यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 20 जनवरी 2023

क्या भगवान कार्तिकेय और अय्यप्पा एक ही हैं?

 

दोनो अलग हैँ ।

कार्तिकेय "शिव और शक्ति" के पुत्र हैँ और अय्यप्पा "शिव और मोहिनी" के । मोहिनी भगवान विष्णु का स्त्री अवतार है। मोहिनी समुद्र मंथन के बाद अमृत बाँट रहीँ थी । अय्यप्पा या अय्यपन को हरिहरपुत्र भी कहा जाता है। यहाँ पर हरि विष्णु और हर शिव हैँ।

अय्यप्पा बाघिन की सवारी करते दिखाए जाते है इसलिए अकसर साथ मेँ अन्य बाघ शावक या बच्चे भी होते हैँ। नन्हे शावकोँ के कारण पता चल जाता है कि बाघिन है।

कार्तिकेय का दक्षिण भारतीय नाम मुरुगन या आरुमुगम ( आरु मुखम या षडमुख) हैँ। कार्तिकेय मोर की सवारी करते दिखाए जाते हैँ । इनके छह मुख भी दिखाए जाते हैँ या कभी कभी एक मुख वाले भी बना दिए जाते हैँ । आरुमुगम तमिळ राज्य के रक्षक देव माने जाते हैँ।


अय्यप्पा की लोकप्रियता उत्तर भारत मेँ कम है। इसलिए इनकी कथा की जानकारी कम ही है।

पांडलम राज्य के राजा पांडियन के कोई संतान नहीँ थी । एक बार उनको जंगल मेँ एक शिशु मिला । राजा इस शिशु को लेकर ऋषियोँ के पास गए। ऋषियोँ ने उन्हे इसको अपने पुत्र की तरह पालने का आदेश दिया और बताया कि जब शिशु बारह वर्ष का हो जाएगा तो शिशु कौन है इसकी जानकारी राजा को होगी । इसके बाद राजपरिवार ने इस शिशु का नाम मणिकण्ठ रखकर उसका पालन किया ।

इसके कुछ समय बाद राजा रानी को एक और पुत्र की प्राप्ति हुई । जब मणिकण्ठ 12 वर्ष का हुआ तो राजा ने उसे उत्तराधिकारी घोषित करने का निर्णय लिया । इस समय तक राजा का पुत्र भी किशोर होने को था लेकिन राजा की दृष्टि मेँ वह उत्तराधिकारी बनने के योग्य नहीँ था। एक मंत्री ने रानी के कान भर दिए और उस समझा दिया कि राजा और रानी का वास्तविक पुत्र ही उत्तराधिकारी होना चाहिए । अयोग्य पुत्र मंत्री की बाते मानता था और उसके राजा होने पर मंत्री को अपनी मनमानी करने का अवसर मिलता । इस योजना मेँ रानी ने बीमार होने का बहाना बनाया । प्रायोजित वैद्य ने बीमारी का इलाज बाघिन के दूध को बताया। रानी ने पुत्र मणिकण्ठ को आदेश दे दिया कि वह बाघिन का दूध लेकर आए। मणिकण्ठ ने इसको सहर्ष स्वीकार किया । कुछ समय बाद मणिकण्ठ बाघिन की सवारी करते हुए उसके शावकोँ और झुण्ड के साथ राजमहल लौटे ।

राजा को उनकी दिव्यता का अहसास हुआ और उनके लिए मंदिर बनाने की घोषणा की । इसके बाद मणिकण्ठ ने अपने अय्यपन (शिव मोहिनी पुत्र) रूप को प्रकट किया । अय्यपन ने एक तीर छोडा जो वहाँ से करीब तीस किलोमीटर दूर जाकर गिरा । वहीँ पर अय्यपन का मंदिर बनाया गया। चित्रोँ मेँ अय्यपन वन से लौटते समय बाघिन की सवारी करते हुए दिखाए जाते हैँ। चित्रोँ मेँ अय्यप्पा के हाथ मेँ धनुष और तीर भी दिखाया जाता है। अय्यपन की कथा पुराणोँ मेँ न होने के कारण इस कथा पर मतभेद भी है।


इनका सबसे प्रसिद्ध मंदिर शबरीमाला (सबरिमलय) है। अय्यपन के मंदिरोँ मेँ अय्यपन एक किशोर योगी की अवस्था मेँ होते है। जीवन के उस काल मेँ जब उन्होने ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया हुआ था ।मंदिर मेँ स्थापित देव को एक जीवित देव की तरह माना जाता है और उनके साथ उसी प्रकार का आचरण किया जाता है जैसा उन्हे पसंद था या । जो भी व्रत उन्होने लिए थे उनका सम्मान होता है । इसलिए इनके मंदिरो मेँ महिलाओँ का प्रवेश वर्जित होता है। यह वर्जन अय्यपन के ब्रह्मचर्य व्रत के कारण है न कि स्त्रियोँ के साथ किसी प्रकार के भेदभाव के कारण ।

अय्यपन मेँ विश्वास करने वाले समाज की स्त्रियाँ तो इनके मंदिर मेँ जाकर इनका व्रत भंग नहीँ करना चाहती लेकिन एक्टिविस्ट को इसी मंदिर मेँ जाना है। उन्हे पूजा अर्चन के लिए भारत के लाखोँ मंदिरोँ मेँ से कोई भी नहीँ भाया। स्त्रियोँ के अधिकार पर बेकार का बवाल खडा कर दिया। हर मनाही प्रतिबंध नहीँ होती । स्त्रियोँ को पुरुष शौचालय मेँ जाने की भी मनाही है तो क्या ये भेदभाव हो गया ? यह मात्र एक सामाजिक सुविधा है। नारी को समान अधिकारोँ की आवश्यकता है और उनके लिए लडना भी चाहिए । लेकिन उन अधिकारोँ के लिए लडना चाहिए जिनसे जीवन पर अच्छे प्रभाव पडते होँ बेकार के हंगामेँ खडे करके क्या मिलने वाला है।

यदि स्त्री होने के कारण प्रतिबंध होता तो भारत के सभी मंदिरोँ मेँ होता लेकिन भारत मेँ घरोँ के आस पास के मंदिरोँ मेँ तो स्त्रियाँ ही अधिक जाती हैँ । लोग इतने आधुनिक हो गए कि न सोचना न समझना अय्यपन के ब्रह्मचर्य व्रत भंग करने के पीछे पड गए ।

यदि महाभारत के भीष्म के मंदिर होते तो वहाँ भी स्त्रियोँ का जाना वर्जित ही होता । हनुमान के मंदिरोँ मेँ भी बहुत सी स्त्रियाँ नहीँ जाती हैँ। लेकिन हनुमान के मंदिर बहुत सारे हैँ इसलिए अनुशासन रख पाना कठिन है। जिन्हे जानकारी नहीँ होती चली भी जाती हैँ। राम मंदिर मेँ हनुमान की मूर्ती हो तो उसमेँ कोई वर्जन नहीँ होता।


इस विषय पर भी अनेक प्रश्न और अनेक विचार हो सकते हैँ कि ब्रह्मचर्य व्रत रखने वाले को स्त्रियोँ से दूरी की आवश्यकता है?

व्यक्ति के सामाजिक जीवन की बात जाए तो उसके दो पक्ष होते हैँ है एक तो व्यक्ति का अपना चरित्र और एक समाज मेँ छवि । समाज एक और ढोँगियोँ पर विश्वास कर लेता है तो वही समाज उज्ज्वल से उज्ज्वल चरित्र पर भी प्रश्न लगा देता है।

उत्तर रामायण (जिसको बाद मेँ जोडा हुआ माना जाता है) की कथा मेँ सीता पर भी इस समाज नेँ लांछ्न लगाया था । इसलिए लोक दृष्टिकोण मेँ लोग अतिरिक्त सावधानी भी रखते हैँ । यदि किसी स्त्री से सम्पर्क ही नहीँ है तो ब्रह्मचर्य पर कोई प्रश्न नहीँ है।

यदि देव इस समय होते तो क्या वे स्वयम् भी यह वर्जन रखते ? यह तो कहा नहीँ जा सकता है लेकिन अब तो विषय उनके भक्तोँ की आस्था का अधिक है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी करें

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.

function disabled

Old Post from Sanwariya