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शुक्रवार, 27 अगस्त 2021

कोमोडो ड्रैगन मादा बिना नर के भी निषेचित अंडे दे सकती हैं

जिसे आप खोज रहे हैं, यह बिलकुल उसके अनुरूप नहीं है -


किन्तु कोमोडो ड्रैगन के बच्चे अण्डों से निकलने के 2-3 दिनों में ही, अपने सहज ज्ञान के कारण, पेड़ों पर चढ़ जाते हैं।

वयस्क कोमोडो पेड़ पर नहीं चढ़ सकते।

कोमोडो बच्चों के पेड़ों के ऊपर पलायन कर जाने का कारण यह है, कि 2-3 दिनों के बाद, या कभी-कभार उससे भी पहले, वयस्कों के शिकार करने का मौसम शुरू हो जाता है, जिनमें उनकी माँ भी शामिल होती है। ऐसा हो सकता है, कि उनकी माँ अथवा किन्हीं औरों को, प्रसव के बाद कुछ चबाने का मन करे परन्तु वे शिकार पर जाने के मामले में बहुत आलसी महसूस कर रहे हों।

यदि हम "अभिभावकों की सबसे बड़ी असफलता" के लिए कोई पुरस्कार पाना चाहते हों, तो मैं नहीं सोचता कि ऐसे अभिभावकों वह होंगे, जो अपने बच्चों को त्याग देंगे-

मेरे विचार से वे ऐसे अभिभावक होंगे, जो वस्तुतः अपने बच्चों को खा जाते हों…. केवल अपने आलसीपन के कारण।

ऊपर दिखाई तस्वीर में बीच वाले कोमोडो के सर को दूसरा कोमोडो खा नहीं रहा - बल्कि इसका बिलकुल उल्टा है;

वह अपने दोस्त के मुँह से खाना चुराने की कोशिश कर रहा है, जबकि उसका बाईं ओर वाला दोस्त, पॉल उससे कह रहा है, "रुको भई…तुम्हें थोड़ा शांत हो जाना चाहिए…अपनी सीमा में रहो।"

यह तो था प्रश्न का अनुवाद। परन्तु आप तो शायद यहीं रुक जाना पसंद नहीं करेंगे और कोमोडो ड्रैगन के बारे में और जानकारी पाना चाहेंगे।

तो आइये, देखें यह भारी-भरकम छिपकली जैसे दिखने वाले जीव वास्तव में कैसे होते हैं।

सलेटी रंग के यह जीव, विश्व की सबसे बड़ी छिपकलियाँ हैं। कोमोडो ड्रैगन इंडोनेशिया के चार द्वीपों, कोमोडो, फ्लोरेस, रिंका और गीली मोटांग पर पाए जाते हैं। लम्बाई में नर 3 मीटर और मादा 2 मीटर तक और वज़न में यह 70 किलो तक होते हैं। सबसे बड़ा ड्रैगन पौने 11 फुट लंबा और 166 किलो वज़न का रिकॉर्ड किया गया था।

इनका शरीर कवचरुपी शल्कों से ढका होता है, जो छोटी-छोटी हड्डियों से बने होते हैं। इनकी जीभ साँप की तरह बीच में से दो भागों में बंटी हुई होती है और इसे यह मुँह से निकाल कर अपने आस-पास के वातावरण का जायज़ा लेते रहते है।


कोमोडो ड्रैगन मूलतः मांसभक्षी होते हैं और हिरन तथा भैंस जैसे बड़े जंतुओं को मार गिराने में सक्षम होते हैं।

इस काम के लिए इनके मुँह की लार में मौजूद बैक्टीरिया इनके काम आते हैं। यदि एक कोमोडो ड्रैगन एक बड़े जानवर को उसकी टांग अथवा शरीर के किसी अंग पर अपने आरी की तरह तेज़ दांतों से काट ले, तो यह बैक्टीरिया उसकी थूक के साथ उस चोट में से उस जानवर के शरीर में प्रवेश करके अपना काम शुरू कर देते हैं। जानवर की चोट में अपनी संख्या को बढ़ाकर, यह बैक्टीरिया उसे कमज़ोर और लाचार बना देते हैं और अंत में उसकी मृत्यु हो जाती है। इस दौरान, कोमोडो ड्रैगन उस जानवर का पीछा करते रहते हैं और उसके मरने की ताक में बैठे रहते हैं।


एक समय में कोमोडो ड्रैगन अपने शरीर के 80 % वज़न के बराबर माँस खा सकते है। अपने जबड़ों को ढीला करके, यह अपने किसी छोटे शिकार, जैसे चूहे को पूरा निगल जाते हैं और इनका पेट विस्तार-योग्य होता है। यह महीने में एक बार एक बड़े शिकार को खाने के अतिरिक्त, छोटे-छोटे जीवों, जैसे चूहों आदि को पूरा निगल जाते हैं। यदि इनके शरीर का तापमान ज़रुरत के मुताबिक़ बना रहे, तो अपने खाने को पचाने में इन्हें 26 घंटे लग जाते हैं।

इनका कोई निश्चित इलाका नहीं होता और यह मई और अक्टूबर के बीच, किसी मृत जानवर के पास में सम्भोग क्रिया करते हैं। इसके बाद वे मिट्टी में खोद कर अपना घोंसला बनाते हैं, अथवा किसी और पक्षी/जानवर के घर पर कब्ज़ा कर लेते हैं। इस घोंसले में मादा 1 से 30 अंडे तक देती है। इनके अण्डों में से बच्चों को निकलने में ढाई से आठ महीने तक लग जाते हैं और यह समय कितना होगा, इसके लिए मिट्टी का प्रकार और अंदर का तापमान उत्तरदायी होते हैं।

जन्म के समय एक औसत बच्चे का वज़न 80 ग्राम होता है और यह बच्चे अपने माता-पिता, अथवा किसी और कोमोडो ड्रैगन द्वारा खा लिए जाने के सहज ज्ञान के कारण, पेड़ों पर पलायन कर जाते हैं। यह बच्चे 5 से 7 वर्ष की आयु में यौन परिपक्वता पा जाते हैं। मादा 30 वर्ष की उम्र के बाद प्रजनन नहीं करतीं। यह भी देखा गया है, कि यदि उस इलाके में कोई नर मौजूद नहीं हो, तो मादा बिना नर के भी निषेचित अंडे दे सकती हैं, परन्तु ऐसे में उनमें से केवल नर बच्चे ही निकलते हैं। यह प्रक्रिया शायद उनके किसी और द्वीप पर बसने में उनकी मदद कर सकता होगा। परन्तु इसी कारण से इनमें मादाओं की कमी भी हो रही है, जिस कारण यह अन्तः प्रजनन के शिकार होते जा रहे हैं। साथ ही, क्योंकि यह अपने घरों से बहुत दूर जाना पसंद नहीं करते, इसलिए इनकी संख्या में निरंतर कमी होती हुई पायी गयी है।

स्त्रोत : गूगल तथा -

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