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बुधवार, 17 अप्रैल 2024

गुरु अर्जुन देव जी जन्मदिवस विशेष

गुरु अर्जुन देव जी जन्मदिवस विशेष 

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हिन्दू धर्म और भारत की रक्षा के लिए यों तो अनेक वीरों एवं महान् आत्माओं ने अपने प्राण अर्पण किये हैं; पर उनमें भी सिख गुरुओं के बलिदान का उदाहरण मिलना कठिन है। पाँचवे गुरु श्री अर्जुनदेव जी ने जिस प्रकार आत्मार्पण किया, उससे हिन्दू समाज में अतीव जागृति का संचार हुआ।

सिख पन्थ का प्रादुर्भाव गुरु नानकदेव द्वारा हुआ। उनके बाद यह धारा गुरु अंगददेव, गुरु अमरदास से होते चैथे गुरु रामदास जी तक पहुँची। रामदास जी के तीन पुत्र थे। एक बार उन्हें लाहौर से अपने चचेरे भाई सहारीमल के पुत्र के विवाह का निमन्त्रण मिला। रामदास जी ने अपने बड़े पुत्र पृथ्वीचन्द को इस विवाह में उनकी ओर से जाने को कहा; पर उसने यह सोचकर मना कर दिया कि कहीं इससे पिताजी का ध्यान मेरी ओर से कम न हो जाये। उसके मन में यह इच्छा भी थी कि पिताजी के बाद गुरु गद्दी मुझे ही मिलनी चाहिए।

इसके बाद गुरु रामदास जी ने दूसरे पुत्र महादेव को कहा; पर उसने भी यह कह कर मना कर दिया कि मेरा किसी से वास्ता नहीं है। इसके बाद रामदास जी ने अपने छोटे पुत्र अर्जुनदेव से उस विवाह में शामिल होने को कहा। पिता की आज्ञा शिरोधार्य कर अर्जुनदेव जी तुरन्त लाहौर जाने को तैयार हो गये। पिताजी ने यह भी कहा कि जब तक मेरा सन्देश न मिले, तब तक तुम वहीं रहकर संगत को सतनाम का उपदेश देना।

अर्जुनदेव जी लाहौर जाकर विवाह में सम्मिलित हुए, इसके बाद उन्हें वहाँ रहते हुए लगभग दो वर्ष हो गये; पर पिताजी की ओर से कोई सन्देश नहीं मिला। अर्जुनदेव जी अपने पिताजी के दर्शन को व्याकुल थे। उन्होंने तीन पत्र पिताजी की सेवा में भेजे; पर पहले दो पत्र पृथ्वीचन्द के हाथ लग गये। उसने वे अपने पास रख लिये और पिताजी से इनकी चर्चा ही नहीं की। तीसरा पत्र भेजते समय अर्जुनदेव जी ने पत्रवाहक को समझाकर कहा कि यह पत्र पृथ्वीचन्द से नजर बचाकर सीधे गुरु जी को ही देना।

जब श्री गुरु रामदास जी को यह पत्र मिला, तो उनकी आँखें भीग गयीं। उन्हें पता लगा कि उनका पुत्र उनके विरह में कितना तड़प रहा है। उन्होंने तुरन्त सन्देश भेजकर अर्जुनदेव जी को बुला लिया। अमृतसर आते ही अर्जुनदेव जी ने पिता जी के चरणों में माथा टेका। उन्होंने उस समय यह शब्द कहे -

भागु होआ गुरि सन्त मिलाइया
प्रभु अविनासी घर महि पाइया।।

इसे सुनकर गुरु रामदास जी अति प्रसन्न हुए। वे समझ गये कि सबसे छोटा पुत्र होने के बावजूद अर्जुनदेव में ही वे सब गुण हैं, जो गुरु गद्दी के लिए आवश्यक हैं। उन्होंने भाई बुड्ढा, भाई गुरदास जी आदि वरिष्ठ जनों से परामर्श कर भादों सुदी एक, विक्रमी सम्वत् 1638 को उन्हें गुरु गद्दी सौंप दी। 

उन दिनों भारत में मुगल शासक अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहे थे। वे पंजाब से होकर ही भारत में घुसते थे। इसलिए सिख गुरुओं को संघर्ष का मार्ग अपनाना पड़ा। गुरु अर्जुनदेव जी को एक अनावश्यक विवाद में फँसाकर बादशाह जहाँगीर ने लाहौर बुलाकर गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद उन्हें गरम तवे पर बैठाकर ऊपर से गरम रेत डाली गयी। इस प्रकार अत्यन्त कष्ट झेलते हुए उनका प्राणान्त हुआ। 

बलिदानियों के शिरोमणि गुरु अर्जुनदेव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1556 को तथा बलिदान 30 मई, 1606 को हुआ।
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श्री दुर्गाष्टमी/नवमी सरल हवन विधि

श्री दुर्गाष्टमी/नवमी सरल हवन विधि
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नवरात्रि के पावन पर्व पर देवीसाधको के समक्ष आसान हवन विधि बता रहे है इस हवन को आप किसी पुरोहित के बिना भी कर सकते है। आशा है आप सभी इसका लाभ उठाएंगे।

हवन सामग्री👉 1- हवन कुंड, हवन सामग्री, काले,लाल, सफेद तिल, आम की लकड़ी, साबूत चावल, जौ, पीली सरसों, चना, काली उडद साबुत, गुगुल, अनारदाना, बेलपत्र, गुड़, शहद।

2- गाय का घी, कर्पूर, दीपक, घी की आहुति के लिये लंबा लकड़ी अथवा स्टील का चम्मच, हवन सामग्री मिलाने के लिये बड़ा पात्र, गंगाजल, लोटा या आचमनी, अनारदाना, पान के पत्ते, फूल माला, फल, भोग के लिये मिष्ठान, खीर आदि।

हवन आरम्भ करने से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र हो सके तो लाल रंग के धारण कर लें। इसके बाद ऊपर बताई १ नंबर हवन सामग्री को पात्र में डालकर मिला लें। या बाजार में मिली सामग्री भी प्रयोग कर सकते है।

इसके बाद हवन के लिये वेदी सुविधा अनुसार खुली जगह पर बनाए अथवा बाजार में मिलने वाली हवान वेदी का प्रयोग करें हवन वेदी को इस प्रकार स्थापित करे जिसमे हवन करने वाले का मुख पूर्व या उत्तर दिशा में आये।

इसके बाद अपने ऊपर गंगा जल छिड़के इसके बाद हवन पूजन सामग्री को भी गंगा जल से पवित्र कर लें। इसके बाद एक मिट्टी का अथवा जो भी उपलब्ध हो दिया प्रज्वलित करें दीपक को सुरक्षित स्थान पर अक्षत डाल कर स्थापित करे हवन के दौरान बुझे ना इसका ध्यान रखे। इसके बाद आम की लकड़ियों को हवन कुंड में रखे और कर्पूर की सहायता से जलाये। इसके बाद हाथ अथवा आचमनी से हवन कुंड के ऊपर से 3 बार जल को घुमा कर अग्नि देव को प्रणाम करें। अग्नि देव का यथा उपलब्ध सामग्री से पूजन करे मिष्ठान का भोग लगाएं, पुष्प माला हवन कुंड पर चढ़ाए ना कि अग्नि में डाले, तदोपरांत अग्नि देव से मानसिक प्रार्थना करे है अग्नि देव में जिन देवी देवताओं के निमित्त हवन कर रहा हूँ उनका भाग उनतक पहुचाने का कष्ट करें।

इसके बाद सर्वप्रथम पंच देवो की आहुति निम्न प्रकार मंत्र बोलते हुए दे मंत्र के बाद स्वाहा अवश्य लगाए स्वाहा के साथ ही आहुति भी अग्नि में अर्पण करते जाए।

ॐ गं गणपतये स्वाहा
ॐ रुद्राय स्वाहा
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्वाहा
ॐ सूर्याय स्वाहा
ॐ अग्निदेवाय स्वाहा

निम्न मंत्रो से केवल घी की आहुती दे तथा आहुति से शेष बचा घी एक कटोरी में जल भर कर रखे उसमे डालते जाए।

इसके बाद निम्न मंत्रो से भी घी की आहुति दें तथा शेष घी की कटोरी के जल में डालते रहे।

ॐ दुर्गा देवी नमः स्वाहा
ॐ शैलपुत्री देवी नमः स्वाहा
ॐ ब्रह्मचारिणी देवी नमः स्वाहा
ॐ चंद्र घंटा देवी नमः स्वाहा 
ॐ कुष्मांडा देवी नमः स्वाहा
ॐ स्कन्द देवी नमः स्वाहा
ॐ कात्यायनी देवी नमः स्वाहा
ॐ कालरात्रि देवी नमः स्वाहा
ॐ महागौरी देवी नमः स्वाहा
ॐ सिद्धिदात्री देवी नमः स्वाहा

इन आहुतियों के बाद कम से कम 1 माला नवार्ण मंत्र से आहुति डाले

नवार्ण मंत्र

'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे नमः स्वाहा'
 
नवार्ण मंत्र से आहुति के बाद साधक गण जिन्हें सप्तशती मंत्रो से हवन नही करना वे बची हुई हवन सामग्री को पान के पत्ते पर रखकर साथ मे अनार दाना और ऊपर बताई नंबर 2 सामग्री लेकर अग्नि में घी की धार बना कर छोड़ दे तथा हाथ मे जल लेकर हवन कुंड के चारो तरफ घुमाकर जमीन पर छोड़ दे इसके बाद माता की आरती कर क्षमा प्रार्थना करले इसके बाद कटोरी वाले जल को पूरे घर मे छिड़क दें।

सप्तशती पाठ करने वाले लोग दुर्गा सप्तशती के पाठ के बाद हवन खुद की मर्जी से कर लेते है और हवन सामग्री भी खुद की मर्जी से लेते है ये उनकी गलतियों को सुधारने के लिए है।

दुर्गा सप्तशती के वैदिक आहुति की सामग्री को पहले ही एकत्रित कर रखें

(एक बार ये भी करके देखे और खुद महसुस करे चमत्कारो को)

प्रथम अध्याय👉 एक पान देशी घी में भिगोकर 1 कमलगट्टा, 1 सुपारी, 2 लौंग, 2 छोटी इलायची, गुग्गुल, शहद यह सब चीजें सुरवा में रखकर खडे होकर आहुति देना।

द्वितीय अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, गुग्गुल विशेष।

तृतीय अध्याय👉  प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक सं. 38 शहद।

चतुर्थ अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं.1से11 मिश्री व खीर विशेष।

चतुर्थ अध्याय👉 के मंत्र संख्या 24 से 27 तक इन 4 मंत्रों की आहुति नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से देह नाश होता है। इस कारण इन चार मंत्रों के स्थान पर ओंम नमः चण्डिकायै स्वाहा’ बोलकर आहुति देना तथा मंत्रों का केवल पाठ करना चाहिए इनका पाठ करने से सब प्रकार का भय नष्ट हो जाता है।

पंचम अध्ययाय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं. 9 मंत्र कपूर, पुष्प, व ऋतुफल ही है।

षष्टम अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं. 23 भोजपत्र।

सप्तम अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक सं. 10 दो जायफल श्लोक संख्या 19 में सफेद चन्दन श्लोक संख्या 27 में इन्द्र जौं।

अष्टम अध्याय👉  प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक संख्या 54 एवं 62 लाल चंदन।

नवम अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या श्लोक संख्या 37 में 1 बेलफल 40 में गन्ना।

दशम अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 5 में समुन्द्र झाग 31 में कत्था।

एकादश अध्याय👉  प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 2 से 23 तक पुष्प व खीर श्लोक संख्या 29 में गिलोय 31 में भोज पत्र 39 में पीली सरसों 42 में माखन मिश्री 44 मेें अनार व अनार का फूल श्लोक संख्या 49 में पालक श्लोक संख्या 54 एवं 55 मेें फूल चावल और सामग्री।

द्वादश अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 10 मेें नीबू काटकर रोली लगाकर और पेठा श्लोक संख्या 13 में काली मिर्च श्लोक संख्या 16 में बाल-खाल श्लोक संख्या 18 में कुशा श्लोक संख्या 19 में जायफल और कमल गट्टा श्लोक संख्या 20 में ऋीतु फल, फूल, चावल और चन्दन श्लोक संख्या 21 पर हलवा और पुरी श्लोक संख्या 40 पर कमल गट्टा, मखाने और बादाम श्लोक संख्या 41 पर इत्र, फूल और चावल

त्रयोदश अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 27 से 29 तक फल व फूल।

नोट👉 ऊपर दिए गए मंत्र संख्या अनुसार हवन करें शेष मंत्रो में सामान्य हवन सामग्री का ही प्रयोग करे हवन के आरंभ एवं अंत मे यथा सामर्थ्य अधिक से अधिक नवार्ण मंत्र से आहुति डाले घी से दी गई आहुति को पात्र के जल में छोड़ते रहना है। नवार्ण आहुति के बाद पूर्ण आहुति के लिये एक सूखा नारियल (गोला) में सामग्री भर कर अग्नि में डाले तथा शेष बची सामग्री को नारियल पर घी की धार बांधते हुए उसी के ऊपर छोड़ दें आहुतियों के बाद अंत मे माता से प्रार्थना कर हाथ मे जल लेकर हवन कुंड के चारो तरफ घुमाकर जमीन पर छोड़ दे इसके बाद माता की आरती कर क्षमा प्रार्थना कर अग्नि से भस्मी निकालकर घर के सभी सदस्यों के तिलक करें पात्र के घी मिश्रित जल को घर मे छिड़क देंने से नकारत्मक शक्तियां खत्म हो जाती है। हवन के उपरांत यथा सामर्थ्य कन्याओं को भोजन करा दक्षिणा दे तदोपरान्त स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करें।

देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम् 
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न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः . न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् .. १

विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् . तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति .. २ 

पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः . मदीयोऽयं त्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति .. ३

जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया . तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति .. ४

परित्यक्ता देवा विविधविधसेवाकुलतया मया पञ्चा शीतेरधिकमपनीते तु वयसि . इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम् .. ५

श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा निरातङ्को रङ्को विहरति चिरं कोटिकनकैः . तवापर्णे कर्णे विशति मनु वर्णे फलमिदं जनः को जानीते जननि जननीयं जपविधौ .. ६

चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपतिः . कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम्  ७

न मोक्षस्याकांक्षा भवविभववाञ्छापि च न मे न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः . अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपतः .. ८

नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभिः . श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव .. ९

आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि . नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति .. १० 

जगदम्ब विचित्र मत्र किं परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि . अपराधपरम्परापरं न हि माता समुपेक्षते सुतम् .. ११

मत्समः पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि . एवं ज्ञात्वा महादेवि यथायोग्यं तथा कुरु .. १२

माँ दुर्गा की आरती
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जय अंबे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ ॐ जय…
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥ ॐ जय…
कनक समान कलेवर, रक्तांबर राजै ।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥ ॐ जय…
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥ ॐ जय…
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत सम ज्योती ॥ ॐ जय…
शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥ॐ जय…
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भय दूर करे ॥ॐ जय…
ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥ॐ जय…
चौंसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैंरू ।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥ॐ जय…
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता ।
भक्तन की दुख हरता, सुख संपति करता ॥ॐ जय…
भुजा चार अति शोभित, वरमुद्रा धारी ।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥ॐ जय…
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥ॐ जय…
श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे ॥ॐ जय…

श्री देवी जगदंबार्पणमस्तु
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सोमवार, 15 अप्रैल 2024

2014 से जारी हर "प्रयोग" का पोस्टमॉर्टम उसकी "प्रयोगशाला" में जारी है और समय बताएगा कि इन "प्रयोगों के प्रायोजकों और आयोजकों" के साथ वो क्या करता है।

#सब्जेक्ट
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फ़िल्म मुन्नाभाई एमबीबीएस में एक क़िरदार था 'सब्जेक्ट' जिसका असली नाम था आनंद लेकिन वर्षों से किसी तरह की कोई शारीरिक प्रतिक्रिया न देने, ज़रा सा भी न हिलने डुलने, यहाँ तक कि पलक तक न झपकाने की वजह से उसको नाम दे दिया गया 'सब्जेक्ट'

'सब्जेक्ट' मेडिकल कॉलेज में पढ़ने आने वाले छात्रों के लिये भी कौतूहल का सब्जेक्ट (विषय) था। सब केवल उसे देखते, निहारते और चले जाते। 

ये देश भी वर्षों से ऐसा ही एक 'सब्जेक्ट' बना हुआ था, जो कभी कोई प्रतिक्रिया ही नहीं देता था, न हिलता था, न डुलता था, न पलकें झपकाता था। बस एकटक अपने साथ हो रहे न्याय, अन्याय, अच्छे, बुरे को नियति मानकर सब सहन कर रहा था। 

जब चाहे आतंकियों की गोलियों, बम धमाकों का शिकार बन जाता था, विदेशों में उसको कोई पूछता नहीं था, अदना सा पाकिस्तान जब चाहे उसके साथ जो मन में आये कर जाता था। असल में ये देश 'सब्जेक्ट' था नहीं लेकिन उसे 'सब्जेक्ट' बनाया गया। एक परिवार ने लोकतंत्र के नाम पर किसी तानाशाह के जैसे इस देश पर राज किया, उसके दरबार का केवल एक ही नियम था या तो झुक जाओ या कट जाओ। 

कहने को ये देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, लेकिन इसकी हर संवैधानिक संस्था को, इसके सिस्टम को इस तरह सड़ाया गलाया गया,  तोड़ा मरोड़ा गया कि ये सब केवल एक परिवार के इशारों पर नाचने के लिए बाध्य हो गए, यहाँ तक कि न्यायिक व्यवस्था भी इससे अछूती नहीं रही। 

स्वतंत्रता के बाद से सिर्फ 1998 से 2004 और 2014 से 2019 का कालखंड ही पूरी तरह ग़ैर कांग्रेस शासित रहा है। 1998 से 2004 अटलजी का कार्यकाल रहा, घटक दलों को साथ लेकर अपना कार्यकाल पूर्ण करने वाली भी ये पहली सरकार थी। उसके पहले की हर ग़ैर कांग्रेस शासित सरकार का क्या हश्र हुआ ये सबको पता है। बिना सत्ता के कांग्रेस, खासकर देश को अपने बाप की जागीर समझने वाले परिवार और उसके चाटुकारों की स्थिति जल बिन मछली जैसी हो जाती है।

अटलजी का कार्यकाल परिवार और उनके चरण चाटुकारों को बेहद नागवार गुज़र रहा था। अटलजी ने देश को पहले से अच्छी स्थिति में ला दिया था लेकिन अपने सबसे वफ़ादार कुत्तों यानी कि 'लुटियंस गैंग' यानी पत्रकारों की वो बिकी हुई जमात जो अपने आकाओं के कहने पर कुछ भी करने को तैयार रहती है, उसकी मदद से परिवार और उसके खास चरण भाटों ने अटलजी को घेरना शुरू किया। अति उत्साह में स्व. प्रमोद महाजन जी "शाइनिंग इंडिया" का नारा ले आये और इसी "शाइनिंग इंडिया" को ताक़तवर लुटियंस गैंग ने अटलजी के खिलाफ़ इस क़दर इस्तेमाल किया कि सब कुछ अच्छा, बेहतर करने के बावजूद अटलजी की सरकार चली गई, इसी से क्षुब्ध होकर स्व. अटलजी ने सक्रिय राजनीति से सदा के लिए सन्यास ले लिया था।

"पूत के पाँव पालने में नज़र आ जाते हैं" कांग्रेस को भी 2002 में ही नरेंद्र मोदी की ताक़त, कठोरता, निडरता का अंदाज़ा हो गया था। उसको लग गया था कि अगर इस पूत को पालने में ही ख़त्म नहीं किया गया तो हमारे लिए बहुत बड़ी मुसीबत साबित हो सकता है। लिहाज़ा फिर एक बार अपनी वफ़ादार गैंग को काम पर लगाया गया और मोदी को रोकने, बदनाम करने, बर्बाद करने की हरसंभव कोशिशें की गईं। इशरत जहां एनकाउंटर मामले में आज के भाजपा अध्यक्ष और तब के गुजरात के गृहमंत्री अमित शाह को जेल में डाल दिया गया। स्वतंत्र भारत के इतिहास में ये पहला और अंतिम उदाहरण है जब किसी राज्य के इतने बड़े स्तर के मंत्री को पद पर रहते हुए जेल में डाल दिया गया।
तब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को घंटों सीबीआई दफ्तर में बिठाकर पूछताछ की गई, उन पर झूठे आरोप लगाए गए। अगर आप कड़ियों को जोड़ना शुरू करेंगे तो पाएंगे कि साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित, असीमानंद को वर्षों तक झूठे आरोपों में जेल में बंद रखकर यातनाएं देना, इशरत को बेटी बताना, बाटला हाउस एनकाउंटर पर आतंकियों के लिए आँसू बहाना, भगवा आतंकवाद, हिन्दू आतंकवाद, 26/11 आरएसएस की साज़िश बताना ये सब उसी कड़ी का हिस्सा थे। 

क्योंकि 'पारखियों' को अंदाज़ा हो गया था कि इस मोदी के आगे बढ़ने की हर राह में रोड़े अटका दो वरना ये हमें रोड़ पर ले आएगा। लेकिन नियति भी कुछ और ही तय करके बैठी थी। जिस मोदी को रोकने के लिए परिवार और लुटियंस गैंग ने अपनी पूरी ताक़त झोंक दी थी उसी मोदी को नियति ने इन सबसे ताक़तवर बनाकर इन्हीं की छाती पर मूँग दलने के लिए सत्ता के सिंहासन पर बिठा दिया। जिस पाकिस्तान के पास परमाणु बम होने की धमकी अपने ही देशवासियों को देकर उसे आतंकवाद फैलाने दिया गया उसी पाकिस्तान को वो दो दो बार घर में घुसकर मार आया।

सत्ता संभालने के बाद से मोदी ने 'सब्जेक्ट' बन चुकी इस देश की जनता को जादू की झप्पी से, अपने कामों से, अपने समर्पण से इतना आंदोलित कर दिया कि वो प्रतिक्रिया देने लगी, उसके निष्प्राण शरीर में पहली बार हलचल महसूस होने लगी। जब परिवार और उसके खासमखास चरण भाटों को लगा कि इस बार केवल लुटियंस गैंग से काम नहीं हो पायेगा, कुछ और भी करना पड़ेगा तो इस बार लुटियंस गैंग के साथ साथ अपने द्वारा कृतार्थ नाकाबिल बुद्धिजीवियों, लेखकों, फिल्मकारों, कलाकारों को भी काम पर लगाया गया। 

पिछले पाँच वर्षों में लुटियंस गैंग और वामपंथी विचारधारा के लोगों ने तमाम तरह के झूठ जनता में फैलाने के प्रयास किये। आये दिन नए नए प्रोपेगैंडा सेट किये जाने लगे, टॉक शो आयोजित किये जाने लगे, झूठ फैलाने के लिए अब तक जिन्हें हम पत्रकार समझते रहे उन बिकाऊ, चरण चाटु पत्रकारों ने पोर्टल शुरू किये, सारे भ्रष्ट दलों ने मिलकर महागठबंधन बनाया। इनका पूरा घोषणापत्र ही देश और देश की जनता के ख़िलाफ़ बनाया गया, विकास, सुरक्षा कोई मुद्दा नहीं बल्कि आतंकियों को और हमले करने देने की सुविधाएं तक परोक्ष रूप से लिखी गईं हैं। 

उसको मौत का सौदागर, हिटलर, चोर, बीवी को छोड़ने वाला, माँ का इस्तेमाल करने वाला, नीच, नपुंसक यहाँ तक कि परिवार की बेटी द्वारा खुल्लमखुल्ला गालियाँ तक दिलवाई गईं। उसने बहुत सहन किया, वर्षों से सहन कर रहा था लेकिन उसके भी सब्र का बाँध आखिर टूट ही गया। अब उसने भी जवाब देना शुरू कर दिया है, खुली चुनौती दे रहा है, ललकार रहा है, अब वो गड़े मुर्दे उखाड़ रहा है, वो बता रहा है कि कैसे मि. क्लीन भ्रष्टाचारी नम्बर वन थे, कैसे उन्होंने देश की सुरक्षा के लिए तैनात आईएनएस विराट और नौसेना का इस्तेमाल अपनी मौज मस्ती के लिए किया था।

अभेद्य किले में सेंध उसने लगा दी है। जब तुम्हारे झूठ का जवाब उसने सच्चाई से देना शुरू किया तो तुम तिलमिला उठे, अब नैतिकता की दुहाई दे रहे हो, अब बोल रहे हो कि 'चौकीदार चोर है' का नारा हमारी पार्टी का नहीं है। अब क्यों बोल रहे हो क्योंकि जिसे तुम 'सब्जेक्ट' समझ रहे थे असल में वो 'मुन्नाभाई' निकला।

उसने तुम्हारी चूलें हिला दी हैं, उसकी कोई काट तुम्हारे पास नहीं है, 2014 से जारी हर "प्रयोग" का पोस्टमॉर्टम उसकी "प्रयोगशाला" में जारी है और समय बताएगा कि इन "प्रयोगों के प्रायोजकों और आयोजकों" के साथ वो क्या करता है।

उसे करीब से जानने वाले बताते हैं कि उसका "मौन" उसकी "वाणी" से ज़्यादा घातक है। 

अबकी बार चार सौ पार ✌🏻✌🏻

ताकि सनद रहे..

#RePost_Edited

गुरुवार, 11 अप्रैल 2024

इंदिरा ने सत्ता के मद में चूर होकर संतों, साधुओं, गायों और जनता पर अंधाधुंध गोलियों की बारिश करवा दी, हजारों गाय, साधु, संत और आमजन मारे गए।

आपको याद होगा की इंदिरा गाँधी, करपात्री जी महाराज के पास आशीर्वाद लेने गई तब करपात्री जी ने कहा आशीर्वाद तो दूँगा लेकिन सरकार बनते ही पहले गौ हत्या के विरुद्ध कानून बना कर गौ हत्या बंद करनी होगी।
इंदिरा ने हामी भरी, दो महीने बाद करपात्री जी इंदिरा से मिले, उनका वादा याद दिला कर गौ हत्या के विरुद्द कानून बनाने के लिए कहा तो इंदिरा जी ने कहा कि महाराज जी अभी तो मैं नई हूँ, कुछ समय दीजिए। कुछ समय बाद करपात्री जी फिर गए और कानून की मांग की लेकिन इंदिरा ने फिर टाल दिया।
कई बार मिलने वादा याद दिलाने के बाद भी जब इंदिरा ने गौ हत्या बंद नहीं की, कानून नहीं बनाया तो 7 नवम्बर 1966, उस दिन कार्तिक मास, शुक्‍ल पक्ष की अष्‍टमी तिथि, देश का संत समाज, शंकराचार्य, अपने छत्र आदि छोड़ पैदल ही, आम जनता के साथ, गायों को आगे कर संसद कूच किया।करपात्री जी के नेतृत्व में जगन्नाथपुरी, ज्योतिष पीठ व द्वारका पीठ के शंकराचार्य, वल्लभ संप्रदाय के सातों पीठों के पीठाधिपति, रामानुज संप्रदाय, मध्व संप्रदाय, रामानंदाचार्य, आर्य समाज, नाथ संप्रदाय, जैन, बौद्ध व सिख समाज, निहंग व हजारों की संख्या में नागा साधुओं को पंडित लक्ष्मीनारायण जी चंदन तिलक लगाकर विदा कर रहे थे।
लालकिला मैदान से आरंभ होकर चावड़ी बाजार होते हुए पटेल चौक से संसद भवन पहुंचने विशाल जुलूस ने पैदल चलना आरंभ किया। रास्ते में घरों से लोग फूल वर्षा रहे थे।

हिंदू समाज के लिए ऐतिहासिक दिन था, सभी शंकराचार्य और पीठाधिपति पैदल चलते हुए संसद भवन के पास मंच पर समान कतार में बैठे।
उसके बाद से आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ। नई दिल्ली का पूरा इलाका लोगों की भीड़ से भरा था। संसद गेट से लेकर चांदनी चौक तक सिर ही सिर दिखाई दे रहे थे। कम से कम 10 लाख लोगों की भीड़ जुटी थी, जिसमें 10 से 20 हजार तो केवल महिलाएं ही शामिल थीं। जम्मू-कश्मीर से लेकर केरल तक के लोग गौ हत्या बंद कराने के लिए कानून बनाने की मांग लेकर संसद के समक्ष जुटे थे। उस वक्त इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी और गुलजारी लाल नंदा गृहमंत्री थे।

इस सिंहनाद को देख कर इंदिरा ने सत्ता के मद में चूर होकर संतों, साधुओं, गायों और जनता पर अंधाधुंध गोलियों की बारिश करवा दी, हजारों गाय, साधु, संत और आमजन मारे गए। गौ रक्षा महाभियान समिति के तत्कालीन मंत्रियों में से एक और पूरी घटना के गवाह, प्रसिद्ध इतिहासकार एवं लेखक आचार्य सोहनलाल रामरंग के अनुसार इस गोलीबारी में कम से कम 10 हजार से अधिक  मार दिये गये।

इंदिरा ने ढकने के लिए ट्रक बुलाकर मृत, घायल, जिंदा सभी को उसमें ठूंसा जाने लगा। जिन घायलों के बचने की संभावना थी, उनकी भी ट्रक में लाशों के नीचे दबकर मौत हो गई। आखिरी समय तक पता ही नहीं चला कि सरकार ने उन लाशों को कहां ले जाकर फूंक डाला या जमीन में दबा डाला। पूरे शहर में कर्फ्यू लागू कर दिया।
तब करपात्री जी महाराज ने मरी हुई गायों के गले से लिपट कर रोते हुए कहा था कि "हम तो साधु हैं, किसी का बुरा नहीं करते लेकिन तूने माता समान निरपराध गायों को मारा है, जा इसका फल तुझे भुगतना पड़ेगा, मैं श्राप देता हूँ कि एक दिन तेरी देह भी इसी प्रकार गोलियों से छलनी होगी और तेरे कुल और दल का विनाश करने के लिए मैं हिमालय से एक ऐसा तपस्वी भेजूँगा जो तेरे दल और कुल का नाश करेगा"।

जिस प्रकार करपात्री जी महाराज का आशीर्वाद सदा सफल ही होता था उसी प्रकार उनका श्राप भी फलीभूत होता था।

इस घटना की चर्चा गावँ गावँ में बच्चे बच्चे की जुबान पर थी और सभी इंदिरा को गालियां, बददुआएं दे रहे थे कि "हत्यारी ने गायों को मरवा दिया इसका भला नहीं होगा, भगवान करे ये भी इसी प्रकार मरे। भगवान इसका दंड जरूर देंगे"।

अब इसे संयोग कहेंगे या करपात्री जी महाराज का श्राप कि इंदिरा का शरीर ठीक गोपाष्टमी के दिन उसी प्रकार गोलियों से छलनी हुआ जैसे करपात्री जी महाराज ने श्राप दिया था और अब नरेंद्र दामोदर मोदी के रूप में वह तपस्वी भी मौजूद है जो कांग्रेस का विनाश कर रहा है, जिसका खुला आव्हान है 
"कांग्रेस मुक्त भारत"

सोचिये क्या ये संयोग है ?
1- संजय गांधी मरे आकाश में तिथि थी गोपाष्टमी ,
2- इन्दिरा गाँधी मरी आवास में तिथि थी गोपाष्टमी,
3- राजीव गाँधी मरे मद्रास में तिथि थी गोपाष्टमी

साधु संतों का श्राप व गौमाता की करुण पीड़ा ने इंदिरा को मारा।

#गौवंश 
#गौसेवा 
#गौ_माता_राष्ट्र_माता 
Bajrang Dal 
#जय_श्री_राम🚩

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