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सोमवार, 26 सितंबर 2022

#26_सितम्बर#साहस_शौर्य_और_दानशीलता_की_मूर्ति। #रानी_रासमणि_जी_का_जन्म_दिवस

#26_सितम्बर

#साहस_शौर्य_और_दानशीलता_की_मूर्ति। 
#रानी_रासमणि_जी_का_जन्म_दिवस

कोलकाता के दक्षिणेश्वर मंदिर और उसके पुजारी श्री रामकृष्ण परमहंस का नाम प्रसिद्ध है; पर वह मंदिर बनवाने वाली रानी रासमणि को लोग कम ही जानते हैं। रानी का जन्म बंगाल के 24 परगना जिले में गंगा के तट पर बसे ग्राम कोना में हुआ था। उनके पिता श्री हरेकृष्ण दास एक साधारण किसान थे। परिवार का खर्च चलाने के लिए वे खेती के साथ ही जमींदार के पास कुछ काम भी करते थे। उसकी चर्चा से रासमणि को भी प्रशासनिक कामों की जानकारी होने लगी। रात में उनके पिता लोगों को रामायण, भागवत आदि सुनाते थे। इससे रासमणि को भी निर्धनों के सेवा में आनंद मिलने लगा।।    

रासमणि जब बहुत छोटी थीं, तभी उनकी मां का निधन हो गया। ऐसे में उनका पालन उनकी बुआ ने किया। तत्कालीन प्रथा के अनुसार 11 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह बंगाल के बड़े जमींदार प्रीतम बाबू के पुत्र रामचंद्र दास से हो गया। ऐसे घर में आकर भी रासमणि को अहंकार नहीं हुआ। 1823 की भयानक बाढ़ के समय उन्होंने कई अन्नक्षेत्र खोले तथा आश्रय स्थल बनवाये। इससे उन्हें खूब ख्याति मिली और लोग उन्हें ‘रानी’ कहने लगे।

विवाह के कुछ वर्ष बाद उनके पति का निधन हो गया। तब तक वे चार बेटियों की मां बन चुकी थीं; पर उनके कोई पुत्र नहीं था। अब सारी सम्पत्ति की देखभाल का जिम्मा उन पर ही आ गया। उन्होंने अपने दामाद मथुरानाथ के साथ मिलकर सब काम संभाला। सुव्यवस्था के कारण उनकी आय काफी बढ़ गयी। सभी पर्वों पर रानी गरीबों की खुले हाथ से सहायता करती थीं। उन्होंने जनता की सुविधा के लिए गंगा के तट पर कई घाट और सड़कें तथा जगन्नाथ भगवान के लिए सवा लाख रु. खर्च कर चांदी का रथ भी बनवाया। 

रानी का ब्रिटिश साम्राज्य से कई बार टकराव हुआ। एक बार अंग्रेजों ने दुर्गा पूजा उत्सव के ढोल-नगाड़ों के लिए उन पर मुकदमा कर दिया। इसमें रानी को जुर्माना देना पड़ा; पर फिर रानी ने वह पूरा रास्ता ही खरीद लिया और वहां अंग्रेजों का आवागमन बंद करा दिया। इससे शासन ने रानी से समझौता कर उनका जुर्माना वापस किया। एक बार शासन ने मछली पकड़ने पर कर लगा दिया। रानी ने मछुआरों का कष्ट जानकर वह सारा तट खरीद लिया। इससे अंग्रेजों के बड़े जहाजों को वहां से निकलने में परेशानी होने लगी। इस बार भी शासन को झुककर मछुआरों से सब प्रतिबंध हटाने पड़े।

एक बार रानी को स्वप्न में काली माता ने भवतारिणी के रूप में दर्शन दिये। इस पर रानी ने हुगली नदी के पास उनका भव्य मंदिर बनवाया। कहते हैं कि मूर्ति आने के बाद एक बक्से में रखी थी। तब तक मंदिर अधूरा था। एक बार रानी को स्वप्न में मां काली ने कहा कि बक्से में मेरा दम घुट रहा है। मुझे जल्दी बाहर निकालो। रानी ने सुबह देखा, तो प्रतिमा पसीने से लथपथ थी। इस पर रानी ने मंदिर निर्माण का काम तेज कर दिया और अंततः 31 मई, 1855 को मंदिर में मां काली की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हो गयी।

इस मंदिर में मुख्य पुजारी रामकुमार चटर्जी थे। वृद्ध होने पर उन्होंने अपने छोटे भाई गदाधर को वहां बुला लिया। यही गदाधर रामकृष्ण परमहंस के नाम से प्रसिद्ध हुए। परमहंस जी सिद्ध पुरुष थे। एक बार उन्होंने पूजा करती हुई रानी को यह कहकर चांटा मार दिया कि मां के सामने बैठकर अपनी जमींदारी का हिसाब मत करो। रानी अपनी गलती समझकर चुप रहीं। 

रानी ने अपनी सम्पत्ति का प्रबंध ऐसे किया, जिससे उनके द्वारा संचालित मंदिर तथा अन्य सेवा कार्यों में भविष्य में भी कोई व्यवधान न पड़े। अंत समय निकट आने पर उन्होंने अपने कर्मचारियों से गंगा घाट पर प्रकाश करने को कहा। इस जगमग प्रकाश के बीच 19 फरवरी, 1861 को देश, धर्म और समाजसेवी रानी रासमणि का निधन हो गया। दक्षिणेश्वर मंदिर के मुख्य द्वार पर लगी प्रतिमा उनके कार्यों की सदा याद दिलाती रहती है।

#26_सितम्बर#कर्मयोगी_पंडित_सुन्दरलाल_जी_का_जन्म_दिवस

#26_सितम्बर

#कर्मयोगी_पंडित_सुन्दरलाल_जी_का_जन्म_दिवस 🇮🇳🚩🙏

भारत के स्वाधीनता आंदोलन के अनेक पक्ष थे। हिंसा और अहिंसा के  साथ कुछ लोग देश तथा विदेश में पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से जन जागरण भी कर रहे थे। अंग्रेज इन सबको अपने लिए खतरनाक मानते थे।

26 सितम्बर, 1886 को खतौली (जिला मुजफ्फरनगर, उ.प्र.) में सुंदरलाल नामक एक तेजस्वी बालक ने जन्म लिया। खतौली में गंगा नहर के किनारे बिजली और सिंचाई विभाग के कर्मचारी रहते हैं। इनके पिता श्री तोताराम श्रीवास्तव उन दिनों वहां उच्च सरकारी पद पर थे। उनके परिवार में प्रायः सभी लोग अच्छी सरकारी नौकरियों में थे।

मुजफ्फरनगर से हाईस्कूल करने के बाद सुंदरलाल जी प्रयाग के प्रसिद्ध म्योर क१लिज में पढ़ने गये। वहां क्रांतिकारियों के सम्पर्क रखने के कारण पुलिस उन पर निगाह रखने लगी। गुप्तचर विभाग ने उन्हें भारत की एक शिक्षित जाति में जन्मा आसाधारण क्षमता का युवक कहा, जो समय पड़ने पर तात्या टोपे और नाना फड़नवीस की तरह खतरनाक हो सकता है।

1907 में वाराणसी के शिवाजी महोत्सव में 22 वर्षीय सुन्दर लाल ने ओजस्वी भाषण दिया। यह समाचार पाकर कॉलेज वालों ने उसे छात्रावास से निकाल दिया। इसके बाद भी उन्होंने प्रथम श्रेणी में बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। अब तक उनका संबंध लाला लाजपतराय, श्री अरविन्द घोष तथा रासबिहारी बोस जैसे क्रांतिकारियों से हो चुका था। दिल्ली के चांदनी चौक में लार्ड हार्डिंग की शोभायात्रा पर बम फेंकने की योजना में सुंदरलाल जी भी सहभागी थे।

उत्तर प्रदेश में क्रांति के प्रचार हेतु लाला लाजपतराय के साथ सुंदरलाल जी ने भी प्रवास किया। कुछ समय तक उन्होंने सिंगापुर आदि देशों में क्रांतिकारी आंदोलन का प्रचार किया। इसके बाद उनका रुझान पत्रकारिता की ओर हुआ। उन्होंने पंडित सुंदरलाल के नाम से ‘कर्मयोगी’ पत्र निकाला। इसके बाद उन्होंने अभ्युदय, स्वराज्य, भविष्य और हिन्दी प्रदीप का भी सम्पादन किया।

ब्रिटिश अधिकारी कहते थे कि पंडित सुन्दर लाल की कलम से शब्द नहीं बम-गोले निकलते हैं। शासन ने जब प्रेस एक्ट की घोषणा की, तो कुछ समय के लिए ये पत्र बंद करने पड़े। इसके बाद वे भगवा वस्त्र पहनकर स्वामी सोमेश्वरानंद के नाम से देश भर में घूमने लगे। इस समय भी क्रांतिकारियों से उनका सम्पर्क निरन्तर बना रहा और वे उनकी योजनाओं में सहायता करते रहे। 1921 से लेकर 1947 तक उन्होंने उन्होंने आठ बार जेल यात्रा की।

इतनी व्यस्तता और लुकाछिपी के बीच उन्होंने अपनी पुस्तक ‘भारत में अंग्रेजी राज’ प्रकाशित कराई। यद्यपि प्रकाशन के दो दिन बाद ही शासन ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया; पर तब तक इसकी प्रतियां पूरे भारत में फैल चुकी थी। इसका जर्मन, चीनी तथा भारत की अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ।

1947 में स्वतंत्रता प्रप्ति के बाद गांधी जी के आग्रह पर विस्थापितों की समस्या के समाधान के लिए वे पाकिस्तान गये। 1962-63 में ‘इंडियन पीस काउंसिल’ के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने कई देशों की यात्रा की। 95 वर्ष की आयु में 8 मई, 1981 को दिल्ली में हृदयगति रुकने से उनका देहांत हुआ। जब कोई उनके दीर्घ जीवन की कामना करता था, तो वे हंसकर कहते थे -

होशो हवास ताबे तबां, सब तो जा चुके 
अब हम भी जाने वाले हैं, सामान तो गया।।

अंग्रेज चले गए अमेजन घुस गई!

*अंग्रेज चले गए अमेजन घुस गई!?* 

आधुनिक जमाने की *सुरसा अमेजन* खा जायेगी सभी स्वदेशी कंपनियां! 

इसके साथ ही आपके घर के भीतर आप जो भी बात करेंगे, बिना इंटरनेट के पहुंच जाएगी, अमेरिका! 

*जेफ बेजोस का खतरनाक प्लान* भारत समेत दुनिया के सभी देशों को अपने अंडर करने का विदेशी चक्रव्यूह है अमेजन प्राइम, अमेजन वेब सर्विस AWS जो खत्म कर देगा तमाम स्थानीय स्वदेशी कंपनियां! 

इसके अलावा *अमेजन ने कर लिया दुनिया के मीडिया पर भी अपना कब्जा!* आधुनिक *दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा है अमेजन*... इतना तय है अगर कुछ नहीं किया गया तो *अंग्रेजों और मुगलों का राज भूल जायेंगे... जब अमेजन राज करेगा*... 

40% कब्जा ही चुका है, बाकी हर फेस्टिवल सीजन पर होता जायेगा...  *अबहुं चेत गंवार* पहले से समझदार, जागरूक लोगों को शिव नमन, *बाकियों से अनुरोध आज से शुरू कर दें बॉयकॉट!*

क्योंकि ये विदेशी, विधर्मी सामान का बॉयकॉट ही है जिसने छोटे से द्वीप जापान को दुनिया की बड़ी शक्ति बनाया अपने देश का अपने व्यापारी का महंगा खरीदते है जापानी पर विदेशी सस्ता नहीं!

*क्या आप चाहते हैं फिर गुलाम बनना, और सस्ते के चक्कर में, मुफ्त के चक्कर में, अपने ही स्थानीय व्यापारियों समेत अपने राष्ट्र धर्म से गद्दारी करना*... 

सस्ता पड़ेगा महंगा... *अब तो जागो मूढमति* खुजली वाली बीमारी एक नहीं, हर शाख पर उल्लू बैठा है, कलियुग में जानकारी ही बचाव है, संगठन ही शक्ति! 

*इसलिए मिलकर जवाब दो, विदेशी, विधर्मी सामान, कंपनी का पूर्ण बहिष्कार है कलियुग का मूल मंत्र, बाकी सब बकवास!*😳

माँ ब्रह्मचारिणी -नवरात्र के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा होती है

************** *माँ ब्रह्मचारिणी***************
                नवरात्र के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा होती है। इस रूप में देवी को समस्त विद्याओं का ज्ञाता माना गया है। देवी ब्रह्मचारिणी भवानी माँ जगदम्बा का दूसरा स्वरुप है। 
                ब्रह्मचारिणी ब्रह्माण्ड की रचना करने वाली। ब्रह्माण्ड को जन्म देने के कारण ही देवी के दूसरे स्वरुप का नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। देवी के ब्रह्मचारिणी रूप में ब्रह्मा जी की शक्ति समाई हुई है। 
                माना जाता है कि सृष्टी कि उत्पत्ति के समय ब्रह्मा जी ने मनुष्यों को जन्म दिया। समय बीतता रहा , लेकिन सृष्टी का विस्तार नहीं हो सका। ब्रह्मा जी भी अचम्भे में पड़ गए। देवताओं के सभी प्रयास व्यर्थ होने लगे। सारे देवता निराश हो उठें तब ब्रह्मा जी ने भगवान शंकर से पूछा कि ऐसा क्यों हो रहा है। 
                भोले शंकर बोले कि बिना देवी शक्ति के सृष्टी का विस्तार संभव नहीं है। सृष्टी का विस्तार हो सके इसके लिए माँ जगदम्बा का आशीर्वाद लेना होगा, उन्हें प्रसन्न करना होगा। देवता माँ भवानी के शरण में गए। तब देवी ने सृष्टी का विस्तार किया। उसके बाद से ही नारी शक्ति को माँ का स्थान मिला और गर्भ धारण करके शिशु जन्म कि नीव पड़ी।
                 हर बच्चे में १६ गुण होते हैं और माता पिता के ४२ गुण होते हैं। जिसमें से ३६ गुण माता के माने जातें हैं।
                देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योर्तिमय है। माँ दुर्गा की नौ शक्तियों में से द्वितीय शक्ति देवी ब्रह्मचारिणी का है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली अर्थात तप का आचरण करने वाली माँ ब्रह्मचारिणी। यह देवी शांत और निमग्न होकर तप में लीन हैं। मुख पर कठोर तपस्या के कारण अद्भुत तेज और कांति का ऐसा अनूठा संगम है जो तीनों लोको को उजागर कर रहा है। 
                देवी ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्ष माला है और बायें हाथ में कमण्डल होता है। देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप हैं अर्थात तपस्या का मूर्तिमान रूप हैं। 
                इस देवी के कई अन्य नाम हैं जैसे तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में स्थित होता है। इस चक्र में अवस्थित साधक माँ ब्रह्मचारिणी जी की कृपा और भक्ति को प्राप्त करता है।
                ब्रह्मचारिणी अर्थात् जब उन्होंने तपश्चर्या द्वारा शिव को पाया था। एक हाथ में रुद्राक्ष की माला और दुसरे हाथ में कमंडल धारण करने वाली देवी का यह ब्रह्मचारिणी स्वरुप कल्याण और मोक्ष प्रदान करने वाला है। 
                देवी के ब्रह्मचारिणी स्वरुप की आराधना का विशेष महत्व है। माँ के इस रूप की उपासना से घर में सुख सम्पति और समृद्धि का आगमन होता है।                           

                    *ब्रह्मचारिणी मंत्र*
     *या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।* 
     *नमस्तस्यै    नमस्तस्यै     नमस्तस्यै    नमो    नम:॥*
     *दधाना कर पद्माभ्याम    अक्षमाला   कमण्डलू।* 
     *देवी प्रसीदतु मई    ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥*
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रविवार, 25 सितंबर 2022

नवरात्र 2022 विशेष* *घटस्थापन कलश विशेष मुहूर्त पूजन सम्पूर्ण विधि और जाप मंत्र

‼️  *जय माता दी* ‼️

 *नवरात्र 2022 विशेष* 

 *घटस्थापन कलश विशेष मुहूर्त पूजन सम्पूर्ण विधि और जाप मंत्र:-* 

नवरात्रि 26 सितंबर 2022, सोमवार से शुरू हो रहे हैं जी दरअसल नवरात्रि के पहले दिन शुक्ल व ब्रह्म योग का अद्भभुत संयोग बनने के कारण इसे बेहद खास माना जा रहा है आपको बता दें कि इस साल नवरात्रि पर माता रानी हाथी की सवारी से पृथ्वी पर आने वाली हैं जी दरअसल हाथी की सवारी को बेहद शुभ माना जा रहा है.

 *शुक्ल व ब्रह्म योग का महत्व:-* 
पंडित.संजय शास्त्री के अनुसार आप सभी को बता दें कि शारदीय नवरात्रि के पहले दिन सुबह 08 बजकर 06 मिनट तक शुक्ल योग रहेगा जी हाँ और इसके बाद ब्रह्म योग शुरू होगा वहीं शास्त्रों के अनुसार, शुक्ल व ब्रह्म योग में किए गए कार्यों को बेहद शुभ फलदायी माना गया है.

 *घर की इस दिशा में स्थापित करना होता है शुभ:-* 

मां दुर्गा की मूर्ति को घर में उत्तर-पूर्व दिशा यानी ईशान कोण में स्थापित करें मन जाता है कि अगर इस दिशा में माता की मूर्ति स्थापित कर दी जाए, तो शारीरिक और मानसिक शांति मिलती है आप घर के उत्तर या पश्चिम दिशा में भी मां दुर्गा की मूर्ति की स्थापना की सकती है इन दिशाओं में स्थापित करने से भक्त का मुख पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर होगा, जिसे पूजा के लिए शुभ माना गया है और ऐसे पूजा करने से व्यक्ति में चेतना जागृत होती है और दक्षिण दिशा से व्यक्ति को मानसिक शांति मिलती है. 

 *घटस्थापना का शुभ मुहूर्त:-* 

आश्विन घटस्थापना सोमवार, सितम्बर 26, 2022 को की जाएगी
घटस्थापना मुहूर्त - 06:11 AM से 07:51 AM तक रहेगा इसकी अवधि - 01 घण्टा 40 मिनट तक रहेगी घटस्थापना अभिजित मुहूर्त - 11:48 AM से 12:36 PM तक रहेगा अवधि - 00 घण्टे 48 मिनट तक.

 *नवरात्रि के पहले दिन बन रहे ये शुभ संयोग:-* 
ब्रह्म मुहूर्त- 04:36 AM से 05:23 AM।
अभिजित मुहूर्त- 11:48 AM से 12:36 PM।
विजय मुहूर्त- 02:13 PM से 03:01 PM।
गोधूलि मुहूर्त- 06:01 PM से 06:25 PM।
अमृत काल    12:11 AM, सितम्बर 27 से 01:49 AM

 *इन मुहूर्त में न करें कलश स्थापना:-* 
राहुकाल- 07:41 AM से 09:12 AM
यमगण्ड-10:42 AM से 12:12 PM
दुर्मुहूर्त-12:36 PM से 01:24 PM

*कैसे करें कलश स्थापना:-?*
शारदीय नवरात्रों में कलश स्थापना का काफी महत्व माना जाता है. नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करके मां शैलीपुत्री की पूजा की जाती है, जो लोग 9 दिनों का व्रत रख रहे हैं, उन्हें कलश स्थापना के साथ ही मां दुर्गा की पूजा-अर्चना का सच्चे मन से संकल्प लेना चाहिए. सोमवार से शुरू होने वाले शारदीय नवरात्रि में कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त का समय इस बार 1.40 घंटे का है.

 *पूजा में इस्तेमाल होने वाली सामग्री:-* 
सबसे पहले मां दुर्गा की प्रतिमा, दुर्गा चालीसा और आरती की किताब, दीपक, घी/ तेल, फूल, फूलों का हार, पान, सुपारी,  लाल झंडा, इलायची, बताशे या मिसरी, असली कपूर, उपले, फल व मिठाई, कलावा, मेवे, हवन के लिए आम की लकड़ी, जौ, वस्त्र, दर्पण, कंघी, कंगन-चूड़ी, सिंदूर, केसर, कपूर, हल्दी की गांठ और पिसी हुई हल्दी, पटरा, सुगंधित तेल, चौकी चाहिए होगी.

 *ऐसे करें कलश स्थापना* 
कलश स्थापना करने के लिए माता की चौकी को उत्तर-पूर्व दिशा में स्थापित करना चाहिए. इस चौकी को गंगाजल छिड़ककर पवित्र कर लें. अब चौकी पर लाल रंग से स्वास्तिक बनाकर कलश स्थापित करें. इस कलश में आम के पत्ते लगाएं और गंगाजल भरें. कलश में आप एक सुपारी, कुछ सिक्के, दूर्वा, हल्दी की एक गांठ भी डाल सकते हैं. कलश के मुख पर एक लाल वस्त्र से नारियल लपेट कर रखें. कलश स्थापना के बाद मां दुर्गा के शैलपुत्री अवतार की पूजा करें. हाथ में फूल लेकर मां की आरती करें. आप पूजा में 'ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै.' इस मंत्र का जप करें.
पं.संजय शास्त्री के अनुसार नवरात्रि का पर्व हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है हिंदू पंचांग के अनुसार साल भर में कुल मिलाकर 4 नवरात्रि आती हैं जिसमें चैत्र और शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व है नौ दिवसीय इस पर्व में 9 रातों तक तीन देवियां – मां लक्ष्मी, मां सरस्वती और मां काली के नौ स्वरुपों की पूजा होती है.

शारदीय नवरात्रि हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होती है और दशमी तिथि को माता दुर्गा की प्रतिमा विसर्जन के साथ समाप्त होती है इस बार शारदीय नवरात्रि 26 सितंबर को शुरू होकर 5 अक्टूबर 2022 को समाप्त होगी.

नवरात्रि के 9 दिनों तक मां दुर्गा के भक्त उपवास रखते हुए पूजा अर्चना करते हैं आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा प्रतिपदा तिथि को घटस्थापना की जाती है और अष्टमी व नवमी तिथि पर कन्या पूजन के बाद व्रत का पारण किया जाता है.
हर किसी के जीवन में यूं तो उतार-चढ़ाव लगे ही रहते है देखा जाये तो व्यक्ति अपनी परेशानियों में घिरा रहता है, कई तरह के उपाय करने के बाद भी उसका समाधान प्राप्त नहीं कर पाता ऐसे में वो खुद से और जीवन से निराश होने लगता है.
सच्चे मन से नवरात्र में माँ की पूजा की जाये तो समस्त बाधाओं और बंधनों से मुक्त करा देती है इसलिए मनोकामना पूर्ति, लक्ष्य की सिद्धि, तंत्र-मंत्र के लिए नवरात्र में आदिशक्ति मां दुर्गा के मंत्रों का जाप होता है.  
 *माता को प्रसन्न करने के खास मंत्र:-* 
 *‘मां दुर्गा के सिद्ध मंत्र’* 

 *1- शत्रु के विनाश के लिए मंत्र* 

रक्त बीज वधे देवि चण्ड मुण्ड विनाशिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।


*2- सौभाग्य की प्राप्ति के लिए मंत्र*

वन्दि ताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्य दायिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।

*3- अपने कल्याण के लिए मंत्र*

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्रयम्बके देवी नारायणी नमोस्तुते।।

*4- समस्त बाधाओं से मुक्ति के लिए मंत्र* 

शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनि।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।

5- *बीमारियों से मुक्ति के लिए मंत्र* 

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।

 *जगत के कल्याण के लिए* 

विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।

*7- धन और विद्या प्राप्ति के लिए*

विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।


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