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गुरुवार, 28 जनवरी 2021

करे सदुपयोग जमीन का जो हो खाली य़ा बेकार शुरू करे मखाना की खेती पैसे मिलेंगे जीवन में भरमार


 📌  करे सदुपयोग जमीन का जो हो खाली य़ा बेकार शुरू करे मखाना की खेती पैसे मिलेंगे जीवन में भरमार

इस युवा किसान ने बेकार ज़मीन में की मखाने की खेती, सालभर में कमाएं 5 लाख रुपए

आज के समय में कई युवा किसानों का खेती की तरफ रुझान बढ़ा है. दरभंगा के युवा किसान धीरेन्द्र भी उन्हीं में से एक है. वे आधुनिक खेती के जरिए अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं. दरअसल, धीरेन्द्र ने बरसात के समय में जलभराव के कारण खाली पड़ी रहने वाली जमींन पर मखाने की खेती शुरू की. बेहद कम इन्वेस्टमेंट में उन्होंने इस जमींन को कमाई का एक जरिया बना लिया है. इससे वे साल भर लाखों रुपए की आय अर्जित कर रहे हैं.

एक समय खेती करना छोड़ दिया
दरभंगा के बेलबाड़ा गाँव से ताल्लुक रखने वाले धीरेन्द्र सिंह की सात बीघा जमीन ऐसी थी जिसमें जलभराव के कारण कोई फसल नहीं हो पाती थी. धान की खेती भी इसमें असफल रही है. लिहाजा यह जमीन सालों से बेकार पड़ी थी. इसमें उन्होंने मखाने की खेती शुरू की. मखाने की खेती के लिए उन्होंने मखाना अनुसंधान केंद्र में संपर्क किया. जो उनके लिए फायदेमंद साबित हुआ. उन्होंने अपनी 7 बीघा बेकार जमींन में इसकी खेती शुरू की. इसमें तक़रीबन 1 लाख 80 हज़ार रुपए का खर्च आया. जिससे उन्हें 42 क्विंटल मखाना पैदा हुआ. जो 4 लाख 20 हज़ार में बिका. इससे उन्हें 2 लाख 40 हजार का शुद्ध मुनाफा हुआ. धीरेन्द्र कहते है कि इससे अभी 7-8 क्विंटल मखाना और निकलेगा जिसकी कीमत लगभग 50 हज़ार रुपए है.

5 बीघा में सिंघाड़ा

मखाना के अलावा धीरेन्द्र ने अपनी अन्य पांच बीघा ज़मीन में सिंघाड़े की खेती शुरू की. जिसमें से उन्होंने एक बीघा की तुड़ाई हाल ही कर ली. जिससे उन्हें खेती की लागत मिल गई. वहीं 4 बीघा के सिंघाड़े की तुड़ाई और बाकी है. जिसकी कीमत 60 हज़ार से अधिक है. वहीं वे इसमें मछली पालन भी करते हैं जिससे उन्हें अतिरिक्त आय हो जाती है.

पहले ट्रेनिंग ली

प्रगतिशील किसान धीरेन्द्र को मखाना की खेती करने के लिए कृषि वैज्ञानिकों का भरपूर साथ मिला. इसके लिए उन्होंने मखाना अनुसंधान केंद्र में ट्रेनिंग की भी ली. जहाँ से उन्हें पांच किलो मखाना का बीज मुफ्त मुहैया कराया गया. समय समय पर कृषि वैज्ञानिकों ने उनके खेत का निरीक्षण किया और उन्हें उचित मार्गदर्शन दिया. वहीं लॉकडाउन के दौरान अधिकारीयों ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये मदद की.

आपकी सुविधा के लिए दरभंगा स्थित मखाना अनुसंधान केन्द्र का पता भी दिया जा रहा है

दरभंगा मखाना अनुसंधान केन्द्र
Basudeopur, Kakarghati, Darbhanga, NH-57, Darbhanga, Darbhanga, Bihar 846004
फ़ोन: 0612-2223962

इसलिए कि इन सबके पीछे अन्नदाता का नाम जुड़ा हुवा है।

 बहुत शर्मनाक स्थिति !!
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े उत्सव गणतंत्र दिवस के अवसर पर पूरे विश्व के सम्मुख देश की जो छवि अन्नदाता किसान बने गुंडो ने जिन्होंने पुलिस पर तलवारें उठायी, पत्थर फेंके, ट्रेक्टर तक चढ़ाने का प्रयास किया, तय रूट्स को तोड़कर उपद्रव फैलाया यह भारतीय इतिहास का काला पन्ना है। क्या सरकार इतनी कमजोर होती है, क्या पुलिस इतनी कमजोर होती है ?
नहीं, यह सब इसलिए जो रहा है कि सरकार चाहती है कि कुछ देशभक्त लोग जो इसे किसान आंदोलन समझ रहे है उन्हें इनकी हकीकत नजर आए, उनकी भी आंखे खुल जाए। इतनी लाठियां, इतने पत्थर, तलवारें अचानक तो नही आ गयी। सब कुछ पहले से तय था। सरकार पर दबाव बनाने के लिए जानबूझ कर इसे इवेंट के रूप में अंजाम दिया गया। यदि किसानों को वास्तव में सरकार पर दबाव बनाना ही था तो अधिक बेहतर होता कि शांतिपूर्ण तरीके से कानून के दायरे में रहकर अभूतपूर्व रैली सम्पन्न होती। लेकिन इस कांड का अंदेशा तो उसी दिन से हो गया था जब पूरा विपक्ष इन आंदोलनकारियों के साथ खड़ा नजर आया था। यह तो होना ही था।
लेकिन, अब एक बात और बात देना चाहूंगा, अब तक तो सरकार किसानों से बात करने का, समाधान देने का हर प्रयास कर रही थी, कोर्ट ने कानूनों पर रोक भी लगा दी थी, लेकिन यह भी देशभक्तो की सरकार है। जो सरकार चीन या पाकिस्तान के सामने कभी नही झुकी, आज किसानों के बीच छुपे गुंडो के सामने तो कतई नही झुकेगी, अब तक मोदीजी ने योगीजी का स्वरूप नही दिखाया, लेकिन अब जरूर देखने को मिलेगा। इतने बड़े लोकतंत्र को चंद गुंडो के सामने गिरवी नही रखा जा सकता।
जिस देश की इतनी लंबी सरहद पर विगत 6 वर्षों में दुश्मन को 1 इंच अंदर नही घुसने दिया गया है उसी देश की उस प्राचीर पर जहाँ तिरंगा फहराया जाता है उस पर आज उपद्रवियों ने दूसरा झंडा फहरा दिया । देश के लिए इससे शर्मनाक और क्या हो सकता है । आज देश झुक गया है और सिर्फ इसलिए कि इन सबके पीछे अन्नदाता का नाम जुड़ा हुवा है। कसम से, यदि इस आंदोलन में वास्तविक किसान जो नहीं जुड़ा होता तो मोदीजी अब तक निपटा भी देते। खैर, मोदीजी छोड़ने वाले भी नही है। बस एक काम अच्छा हो गया कि आज उन लोगों की भी आंखे खुल गयी होगी जो अब तक इसे किसान आंदोलन मान रहे थे।
प्रभु सबको सद्बुद्धि दे। 🙏🙏

अभी कई दुष्टों का पर्दा उठना बाकी है |


 आज एक बार पुनः महाभारत के उस प्रसंग की यादे ताजा हो गयी
जब भगवन श्री कृष्ण महाभारत युद्ध से पूर्व सेनाये सज जाने के बाद भी
अंतिम प्रयास के रूप में धृतराष्ट्र की सभा में संधि प्रस्ताव लेकर जाते है सब कुछ जानते हुवे भी की दुर्योधन पांड्वो को आधा राज्य देना तो दूर पांच गाँव तक देने को तैयार नहीं होगा |
हकीकत में वे सिर्फ समाज को यह बतलाने के लिए ऐसा करते है की भविष्य में कोई विद्वान या चिन्तक यह ना कह दे की युद्ध टाला जा सकता था |
आज एक बार फिर अक्षरश: वही हुवा है, मोदी सरकार सब जानती थी की यह आन्दोलन किसान कानूनों के लिए कभी था ही नहीं, यह तो मोदी सरकार की बढ़ती लोकप्रियता को धवस्त करने की देश विरोधियो की कुटिल चाले है | लेकिन अभिव्यक्ति हेतु स्वतंत्र भारतीय लोकतान्त्रिक समाज भविष्य में कभी यह ना कह दे की समाधान हेतु हरसंभव प्रयास ही नहीं किये गये | सरकार के बड़े से बड़े मंत्री ने किसान वार्ता के माध्यम से हर संभव समाधान दिए, लेकिन सबको पता था की सामने जो लोग थे उनमे से कोई भी समाधान चाहता ही नहीं था और अंतत: यह तो होना ही था, सब तैयारी इसी के लिए तो थी, शाहीन बाग़ फेल हुवा, विश्वविद्यालय काण्ड फेल हुवा, असंभव सी धारा 370 हटा दी गयी, 500 वर्षो की लडाई राम मंदिर निर्माण की जीत ली गयी | आखिर देश विरोधियो को इतने बड़े बड़े घाव, मवाद तो निकलनी ही थी |
घबराइयेगा बिलकुल मत ! अभी आगे आगे देखिये !
इस महाभारत के कृष्ण भी मोदी है और अर्जुन भी | अभी कई दुष्टों का पर्दा उठना बाकी है |
ये कृष्ण और अर्जुन बख्शेंगे किसी को भी नहीं |
हर दुष्ट को सामने लाकर, उसके गुनाहों से पूरा पर्दा उठाकर
स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनायेंगे |
जय हिन्द !!

चिदानन्दमय देह तुम्हारी । विगत विकार जान अधिकारी


 रामचरितमानस के अयोध्याकाण्ड में तुलसीदास जी ने भगवान् राम की स्तुति करते हुए कहा है ---

"चिदानन्दमय  देह  तुम्हारी ।
विगत विकार जान अधिकारी ।।"

आपका यह शरीर पंच-महाभूतों का विकार नहीं है , किन्तु सच्चिदानन्द-स्वरूप है ।

अर्थात् आपका स्थूल शरीर सत् , सूक्ष्म शरीर चित्  तथा कारण शरीर आनन्द तत्त्व से बना है ।

जिसका आपकी अन्तरङ्ग लीला में प्रवेश हो चुका है , वह अधिकारी पुरुष ही आपके सच्चिदानन्द-स्वरूप विकार रहित शरीर के सम्बन्ध में जान सकता है ।

भागवत के दशम स्कन्ध के चौदहवें अध्याय में ब्रह्मा जी भी भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति कहते हैं --

"आपका यह शरीर पंच-भौतिक नहीं है , किन्तु दिव्यातिदिव्य है , चिन्मय-अविनाशी है।"

वैशेषिक-दर्शन में कणाद जी ने छः प्रकार के स्थूल शरीरों का वर्णन किया है ---

१ . सर्वसाधारण प्राणियों के पार्थिव शरीर।

२.  वरुण लोक के जल तत्त्व प्रधान जलीय शरीर ।

३. इन्द्र तथा ब्रह्मादि लोकों के अग्नि तत्त्व प्रधान दिव्य शरीर ।

४. वायु तत्त्व की प्रधानता वाले भूत-प्रेत-बेताल-कूष्माण्ड-ब्रह्मराक्षस आदिकों के स्थूल नेत्रों से न दिखाई देने वाले वायु तत्त्व प्रधान वायवीय शरीर ।

५.  युक्त-योगियों की सत्य-संकल्पता से युक्त यौगिक शरीर अर्थात् योगी जब अपने प्रतिबिम्ब में धारणा-ध्यान-समाधि का संयम करते हैं , तब अनेक रूप धारण कर लेते हैं ।

जैसे भगवान् कृष्ण ने रास-क्रीड़ा में अनेक रूप धारण किये ।

भगवान् राम ने दण्डक वन में खर-दूषण-त्रिशिरा से युद्ध करते समय सबको राम रूप दे दिया ।

६. दिव्यातिदिव्य शरीर --    महाविष्णु , परम शिव, परम स्वरूपा दुर्गा , महागणपति एवं राम-कृषणादि अवतारों के शरीर दिव्यातिदिव्य कहलाते हैं ।

देवताओं के शरीर दिव्य है , उनके शरीरों से पसीना नहीं निकलता , बुढापा नहीं आता ।

परन्तु देवता आंख से देखते व कान से सुनते हैं अर्थात् उनकी प्रत्येक इन्द्रिय एक प्रकार का कर्म तथा ज्ञानेन्द्रिय द्वारा एक प्रकार का ज्ञान होता है ।

किन्तु दिव्यातिदिव्य राम-कृषणादि के शरीरों में यह विशेषता है कि उनकी प्रत्येक ज्ञानेन्द्रिय में पांचों प्रकार की ज्ञान शक्तियां रहती हैं , यह विशेषता देवताओं में नहीं होता ।

अतः मनुष्य तो क्या ब्रह्मवेत्ता महर्षि तथा देवता भी उनका नित्य वैकुण्ठ तथा गोलोक धाम और भगवान् का श्रीविग्रह अविनाशी-अमृत रूप कैसे है , नहीं समझ सकते ।

किन्तु भगवान् की विशेष कृपा तथा सद्गुरुओं की महती कृपा से प्रत्यक्ष अनुभव कर सकते हैं ।

यतिधर्म में कहा है --

दुर्लभो विषयत्यागो दुर्लभं तत्त्वदर्शनम् ।
दुर्लभा सहजावस्था सद्गुरो: करुणां विना ।।

कालनेमि की रोचक कथा


 ‼️कालनेमि की रोचक कथा‼️

एक ऐसा दैत्य जिसने कलियुग तक भगवान विष्णु का पीछा नहीं छोड़ा...

सतयुग में दो महाशक्तिशाली दैत्य हुए - हिरण्यकशिपु एवं हिरण्याक्ष। ये इतने शक्तिशाली थे कि इनका वध करने को स्वयं भगवान विष्णु को अवतार लेना पड़ा। हिरण्याक्ष ने अपनी शक्ति से पृथ्वी को सागर में डुबो दिया। तब नारायण ने वाराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध किया। उसके दो पुत्र थे - अंधक एवं कालनेमि जो उसके ही समान शक्तिशली थे।

जब तक उनके चाचा हिरण्यकशिपु जीवित रहे, उन्होंने उनके संरक्षण में जीवन बिताया किन्तु जब नारायण ने हिरण्यकशिपु को नृसिंह अवतार लेकर मारा तब दोनों भाई ने प्रतिशोध लेने की ठानी। अंधक अपनी महान शक्ति के मद में आकर देवी पार्वती से धृष्टता कर बैठा और महारुद्र के हाथों मारा गया। तब कालनेमि ने महादेव से प्रतिशोध लेने हेतु अपनी पुत्री वृंदा, जिसे ये वरदान प्राप्त था कि उसके होते उसके पति की मृत्यु नहीं हो सकती, उसका विवाह जालंधर नमक दैत्य से कर दिया जो महादेव का घोर शत्रु था।

 हालाँकि वृंदा का सतीत्व भी जालंधर को बचा नहीं सका और वो नारायण के छल के कारण भगवान शिव के हाथों मारा गया। जब कालनेमि को विष्णु के छल और अपनी पुत्री और दामाद के मृत्यु का समाचार मिला तो उसने नारायण से प्रतिशोध लेने की प्रतिज्ञा की।

परमपिता ब्रह्मा के मानस पुत्र मरीचि, जो प्रजापति होने के साथ-साथ सप्तर्षिओं में भी एक थे, उनके छः पुत्र हुए। एक दिन महर्षि मारीचि अपने पुत्रों के साथ अपने पिता ब्रह्मदेव से मिलने गए। वहाँ देवी सरस्वती भी उपस्थित थी। जब वे वहाँ पहुँचे तो उनके सभी पुत्रों ने अपने पितामह ब्रह्मा से परिहास में ही कहा कि - "हे पितामह! सुना है कि आपने अपनी ही पुत्री देवी सरस्वती से विवाह कर लिया था। ये कैसे संभव है?" ऐसा कह कर सारे हँसने लगे।

तब ब्रह्माजी ने उन सभी को श्राप दिया कि अगले जन्म में वो एक दैत्य के रूप में जन्मेंगे। उनके क्षमा माँगने पर उन्होंने कहा कि उसके भी अगले जन्म में उन्हें नारायण के बड़े भाई के रूप में जन्म लेने का सौभाग्य मिलेगा और उन्हें अधिक समय तक पृथ्वीलोक पर ना रहना पड़े इसी कारण जन्मते ही उन्हें मुक्ति मिल जाएगी।

 उधर कालनेमि अपने पिता हिरण्याक्ष के वध का प्रतिशोध लेने के लिए ब्रह्माजी की तपस्या कर रहा था। जब ब्रह्माजी प्रसन्न हुए तो उसने वरदान माँगा कि उसे छः ऐसे पुत्र मिलें जो अजेय हों। तब ब्रह्मदेव के वरदान स्वरूप महर्षि मरीचि के श्रापग्रसित छः पुत्र अगले जन्म में कालनेमि के छः पुत्रों के रूप में जन्मे। उनके अतिरिक्त उसकी एक और कन्या थी वृंदा, जिसे तुलसी के नाम से भी जानते हैं।

 जब कालनेमि के छः पुत्रों ने उत्पात मचाना शुरू किया तो कालनेमि के चाचा हिरण्यकशिपु ने उन्हें पाताल जाने की आज्ञा दे दी। कालनेमि के रोकने पर भी उन सभी ने हिरण्यकशिपु की आज्ञा मानी और पाताल जाकर बस गए। इससे कालनेमि स्वयं अपने पुत्रों का शत्रु हो गया और निश्चय किया कि वो अगले जन्म में अपने ही पुत्रों का अपने हाथों से वध करेगा।

इसके बाद अपने चाचा हिरण्यकशिपु की मृत्यु के पश्चात, अपने भाई प्रह्लाद के लाख समझाने के बाद भी कालनेमि ने भगवान विष्णु पर आक्रमण कर दिया। उस युद्ध में उसने देवी दुर्गा की भांति सिंह को अपना वाहन बनाया। दोनों में घनघोर युद्ध हुआ और कहा जाता है कि उस युद्ध में कालनेमि ने भगवान विष्णु पर ब्रह्मास्त्र से प्रहार किया किन्तु उससे नारायण को कोई हानि नहीं हुई। फिर कालनेमि ने नारायण पर एक अमोघ त्रिशूल से प्रहार किया किन्तु नारायण ने उसे बीच में ही पकड़ कर नष्ट कर दया।

फिर उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से कालनेमि का अंत कर दिया। मरते हुए उसने प्रतिज्ञा की कि वो फिर जन्म लेगा और नारायण से प्रतिशोध लेगा। अपने भाई की मृत्यु पर प्रह्लाद अत्यंत दुखी हो गया। अंततः प्रह्लाद की प्राथना पर भगवान विष्णु ने उसे आश्वासन दिलाया कि अगले जन्म में भी वही उसका वध करके उसे जीवन मरण के चक्र से मुक्त करेंगे।

मथुरा के राजा उग्रसेन अपनी पत्नी पद्मावती के साथ सुख से राज कर रहे थे। विवाह के तुरंत बाद पद्मावती अपने पिता सत्यकेतु के घर गयी। एक बार कुबेर का एक संदेशवाहक गन्धर्व द्रुमिला (गोभिला) सत्यकेतु से मिलने आया। जब उसने पद्मावती को देखा तो उसके सौंदर्य पर मोहित हो गया। उसने छल से उग्रसेन का वेश बनाया और पद्मावती से मिलने आया। पद्मावती उसे अपना पति समझ कर उसके साथ उसी प्रकार का व्यहवार करने लगी।

 थोड़े दिनों के पश्चात उसके पुत्र के रूप में कालनेमि ने नारायण से प्रतिशोध लेने के लिए जन्म लिया। उसका नाम कंस रखा गया। उसके जन्म के पश्चात देवर्षि नारद ने पद्मावती को गन्धर्व के छल के बारे में बता दिया जिससे उसे अपने पुत्र से घृणा हो गयी। उसने अपने पति उग्रसेन को तो कुछ नहीं बतया किन्तु वो मन ही मन उसकी मृत्यु की कामना करने लगी।

आगे चल कर कंस ने अपने पिता को कैद कर लिया और ये जानकर कि देवकी उस संतान को जन्म देगी जो उसके वध का कारण बनेगा, उसे भी कारावास में डाल दिया। बाद में उसे पता चला कि देवकी की आठवीं संतान के रूप में भगवान विष्णु जन्म लेंगे तो उसने उसे मारकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने की ठानी। देवकी के पहले छः पुत्रों के रूप में कालनेमि के छः पुत्र जन्मे जिन्हे मारकर कंस रुपी कालनेमि ने अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण की।

 देवकी की सातवीं संतान संकर्षित हो वासुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में चली गयी जिससे बलराम का जन्म हुआ। देवकी के गर्भ से उनकी जगह महामाया ने जन्म लिया जिसने बताया कि देवकी की आठवीं संतान का भी जन्म हो गया है। अपना प्रतिशोध लेने के लिए कंसरुपी कालनेमि ने कृष्ण के कारण गोकुल के सभी बच्चों के वध का आदेश दिया। सैकड़ों बच्चे मारे गए किन्तु कृष्ण को कुछ नहीं हुआ। १६ वर्ष की आयु में कृष्ण ने अपने भाई बलराम के साथ कंस का वध कर संसार को उसके अत्याचार से मुक्त किया।

इस प्रकार कालनेमि ने सतयुग से द्वापर तक नारायण का पीछा किया किन्तु प्रभु को कौन मार सका है? हर बार उसे अपने प्राण गवाने पड़े। कहते है कि कालनेमि ही द्वापर के अंत समय प्रत्येक रात्रि के रूप में उसे कलियुग के और निकट ले जाता है। यहाँ तक कि कलियुग को भी कालनेमि का अवतार माना जाता है। ये भी मान्यता है कि अपना प्रतिशोध लेने के लिए ही कालनेमि कलियुग के रूप में जन्मा ताकि इस युग में भी वो नारायण के कल्कि अवतार से प्रतिशोध ले सके। हालाँकि अगर ये सत्य है तो हम जानते हैं कि इसका परिणाम क्या होगा।

‼️ जय श्रीहरि विष्णु।‼️

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