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शुक्रवार, 27 अगस्त 2021

पटना के रहस्यमयी अगम कुआँ - धरती के नरक का खूनी कुआँ


पटना के रहस्यमयी अगम कुआँ जो अपने अंदर समाये है कई बड़े-बड़े राज।

अगम कुआँ : अमृत का कुआँ या फिर धरती के नरक का खूनी कुआँ





पटना के रहस्यमयी अगम कुआँ जो अपने अंदर समाये है कई बड़े-बड़े राज। इसी कुआँ में दफन है अशोक के 99 भाइयों के लाशें और दफन है सम्राट अशोक का गुप्त खजाना! रहस्यमयी कुआँ का पानी कभी नहीं सूखता!

प्राचीन भारत में निर्मित लगभग सभी आज भी रहस्यमय ही है। हमारे पूर्वज किसी भी चिज का निर्माण किस उद्देश्य से किये थे यह आज भी अनसुलझा ही है। एक कुआँ जिसकी इतिहास काफी ही रहस्यमयी है। बिहार के पटना में एक प्राचीन कुँआ है अगम कुआँ जिसका निर्माण सम्राट अशोक के काल में हुआ था।


कुआँ 105 फीट गहरी, व्यास 15 फीट है। कुएं के ऊपर के आधे हिस्से 44 फीट तक ईंट से घिरा हुआ है, जबकि जबकि निचे के 61 फीट लकड़ी के छल्ले की एक श्रृंखला द्वारा सुरक्षित किया गया है। इस कुआँ का जलस्तर न कभी घटता है और न ही बढ़ता है। इस कुआँ के रहस्य जानने की तीन कोशिश की गई थी।

सबसे पहले 1932 में, फिर 1962 में और फिर तीसरी बार 1995 में की गई थी। इस कुआँ का पानी का रंग भी बदलता रहता है। आगम कुआँ का निर्माण सम्राट अशोक द्वारा करवाया गया था, लेकिन इसका निर्माण का मुख्य उद्देश्य आज भी रहस्य है। इस कुएं से जुड़ी अनेक प्राचीन कहानियाँ हैं।

प्राचीन कहानियों की मानें सम्राट अशोक ने इसे दोषियों को सजा देने के लिए बनवाया था। जानकारों के अनुसार अशोक ने अपने सभी 99 सौतेले भाइयों का मार कर इसी अगम कुआँ में में डलवा दिया था। मौर्य साम्राज्य के सिंहासन को पाने के लिए अशोक ने अपने विरोधियों का भी सिर काट कर अगम कुआँ में डाल दिया।



5 वीं और 7 वीं शताब्दी की चीनी दार्शनिकों अपनी किताबों में इस कुएं का जिक्र धरती पर नरक के रूप में किया था। इसके अलावा एक औैर कहानी है कि सम्राट अशोक ने का गुप्त खजाना इसी कुंए में छिपा हुआ है।अगम का अर्थ है पाताल, इसलिए इसे अगम कुआँ कहा जाता है। इस कुआँ के अंदर श्रंखलाबद्ध तरीके से 9 छोटे कुएं हैं, और जानकारों की माने तो किसी एक कुआँ में एक गुप्त तहखाना है जहाँ सम्राट अशोक का खजाना मौजूद है। हला की इन कहानियों का आज तक कोई भी प्रमाण नहीं मिला है।

अगम कुआँ के बारे में एक प्राचीन मान्यता है कि एक जैन भिक्षु सुदर्शन को राजा चांद ने इसी कुआँ फिंकवा दिया था, लेकिन जैन भिक्षु सुदर्शन कमल पर बैठे तैरते पाए गए। हिंदू लोग इस कुआँ को धार्मिक कामों के लिए शुभ मानतें हैं।

कहा जाता है कि अगम कुआँ का अंतिम छोर गंगासागर से जुड़ा है। इसके पीछे एक कहानी बताई जाती है कि एक बार किसी अंग्रेज की छड़ी गंगा सागर में गिर गई थी, जो बाद में छड़ी इस कुएं में तैरती पाई गई थी। छड़ी को निकाली गई और कोलकाता के एक म्यूजियम में रखी गई है। इसलिए यह कुआँ कभी नहीं सूखता है। इस रहस्यमयी कुआँ की खोज ब्रिटिश खोजकर्ता लॉरेंस वेडेल ने की थी।



अगम कुआँ का अपना एक धार्मिक महत्व भी है। कुआँ के पास माँ शीतला देवी का मंदिर भी स्थापित है। हिन्द धार्मिक मान्यता के अनुसार कुआँ की पूजा के बाद ही माँ शीतला देवी की पूजा की जाती है। मान्यता के अनुसार यह कुआँ गंगासागर से जुड़ा है, इसलिए माँ गंगा की तरह कुआँ की पूजा की जाती है और इसी कुआँ की जल का प्रयोग माँ शीतला देवी की पूजा में की जाती है। चेचक और चिकन पॉक्स के इलाज के लिए मंदिर को व्यापक रूप से माना जाता है।मान्यता है कि संतान की प्राप्ति, चेचक और चिकन पॉक्स के लिए मंदिर में खास तौर से पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस कुआँ का पानी शरीर के कई रोग को दूर करता है।

चूहों के दातों में कितना दम होता है, क्या वह सचमुच पहाड़ कुतर सकते हैं?

 

जर्मनी के एक mineralogist फ़्रीड्रिक मोह ने 1812 में हॉर्ड्नेस को मापने का एक पैमाना बनाया ।

Source:Google

इसमें 1 से 10 तक के स्केल पर चूहों के दाँतो की हार्ड्नेस 5.5 पाई गई।चूहों के दाँत तांबा और लोहा दोनो से ज़्यादा हार्ड होते हैं।

Source: [1]

चूहों के जबडे की माँसपेशियाँ प्रति वर्ग टन पर 12 टन तक का दबाव दाल सकती हैं जबकि शार्क अपने दांतों से सिर्फ़ 2 टन तक का ही दबाव डाल सकती है।[2]

Source:Google

चूहें प्लास्टिक ,लकड़ी,तार और काँच को भी चबा सकते हैं।वे काँक्रीट को भी काट सकते है।सॉफ़्ट धातु को वो चबा लेते हैं।लेकिन स्टील को काटना उनके लिए मुश्किल होता है।

फुटनोट

[2] Rat Jaw Strength and Chewing Capabilities | Terminix

भारत वृक्षारोपण में विश्व रिकॉर्ड तोड़ रहा है भारतीयों ने केवल 24 घंटों में 50 मिलियन पेड़ लगाए हैं।

ये पोस्ट लिखते हुए मुझे काफी खुशी महसूस हो रही है। इस पोस्ट को पढ़ने के बाद शायद आप को भी मेरे जैसा ही महसूस हो।

तो चलिए जानते है आखिर NASA ने भारत और चीन को शुक्रिया क्यों कहा।

एक नए अध्ययन से पता चलता है कि दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले दो देश भूमि पर हरियाली में वृद्धि का नेतृत्व कर रहे हैं।

नासा ने फोटो डालते हुए कहा 20 साल पहले के मुकाबले अभी पृथ्वी पर हरयाली अधिक है, जिसका श्रेय नासा ने भारत और चीन को दिया है।

पिछले 20 वर्षों में भारत और चीन ने काफी अधिक पेड़ लगाए हैं इसे आप ऊपर के तस्वीर में भी देख सकते हैं।

भारत वृक्षारोपण में विश्व रिकॉर्ड तोड़ रहा है, 800,000 भारतीयों ने केवल 24 घंटों में 50 मिलियन पेड़ लगाए हैं।

डेटा से सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि ग्रह पर हरे क्षेत्रों में वृद्धि लगभग पूरी तरह से मानव कार्रवाई के कारण हैं।

मगर हमें अभी रुकना नहीं है मेरा सभी से अनुरोध है की सब कोई पेड़ जरूर लगाएं।

Image Source:- Google

कोमोडो ड्रैगन मादा बिना नर के भी निषेचित अंडे दे सकती हैं

जिसे आप खोज रहे हैं, यह बिलकुल उसके अनुरूप नहीं है -


किन्तु कोमोडो ड्रैगन के बच्चे अण्डों से निकलने के 2-3 दिनों में ही, अपने सहज ज्ञान के कारण, पेड़ों पर चढ़ जाते हैं।

वयस्क कोमोडो पेड़ पर नहीं चढ़ सकते।

कोमोडो बच्चों के पेड़ों के ऊपर पलायन कर जाने का कारण यह है, कि 2-3 दिनों के बाद, या कभी-कभार उससे भी पहले, वयस्कों के शिकार करने का मौसम शुरू हो जाता है, जिनमें उनकी माँ भी शामिल होती है। ऐसा हो सकता है, कि उनकी माँ अथवा किन्हीं औरों को, प्रसव के बाद कुछ चबाने का मन करे परन्तु वे शिकार पर जाने के मामले में बहुत आलसी महसूस कर रहे हों।

यदि हम "अभिभावकों की सबसे बड़ी असफलता" के लिए कोई पुरस्कार पाना चाहते हों, तो मैं नहीं सोचता कि ऐसे अभिभावकों वह होंगे, जो अपने बच्चों को त्याग देंगे-

मेरे विचार से वे ऐसे अभिभावक होंगे, जो वस्तुतः अपने बच्चों को खा जाते हों…. केवल अपने आलसीपन के कारण।

ऊपर दिखाई तस्वीर में बीच वाले कोमोडो के सर को दूसरा कोमोडो खा नहीं रहा - बल्कि इसका बिलकुल उल्टा है;

वह अपने दोस्त के मुँह से खाना चुराने की कोशिश कर रहा है, जबकि उसका बाईं ओर वाला दोस्त, पॉल उससे कह रहा है, "रुको भई…तुम्हें थोड़ा शांत हो जाना चाहिए…अपनी सीमा में रहो।"

यह तो था प्रश्न का अनुवाद। परन्तु आप तो शायद यहीं रुक जाना पसंद नहीं करेंगे और कोमोडो ड्रैगन के बारे में और जानकारी पाना चाहेंगे।

तो आइये, देखें यह भारी-भरकम छिपकली जैसे दिखने वाले जीव वास्तव में कैसे होते हैं।

सलेटी रंग के यह जीव, विश्व की सबसे बड़ी छिपकलियाँ हैं। कोमोडो ड्रैगन इंडोनेशिया के चार द्वीपों, कोमोडो, फ्लोरेस, रिंका और गीली मोटांग पर पाए जाते हैं। लम्बाई में नर 3 मीटर और मादा 2 मीटर तक और वज़न में यह 70 किलो तक होते हैं। सबसे बड़ा ड्रैगन पौने 11 फुट लंबा और 166 किलो वज़न का रिकॉर्ड किया गया था।

इनका शरीर कवचरुपी शल्कों से ढका होता है, जो छोटी-छोटी हड्डियों से बने होते हैं। इनकी जीभ साँप की तरह बीच में से दो भागों में बंटी हुई होती है और इसे यह मुँह से निकाल कर अपने आस-पास के वातावरण का जायज़ा लेते रहते है।


कोमोडो ड्रैगन मूलतः मांसभक्षी होते हैं और हिरन तथा भैंस जैसे बड़े जंतुओं को मार गिराने में सक्षम होते हैं।

इस काम के लिए इनके मुँह की लार में मौजूद बैक्टीरिया इनके काम आते हैं। यदि एक कोमोडो ड्रैगन एक बड़े जानवर को उसकी टांग अथवा शरीर के किसी अंग पर अपने आरी की तरह तेज़ दांतों से काट ले, तो यह बैक्टीरिया उसकी थूक के साथ उस चोट में से उस जानवर के शरीर में प्रवेश करके अपना काम शुरू कर देते हैं। जानवर की चोट में अपनी संख्या को बढ़ाकर, यह बैक्टीरिया उसे कमज़ोर और लाचार बना देते हैं और अंत में उसकी मृत्यु हो जाती है। इस दौरान, कोमोडो ड्रैगन उस जानवर का पीछा करते रहते हैं और उसके मरने की ताक में बैठे रहते हैं।


एक समय में कोमोडो ड्रैगन अपने शरीर के 80 % वज़न के बराबर माँस खा सकते है। अपने जबड़ों को ढीला करके, यह अपने किसी छोटे शिकार, जैसे चूहे को पूरा निगल जाते हैं और इनका पेट विस्तार-योग्य होता है। यह महीने में एक बार एक बड़े शिकार को खाने के अतिरिक्त, छोटे-छोटे जीवों, जैसे चूहों आदि को पूरा निगल जाते हैं। यदि इनके शरीर का तापमान ज़रुरत के मुताबिक़ बना रहे, तो अपने खाने को पचाने में इन्हें 26 घंटे लग जाते हैं।

इनका कोई निश्चित इलाका नहीं होता और यह मई और अक्टूबर के बीच, किसी मृत जानवर के पास में सम्भोग क्रिया करते हैं। इसके बाद वे मिट्टी में खोद कर अपना घोंसला बनाते हैं, अथवा किसी और पक्षी/जानवर के घर पर कब्ज़ा कर लेते हैं। इस घोंसले में मादा 1 से 30 अंडे तक देती है। इनके अण्डों में से बच्चों को निकलने में ढाई से आठ महीने तक लग जाते हैं और यह समय कितना होगा, इसके लिए मिट्टी का प्रकार और अंदर का तापमान उत्तरदायी होते हैं।

जन्म के समय एक औसत बच्चे का वज़न 80 ग्राम होता है और यह बच्चे अपने माता-पिता, अथवा किसी और कोमोडो ड्रैगन द्वारा खा लिए जाने के सहज ज्ञान के कारण, पेड़ों पर पलायन कर जाते हैं। यह बच्चे 5 से 7 वर्ष की आयु में यौन परिपक्वता पा जाते हैं। मादा 30 वर्ष की उम्र के बाद प्रजनन नहीं करतीं। यह भी देखा गया है, कि यदि उस इलाके में कोई नर मौजूद नहीं हो, तो मादा बिना नर के भी निषेचित अंडे दे सकती हैं, परन्तु ऐसे में उनमें से केवल नर बच्चे ही निकलते हैं। यह प्रक्रिया शायद उनके किसी और द्वीप पर बसने में उनकी मदद कर सकता होगा। परन्तु इसी कारण से इनमें मादाओं की कमी भी हो रही है, जिस कारण यह अन्तः प्रजनन के शिकार होते जा रहे हैं। साथ ही, क्योंकि यह अपने घरों से बहुत दूर जाना पसंद नहीं करते, इसलिए इनकी संख्या में निरंतर कमी होती हुई पायी गयी है।

स्त्रोत : गूगल तथा -

गोवा में इस तरह की धोखाधड़ी से सावधान !!


मैंने गोवा रेलवे स्टेशन पर सूंदर सा पैकेट खरीदा।

और देखिये कि ग्राहकों को बेवकूफ बनाने के लिए कितना शानदार ढंग से पैकेजिंग किया गया है ।

यह मैदा और नारियल से बनता है। खाने पर स्वाद भी दयनीय था।

गोवा में इस तरह की धोखाधड़ी से सावधान !!

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