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शनिवार, 21 जनवरी 2023

हरसिंगार का पौधा किस दिशा में लगायें, कैसे लगायें

हरसिंगार का पौधा किस दिशा में लगायें, कैसे लगायें



हरसिंगार का पौधा कैसा होता है | Harsingar ka Paudha –
हरसिंगार खुशबूदार फूलों वाला पौधा है जोकि बड़ा होकर करीब 20-30 फुट ऊंचा पेड़ बन सकता है। हरसिंगार के पौधे में सफेद रंग के छोटे-छोटे सुगंधित फूल खिलते हैं जिसकी डंडी नारंगी (Orange) रंग की होती है। हरसिंगार का पौधा पारिजात, शेफाली, प्राजक्ता, शिउली नाम से भारत में जाना जाता है। इसे इंग्लिश में Night blooming Jasmine या Indian Coral Jasmine भी कहते हैं। हरसिंगार का बोटैनिकल नाम Nyctanthes Arbortristis होता है।


हरसिंगार के फूल रात में खिलते हैं और सुबह होते तक गिरने लगते हैं। हरसिंगार के फूल में अच्छी भीनी-भीनी खुशबू आती है जिससे आस-पास का वातावरण महकने लगता है। हरसिंगार की पत्तियां, फूल, जड़ आदि का कई रोगों के इलाज में प्रयोग किया जाता है।

Q: हरसिंगार का पौधा किस दिशा में लगाना चाहिए ?
A: वास्तु शास्त्र के अनुसार घर या आँगन में पूर्व दिशा (east direction) में हरसिंगार या पारिजात लगाना चाहिए या गमले को रखना चाहिए।

Q: हरसिंगार का पौधा किस दिन लगाना चाहिए ?
A: सोमवार या गुरुवार के दिन लगाना चाहिए।

Q: हरसिंगार के फूल कब आते हैं
A: अगस्त से दिसंबर तक

Q: हरसिंगार के पत्ते कैसे होते हैं
A: हरसिंगार के पत्ते छूने में खुरदुरे, 2.5 से 4.5 इंच लंबे, गाढ़े हरे रंग के होते हैं।

Q: हरसिंगार का पेड़ कितना बड़ा होता है
A: 10-20 फीट औसत लंबाई होती है।

पारिजात या हरसिंगार का पौधा कैसे लगायें |
How to grow Harsingar plant in hindi

हरसिंगार लगाने के 2 तरीके हैं। हरसिंगार की कलम (cutting) लगायें या हरसिंगार के बीज से पौधा तैयार करें। हरसिंगार के कम से कम 4-5 साल पुराने पेड़ में ही बीज लगना शुरू होते हैं जिससे नए पौधे लगा सकते हैं। चूंकि हरसिंगार के पौधे या हरसिंगार के फूल आने का मौसम अगस्त से दिसंबर तक रहता है, इसलिए अगर आप हरसिंगार के बीज से पौधा तैयार करना चाहते हैं तो अप्रैल के महीने में लगायें।

Harsingar ke phool

हरसिंगार या पारिजात का कलम कैसे लगाएं
हरसिंगार (पारिजात) की कलम / कटिंग लगाने के लिए हरसिंगार के पेड़ से हाथ की छोटी उंगली जितनी मोटी डाल तोड़ लें। नयी डाल का रंग हरा सा होता है और पुरानी डाल का रंग कुछ सफेद, भूरा होता है। हमें हरसिंगार की कलम लगाने के लिए पुरानी डाल ही चाहिए। इस डाल से करीब 8-10 इंच लंबी कलम काट लें। कलम का वो सिरा जिसे गमले में दबाना है उसे तिरछा कट लगाएं। कलम में 2-3 से ज्यादा पत्तियां नहीं होनी चाहिए। कलम को बोने के बाद 1/2 चम्मच एप्सम साल्ट (Magnesium Sulfate) 1 गिलास पानी में घोलकर पौधे में डाल दें। एप्सम साल्ट डालने से कलम को बढ़ने में मदद मिलती है और पौधा शॉक में नहीं आता।

कलम (Harsingar Cutting) को पहले किसी छोटे करीब 6-8 इंच के गमले में लगायें और छाँव में रखें। दिन में एक बार पानी का छिड़काव कर दें जिससे मिट्टी नम बनी रहे। कलम को ऐसे तब रखें जब तक कि उसमें 2-3 नयी पत्तियां न निकलने लगे। उसके बाद पौधे को ऐसी जगह रख सकते हैं जहाँ दिन में कुछ घंटे धूप आती हो लेकिन सीधी तेज धूप न लगे।

हरसिंगार का पौधा कम से कम 16 से 22 इंच के गमले में लगायें, जिससे खूब फूल और अच्छी बढ़त मिले। गमले की मिट्टी में 50% मिट्टी + 30% गोबर की खाद/वर्मी काम्पोस्ट + 20% कोकोपीट मिलाएं। आप इसके साथ में थोड़ा सा नीम की खली भी मिला सकते हैं। नीम की खली पौधे को माइक्रो-न्यूट्रीएंट्स देती है और पौधे पर लगने वाले रोगों, कीड़ों से बचाव करती है। हो सके तो साल भर में 1 बार गमले की मिट्टी खाली करके नयी मिट्टी और खाद मिलाकर भर दें, नहीं तो गमले में ऊपर से ही कुछ खाद मिक्स कर दें।

Q: पारिजात या हरसिंगार का पेड़ कहां मिलता है ?

A: यह पौधा आपको किसी भी नर्सरी से मिल जाएगा। आप हरसिंगार के बीज ऑनलाइन खरीद सकते हैं या फिर हरसिंगार के किसी बड़े पौधे से कलम काटकर लगा सकते हैं। हरसिंगार का पेड़ पूरे भारत में मिलता है।

 
हरसिंगार के पौधे की देखभाल कैसे करे |
Harsingar Plant Care in hindi

पानी – गर्मी में पौधे को दिन में 2 बार हलका पानी दें, जिससे पौधे की मिट्टी नम हो जाए लेकिन जड़ों में पानी रुके नहीं। ये ध्यान रखें कि गमले की मिट्टी से एक्स्ट्रा पानी निकल जाए क्योंकि रुके हुए पानी से पौधे की जड़ खराब होने लगती है। ठंड के मौसम में दिन में 1 बार पानी दें।

धूप – हरसिंगार का पौधा ऐसी जगह लगायें जहाँ 6-8 घंटे धूप आए। सही धूप लगने से यह पौधा अच्छे से बढ़ता जाता है। अगर पौधा 5-6 फुट से ज्यादा बड़ा है तो तेज धूप से कोई दिक्कत नहीं है। हरसिंगार का पौधा घर के अंदर (indoor) नहीं लगाया जा सकता है क्योंकि वहाँ इसे धूप नहीं मिलेगी। एक बार बढ़ जाने के बाद हरसिंगार के पौधे को बहुत ज्यादा मेंटीनेंस (देखभाल) की जरूरत नहीं होती।

नोट – अगर आप हरसिंगार गमले में लगाना चाहते हैं तो यह ध्यान रखें कि गमला साइज़ में जितना बड़ा होगा, पौधे की ग्रोथ (वृद्धि) वैसी ही होगी। हरसिंगार का पौधा गमले में लगाने पर भी फूल देता है लेकिन पौधे की ग्रोथ एक लिमिट से ज्यादा नहीं बढ़ती है। पौधे की जड़ को जितना ज्यादा फैलने की जगह मिलेगी, पौधा उसी अनुपात (ratio) में ऊंचाई और वृद्धि प्राप्त करता है। हरसिंगार का पौधा बढ़कर एक बड़ा पेड़ बन जाता है इसलिए अगर आप इसे जमीन में लगायें तो बेस्ट है।
हरसिंगार के फायदे | Harsingar Benefits in hindi

हरसिंगार के फूलों से खशबुदार तेल, एसेंशियल ऑइल आदि बनाए जाते हैं जिनका प्रयोग सेन्ट, कॉस्मेटिक, अरोमाथेरेपी आदि में प्रयोग होता है। भारत के कुछ भागों में हरसिंगार के सूखे फूल या ताजे फूल खाये भी जाते हैं। हरसिंगार के फूल (Harsingar flower) को रगड़ने पर पीला रंग मिलता है जिसे ऑर्गैनिक कलर बनाने में प्रयोग किया जाता है।

हरसिंगार की पत्ती, फूल कई तरह के दर्द, आर्थ्राइटिस, सूजन, खांसी, फीवर, जुकाम-खांसी, कब्ज, पेट की समस्या ठीक करने में फायदा करता है। हरसिंगार तेल (Harsingar oil) की महक से स्ट्रेस, टेंशन से आराम मिलता है और अच्छी नींद आने में सहायता करती है।


हरसिंगार का पौधा (Harsingar plant) लगाने की जानकारी की अपने ऐसे मित्रों-परिचितों के साथ व्हाट्सप्प जरूर शेयर करें जिन्हे बागवानी (gardening), पौधे लगाने का शौक है।


एप्सम साल्ट क्या है, एप्सम साल्ट पौधों के लिए कैसे प्रयोग करें

 

एप्सम साल्ट पौधों में डालने के 8 फायदे |
Epsom salt for plants in hindi

आइए जाने एप्सम साल्ट क्या है,
एप्सम साल्ट पौधों के लिए कैसे प्रयोग करें और
एप्सम साल्ट में क्या है जो पौधों के लिए इतना फायदेमंद है। 

एप्सम साल्ट किसे कहते है | What is Epsom Salt in hindi

एप्सम साल्ट का रासायनिक नाम MgSo4 (Hydrated Magnesium Sulfate) है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि ये एक तरह का साल्ट (नमक) है लेकिन यह खाने वाले नमक (सोडियम क्लोराइड) से काफी अलग होता है।

कई लोग एप्सम साल्ट और सेंधा नमक को एक समझ लेते हैं लेकिन इनके केमिकल कॉम्पोजिशन बिल्कुल अलग हैं। अगर आप एप्सम साल्ट की जगह कोई और साल्ट (सेंधा नमक, साधारण नमक) पौधों में डाल देंगे तो पौधों को नुकसान हो सकता है।

एप्सम साल्ट पौधों के लिए डालने के फायदे | Epsom salt benefits for plants in hindi

एप्सम साल्ट पौधों (Plants) में डालने के कई सारे फायदे हैं क्योंकि इसका मैग्नेशियम और सल्फर ये दोनों तत्व पौधे के लिए जरूरी पोषण प्रदान करते हैं। पौधों में एप्सम साल्ट डालने से पौधे की वृद्धि तेज होती है और नए फूल, फल-सब्जी आने जैसे कई फायदे मिलते हैं।

मिट्टी से पोषक तत्व सोखने में मदद करे –

1) एप्सम साल्ट में पाए जाने वाला मैग्नीशियम पौधे में फूल, फल पैदा करने की शक्ति बढ़ाता है, इसके अलावा मैग्नीशियम पौधे को मिट्टी से सबसे जरूरी तत्व नाइट्रोजन (Nitrogen) और फॉस्फोरस (Phosphorus) सोखने में मदद करता है।

फूल और फल न आने की समस्या एप्सम साल्ट दूर करे –

2) अक्सर लोग इस बात से परेशान रहते हैं कि उनके फूल के पौधे जैसे गुलाब में फूल नहीं आ रहे। इसका कारण ये है कि कुछ पौधों को मैग्नीशियम की बहुत ज्यादा जरूरत होती है जैसे गुलाब, टमाटर आदि। गुलाब के पौधे की मिट्टी में एप्सम साल्ट डालने से या एप्सम साल्ट पानी में मिलाकर स्प्रे करने से गुलाब में खूब फूल आने लगते हैं। पेड़-पौधों में नए फल आने के सीजन से पहले और फल आने के बाद भी एप्सम साल्ट का छिड़काव करने से अच्छे, स्वादिष्ट फल तैयार होते हैं।

बीज, कलम (Cutting) की ग्रोथ तेज करे –

3) अगर आपने किसी पेड़ की नयी कलम (Cutting) लगाई है या कोई बीज बो रहे हैं तो पौधे में एप्सम साल्ट जरूर डालें। इससे बीज अच्छी तरह से अंकुरित (Germination) होता है और नयी कलम से जड़, पत्ती निकलने की प्रक्रिया तेज होती है। कलम को लगाने से पहले एप्सम साल्ट के घोल में डुबाकर निकालें फिर मिट्टी में दबायें।

पौधों में पत्ती न आने की समस्या ठीक करे –

4) अगर आपके पौधे में नई पत्तियां नहीं आ रही हैं तो एप्सम साल्ट के प्रयोग से नयी पत्तियां आने लगती हैं और पौधा हरा-भरा, खूब घना (Bushier) होने लगता है। एप्सम साल्ट पौधे को हरा रंग देने वाले क्लोरोफिल को बनाने में सहायता करता है, क्लोरोफिल से ही पौधे अपना भोजन प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) के माध्यम से बनाते हैं।

Paudhe me epsom salt ke fayde
Epsom Salt for Plants in hindi

एप्सम साल्ट पौधे को रूट शॉक (Root Shock) से बचाए –

5) कई बार देखा गया है कि किसी पौधे को एक जगह से निकालकर दूसरी नयी जगह पर लगाने से या कोई नया पौधा लगाने पर उसकी पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं या पत्तियां कमजोर सी दिखने लगती हैं, गिरने लगती हैं। ये पौधे को रूट शॉक लगने की वजह से होता है।

पौधे में भी जान (Life) होती है और वो बदलाव के प्रति संवेदनशील होते हैं। इसलिए कई बार नयी जगह के बदलाव से पौधे को शॉक लगता है और वो मुरझाने लगता है। इस तरह की स्थिति में पौधे को रोपते समय मिट्टी में एप्सम साल्ट डालना पौधे को रूट शॉक लगने से बचाता है।

मिट्टी में मैग्नीशियम, सल्फर की कमी पूरी करे –

6) मिट्टी में अगर मैग्नीशियम की मात्रा कम हो जाए तो एप्सम साल्ट डालने से यह पूरी हो जाती है। एप्सम साल्ट मिट्टी में सल्फर की कमी भी पूरी करता है। पौधों को सल्फर की बहुत ज्यादा आवश्यकता नहीं होती लेकिन इसके न होने से भी पौधे का स्वास्थ्य और शक्ति कमजोर होती है।

Epsom Salt मिट्टी और पर्यावरण के लिए हानिकारक नहीं –

7) अगर कोई रासायनिक खाद (Chemical Fertilizer) पौधे में ज्यादा डाल दें तो पौधों को नुकसान पहुंचेगा लेकिन एप्सम साल्ट के साथ ऐसा नहीं है। अगर गलती से एप्सम साल्ट पौधों में थोड़ा-बहुत ज्यादा भी पड़ जाए तो भी नुकसान नहीं होता है। यह अन्य केमिकल फर्टलाइज़र की तरह मिट्टी को दूषित करने का काम नहीं करता।

पौधों में कीट लगने की समस्या दूर करे –

8) एप्सम साल्ट पौधों में आमतौर पर लगने वाले कीट-पतंगों, घोंघे (Snail), इल्ली लगने की दिक्कत दूर करता है। इसके लिए 1 कप एप्सम साल्ट करीब 1 बाल्टी पानी में मिलाकर पौधे के ऊपर, पत्तियों पर छिड़काव, स्प्रे कर दें। पौधे की जड़ को कीट से बचाने के लिए सूखा एप्सम साल्ट पौधे की जड़ के पास छिड़क दें।

एप्सम साल्ट पौधों में डालने का तरीका और पौधों में एप्सम साल्ट कब डालना चाहिए –

पौधों में एप्सम साल्ट डालने के कई तरीके है। किसी पौधे के लिए ऊंचाई के हिसाब से हर 1 फुट हाइट के लिए 1 छोटा चम्मच (teaspoon) एप्सम साल्ट प्रयोग करना पर्याप्त है।

a) बीज रोपते समय – कोई बीज बो रहे हैं तो बीज बोने के लिए खोदे गए गड्ढे में 1 छोटा चम्मच एप्सम साल्ट दें।

b) पौधे के लिए – महीने में 1-2 बार 1 लीटर पानी में 1 चम्मच एप्सम साल्ट मिलाकर डाल दें या इस पानी को पौधे पर छिड़काव (स्प्रे) कर दें। एप्सम साल्ट पानी में मिलाकर पौधों में डालने से पौधे इसे सही से ऐब्सॉर्ब कर लेते हैं।

c) पेड़ों के लिए – किसी पेड़ में साल में 3 बार करीब 1 कप जितना एप्सम साल्ट जड़ों में डाल दें।

d) लॉन या झाड़ी के लिए – अपने लॉन की घास हरी-भरी करने और बढ़ाने के लिए आप एप्सम साल्ट मिले पानी का छिड़काव कर सकते हैं या एप्सम साल्ट छिड़ककर पानी से तराई कर दें।

e) नयी कलम या पौधे लगाते समय – नये पौधों को लगाते समय पौधे की जड़ में 1-2 चम्मच एप्सम साल्ट छिड़क दें या 1 मग पानी में एप्सम साल्ट घोलकर डाल दें।

f) एप्सम साल्ट कब डालें – जब पौधे में नयी पत्तियां, फूल, फल आने का सीजन हो तो उसके पहले पौधे में एप्सम साल्ट घोल का छिड़काव करें। जैसे कि गुलाब के पौधे में वसंत (spring) के मौसम में एप्सम साल्ट स्प्रे करें क्योंकि इस मौसम में गुलाब पर नयी पत्तियां, फूल आते हैं। गुलाब पर फूल आने के बाद भी एप्सम साल्ट का छिड़काव करें जिससे कि खूब फूल निकलते रहें और नए फूल निकालने के लिए पौधे में मैग्नीशियम की कमी न होने पाए।

एप्सम साल्ट कब नहीं प्रयोग करना चाहिए –

अगर आपके यहाँ की मिट्टी बहुत अम्लीय (Acidic) है तो एप्सम साल्ट डालने से प्रॉब्लेम हो सकती है। एप्सम साल्ट एक लाभदायक खाद है लेकिन सिर्फ इसे ही पौधे में डालने से फायदा नहीं होगा। पौधे के लिए मुख्यतः नाइट्रोजन, फॉसफोरस, पोटैशियम सबसे ज्यादा जरूरी है जिसके लिए NPK खाद या गोबर की खाद, वर्मी काम्पोस्ट, कोकोपीट आदि भी पौधे की मिट्टी डालना चाहिए।

फली वाली सब्जियां और हरे-पत्तेदार सब्जियां मिट्टी में कम मैग्नीशियम हो तो भी अच्छे से फलती-फूलती है। ऐसे ही कुछ पौधे होते हैं जिनको एप्सम साल्ट की बहुत आवश्यकता नहीं होती है। आप पौधे की मिट्टी में एप्सम साल्ट डालने के पहले मिट्टी का टेस्ट (Soil test) भी करवा सकते हैं जिससे आपको पता चल जाए कि आपके मिट्टी में मैग्नीशियम की मात्रा सही है या नहीं।

सूर्य की किरणों में विटामिन डी कितने बजे तक रहता है?

 


सूर्य की किरणों में विटामिन डी नही होता। सूर्य की कोमल किरणे जब हमारी स्किन पर पड़ती है तो हमारी स्किन विटामिन डी बनाती है।

सूर्योदय से 1 घंटे, (सर्दी की सीज़न में 2 घंटे तक) तक और सूर्यास्त से पहले के 1 घंटे की किरण हमारी स्किन पर पड़े ऐसा करना चाहिए।

मेरा अपना अनुभव ये है कि रोज 30 मिनिट तक कसरत (पसीना हो ऐसी) करने से भी विटामिन डी बनता है। मेडिकल सायन्स या कोई डॉक्टर इसे प्रमाणित नही करेगा लेकिन जब से में कसरत कर रहा हु, विटामिन डी की गोली लेने की जरूरत नही पड़ती।


कुछ दिन पहले ही ये जानकारी मिली। वैज्ञानिकों ने एक्सपेरिमेंट से साबित किया है की सुबह का सूर्य, जो लाल या ऑरेंज कलर का दिखता है, उसके सामने खुली आँखों से देखने से , हमारे कोषों का माइटोकॉन्ड्रिया में सीधी एनर्जी आ जाती है । ठीक उसी तरह, जैसे बैटरी चार्ज होती है। माइटोकोन्ड्रिया को शरीर का पावरहाउस कहा जाता है। किसी भी तरह से मिली हुई एनर्जी माइटोकॉन्ड्रिया में ही स्टोर होती है और जरूरत पड़ने पर छोटी सी केमिकल प्रोसेस से इलेक्ट्रॉन रूप में मुक्त होती है।

खाना खाने के बाद बहुत ही लंबी पाचन की प्रक्रिया के बाद जो एनर्जी मिलती है वो भी माइटोकोन्ड्रिया में स्टोर होती है लेकिन पाचन की प्रोसेसमे शरीर बहुत सारी एनर्जी खर्च भी करता है, लेकिन सूर्य से ये एनर्जी बिना कोई खर्च से मिलती है।

कुछ साल पहले में ये कर चुका हूं। ये करने से चश्मा के नम्बर भी कम हुवे और दोपहर को खाना खाने की जरूरत नही लगती थी।

ऊपर लिखी मेरी एक बात गलत हुई, शाम के वक्त भी सूर्य ऑरेंज कलर का दिखता है लेकिन, उसका कोई ऐसा प्रभाव (माइटोकोन्ड्रिया पर ) नही होता जैसा सुबह में होता है, ऐसा क्यों होता है ये अभी स्पष्ट रूप से पता नही चला। लेकिन विटामिन D तो हर हाल में मिलता है।

1 बाल्टी पानी में 4 चम्मच नमक...फिर देखो कमाल!

*_शारीरिक और मानसिक थकान को दूर करे गर्म पानी और नमक का ये उपचार_*

1 बाल्टी पानी में 4 चम्मच नमक...फिर देखो कमाल!


आगे बढऩे की चाहत और गलाकाट प्रतियोगिता के चलते आधुनिक इंसान के ऊपर काम का तनाव दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। आधुनिक इंसान की इस तनाव भरी मजबूरी से फायदा उठाने के लिये कितने ही लागों ने अपनी दुकान लगा ली है। दुनिया की शायद ही कोई चिकित्सा पद्धति ऐसी बची होगी जो व्यक्ति को तनाव से छुटकारा दिलाने का पक्का यकीन न दिलाती हो। यहां तक कि बड़े-बड़े होटलों में तो तनाव से छुटकारा दिलाने के नाम पर मंहगी से मंहगी मसाज थैरपी का प्रचलन चल पड़ा है।

यहां हम एक ऐसा कुदरती और साथ ही वैज्ञानिक प्रयोग बता रहे हैं जो सिर्फ चंद मिनिटों में ही हर तरह के शारीरिक और मानसिक तनाव से तत्काल मुक्ति दिलाता है। इस प्रयोग की असलियत और प्रभाव को जांचने के लिये लंबा इंतजार करने की कतई आवश्यकता नहीं है। मात्र 15 मिनिटों में ही आप इस प्रयोग के चमत्कारी प्रभाव से परिचित हो जाएंगे....

प्रयोग:-
दिन भर के तमाम कार्यों से निवृत्त होकर सोने से ठीक पहले यह प्रयोग करना चाहिये। 1 बाल्टी में सामान्य गर्म यानी गुनगुना पानी भर लें। इस पानी में लगभग 4 चम्मच साधारण और सस्ते से सस्ता यानी कि रुपय-दो रुपय किलो वाला नमक लेकर डालकर अच्छी तरह से मिला लें। अब इस नमक घुले हुए गुन-गुने पानी में अपने दोनों पैरों को घुटनों तक डुबों लें। पैरों को पानी में डुबाकर लगभग 10 से 15 मिनट तक रहें, इस बीच लगातार गहरी सांस लें और छोड़ें। प्रयोग के दोरान मन में किसी भी तरह के खयालों को जगह नहीं देना चाहिये।


*एक उपाय और करे*
पानी जब ठंडा हो जाये तो पैरो को निकाल कर तलवो में सरसों नारियल या तिल का तेल अवश्य लगाए 
तलवो की मालिश रात अच्छी नींद और शांति देगी

*वैज्ञानिक आधार*
नमक सोडियम और क्लोराइड का मिश्रण होता है। सोडियम क्लोराइड के इस घोल की यह खाशियत होती है कि यह दिन भर के काम-काज के दोरान शरीर में बनी नेगेटिव एनर्जी को शोखकर व्यक्ति को पूरी तरह से तनाव मुक्त कर देता है।

इस प्रयोग के पूर्ण होने पर आप देखेंगे कि आपका सारा शारीरिक और मानसिक तनाव जा चुका है तथा आप फिर से कार्य करने के लिये पूरी तरह से रिचार्ज हो जाएंगे। इस प्रयोग का दूसरा कीमती लाभ यह होता है कि आपको गहरी और सुकून देने वाली नींद आती है।


मौनी अमावस्या *पित्र श्राद्ध एवं तर्पण करने का विशेष पर्व*




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*मौनी अमावस्या 

*पित्र श्राद्ध एवं तर्पण करने का विशेष पर्व*
*शनिश्चरी अमावस्या होने की वजह से गो ग्रास का विशेष महत्व*
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*निमि ने शुरू की श्राद्ध की परंपरा*
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*महाभारत के अनुसार, सबसे पहले श्राद्ध का उपदेश महर्षि निमि को महातपस्वी अत्रि मुनि ने दिया था। इस प्रकार पहले निमि ने श्राद्ध का आरंभ किया, उसके बाद अन्य महर्षि भी श्राद्ध करने लगे। धीरे-धीरे चारों वर्णों के लोग श्राद्ध में पितरों को अन्न देने लगे। लगातार श्राद्ध का भोजन करते-करते देवता और पितर पूर्ण तृप्त हो गए।*

*पितरों को हो गया था अजीर्ण रोग*
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*श्राद्ध का भोजन लगातार करने से पितरों को अजीर्ण (भोजन न पचना) रोग हो गया और इससे उन्हें कष्ट होने लगा। तब वे ब्रह्माजी के पास गए और उनसे कहा कि- श्राद्ध का अन्न खाते-खाते हमें अजीर्ण रोग हो गया है, इससे हमें कष्ट हो रहा है, आप हमारा कल्याण कीजिए।*
*देवताओं की बात सुनकर ब्रह्माजी बोले- मेरे निकट ये अग्निदेव बैठे हैं, ये ही आपका कल्याण करेंगे। अग्निदेव बोले- देवताओं और पितरों। अब से श्राद्ध में हम लोग साथ ही भोजन किया करेंगे। मेरे साथ रहने से आप लोगों का अजीर्ण दूर हो जाएगा। यह सुनकर देवता व पितर प्रसन्न हुए। इसलिए श्राद्ध में सबसे पहले अग्नि का भाग दिया जाता है।*

*पहले पिता को देना चाहिए पिंड*
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️*पुराणों के अनुसार, अग्नि में हवन.करने के बाद जो पितरों के निमित्त पिंडदान दिया जाता है*
*उसे ब्रह्मराक्षस भी दूषित नहीं करते।*
 *श्राद्ध में अग्निदेव को उपस्थित देखकर राक्षस वहां से भाग जाते हैं। सबसे पहले पिता को, उनके बाद दादा को उसके बाद परदादा को पिंड देना चाहिए। यही श्राद्ध की विधि है। प्रत्येक पिंड देते समय एकाग्रचित्त होकर गायत्री मंत्र का जाप तथा सोमाय पितृमते स्वाहा का उच्चारण करना चाहिए।*

*कुल के पितरों को करें तृप्त*
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*रजस्वला स्त्री को श्राद्ध का भोजन तैयार करने में नहीं लगाना चाहिए। तर्पण करते समय पिता-पितामह आदि के नाम का स्पष्ट उच्चारण करना चाहिए। किसी नदी के किनारे पहुंचने पर पितरों का पिंडदान और तर्पण अवश्य करना चाहिए। पहले अपने कुल के पितरों को जल से तृप्त करने के पश्चात मित्रों और संबंधियों को जलांजलि देनी चाहिए। चितकबरे बैलों से जुती हुई गाड़ी में बैठकर नदी पार करते समय बैलों की पूंछ से पितरों का तर्पण करना चाहिए क्योंकि पितर वैसे तर्पण की अभिलाषा रखते हैं।*

*अमावस्या पर जरूर करना चाहिए श्राद्ध*
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*नाव से नदी पार करने वालों को भी पितरों का तर्पण करना चाहिए। जो तर्पण के महत्व को जानते हैं, वे नाव में बैठने पर एकाग्रचित्त हो अवश्य ही पितरों का जलदान करते हैं। कृष्णपक्ष में जब महीने का आधा समय बीत जाए, उस दिन अर्थात अमावस्या तिथि को श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।*

*इसलिए रखना चाहिए पितरों को प्रसन्न*
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*पितरों की भक्ति से मनुष्य को पुष्टि, आयु, वीर्य और धन की प्राप्ति होती है। ब्रह्माजी, पुलस्त्य, वसिष्ठ, पुलह, अंगिरा, क्रतु और महर्षि कश्यप-ये सात ऋषि महान योगेश्वर और पितर माने गए हैं। मरे हुए मनुष्य अपने वंशजों द्वारा पिंडदान पाकर प्रेतत्व के कष्ट से छुटकारा पा जाते हैं।*

*ऐसे करना चाहिए पिंडदान*
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*महाभारत के अनुसार, श्राद्ध में जो तीन पिंडों का विधान है, उनमें से पहला जल में डाल देना चाहिए। दूसरा पिंड श्राद्धकर्ता की पत्नी को खिला देना चाहिए और तीसरे पिंड की अग्नि में छोड़ देना चाहिए, यही श्राद्ध का विधान है। जो इसका पालन करता है उसके पितर सदा प्रसन्नचित्त और संतुष्ट रहते हैं और उसका दिया हुआ दान अक्षय होता है।*

*1👉 पहला पिंड जो पानी के भीतर चला जाता है, वह चंद्रमा को तृप्त करता है और चंद्रमा स्वयं देवता तथा पितरों को संतुष्ट करते हैं।*

*2👉 इसी प्रकार पत्नी गुरुजनों की आज्ञा से जो दूसरा पिंड खाती है, उससे प्रसन्न होकर पितर पुत्र की कामना वाले पुरुष को पुत्र प्रदान करते हैं।*

*3👉 तीसरा पिंड अग्नि में डाला जाता है, उससे तृप्त होकर पितर मनुष्य की संपूर्ण कामनाएं पूर्ण करते हैं।*
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शुक्रवार, 20 जनवरी 2023

कौन सी चीजें फिल्मों में अक्सर गलत तरीके से दिखाई जाती हैं? - मौत।

 

मौत।

1998 में, इस प्रसिद्ध फिल्म "कुछ कुछ होता है" ने टीना (रानी मुखर्जी) को परफेक्ट आई शैडो के साथ मरते हुए दिखाया, उसके शरीर में दर्द के शून्य लक्षण, राहुल से बात करना, उसे गले लगाना और हग करते हुए मरना। इस दृश्य में, वह शायद मर चुकी है। डॉक्टर शायद बाहर थे, इस अति भावुक दृश्य पर रोते हुए, उन्होंने उसे मरने की अनुमति दी।

रोमांटिक बकवास।

असली मौत विकट बदसूरत है, ज्यादातर मामलों में, आपके अंदर बहुत से पाइप हैं। इस तरह के परिदृश्य में वास्तविक मौत मल्टी ऑर्गन फेलियर के कारण होती है। मुझपर भरोसा करें, ऐसी हालत में मरीज के चेहरे को देखना दर्दनाक होता है

लेकिन यह 1998 की फिल्म थी। अभी का क्या?

आइए देखते हैं कि 2016 में आई फिल्म “सनम तेरी कसम” में एक ब्लड कैंसर के मरीज की मौत कैसे हुई?

दृश्य 1: वह मर रही है। डॉक्टर ने ऐसा कहा। लेकिन वह बोल रही है।

दृश्य 2: अभी भी बात कर रहे हैं। कोई डॉक्टर नहीं, कोई वेंटिलेशन नहीं, कोई ऑक्सीजन नहीं, सही मेकअप, पूरी तरह से किए गए बाल। बस उसके हाथ में कुछ यादृच्छिक आईवी-चैनल।

दृश्य 3 अरे नहीं! वह मर चुकी है, ऐसे ही।

प्रिय बॉलीवुड, मौत की महिमा दिखना बंद करो । कैंसर से मौत, बहु अंग विफलता बदसूरत है, दर्दनाक है। जब मेरे निकट एक की मृत्यु हो गई, तो उसका पूरा शरीर सूज गया था, उसकी आँखों से खून टपकने लगा था, उसके बाल पूर्ववत थे और वेंटिलेशन चैनल के कारण उसका होंठ फट गया था।

जब मुझे पता था कि एक अन्य व्यक्ति मल्टी ऑर्गन फेल्योर से मर गया है, तो वह खुद की तरह कुछ नहीं देख रहा था। वह वास्तव में मर चुकी थी, उससे बहुत पहले वह मृत और मृत लग रही थी।

मौत कोई खूबसूरत चीज नहीं है।

यह बात बदसूरत मौत दिखाने और दर्शकों को डराने के बारे में नहीं है। बात इसे वास्तविक बनाने की है। कम से कम, एक व्यक्ति को बात करने, गले लगाने और उसी तरह मरने के लिए न दिखाएं। यह अवास्तविक उम्मीद पैदा करता है और जब बदसूरत मौत आती है, तो यह अनुचित लगता है, अंतिम अलविदा कहने में सक्षम नहीं होना। लेकिन अधिकांश वास्तविक जीवन के मामलों में, जो कि अंतिम टाटा अलविदा नहीं होता है

रोमांटिक आदान-प्रदान के बिना मौत। मौत का असली दर्द दिखाओ, उसकी कुरूपता नहीं।

गोरोचन क्या है? यह कहाँ मिलता है? क्या इसका प्रयोग तंत्र विद्या में वशीकरण के लिए किया जाता है?

 

तांत्रिक ग्रंथों में अक्सर एक वस्तु का नाम कई जगह पढ़ने-सुनने को मिलता है। वह वस्तु है गोरोचन। क्या आप जानते हैं यह गोरोचन है क्या? और इसकी इतनी चर्चा क्यों होती है? यह किस काम आता है? आइए आज जानते हैं गोरोचन के बारे में। गोरोचन दरअसल एक ऐसी सिद्ध वस्तु है जिसका उपयोग अनेक कर्मों में किया जाता है। धन, संपत्ति, सुख, समृद्धि, जमीन में गड़े धन का पता लगाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा प्रयोग वशीकरण में किया जाता है। इसका तिलक करने से तीव्र वशीकरण और आकर्षण प्राप्त होता है।

कैसे करते हैं गोरोचन का उपयोग

गोरोचन को बाजार से लाकर सीधे प्रयोग नहीं किया जाता है। इसे सिद्ध करना होता है, तभी यह अपना असर दिखा पाता है। गोरोचन को रवि पुष्य नक्षत्र में सिद्ध किया जाता है। जिस रविवार को पुष्य नक्षत्र हो उस दिन नहाकर अपने पूजा स्थान में बैठकर सोना या चांदी की कटोरी, डिबिया या छोटे पात्र में गोराचन रखकर इसका पंचोपचार पूजन करें। इसके बाद दो मंत्रों का एक-एक माला जाप करना होता है। ये मंत्र हैं :

  • ऊं शांति शांत: सर्वारिष्टनाशिनि स्वाहा:
  • ऊं श्रीं श्रीयै नम:
    • गोरोचन के अनेक उपयोग हैं जिनमें से सबसे ज्यादा प्रचलित उपयोग वशीकरण का है। यदि आप अपने आकर्षण प्रभाव में वृद्धि करना चाहते हैं। आप चाहते हैं कि लोग आपसे प्रभावित रहें। आपकी बात सुनें। आप किसी स्त्री या पुरुष को अपने वशीभूत करना चाहते हैं तो गोरोचन के साथ सिंदूर और केसर को बराबर मात्रा में मिलाकर एक चांदी की डिबिया में भरकर रख लें। प्रतिदिन सूर्योदय के समय इसका तिलक करने से आपके वशीकरण प्रभाव में जबर्दस्त तरीके से वृद्धि होगी। हर व्यक्ति आपकी बात मानने लगेगा।
    • आर्थिक स्थिति सुधारने और धन-धान्य की प्राप्ति के लिए गोरोचन को एक चांदी की डिबिया में भरकर अपने पूजा स्थान में रखें और रोज देवी-देवताओं की तरह इसकी भी पूजा करें। इससे घर में बरकत आने लगती है। घर में यदि कोई वास्तु दोष है तो वह दूर हो जाता है। घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
    • घर में कोई सदस्य बीमार है तो रविवार या मंगलवार के दिन एक छोटा चम्मक गुलाब जल में थोड़ा सा गोरोचन मिलाकर उस व्यक्ति को पिला दें। गोरोचन का तिलक प्रतिदिन बीमार व्यक्ति को लगाएं तो जल्द ही वह स्वस्थ होने लगेगा।
    • मिर्गी या हिस्टीरिया के मरीज को गुलाबजल में थोड़ा गोराचन घिसकर तीन दिन तक पिलाने से रोग में आराम मिलता है। लेकिन यह प्रयोग किसी जानकार की देखरेख में ही करें।
    • समस्त कामनाओं की पूर्ति के लिए गोरोचन को रवि पुष्य नक्षत्र में पंचोपचार पूजन कर चांदी या तांबे के ताबीज में भरकर अपने गले में धारण कर लें। इससे कार्यों में आने वाली बाधाएं समाप्त होंगी और सारी मनोकामनाएं पूरी होंगी।
    • गोरोचन की स्याही बनाकर इससे भोजपत्र पर मोरपंख की कलम से सिद्ध बीसा यंत्र लिखकर पंचोपचार पूजन करके चांदी के ताबीज में बांधकर अपने पास रखें। इससे आर्थिक संकट दूर हो जाता है।
    • कुछ तांत्रिक लोग गोरोचन का प्रयोग जमीन में गड़ा धन पता करने के लिए भी करते हैं। इसके लिए अमावस्या की रात्रि में निर्जन स्थान पर गोरोचन को विशेष साधना के जरिए सिद्ध किया जाता है। फिर विशेष पद्धति से इसका काजल बनाया जाता है। जो व्यक्ति उस काजल को अपनी आंख में लगाता है उसमें जमीन में दबा धन पता करने की शक्ति आ जाती है।
    • केले में गोरोचन मिलाकर लेप बनाएं और इसे मस्तक पर लगाने से आकर्षण शक्ति प्राप्त होती है।
  • गोरोचन गाय के शरीर से प्राप्त होता है। कुछ विद्वान का मत है कि यह गाय के मस्तक में पाया जाता है, किंतु वस्तुतः इसका नाम 'गोपित्त' है, यानी कि गाय का पित्त। हल्की लालिमायुक्त पीले रंग का यह एक अति सुगंधित पदार्थ है, जो मोम की तरह जमा हुआ सा होता है। अनेक औषधियों में इसका प्रयोग होता है।
  • स्रोत गूगल, जवाब पढ़ने के लिए धन्यवाद आपका 🙏

क्या भगवान कार्तिकेय और अय्यप्पा एक ही हैं?

 

दोनो अलग हैँ ।

कार्तिकेय "शिव और शक्ति" के पुत्र हैँ और अय्यप्पा "शिव और मोहिनी" के । मोहिनी भगवान विष्णु का स्त्री अवतार है। मोहिनी समुद्र मंथन के बाद अमृत बाँट रहीँ थी । अय्यप्पा या अय्यपन को हरिहरपुत्र भी कहा जाता है। यहाँ पर हरि विष्णु और हर शिव हैँ।

अय्यप्पा बाघिन की सवारी करते दिखाए जाते है इसलिए अकसर साथ मेँ अन्य बाघ शावक या बच्चे भी होते हैँ। नन्हे शावकोँ के कारण पता चल जाता है कि बाघिन है।

कार्तिकेय का दक्षिण भारतीय नाम मुरुगन या आरुमुगम ( आरु मुखम या षडमुख) हैँ। कार्तिकेय मोर की सवारी करते दिखाए जाते हैँ । इनके छह मुख भी दिखाए जाते हैँ या कभी कभी एक मुख वाले भी बना दिए जाते हैँ । आरुमुगम तमिळ राज्य के रक्षक देव माने जाते हैँ।


अय्यप्पा की लोकप्रियता उत्तर भारत मेँ कम है। इसलिए इनकी कथा की जानकारी कम ही है।

पांडलम राज्य के राजा पांडियन के कोई संतान नहीँ थी । एक बार उनको जंगल मेँ एक शिशु मिला । राजा इस शिशु को लेकर ऋषियोँ के पास गए। ऋषियोँ ने उन्हे इसको अपने पुत्र की तरह पालने का आदेश दिया और बताया कि जब शिशु बारह वर्ष का हो जाएगा तो शिशु कौन है इसकी जानकारी राजा को होगी । इसके बाद राजपरिवार ने इस शिशु का नाम मणिकण्ठ रखकर उसका पालन किया ।

इसके कुछ समय बाद राजा रानी को एक और पुत्र की प्राप्ति हुई । जब मणिकण्ठ 12 वर्ष का हुआ तो राजा ने उसे उत्तराधिकारी घोषित करने का निर्णय लिया । इस समय तक राजा का पुत्र भी किशोर होने को था लेकिन राजा की दृष्टि मेँ वह उत्तराधिकारी बनने के योग्य नहीँ था। एक मंत्री ने रानी के कान भर दिए और उस समझा दिया कि राजा और रानी का वास्तविक पुत्र ही उत्तराधिकारी होना चाहिए । अयोग्य पुत्र मंत्री की बाते मानता था और उसके राजा होने पर मंत्री को अपनी मनमानी करने का अवसर मिलता । इस योजना मेँ रानी ने बीमार होने का बहाना बनाया । प्रायोजित वैद्य ने बीमारी का इलाज बाघिन के दूध को बताया। रानी ने पुत्र मणिकण्ठ को आदेश दे दिया कि वह बाघिन का दूध लेकर आए। मणिकण्ठ ने इसको सहर्ष स्वीकार किया । कुछ समय बाद मणिकण्ठ बाघिन की सवारी करते हुए उसके शावकोँ और झुण्ड के साथ राजमहल लौटे ।

राजा को उनकी दिव्यता का अहसास हुआ और उनके लिए मंदिर बनाने की घोषणा की । इसके बाद मणिकण्ठ ने अपने अय्यपन (शिव मोहिनी पुत्र) रूप को प्रकट किया । अय्यपन ने एक तीर छोडा जो वहाँ से करीब तीस किलोमीटर दूर जाकर गिरा । वहीँ पर अय्यपन का मंदिर बनाया गया। चित्रोँ मेँ अय्यपन वन से लौटते समय बाघिन की सवारी करते हुए दिखाए जाते हैँ। चित्रोँ मेँ अय्यप्पा के हाथ मेँ धनुष और तीर भी दिखाया जाता है। अय्यपन की कथा पुराणोँ मेँ न होने के कारण इस कथा पर मतभेद भी है।


इनका सबसे प्रसिद्ध मंदिर शबरीमाला (सबरिमलय) है। अय्यपन के मंदिरोँ मेँ अय्यपन एक किशोर योगी की अवस्था मेँ होते है। जीवन के उस काल मेँ जब उन्होने ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया हुआ था ।मंदिर मेँ स्थापित देव को एक जीवित देव की तरह माना जाता है और उनके साथ उसी प्रकार का आचरण किया जाता है जैसा उन्हे पसंद था या । जो भी व्रत उन्होने लिए थे उनका सम्मान होता है । इसलिए इनके मंदिरो मेँ महिलाओँ का प्रवेश वर्जित होता है। यह वर्जन अय्यपन के ब्रह्मचर्य व्रत के कारण है न कि स्त्रियोँ के साथ किसी प्रकार के भेदभाव के कारण ।

अय्यपन मेँ विश्वास करने वाले समाज की स्त्रियाँ तो इनके मंदिर मेँ जाकर इनका व्रत भंग नहीँ करना चाहती लेकिन एक्टिविस्ट को इसी मंदिर मेँ जाना है। उन्हे पूजा अर्चन के लिए भारत के लाखोँ मंदिरोँ मेँ से कोई भी नहीँ भाया। स्त्रियोँ के अधिकार पर बेकार का बवाल खडा कर दिया। हर मनाही प्रतिबंध नहीँ होती । स्त्रियोँ को पुरुष शौचालय मेँ जाने की भी मनाही है तो क्या ये भेदभाव हो गया ? यह मात्र एक सामाजिक सुविधा है। नारी को समान अधिकारोँ की आवश्यकता है और उनके लिए लडना भी चाहिए । लेकिन उन अधिकारोँ के लिए लडना चाहिए जिनसे जीवन पर अच्छे प्रभाव पडते होँ बेकार के हंगामेँ खडे करके क्या मिलने वाला है।

यदि स्त्री होने के कारण प्रतिबंध होता तो भारत के सभी मंदिरोँ मेँ होता लेकिन भारत मेँ घरोँ के आस पास के मंदिरोँ मेँ तो स्त्रियाँ ही अधिक जाती हैँ । लोग इतने आधुनिक हो गए कि न सोचना न समझना अय्यपन के ब्रह्मचर्य व्रत भंग करने के पीछे पड गए ।

यदि महाभारत के भीष्म के मंदिर होते तो वहाँ भी स्त्रियोँ का जाना वर्जित ही होता । हनुमान के मंदिरोँ मेँ भी बहुत सी स्त्रियाँ नहीँ जाती हैँ। लेकिन हनुमान के मंदिर बहुत सारे हैँ इसलिए अनुशासन रख पाना कठिन है। जिन्हे जानकारी नहीँ होती चली भी जाती हैँ। राम मंदिर मेँ हनुमान की मूर्ती हो तो उसमेँ कोई वर्जन नहीँ होता।


इस विषय पर भी अनेक प्रश्न और अनेक विचार हो सकते हैँ कि ब्रह्मचर्य व्रत रखने वाले को स्त्रियोँ से दूरी की आवश्यकता है?

व्यक्ति के सामाजिक जीवन की बात जाए तो उसके दो पक्ष होते हैँ है एक तो व्यक्ति का अपना चरित्र और एक समाज मेँ छवि । समाज एक और ढोँगियोँ पर विश्वास कर लेता है तो वही समाज उज्ज्वल से उज्ज्वल चरित्र पर भी प्रश्न लगा देता है।

उत्तर रामायण (जिसको बाद मेँ जोडा हुआ माना जाता है) की कथा मेँ सीता पर भी इस समाज नेँ लांछ्न लगाया था । इसलिए लोक दृष्टिकोण मेँ लोग अतिरिक्त सावधानी भी रखते हैँ । यदि किसी स्त्री से सम्पर्क ही नहीँ है तो ब्रह्मचर्य पर कोई प्रश्न नहीँ है।

यदि देव इस समय होते तो क्या वे स्वयम् भी यह वर्जन रखते ? यह तो कहा नहीँ जा सकता है लेकिन अब तो विषय उनके भक्तोँ की आस्था का अधिक है।

अगस्त्य संहिता में विद्युत के बारे में सटीक जानकारी

 

निश्चित ही बिजली का आविष्कार बेंजामिन फ्रेंक्लिन ने किया लेकिन बेंजामिन फ्रेंक्लिन अपनी एक किताब में लिखते हैं कि एक रात मैं संस्कृत का एक वाक्य पढ़ते-पढ़ते सो गया। उस रात मुझे स्वप्न में संस्कृत के उस वचन का अर्थ और रहस्य समझ में आया जिससे मुझे मदद मिली।

[1]

महर्षि अगस्त्य एक वैदिक ऋषि थे। इनकी गणना सप्तर्षियों में की जाती है। ऋषि अगस्त्य ने 'अगस्त्य संहिता' नामक ग्रंथ की रचना की। आश्चर्यजनक रूप से इस ग्रंथ में विद्युत उत्पादन से संबंधित सूत्र मिलते हैं-

संस्थाप्य मृण्मये पात्रे
ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌।
छादयेच्छिखिग्रीवेन
चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥

- अगस्त्य संहिता

अर्थात : एक मिट्टी का पात्र लें, उसमें ताम्र पट्टिका (Copper Sheet) डालें तथा शिखिग्रीवा (Copper sulphate) डालें, फिर बीच में गीली काष्ट पांसु (wet saw dust) लगाएं, ऊपर पारा (mercury‌) तथा दस्त लोष्ट (Zinc) डालें, फिर तारों को मिलाएंगे तो उससे मित्रावरुणशक्ति (Electricity) का उदय होगा।

अगस्त्य संहिता में विद्युत का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग (Electroplating) के लिए करने का भी विवरण मिलता है। उन्होंने बैटरी द्वारा तांबे या सोने या चांदी पर पॉलिश चढ़ाने की विधि निकाली अत: अगस्त्य को कुंभोद्भव (Battery Bone) कहते हैं।

जैसे कि आप जानते है सन 1800 में पहला बैट्री आविष्कार किये Alessandro Volta ने।

पर क्या आप जानते है उससे भी पहले के लोग भी बैट्री के प्रयोग करते थे। क्या आप पारसी बैट्री या बागदादी बैट्री का नाम सुने है?

पारसी यज़ीदी लोगो ने बनाया था.

[2]

वहा पारसीया एवं शासनिया वंश का राज था। ये लोग अग्नि के उपासना करते थे और ऋषि अंगिरा(जिन्होंने वेद अनुसार अग्नि का आविष्कार किया) के वंशज थे।

प्राचीन ईराक और इरान में जितने फायर टेम्पल (अग्निदेव मंदिर) था वो सब अरब के इस्लामिक आक्रामक द्वारा या तो तोड़ दिया गया या फिर मस्जिद बना दिया गया ।

पारसी राजा द्वितीय खुसरु को बार बार धमकी भरा खत लिखकर हजरत मोहम्मद ने इस्लाम कुबूल करने को कहा ।उसके बाद बहुतो युद्ध हुया बिश्वके ईतिहास में बड़े युद्ध में इसे भी शामिल किया गया ।

अब अधिकतर यज़ीदी मुस्लिम बन चुके है।

[3]

जो मुस्लिम नही बने वो मुस्लिमो द्वारा कष्ट पंहुचाये जाते है।

इजराइल,इरान और ईराक में थोड़ा वहुत यज़ीदी लोग ही बस टीके हुये है इस लड़ाई में अपनी संस्कृति को वचाने के लिए और इधर भारत भी लड़ाई कर रहा है अपनी संस्कृति को वचाने के लिए।

धन्यवाद।

फुटनोट

[1] VEDIC Science

वैज्ञानिक ऋषि मुनि‬ - जानिए कल्पना को हकीकत बनाने वाले उनके आविष्कार !

वैज्ञानिक ऋषि मुनि‬

जानिए कल्पना को हकीकत बनाने वाले उनके आविष्कार !

उज्जैन - भारत की धरती को ऋषि, मुनि, सिद्ध और देवताओं की भूमि पुकारा जाता है। यह कई तरह के विलक्षण ज्ञान व चमत्कारों से अटी पड़ी है। सनातन धर्म वेदों को मानता है। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने घोर तप, कर्म, उपासना, संयम के जरिए वेदों में छिपे इस गूढ़ ज्ञान व विज्ञान को ही जानकर हजारों साल पहले ही कुदरत से जुड़े कई रहस्य उजागर करने के साथ कई आविष्कार किए व युक्तियां बताईं। ऐसे विलक्षण ज्ञान के आगे आधुनिक विज्ञान भी नतमस्तक होता है। कई ऋषि-मुनियों ने तो वेदों की मंत्र-शक्ति को कठोर योग व तपोबल से साधकर ऐसे अद्भुत कारनामों को अंजाम दिया कि बड़े-बड़े राजवंश व महाबली राजाओं को भी झुकना पड़ा।
‪#‎भास्कराचार्य‬ -आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। भास्कराचार्यजी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।
‪#‎आचार्य_कणाद‬ –कणाद परमाणु की अवधारणा के जनक माने जाते हैं। आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले महर्षि कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं। उनके अनासक्त जीवन के बारे में यह रोचक मान्यता भी है कि किसी काम से बाहर जाते तो घर लौटते वक्त रास्तों में पड़ी चीजों या अन्न के कणों को बटोरकर अपना जीवनयापन करते थे। इसीलिए उनका नाम कणाद भी प्रसिद्ध हुआ।
‪#‎ऋषि_विश्वामित्र‬ -ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र क्षत्रिय थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई। इसी कड़ी में माना जाता है कि आज के युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली हजारों साल पहले विश्वामित्र ने ही खोजी थी। ऋषि विश्वामित्र ही ब्रह्म गायत्री मंत्र के दृष्टा माने जाते हैं। विश्वामित्र का अप्सरा मेनका पर मोहित होकर तपस्या भंग होना भी प्रसिद्ध है। शरीर सहित त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का चमत्कार भी विश्वामित्र ने तपोबल से कर दिखाया।
‪#‎ऋषि_भरद्वाज‬ -आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ही ऋषि भरद्वाज ने विमानशास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए। इस तरह ऋषि भरद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है।
‪#‎गर्गमुनि‬ -गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार। ये गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के के बारे नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ। कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे। महर्षि सुश्रुत -ये शल्यचिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक (सर्जन) माने जाते हैं। वे शल्यकर्म या आपरेशन में दक्ष थे।
‪#‎महर्षि‬ सुश्रुत द्वारा लिखी गई ‘सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन १२५ से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और ३०० तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी बताई गई है। जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज तकरीबन चार सदी पहले ही की है। माना जाता है कि महर्षि सुश्रुत मोतियाबिंद, पथरी, हड्डी टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में माहिर थे। यही नहीं वे त्वचा बदलने की शल्यचिकित्सा भी करते थे।
‪#‎आचार्य_चरक‬ -‘चरकसंहिता’ जैसा महत्वपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक आयुर्वेद विशेषज्ञ व ‘त्वचा चिकित्सक’ भी बताए गए हैं। आचार्य चरक ने शरीरविज्ञान, गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन खोज की। आज के दौर में सबसे ज्यादा होने वाली बीमारियों जैसे डायबिटीज, हृदय रोग व क्षय रोग के निदान व उपचार की जानकारी बरसों पहले ही उजागर कर दी।
‪#‎पतंजलि‬ -आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को भी रोकने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है।
‪#‎बौद्धयन‬ -भारतीय त्रिकोणमितिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। कई सदियों पहले ही तरह-तरह के आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति बौद्धयन ने खोजी। दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी, उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में बदलना, इस तरह के कई मुश्किल सवालों का जवाब बौद्धयन ने आसान बनाया।
‪#‎महर्षि_दधीचि‬ -महातपोबलि और शिव भक्त ऋषि थे। संसार के लिए कल्याण व त्याग की भावना रख वृत्तासुर का नाश करने के लिए अपनी अस्थियों का दान कर महर्षि दधीचि पूजनीय व स्मरणीय हैं। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि एक बार देवराज इंद्र की सभा में देवगुरु बृहस्पति आए। अहंकार से चूर इंद्र गुरु बृहस्पति के सम्मान में उठकर खड़े नहीं हुए। बृहस्पति ने इसे अपना अपमान समझा और देवताओं को छोड़कर चले गए। देवताओं को विश्वरूप को अपना गुरु बनाकर काम चलाना पड़ा, किंतु विश्वरूप देवताओं से छिपाकर असुरों को भी यज्ञ-भाग दे देता था। इंद्र ने उस पर आवेशित होकर उसका सिर काट दिया। विश्वरूप, त्वष्टा ऋषि का पुत्र था। उन्होंने क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए महाबली वृत्रासुर पैदा किया। वृत्रासुर के भय से इंद्र अपना सिंहासन छोड़कर देवताओं के साथ इधर-उधर भटकने लगे। ब्रह्मादेव ने वृत्तासुर को मारने के लिए अस्थियों का वज्र बनाने का उपाय बताकर देवराज इंद्र को तपोबली महर्षि दधीचि के पास उनकी हड्डियां मांगने के लिये भेजा। उन्होंने महर्षि से प्रार्थना करते हुए तीनों लोकों की भलाई के लिए उनकी अस्थियां दान में मांगी। महर्षि दधीचि ने संसार के कल्याण के लिए अपना शरीर दान कर दिया। महर्षि दधीचि की हड्डियों से वज्र बना और वृत्रासुर मारा गया। इस तरह एक महान ऋषि के अतुलनीय त्याग से देवराज इंद्र बचे और तीनों लोक सुखी हो गए।
‪#‎महर्षि_अगस्त्य‬ -वैदिक मान्यता के मुताबिक मित्र और वरुण देवताओं का दिव्य तेज यज्ञ कलश में मिलने से उसी कलश के बीच से तेजस्वी महर्षि अगस्त्य प्रकट हुए। महर्षि अगस्त्य घोर तपस्वी ऋषि थे। उनके तपोबल से जुड़ी पौराणिक कथा है कि एक बार जब समुद्री राक्षसों से प्रताड़ित होकर देवता महर्षि अगस्त्य के पास सहायता के लिए पहुंचे तो महर्षि ने देवताओं के दुःख को दूर करने के लिए समुद्र का सारा जल पी लिया। इससे सारे राक्षसों का अंत हुआ।
‪#‎कपिल_मुनि‬ -भगवान विष्णु के २४ अवतारों में से एक अवतार माने जाते हैं। इनके पिता कर्दम ऋषि थे। इनकी माता देवहूती ने विष्णु के समान पुत्र की चाहत की। इसलिए भगवान विष्णु खुद उनके गर्भ से पैदा हुए। कपिल मुनि 'सांख्य दर्शन' के प्रवर्तक माने जाते हैं। इससे जुड़ा प्रसंग है कि जब उनके पिता कर्दम संन्यासी बन जंगल में जाने लगे तो देवहूती ने खुद अकेले रह जाने की स्थिति पर दुःख जताया। इस पर ऋषि कर्दम देवहूती को इस बारे में पुत्र से ज्ञान मिलने की बात कही। वक्त आने पर कपिल मुनि ने जो ज्ञान माता को दिया, वही 'सांख्य दर्शन' कहलाता है। इसी तरह पावन गंगा के स्वर्ग से धरती पर उतरने के पीछे भी कपिल मुनि का शाप भी संसार के लिए कल्याणकारी बना। इससे जुड़ा प्रसंग है कि भगवान राम के पूर्वज राजा सगर ने द्वारा किए गए यज्ञ का घोड़ा इंद्र ने चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के करीब छोड़ दिया। तब घोड़े को खोजते हुआ वहां पहुंचे राजा सगर के साठ हजार पुत्रों ने कपिल मुनि पर चोरी का आरोप लगाया। इससे कुपित होकर मुनि ने राजा सगर के सभी पुत्रों को शाप देकर भस्म कर दिया। बाद के कालों में राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर स्वर्ग से गंगा को जमीन पर उतारा और पूर्वजों को शापमुक्त किया।
‪#‎शौनक_ऋषि‬- वैदिक आचार्य और ऋषि शौनक ने गुरु-शिष्य परंपरा व संस्कारों को इतना फैलाया कि उन्हें दस हजार शिष्यों वाले गुरुकुल का कुलपति होने का गौरव मिला। शिष्यों की यह तादाद कई आधुनिक विश्वविद्यालयों तुलना में भी कहीं ज्यादा थी।
‪#‎ऋषि_वशिष्ठ‬ -वशिष्ठ ऋषि राजा दशरथ के कुलगुरु थे। दशरथ के चारों पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न ने इनसे ही शिक्षा पाई। देवप्राणी व मनचाहा वर देने वाली कामधेनु गाय वशिष्ठ ऋषि के पास ही थी।
‪#‎कण्व‬ ऋषि –प्राचीन ऋषियों-मुनियों में कण्व का नाम प्रमुख है। इनके आश्रम में ही राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था। माना जाता है कि उसके नाम पर देश का नाम भारत हुआ। सोमयज्ञ परंपरा भी कण्व की देन मानी जाती है।
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