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गुरुवार, 24 जनवरी 2019

क्रेडिट कार्ड का बेहतर उपयोग इसके दुष्परिणाम -"Minimum Amount Due" एक जाल है:

क्रेडिट कार्ड का बेहतर उपयोग कैसे किया जा सकता है ?
इसके दुष्परिणाम से बचने के लिए क्या नहीं करना चाहिए ?

क्रेडिट कार्ड आपके नकद प्रवाह के प्रबंधन में एक अच्छा साधन है, लेकिन यदि आप इसे बुद्धिमानी से उपयोग नहीं करते हैं तो आप अपने वित्तीय जीवन को परेशानी में डाल सकते हैं। मैं यंहा कुछ पॉइंट्स की व्याख्या कर रहा हु जो आपको क्रेडिट कार्ड के प्रभावी उपयोग में आपकी मदद कर सकते हैं:
अपनी क्रेडिट कार्ड की सीमा जानें: आपको अपनी क्रेडिट कार्ड की क्रेडिट सीमा से अवगत होना चाहिए। इस क्रेडिट सीमा को अनावश्यक रूप से न बढ़ाएं। आपकी सीमा को नियंत्रित करने से आपको अवांछित खरीद से बचने और धोखाधड़ी के जोखिम को कम करने में मदद मिलती है।
नोट: कई देशों में भारत जैसे दो कारक प्रमाणीकरण (two factor authentication )नहीं हैं। अगर आपके कार्ड की डिटेल्स किसी बहार के व्यक्ति के पास है तो वह बिना OTP के आपके कार्ड का दुरूपयोग कर सकता है। सतर्क रहे।
सही समय पे खर्च करे: भारत में क्रेडिट कार्ड कम्पनीज 20 दिनों (न्यूनतम) से लेकर 50 दिनों (अधिकतम) तक मुफ्त क्रेडिट अवधि प्रदान करती हैं। इस अवधि को अच्छे से उपयोग करने के लिए आप अपने खर्चो को सही समय पे कैसे करे ये कोई रॉकेट विज्ञान नहीं हैं। जब आपकी Billing cycle शुरू होती है तब अपने खर्चो को plan करे ताकि आप मुफ्त क्रेडिट अवधि का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठा पाए। मैं अमूमन Billing Date से 5–10 दिन पहले कुछ खर्च नहीं करता हु। अपने Cash flow को अच्छे से Manage करने के लिए इस मुफ्त क्रेडिट अवधि का पूरी तरह से उपयोग करें।
"Minimum Amount Due" एक जाल है: हमेशा पूर्ण भुगतान करें। "न्यूनतम राशि देय" (Minimum Amount Due) के जाल में न फंसे। हमेशा समय पे भुगतान करे। ये आपके क्रेडिट स्कोर को प्रभावित करता है।
रिवार्ड्स पॉइंट्स बढ़ाये: जब आप ऑनलाइन कुछ खरीदते हैं तो उत्पाद की कुल प्रभावी लागत की गणना करें (खरीद पर अर्जित Reward points की कटौती करने के बाद)। यदि कोई विशेष साइट, अपनी साइट पर किसी उत्पाद को खरीदने पर ज्यादा Reward points दे रही है, भले ही उत्पाद का मूल्य कुछ सौ रुपए अतिरिक्त हो, तो आपको आपको इस साइट से खरीदना चाहिए, बशर्ते प्रभावी लागत (Reward points की कटौती करने के बाद) यंहा कम है।
अपने खर्चों को प्री-प्लान एवं ट्रैक करें: देय तिथि से अपनी चुकौती क्षमता से अधिक खर्च करने की योजना न बनाएं। आपको पता होना चाहिए कि आप अपने क्रेडिट कार्ड पर क्या खर्च करना चाहते हैं। इससे आपको मासिक बजट योजना में मदद मिलेगी।
ज्यादा कार्ड्स न रखे: ऐसा करने से भुगतान में चूक होने की गुंजाइश ज्यादा रहती है। 1 या 2 कार्ड्स आमतौर पे प्रयाप्त होते है।

कैसे में अपने क्रेडिट स्कोर को बढ़ा सकता हूँ ?
आम तौर से अगर आप अपने सभी क्रेडिट कार्ड और लोन की किश्तों का पूरा और सही समय पर भुगतान करते हैं तो आपकी क्रेडिट रेटिंग अच्छी रहेगी।
क्रेडिट रेटिंग में unsecured लोन के लिए कुछ नेगेटिव पॉइंट होते हैं। इसलिए अगर आप के पास बहुत सारे क्रेडिट कार्ड हैं तो भी आपकी रेटिंग कम हो सकती है। कम रेटिंग का अर्थ है ज्यादा रिस्क। जिस व्यक्ति के पास बहुत ज्यादा संख्या में और बहुत ज्यादा रकम की क्रेडिट लिमिट हो वो व्यक्ति भी रिस्क हो सकता है।
अगर किसी व्यक्ति के हाल में 2–3 लोन या क्रेडिट कार्ड के आवेदन स्वीकार नहीं होते हैं तो भी उसकी रेटिंग कम हो सकती है। #creditcards #creditscore #cibilscore #loan #emi #savemoney #earnmoney #sanwariya #vinaycomputers

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संकष्टी गणेश चतुर्थी की पूजा

माघी संकष्टी (तिल चतुर्थी) विशेष
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संकष्टी गणेश चतुर्थी की पूजा

संकष्टी चतुर्थी माघ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी को कहा जाता है। वर्ष 2019 में 24 जनवरी को संकष्टी चतुर्थी पड़ रही है। इसे माघी चतुर्थी या तिल चौथ भी कहते हैं। बारह मास के अनुक्रम में यह सबसे बड़ी चतुर्थी मानी गई है। इस दिन भगवान श्री गणेश की आराधना सुख-सौभाग्य प्रदान करने होती है और कष्टों को दूर करने वाली होती है। इस चतुर्थी पर व्रत करके गणेशजी का पूजन करने से सारी विपदाएं दूर होती हैं।

वस्तुतः संकट चतुर्थी संतान की दीर्घायु हेतु भगवान गणेश और माता पार्वती की पूजा है। इस दिन पूजा करने से संतान के ऊपर आने वाले सभी कष्ट शीघ्रातिशीघ्र दूर हो जाते हैं। धर्मराज युधिष्ठिर न भीे भगवान श्री कृष्ण की सलाह पर इस व्रत को किया था।

गणेश भगवान का जन्मदिन
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शिव रहस्य ग्रंथ के अनुसार आदिदेव भगवान गणेश का जन्म माघ कृष्ण चतुर्थी को ही हुआ था। पूर्वांचल में इस दिन गणेश जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन से गणेश दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है। संकष्टी व्रत करने वाले भक्तों पर श्रीगणेश की कृपा बनी रहती है। संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने वाले श्रद्धालुओं के जीवन के सभी कष्टों का भगवान श्री गणेश निवारण करते हैं।

षोडशोपचार पूजा विधि
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इस व्रत की शुरुआत सूर्योदय से पूर्व या सूर्योदय काल से ही करनी चाहिए। सूर्यास्त से पहले ही गणेश संकट चतुर्थी व्रत  कथा-पूजा होती है। पूजा में तिल का प्रयोग अनिवार्य है। तिल के साथ गुड़, गन्ने और मूली का उपयोग करना चाहिए। इस दिन मूली भूलकर भी नहीं खानी चाहिए कहा जाता है कि मूली खाने धन -धान्य की हानि होती है। इस व्रत में चंद्रोदय के समय चन्द्रमा को तिल, गुड़ आदि का अर्घ्य देना चाहिए। साथ ही संकटहारी  गणेश एवं चतुर्थी माता को तिल, गुड़, मूली आदि से अर्घ्य देना चाहिए।

अर्घ्य देने के उपरांत ही व्रत समाप्त करना चाहिए। इस दिन निर्जला व्रत का भी विधान है माताएं निर्जला व्रत अपने पुत्र के दीर्घायु के लिए अवश्य ही करती है। इस दिन तिल का प्रसाद खाना चाहिए। गणेश जी को  दूर्वा तथा लड्डू अत्यंत प्रिय है अत: गणेश जी पूजा में दूर्वा और लड्डू जरूर चढ़ाना चाहिए।

पूजन सामग्री👉 (वृहद् पूजन के लिए ) -शुद्ध जल,दूध,दही,शहद,घी,चीनी,पंचामृत,वस्त्र,जनेऊ,मधुपर्क,सुगंध,लाल चन्दन,रोली,सिन्दूर,अक्षत(चावल),फूल,माला,बेलपत्र,दूब,शमीपत्र,गुलाल,आभूषण,सुगन्धित तेल,धूपबत्ती,दीपक,प्रसाद,फल,गंगाजल,पान,सुपारी,रूई,कपूर |

विधि- गणेश जी की मूर्ती सामने रखकर और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करें -और आवाहन करें -

गजाननं भूतगणादिसेवितम कपित्थजम्बू फल चारू भक्षणं |
उमासुतम शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम ||
आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव |
यावत्पूजा करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव ||

और अब प्रतिष्ठा (प्राण प्रतिष्ठा) करें -
  
अस्यैप्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा क्षरन्तु च |
अस्यै देवत्वमर्चार्यम मामेहती च कश्चन ||
आसन-रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्व सौख्यंकर शुभम |
आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः ||

पाद्य (पैर धुलना)

उष्णोदकं निर्मलं च सर्व सौगंध्य संयुत्तम |
पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं ते प्रतिगह्यताम ||

अर्घ्य(हाथ धुलना )-
    
अर्घ्य गृहाण देवेश गंध पुष्पाक्षतै :|
करुणाम कुरु में देव गृहणार्ध्य नमोस्तुते ||

आचमन
    
सर्वतीर्थ समायुक्तं सुगन्धि निर्मलं जलं |
आचम्यताम मया दत्तं गृहीत्वा परमेश्वरः ||

स्नान
    
गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदाजलै:|
स्नापितोSसी मया देव तथा शांति कुरुश्वमे ||

दूध् से स्नान

कामधेनुसमुत्पन्नं सर्वेषां जीवन परम |
पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थं समर्पितं ||

दही से स्नान
   
पयस्तु समुदभूतं मधुराम्लं शक्तिप्रभं |
दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यतां ||

घी से स्नान
  
नवनीत समुत्पन्नं सर्व संतोषकारकं |
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||

शहद से स्नान
  
तरु पुष्प समुदभूतं सुस्वादु मधुरं मधुः |
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||

शर्करा (चीनी) से स्नान
    
इक्षुसार समुदभूता शंकरा पुष्टिकार्कम |
मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||

पंचामृत से स्नान

पयोदधिघृतं चैव मधु च शर्करायुतं |
पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||

शुध्दोदक (शुद्ध जल ) से स्नान
   
मंदाकिन्यास्त यध्दारि सर्वपापहरं शुभम |
तदिधं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||

वस्त्र

सर्वभूषाधिके सौम्ये लोक लज्जा निवारणे |
मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रतिगृह्यतां ||

उपवस्त्र (कपडे का टुकड़ा )

सुजातो ज्योतिषा सह्शर्म वरुथमासदत्सव : |
वासोअस्तेविश्वरूपवं संव्ययस्वविभावसो ||

यज्ञोपवीत
   
नवभिस्तन्तुभिर्युक्त त्रिगुण देवतामयम |
उपवीतं मया दत्तं गृहाणं परमेश्वर : ||

मधुपर्क
   
कस्य कन्स्येनपिहितो दधिमध्वा ज्यसन्युतः |
मधुपर्को मयानीतः पूजार्थ् प्रतिगृह्यतां ||

गन्ध

श्रीखण्डचन्दनं दिव्यँ गन्धाढयं सुमनोहरम |
विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यतां ||

रक्त(लाल )चन्दन
   
रक्त चन्दन समिश्रं पारिजातसमुदभवम |
मया दत्तं गृहाणाश चन्दनं गन्धसंयुम ||

रोली
   
कुमकुम कामनादिव्यं कामनाकामसंभवाम |
कुम्कुमेनार्चितो देव गृहाण परमेश्वर्: ||

सिन्दूर
  
सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम् ||
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यतां ||

अक्षत

अक्षताश्च सुरश्रेष्ठं कुम्कुमाक्तः सुशोभितः |
माया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरः ||

पुष्प
   
पुष्पैर्नांनाविधेर्दिव्यै: कुमुदैरथ चम्पकै: |
पूजार्थ नीयते तुभ्यं पुष्पाणि प्रतिगृह्यतां ||

पुष्प माला
  
माल्यादीनि सुगन्धिनी मालत्यादीनि वै प्रभो |
मयानीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर: ||

बेल का पत्र
    
त्रिशाखैर्विल्वपत्रैश्च अच्छिद्रै: कोमलै :शुभै : |
तव पूजां करिष्यामि गृहाण परमेश्वर : ||

दूर्वा

त्वं दूर्वेSमृतजन्मानि वन्दितासि सुरैरपि |
सौभाग्यं संततिं देहि सर्वकार्यकरो भव ||

दूर्वाकर
    
दूर्वाकुरान सुहरिता नमृतान मंगलप्रदाम |
आनीतांस्तव पूजार्थ गृहाण गणनायक:||

शमीपत्र
  
शमी शमय ये पापं शमी लाहित कष्टका |
धारिण्यर्जुनवाणानां रामस्य प्रियवादिनी ||

अबीर गुलाल
  
अबीरं च गुलालं च चोवा चन्दन्मेव च |
अबीरेणर्चितो देव क्षत: शान्ति प्रयच्छमे ||

आभूषण
   
अलंकारान्महा दव्यान्नानारत्न विनिर्मितान |
गृहाण देवदेवेश प्रसीद परमेश्वर: ||

सुगंध तेल
   
चम्पकाशोक वकु ल मालती मीगरादिभि: |
वासितं स्निग्धता हेतु तेलं चारु प्रगृह्यतां ||

धूप

वनस्पतिरसोदभूतो गन्धढयो गंध उत्तम : |
आघ्रेय सर्वदेवानां धूपोSयं प्रतिगृह्यतां ||

दीप
   
आज्यं च वर्तिसंयुक्तं वहिन्ना योजितं मया |
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम ||

नैवेद्य
   
शर्कराघृत संयुक्तं मधुरं स्वादुचोत्तमम |
उपहार समायुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृह्यतां ||

मध्येपानीय
  
अतितृप्तिकरं तोयं सुगन्धि च पिबेच्छ्या |
त्वयि तृप्ते जगतृप्तं नित्यतृप्ते महात्मनि ||

ऋतुफल
  
नारिकेलफलं जम्बूफलं नारंगमुत्तमम |
कुष्माण्डं पुरतो भक्त्या कल्पितं
प्रतिगृह्यतां ||

आचमन
  
गंगाजलं समानीतां सुवर्णकलशे स्थितन |
आचमम्यतां सुरश्रेष्ठ शुद्धमाचनीयकम ||

अखंड ऋतुफल
   
इदं फलं मयादेव स्थापितं पुरतस्तव |
तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि ||

ताम्बूल पूंगीफलं

पूंगीफलम महद्दिश्यं नागवल्लीदलैर्युतम |
एलादि चूर्णादि संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यतां ||

दक्षिणा(दान)
   
हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसो: |
अनन्तपुण्यफलदमत : शान्ति प्रयच्छ मे ||

आरती

चंद्रादित्यो च धरणी विद्युद्ग्निंस्तर्थव च |
त्वमेव सर्वज्योतीष आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम ||

पुष्पांजलि

नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोदभवानि च |
पुष्पांजलिर्मया दत्तो गृहाण परमेश्वर: ||

प्रार्थना
   
रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्य रक्षक:
भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात ||
                                                          अनया पूजया गणपति: प्रीयतां न मम कहकर प्रणाम कर आरती के लिए खड़े हो जाये।

श्री गणेश जी की आरती

जय गणेश,जय गणेश,जय गणेश देवा |
माता जाकी पारवती,पिता महादेवा ||
एक दन्त दयावंत,चार भुजा धारी |
मस्तक पर सिन्दूर सोहे,मूसे की सवारी || जय ...

अंधन को आँख देत,कोढ़िन को काया |
बांझन को पुत्र देत,निर्धन को माया || जय ...

हार चढ़े,फूल चढ़े और चढ़े मेवा |
लड्डुअन का भोग लगे,संत करें सेवा || जय ...

दीनन की लाज राखो,शम्भु सुतवारी |
कामना को पूरा करो जग बलिहारी || जय ...

पौराणिक कथा
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भगवान शिव और माता पार्वती एक बार नदी किनारे बैठे हुए थे। उसी दौरान माता पार्वती को चौपड़ खेलने का मन हुआ। लेकिन उस समय वहां माता और भगवान शिव के अलाना कोई और मौजूद नहीं था, लेकिन खेल में हार-जीत का फैसला करने के लिए एक व्यक्ति की जरुरत थी। इस विचार के बाद दोनों ने एक मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसमें जान डाल दी और उससे कहा कि खेल में कौन जीता इसका फैसला तुम करना। खेल के शुरु होते ही माता पार्वती विजय हुई और इस प्रकार तीन से चार बार उन्हीं की जीत हुई। लेकिन एक बार गलती से बालक ने भगवान शिव का विजयी के रुप में नाम ले लिया। जिसके कारण माता पार्वती क्रोधित हो गई और उस बालक को लंगड़ा बना दिया। बालक उनसे क्षमा मांगता है और कहता है कि उससे भूल हो गई उसे माफ कर दें। माता कहती हैं कि श्राप वापस नहीं हो सकता लेकिन एक उपाय करके इससे मुक्ति पा सकते हो। माता पार्वती कहती हैं कि इस स्थान पर संकष्टी के दिन कुछ कन्याएं पूजा करने आती हैं, तुम उनसे व्रत की विधि पूछना और उस व्रत को श्रद्धापूर्वक करना।

संकष्टी के दिन कन्याएं वहां आती हैं और बालक उनसे व्रत की विधि पूछता और उसके बाद विधिवत व्रत करने से वो भगवान गणेश को प्रसन्न कर लेता है। भगवान गणेश उसे दर्शन देकर उससे इच्छा पूछते हैं तो वो कहता है कि वो भगवान शिव और माता पार्वती के पास जाना चाहता है। भगवान गणेश उसकी इच्छा पूरी करते हैं और वो बालक भगवान शिव के पास पहुंच जाता है। लेकिन वहां सिर्फ भगवान शिव होते हैं क्योंकि माता पार्वती भगवान शिव से रुठ कर कैलाश छोड़कर चली जाती हैं। भगवान शिव उससे पूछते हैं कि वो यहां कैसे आया तो बालक बताता है कि भगवान गणेश के पूजन से उसे ये वरदान प्राप्त हुआ है। इसके बाद भगवान शिव भी माता पार्वती को मनाने के लिए ये व्रत रखते हैं। इसके बाद माता पार्वती का मन अचानक बदल जाता है और वो वापस कैलाश लौट आती हैं। इस कथा के अनुसार भगवान गणेश का संकष्टी के दिन व्रत करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है और संकट दूर होते हैं।

संकष्टी चतुर्थी पूजा मुहूर्त
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24 जनवरी के दिन चतुर्थी तिथि रात्रि 08:53 तक रहेगी इससे पूर्व ही चतुर्थी पूजा करना श्रेष्ठ है।
रात्रि 4 बजकर 17 मिनट से 5:47 तक शुभ की चौघडी  इसके बाद 8:47 तक क्रमशः चर और लाभ की चौघडी में भी पूजन श्रेष्ठ है।
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मंगलवार, 22 जनवरी 2019

देवाधिदेव महादेव विशेष

देवाधिदेव महादेव विशेष
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भगवान् भोलेनाथ सदैव उपकारी और हितकारी देव है, शास्त्रों के अनुसार त्रिदेवों में शिवजी को संहार के देवता भी माना गया है, अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना की तुलना में शिवजी की पूजा-अर्चना को अत्यन्त सरल माना गया है, अन्य देवताओं की भाँति शिवजी को सुगंधित पुष्पमालाओं और मीठे पकवानों की आवश्यकता ही नहीं, शिव तो स्वच्छ जल, बिल्व पत्र, धतूरा से ही प्रसन्न हो जाते हैं।

शिवजी को मनोरम वेशभूषा और अलँकारों की आवश्यकता भी नहीं है, वे तो औघड़ बाबा हैं, जटाजूट धारी, गले में लिपटे नाग और रूद्राक्ष  की माला, शरीर पर बाघम्बर, चिता की भस्म लगाये एवम् हाथ में त्रिशूल पकड़े हुयें भगवान् भोलेनाथ सारे विश्व को अपनी पद्चाप तथा डमरू की कर्णभेदी ध्वनि से नचाते रहते हैं, इसीलिये शिवजी को नटराज की संज्ञा दी गई है।

भगवान् भोलेनाथ की वेशभूषा से जीवन और मृत्यु का बोध होता है, शीश पर गंगा और चन्द्रमा जीवन एवम् कला के द्योतक हैं, शरीर पर चिता की भस्म मृत्यु की प्रतीक है, यह जीवन गंगा की धारा की भांति चलते हुयें अन्त में मृत्यु सागर में लीन हो जाता है, रामचरितमानस में शिवजी को नाना वाहन नाना भेष वाले गणों के अधिपति कहे गयें है।

भगवान् शिवशंकरजी जन-सुलभ तथा आडम्बर विहीन वेष को ही धारण करते हैं, शिवजी नीलकंठ कहलाते हैं, क्योंकि समुद्र मंथन के समय जब देवगण एवम् असुरगण अद्भुत और बहुमूल्य रत्नों को हस्तगत कर रहे थे तब कालकूट महाविनाशक विष को अपने कंठ में धारण कर लिया, तभी से शिवजी नीलकंठ कहलाये, क्योंकि विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया था।

ऐसे परोपकारी और अपरिग्रही शिव का चरित्र वर्णित करने के लिए ही शिवमहापुराण की रचना की गई है, सज्जनों! सभी शिव-भक्तो को शिवपुराण अवश्य पढ़नी चाहिये, शिवपुराण पूर्णत: भक्ति ग्रन्थ है, शिवपुराण में कलियुग के पापकर्म से ग्रसित व्यक्ति को मुक्ति के लिये शिव-भक्ति का मार्ग सुझाया गया है।

मनुष्य को निष्काम भाव से अपने समस्त कर्म भगवान् शिव-शंकरजी को अर्पित कर देने चाहियें, वेदों और उपनिषदों में प्रणव ओऊम् के जप को मुक्ति का आधार बताया गया है प्रणव के अतिरिक्त गायत्री-मन्त्र के जप को भी शान्ति और मोक्षकारक कहा गया है, परन्तु शिव-पुराण में आठ संहिताओं का उल्लेख प्राप्त होता है, जो मोक्ष कारक हैं।

ये संहितायें हैं- विद्येश्वर संहिता, रुद्र संहिता, शतरुद्र संहिता, कोटिरुद्र संहिता, उमा संहिता, कैलास संहिता, वायु संहिता (पूर्व भाग) और वायु संहिता (उत्तर भाग) इस विभाजन के साथ ही सर्वप्रथम शिवपुराण' का माहात्म्य प्रकट किया गया है, इस प्रसंग में चंचुला नामक एक पतिता स्त्री की कथा है जो शिव-पुराण को सुनकर स्वयं सद्गति को प्राप्त हो जाती है, यही नहीं, वह अपने कुमार्गगामी पति को भी मोक्ष दिला देती है।

विद्येश्वर संहिता में शिवरात्रि व्रत, पंचकृत्य, ओंकार का महत्त्व, शिवलिंग की पूजा और दान के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है, शिवजी की भस्म और रुद्राक्ष का महत्त्व भी बताया गया है, रुद्राक्ष जितना छोटा होता है, उतना ही अधिक फलदायक होता है, खंडित रुद्राक्ष, कीड़ों द्वारा खाया हुआ रुद्राक्ष या गोलाई रहित रुद्राक्ष कभी धारण नहीं करना चाहिये।

सर्वोत्तम रुद्राक्ष वह है जिसमें स्वयं ही छेद होता है, सभी वर्ण के मनुष्यों को प्रात:काल की भोर वेला में उठकर सूर्य की ओर मुख करके देवताओं अर्थात् शिवजी का ध्यान करना चाहिये, प्रत्येक व्यक्ति को कमाये हुये धन के तीन भाग करके एक भाग धन वृद्धि में, एक भाग उपभोग में और एक भाग धर्म-कर्म में व्यय करना चाहिये, रुद्र-संहिता में शिवजी का जीवन-चरित्र वर्णित है, इसमें नारद मोह की कथा, सती का दक्ष-यज्ञ में देह त्याग, पार्वतीजी से विवाह का विस्तार से वर्णन है।

इस में मदन (काम) दहन, कार्तिकेय और गणेश पुत्रों का जन्म, पृथ्वी परिक्रमा की कथा, शंखचूड़ से युद्ध और उसके संहार की कथा का विस्तार से उल्लेख है, शिव-पूजा के प्रसंग में कहा गया है कि दूध, दही, मधु, घृत और गन्ने के रस (पंचामृत) से स्नान कराके बिल्वपत्र, चम्पक, पाटल, कनेर, मल्लिका तथा कमल के पुष्प चढ़ायें, फिर धूप, दीप, नैवेद्य और ताम्बूल अर्पित करें, इससे शिवजी प्रसन्न हो जाते हैं।

इसी संहिता में सृष्टि खण्ड के अन्तर्गत जगत् का आदि कारण भगवान् शिव-शंकरजी को माना गया हैं, शिवजी से ही आद्यशक्ति माया' का आविर्भाव होता हैं, फिर शिवजी से ही ब्रह्मा और विष्णु की उत्पत्ति बताई गई है, शतरुद्र संहिता में शिव के अन्य चरित्रों-हनुमानजी, श्वेत मुख और ऋषभदेवजी का वर्णन है, उन्हें शिवजी का अवतार कहा गया है।

शिवजी की आठ मूर्तियां भी बताई गई हैं, इन आठ मूर्तियों से भूमि, जल, अग्नि, पवन, अन्तरिक्ष, क्षेत्रज, सूर्य और चन्द्र अधिष्ठित हैं, इस संहिता में शिवजी के सुरम्य मनमोहक अर्द्धनारीश्वर रूप धारण करने की कथा भी बताई गयी है, यह स्वरूप सृष्टि-विकास में मैथुनी क्रिया के योगदान के लिए धरा गया था।

शिवपुराण की शतरुद्र संहिता के द्वितीय अध्याय में भगवान् शिवजी को अष्टमूर्ति कहकर उनके आठ रूपों का विस्तार से वर्णन किया गया है जो शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान एवम् महादेव के नामों से उल्लेख है, शिवजी के इन अष्ट मूर्तियों द्वारा पाँच महाभूत तत्व, ईशान (सूर्य), महादेव (चंद्र), क्षेत्रज्ञ (जीव) अधिष्ठित हैं।

चराचर विश्व को धारण करना (भव), जगत के बाहर भीतर वर्तमान रह स्पन्दित होना (उग्र), आकाशात्मक रूप (भीम), समस्त क्षेत्रों के जीवों का पापनाशक (पशुपति), जगत का प्रकाशक सूर्य (ईशान), धुलोक में भ्रमण कर सबको आह्लाद देना (महादेव) रूप है, इसी संहिता में भगवान् विष्णुजी द्वारा शिवजी के सहस्त्र नामों का वर्णन भी है।

साथ ही शिवरात्रि व्रत के माहात्म्य के संदर्भ में व्याघ्र और सत्यवादी मृग परिवार की कथा भी है, भगवान केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के बाद बद्रीनाथ में भगवान नर-नारायण का दर्शन करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे जीवन-मुक्ति भी प्राप्त हो जाती है, इसी आशय की महिमा को शिवपुराण के कोटिरुद्र संहिता में भी व्यक्त किया गया है-

तस्यैव रूपं दृष्ट्वा च सर्वपापै: प्रमुच्यते।
जीवन्मक्तो भवेत् सोऽपि यो गतो बदरीबने।।
दृष्ट्वा रूपं नरस्यैव तथा नारायणस्य च।
केदारेश्वरनाम्नश्च मुक्तिभागी न संशय:।।

इस संहिता में मनुष्यों द्वारा भगवान् शिवजी के लिये तप, दान और ज्ञान का महत्त्व समझाया गया है, यदि निष्काम कर्म से तप किया जाय तो उसकी महिमा स्वयं ही प्रकट हो जाती है, अज्ञान के नाश से ही सिद्धि प्राप्त होती है, शिवपुराण का अध्ययन करने से अज्ञान नष्ट हो जाता है, इस संहिता में विभिन्न प्रकार के पापों का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि कौन-से पाप करने से कौन-सा नरक प्राप्त होता है।

पाप हो जाने पर प्रायश्चित्त के उपाय आदि भी इसमें बताये गये हैं, उमा संहिता में देवी-पार्वतीजी के अद्भुत चरित्र तथा उनसे संबंधित लीलाओं का उल्लेख किया गया है, चूँकि पार्वतीजी भगवान् शिवजी के आधे भाग से प्रकट हुई हैं और भगवान शिव का आंशिक स्वरूप हैं, इसलिये इस संहिता में उमा-महिमा का वर्णन कर अप्रत्यक्ष रूप से भगवान् शिवजी के ही अर्द्धनारीश्वर स्वरूप का माहात्म्य प्रस्तुत किया गया है।

कैलास संहिता में ओंकार के महत्त्व का वर्णन है, इसके अलावा योग का विस्तार से उल्लेख है, इसमें विधिपूर्वक शिवोपासना, नन्दी श्राद्ध और ब्रह्मज्ञानी की विवेचना भी की गई है, गायत्री जप का महत्त्व तथा वेदों के बाईस महावाक्यों के अर्थ भी समझाये गये हैं, इस संहिता के पूर्व और उत्तर भाग में पाशुपत विज्ञान, मोक्ष के लिये शिव-ज्ञान की प्रधानता, हवन, योग और शिव-ध्यान का महत्त्व समझाया गया है।

भगवान् शिवजी ही चराचर जगत् के एकमात्र देवता हैं, शिवजी के निर्गुण और सगुण रूप का विवेचन करते हुये कहा गया है कि शिवजी ही हैं जो समस्त प्राणियों पर दया करते हैं, इस कार्य के लिये ही भोलेनाथ सगुण रूप धारण करते हैं, जिस प्रकार अग्नि तत्त्व और जल तत्त्व को किसी रूप विशेष में रखकर लाया जाता है,उसी प्रकार शिवजी अपना कल्याणकारी स्वरूप साकार मूर्ति के रूप में प्रकट करके पीड़ित व्यक्ति के सम्मुख आते हैं।

शिवजी की महिमा का गान ही इस पुराण का प्रतिपाद्य विषय है, भाई-बहनों! समय निकालकर विशेष रूप से आज ही के दिन (सोमवार) शिव-पुराण का पाठ अवश्य करना चाहिये, क्योंकि संसार की सभी वासना-तर्षणायें शिव-पुराण के स्वाध्याय से समाप्त हो जाती है एवम् समस्त मनोकामनायें पूर्ण होकर शिव-लोक की प्राप्ति होती है, आज सोमवार के पावन दिवस की पावन सुप्रभात् आप सभी को मंगलमय् हों।

जय महादेव!
ॐ नमः शिवाय!
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