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शनिवार, 10 दिसंबर 2022

पहली बार सामने आईं ‘रामायण’ की 35 साल पुरानी तस्वीरें, 4 फीट ऊंचा था रावण का महल, शूटिंग का चार्ज था ₹ 2000

 

पहली बार सामने आईं ‘रामायण’ की 35 साल पुरानी तस्वीरें, 4 फीट ऊंचा था रावण का महल, शूटिंग का चार्ज था ₹ 2000

भगवान राम, लक्ष्मण और सीता का नाम लेते ही हर किसी के मन में मनमोहक मुस्कुराहट और चमक वाले अरुण गोविल (अरुण गोविल ), सुनील लहरी (सुनील लहरी ) और दीपिका चिखलिया (दीपिका चिखली ) का चेहरा आता है।

लॉकडाउन के दौरान रामायण शो फिर से शुरू हुआ तो उसने TRP के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए। बुजुर्ग बताते हैं 32 साल पहले टीवी पर रामायण आती थी तो उस समय सड़के थम जाती थीं। लोग अपने-अपने घरों में रामायण देख रहे होते थे।इसके अलावा हमें रामायण की शूटिंग के दौरान क्लिक किए गए कुछ ऐसे फोटो भी मिले हैं, जो शायद ही आपने पहले देखे हो।

इन तस्वीरों को हमारे साथ शेयर करने वाले शख्स ने बताया कि उनके यहां ये फोटो दादाजी की यादों के तौर पर रखे हुए हैं। आइए जानते हैं रामायण से जुड़ी कुछ रोचक बातें।

रामायण की शूटिंग गुजरात के उमरगाम (उमरगम ) के वृंदावन स्टूडियो (वृन्दावन स्टूडियो ) में हुई थी। स्टूडियो के तत्कालीन मालिक, राष्ट्रपति अवार्ड से सम्मानित और दादा साहब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित स्व. हीराभाई पटेल (हीराभाई पटेल ) ने रामायण की शूटिंग में अहम भूमिका निभाई थी।

वह रामायण, विक्रम बेताल और सिंहासन बत्तीसी के अलावा 300 से अधिक धार्मिक और ऐतिहासिक फिल्मों व सीरियल के आर्ट डायरेक्टर रह चुके हैं।

. कई मामलों में रामानंद सागर उनके पिताजी से सलाह मशवरा करते थे और उसके आधार पर ही आगे की तैयारी की जाती थी। उन्होंने बताया कि रामायण की शूटिंग 1985 से शुरू होकर 5 साल तक चली थी।

उस समय रामायण की शूटिंग के लिए स्टूडियो का किराया शिफ्ट के आधार पर लिया जाता था। 8 घंटे की शिफ्ट के लिए 2000 हजार रुपये किराया था। इसके अलावा कैमरामैन, असिस्टेंट, स्टूडियो असिस्टेंट और डायरेक्टर्स के रुकने के लिए अलग-अलग व्यवस्था थी। रामायण के बाद जय हनुमान सीरियल, जय मां वैष्णों देवी जैसे कई सीरियल की शूटिंग भी यहीं हुई जो भी हिट रहे थे।

विपिन भाई पटेल बताते हैं कि हमारे स्टूडियो में ही सारे दृश्य फिल्माए गए थे। चाहे वो आश्रम का सीन हो, जंगल का सीन हो, युद्ध का सीन हो या समुद्र का सीन हो। सभी को पिताजी ने ही डिजाइन किया था।

विपिन बताते हैं, सेट कैसा दिखना चाहिए इस पर रामानंद सागर, पिताजी और कुछ अन्य लोग पहले चर्चा करते थे। उसके बाद पिताजी पेंटिंग के द्वारा उसे दिखाने की कोशिश करते थे कि वो देखने में कैसा लगेगा या किन रंगों का उसमें प्रयोग होना चाहिए।

सेट बनने के बाद उसे ट्रिक फोटो / वीडियो ग्राफी से बड़ा या छोटा दिखाया जा सकता था। आपने देखा होगा कि रामायण के एक सीन में रावण महल की बालकनी में आकर कुंभकरण से बात करता है। उसमें महल की ऊंचाई काफी दिखाई गई है।

विपिन भाई पटेल बताते हैं यह बात उन दिनों की है जब रामायण का प्रसारण टीवी पर शुरू हो चुका था। राम, लक्ष्मण, सीता के रूप में लोग अरुण गोविल, सुनील लहरी और दीपिका चिखलिया को जानने लगे थे।

इस दौरान 80 साल की एक महिला सेट पर स्थित अरुण गोविल के कमरे में चली गई और उनकी नींद खराब कर दी। जैसे ही वे उठे तो वो जाकर सीधे अरुण गोविल के पैरों में गिर गई। महिला को वहां देखकर अरुण गोविल को गुस्सा आया और उन्होंने ऑफिस में आकर मैनेजमेंट से इस बारे में बात शिकायत की, कि एक महिला ने कमरे में आकर उनकी नींद खराब कर दी है। इस पर पिताजी ने उन्हें समझाया कि ये बूढ़ी महिला आपको भगवान राम मानती है, इसी कारण आपके दर्शन करने के लिए भावुकता वश आ गई। इसके बाद अरुण गोविल का गुस्सा शांत हुआ और उन्होंने उस बुजुर्ग महिला से बात की।

विपिन भाई पटेल बताते हैं कि रावण का रोल किसे दिया जाए इस पर काफी संशय था। जब रामानंद सागर ने हीराभाई पटेल से पूछा कि रावण का रोल किसे दिया जाए तो उन्होंने अरविंद त्रिवेदी का नाम सुझाया।

इसका कारण यह था कि वह अरविंद त्रिवेदी को विलेन के रोल में एक गुजराती मूवी में देख चुके थे। साथ ही वह थिएटर आर्टिस्ट भी थे। इसके बाद उन्हें बुलाया गया और रामानंद सागर ने उनकी डायलॉग डिलिवरी देखते ही रावण के रोल के लिए फाइनल कर लिया।

अरविंद त्रिवेदी शिव भक्त हैं और वह रोजाना सेट पर आने से पहले शिव आराधना करते थे। रामायण में रामेश्वरम सीन की शूटिंग के बाद एक पंडित जी भोपाल (मध्य प्रदेश) से 2 शिवलिंग लेकर रामानंद सागर को भेंट करने आए थे। इस पर उन्होंने मान लिया कि साक्षात भगवान शिव उनके पास चलकर आए हैं। इसलिए उन्होंने स्टूडियो में और पास के गांव में शिव मंदिर बनवाकर शिवलिंग की स्थापना कराई।

प्राचीन भारत का इतिहास का रहस्य

 

प्राचीन भारत का इतिहास का रहस्य (Mystery of Ancient India)

संस्कृत दुनिया की सबसे पुरानी भाषा है। संस्कृत शब्द का अर्थ है परिपूर्ण भाषा। भाषाओ को लिपियों में लिखने का चलन भारत में ही शुरू हुआ था। प्राचीन समय में ब्राह्मी और देवनागरी लिपि का चलन था। इस दोनों लिपियों से ही दुनियाभर में अन्य लिपियों का जन्म हुआ था। ब्राह्मी लिपि को महान सम्राट अशोक ने धम्मलिपि नाम दिया था। हड़प्पा संस्कृति के लोग भी इसी लिपि का उपयोग करते थे। उस समय में संस्कृत भाषा को भी इसी लिपि में लिखा जाता था।

शोध कर्ताओ के अनुसार ब्राह्मी लिपि से देवनागरी, तमिल लिपि, मलयालम लिपि, सिंहल लिपि, बांग्ला लिपि, रंजना, प्रचलित नेपाल, भुंजिमोल, कोरियाली, थाई, उड़िया लिपि, गुजराती लिपि, गुरुमुखी, कन्नड़ लिपि, तेलुगु लिपि, तिब्बती लिपि, बर्मेली, लाओ, खमेर, जावानीज, खुदाबादी लिपि, यूनानी लिपि निकली है।

जैन पौराणिक कथाओ में बताया गया है कि ऋषभदेव की ब्राह्मी ने लेखन की खोज की। इसलिए उसे ज्ञान की देवी सरस्वती के साथ जोड़ते है। हिन्दू धर्म में इनको शारदा भी कहते है। प्राचीन दुनिया में कुछ प्रमुख नदिया भी थी। दुनिया की शुरुवात मानव आबादी इन नदियों के पास बसी थी। सबसे समृद्ध, सभ्य और बुद्धिमान सभ्यता सिंधु और सरस्वती नदी के किनारे बसी थी। इसका एक प्रमाण भी मौजूद है। दुनिया का पहला धार्मिक ग्रन्थ सरस्वती नदी के किनारे बैठ कर लिखा गया था।

मोसोपोटामिया, सुमेरियन, असीरिया और बेबीलोन सभ्यता का विकास दजला और फरात नदी के किनारे पर हुआ था। नील नदी के किनारे मिस्र की सभ्यता का विकास हुआ था। इसी तरह भारत में भी सिंधु, हड़प्पा, मोहनजोदड़ो आदि सभ्यताओं का विकास सिंधु और सरस्वती नदी के किनारे हुआ था।

प्राचीन भारत की खेल की दुनिया – तरंज और फूटबाल का अविष्कार भारत में हुआ था। प्राचीन भारत बहुत ही सभ्य और समृद्ध देश था। आज के समय के बहुत से अविष्कार प्राचीन काल भारत के निष्कर्षों पर आधारित हैं।

मौर्य, गुप्त और विजयनगरम साम्राज्य के दौरान बने मंदिरो को देख कर हर कोई हैरान हो जाता है। कृष्ण की द्वारिका के अवशेषों की जांच से पता चला है कि प्राचीन काल में भी मंदिर और महल बहुत ही भव्य होते थे।

वृंदावन की बात करे। तो आज भी वह एक ऐसा मंदिर है। जो अपने आप खुलता और बंद हो जाता है।मान्यता के अनुसार रात के समय में वह पर कोई भी नहीं होता। लोगो का कहना है। अगर कोई भी व्यक्ति इस परिसर में रुक जाता है। तो वो मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।

संगीत में सामवेद सबसे प्राचीन ग्रन्थ है। संगीत और वाद्ययंत्रों का अविष्कार भी प्राचीन भारत में हुआ था। नृत्य, कला, योग और संगीत से हिन्दू धर्म का गहरा नाता रहा है। प्राचीन भारत में ही वीणा, चांड, घटम्, पुंगी, डंका, तबला, शहनाई, बीन, मृदंग, ढोल, डमरू, घंटी, ताल, सितार, सरोद, पखावज, संतूर आदि का अविष्कार हुआ था।

जानकारी स्त्रोत: इंटरनेट

इन बातों की हवा निकाल देते हैं तो दुनिया की इस सुरंग से हमारा गुज़रना आसान हो जाएगा।

 

एक स्कूल ने अपने युवा छात्रों के लिए एक मज़ेदार यात्रा का आयोजन किया,

रास्ते में वे एक सुरंग से गुज़रे, जिसके नीचे से पहले बस ड्राइवर गुज़रता था।

सुरंग के किनारे पर लिखा था पांच मीटर की ऊँचाइ।

बस की ऊंचाई भी पांच मीटर थी इसलिए ड्राइवर नहीं रुका। लेकिन इस बार बस सुरंग की छत से रगड़ कर बीच में फंस गई, इससे बच्चे भयभीत हो गए।

बस ड्राइवर कहने लगा "हर साल मैं बिना किसी समस्या के सुरंग से गुज़रता हूं, लेकिन अब क्या हुआ?

एक आदमी ने जवाब दिया :

सड़क पक्की हो गई है इसलिए सड़क का स्तर थोड़ा बढ़ा दिया गया है।

वहाँ एक भीड़ लग गयी..

एक आदमी ने बस को अपनी कार से बांधने की कोशिश की, लेकिन रस्सी हर बार रगड़ी तो टूट गई, कुछ ने बस खींचने के लिए एक मज़बूत क्रेन लाने का सुझाव दिया और कुछ ने खुदाई और तोड़ने का सुझाव दिया।

इन विभिन्न सुझावों के बीच में एक बच्चा बस से उतरा और बोला "टायरों से थोड़ी हवा निकाल देते हैं तो वह सुरंग की छत से नीचे आना शुरू कर देगी और हम सुरक्षित रूप से गुज़र जाएंगे।

बच्चे की शानदार सलाह से हर कोई चकित था और वास्तव में बस के टायर से हवा का दबाव कम कर दिया इस तरह बस सुरंग की छत के स्तर से गुज़र गई और सभी सुरक्षित बाहर आ गए।

घमंड, अहंकार, घृणा, स्वार्थ और लालच से हम लोगो के सामने फुले होते हैं। अगर हम अपने अंदर से इन बातों की हवा निकाल देते हैं तो दुनिया की इस सुरंग से हमारा गुज़रना आसान हो जाएगा।

    

गुरुवार, 8 दिसंबर 2022

तांबे के बर्तन में रखे पानी का पुरा फायदा उठाने का सही तरीका

 तांबे के बर्तन में रखे पानी का पुरा फायदा उठाने का सही तरीका है की रात्री में सोते समय तांबे के साफ बर्तन में एक लीटर तक पानी रख दें और सुबह उठकर खाली पेट धीरे-धीरे पिएं ।

तांबे के बर्तन में पानी पीने के फायदे

🔷️ तांबे का पानी पाचनतंत्र को मजबूत करता है और बेहतर पाचन में सहायता करता है। तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से अतिरिक्त वसा को कम करने में बेहद मदद मिलती है।

🔷️ तांबे में एंटी-इन्फलेमेटरी गुण होते हैं।जो शरीर में दर्द,सूजन तथा एठन की समस्या नहीं होने देते।

🔷️ आर्थराईटीस की समस्या से निपटने में भी तांबे का पानी फायदेमंद होता है।

🔷️ तांबे के बर्तन में रखा पानी पूरी तरह शुद्ध माना जाता है। यह डायरिया,पीलिया,डीसेंट्री और अन्य प्रकार की बिमारियों को पैदा करने वाले बैक्टीरिया को खत्म कर देता है।

🔷️ अमेरिका के कैंसर सोसायटी के अनुसार-तांबा कैंसर की शुरुवात को रोकने में मदद करता है और इसमें कैंसर विरोधी तत्व मौजूद होते हैं।

🔷️ यह दिल को स्वस्थ बनाए रखकर ब्लड प्रेशर को नियंत्रित कर बैड कॉलेस्ट्रॉल को कम करता है। इसके अलावा यह हार्ट अटैक के खतरे को भी कम करता है। यह वात,पित्त और कफ की समस्या को दुर करने में मदद करता है।

🔷️ तांबा यानी कापर,सिधे तौर पर आपके शरीर में कापर की कमी को पुरा करता है और बिमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया से सुरक्षा देता है।

🔷️ एनीमिया की समस्या में भी इस बर्तन में रखा पानी पीने से लाभ मिलता है। यह खाने से आयरन को आसानी से सोख लेता है,जो एनीमिया से निपटने के लिए बेहद जरुरी है।पानी पीने के क्या-क्या फायदे हैं?

🔷️ शरीर की अतिरिक्त सफाई के लिए तांबे का पानी कारगर होता है। इसके अलावा यह लीवर और किडनी को स्वस्थ रखता है और किसी भी प्रकार के इन्फेक्शन से निपटने में तांबे के बर्तन में रखा पानी लाभप्रद होता है।

भगवान कहाँ है और उन पर क्यों विश्वास करें ?

एक दिन एक महिला को (किसी धार्मिक स्थल से) सेवा का हुकुम आया, महिला सेवा में चली गयी । थोड़ी देर बाद महिला को फ़ोन आया की उसके बेटे का ऐक्सिडेंट हो गया वो महिला भगवान जी से आज्ञा लेकर हॉस्पिटल पहुँची ।

महिला ने भगवान से प्रार्थना की और अपने बेटे की संभाल में लग गई ।

महिला की एक पड़ोसन जो उसकी दोस्त भी थी बोली बहन तेरे भगवान जी कैसे है

तू दिन रात सेवा में लगी रहती है और उन्होंने तेरे साथ क्या किया….

तेरे बेटे का ऐक्सिडेंट हो गया ।

वो महिला बोली मुझे तो अपने भगवान जी पर पूरा भरोसा है। वो जो करते है बिल्कुल सही करते हैं इसमें भी कोई राज की बात होगी। मेरे भगवान जी किसी का बुरा नही करते,जो होता है अच्छा ही होता है ।

कुछ दिनो बाद बच्चा ठीक हो गया । महिला फिर से सेवा में लग गयी। फिर कुछ दिन बाद पता चला की बेटे का फिर ऐक्सिडेंट हो गया है….. अब पड़ोसन फिर कहने लगी बहन तुझे तेरे भगवान जी ने क्या दिया*

तो महिला बोली कुछ घटनाएँ हमारी परीक्षा के लिए भी होती हैं। ज़रुर मेरे भगवानजी मुझे कुछ समझाना चाहते हैं।

मैं  नही डोलूंगी ।

महिला भक्ति करती रही ,भगवान जी के सामने विनती करती रही……

धीरे धीरे बेटा फिर ठीक हो गया ।

अब बेटे का तीसरी बार फिर ऐक्सिडेंट हो गया तो पड़ोसन बोली बहन तू नही मानेगी! तू मुझे अपने बेटे की कुंडली दे,मैं अपने महाराज को दिखाऊँगी। महिला बोली ठीक है,तू भी अपने मन की तसल्ली कर ले लेकिन मेरा विश्वास नही डोलेगा।

मेरे भगवानजी सब ठीक कर देंगे ।

अब पड़ोसन कुंडली लेकर अपने पंडित जी के पास गयी और बोली महाराज जी इस बच्चे का बार बार ऐक्सिडेंट हो जाता है कुछ उपाय बताइए । महाराज बोले ये क्या ले आयी बहन, जिस किसी की भी ये कुंडली है,वो तो कई साल पहले मर चुका है।

तो बहन बोली नही महाराज मेरी सहेली का बेटा है और आज भी ज़िंदा है पर बार बार चोट लग जाती है ।

पंडित जी बोले जो भी है…..

कुंडली के हिसाब से उसकी मृत्यु कई साल पहले हो जानी चाहिए थी जरुर कोई शक्ति है जो उसे बचा लेती है।

 वो बहन की आँखें भर आईं।

दौडी दौड़ी उस महिला के पास आकर चरणो में गिर गयी बोली बहन मुझे भी अपने भगवान जी के पास ले चल । पूछने पर सारी बात बताई  और फिर बहन ने भी भगवान जी की शरण ले ली और सेवा करने लगी।

शिक्षा:-कहने का भाव ये है कि हमारा विश्वास कभी नही डोलना चाहिए। भगवान जी हर पल हमारी रक्षा करते है।

जय श्रीराम

गुरुवार, 1 दिसंबर 2022

जोड़ो का दर्द ठीक करने का उपाय

जोड़ो का दर्द ठीक करने का उपाय
• यदि घुटने की गद्दी घिस जाना, कैल्शियम कम होना,घुटने के हड्डियों के बीच अंतर कम या ज्यादा हों जाना इत्यादि
• ‎अपथ्य भोजन :- (तीन से 6 माह तक क्या न खायें)
केला,सब खट्टे फल,खट्टे पदार्थ,ठंडे पदार्थ,सब सूखे मेवे, उड़द की दाल । जोड़ो के दर्द में कब्ज की मुख्य भूमिका होती है इसलिये पेट का साफ रहना अतिआवश्यक है।

पथ्य :- दोपहर से पहले चने के दाने के बराबर चुना थोड़े से गुड़ व देशी गाय के घी के साथ खाएं। कम से कम 20 मिंट हल्के कपड़े पहन कर धूप में बैठे।
तेल लगाने हेतु आवश्यक सामग्री व बनाने की विधि :-
1 लीटर सरसो तेल
4 लहसुन की गांठे ( कुचली हुई)
4 बड़े चमच्च मेथी दाना चूर्ण
4 चम्मच सौठ चूर्ण
4 चम्मच अजवायन चूर्ण

1 लीटर सरसो तेल में कुचला हुया लहसुन डालकर भूरे होने तक धीमी आंच पर गर्म करें
उसके बाद सभी चूर्ण डालकर काला होने तक गर्म करें व ठंडा होने पर बिना छाने किसी काँच या स्टेन्स स्टील के बर्तन में सुरक्षित रखें व इसे घुटने या दर्द वाले जोड़ो पर व 2 से 3 इंच ऊपर नीचे तक लगाए । ( मालिश न करें)

घुटने हेतु विशेष व्यायाम :-
• पैर के पंजे व अँगुली में तेल लगाएं व पैर और घुटने के तनाव कम करने हेतु अँगुली को बारी बारी से उल्टा सीधा घुमाए।

• ‎एक पैर के अंगूठे को हाथ से पकड़कर जमीन से 6 इंच ऊपर उठाएं व एक झटका देकर धीरे से जमीन पर रख दे।

• ‎पैरो के दोनों पंजो को जोड़कर ज्यादा से ज्यादा जमीन,मुह,दाएं व बाएं घड़ी के विपरीत दिशा में ले जाएं।

• ‎दोनो पैरो की एड़ियों  एक साथ उठाकर पंजो के बल खड़े हो जाइए व दोनो घुटनो को जांघो की ओर खिंचे परिणामस्वरूप दोनो पैरों की पिंडलियां व जांघे सख्त हो जाएगी।

💐 घुटनों के दर्द को ठीक करने में कब्ज को दूर करना आवश्यक है इसके लिये निम्न उपयो
को करें:-
• सबेरे उठकर दो ग्लास गुनगुना पानी घुट घुट कर पियें
• ‎कब्ज रहने तक छिलके वाली मूंग की दाल खाये
• ‎भोजन चबा चबा कर करें
• ‎एक भोजन पूणतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें
• ‎भोजन के दौरान पानी न पिएं भोजन के बाद एक या दो घुट ही पानी पिये उसके डेढ़ घण्टे बाद पानी जरूर पियें
• ‎पानी हमेशा बैठकर व घुट घुट भर कर पियें

कब्ज से बचने हेतु निम्न उपयोग कर सकते हैं

• ‎भोजन के पश्चात बेल की कैंडी जरूर खाये
‎या
• ‎2 चम्मच त्रिफला (1:2:3) वाला गर्म दूध या गर्म पानी के साथ
या
• ‎रात्रि भोजन में चुकन्दर की सब्जी जरूर खाएं
या
• ‎रात्रि भोजन के बाद 10 मुनक्के एक गिलास दूध में उबालकर मुनक्के खा ले व दूध पी जाएं
या
• ‎2 अंजीर 10 मुंनके बीज निकालकर रात को पानी मे भिगो दें दोपहर भोजन के बाद एक अंजीर 5 मुंनके खाये बचे एक अंजीर 5 मुंनके शाम
या
• ‎छोटी हरड़ को अरण्ड के तेल में भूनकर मसलकर रख ले सुबह 4 बजे आधा चम्मच इसे सेवन कर एक गिलास पानी पी पुनः सो जाएं
या
• ‎2 चम्मच अरण्ड का तेल गरम पानी या दूध के साथ

3 से 6 माह उपर्योक्त नियम का पालन कर आप अपना स्वास्थ्य व समृद्धि बचा सकते हैं

जब घुटने बदलने की नौबत आये उससे पहले यह प्रयोग जरूर अपनाये विनती है :- हरसिंगार एक पौधा है जिसके सफेद रंग के फूल होते है ये फूल रात को खिलकर सुबह गिर जाते है इस पौधे के 6 से 7 पत्तों को सिल बट्टे पर पीसकर इसकी चटनी बना ले और एक गलास पानी में उबाले। उबलते उबलते जब यह आधा रहा जाये तो इसको गुनगुना करके रात को रख दे सुबह प्रतिदिन खाली पेट पीये। ऐसा करने से जोड़ो के दर्द से आपको मुक्ति मिलेगी। इस औषधि के साथ कोई अन्य दवा नहीं लेनी है। यह उपाय सबसे ज्यादा कारगर और सफल है।

कनेर के पत्तों को उबालकर उसको उसके पत्तों की चटनी बना ले और तिल के तेल में मिलाकर घुटनों पर मालिश करे ऐसा करने से आपको दर्द से मुक्ति मिलेगी।

 आपके घुटनों में दर्द रहता है तो रोज रात को 2 चम्मच मैथी को एक ग्लास पानी में भिगो कर रख दे। और प्रात: काल खाली पेट मेथी को चबा चबा कर खाने से और मेथी का पानी पीने से आपको कभी भी घुटनो का दर्द नही होगा।
एक ग्लास दूध में 4-5 लहसुन की कलियाँ डाल कर अच्छी तरह से उबाले और गुनगुना पीने से भी घुटनों के दर्द में आराम मिलता है।

 हर रोज आधा कच्चा नारियल खाने से बुढ़ापे में भी कभी आपको घुटनों के दर्द का परेशानी नही होगी।

 5 अखरोट प्रतिदिन खाली पेट खाने से आपके घुटने में कभी कष्ट नही होगा।

रोज रात को सोने से पहले एक ग्लास दूध ने हल्दी डाल कर पीने से आपको हड्डियों में दर्द की समस्या से मुक्ति मिलेगी।

एक दाल के दाने के बराबर थोड़ा सा चूना (जो आप पान में लगा कर खाते है) को दही में या पानी में मिला कर पीने से आपको हड्डियों में कभी दर्द नही होगा। चूने के पानी को हमेशा सीधे बैठकर ही पिए इससे आपको जल्दी आराम होगा। यह औषधि सिर्फ 1 महीने पीने से ही शरीर की किसी भी हड्डी में दर्द हो तो वो जल्दी ठीक हो जाएगा।

सुबह और शाम को भद्र आसन करने से आपको लाभ मिलेगा।

  हड्डियों के दर्द से बचने के लिए आप अपने भोजन में 25% फल और सब्जियों को शामिल करेगे तो आपको कभी भी हड्डियों के दर्द का सामना नहीं करना पड़ेगा।

 नारियल, सेब, संतरे, मौसमी, केले, नाशपति, तरबूज और खरबूजे आदि फलों का सेवन हर रोज जरुर करे।

 गोभी, सोयाबीन, हरी पत्तेदार सब्जियों के साथ खीरे, ककड़ी, गाजर, और मेथी को अवश्य शामिल करे।

 दूध और दूध से बनी चीजे भरपूर मात्रा में खाए और कच्चा पनीर भी भोजन में शामिल करे, ऐसा करने से आपके जोड़ों के दर्द में कमी आएगी।

 मोटा अनाज, मकई, बाजरा, चोकर वाले आटे की रोटियों का जरुर उपयोग करे। क्योंकि इनमे वो सभी तत्व होता है जो आपकी हड्डियों और जोड़ो के दर्द से मुक्ति दिलाता है।

 अगर अत्यधिक सर्दी की वजह से  घुटनों में बहुत अधिक पीड़ा है तो सरसों के तेल में लहसुन और अजवायन को पकाये और फिर जब यह तेल गुनगुना हो जाये तो घुटनों पर मालिश करे, उनका दर्द छू मंतर हो जायेगा।

नीचे बताई गयी सामग्री को मिला कर हल्दी का एक दर्द निवारक पेस्ट बना लीजिये :
1 छोटा चम्मच हल्दी पाउडर
1 छोटा चम्मच पीसी हुई चीनी, या बूरा या शहद या चीनी
1 चुटकी चूना (जो पान में लगा कर खाया जाता है) और आवश्यकतानुसार पानी।

इन सभी को अच्छी तरह मिला लीजिये। एक लाल रंग का गाढ़ा पेस्ट बन जाएगा। सोने से पहले यह पेस्ट अपने घुटनों पे लगाइए। इसे सारी रात घुटनों पे लगा रहने दीजिये। सुबह साधारण पानी से धो लीजिये। कुछ दिनों तक प्रतिदिन इसका इस्तेमाल करने से सूजन, खिंचाव, चोट आदि के कारण होने वाला घुटनों का दर्द पूरी तरह ठीक हो जाएगा।

 21 छोटा चम्मच सोंठ का पाउडर लीजिये और इसमें थोडा सरसों का तेल मिलाइए। इसे अच्छी तरह मिला कर गाड़ा पेस्ट बना लीजिये। इसे अपने घुटनों पर मलिए। इसका प्रयोग आप दिन या रात कभी भी कर सकते हैं। कुछ घंटों बाद इसे धो लीजिये। यह प्रयोग करने से आपको घुटनों के दर्द में बहुत जल्दी आराम मिलेगा।

4-5 बादाम,5 6 काली मिर्च,10 मुनक्का,5 6 अखरोट प्रतिदिन सुबह खाये

खजूर विटामिन ए, बी, सी, आयरन व फोस्फोरस का एक अच्छा प्राकृतिक स्रोत है. इसलिए, खजूर घुटनों के दर्द सहित सभी प्रकार के जोड़ों के दर्द के लिए बहुत असरकारक है.

एक कप पानी में 7-8 खजूर रात भर भिगोयें। सुबह खाली पेट ये खजूर खाएं और जिस पानी में खजूर भिगोये थे, वो पानी भी पीयें। ऐसा करने से घुटनों की मांसपेशियां मजबूत होती हैं, और घुटनों के दर्द में बहुत लाभ मिलता है।

नारियल भी घुटनों के दर्द के लिए बहुत अच्छी औषधी है। रोजाना सूखा नारियल खाएं। नारियल का दूध पीयें। घुटनों पर दिन में दो बार नारियल के तेल की मालिश करें इससे घुटनों के दर्द में अद्भुत लाभ होता है। ईश्वर से यही प्रार्थना है कि आपको इन आसान और कारगर उपायो से लाभ मिले।

होमओपैथी के द्वारा

जोड़ के दर्द दो तरह के होते हैं l छोटे जोड़ों के दर्दो को गठिया कहते हैं, इन जोड़ों का दर्द जब काफी पुराना हो जाता है तब जोड़ विकृत यानि टेढ़े – मेढ़े हो जाते हैं तब इसे पुराना संधि प्रदाह (arthritis deformans) कटे हैं l बड़े जोड़ों तथा पुट्ठे के दर्दो को वात रोग (rheumatism) कहते हैं l वात रोग (gout) में जोड़ों की गांठें सूज जाती है, बुखार हो जाता है, बेहद दर्द और बेचैनी होती है l कारण : ओस या सर्दी लगना, देर तक भीगना, अधिक मांस, खटाई या ठंडी वस्तुएं खाना, शराब का अधिक सेवन करना व विलासिता, आदि l

●  मुख्य दवा l जब पेशाब में यूरिक एसिड व युरेट्स काफी मात्रा में आये – (अर्टिका युरेन्स Q, 10 बूंद दिन में 3 बार)

●  छोटे जोडों में दर्द व सुजन, दर्द कटने या चुभने जैसा; रात में या चलने फिरने से बढ़े – (कोल्चिकम 6 या 30, दिन में 3 बार)

●  जब दर्द एक जोड़ से दुसरे जोड़ में चलता-फिरता रहे – (पल्साटिला 30, दिन में 4 बार)

●  रोग खासकर पैर के अंगूठे में सूजन के साथ l ठण्ड या बर्फ की पट्टी से रोग घटे l दर्द नीचे से ऊपर की ओर जाये – (लीडम पाल 6 या 30, दिन में 4 बार)

●  जब रोग अचानक ठंड के कारण शुरू हो – (एकोनाइट 6 या 30, दिन में 4 बार)

●  जब गठिया रोग चर्म रोगों के साथ शुरू हो – (सल्फर 30, दिन में 3 बार)

● जब रोग ठण्ड से बढ़े l सेकने व चलने फिरने से आराम आये – (रस टक्स 30 या 200, दिन में 3 बार)

●   मौसम बदलने के साथ रोग की पुनरावृत्ति – (कल्केरिया कार्ब 30 या 200, दिन में 3 बार)

●   हाथ पैर के छोटे छोटे जोड़ों में दर्द  व सूजन – (स्टेफिसेगिरिया 30 या 200, दिन में 3 बार)

● शराबियों में जोड़ों का दर्द – (नक्स वोमिका 30 या 200, दिन में 3 बार)

● जब दर्द स्थान बदलता रहे l हिलने डुलने से रोग बढ़े – (स्टैलेरिया मीडिया Q, दिन में 3 बार)

●  अंगुलियों के जोडों का दर्द – (लाइकोपोडियम 30, दिन में 3 बार)

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रविवार, 27 नवंबर 2022

पक्षीराज गरुण भारत की सांस्कृतिक विरासत और हिन्दू धर्म का अभिन्न अंग हैं 


हर पुराण तथा वेद में कई स्थानों पर न केवल पृथ्वी बल्कि सभी ग्रह, तारा तथा ब्रह्माण्ड (गैलेक्सी) को भी गोल लिखा हुआ है।

सृष्टि वर्णन में पृथ्वी वर्णन भूगोल तथा आकाश का वर्णन भूगोल या खगोल लिखा है।

वेद में सभी को मण्डल लिखा है।

पृथ्वी गोल होने के कारण हर स्थान पर अलग अलग समय सूर्योदय या सूर्यास्त होते हैं – यह उल्लेख भी सैकड़ों स्थानों पर है।

मान्धाता का राज्य पूरे विश्व में फैला था जिनके बारे में यह उक्ति सभी पुराणों में है कि उनके राज्य में हर समय कहीं सूर्योदय, कहीं सूर्यास्त होता रहता था।

इन्द्र की अमरावती पुरी में जब सूर्योदय होता था, उस समय यम की संयमनी पुरी में अर्ध रात्रि, वरुण की सुखा नगरी में मध्याह्न तथा सोम की विभावरी पुरी में सूर्यास्त होता था।

पुराणों में दो प्रकार के द्वीपों का वर्णन है-एक पृथ्वी के महादेश तथा दूसरे सूर्य के चारों तरफ ग्रहों की परिक्रमा से बने हुये क्षेत्र। ये ही वलयाकार या वृत्ताकार हैं (पृथ्वी से देखने पर)। पृथ्वी के व्यास को १००० योजन माना गया है (प्रायः १२.८ किमी. का १ योजन), अतः आकाश में पृथ्वी सहस्र-दल पद्म या सहस्रपाद है। ३ प्रकार की पृथ्वी है और सबमें द्वीपों, पर्वतों नदियों के नाम उसी प्रकार हैं जैसे पृथ्वी ग्रह पर हैं। ३ पृथ्वी हैं-सूर्य-चन्द्र दोनों से प्रकाशित पृथ्वी ग्रह, सूर्य का प्रकाश क्षेत्र (३० धाम तक (ऋक् १०/१९८/३), सूर्य प्रकाश की अन्तिम सीमा जहां वह विन्दु मात्र दीखता है (सूर्य सिद्धान्त १२/८२, ऋक् १/२२/२०-विष्णु सूर्य का परमपद)। हर पृथ्वी की तुलना में उसका आकाश उतना ही बड़ा है, जितना मनुष्य की तुलना में पृथ्वी ग्रह।रविचन्द्रमसोर्यावन्मयूखैरवभास्यते। स समुद्रसरिच्छैला पृथिवी तावती स्मृता॥३॥ यावत् प्रमाणा पृथिवी विस्तारपरिमण्डला। नभस्तावत् प्रमाणं वै व्यासमण्डलतो द्विज॥४॥ (विष्णु पुराण, २/७)
स्पष्टतः १००० योजन व्यास की पृथ्वी पर १६ करोड़ योजन पुष्कर द्वीप नहीं हो सकता है। पृथ्वी के द्वीपों का अनियमित आकार है, वृत्ताकार नहीं है।
कई लोग अमेरिका, आस्ट्रेलिया आदि को छोड़ कर पृथ्वी के ७ द्वीपों का वर्णन करते हैं। किन्तु तुर्की की नौसेना के पास एक पुराना नक्शा था जिसमें अण्टार्कटिका के २ स्थल भाग तथा दोनों अमेरिका का नक्शा था। यह नौसेना प्रमुख ने नाम पर पिरी रीस नक्शा कहा जाता है। इसी के आधार पर कोलम्बस ने अमेरिका यात्रा की योजना बनाई थी। यदि अमेरिका नहीं होता तो उसे योजना की तुलना में भारत पहुंचने के लिये १०-१२ गुणा अधिक जाना पड़ता।
एसिया जम्बू द्वीप, अफ्रीका कुश द्वीप, यूरोप प्लक्ष, उत्तर अमेरिका क्रौञ्च, दक्षिण अमेरिका पुष्कर तथा आस्ट्रेलिया शक (या अग्नि कोण में अग्नि या अंग द्वीप) था। आठवां अण्टार्कटिका अनन्त या यम (जोड़ा) द्वीप था। 
नक्शा बनाने के लिये उत्तर और दक्षिण गोलार्धों को ४-४ भाग में नक्शा बनता था, जिनको भू-पद्म का ४ दल कहा गया है। उत्तर भाग के ४ नक्शे ४ रंग में बनते थे जिनको मेरु के ४ पार्श्वों का रंग कहा है। उज्जैन के दोनों तरफ (पृर्व से पश्चिम) ४५-४५ अंश भारत दल है। विषुव से ध्रुव तक आकाश के ७ लोकों की तरह ७ लोकों का विभाजन है-विन्ध्य तक भू, हिमालय तक भुवः, हिमालय स्वर्ग (त्रिविष्टप्), चीन महः (महान् से हान् जाति), मंगोलिया जनः, साइबेरिया तपस् (स्टेपीज), ध्रुव वृत्त सत्य लोक हैं। भारत के पश्चिम केतुमाल, पूर्व में भद्राश्व, तथा विपरीत दिशा में कुरु दल हैं।
उत्तर के अन्य ३ दल को ३ तल कहते हैं। भारत के पश्चिम अतल (उसके बाद का समुद्र अतलान्तक), पूर्व में सुतल, उससे पूर्व पाताल हैं। भारत के दक्षिण तल या महातल (दोनों को कुमारिका खण्ड कहते थे, आज भी उसे भारत महासागर कहते हैं), अतल के दक्षिण तलातल, पाताल के दक्षिण रसातल, तथा सुतल के दक्षिण वितल हैं। गोल पृथ्वी का समतल नक्शा बनाने पर ध्रुव प्रदेश में अनन्त माप हो जाती है। उत्तरी ध्रुव जल में होने के कारण (आर्यभट) वहां कोई समस्या नहीं है, पर दक्षिणी ध्रुव स्थल पर है, जिसका अलग से नक्शा बनाना पड़ता है। अनन्त माप होने के कारण यह अनन्त द्वीप है।
स्वायम्भुव मनु के समय के ४ नगर परस्पर ९० अंश पर थे-इन्द्र का अमरावती (भारत का पूर्वी नगर, किष्किन्धा काण्ड के अनुसार ७ द्वीपों वाले यव द्वीप का पूर्व भाग), पश्चिम में यम की संयमनी (यमन, अम्मान, सना आदि), पूर्व में वरुण की सुखा, विपरीत दिशा में सोम की विभावरी। 
वैवस्वत मनु के समय से अन्य ४ सन्दर्भ नगर हुये-लंका या उज्जैन, पूर्व में यमकोटिपत्तन (यम द्वीप अण्टार्कटिका जैसा जोडा द्वीप न्यूजीलैण्ड के दक्षिण पश्चिम, पश्चिम में रोमकपत्तन (मोरक्को के पश्चिम समुद्र तट पर), विपरीत में सिद्धपुर।
उज्जैन या लंका से ६-६ अंशके अन्तर पर ६० कालक्षेत्र थे जो सूर्य क्षेत्र, लंका या मेरु कहे जाते हैं। लंका का समय पृथ्वी का समय था अतः उसके राजा को कुबेर कहते थे (कु = पृथ्वी, बेर = समय) उसी देशान्तर पर उज्जैन में महाकाल हैं। इसके पूर्व पहला कालक्षेत्र पर कालहस्ती है। उसी रेखा पर चिदम्बरम्, केदारनाथ आदि हैं। इससे ठीक १८० अंश पूर्व मेक्सिको का सूर्य पिरामिड है। किष्किन्धाकाण्ड (४०/५४, ६४) के अनुसार पूर्व के अन्त का चिह्न देने के लिये वहां ब्रह्मा ने द्वार बनाया था। उज्जैन से ४२ अंश पूर्व क्योटो (जापान की पुरानी राजधानी), ४२ अंश पश्चिम हेलेस्पौण्ट, ७२ अंश पश्चिम लोर्डेस (फ्रांस पूर्व सीमा), ७८ अंश पश्चिम स्टोनहेन्ज (लंकाशायर) आदि हैं।
✍🏻अरुण उपाध्याय

गरुड़ पुराण पर डॉ श्रीकृष्ण जुगनू जी का दृष्टिकोण - 


एक विश्‍वकोशात्‍मक पुराण का प्रकाशन

भारतीय महापुराणों में गरुडपुराण का स्‍वरूप उसके विश्‍वकोशीय रूप के कारण सबसे ज्‍यादा सम्‍मान के योग्‍य है। पुराणों में अग्निपुराण, वह्निपुराण, नारदपुराण और विष्‍णुधर्मोत्‍तर पुराण ज्ञान-विज्ञान के अध्‍ययन-अनुशीलन के लिहाज से महत्‍वपूर्ण हैं किंतु इस अध्‍ययन की पूर्णता तब तक नहीं हो सकती, जब‍ तक कि गरुडपुराण का अध्‍ययन न हो जाता। इन पुराणों में धार्मिक कहानियों से ज्‍यादा जीवनोपयोगी विषयों का समावेश है।

यों तो प्राचीन पुराणों में विष्‍णुपुराण में आई सूची में 'गरुडपुराण' का नाम भी आता है किंतु उस समय इसका स्‍वरूप क्‍या रहा होगा, कहना कठिन है तथापि 9-10वीं प्रतिहारों, परमारों के काल तक गरुड को राजचिन्‍ह के रूप में स्‍वीकारा जा चुका था, तब तक इस पुराण का वर्तमान संस्‍करण जरूर तैयार हो गया होगा। पुराण के पूर्वार्द्ध में इस काल की घटनाओं के कई संदर्भ खोजे जा सकते हैं किंतु इसमें बहुत सी सामग्री पुरानी है और अन्‍य पुराणों में नहीं मिलती। इसमें मुख्‍य है- रत्‍नशास्‍त्र। 

- बुधगुप्‍त ने जिस रत्‍नपरीक्षा शास्‍त्र का प्रणयन किया, वह इस पुराण में यथारूप उपलब्‍ध है। इसी विषय को बाद में वराहमिहिर आदि अनेक रत्‍नशास्त्रियों ने अपने ढंग से लिखा। 
- 'बार्हस्‍पत्‍य अर्थशास्‍त्र' जिसके बारे में हमें बहुत कम ही जानकारी है, इस पुराण में संक्षिप्‍त रूप से मिलता है।
- पाराशर स्‍मृति और गीता के सार हैं तो याज्ञवल्‍क्‍य स्‍मृति का सारांश भी ज्ञेय है। 
- स्‍मृतियों के सारांश में वह 'विनायक शांति' भी है जिसके करने से तब कन्‍याओं के लिए वर खोजने का मार्ग प्रशस्‍त हो जाता था।
- कुमार व्याकरण का अलभ्य पाठ इसमें बचा हुआ है।
- पुराण का सर्वाधिक महत्‍व इसकी आयुर्वेद विषयक सामग्री है। पुराण का लगभग आधा हिस्‍सा धन्‍वन्‍तरि प्रोक्‍त है और इसमें जीवनचर्या के साथ-साथ आयुर्वेद, औषधियों, कल्‍क, काढ़ा आदि के निर्माण की वे विधियां हैं जिनके लिए हमें अलग से वाग्‍भट्ट, चरक, सुश्रुत आदि  ग्रंथ देखने पड़ते है किंतु पुराण में बहुत उपयोगी रूप में संक्षिप्‍तीकरण किया गया है। गाय, अश्व, हाथी आदि की बीमारियों के उपचार की विधियां भी हैं जैसी कि अग्नि व विष्णु धर्मोत्तर में भी मिलती है।

कहना न होगा कि यह पुराण भारतीय समाज और संस्‍कृति के परिचय के साथ-साथ आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक महत्‍व का तो है ही आयुर्वेदिक दृष्टि से भी अति महत्‍व का है। उत्‍तरार्ध का प्रेतकल्‍प उसके मूल स्‍वरूप को ही अलग कर देता है। दरअसल इसकी महत्‍ता इस अर्थ में स्‍वीकारी जा सकती है कि यह मृत्‍याेपरांत नहीं, मृत्‍यपूर्व पठनीय ग्रंथ है। यह स्‍वयं सिद्ध करता है कि इस पुराण का स्‍वरूप विश्‍वकोशात्‍मक है और आचारखंड का एक-एक विषय उपयोगी है। हालांकि पुराण के उत्‍तरार्द्ध में प्रेतकल्‍प और ब्रह्मकांड हैं। इस तरह इस पुराण  के विकास के तीन सोपान हैं। इसका परवर्ती स्‍वरूप पांचरात्रादि अनेक ग्रंथों के आधार पर दिखाई देता है मगर, ज्‍यादा क्‍या कहें, पढ़ना ही ठीक होगा। चौखंबा के आदेश पर मैंने तो इसकी विस्‍तार से भूमिका और परिशिष्‍ट में अपनी बात कहने का प्रयास किया है ही।

गरुड : गरुड़ विद्या, गरुड़ास्‍त्र, गरुडव्‍यूह और विष्‍णु-ध्‍वज



भारतीय परम्‍परा में गरुड़ का महत्‍व भगवान् विष्‍णु के वाहन के रूप में है। महाभारत में गरुड की कथाओं काे प्रमुखता से लिखा गया है किंतु गरुड़ का प्रसार विश्‍वव्‍यापी रहा है। भारत में गरुड़तंत्र और गरुडविद्या सहित गरुडास्‍त्र, गरुडव्‍यूह आदि की मान्‍यताओं का प्रसार नया नहीं है। यदि शिव के वाहन नंदी पर नंदिकेश्‍वर, नांदीपुराण रचे गए तो विष्‍ण्‍ाु वाहन गरुड पर भी स्‍वत्रंत पुराण का प्रणयन हुआ। वासुकी पुराण भी मिलता है।

गरुड़ मिथकीय रूप से चलकर एक पात्र और फिर वाहन के रूप में भारतीय आस्‍थाओं के साथ हेलियोडोरस के उस प्रयास के रूप में दिखाई देते हैं जो इस यवनदूत ने विदिशा में किया था। बात पहली सदी ईसापूर्व की है। उसने गरुडध्‍वज का निर्माण करवाया जिसके शीर्ष पर गरुड़ को विराजित किया, ऐसा माना जाता है। दरअसल गरुडध्‍वज विष्‍णु का पर्याय है। पुराणों में वराहध्‍वज स्‍तंभ का विवरण तो है मगर गरुड़ध्‍वज स्‍तंभ का नहीं। गरुड और नाग के वैर के संबंध में कहने की जरूरत नहीं, विष्‍णु शेषनागशायी है। गरुड़ को ऐसे विष्‍णु का सामीप्‍य कैसे मिला। 
यदि गरुडपुराण के तीसर खंड ब्रह्मकांड में शेष के अवतार के प्रसंग को पढ़ें तो यह विदित होता है कि गरुड़ ने शेषशायी विष्‍णु के सान्निध्‍य में रहना स्‍वीकार किया था किंतु पक्षीराज गरुड का कोई अवतार नहीं हुआ, क्‍योंकि ऐसी नारायण की आज्ञा है। गरुड़ के प्रश्‍नों के रूप में पुराण का न केवल प्रणयन हुआ बल्कि एक विश्‍वकोष ही तैयार हो गया जिसमें आख्‍यान और उसका विस्‍तार, व्‍यथा और उसका आयुर्वेदिक उपचार, व्‍याकरण, छंद आदि अध्‍ययन और अध्‍ययन के विषय, राजनीति और बार्हस्‍पत्‍य नीतिसार, स्‍मृति और याज्ञवल्‍क्‍य स्‍मृति का सार, जीविकोपार्जन के लिए रत्‍न व्‍यापार और परीक्षार्थ रत्‍नशास्‍त्र जैसे अनेक उपयोगी विषय इस पुराण में हैं...।

यदि पांचरात्र परंपराओं की मानें तो विष्‍णु मंदिरों पर गरुडांकित पताका फहराने की बहुत लंबी-चौड़ी परंपराएं लिखी गई हैं। नारदीय संहिता, विष्‍णु संहिता, नारद पांचरात्र, प्रश्‍न संहिता, वैखानसागम, परमेश्‍वरसंहिता आदि में आई ऐसी परंपराओं की पुष्टि यामुनाचार्य ने 'आगम प्रामाण्‍य' में भी की है। गारू ड विद्या और उसकी सामाजिक उपयोगिता का जिक्र अबुल फजल ने आईन ए अकबरी में किया है।

इसी तरह गरुड की यात्राओं का वैश्विक परिदृश्‍य समझा जा सकता है क्‍योंकि अनेक सभ्‍यताओं में पक्षीराज कहीं ईगल है तो कहीं गरुड़, श्‍येन, पक्षीराजेंद्र, तार्क्ष, वींद्रा... नामों से स्‍मृत है। सर्वत्र उनकी कथाएं हैं और उनको सौर-संस्‍थापक तत्‍व के रूप में भी स्‍वीकारा गया है, जैसा कि Yelena Kuznetsova ने भी संकेत दिया है-  Eagle, solar foundational element par excellence. Aztec culture. पिछले दिनों गरुड पुराण पर केंद्रित रहा तो बहुत से विचार उपजे। आपके पास भी बहुत से विचार होंगे...। बताइयेगा।
 
गरुड का एक रूप ये भी

वैष्‍णव मंदिरों में गरुड की प्रतिमा स्‍थ‍ापित होती है। विष्‍णु के साथ गरुड का संबंध पुराना है। महाभारत के नारायणीय प्रसंग के साथ ही यह संबंध दिखाई देता है, बाद में जबकि पांचरात्र संहिताओं का प्रणयन हुआ, तो गरुड को विष्‍णु के अनुचर अथवा वाहन के रूप में ख्‍यात किया गया। वैष्‍णव मंदिरों के विकासकाल में यह परंपरा सी बन गई कि विष्‍णु या उनके अवतारों के मंदिरों में अनिवार्यत: गरुड की प्रतिमा सम्‍मुख ही स्‍थापित की जाने लगी। हां, मध्‍यकालीन राम मंदिरों में हनुमान भी विराजित दिखाई देते हैं।

देवता मूर्ति प्रकरणम (रचनाकाल 1450 ई.) में मरकत के वर्ण जैसी कांतिमय, उलूक जैसी नासिका, चार हाथ और गोलाकार नेत्र व मुखाकृति लिए गरुड की प्रतिमा बनाने का निर्देश है। उसको गृध की तरह उरु, जानु व चरण बनाकर दो पंखों से विभूषित करने काे भी कहा गया है। सोने जैसी आभा तथा मोर जैसे नयन बनाना भी स्‍वीकारा गया है। प्रतिमा के एक हाथ में छत्र, दूसरे में कुंभ हों और दो हाथ प्रणाम की मुद्रा में होंगे। (देवता मूर्ति प्रकरणम् : संपादक श्रीकृष्‍ण जुगनू, दिल्‍ली, 2003 ई. अध्‍याय 5, श्‍लोक 64-68)

मित्रवर श्री प्रकाशजी मांजरेकर ने क्षेत्र माहुली सातारा स्थित रामेश्‍वर मंदिर की एक ऐसी प्रतिमा भेजी है, जो इन लक्षणों के अलावा रूप में है। इसमें गरुड स्‍थानक रूप में है, द्विभुजी हैं और करबद्ध रूप में हैं। उनके मुख से नागों को निकलता दिखाया गया है। ये उनके नागपाश हारक रूप का परिचायक है। कोपिनधारी गरुड़ के पांव पक्षी की तरह ही दिखाए गए हैं, उभय पार्श्‍व में नागाकृतियां हैं। अन्‍य वर्णन आपके सोचने के लिए... मगर हमारे इधर गरुड़ की जो प्रतिमाएं हैं, उनसे बिल्‍कुल न्‍यारी और निराली मूर्ति है यह। 

गरुड स्‍तम्‍भ : एक परंपरा 


विष्‍णु को गरुडध्‍वज भी कहा जाता है। भारतीय परंपरा में जिस-जिस देवता का जो-जो वाहन है, उसी से उसके ध्‍वज या चिन्‍ह की पहचान होती है। शिव वृषभध्‍वज है, ब्रह्मा हंसध्‍वज, कामदेव मकरध्‍वज, कार्तिकेय मयूरध्‍वज...। बहुत पहले जबकि पाणि‍नि का काल था, वासुदेव के नाम से ही विष्‍णु वासुदेवकों में उपास्‍य थे। यह श्रीकृष्‍ण के वसुदेव पुत्र होने का नाम था और इनके इसी नाम की उपासना पर जोर था। 

घोसुंडी के शिलालेख में भी यही नाम आया है मगर वहां संकर्षण के बाद में वासुदेव का स्‍मरण है। और, इस मत तथा इसके भागवतीय दर्शन का प्रसार विदेश तक हो चुका था। वहां विष्‍णु को गरुडारूढ के रूप में जाना गया था और उनके अनुयायी भागवतीय कहे जाते थे। जैसा कि हेलियोडोरस के अभिलेख से ज्ञात होता है।

यवनदूत हेलियोडोरस तक्षशिला के विदेशी शासक अंतलिकित का दूत था। उसने लगभग दूसरी सदी ईसा पूर्व में बेसनगर जिला भिलसा, विदिशा में गरुडध्‍वज बनवाकर अपनी आस्‍थाओं का परिचय दिया था। विदेशी वासुदेव के प्रचार क्षेत्रों की यात्रा करना, वहां निर्माण कार्य करवाना और अपनी ओर से स्‍थायी स्‍मृति के रूप में पाषाणबद्ध कार्य करवाना अपना कर्तव्‍य समझने लगे थे, यह परंपरा तब बौद्धों में भी थी। (भारतीय प्रतिमा शास्त्र : परंपरा और प्रवृत्तियां : अनुभूति चौहान)

अभिलेखीय प्रमाणों से विदित होता है कि इस गरुडध्‍वज के बाद वासुदेव, जो विष्‍णु के रूप में ध्‍येय-ज्ञेय हुए, को गरुडवाहन के रूप में इतनी ख्‍याति मिली कि जहां कहीं वैष्‍णव मंदिरों का निर्माण हुआ, उनके साथ गरुड भी विराजित हुए। भागवतों या वासुदेवकों में तब 'जयसंहिता' (मूल महाभारत) के पठन-पाठन की परंपरा थी। उसके उन श्‍लोकों या पदों का प्रचार लिखकर करवाया जाता था जो जीवन में ध्‍येय के रूप में आवश्‍यक थे। 
यथा : त्रीणि अमृत पदानि इह सुअनुष्ठितानि नयन्ति स्‍वर्गं - दम: त्‍याग: अप्रमाद:। (तुलनीय- महाभारत, गीता, धम्‍मपद) यह पंक्ति हेलियाडोर के स्‍तंभ से है।

यद्यपि यह कार्य अशोक के बाद हुआ मगर, इस दृष्टि से मायने रखता है कि इस कार्य को विदेशी लोग भारत में करवाने के इच्‍छुक थे, ग्रीक की कथाओं में तक श्रीकृष्‍ण के आख्‍यान उनके 'जय' नाम से मिलते हैं, यह पर्याय गोपालसहस्रनाम आदि में आया है। जय संहिता से ही श्रीकृष्‍ण के लीला चरितों का पता होता था, यही ग्रंथ गुप्‍तकाल तक भारतीय कथाओं का रूप होकर सामने आया और जैसा कि बाणभट्ट कहता है- उज्‍जैन में इसकी कथा को मंगलसूचक मानकर पढ़ा-पढ़ाया जाने लगा था। आज इतना ही... जय जय।
✍🏻डॉ श्रीकृष्ण जुगनू की पोस्टों से संग्रहित 

#पक्षीराज_गरुण 

वर्तमान दुनिया में सबसे बड़ा व उड़ने वाला पक्षी "केन्डोर" है जो दक्षिण अमेरिका में अवस्थित एंडीज पर्वतमाला की ऊंची व बर्फ़ीली चोटियों पर पाया जाता है ... 

इसकी ऊँचाई लगभग दो मीटर होती है । यह किसी बच्चे या अच्छे खासे जानवर को आसानी से लेकर उड़ सकता है ... 

गरुण को काल्पनिक मानने वाले इस पक्षी को क्या कहेंगे ??  ...


हमारे महाभारत और रामायण में वर्णित पक्षीराज गरुण इससे भी विशाल पक्षी था, ऋग्वेद में भी पक्षीराज गरुण का वर्णन है एक पूरा सूक्त गरुण के लिए समर्पित है .. जिसके साथ परिवर्ती पुराणों में कहानियां जोड़ दी गई और गरुण को मानवीय रूप में चित्रित किया गया ... 

क्योकि सम्भव है कि तब तक यह प्रजाति लुप्त हो चुकी हो .. इसीलिए गरुण को मानवीय व ईश्वरीय रूप देकर हमारी संस्कृति का अंग बना दिया गया  ... 

ऐसा माना जाता है कि गरुण मूल रूप से हिमालय के आस पास ऊंची चोटियों पर पाए जाते थे ... 

भगवान विष्णु की सवारी को गरुड़  के रूप में दिखाया जाता है ...भगवान विष्णु का ये वाहन माना जाता है। जहां भी भगवान विष्णु जाते हैं तो इस विशाल पक्षी पर बैठकर ही यात्रा करते हैं ...  

गरुड़ को विनायक, गरुत्मत्, तार्क्ष्य, वैनतेय, नागान्तक, विष्णुरथ, खगेश्वर, सुपर्ण और पन्नगाशन नाम से भी जाना जाता है ....

गरुड़ हिन्दू धर्म के साथ ही बौद्ध धर्म में भी महत्वपूर्ण पक्षी माना गया है ... अर्थात छठी सदी ईसा पूर्व तक कही ना कहीं गरुण पक्षी पाए जाते थे ...

महाभारत में गरूड़ की उत्पत्ति और महान कार्यों का वर्णन है ...  कहा गया है कि घर में गरुण की प्रतिमा या चित्र रखे ...  मंदिर में गरुड़ घंटी और मंदिर के शिखर पर गरुड़ ध्वज होता है। 

गरुण पुराण में, मृत्यु के पहले और बाद की स्थिति के बारे में बताया गया है ... हिन्दू धर्मानुसार जब किसी के घर में किसी की मौत हो जाती है तो गरूड़ पुराण का पाठ रखा जाता है ... 

कुछ विद्वान इसे गरुण पक्षी के विलुप्त होने से उपजे शोक की साहित्यिक अभिव्यक्ति मानते हैं .... 

पक्षीराज गरुण भारत की सांस्कृतिक विरासत और हिन्दू धर्म का अभिन्न अंग हैं  ..

बड़े- बड़े राजा महाराजा भी अपना प्रतीक चिन्ह गरुड़ ही रखा करते थे ... सर्वप्रथम गुप्तों ने गरुण को राजकीय प्रतीक चिन्ह बनाया ....

गरुड़ इंडोनेशिया, थाईलैंड और मंगोलिया आदि में भी सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में लोकप्रिय है ... इंडोनेशिया का राष्ट्रीय प्रतीक गरुड़ हैं। 

अब शब्दों के अर्थ भी बदल गए और इंसान भी

*कुछ याद है ??*
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जब *Windows मतलब खिड़की था...*

और...

*Applications मतलब कागज पर लिखा आवेदन या अर्जी..*
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जब *Keyboard मतलब पियानो*

और...
..
*Mouse मतलब चूहा ही होता था...*
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जब *File किसी भी कार्यालय की बेहद महत्वपूर्ण चीज होती थी...*
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और...
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*Hard Drive का मतलब राजमार्ग पर किसी वाहन द्वारा कठिन यात्रा होता था...*
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जब *Cut किसी चाकू या धारदार औजार से होता था...*

और ...

*Paste को सुबह की पहली आवश्यकता के रूप में जानते थे या कहीं दीवार पर पोस्टर चिपकाना समझते थे....*
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जब *Web मतलब मकड़ी का जाला होता था...*
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और ...
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*Virus सिर्फ बुखार के समय आता था...*
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जब *Apple और Blackberry सिर्फ फल ही हुआ करते थे.....*
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*उस समय अपने परिवार और दोस्त भाइयों के लिए हमारे पास वक्त ही वक्त होता था...*
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*लेकिन अब शब्दों के अर्थ भी बदल गए और इंसान भी.....*
😊😊

शनिवार, 26 नवंबर 2022

दान और दक्षिणा मे अंतर :-


दान और दक्षिणा मे अंतर :-
अक्सर देखा.गया है कि लोग पूजा करवाने के बाद दक्षिणा देने की बारी आने पर पंडित से बहस और चिक -चिक करने लग जाते है...

लोग तर्क देेने लगते है कि दक्षिणा श्रद्धा से दिया जाता है; 
पंडित को "लोभी हो, लालची हो",इस तरह की कई सारी बाते लोग बोलने लगते है और अनावश्यक ही पंडित को असंतुष्ट कर अपने द्वारा की गई पूजा के पूर्ण फल से वंचित रह जाते है....क्योकि ब्राह्मणों की संतुष्टि महत्वपूर्ण है 
यहाँ एक और बात ब्राह्मणो के लिये भी कहना चाहूंगा कि ब्राह्मणों को संतोषी स्वभाव का होना चाहिये..

अब हम दान और दक्षिणा पर बात करते है..दान श्रद्धानुसार किया जाता है जबकि दक्षिणा शक्ति के अनुसार.

जब हम मन मे किसी के प्रति श्रद्धा या दया के भाव से युक्त होकर बदले मे उस व्यक्ति से कोई सेवा लिये बिना,अपने मन की संतुष्टि के लिये उसे कुछ देते हैं उसे दान कहते है...

जबकि दक्षिणा पंडित को उसके द्वारा पूजा - पाठ करवाने के बाद उसे पारिश्रमिक के तौर पर दिया जाता है,

अर्थात् चूंकि यह पंडित का पारिश्रमिक है अतः उसे पूरा अधिकार है कि वो आपकी दी गई दक्षिणा से संतुष्ट न होने पर और देने की मांग करे,

जैसे आप सब्जी लेते हैं तो आप उसकी कीमत सब्जी वाले के अनुसार चुकाते हैं,बाल कटवाते हैं तो नाई के  द्वारा निर्धारित दर के अनुसार ही पैसे देते हैं..आप बाल कटवाने के बाद ये नही कहते कि इतने पैसे देने की मेरी श्रद्धा नही है,तुम ज्यादा मांग रहे हो, तुम लालची हो...

किसी भी व्यवसाय मे काम की दर पहले से निर्धारित होती है,केवल ब्राह्मण की वृत्ति ही बिना किसी सौदेबाजी के होती है क्योकि पंडित को  हर तरह के(अमीर -गरीब) यजमान मिलते है इसलिये दक्षिणा को शक्ति के अनुसार रखा जाता है..ताकि संतुलन बना रहे और सभी अपने स्तर पर ईश्वर की उपासना का लाभ ले सकें..

क्योकि ईश्वर पर अधिकार गरीब का भी उतना ही है जितना किसी अमीर का है...भगवान की पूजा के लिये किसी की आर्थिक स्तिथि बीच में न आये इसलिये ही दक्षिणा यथाशक्ति देने का विधान है..

इसलिये दक्षिणा शक्ति के अनुसार ही देनी चाहिये क्योकि पंडित को भी इस मंहगाई मे परिवार पालना बहुत ही मुश्किल होता है

मान लीजिये आप लखपति है साल मे कभी एक बार पूजा करवा रहे है और ब्राह्मण को दक्षिणा के नाम पर सौ रूपये पकड़ा रहे है,तो क्या सौ रूपये ही देने लायक शक्ति है क्या आपमे ?

आप ब्राह्मण को तो धोखा दे देंगे लेकिन आप भगवान को धोखा नही दे सकते 
क्योकि भगवान आपको आपके मनोभावों के अनुसार ही आपको पूजा का फल दे देते है ,क्योकि संकल्प ही यथाशक्ति दक्षिणा का करवाया जाता है अर्थात आप अपनी क्षमता से  कम देकर एक तरह का झूठ भगवान के सामने दिखाते है और भगवान आपको तथास्तु कह देते है

इसलिये कोशिश करे कि आपकी दक्षिणा से ब्राह्मण संतुष्ट हो जाये,

हाँ दान ,आप स्वेच्छा सेे करें,
दान के लिये पंडित को अधिकार नही होता कि वो इसे कम-ज्यादा देने कहे

अर्थात दान उसे कहेंगे कि मान लीजिये पंडित आपके घर आये है और आप श्रद्धा से उसे कुछ भेट करे वो दान है 

या आप पंडित से बिना कोई कोई पूजा पाठ करवाये किसी निमित्त उनके यहां पहुचाने जाते है,वो दान है 
तब आज तक आपको किसी पंडित ने नही कहा होगा कि थोड़ा और लाते ||

यदि कोई पंडित इस "दान" पर बोले तो उसे भले लोभी समझे लेकिन दक्षिणा के लिये और मांग करने वाले ब्राह्मन को लालची न कहे न ही समझे.||
  जय श्री राधे कृष्ण ।।राधे राधे ।।

*24 नवंबर 1675 की तारीख गवाह बनी थी, हिन्दू के हिन्दू बने रहने की !!


*24 नवंबर 1675 की तारीख गवाह बनी थी, हिन्दू के हिन्दू बने रहने की !!*
दोपहर का समय और जगह चाँदनी चौक दिल्ली लाल किले के सामने जब मुगलिया हुकूमत की क्रूरता देखने के लिए लोग इकट्ठे हुए पर बिल्कुल शांत बैठे थे !
 लोगो का जमघट !! 
और सबकी सांसे अटकी हुई थी ! शर्त के मुताबिक अगर गुरु तेग बहादुरजी इस्लाम कबूल कर लेते हैं, तो फिर सब हिन्दुओं को मुस्लिम बनना होगा, बिना किसी जोर जबरदस्ती के !
औरंगजेब के लिए भी ये इज्जत का सवाल था 
समस्त हिन्दू समाज की भी सांसे अटकी हुई थी क्या होगा? लेकिन गुरु जी अडिग बैठे रहे। किसी का धर्म खतरे में था धर्म का अस्तित्व खतरे में था तो दूसरी तरफ एक धर्म का सब कुछ दांव पे लगा था ! हाँ या ना पर सब कुछ निर्भर था। खुद चल के आया था औरगजेब, लालकिले से निकल कर सुनहरी मस्जिद के काजी के पास,,,
उसी मस्जिद से कुरान की आयत पढ़ कर यातना देने का फतवा निकलता था ! वो मस्जिद आज भी है !
*गुरुद्वारा शीष गंज, चांदनी चौक, दिल्ली !*  के पास पुरे इस्लाम के लिये प्रतिष्ठा का प्रश्न था ! आखिरकार जब इसलाम कबूलवाने की जिद्द पर इसलाम ना कबूलने का हौसला अडिग रहा तो जल्लाद की तलवार चली  और प्रकाश अपने स्त्रोत में लीन हो गया ।
ये भारत के इतिहास का एक ऐसा मोड़ था जिसने पुरे हिंदुस्तान का भविष्य बदलने से रोक दिया ।  
*हिंदुस्तान में हिन्दुओं के अस्तित्व में रहने का दिन !!*  सिर्फ एक हाँ होती तो यह देश हिन्दुस्तान नहीं होता  !
*गुरु तेग बहादुर जी*  जिन्होंने हिन्द की चादर बनकर तिलक और जनेऊ की रक्षा की  उनका अदम्य साहस  भारतवर्ष कभी  नही भूल सकता । कभी  एकांत में बैठकर सोचिएगा अगर गुरु तेग बहादुर जी अपना बलिदान न देते तो हर मंदिर की जगह एक मस्जिद होती और घंटियों की जगह अज़ान सुनायी दे रही होती।

24 नवम्बर का यह इतिहास सभी को पता होना चाहिए  !
 इतिहास के वो पृष्ठ जो पढ़ाए नहीं गये !
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