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शुक्रवार, 27 अगस्त 2021

वो जगह जहाँ राम नहीं, रावण की पूजा होती है!




भारत की वो जगह जहाँ राम नहीं, रावण की पूजा होती है!





भारत में नवरात्रि के बाद दसवें दिन विजयादशमी का त्योहार मनाया जाता है, इस त्योहार में रावण के पुतले का दहन करने की परंपरा है। हमारी संस्कृति में रावण को बुराई का प्रतीक के रूप में देखा जाता है। लेकिन आपको पता है, रावण सभी वेद सभी वेदों ग्रंथों ज्ञानी भी था। रावण परम ज्ञानी, परम शिवभक्त, पंडित थे। भारत की उन जगहों के बारे में बतायेंगे, जहाँ राम नहीं, रावण की पूजा होती है और जहाँ रावण दहन नहीं की जाती है।

मंदसौर: मध्यप्रदेश के मंदसौर में भगवान राम की नहीं महाज्ञानी रावण की पूजा होती है। दरअसल मंदसौर का पुराना नाम दशपुर था, जो रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका था। इसलिए दशपुर का नाम मंदसौर पड़ गया। मंदसौर का दामाद होने के नाते यहाँ के लोग रावण का सम्मान करते हैं। भारत में दामाद का सम्मान करने परंपरा रही है। इसलिए दामाद का सम्मान में रावण की पूजा होती है और यहाँ रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है। मंदसौर के रूंडी में रावण की एक मूर्ति भी बनी हुई है।


उज्जैन: मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले के एक गाँव चिखली है। इस गाँव के लोगों का मानना है कि रावण की पूजा नहीं करने तो जलकर राख हो जाएगा। इसी डर से गाँव के लोग रावण की पूजा करते हैं। इसलिए यहाँ के लोग रावण दहन नहीं करते हैं।

अमरावती: महाराष्ट्र के अमरावती में गढ़चिरौली नामक स्थान है, जहाँ आदिवासी रहते हैं। यहाँ के आदिवास समाज के लोग रावण को भगवान मानते हैं। दरअसल आदिवासियों का एक पर्व फाल्गुन है। इस पर्व में खास तौर से रावण की पूजा करने की परंपरा है। इस समाज में रावण और रावण के पुत्र को अपना देवता मानते हैं।

जसवंतनगर: उत्तर प्रदेश के जसवंतनगर में यहाँ के लोग दशहरे पर रावण के पुतले की आरती उतार कर पूजा करतें हैं। फिर उस पुतले को टुकड़े-टुकड़े किए जाते है। रावण के पुतले के टुकड़ों को घर ले जाते हैं और तेरहवीं के दिन तेरहवीं की जाती है। इसलिए यहाँ के लोग रावण दहन नहीं करते हैं।

बैजनाथ: हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में बैजनाथ नामक एक जगह है। यहाँ के लोग रावण की पूजा करते हैं। पुरानी मान्यता के अनुसार रावण ने तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर रावण को मोक्ष का वरदान दिये थे। इसलिए भगवान शिव के परम भक्त रावण का पुतला नहीं जलाया जाता है।

आंध्रप्रदेश: आंध्रप्रदेश के काकिनाड नामक स्थान पर रावण का मंदिर बना हुआ है। यहाँ के लोग विशेष रूप से मछुआरा समुदाय रावण की पुजा करते हैं। काकिनाड में भगवान शिव के साथ रावण की भी पूजा की जाती है। मछुआरा समुदाय का मानना है कि रावण महाज्ञानी और शक्ति सम्राट हैं। इसलिए यहाँ के लोग रावण दहन नहीं करते हैं।

जोधपुर: राजस्थान के जोधपुर में रावण का मंदिर है। इस मंदिर में रावण और मंदोदरी की विशाल प्रतिमाएं हैं। यहाँ एक खास समाज के लोग खुद को उसका वंशज मानते हैं। ये लोग इस जगह को रावण का ससुराल बताते हैं। इस समाज लोग दशहरे के दिन शोक मनाते हैं। इसलिए यहाँ के लोग रावण दहन नहीं करते हैं।

कनार्टक: कनार्टक के कोलार जिले में रावण की पूजा होती है। यहाँ के लोग रावण को भगवान शिव के भक्त के रूप में मानते हैं। धार्मिक मान्यताओं कि वजह से रावण की पूजा करतें हैं। कर्नाटक के ही मंडया जिले में मालवली नामक स्थान पर रावण का मंदिर भी है। इस मंदिर में रावण को महान शिव भक्त के रूप दिखाया गया है। इसलिए यहाँ के लोग रावण दहन नहीं करते हैं।

अमरावती – महाराष्ट्र के अमरावती में भी रावण पूजनीय है। अमरावती के में गढ़चिरौली नामक स्थान हैं जहाँ के स्थानीय आदिवासी समुदाय के लोग भी रावण को भगवान के समान ही पूजा-अर्चना की जाती है। दिवासी समुदाय द्वारा फाल्गुन पर्व में खास तौर रावण की पूजा करतें हैं। ये आदिवासी समुदाय रावण को ही अपना देवता मानते हैं।

समुद्री घोड़े अश्वमीन के बारे में रोचक तथ्य

समुद्री घोड़े अश्वमीन के बारे में रोचक तथ्य

क्या आपको पता है कि नर समुद्री घोड़े (अश्वमीन) भी गर्भवती हो सकते हैं ! गिरगिट की तरह रंग बदलता है समुद्री घोड़े!

आपने समुद्री घोड़े के बारे में तो सुना ही होगा बहुत से लोगों के मन में समुद्री घोड़े के बारे में अलग-अलग तरह के विचार बने हुए हैं। असल में बहुत कम लोगों को पता है कि समुद्रा घोड़ा क्या है दोस्तों हम आपको बता दें कि समुद्री घोड़ा असल में एक समुद्री घोड़ा नहीं होता। यह एक विचित्र प्रकार की मछली होती है। जिसका सिर्फ इन्हीं घोड़े के सिर से मिलता-जुलता होता है और इसीलिए लोग इस मछली को समुद्री घोड़े के नाम से जानते हैं यह विचित्र मछली सिर्फ गर्मियों के मौसम में ही समुंदर में दिखाई देती है और सर्दियों के मौसम में यह विचित्र मछली कहाँ पर चली जाती है। इसके बारे में वैज्ञानिक भी आज तक नहीं बता पाए आज हम आपको समुद्री घोड़े के बारे में ही बहुत से रोचक तथ्य बताएंगे। जिनके बारे में जानने के पश्चात आप हैरान रह जाएंगे


समुद्री घोड़े अश्वमीन के बारे में रोचक तथ्य!

  • दोस्तों क्या आपको पता है कि समुद्री घोड़ा असलियत में एक घोड़ा नहीं होता। बल्कि एक ऐसी अलग सी मछली होती है। जिसका सिर घोड़े के सिर से काफी मिलता-जुलता होता है। इसीलिए सभी लोग इस मछली को समुद्री घोड़ा कहते हैं। इस मछली का शरीर काफी चिकना होता है तथा इसकी पूंछ सांप की तरह लंबी होती है। यह मछली अक्सर गरम समुद्रों के पास समुद्री घास तथा छोटे-छोटे पौधों के साथ उसकी कुंडली बनाकर चिपकी रहती है।
  • हैरत की बात तो यह है कि इस विचित्र मछली की बाकी सभी हरकतें मछलियों से बिल्कुल अलग होती है और इसकी यही हरकतें इसे मछलियों से अलग बनाती है।
  • यह समुद्री घोड़े सफेद तथा पीले रंग के होते हैं और इनकी लगभग 100 से भी अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं और इनकी लंबाई 2.5 सेंटीमीटर से लेकर 31 सेंटीमीटर तक हो सकती है।
  • सबसे विचित्र बात यह है कि नर समुद्री घोड़े के पेट पर बिल्कुल कंगारू की तरह ही एक थैली होती है और मादा नर समुद्री घोड़े की इस थैली में अंडे देती है तथा इस थैली में ही अंडों से बच्चे भी बनते हैं और इन अंडों से बच्चे बनने में लगभग 45 दिन का समय लगता है और जब इन अंडों से बच्चे बन जाते हैं तो उसके पश्चात समुद्री घोड़ा इन्हें समुद्र में छोड़ देता है।
  • नर समुद्री घोड़ा 1 साल में तीन बार अपनी थैली में इन अंडों को सेकता है और यह नर समुद्री घोड़ा एक बार में लगभग 50 अंडों को अपनी थैली में रख सकता है तथा मादा मछली से मिलने के बाद 5 सप्ताह में नर समुद्री घोड़े के पेट कि इस थैली में अंडे तैयार हो जाते हैं।
  • समुद्री घोड़ा सिर्फ गर्मियों के मौसम में ही समुंदर में दिखाई देता है और सर्दियों के मौसम में यह किसी को भी नहीं दिखाई देता। इस बात का दावा आज तक वैज्ञानिक भी नहीं कर पाए कि यह सर्दियों में कहा लुप्त हो जाता है।
  • यह मछली खाने के काम बिल्कुल भी नहीं आती तथा समुंद्र में दूसरी मछलियां भी इस समुद्री घोड़े को खाना बिल्कुल भी पसंद नहीं करती। इसलिए इन्हें शत्रुओं का खतरा काफी कम हो जाता है।


  • समुद्री घोड़े को वैज्ञानिकों ने एक दूसरा नाम भी दिया है जो Hippocampus है।
  • समुद्री घोड़े की करीब 100 से भी अधिक प्रजातियां इस पृथ्वी पर पाई जाती है।
  • समुद्री घोड़ा सांस लेने के लिए अपने गलफडो़ ( Gills ) का इस्तेमाल करता है।
  • नर समुद्री घोड़े की एक विशेषता है कि बच्चे पैदा करने के लिए मादा समुद्री घोड़े के साथ-साथ नर समुद्री घोड़े की भी बच्चों के प्रति पूरी जिम्मेवारी होती है, और यह समुद्री घोड़ा अपने पेट की थैली में लगभग 45 दिनों तक सभी अंडों को रखता है और जब 45 दिन के समय पर उन अंडों से बच्चे निकल आते हैं तो उसके पश्चात और बच्चों को समुद्र में छोड़ता है। इस बात से आप अंदाजा लगा सकते हैं की बच्चे पैदा करने में नर समुद्री घोड़े की कितनी अहम भूमिका होती है। इसीलिए ऐसा कहा जाता है कि नर समुद्री घोड़े गर्भवती होते हैं।
  • क्या आपको पता है कि नर समुद्री घोड़े की आंखों की सरचना कुछ इस प्रकार है कि यह अपनी आंखों से अलग-अलग दिशाओं में भी देख सकता है।
  • समुद्री घोड़े की गति समुंदर में चलने वाली बाकी मछलियों से काफी धीमी होती है।
  • समुद्री घोड़ा का औसत जीवनकाल तकरीबन 1 साल से लेकर 4 साल तक होता है, समुद्री घोड़े की लगभग 100 से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती है परंतु सभी का जीवन काल सिर्फ 1 साल से लेकर 4 साल तक होता है।
  • यह समुद्री घोड़ा एक विचित्र समुद्री मछली है। इसीलिए यह उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका और यूरोपियन तथा अटलांटिक समुद्रों में पाया जाता है।
  • समुद्री घोड़े के शरीर में रीड की हड्डी के अलावा एक भी हड्डी नहीं होती इसकी बस एक सांप की तरह पूछ होती है।
  • समुद्री घोड़े को यदि किसी भी चीज का शिकार करना होता है या फिर किसी चीज को पकड़ना होता है तो यह सिर्फ अपनी पूंछ से ही उसको पकड़ता है।
  • जब यह समुंद्र में बहती हुई कोई भी चीज खाते हैं। तो उस समय आपने पूछ को समुद्री घास से चिपका कर रखते हैं।
  • समुद्री घोड़े को इसके दूसरे नाम अश्वमिन के नाम से भी जाना जाता है।

कस्तूरी मृग के बारे में रोचक जानकारी


कस्तूरी मृग के बारे में कुछ रोचक जानकारी


मनमोहक खुशबूदार कस्तूरी मृग से जुड़ी जानकारियां आपको बताने जा रहे है। अब तक हिरणों की 60 से भी अधिक किस्मों का अध्ययन किया जा चुका है। इन किस्मों में एक ऐसा भी हिरण होता है, जिससे कस्तूरी प्राप्त की जाती है। इसे कस्तूरी मृग ( Musk Deer ) कहते है और यह मोशिडे परिवार का प्राणी है। कस्तूरी मृग एकांत में रहने वाला बहुत ही सीधा और छोटा सा जानवर होता है। यह साइबेरिया से लेकर हिमालय तक के पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है।


इनके कान बड़े होते हैं, लेकिन पूंछ बहुत ही छोटी होती है। इनके सिर पर दस मृगों की भांति सींग नहीं होते, इनका रंग भूरा कत्थई होता है। कस्तूरी मृग की ऊंचाई 50 से 60 सेंटीमीटर (20-24 इंच) तक होती है।

नर मृग के पेट में कस्तूरी पैदा करने वाला अंग होता है. नर हिरण के दांत बाहर निकले होते हैं । जो नीचे की ओर झुके होते हैं।



कस्तूरी एक ऐसा पदार्थ है, जिसमें तीखी गंध होती है। कस्तूरी मृग के पेट की त्वचा के नीचे नाभि के पास एक छोटा सा थैला होता है, जिसमें कस्तूरी का निर्माण होता रहता है। ताजी कस्तूरी गाढ़े द्रव के रूप में होती है, लेकिन सूखने पर दानेदार चूर्ण के रूप में बदल जाती है।



कस्तूरी का प्रयोग उत्तम प्रकार के साबुन और इत्र बनाने में प्रयोग किया जाता है, क्योकिं इसकी सुगंध बड़ी ही मनोरम होती है।

पटना के रहस्यमयी अगम कुआँ - धरती के नरक का खूनी कुआँ


पटना के रहस्यमयी अगम कुआँ जो अपने अंदर समाये है कई बड़े-बड़े राज।

अगम कुआँ : अमृत का कुआँ या फिर धरती के नरक का खूनी कुआँ





पटना के रहस्यमयी अगम कुआँ जो अपने अंदर समाये है कई बड़े-बड़े राज। इसी कुआँ में दफन है अशोक के 99 भाइयों के लाशें और दफन है सम्राट अशोक का गुप्त खजाना! रहस्यमयी कुआँ का पानी कभी नहीं सूखता!

प्राचीन भारत में निर्मित लगभग सभी आज भी रहस्यमय ही है। हमारे पूर्वज किसी भी चिज का निर्माण किस उद्देश्य से किये थे यह आज भी अनसुलझा ही है। एक कुआँ जिसकी इतिहास काफी ही रहस्यमयी है। बिहार के पटना में एक प्राचीन कुँआ है अगम कुआँ जिसका निर्माण सम्राट अशोक के काल में हुआ था।


कुआँ 105 फीट गहरी, व्यास 15 फीट है। कुएं के ऊपर के आधे हिस्से 44 फीट तक ईंट से घिरा हुआ है, जबकि जबकि निचे के 61 फीट लकड़ी के छल्ले की एक श्रृंखला द्वारा सुरक्षित किया गया है। इस कुआँ का जलस्तर न कभी घटता है और न ही बढ़ता है। इस कुआँ के रहस्य जानने की तीन कोशिश की गई थी।

सबसे पहले 1932 में, फिर 1962 में और फिर तीसरी बार 1995 में की गई थी। इस कुआँ का पानी का रंग भी बदलता रहता है। आगम कुआँ का निर्माण सम्राट अशोक द्वारा करवाया गया था, लेकिन इसका निर्माण का मुख्य उद्देश्य आज भी रहस्य है। इस कुएं से जुड़ी अनेक प्राचीन कहानियाँ हैं।

प्राचीन कहानियों की मानें सम्राट अशोक ने इसे दोषियों को सजा देने के लिए बनवाया था। जानकारों के अनुसार अशोक ने अपने सभी 99 सौतेले भाइयों का मार कर इसी अगम कुआँ में में डलवा दिया था। मौर्य साम्राज्य के सिंहासन को पाने के लिए अशोक ने अपने विरोधियों का भी सिर काट कर अगम कुआँ में डाल दिया।



5 वीं और 7 वीं शताब्दी की चीनी दार्शनिकों अपनी किताबों में इस कुएं का जिक्र धरती पर नरक के रूप में किया था। इसके अलावा एक औैर कहानी है कि सम्राट अशोक ने का गुप्त खजाना इसी कुंए में छिपा हुआ है।अगम का अर्थ है पाताल, इसलिए इसे अगम कुआँ कहा जाता है। इस कुआँ के अंदर श्रंखलाबद्ध तरीके से 9 छोटे कुएं हैं, और जानकारों की माने तो किसी एक कुआँ में एक गुप्त तहखाना है जहाँ सम्राट अशोक का खजाना मौजूद है। हला की इन कहानियों का आज तक कोई भी प्रमाण नहीं मिला है।

अगम कुआँ के बारे में एक प्राचीन मान्यता है कि एक जैन भिक्षु सुदर्शन को राजा चांद ने इसी कुआँ फिंकवा दिया था, लेकिन जैन भिक्षु सुदर्शन कमल पर बैठे तैरते पाए गए। हिंदू लोग इस कुआँ को धार्मिक कामों के लिए शुभ मानतें हैं।

कहा जाता है कि अगम कुआँ का अंतिम छोर गंगासागर से जुड़ा है। इसके पीछे एक कहानी बताई जाती है कि एक बार किसी अंग्रेज की छड़ी गंगा सागर में गिर गई थी, जो बाद में छड़ी इस कुएं में तैरती पाई गई थी। छड़ी को निकाली गई और कोलकाता के एक म्यूजियम में रखी गई है। इसलिए यह कुआँ कभी नहीं सूखता है। इस रहस्यमयी कुआँ की खोज ब्रिटिश खोजकर्ता लॉरेंस वेडेल ने की थी।



अगम कुआँ का अपना एक धार्मिक महत्व भी है। कुआँ के पास माँ शीतला देवी का मंदिर भी स्थापित है। हिन्द धार्मिक मान्यता के अनुसार कुआँ की पूजा के बाद ही माँ शीतला देवी की पूजा की जाती है। मान्यता के अनुसार यह कुआँ गंगासागर से जुड़ा है, इसलिए माँ गंगा की तरह कुआँ की पूजा की जाती है और इसी कुआँ की जल का प्रयोग माँ शीतला देवी की पूजा में की जाती है। चेचक और चिकन पॉक्स के इलाज के लिए मंदिर को व्यापक रूप से माना जाता है।मान्यता है कि संतान की प्राप्ति, चेचक और चिकन पॉक्स के लिए मंदिर में खास तौर से पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस कुआँ का पानी शरीर के कई रोग को दूर करता है।

चूहों के दातों में कितना दम होता है, क्या वह सचमुच पहाड़ कुतर सकते हैं?

 

जर्मनी के एक mineralogist फ़्रीड्रिक मोह ने 1812 में हॉर्ड्नेस को मापने का एक पैमाना बनाया ।

Source:Google

इसमें 1 से 10 तक के स्केल पर चूहों के दाँतो की हार्ड्नेस 5.5 पाई गई।चूहों के दाँत तांबा और लोहा दोनो से ज़्यादा हार्ड होते हैं।

Source: [1]

चूहों के जबडे की माँसपेशियाँ प्रति वर्ग टन पर 12 टन तक का दबाव दाल सकती हैं जबकि शार्क अपने दांतों से सिर्फ़ 2 टन तक का ही दबाव डाल सकती है।[2]

Source:Google

चूहें प्लास्टिक ,लकड़ी,तार और काँच को भी चबा सकते हैं।वे काँक्रीट को भी काट सकते है।सॉफ़्ट धातु को वो चबा लेते हैं।लेकिन स्टील को काटना उनके लिए मुश्किल होता है।

फुटनोट

[2] Rat Jaw Strength and Chewing Capabilities | Terminix

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