात्रा में थी। यहां के जातीय जीवन को धीरे-धीरे मुख्य भारतीय धारा से अलग कर मतांतरित किया गया। 1836 में उत्तर भारत में चर्च ने अत्यधिक विस्तार कर नए आयामों की रचना कर डाली। फिर एक नए टेश का निर्माण हो गया।

चीन ने किया कब्जा

1914 में तिब्बत को केवल एक पार्टी मानते हुए चीन भारत की ब्रिटिश सरकार के बीच एक समझौता हुआ। भारत और चीन के बीच तिब्बत को एक बफर स्टेट के रूप में मान्यता देते हुए हिमालय को विभाजित करने के लिए मैकमोहन रेखा निर्माण करने का निर्णय हुआ। हिमालय को बांटना और तिब्बत व भारतीय को अलग करना यह षड्यंत्र रचा गया। चीनी और अंग्रेज शासकों ने एक-दूसरों के विस्तारवादी, साम्राज्यवादी मनसूबों को लगाम लगाने के लिए कूटनीतिक खेल खेला।

अंग्रेजों ने अपने लिए बनाया रास्ता

1935 व 1937 में ईसाई ताकतों को लगा कि उन्हें कभी भी भारत व एशिया से जाना पड़ सकता है। समुद्र में अपना नौसैनिक बेड़ा बैठाने, उसके समर्थक राज्य स्थापित करने तथा स्वतंत्रता संग्राम से उन भू-भागों व समाजों को अलग करने हेतु सन 1935 में श्रीलंका व सन 1937 में म्यांमार को अलग राजनीतिक देश की मान्यता दी। म्यांमार व श्रीलंका का अलग अस्तित्व प्रदान करते ही मतान्तरण का पूरा ताना-बाना जो पहले तैयार था उसे अधिक विस्तार व सुदृढ़ता भी इन देशों में प्रदान की गई। ये दोनों देश वैदिक, बौद्ध धार्मिक परम्पराओं को मानने वाले हैं। म्यांमार के अनेक स्थान विशेष रूप से रंगून का अंग्रेज द्वारा देशभक्त भारतीयों को कालेपानी की सजा देने के लिए जेल के रूप में भी उपयोग होता रहा है।

दो देश से हुए तीन


1947 में भारत पाकिस्तान का बंटवारा हुआ। इसकी पटकथा अंग्रेजों ने पहले ही लिख दी थी। सबसे ज्यादा खराब स्थिति भौगोलिक रूप से पाकिस्तान की थी। ये देश दो भागों में बंटा हुआ था और दोनों के बीच की दूरी थी 2500 किलो मीटर। 16 दिसंबर 1971 को भारत के सहयोग से एक अलग देश बांग्लादेश अस्तित्व में आया।

तथाकथित इतिहासकार भी दोषी

यह कैसी विडंबना है कि जिस लंका पर पुरुषोत्तम श्री राम ने विजय प्राप्त की ,उसी लंका को विदेशी बना दिया। रचते हैं हर वर्ष रामलीला। वास्तव में दोषी है हमारा इतिहासकार समाज ,जिसने वोट-बैंक के भूखे नेताओं से मालपुए खाने के लालच में भारत के वास्तविक इतिहास को इतना धूमिल कर दिया है, उसकी धूल साफ करने में इन इतिहासकारों और इनके आकाओं को साम्प्रदायिकता दिखने लगती है। यदि इन तथाकथित इतिहासकारों ने अपने आकाओं ने वोट-बैंक राज+नीति खेलने वालों का साथ नही छोड़ा, देश को पुनः विभाजन की ओर धकेल दिया जायेगा। इन तथाकथित इतिहासकारो ने कभी वास्तविक भूगोल एवं इतिहास से देशवासिओं को अवगत करवाने का साहस नही किया।

भारत देश का प्राचीन नाम आर्यावर्त

भारत देश का प्राचीन नाम आर्यावर्त है। आर्यावर्त के पूर्व इसका कोई नाम नहीं था। कहीं-कहीं जम्बूद्वीप का उल्लेख मिलता है।



भारत देश का प्राचीन नाम आर्यावर्त है। आर्यावर्त के पूर्व इसका कोई नाम नहीं था। कहीं-कहीं जम्बूद्वीप का उल्लेख मिलता है। इसे पहले ‘अजनाभ खंड’ भी कहा जाता था। अजनाभ खंड का अर्थ ब्रह्मा की नाभि या नाभि से उत्पन्न। वृषभ देव के पुत्र भरत के नाम से इस  देश का नाम “भारत” पड़ा | वेद-पुराण और अन्य धर्मग्रंथों के साथ वैज्ञानिक शोधों का अध्ययन करें तो पता चलता है कि मनुष्य व अन्य जीव- जंतुओं की वर्तमान आदि सृष्टि (उत्पत्ति) हिमालय के आसपास की भूमि पर हुई थी जिसमें तिब्बत को इसलिए महत्व दिया गया क्योंकि यह दुनिया का सर्वाधिक ऊँचा पठार है।


हिमालय के पास होने के कारण पूर्व में भारत वर्ष को हिमवर्ष भी कहा जाता था। वेद-पुराणों में तिब्बत को त्रिविष्टप कहा गया है। महाभारत के महाप्रस्थानिक पर्व में स्वर्गारोहण में स्पष्ट किया गया है कि तिब्बत हिमालय के उस राज्य को पुकारा जाता था जिसमें नंदनकानन नामक देवराज इंद्र का देश था। इससे सिद्ध होता है कि इंद्र स्वर्ग में नहीं धरती पर ही हिमालय के इलाके में रहते थे। वहीं शिव और अन्य देवता भी रहते थे। पूर्व में यह धरती जल प्रलय के कारण जल से ढँक गई थी। कैलाश, गोरी-शंकर की चोटी तक पानी चढ़ गया था। इससे यह सिद्ध होता है कि संपूर्ण धरती ही जलमग्न हो गई थी, लेकिन विद्वानों में इस विषय को लेकर मतभेद हैं। कुछ का मानना है कि कहीं-कहीं धरती जलमग्न नहीं हुई थी। पुराणों में उल्लेख भी है कि जलप्रलय के समय ओंकारेश्वर स्थित मार्कंडेय ऋषि का आश्रम जल से अछूता रहा। कई माह तक वैवस्वत मनु (इन्हें श्रद्धादेव भी कहा जाता है) द्वारा नाव में ही गुजारने के बाद उनकी नाव गोरी-शंकर के शिखर से होते हुए नीचे उतरी। गोरी- शंकर जिसे एवरेस्ट की चोटी कहा जाता है। दुनिया में इससे ऊँचा, बर्फ से ढँका हुआ और ठोस पहाड़ दूसरा नहीं है। तिब्बत में धीरे-धीरे जनसंख्या वृद्धि और वातावरण में तेजी से होते परिवर्तन के कारण वैवस्वत मनु की संतानों ने अलग-अलग भूमि की ओर रुख करना शुरू किया।

विज्ञान मानता है कि पहले सभी द्वीप इकट्ठे थे। अर्थात अमेरिका द्वीप इधर अफ्रीका और उधर चीन तथा रूस से जुड़ा हुआ था। अफ्रीका भारत से जुड़ा हुआ था। धरती की घूर्णन गति और भू-गर्भीय परिवर्तन के कारण धरती द्वीपों में बँट गई। इस जुड़ी हुई धरती पर ही हिमालय की निम्न श्रेणियों को पार कर मनु की संतानें कम ऊँचाई वाले पहाड़ी विस्तारों में बसती गईं। फिर जैसे-जैसे समुद्र का जल स्तर घटता गया वे और भी मध्य भाग में आते गए।

राजस्थान की रेगिस्तान इस बाद का सबूत है कि वहाँ पहले कभी समुद्र हुआ करता था। दक्षिण के इलाके तो जलप्रलय से जलमग्न ही थे। लेकिन बहुत काल के बाद धीरे-धीरे जैसे-जैसे समुद्र का जलस्तर घटा मनु का कुल पश्चिमी, पूर्वी और दक्षिणी मैदान और पहाड़ी  देशों में फैल गए। जो हिमालय के इधर फैलते गए उन्होंने ही अखंड भारत की सम्पूर्ण भूमि को ब्रह्मावर्त, ब्रह्मार्षिदेश, मध्यदेश,आर्यावर्त एवं भारतवर्ष आदि नाम दिए। जो इधर आए वे सभी मनुष्य आर्य कहलाने लगे। आर्य एक गुणवाचक शब्द है जिसका सीधा-सा अर्थ है श्रेष्ठ। यही लोग साथ में वेद लेकर आए थे। इसी से यह धारणा प्रचलित हुई कि देवभूमि से वेद धरती पर उतरे। स्वर्ग से गंगा को उतारा गया आदि अनेक धारणाएँ।


इन आर्यों के ही कई गुट अलग-अलग झुंडों में पूरी धरती पर फैल गए और वहाँ बस कर भाँति-भाँति के धर्म और संस्कृति आदि को जन्म दिया। मनु की संतानें ही आर्य-अनार्य में बँटकर धरती पर फैल गईं। पूर्व में यह सभी देव-दानव कहलाती थीं। इस धरती पर आज जो भी मनुष्य हैं वे सभी वैवस्वत मनु की ही संतानें हैं इस विषय में विद्वानों में मतभेद हैं। यह अभी शोध का विषय है। भारतीय पुराणकार सृष्टि का इतिहास कल्प में और सृष्टि में मानव उत्पत्ति व उत्थान का इतिहास मवन्तरों में वर्णित करते हैं। और उसके पश्चात् मन्वन्तरों का इतिहास युग-युगान्तरों में बताते हैं।


‘प्राचीन ग्रन्थों में मानव इतिहास को पाँच कल्पों में बाँटा गया है। (1). हमत् कल्प 1 लाख 9 हजार 8 सौ वर्ष विक्रमीय पूर्व से आरम्भ होकर 85800 वर्ष पूर्व तक, (2). हिरण्य गर्भ कल्प 85800 विक्रमीय पूर्व से 61800 वर्ष पूर्व तक, ब्राह्म कल्प 60800 विक्रमीय पूर्व से 37800 वर्ष पूर्व तक, (3). ब्राह्म कल्प 60800 विक्रमीय पूर्व से 37800 वर्ष पूर्व तक, (4). पाद्म कल्प 37800 विक्रम पूर्व से 13800 वर्ष पूर्व तक और (5). वराह कल्प 13800 विक्रम पूर्व से आरम्भ होकर इस समय तक चल रहा है ।

wishwaguru अब तक वराह कल्प के स्वायम्भु मनु, स्वरोचिष मनु, उत्तम मनु, तमास मनु, रेवत- मनु चाक्षुष मनु तथा वैवस्वत मनु के मन्वन्तर
बीत चुके हैं और अब वैवस्वत तथा सावर्णि मनु की अन्तर्दशा चल रही है। सावर्णि मनु का आविर्भाव विक्रमी सम्वत प्रारम्भ होने से 5630 वर्ष पूर्व हुआ था।’–श्रीराम शर्मा आचार्य (गायत्री शक्ति पीठ)


गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स ने कल्प को समय का सर्वाधिक लम्बा मापन घोषित किया है। त्रिविष्टप अर्थात तिब्बत या देवलोक से वैवस्वत मनु के नेतृत्व में प्रथम पीढ़ी के मानवों (देवों) का मेरु प्रदेश में अवतरण हुआ। वे देव स्वर्ग से अथवा अम्बर (आकाश) से पवित्र वेद पुस्तक भी साथ लाए थे। इसी से श्रुति और स्मृति की परम्परा चलती रही। वैवस्वत मनु के समय ही भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार हुआ। 
वैवस्वत मनु की शासन व्यवस्था में देवों में पाँच तरह के विभाजन थे: देव, दानव, यक्ष, किन्नर और गंधर्व। वैवस्वत मनु के दस पुत्र
थे। इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध पुत्र थे। इसमें इक्ष्वाकु कुल का ही ज्यादा विस्तार हुआ। इक्ष्वाकु कुल में कई महान प्रतापी राजा, ऋषि, अरिहंत और भगवान हुए हैं।

शुक्रवार, 8 जनवरी 2016

रक्तदान से मनाया साँवरिया के संस्थापक का जन्मदिन



 हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी साँवरिया और जोधपुर शहर माहेश्वरी महिला संगठन के संयुक्त तत्वावधान मे बुधवार दिनांक 06 जनवरी 2016 को जोधपुर के रातानाडा क्षेत्र के नवनिर्मित माहेश्वरी बगीची मे विशाल रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया

जोधपुर शहर माहेश्वरी महिला संगठन की अध्यक्ष पूर्णिमा काबरा ने बताया पूरे दिन के इस कार्यक्रम मे रेलवे के पुलिस अधीक्षक ललित माहेश्वरी, राधा माहेश्वरी, संभागीय आयुक्त रतन लाहोटी, समाजसेवी सुरेश राठी, अखिल भारतीय माहेश्वरी महासभा के संदीप काबरा , भाजपा नेता राजेंद्र बोराना, हरिप्रकाश राठी, कल्पना चांडक मुख्य अतिथि थे इस कार्यक्रम मे साँवरिया की अध्यक्ष व महिला संगठन की सचिव डॉ. नीलम मूंदड़ा ने बताया की साँवरिया के संस्थापक कैलाश चंद्र लढा के जन्मदिवस पर रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया | साँवरिया के संस्थापक कैलाश चंद्र लढा ने बताया की शिविर मे 15 जोड़ो ने रक्तदान किया जिसमे सुनील मूंदड़ा- डॉ नीलम मूंदड़ा, प्रदीप झंवर-सोनू झंवर , सुनीता हेडा-संदीप हेडा आदि ने रक्तदान किया

वही 25 महिलाओ ने राधा माहेश्वरी के नेत्रत्व मे रक्तदान किया| कार्यक्रम मे समाज के मंत्री दामोदारलाल बंग ने कार्य की प्रशंसा की| मूंदड़ा ने बताया कार्यक्रम मे कुल 74 यूनिट रक्तदान हुआ| महिला मंडल की महिलाओ ने कैलाश चंद्र लढा को मल्यार्पण कर उनके जन्मदिन पर मंगल गीत गाकर उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना व्यक्त की जिसमे कैलाश चंद्र लढा ने सभी को धन्यवाद देते हुए रक्तदान के लिए संदेश देते हुए कहा की " जिंदगी तो उसकी है जिसकी मौत पर जमाना अफ़सोस करे, वरना जन्म तो सभी का मरने के लिए ही होता है"

कार्यक्रम के संपूर्ण देखरेख व व्यवस्था का भार सुनील मूंदड़ा ने संभाला और कार्यक्रम मे प्रिया माहेश्वरी, जे एम बूब , डॉ प्रदीप गट्टनी, संजीवनी गट्टानी, स्वाती जैसलमेरिया, डॉ सूरज माहेश्वरी,रामानंद काबरा, गिरीश बंग, प्रकाश कलानी, ओम धूत, स्वाती मोदी, पुष्पा सारदा, उमा बिड़ला, सुनीता बिड़ला, रमेश्वरी भूतदा, कमला मूंदड़ा, ओम लोहिया, ज्योति मालानी, अरुणा मोदी, कुमुद लोहिया, नीरज मूंदड़ा, पवन मेवाड़ा, विक्रम तोषनीवाल, डॉ अमन मूंदड़ा, शशि बाहेती, लता रती, किरण लाहोटी मंजू लढा, संगीता लोहिया, अंजू गाँधी, गीता, उषा कोठारी, मीना साबू, अपर्णा मोदी ने सहयोग किया

रविवार, 27 दिसंबर 2015

विशाल रक्तदान शिविर का आयोजन जोधपुर मे 6 जनवरी 2016


जय श्री कृष्णा मित्रों आप सभी को यह जानकारी देते हुए बहुत हर्ष हो रहा है की हमेशा की तरह इस बार भी आने वाली 6 जनवरी 2016 को साँवरिया और जोधपुर शहर माहेश्वरी महिला संगठन के संयुक्त तत्वावधान में विशाल रक्तदान शिविर का आयोजन जोधपुर मे किया जाएगा | आप सभी मित्रों एवं स्वेच्छिक रक्तदाताओ से अनुरोध है की इस महान कार्य को सफल बनाने हेतु अधिक से अधिक संख्या मे भाग ले और सभी फ़ेसबुक और व्हाट्सअप ग्रूप मे प्रसारित कर इसे सफल बनान्ये मे अपना महत्वपूर्ण योगदान देवे.


साभार डॉ. नीलम जी मूंदड़ा
जोधपुर शहर माहेश्वरी महिला संगठन

निवेदनकर्ता
कैलाशचंद्र लढा
संस्थापक - साँवरिया

रविवार, 20 दिसंबर 2015

चमत्कारी औषधि तेजपात

एक साधारण सी दिखने वाली तेजपात का लाभ आपको चमत्कृत कर देगा -
तेजपात के औषधीय गुण:-
तेजपात के 5-6 पत्तों को एक गिलास पानी में इतने उबालें की पानी आधा रह जाए -इस पानी से प्रतिदिन सिर की मालिश करने के बाद नहाएं -इससे सिर में जुएं नहीं होती हैं जी हाँ महिलाओं के लिए एक उत्तम जूं नाशक है- .
चाय-पत्ती की जगह तेजपात के चूर्ण की चाय पीने से सर्दी-जुकाम,छींकें आना ,नाक बहना,जलन ,सिरदर्द आदि में शीघ्र लाभ मिलता है -
तेजपात के पत्तों का बारीक चूर्ण सुबह-शाम दांतों पर मलने से दांतों पर चमक आ जाती है -
तेजपात के पत्रों को नियमित रूप से चूंसते रहने से हकलाहट में लाभ होता है -
एक चम्मच तेजपात चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से खांसी में आराम मिलता है -
तेजपात के पत्तों का क्वाथ (काढ़ा) बनाकर पीने से पेट का फूलना व अतिसार आदि में लाभ होता है -
इसके 2-4 ग्राम चूर्ण का सेवन करने से उबकाई मिटती है -
दमा में - तेजपात ,पीपल,अदरक, मिश्री सभी को बराबर मात्र में लेकर चटनी पीस लीजिए और 1-1 चम्मच चटनी रोज खाएं 40 दिनों तक। फायदा सुनिश्चित है।
दांतों के लिए - सप्ताह में तीन दिन तेजपात के बारीक चूर्ण से मंजन कीजिए। दांत मजबूत होंगे, दांतों में कीड़ा नहीं लगेगा ,ठंडा गरम पानी नहीं लगेगा , दांत मोतियों की तरह चमकेंगे।
कपड़ों के बीच में तेजपात के पत्ते रख दीजिए ,ऊनी,सूती,रेशमी कपडे कीड़ों से बचे रहेंगे। अनाजों के बीच में 4-5 पत्ते डाल दीजिए तो अनाज में भी कीड़े नहीं लगेंगे। उनमें एक दिव्य सुगंध जरूर बस जायेगी।
अनेक लोगों के मोजों से दुर्गन्ध आती है ,वे लोग तेजपात का चूर्ण पैर के तलुवों में मल कर मोज़े पहना करें। पर इसका मतलब ये नहीं कि आप महीनों तक मोज़े धुलें ही न। वैसे भी अंदरूनी कपडे और मोज़े तो रोज धुलने चाहिए। मुंह से दुर्गन्ध आती है तो तेजपात का टुकड़ा चबाया करें। बगल के पसीने से दुर्गन्ध आती है तो तेजपात का चूर्ण पावडर की तरह बगलों में लगाया करें।
अगर अचानक आँखों कि रोशनी कुछ कम होने लगी है तो तेजपात के बारीक चूर्ण को सुरमे की तरह आँखों में लगाएं। इससे आँखों की सफाई हो जायेगी और नसों में ताजगी आ जायेगी जिससे आपकी दृष्टि तेज हो जायेगी। इस प्रयोग को लगातार करने से चश्मा भी उतर सकता है।
पेट में गैस की वजह से तकलीफ महसूस हो रही हो तो ३-४ चुटकी या ४ मिली ग्राम तेजपात का चूर्ण पानी से निगल लीजिए। एसीडिटी की तकलीफ में इसका लगातार सेवन बहुत फायदा करता है और पेट को आराम मिलता है।
तेजपात का अपने भोजन में लगातार प्रयोग कीजिए ,आपका ह्रदय मजबूत बना रहेगा ,कभी हृदय रोग नहीं होंगे।
पागलपन के लिए -एक एक ग्राम तेजपात का चूर्ण सुबह शाम रोगी को पानी या शहद से खिलाएं।या तेजपात के चूर्ण का हलुआ बनाकर खिलाएं। सूजी के हलवे में एक चम्मच तेजपात का चूर्ण डाल दीजिए। बन गया हलवा।
तेजपात के टुकड़ों को जीभ के नीचे रखा रहने दें ,चूसते रहे। एक माह में हकलाना खत्म हो जाएगा।
दिन में चार बार चाय में तेजपत्ता उबाल कर पीजिए ,जुकाम-जनित सभी कष्टों में आराम मिलेगा। या चाय में चायपत्ती की जगह तेजपत्ता डालिए। खूब उबालिए ,फिर दूध और चीनी डालिए।
पेट की किसी भी बीमारी में तेजपत्ते का काढा बनाकर पीजिए। दस्त, आँतों के घाव, भूख न लगना सभी में आराम मिलेगा।

कायाकल्प योग --सर्व रोग दूर करे -

कायाकल्प योग --सर्व रोग दूर करे ---
बुढ़ापे की आई सभी तरह की कमजोरी को दूर करता है ये योग
भृंगराज और काले तिल 250-250 ग्राम आवला 125 ग्राम लें।
सबको अलग अलग पीस छान कर 500ग्राम पुराना गुड अथवा शक्कर मिला कर प्रात 2 टेबल स्पून यानि 12 ग्राम सेवन करें। ( शुगर रोग वाले शक्कर नहीं मिलाये )
सर्व रोग दूर होते हैं।
अगर एक वर्ष खाएं तो अँधा देखने गूंगा बोलने और बहरा सुन ने लग जाता है। सफेद बाल काले हो जाते हैं। जिस के दांत गिर गये हैं फिर से आ जाते हैं। आयु दीर्घ होती है। बल बुद्धि वीर्य बढ़ता है।
इसको दूध के साथ लेना है ..पानी के साथ भी ले सकते है |
इसके सेवन काल में यद्यपि दुग्धपान का विधान है पर जिन्होंने इसका सेवन किया उन्होंने दूध भात लिया था।
इस प्रयोग से झुर्रियां मिट जाती है।
केश जङ से काले निकलते हैं।
श्रवण शक्ति बढती है वाणी विकार दूर होते हैं। स्मरणशक्ति अद्भुत हो जाती है।
नेत्र विकार दूर हो कर नेत्रज्योति बढ़ जाती है।
एक महीने के बाद लाभ होने लगता है।
सभी प्रकार के उदरमय रोग ठीक हो जाते हैं।
तीन महीने में वाणी मधुर हो जाती है। स्मरणशक्ति बढ़ जाती है। शारीरिक पीड़ा जोड़ों का दर्द अनिद्रा और चिडचिडापन मिट जाता है।
हर घटक द्रव्य शुद्ध और ताजा ही लें और इस सरल योग का लाभ उठायें।
कोई भी व्यक्ति ले सकता है |

मस्तिष्‍क की शक्ति बढ़ाने के उपाय

आयुर्वेद के जरिये मस्तिष्‍क की शक्ति बढ़ाने के उपाय

कई बार शारीरिक और मानसिक दुर्बलता या किसी लम्बी बीमारी के कारण मस्तिष्‍क पर असर पड़ने लगता है और हमारी स्मरण शक्ति कम हो जाती है। आइए इस स्‍लाइड शो के माध्‍यम से जानें कि आयुर्वेद के जरिये मस्तिष्‍क की शक्ति को कैसे बढ़ा सकते हैं।


आयुर्वेद और मस्तिष्‍क

अगर हमारा शरीर एक मंत्रालय है, तो मस्तिष्‍क उसका प्रधानमंत्री। इसकी मर्जी के बिना शरीर का कोई भी हिस्‍सा सही प्रकार काम नहीं कर सकता। कई बार अत्यधिक मानसिक परिश्रम व थकान, पाचन संस्थान की गड़बड़ी, शारीरिक और मानसिक दुर्बलता या किसी लम्बी बीमारी के कारण मस्तिष्‍क पर असर पड़ने लगता है और हमारी स्मरण शक्ति कम हो जाती है। आइए इस स्‍लाइड शो के माध्‍यम से जानें कि आयुर्वेद के जरिये मस्तिष्‍क की शक्ति को कैसे बढ़ा सकते हैं।

बादाम

बादाम मे पाये जाने वाले आयरन, कॉपर, फास्फोरस और विटामिन बी यह सभी औषधीय तत्व एक साथ क्रिया करते है। इसलिए बादाम मस्तिष्‍क, दिल और लीवर को ठीक से काम करते रहने मे मदद करता है। मस्तिष्‍क की शक्ति बढ़ाने के लिए पांच बादाम रात को पानी में भिगों दें। सुबह छिलके उतारकर बारीक पीस कर पेस्ट बना लें। अब एक गिलास दूध और उसमें इस पेस्‍ट को और दो चम्मच शहद को डालकर पी लें इससे आपको बहुत फायदा होगा।

ब्राह्मी

ब्राह्मी दिमागी शक्ति बढ़ाने की मशहूर जड़ी-बूटी है। ब्राह्मी में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट तत्व के कारण इसके नियमित सेवन से मस्तिष्‍क की शक्ति बढऩे लगती है। इसका एक चम्मच रस रोज पीना लाभदायक होता है। अगर आपको इसका रस पसंद नहीं है तो आप इसको चबाकर भी खा सकते है इसके 7 पत्ते खाने से भी वही लाभ मिलता है।

अलसी का तेल

अलसी का तेल आपकी एकाग्रता को बढाता है, मस्तिष्‍क की शक्ति को तेज करता है तथा सोचने समझने की शक्ति को भी बढ़ाता है। नियमित रूप से अलसी के तेल के सेवन से आपको मस्तिष्क सम्बन्धी कोई विकार नहीं होता।

सौंफ

सौंफ प्रतिदिन घर में प्रयोग किए जाने वाले मसालों में से एक है। इसका नियमित उपयोग सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है। सौंफ और मिश्री को बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को दो चम्मच दोनों समय भोजन के बाद लेते रहने से मस्तिष्क की कमजोरी दूर होती है।

अखरोट

अखरोट में ओमेगा -3 फैटी एसिड भरपूर मात्रा में पाया जाता हैं। इसमें मैगनीज, तांबा, पोटेशियम, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, जिंक और सेलेनियम जैसे मिनरल्स भी पाये जाते हैं। अखरोट विटामिन ई का बहुत अच्छा स्रोत हैं, जो हमारे मस्तिष्क के लिए काफी फायदेमंद होता हैं।

दालचीनी

दालचीनी सिर्फ गर्म मसाला ही नहीं, बल्कि एक औषधि भी है। यह कमजोर मस्तिष्‍क की अच्‍छी दवा है। रात को सोते समय नियमित रूप से एक चुटकी दालचीनी पाउडर को शहद के साथ मिलाकर लेने से मानसिक तनाव में राहत मिलती है और मस्तिष्‍क की शक्ति बढ़ती है।

जायफल

अपनी गर्म तासीर के कारण बहुत थोड़ी मात्रा में उपयोग होने वाला जायफल के सेवन से मस्तिष्‍क बहुत तेज बनाता है। इसको खाने से आपको कभी एल्‍जाइमर यानी भूलने की बीमारी नहीं होती।

काली मिर्च

छोटी सी दिखने वाली काली मिर्च खाने के स्‍वाद को बढ़ाने के साथ औषधीय गुणों से भरपूर भी है। मस्तिष्क की कमजोरी दूर करने एवं स्मरण शक्ति बढ़ाने में काली मिर्च लाभप्रद होती है। 25 ग्राम मक्खन में 5-6 कालीमिर्च मिलाकर नित्य चाटने से मस्तिष्‍क तेज होता है।

पतली आइब्रो वाले अपनाएं ये घरेलू नुस्खे



आइब्रो को निखारे घरेलू अंदाज

चेहरे की खूबसूरती को बढ़ाने में आइब्रो का महत्वपूर्ण योगदान होता है। आइब्रो अव्यवस्थित या बहुत ज्यादा मोटी या पतली होने पर चेहरा विचित्र लगने लगता है। यदि आपकी आइब्रो भी पतली हैं और आप इनसे छुटकारा पाना चाहते हैं तो आपको पार्लर जाने या कोई महंगी सर्जरी कराने की जरूरत नहीं, क्योंकि कुछ सस्ते घरेलू नुस्खों की मदद से इन्हें ठीक किया जा सकता है।

जैतून का तेल

जैतून का तेल असाधारण प्राकृतिक पौष्टिक उत्पाद है। नियमित रूप से अपने आइब्रो पर जैतून के तेल की मालिश करने से वे मोटी और सुंदर बनती हैं।

दूध

दूध या इससे बने उत्‍पादों में विटामिन और प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होता है। अपनी आइब्रो पर उसके आस पास की जगहों पर रात को सोने से पहले रूई को दूध में भिगो कर लगाने से उन्हें प्रोटीन और विटामिन मिलता है और वे सुंदर बनती हैं।

कैस्टर ऑयल

आइब्रो पर नियमित रूप से कैस्टर ऑयल लगाने से आइब्रो की मोटाई बढ़ती है और वे सुंदर बनती हैं। कैस्टर ऑयल आइब्रो ठीक करने का एक सस्ता व प्रभावी घरेलू उपाय है।

पेट्रोलियम जेली

वैसलीन लगाने से अपकी आइब्रो कंडीशंड और नम बनती हैं। पेट्रोलियम जेली से आपकी आइब्रो के बाल सीधे और मजबूत बनते हैं। आप दिन में दो-तीन बार आइब्रो में वैसलीन लगाकर इन्हें मोटा और संदर बना सकते हैं।

मेथी

नहाने से पहले या रात को सोने से पूर्व मेथी को पीस कर अपनी आई ब्रो पर लगाएं। आप इसका पेस्ट बनाकर बादम के तेल मं मिलाकर भी लगा सकते/सकती हैं। इसे लगाने से आपकी आइब्रो की त्‍वचा को नमी मिलेगी।

नारियल तेल

नारियल का शुद्ध तेल बालों के लिए लाभदायक होता है। इसे लगाने से आइब्रो मोटी होती हैं। इससे न सिर्फ आइब्रो के बाल तेजी से बढ़ते हैं बल्कि उनकी शेप भी बेहतर बनती है।

प्याज का रस

प्याज में सल्फर प्रचुर मात्रा में होता है। जो ब्लड सर्कुलेशन को बेहत बनाता है। प्याज का रस आइब्रो पर लगाने से उनके बालों को तेजी से बढ़ने में मदद मिलती है। नियमित रूप से प्याज का रस आइब्रो पर लगाने पर जल्द ही मोटी आइब्रो प्राप्त होती हैं।

एलोवेरा

एलोवेरा आइब्रो ही नहीं शरीर की तकरीबन हर समस्या के लिए लाभदायक होता है। इसकी ताजी पत्‍तियों को छील कर उसके अंदर के गूदे को अपनी आई ब्रो पर लगाने से आई ब्रो की ग्रोथ अच्छी होती है।

अंडे की जर्दी

रूई के फोहे से अंडे की जर्दी को आइब्रो पर लगाने से आइब्रो के बाले तेजी से बढ़ते हैं और उनकी शेप भी अच्छी होती है। अंडा में प्रोटीन काफी मात्रा में होती है जो बालों को बढ़ने में मदद करता है।

function disabled

Old Post from Sanwariya