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शुक्रवार, 27 अगस्त 2021

समुद्री घोड़े अश्वमीन के बारे में रोचक तथ्य

समुद्री घोड़े अश्वमीन के बारे में रोचक तथ्य

क्या आपको पता है कि नर समुद्री घोड़े (अश्वमीन) भी गर्भवती हो सकते हैं ! गिरगिट की तरह रंग बदलता है समुद्री घोड़े!

आपने समुद्री घोड़े के बारे में तो सुना ही होगा बहुत से लोगों के मन में समुद्री घोड़े के बारे में अलग-अलग तरह के विचार बने हुए हैं। असल में बहुत कम लोगों को पता है कि समुद्रा घोड़ा क्या है दोस्तों हम आपको बता दें कि समुद्री घोड़ा असल में एक समुद्री घोड़ा नहीं होता। यह एक विचित्र प्रकार की मछली होती है। जिसका सिर्फ इन्हीं घोड़े के सिर से मिलता-जुलता होता है और इसीलिए लोग इस मछली को समुद्री घोड़े के नाम से जानते हैं यह विचित्र मछली सिर्फ गर्मियों के मौसम में ही समुंदर में दिखाई देती है और सर्दियों के मौसम में यह विचित्र मछली कहाँ पर चली जाती है। इसके बारे में वैज्ञानिक भी आज तक नहीं बता पाए आज हम आपको समुद्री घोड़े के बारे में ही बहुत से रोचक तथ्य बताएंगे। जिनके बारे में जानने के पश्चात आप हैरान रह जाएंगे


समुद्री घोड़े अश्वमीन के बारे में रोचक तथ्य!

  • दोस्तों क्या आपको पता है कि समुद्री घोड़ा असलियत में एक घोड़ा नहीं होता। बल्कि एक ऐसी अलग सी मछली होती है। जिसका सिर घोड़े के सिर से काफी मिलता-जुलता होता है। इसीलिए सभी लोग इस मछली को समुद्री घोड़ा कहते हैं। इस मछली का शरीर काफी चिकना होता है तथा इसकी पूंछ सांप की तरह लंबी होती है। यह मछली अक्सर गरम समुद्रों के पास समुद्री घास तथा छोटे-छोटे पौधों के साथ उसकी कुंडली बनाकर चिपकी रहती है।
  • हैरत की बात तो यह है कि इस विचित्र मछली की बाकी सभी हरकतें मछलियों से बिल्कुल अलग होती है और इसकी यही हरकतें इसे मछलियों से अलग बनाती है।
  • यह समुद्री घोड़े सफेद तथा पीले रंग के होते हैं और इनकी लगभग 100 से भी अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं और इनकी लंबाई 2.5 सेंटीमीटर से लेकर 31 सेंटीमीटर तक हो सकती है।
  • सबसे विचित्र बात यह है कि नर समुद्री घोड़े के पेट पर बिल्कुल कंगारू की तरह ही एक थैली होती है और मादा नर समुद्री घोड़े की इस थैली में अंडे देती है तथा इस थैली में ही अंडों से बच्चे भी बनते हैं और इन अंडों से बच्चे बनने में लगभग 45 दिन का समय लगता है और जब इन अंडों से बच्चे बन जाते हैं तो उसके पश्चात समुद्री घोड़ा इन्हें समुद्र में छोड़ देता है।
  • नर समुद्री घोड़ा 1 साल में तीन बार अपनी थैली में इन अंडों को सेकता है और यह नर समुद्री घोड़ा एक बार में लगभग 50 अंडों को अपनी थैली में रख सकता है तथा मादा मछली से मिलने के बाद 5 सप्ताह में नर समुद्री घोड़े के पेट कि इस थैली में अंडे तैयार हो जाते हैं।
  • समुद्री घोड़ा सिर्फ गर्मियों के मौसम में ही समुंदर में दिखाई देता है और सर्दियों के मौसम में यह किसी को भी नहीं दिखाई देता। इस बात का दावा आज तक वैज्ञानिक भी नहीं कर पाए कि यह सर्दियों में कहा लुप्त हो जाता है।
  • यह मछली खाने के काम बिल्कुल भी नहीं आती तथा समुंद्र में दूसरी मछलियां भी इस समुद्री घोड़े को खाना बिल्कुल भी पसंद नहीं करती। इसलिए इन्हें शत्रुओं का खतरा काफी कम हो जाता है।


  • समुद्री घोड़े को वैज्ञानिकों ने एक दूसरा नाम भी दिया है जो Hippocampus है।
  • समुद्री घोड़े की करीब 100 से भी अधिक प्रजातियां इस पृथ्वी पर पाई जाती है।
  • समुद्री घोड़ा सांस लेने के लिए अपने गलफडो़ ( Gills ) का इस्तेमाल करता है।
  • नर समुद्री घोड़े की एक विशेषता है कि बच्चे पैदा करने के लिए मादा समुद्री घोड़े के साथ-साथ नर समुद्री घोड़े की भी बच्चों के प्रति पूरी जिम्मेवारी होती है, और यह समुद्री घोड़ा अपने पेट की थैली में लगभग 45 दिनों तक सभी अंडों को रखता है और जब 45 दिन के समय पर उन अंडों से बच्चे निकल आते हैं तो उसके पश्चात और बच्चों को समुद्र में छोड़ता है। इस बात से आप अंदाजा लगा सकते हैं की बच्चे पैदा करने में नर समुद्री घोड़े की कितनी अहम भूमिका होती है। इसीलिए ऐसा कहा जाता है कि नर समुद्री घोड़े गर्भवती होते हैं।
  • क्या आपको पता है कि नर समुद्री घोड़े की आंखों की सरचना कुछ इस प्रकार है कि यह अपनी आंखों से अलग-अलग दिशाओं में भी देख सकता है।
  • समुद्री घोड़े की गति समुंदर में चलने वाली बाकी मछलियों से काफी धीमी होती है।
  • समुद्री घोड़ा का औसत जीवनकाल तकरीबन 1 साल से लेकर 4 साल तक होता है, समुद्री घोड़े की लगभग 100 से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती है परंतु सभी का जीवन काल सिर्फ 1 साल से लेकर 4 साल तक होता है।
  • यह समुद्री घोड़ा एक विचित्र समुद्री मछली है। इसीलिए यह उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका और यूरोपियन तथा अटलांटिक समुद्रों में पाया जाता है।
  • समुद्री घोड़े के शरीर में रीड की हड्डी के अलावा एक भी हड्डी नहीं होती इसकी बस एक सांप की तरह पूछ होती है।
  • समुद्री घोड़े को यदि किसी भी चीज का शिकार करना होता है या फिर किसी चीज को पकड़ना होता है तो यह सिर्फ अपनी पूंछ से ही उसको पकड़ता है।
  • जब यह समुंद्र में बहती हुई कोई भी चीज खाते हैं। तो उस समय आपने पूछ को समुद्री घास से चिपका कर रखते हैं।
  • समुद्री घोड़े को इसके दूसरे नाम अश्वमिन के नाम से भी जाना जाता है।

कस्तूरी मृग के बारे में रोचक जानकारी


कस्तूरी मृग के बारे में कुछ रोचक जानकारी


मनमोहक खुशबूदार कस्तूरी मृग से जुड़ी जानकारियां आपको बताने जा रहे है। अब तक हिरणों की 60 से भी अधिक किस्मों का अध्ययन किया जा चुका है। इन किस्मों में एक ऐसा भी हिरण होता है, जिससे कस्तूरी प्राप्त की जाती है। इसे कस्तूरी मृग ( Musk Deer ) कहते है और यह मोशिडे परिवार का प्राणी है। कस्तूरी मृग एकांत में रहने वाला बहुत ही सीधा और छोटा सा जानवर होता है। यह साइबेरिया से लेकर हिमालय तक के पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है।


इनके कान बड़े होते हैं, लेकिन पूंछ बहुत ही छोटी होती है। इनके सिर पर दस मृगों की भांति सींग नहीं होते, इनका रंग भूरा कत्थई होता है। कस्तूरी मृग की ऊंचाई 50 से 60 सेंटीमीटर (20-24 इंच) तक होती है।

नर मृग के पेट में कस्तूरी पैदा करने वाला अंग होता है. नर हिरण के दांत बाहर निकले होते हैं । जो नीचे की ओर झुके होते हैं।



कस्तूरी एक ऐसा पदार्थ है, जिसमें तीखी गंध होती है। कस्तूरी मृग के पेट की त्वचा के नीचे नाभि के पास एक छोटा सा थैला होता है, जिसमें कस्तूरी का निर्माण होता रहता है। ताजी कस्तूरी गाढ़े द्रव के रूप में होती है, लेकिन सूखने पर दानेदार चूर्ण के रूप में बदल जाती है।



कस्तूरी का प्रयोग उत्तम प्रकार के साबुन और इत्र बनाने में प्रयोग किया जाता है, क्योकिं इसकी सुगंध बड़ी ही मनोरम होती है।

पटना के रहस्यमयी अगम कुआँ - धरती के नरक का खूनी कुआँ


पटना के रहस्यमयी अगम कुआँ जो अपने अंदर समाये है कई बड़े-बड़े राज।

अगम कुआँ : अमृत का कुआँ या फिर धरती के नरक का खूनी कुआँ





पटना के रहस्यमयी अगम कुआँ जो अपने अंदर समाये है कई बड़े-बड़े राज। इसी कुआँ में दफन है अशोक के 99 भाइयों के लाशें और दफन है सम्राट अशोक का गुप्त खजाना! रहस्यमयी कुआँ का पानी कभी नहीं सूखता!

प्राचीन भारत में निर्मित लगभग सभी आज भी रहस्यमय ही है। हमारे पूर्वज किसी भी चिज का निर्माण किस उद्देश्य से किये थे यह आज भी अनसुलझा ही है। एक कुआँ जिसकी इतिहास काफी ही रहस्यमयी है। बिहार के पटना में एक प्राचीन कुँआ है अगम कुआँ जिसका निर्माण सम्राट अशोक के काल में हुआ था।


कुआँ 105 फीट गहरी, व्यास 15 फीट है। कुएं के ऊपर के आधे हिस्से 44 फीट तक ईंट से घिरा हुआ है, जबकि जबकि निचे के 61 फीट लकड़ी के छल्ले की एक श्रृंखला द्वारा सुरक्षित किया गया है। इस कुआँ का जलस्तर न कभी घटता है और न ही बढ़ता है। इस कुआँ के रहस्य जानने की तीन कोशिश की गई थी।

सबसे पहले 1932 में, फिर 1962 में और फिर तीसरी बार 1995 में की गई थी। इस कुआँ का पानी का रंग भी बदलता रहता है। आगम कुआँ का निर्माण सम्राट अशोक द्वारा करवाया गया था, लेकिन इसका निर्माण का मुख्य उद्देश्य आज भी रहस्य है। इस कुएं से जुड़ी अनेक प्राचीन कहानियाँ हैं।

प्राचीन कहानियों की मानें सम्राट अशोक ने इसे दोषियों को सजा देने के लिए बनवाया था। जानकारों के अनुसार अशोक ने अपने सभी 99 सौतेले भाइयों का मार कर इसी अगम कुआँ में में डलवा दिया था। मौर्य साम्राज्य के सिंहासन को पाने के लिए अशोक ने अपने विरोधियों का भी सिर काट कर अगम कुआँ में डाल दिया।



5 वीं और 7 वीं शताब्दी की चीनी दार्शनिकों अपनी किताबों में इस कुएं का जिक्र धरती पर नरक के रूप में किया था। इसके अलावा एक औैर कहानी है कि सम्राट अशोक ने का गुप्त खजाना इसी कुंए में छिपा हुआ है।अगम का अर्थ है पाताल, इसलिए इसे अगम कुआँ कहा जाता है। इस कुआँ के अंदर श्रंखलाबद्ध तरीके से 9 छोटे कुएं हैं, और जानकारों की माने तो किसी एक कुआँ में एक गुप्त तहखाना है जहाँ सम्राट अशोक का खजाना मौजूद है। हला की इन कहानियों का आज तक कोई भी प्रमाण नहीं मिला है।

अगम कुआँ के बारे में एक प्राचीन मान्यता है कि एक जैन भिक्षु सुदर्शन को राजा चांद ने इसी कुआँ फिंकवा दिया था, लेकिन जैन भिक्षु सुदर्शन कमल पर बैठे तैरते पाए गए। हिंदू लोग इस कुआँ को धार्मिक कामों के लिए शुभ मानतें हैं।

कहा जाता है कि अगम कुआँ का अंतिम छोर गंगासागर से जुड़ा है। इसके पीछे एक कहानी बताई जाती है कि एक बार किसी अंग्रेज की छड़ी गंगा सागर में गिर गई थी, जो बाद में छड़ी इस कुएं में तैरती पाई गई थी। छड़ी को निकाली गई और कोलकाता के एक म्यूजियम में रखी गई है। इसलिए यह कुआँ कभी नहीं सूखता है। इस रहस्यमयी कुआँ की खोज ब्रिटिश खोजकर्ता लॉरेंस वेडेल ने की थी।



अगम कुआँ का अपना एक धार्मिक महत्व भी है। कुआँ के पास माँ शीतला देवी का मंदिर भी स्थापित है। हिन्द धार्मिक मान्यता के अनुसार कुआँ की पूजा के बाद ही माँ शीतला देवी की पूजा की जाती है। मान्यता के अनुसार यह कुआँ गंगासागर से जुड़ा है, इसलिए माँ गंगा की तरह कुआँ की पूजा की जाती है और इसी कुआँ की जल का प्रयोग माँ शीतला देवी की पूजा में की जाती है। चेचक और चिकन पॉक्स के इलाज के लिए मंदिर को व्यापक रूप से माना जाता है।मान्यता है कि संतान की प्राप्ति, चेचक और चिकन पॉक्स के लिए मंदिर में खास तौर से पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस कुआँ का पानी शरीर के कई रोग को दूर करता है।

चूहों के दातों में कितना दम होता है, क्या वह सचमुच पहाड़ कुतर सकते हैं?

 

जर्मनी के एक mineralogist फ़्रीड्रिक मोह ने 1812 में हॉर्ड्नेस को मापने का एक पैमाना बनाया ।

Source:Google

इसमें 1 से 10 तक के स्केल पर चूहों के दाँतो की हार्ड्नेस 5.5 पाई गई।चूहों के दाँत तांबा और लोहा दोनो से ज़्यादा हार्ड होते हैं।

Source: [1]

चूहों के जबडे की माँसपेशियाँ प्रति वर्ग टन पर 12 टन तक का दबाव दाल सकती हैं जबकि शार्क अपने दांतों से सिर्फ़ 2 टन तक का ही दबाव डाल सकती है।[2]

Source:Google

चूहें प्लास्टिक ,लकड़ी,तार और काँच को भी चबा सकते हैं।वे काँक्रीट को भी काट सकते है।सॉफ़्ट धातु को वो चबा लेते हैं।लेकिन स्टील को काटना उनके लिए मुश्किल होता है।

फुटनोट

[2] Rat Jaw Strength and Chewing Capabilities | Terminix

भारत वृक्षारोपण में विश्व रिकॉर्ड तोड़ रहा है भारतीयों ने केवल 24 घंटों में 50 मिलियन पेड़ लगाए हैं।

ये पोस्ट लिखते हुए मुझे काफी खुशी महसूस हो रही है। इस पोस्ट को पढ़ने के बाद शायद आप को भी मेरे जैसा ही महसूस हो।

तो चलिए जानते है आखिर NASA ने भारत और चीन को शुक्रिया क्यों कहा।

एक नए अध्ययन से पता चलता है कि दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले दो देश भूमि पर हरियाली में वृद्धि का नेतृत्व कर रहे हैं।

नासा ने फोटो डालते हुए कहा 20 साल पहले के मुकाबले अभी पृथ्वी पर हरयाली अधिक है, जिसका श्रेय नासा ने भारत और चीन को दिया है।

पिछले 20 वर्षों में भारत और चीन ने काफी अधिक पेड़ लगाए हैं इसे आप ऊपर के तस्वीर में भी देख सकते हैं।

भारत वृक्षारोपण में विश्व रिकॉर्ड तोड़ रहा है, 800,000 भारतीयों ने केवल 24 घंटों में 50 मिलियन पेड़ लगाए हैं।

डेटा से सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि ग्रह पर हरे क्षेत्रों में वृद्धि लगभग पूरी तरह से मानव कार्रवाई के कारण हैं।

मगर हमें अभी रुकना नहीं है मेरा सभी से अनुरोध है की सब कोई पेड़ जरूर लगाएं।

Image Source:- Google

कोमोडो ड्रैगन मादा बिना नर के भी निषेचित अंडे दे सकती हैं

जिसे आप खोज रहे हैं, यह बिलकुल उसके अनुरूप नहीं है -


किन्तु कोमोडो ड्रैगन के बच्चे अण्डों से निकलने के 2-3 दिनों में ही, अपने सहज ज्ञान के कारण, पेड़ों पर चढ़ जाते हैं।

वयस्क कोमोडो पेड़ पर नहीं चढ़ सकते।

कोमोडो बच्चों के पेड़ों के ऊपर पलायन कर जाने का कारण यह है, कि 2-3 दिनों के बाद, या कभी-कभार उससे भी पहले, वयस्कों के शिकार करने का मौसम शुरू हो जाता है, जिनमें उनकी माँ भी शामिल होती है। ऐसा हो सकता है, कि उनकी माँ अथवा किन्हीं औरों को, प्रसव के बाद कुछ चबाने का मन करे परन्तु वे शिकार पर जाने के मामले में बहुत आलसी महसूस कर रहे हों।

यदि हम "अभिभावकों की सबसे बड़ी असफलता" के लिए कोई पुरस्कार पाना चाहते हों, तो मैं नहीं सोचता कि ऐसे अभिभावकों वह होंगे, जो अपने बच्चों को त्याग देंगे-

मेरे विचार से वे ऐसे अभिभावक होंगे, जो वस्तुतः अपने बच्चों को खा जाते हों…. केवल अपने आलसीपन के कारण।

ऊपर दिखाई तस्वीर में बीच वाले कोमोडो के सर को दूसरा कोमोडो खा नहीं रहा - बल्कि इसका बिलकुल उल्टा है;

वह अपने दोस्त के मुँह से खाना चुराने की कोशिश कर रहा है, जबकि उसका बाईं ओर वाला दोस्त, पॉल उससे कह रहा है, "रुको भई…तुम्हें थोड़ा शांत हो जाना चाहिए…अपनी सीमा में रहो।"

यह तो था प्रश्न का अनुवाद। परन्तु आप तो शायद यहीं रुक जाना पसंद नहीं करेंगे और कोमोडो ड्रैगन के बारे में और जानकारी पाना चाहेंगे।

तो आइये, देखें यह भारी-भरकम छिपकली जैसे दिखने वाले जीव वास्तव में कैसे होते हैं।

सलेटी रंग के यह जीव, विश्व की सबसे बड़ी छिपकलियाँ हैं। कोमोडो ड्रैगन इंडोनेशिया के चार द्वीपों, कोमोडो, फ्लोरेस, रिंका और गीली मोटांग पर पाए जाते हैं। लम्बाई में नर 3 मीटर और मादा 2 मीटर तक और वज़न में यह 70 किलो तक होते हैं। सबसे बड़ा ड्रैगन पौने 11 फुट लंबा और 166 किलो वज़न का रिकॉर्ड किया गया था।

इनका शरीर कवचरुपी शल्कों से ढका होता है, जो छोटी-छोटी हड्डियों से बने होते हैं। इनकी जीभ साँप की तरह बीच में से दो भागों में बंटी हुई होती है और इसे यह मुँह से निकाल कर अपने आस-पास के वातावरण का जायज़ा लेते रहते है।


कोमोडो ड्रैगन मूलतः मांसभक्षी होते हैं और हिरन तथा भैंस जैसे बड़े जंतुओं को मार गिराने में सक्षम होते हैं।

इस काम के लिए इनके मुँह की लार में मौजूद बैक्टीरिया इनके काम आते हैं। यदि एक कोमोडो ड्रैगन एक बड़े जानवर को उसकी टांग अथवा शरीर के किसी अंग पर अपने आरी की तरह तेज़ दांतों से काट ले, तो यह बैक्टीरिया उसकी थूक के साथ उस चोट में से उस जानवर के शरीर में प्रवेश करके अपना काम शुरू कर देते हैं। जानवर की चोट में अपनी संख्या को बढ़ाकर, यह बैक्टीरिया उसे कमज़ोर और लाचार बना देते हैं और अंत में उसकी मृत्यु हो जाती है। इस दौरान, कोमोडो ड्रैगन उस जानवर का पीछा करते रहते हैं और उसके मरने की ताक में बैठे रहते हैं।


एक समय में कोमोडो ड्रैगन अपने शरीर के 80 % वज़न के बराबर माँस खा सकते है। अपने जबड़ों को ढीला करके, यह अपने किसी छोटे शिकार, जैसे चूहे को पूरा निगल जाते हैं और इनका पेट विस्तार-योग्य होता है। यह महीने में एक बार एक बड़े शिकार को खाने के अतिरिक्त, छोटे-छोटे जीवों, जैसे चूहों आदि को पूरा निगल जाते हैं। यदि इनके शरीर का तापमान ज़रुरत के मुताबिक़ बना रहे, तो अपने खाने को पचाने में इन्हें 26 घंटे लग जाते हैं।

इनका कोई निश्चित इलाका नहीं होता और यह मई और अक्टूबर के बीच, किसी मृत जानवर के पास में सम्भोग क्रिया करते हैं। इसके बाद वे मिट्टी में खोद कर अपना घोंसला बनाते हैं, अथवा किसी और पक्षी/जानवर के घर पर कब्ज़ा कर लेते हैं। इस घोंसले में मादा 1 से 30 अंडे तक देती है। इनके अण्डों में से बच्चों को निकलने में ढाई से आठ महीने तक लग जाते हैं और यह समय कितना होगा, इसके लिए मिट्टी का प्रकार और अंदर का तापमान उत्तरदायी होते हैं।

जन्म के समय एक औसत बच्चे का वज़न 80 ग्राम होता है और यह बच्चे अपने माता-पिता, अथवा किसी और कोमोडो ड्रैगन द्वारा खा लिए जाने के सहज ज्ञान के कारण, पेड़ों पर पलायन कर जाते हैं। यह बच्चे 5 से 7 वर्ष की आयु में यौन परिपक्वता पा जाते हैं। मादा 30 वर्ष की उम्र के बाद प्रजनन नहीं करतीं। यह भी देखा गया है, कि यदि उस इलाके में कोई नर मौजूद नहीं हो, तो मादा बिना नर के भी निषेचित अंडे दे सकती हैं, परन्तु ऐसे में उनमें से केवल नर बच्चे ही निकलते हैं। यह प्रक्रिया शायद उनके किसी और द्वीप पर बसने में उनकी मदद कर सकता होगा। परन्तु इसी कारण से इनमें मादाओं की कमी भी हो रही है, जिस कारण यह अन्तः प्रजनन के शिकार होते जा रहे हैं। साथ ही, क्योंकि यह अपने घरों से बहुत दूर जाना पसंद नहीं करते, इसलिए इनकी संख्या में निरंतर कमी होती हुई पायी गयी है।

स्त्रोत : गूगल तथा -

गोवा में इस तरह की धोखाधड़ी से सावधान !!


मैंने गोवा रेलवे स्टेशन पर सूंदर सा पैकेट खरीदा।

और देखिये कि ग्राहकों को बेवकूफ बनाने के लिए कितना शानदार ढंग से पैकेजिंग किया गया है ।

यह मैदा और नारियल से बनता है। खाने पर स्वाद भी दयनीय था।

गोवा में इस तरह की धोखाधड़ी से सावधान !!

दूध और मखाने खाने के फायदे

 

दूध और मखाने खाने के फायदे - खाली पेट मखाना खाने से क्या होता है?

दूध और मखाने खाने के फायदे – मखाना ऑर्गेनिक फूड है। यह बहुत सारे पोषक तत्वों से भरपूर होता है। मखाने में मौजूद प्रोटीन मसल्स को बनाने में मददगार होता है और साथ ही यह आपको फिट भी रखता है। दूध में उबालकर मखाना का सेवन करने से कई बीमारियों से मुक्ति मिलती है। दूध और मखाना खाने से बहुत सारे फायदे होते हैं।

दूध और मखाने खाने से कई प्रकार की शारीरिक बीमारियों से छुटकारा मिल जाता है। सुबह के समय दूध में 6-7 दाना मखाना को उबालकर पीने से शुगर की समस्या को कंट्रोल किया जा सकता है। मखाना तनाव को भी कम करता है।

दूध और मखाने खाने के फायदे – Milk Makhana Benefits

दूध और मखाने के सेवन से दिल को स्वस्थ रखने में मदद मिलता है। मखाने में एल्केलाइड नामक तत्व होता है जो दिल संबंधी खतरे से बचाने में मदद कर सकते हैं।

यदि कोई व्यक्ति तनाव की समस्या से परेशान है तो रात में सोने से पहले दूध के साथ मखाने का सेवन करने से शरीर में एनर्जी बनी रहती है। इसे खाने से तनाव की समस्या धीरे-धीरे दूर होता है।

कब्ज की समस्या से परेशानी होने पर दूध और मखाने को मिलाकर सेवन करना चाहिए। मखाने में प्रयाप्त मात्रा में फाइबर मौजूद होते हैं। मखाने में फाइबर, आयरन, कैल्शियम जैसे तत्व पाए जाते हैं, जो पेट में गैस की समस्या, अपच की समस्या को कम करने में मदद करता है।

दूध में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है। साथ मखाने में भी कैल्शियम की मात्रा पाई जाती है। दूध और मखाने को साथ मिलाकर खाने से कमजोर हड्डियों की समस्या कम होती है।

यदि आपको कमजोरी और ऊर्जा की कमी महसूस होती है। दूध और मखाने को मिलाकर खाने से शरीर को एनर्जी मिलती है। दूध में प्रोटीन पाया जाता है जो मखाने में मिलने के बाद और लाभदायक हो जाता है।

नोट – यह एक सामान्य जानकारी है। अधिक जानकारी के लिए योग्य विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।

हाथ से नमक गिरना – जानिए इसके शुभ-अशुभ परिणाम

हाथ से नमक गिरना होता है अशुभ, भविष्य की घटनाओं का देता है संकेत


हाथ से नमक गिरना

हाथ से नमक गिरना अशुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि हाथ से नमक गिरना व्यक्ति के ग्रहों का कमजोर होना है। अगर आपके साथ भी ऐसा होता है तो सावधान हो जाएं। यह आपके साथ भविष्य में होने वाली घटनाओं की ओर संकेत करता है। कभी भी बिना भगवान को भोग लगाए खाना पकाते समय भोजन के नहीं चखना चाहिए।

नमक का स्थान हमारे जीवन में अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। भोजन हम बिना नमक के नहीं खा सकते। नमक के बिना सबकुछ बेस्वाद लगता है। इसके अलावा नमक सोडियम और क्लोरिन की कमी को भी पूरा करता है। नमक में सोडियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है।

हाथ से नमक गिरना – जानिए इसके शुभ-अशुभ परिणाम

1. वास्तु शास्त्र के मुताबिक, नमक को कभी भी खुला नहीं रखना चाहिए। यदि आपसे ऐसा होता है कि सावधान हो जाएं। इससे घर की लक्ष्मी जा सकती है।

2. नमक को कभी भी बाएं हाथ से नहीं उठाना या लेना चाहिए। इससे अन्न का अपमान होता है। ऐसा करने से अन्नपूर्णा देवी मां आपसे नाराज हो सकती हैं।

3. कई बार ऐसा होता है कि नमक गिरने के बाद हम उसे पैर से हटाने लगते हैं। लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। इससे आपके जीवन में दुख और तकलीफें आ सकती हैं। आपको कई मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है।

4. नमक या नमक के पात्र को कभी भी जूठे हाथों से नहीं छूना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति के जीवन कई विपत्तियाँ घर कर लेती हैं। ऐसा करना बेहद ही अशुभ माना जाता है।

5. वास्तुशास्त्र कहता है कि हाथ से नमक छूटकर गिरने से व्यक्ति की कुंडली में शुक्र और मंगल ग्रह कमजोर हो जाते हैं। इससे व्यक्ति के जीवन में मानसिक परेशानियाँ पैदा होती है। व्यक्ति को समाज में अपमानित होना पड़ता है।

6. यदि आपको खाना खाते समय नमक लेने की आदत है, तो बचे हुए नमक को फेंके नहीं। हो सके तो उतना ही नमक लें जितना आपको जरूरत है। खाना की थाली में बचे हुए नमक को फेंकने से घर में कंगाली छा सकती है।

7. शास्त्रों के अनुसार, नमक को कभी भी भोजन बनाते समय नहीं चखें। इससे भगवान का अपमान होता है। भोजन को खाने से पहले हमेशा भगवान को पहले भोग लगाना चाहिए। फिर घर में किसी को भोजन परोसना चाहिए।

8. यदि कोई व्यक्ति आपसे नमक मांगता है तो कभी भी उसे हाथ में नमक नहीं देना चाहिए। ऐसा करने से आपसी मनमुटाव बढ़ता है। घर में नकारात्मकता फैलती है और लोगों के बीच आपस में लड़ाईयाँ होती हैं।

काला धागा शरीर में धारण करने से आप बन सकते हैं धनवान

काला धागा का चमत्कार, शरीर में धारण करने से आप बन सकते हैं धनवान


काला धागा का चमत्कार- अक्सर देखा जाता है कि लोग काले रंग का प्रयोग बुरी नजर से बचने के लिए करते हैं। कुछ लोग अपने हाथ और पैर में फैशन के तौर पर भी काला धागा बांधते हैं। लेकिन जाने-अनजाने में यह काला धागा आपके लिए चमत्कारी सिद्ध होता है। यह आपके लिए फायदेमंद हो सकता है। जानते हैं काला धागा का चमत्कार और इसे बांधने के पीछे का रहस्य –

हमारे समाज में ज्योतिषशास्‍त्र का बहुत अधिक महत्व है। ज्योतिषशास्त्र में पैर या हाथ में काला धागा बांधने से जीवन में कई सारे चमत्कार होते हैं। ऐसी मान्यता है कि वातावरण में जो व्याप्त नकारात्मक ऊर्जा है, उसको दूर करने की शक्ति काले धागे में है।

काला धागा शरीर में बांधने के फायदे (काला धागा का चमत्कार)

ऐसा माना जाता है कि व्यक्ति को बुरी नजह से बचाने के लिए काले रंग में असीम शक्ति होती है। काली शक्तियों से काला धागा व्यक्ति को बचाता है। हालांकि काले धागे से शनि ग्रह का संबंध भी है। काले का रंग का शनि कारक होता है। ऐसा कहा जाता है कि व्यक्ति की कुंडली में काला धागा पहनने से शनि ग्रह मजबूत हो जाता है। साथ ही काला रंग व्यक्ति को शनिदोष से भी छुटकारा दिलवाता है।

इस दिन काला धागा बांधना माना जाता है शुभ

काला धागा शरीर में मंगलवार के दिन बांधना बहुत लाभकारी होता है। खासतौर पर काला धागा दाहिने पैर में इस दिन बांधना बहुत शुभ माना गया है। कहा जाता है कि आर्थिक जीवन में इसके प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में सुख आता है और धन-समृद्धि भी घर में प्रवेश करती है।

शरीर संबधी बीमारियों से भी दिलवाता है निजात

पुराने समय से ही काला धागा बांधना सेहत के लिहाज से भी बहुत अच्छा माना गया है। जिन लोगों के पेट में दर्द रहता है, वह काला धागा अपने पैर के अंगूठे में काला धागा बांधें। इससे व्यक्ति को इस समस्या से राहत मिलती है। काला धागा उन लोगों को पहनना चाहिए जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है।

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