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गुरुवार, 10 अगस्त 2023

#राखी_का_ऐतिहासिक_झूठ। राखी की इस झूठी कथा के षड्यंत्र में कभी मत फंसना..!

#राखी_का_ऐतिहासिक_झूठ !!
सन 1535 #दिल्ली का शासक है #हुमायूँ_बाबर का बेटा। उसके सामने देश में दो सबसे बड़ी चुनौतियां हैं, पहला #अफगान_शेर_खाँ और दूसरा #गुजरात_का_शासक_बहादुरशाह। पर तीन वर्ष पूर्व सन 1532 में #चुनार_दुर्ग पर घेरा डालने के समय शेर खाँ ने हुमायूँ का अधिपत्य स्वीकार कर लिया है और अपने बेटे को एक सेना के साथ उसकी सेवा में दे चुका है। #अफीम_का_नशेड़ी_हुमायूँ_शेर_खाँ की ओर से निश्चिन्त है, हाँ पश्चिम से बहादुर शाह का बढ़ता दबाव उसे कभी कभी विचलित करता है।
      हुमायूँ के व्यक्तित्व का सबसे बड़ा दोष है कि वह घोर नशेड़ी है। इसी नशे के कारण ही वह पिछले तीन वर्षों से दिल्ली में ही पड़ा हुआ है, और उधर बहादुर शाह अपनी शक्ति बढ़ाता जा रहा है। वह मालवा को जीत चुका है और मेवाड़ भी उसके अधीन है। पर अब दरबारी अमीर, सामन्त और उलेमा हुमायूँ को चैन से बैठने नहीं दे रहे। बहादुर शाह की बढ़ती शक्ति से सब भयभीत हैं। आखिर हुमायूँ उठता है और मालवा की ओर बढ़ता है।
      इस समय बहादुरशाह चित्तौड़ दुर्ग पर घेरा डाले हुए है। चित्तौड़ में किशोर राणा विक्रमादित्य के नाम पर राजमाता कर्णावती शासन कर रहीं हैं। उनके लिए यह विकट घड़ी है। सात वर्ष पूर्व खनुआ के युद्ध मे महाराणा सांगा के साथ अनेक योद्धा सरदार वीरगति प्राप्त कर चुके हैं। रानी के पास कुछ है, तो विक्रमादित्य और उदयसिंह के रुप में दो अबोध बालक, और एक राजपूतनी का अदम्य साहस। सैन्य बल में चित्तौड़ बहादुर शाह के समक्ष खड़ा भी नहीं हो सकता, पर साहसी राजपूतों ने बहादुर शाह के समक्ष शीश झुकाने से इनकार कर दिया है।

      इधर बहादुर शाह से उलझने को निकला हुमायूँ अब चित्तौड़ की ओर मुड़ गया है। अभी वह सारंगपुर में है तभी उसे बहादुर शाह का सन्देश मिलता है जिसमें उसने लिखा है, "चित्तौड़ के विरुद्ध मेरा यह अभियान विशुद्ध जेहाद है। जबतक मैं काफिरों के विरुद्ध जेहाद पर हूँ तबतक मुझपर हमला गैर-इस्लामिल है। अतः हुमायूँ को चाहिए कि वह अपना अभियान रोक दे।”
     हुमायूँ का बहादुर शाह से कितना भी बैर हो पर दोनों का मजहब एक है, सो हुमायूँ ने बहादुर शाह के जेहाद का समर्थन किया है। अब वह सारंगपुर में ही डेरा जमा के बैठ गया है, आगे नहीं बढ़ रहा।
     इधर चित्तौड़ राजमाता ने कुछ राजपूत नरेशों से सहायता मांगी है। पड़ोसी राजपूत नरेश सहायता के लिए आगे आये हैं, पर वे जानते हैं कि बहादुरशाह को हराना अब सम्भव नहीं। पराजय निश्चित है सो सबसे आवश्यक है चित्तौड़ के भविष्य को सुरक्षित करना। और इसी लिए रात के अंधेरे में बालक युवराज उदयसिंह को पन्ना धाय के साथ गुप्त मार्ग से निकाल कर बूंदी पहुँचा दिया जाता है।
    अब राजपूतों के पास एकमात्र विकल्प है वह युद्ध, जो पूरे विश्व में केवल वही करते हैं। शाका और जौहर…...

    आठ मार्च 1535, राजपूतों ने अपना अद्भुत जौहर दिखाने की ठान ली है। सूर्योदय के साथ किले का द्वार खुलता है। पूरी राजपूत सेना माथे पर केसरिया पगड़ी बांधे निकली है। आज सूर्य भी रुक कर उनका शौर्य देखना चाहता है, आज हवाएं उन अतुल्य स्वाभिमानी योद्धाओं के चरण छूना चाहती हैं, आज धरा अपने वीर पुत्रों को कलेजे से लिपटा लेना चाहती है, आज इतिहास स्वयं पर गर्व करना चाहता है, आज भारत स्वयं के भारत होने पर गर्व करना चाहता है।

     इधर मृत्यु का आलिंगन करने निकले वीर राजपूत बहादुरशाह की सेना पर विद्युतगति से तलवार भाँज रहे हैं, और उधर किले के अंदर महारानी कर्णावती के पीछे असंख्य देवियाँ मुह में गंगाजल और तुलसी पत्र लिए अग्निकुंड में समा रही हैं। यह जौहर है। वह जौहर जो केवल राजपूत देवियाँ जानती हैं। वह जौहर जिसके कारण भारत अब भी भारत है।
     किले के बाहर गर्म रक्त की गंध फैल गयी है, और किले के अंदर अग्नि में समाहित होती क्षत्राणियों की देहों की....!

 पूरा वायुमंडल बसा उठा है और घृणा से नाक सिकोड़ कर खड़ी प्रकृति जैसे चीख कर कह रही है- “भारत की आने वाली पीढ़ियों! इस दिन को याद रखना, और याद रखना इस गन्ध को। जीवित जलती अपनी माताओं के देह की गंध जबतक तुम्हें याद रहेगी, तुम्हारी सभ्यता जियेगी। जिस दिन यह गन्ध भूल जाओगे तुम्हें फारस होने में दस वर्ष भी नहीं लगेंगे…”

     दो घण्टे तक चले युद्ध में स्वयं से चार गुने शत्रुओं को मार कर राजपूतों ने वीरगति पा ली है, और अंदर किले में असंख्य देवियों ने अपनी राख से भारत के मस्तक पर स्वाभिमान का टीका लगाया है। युद्ध समाप्त हो चुका। राजपूतों ने अपनी सभ्यता दिखा दी, अब बहादुरशाह अपनी सभ्यता दिखायेगा।

     अगले तीन दिन तक बहादुर शाह की सेना चित्तौड़ दुर्ग को लुटती रही। किले के अंदर असैनिक कार्य करने वाले लुहार, कुम्हार, पशुपालक, व्यवसायी इत्यादि पकड़ पकड़ कर काटे गए। उनकी स्त्रियों को लूटा गया। उनके बच्चों को भाले की नोक पर टांग कर खेल खेला गया। चित्तौड़ को तहस नहस कर दिया गया।
     और उधर सारंगपुर में बैठा बाबर का बेटा हुमायूँ इस जेहाद को चुपचाप देखता रहा, खुश होता रहा।
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     युग बीत गए पर भारत की धरती राजमाता कर्णावती के जलते शरीर की गंध नहीं भूली। फिर कुछ गद्दारों ने इस गन्ध को भुलाने के लिए कथा गढ़ी- “राजमाता कर्णावती ने हुमायूँ के पास राखी भेज कर सहायता मांगी थी।”
     अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए मुँह में तुलसी दल ले कर अग्निकुंड में उतर जाने वाली देवियाँ अपने पति के हत्यारे के बेटे से सहायता नहीं मांगती पार्थ! राखी की इस झूठी कथा के षड्यंत्र में कभी मत फंसना..!

बुधवार, 9 अगस्त 2023

प्राण वायु क्या है? शरीर में वायु के कार्य और महत्व

 

प्राण वायु क्या है?

  • भारत के लगभग सभी वैदिक धर्मग्रंथों में वायु की विशेष रूप से चर्चा की गई है।
  • -गोरक्षसंहिता के मुताबिक 10 वायु होती हैं- प्राण, अपान, समान, उदान, व्यान, नाग, कूर्म, किकर, देवदत्त तथा धनंजय। यथा

प्राणोऽपानः समानश्चोदानव्यानौ च वायवः।

नाग: कूर्मोऽथ कृकरो देवदत्तो धनञ्जय:!

शरीर में वायु के कार्य और महत्व

  1. प्राण- वायु का फेफड़े के भीतर ले जाना और छोड़ना। -
  2. अपान वायु - इस वायु के सहयोग से गुदा द्वारा मल उत्सर्जन, उपस्थ से मूत्र - निष्कासन, अंडकोष से वीर्य निष्कासन, गर्भ से संतति-निष्कासन, नाभि से चरण तल तक इस वायु का कार्याधिकार क्षेत्र है। -
  3. समान वायु नाभि से हृदय तक, शरीर के मध्य भाग में इस वायु का व्यापार क्षेत्र है। शरीरस्थ ( उदरस्थ) भोजन से निर्मित रसों को सभी नाड़ियों तथा अंगों में समान-संतुलित वितरण करना इस वायु का कार्य है।
  4. व्यान वायु का व्यापार - क्षेत्र उपस्थ-मूल से ऊपर है। समस्त शरीर में रक्त संचार इसका कार्यक्षेत्र है।
  5. उदान वायु कंठ से मस्तक - पर्यंत इस वायु का निवास स्थल है। शरीर को उठाए रखना उदानवायु का कार्य है।
      1. शरीर के व्यष्टि - प्राण का समष्टि-प्राण से संबंधन इसी प्राण के माध्यम से नियंत्रित होता है।इसी वायु के सहयोग से निधन काल में स्थूल शरीरस्थ सूक्ष्म शरीर निष्क्रमण करता है तथा अपने कर्म-गुणवासना-संस्कारवश लोकांतर-भ्रमण एवं गर्भधारण करता है।
  6. नागवायु इसी वायु के सहारे डकार (उद्गार ), छींकना इत्यादि कार्य संपन्न होते हैं।
  7. कूर्मवायु – इस वायु के सहयोग से शरीर के किसी भी भाग का संकोचन - विस्तारण संभव होता है।
  8. कृकरवायु – इस वायु के सहयोग से क्षुधा-तृष्णादि घटित होती है।
  9. देवदत्तवायु – इस वायु के सहयोग से निद्रा - तंद्रा घटित होती है।
  10. धनंजयवायु - इस वायु से पोषण होता है । - (इस दशवायु- समूह में प्रथम पाँच प्राण, अपान, समान, व्यान और उदान प्रमुख तथा शेष पाँच प्रथम पाँच के अंतर्गत तथा अधीन हैं।
    • स्थितिदृष्टि से प्राणवायु हृदय में, अपानवायु गुह्यभाग में, समानवायु नाभिमंडल में, उदानवायु कंठदेश में तथा समानवायु समस्त शरीर में व्याप्त है। प्राणवायु समूह का वशीकर प्राणायाम है।
  • वायु पुराण ७/१३०/३० के अनुसार ४९ मरूत गण हैं, जो संसार में ट्रांसपोटेशन का कार्य कर सम्पूर्ण जीव जगत की देखभाल करते हैं। महादेव के मुख्य गण मारुति हनुमान इन 49 मारूतों के स्वामी हैं।

49 मरुत के नाम इस प्रकार हैं

      • सत्त्वज्योति, आदित्य, सत्यज्योति, तिर्यग्ज्योति, सज्ज्योति, ज्योतिष्मान्, हरित, ऋतजित, सत्यजित, सुषेण, सेनजित्, सत्यमित्र, अभिमित्र, हरिमित्र, कृत, सत्य, ध्रुव, धर्ता, विधर्ता, विधारय, ध्वांत, धुनि, उग्र, भीम, अभियु, साक्षिप, ईदृक्, अन्यादृक्, यादृक्, प्रतिकृत् ऋक्, समिति, संरंभ ईदृक्ष, पुरुष, अन्यादृक्ष, चेतस, समिता, समिदृक्ष, प्रतिदृक्ष, मरुति, सरत, देव, दिश, यजुः, अनुदृक, साम, मानुष तथा विश्।
  • (ब्राह्मांडपुराण, गरुड़पुराण तथा विष्णुधर्मोत्तरपुराण में भी ये नाम हैं।)

पवन पुत्र भी 49 हैं

      • ब्रह्मांडपुराण, अध्याय ३, उपोद्घातपाद - एकशक्र, द्विशक्र, त्रिशक्र, एकज्योति, द्विज्योति, त्रिज्योति, मित, सम्मित, सुमति, अनिमित्र, अनमित्र, पुरुमित्र, ऋतजित्, सत्यजित्, सेनजित्, अपराजित, ईदृक्ष, अदृक्ष, तत्, ऋत, पतिसकृत् इंद्र, गतदृश्य, पर, सुषेण, अथवास, विराट्, काम, जय, ऋतवाह, धरुण, धर्ता, धाता, धृति, ध्रुव, व्रतिन्, देवदेव, विधारण, दुर्ग, द्यपु, युति, सह, अयात, अभियुक्त, भीम, अनाय्य, समर -

49 दिति- पुत्र जो शरीर के रक्षक हैं

      • शक्रज्योति, शक्र, सत्यज्योति, - चित्रज्योति, ज्योतिष्मान्, सुतपा तथा चैत्य (प्रथम गण), ऋतजित, सत्यजित, सुषेध, सेनजित, सुरमित्र, अमित्र तथा सुतमित्र (द्वितीय गण), धातु, धनद, उग्र, भीम, वरुण, वात तथा समीर (तृतीय गण), अभियुक्त, आक्षिक, साहवाप, झंझा, वायु, पवन तथा समीरण (चतुर्थ गण) ईहक, अन्याहक, ससरित, सद्रुभ, सवृक्ष, मित तथा समित (पंचम गण), एताहक, पुरुष, नान्याहक, समचेतन, संमित, समवृत्ति, प्रतिहर्ता (षष्ठ गण), मरुत्, प्राण, जीवन, श्वास, नाद, स्पर्श तथा संचार।

मंत्र जाप के 49 दोष बताए हैं

    • छिन्न, रुद्ध, शक्तिहीन, पराङ्मुख, वधिर, नेत्रहीन, कीलित, स्तंभित, दग्ध, त्रस्त, भीत, मलिन, तिरस्कृत, भेदित, सुषुप्त, मदोन्मत्त, मूर्च्छित, सिद्धि हीन आदि
  • मरुत का एक अर्थ पर्वत होता है। मरुद्गण का अर्थ मरुतों के गण। गण कई प्रकार के होते हैं उनमें से तीन प्रमुख है देवगण, राक्षस गण, मनुष्य गण।
  • गण का अर्थ होता है समूह। मरुद्गण देवगणों में आते हैं। चारों वेदों में मिलाकर मरुद्देवता के मंत्र 49मरुतों का गण सात-सात का होता है। इस कारण उनको 'सप्ती' भी कहते हैं।
  • ७/७ सैनिकों की साथ पंक्तियों में ये 49 रहते हैं। और प्रत्येक पंक्ति के दोनों ओर एक-एक पार्श्व रक्षक रहता है। अर्थात् ये रक्षक 14 होते हैं। इस तरह सब मिलकर 49 और 14 मिलकर 63 सैनिकों का एक गण होता है।
  • गण' का अर्थ गिने हुए सैनिकों का संघ' भी होता है। प्रत्येक के नाम अलग अलग होते हैं।
  • उनचास मरुतगण : मरुतगण देवता नहीं हैं, लेकिन वे देवताओं के सैनिक हैं। मरुतों का एक संघ है जिसमें कुल १८० से अधिक मरुतगण सदस्य हैं, लेकिन उनमें ४९ प्रमुख हैं। उनमें भी सात सैन्य प्रमुख हैं। मरुत देवों के सैनिक हैं और इन सभी के गणवेश समान हैं।
  • वायु सभी प्राणियों की आयु का आधार है। शरीर को पर्याप्त प्राणवायु मिले, तो व्यक्ति लम्बे समय तक युवा बना रह सकता है। क्योंकि वायु का उल्टा शब्द युवा ही होता है।

मंगलवार, 8 अगस्त 2023

कबाड़ को जल्दी करें घर से बाहर वरना हो जाएगा आपका कबाड़ा

कबाड़ को जल्दी करें घर से बाहर वरना हो जाएगा आपका कबाड़ा
नकारात्मक ऊर्जा बढ़ाता है कबाड़
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कई बार देखने में आता है कि घर में अच्छी खासी चहल-पहल रहने के बावजूद उसमें नकारात्मक ऊर्जा सी रहती है। घर के सदस्य आपस में उलझते रहते हैं। छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा, रूठना आदि लगा रहता है। यही नहीं उनमें आलस्य भी भरा रहता है। उनमें आपसी प्यार तो होता है लेकिन टकराव भी खूब होता है। यदि आपके घर में भी ऐसा होता है तो देख लें कि कहीं आपने अपने घर को कबाड़ घर में तो नहीं तब्दील कर लिया है। कुछ लोगों में पुराना सामान सहजकर रखने की आदत होती है। चाहे वह पुराना फर्नीचर हो, पुराना लोहे का सामान हो, कपड़े या फिर कोई इलेट्रॉनिक आइटम। ऐसे सामान को सहजकर रखने के पीछे मंशा यह होती है कि वह आगे चलकर काम आ जाएगा। लेकिन ऐसा होता नहीं है। एक बार जो सामान जहां रखा रह जाता है, वह महीनों या वर्षों तक वैसे ही पड़ा रहता है। उसे हाथ लगाने तक की कोई जहमत नहीं उठाता। ऐसा लगभग सभी मध्यमवर्गीय परिवारों में होता है। शायद आपका घर भी इससे अछूता न हो।

अब सोचिए ऐसा करने से होता क्या है? प्रकृति के नियम के अनुसार इस चल संसार में प्रत्येक प्राणी और वस्तु में ऊर्जा होती है। चाहे वह सजीव हो या निर्जीव। इतना जरूर है कि सजीव वस्तु में ज्यादा ऊर्जा होती है और निर्जीव में उससे थोड़ी कम। अब होता क्या है कि जो पुराना सामान बिना इस्तेमाल के घर में वर्षों तक यूं ही पड़ा रहता है तो नकारात्मक ऊर्जा छोड़ने लगता है। इसके पीछे भी प्रकृति का नियम काम करता है। इसके मुताबिक जो प्राणी या वस्तु जितना सक्रिय रहेगा, वह उतनी ही सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करेगा। इसके उलट जो जितना निष्क्रिय रहेगा, वह उतनी ज्यादा नकारात्मक ऊर्जा छोड़ेगा। इसी नियम के अनुसार घर में पड़ा पुराना सामान या सीधे तौर पर कहें कबाड़ नकारात्मक ऊर्जा छोड़ने लगता है। महीनों तक पड़े रहने से पूरे घर में धीरे-धीरे यह नकारात्मक ऊर्जा हावी होने लगती है, जिसका असर घर के प्रत्येक सदस्य पर पड़ने लगता है। वह आलसी हो जाएगा, जरा-जरा सी बात पर गुस्सा करने लगेगा या खिसयाएगा। यह सब इस में एकत्र हुई नकारात्मक ऊर्जा का ही परिणाम होता है। इसे इस तरह भी समझ सकते हैं कि जब आप घर में सारा दिन खाली पड़े रहते हैं, कुछ काम नहीं करते तो मन सुस्ताने लगता है। आलस आने लगता है और दिनभर सोने का मन करता है। यानि आपमें नकारात्मक ऊर्जा आने लगती है। ऐसा ही घर में पड़े कबाड़ के साथ होता है।

वास्तु और कबाड़
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वास्तु शास्त्र के अनुसार कबाड़ का संबंध राहु ग्रह से होता है। कबाड़ का मतलब आमतौर पर काम में नहीं आने वाला सामान, खराब या नष्ट हो चुकी वस्तु, बंद पड़ी घड़ी, खराब टीवी, मोबाइल, रेडियो, फ्रिज, पुरानी बैटरी आदि होता है। इनमें राहु ग्रह का वास होता है। जिनता कबाड़ घर में इकट्ठा होगा, राहु का प्रभाव उतना ही घर पर पड़ेगा।  जिन जातकों की राहू की महादशा, अंतरदशा या सूक्ष्म अंतर चल रहाीहो, उन्हें तो विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए।

कबाड़ का असर
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– घर में किसी भी प्रकार की बंद पड़ी घड़ी, टी.वी., टेप रिर्काडर, रेडियो, ईत्यादि हों तो यह तरक्की में रूरकावट पैदा करती है।
– कबाड़घर किसी व्यक्ति को रहने, सोने अथवा किराए पर नही दिया जाना चाहिए। गृह स्वामी ऐसे व्यक्ति से सदैव परेशान रहेगा।
– उत्तर, पूर्व, ईशान, वायव्य कोण कबाड़ आदि का भण्डारण करने से अर्थहानि व मानसिक अशांति में वृद्वि होती है। आग्नेय कोण में कबाड़ का भंडारन करने अग्नि से हानि होने की संभावना होती है।
– -घर में कहीं भी मकड़ी के जाले न रहने दें। इससे घर से संपन्नता चली जाती है।
– घर की छत व बालकनी में गंदगी न रहने दें। घर की छत मस्तक के समान होती है, जिसमें कोई भी दाग जीवन में नकारात्मकता ला सकता है।
घर के कोने, कबाड़ और उसका असर
पूर्वी कोना : यहां सूर्य का अधिकार होता है। अगर इस कोने में कचरा या कबाड़ जमा रहता है तो परिवार के मुखिया पर मुसीबत बन रहती है। उसकी घर में नहीं चलती। नुकसान होने की आशंका बनी रहती है। अगर यहां गंदा पानी जमा हो तो या सीलन रहती है तो परिवार के पुरुष सदस्य पीड़ित रहते हैं।
उत्तरी-पूर्वी कोना : यहां बृहस्पति का वास होता है है। अगर इस कोण में गंदगी, कचरा या कबाड़ रहता है तो ऐसे के अधिकांश सदस्य सुस्त होंगे। घर में आलस्य रहेगा। बात-बात में झगड़े होंगे।  इस क्षेत्र में कबाड़ रखा है तो उसे तुंरत निकाल दें या घर के दक्षिण पश्चिम कोने में रख दें।
उतरी कोना : यहां बुध का वास होता है। यह रचनात्मक क्षेत्र है। इस कोने में कचरा या कबाड़ होने पर सदस्यों में रचनात्मतकता खत्म हो जाती है। खासकर लोग सलाहकार व्यवसाय या बैंकिंग क्षेत्र में उन पर इसका खासा असर रहता है। उन्हें सतर्क रहने की जरूरत है।
उत्तर-पश्चिम कोना : यहां चंद्रमा का वास होता है। इस कोने को भारी रखा जा सकता है। यहां ठोस कबाड़ के बजाय द्रव वाली वस्तु रखी जा सकती है। ऐसे पौधे रखे जा सकते हैं जिनमें नियमित रूप से पानी डालने की जरूरत हो।
पश्चिमी कोना : यहां शनि का वास होता है। इस क्षेत्र में भी कचरा नहीं होना चाहिए। शनि न्यायप्रिय ग्रह है। वह अव्यवस्था की स्थिति को पसंद नहीं करता। ऐसे में कबाड़ को यहां से निकाल देना चाहिए।
दक्षिणी पश्चिमी कोना : यह क्षेत्र राहू का स्थान होता है, इसलिए यहां सर्वाधिक सावधानी बरतनी चाहिए। यहां गंदगी और कचरा होने पर राहू अपने खराब प्रभाव देना शुरू कर देता है और परिवार के सदस्य ऐसी समस्याओं से रूबरू होते हैं। इस क्षेत्र में उस सामान को रखा जाता है, जो कीमती हो, सबसे भारी हो और लंबे समय तक जिस सामान को सुरक्षित रखना हो।
दक्षिणी कोना : यहां मंगल का वास होता है। इस क्षेत्र की ऊर्जा अग्नि के समान होती है।
अगर इस क्षेत्र में कचरा हो या नमी हो तो परिवार के सदस्यों में साहस का अभाव देखा जाता है। कई घरों में यहां सीढ़ियां बना दी जाती हैं और उसके नीचे कचरा भर दिया जाता है। यह परिवार की संपत्ति और सदस्यों के लिए हानिकारक होता है।
दक्षिणी पूर्वी कोना : यहां शुक्र का वास होता है। यह घर का सबसे समृद्ध दिखाई देने वाला स्थान होना चाहिए। यहां पड़ा कचरा अथवा कबाड़ आपकी समृद्धि को घटाता है। यहां पर फूलों वाले पौधे लगाने चाहिए।
सलाह
– घर या ऑफिस के किसी भी भाग में कबाड़ न जमा होने दें। वे सभी चीजें कबाड़ हैं, जिनका कभी इस्तेमाल नहीं होता है। जब कबाड़ साफ होता है तो जगह स्वयं अपनी ऊर्जा एवं सृजनात्मकता को बढ़ाती है।  फाइलें रखी जाने वाली अलमारियां हमेशा साफ रखें और मेज के ऊपर कोई भी फालतू सामान न रखें।
-अपनी खिड़कियां साफ रखें और धूल व मिट्टी भी साफ करें। ऑफिस की नियमित सफाई और कूड़े का डिद्ब्रबा रोज साफ करने से ऊर्जा साफ-सुथरी रहती है और उसमें वृद्धि भी होती है।-
– कबाड़ के दरवाजे का रंग काला होना चाहिए ।.कबाड़घर का द्वार लोहे अथवा टीन का बना होना चाहिए।
– कबाड़घर का द्वार एक पल्ले का होना चाहिए। कबाड़घर का दरवाजा घर के अन्य दरवाजों से छोटे आकार का होना चाहिए।
– कबाड़ घर की लम्बाई व चौड़ाई बहुत कम होनी चाहिए। कबाड़घर के नीचे तहखाना नहीं होना चाहिए।
– कबाड़ घर की दीवारों तथा फर्श पर सीलन नहीं होना चाहिए। कबाड़ घर में पानी नहीं रखना चाहिए।  कबाड़घर में किसी भी व्यक्ति का सोना या रहना अशुभ होता है।
– किसी भी प्रकार के युद्ध वाले चित्र, इंद्रजालिक तस्वीरें, पत्थर या लकड़ी के बने राक्षसों की प्रतिमाएं या फिर रोते हुए किसी मनुष्य की पेंटिंग को रखना अशुभकारी होता है
4. मुक्चयद्वार पर धार्मिक या मांगलिक चित्र या मूर्तियां जैसे ऊँ गणपति, मंगल कलश, मीन, स्वास्तिक, गायत्री मंत्र आदि के चित्र अवश्य लगाने चाहिए। इन चित्रों के प्रभाव से घर को बुरी नजर नहीं लगती है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
5. घर में तुलसी का पौधा जरूर लगाएं। यह कृमिनाशक है और दूषित वायु को शुद्ध करता है। यह सौ हाथ एक वायुमंडल को शुद्ध करता है। रविवार के दिन सूर्य के संयोग से दूषित किरणें तुलसी में जन्म लेती है। रविवार के दिन तुलसी का स्पर्श व संसर्ग वर्जित है।
–  मकान के प्रवेश द्वार के समक्ष वृक्ष, स्तम्भ, कुआं तथा जल भण्डारण नहीं होना चाहिए। द्वार के सामने कूड़ा करकट और गंदगी एकत्र न होने दें यह अशुभ और दरिद्रता का प्रतीक हैं।
– मकान के किसी एक कोने में अधिक पेड़ एवं पौधे ना लगाएं, माता-पिता पर भी इसका दुष्प्रभाव  पड़ता हैं।
–  मकान के किसी भाग (आंगन , दीवारों या रसोई अथवा शयनकक्ष ) का प्लास्टर उखड़ा नहीं होना चाहिए। दरवाजे एवं खिड़कियाँ टुटी-फुटी नहीं होनी चाहिए। मुख्य द्वार का रंग काला नहीं होना चाहिए तथा अन्य दरवाजों एवं खिड़की पर भी काले रंग के इस्तेमाल से बचें।
–  मकान के मुख्य द्वार के बिल्कुल समीप शौचालय न बनावें। शौचालय की दिशा उत्तर दक्षिण में होनी चाहिए अर्थात इसे प्रयुक्त करने वाले व्यक्ति का मुँह दक्षिण में व पीठ उत्तर दिशा में होनी चाहिए।  सीढ़ियों के नीचे शौचालय के  निर्माण से बचें, यह लक्ष्मी का मार्ग अवरूद्घ करती है।


दान से धन एवं मन की शुद्धि

दान से धन एवं मन की शुद्धि
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कलियुग में दान प्रधान है । श्रुति में निर्देश है जो सिर्फ अपने लिये पकाकर खाता है, वह अन्न नहीं खाता, पाप पकाकर खाता है-'केवलाघो भवति केवलादी।' अत: अन्नदान को सर्वोपरि दान कहा गया है। 

कलियुग का धर्म केवल एक पैर अर्थात् दान के ऊपर टिका हुआ है। ईमानदारी, परिश्रम तथा धर्म अनुसार अर्जित धन-संपत्ति का दान ही पुण्य दायक होता है । लक्ष्मी माता हैं। उनका सत्कर्म के लिये उपयोग तो किया जा सकता है, परंतु सांसारिक सुख-सुविधाओं के लिये-व्यक्तिगत लाभ के लिये उनका उपभोग नहीं किया जाना चाहिये। -अर्थ अमृत है, पर असावधानी से वह जहर भी बन जाता है। जो नीति से आये और जिसका उपयोग रीति से हो, वह अर्थ अमृत है; पर अनीति से अर्जित धन जहर बन जाता है। -यदि धर्म की मर्यादा न रहे तो धन अनर्थ करता है। धन साधन है, धर्म साध्य है।

धन कमाना कठिन नहीं है, उसका धर्म-कार्यों सेवा, सहायता, दान आदि में सदुपयोग करना कठिन है। धन का धार्मिक कर्तव्यों-दान, सेवा, गोसेवा-जैसे सत्कर्म में सदुपयोग हो तो वह सुख देता है और विलासिता आदि दुष्कर्मों में उपभोग करने पर तरह-तरह के दुख देता है। ज्ञान दान श्रेष्ठ दान है। अन्नदान और वस्त्रदान कुछ समय के लिये शान्ति प्राप्त होती है, किंतु ज्ञान दान अर्थात जहाँ अध्यात्म ज्ञान का दान होता है, वहाँ सारे तीर्थ आ जाते हैं।

दान के नियम और फल
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👉 दान देने का अधिकार गृहस्थ को दिया गया है। दान में विवेक रखो। इतना दान दो कि गृहस्थ की आवश्यकता की पूर्ति में बाधा न पड़े।

👉 दान से धन की शुद्धि, स्नान से तन की शुद्धि तथा ध्यान से मन की शुद्धि होती है।

👉 जिसका धन शुद्ध नहीं, उसका दान तथा उसकी सहायता स्वीकार नहीं करनी चाहिये। 

👉 यदि सत्कर्मों में, धर्म में सम्पत्ति का सदुपयोग करोगे तो लक्ष्मीमाता तुम्हें नारायण की गोद में बिठायेंगी। 

👉 धन का दान करते रहने से धन के प्रति ममता कम होती है तथा तन से सेवा करने से देहाभिमान में कमी आती है।

👉 दान देते समय जब तुम लेने वाले को परमात्मा का रूप समझकर दान दो तभी दान सफल-सार्थक होगा। 

👉 आँगन में आये याचक को यदि कुछ नहीं मिलता है तो वह घर का पुण्य ले जाता है।

👉 याचका माँगने नहीं आता, वह तो हमको ज्ञान देने आता है कि पूर्वजन्म में मैंने किसी को कुछ दिया नहीं, इसीलिये मैं भिखारी हुआ हूँ। यदि आप भी किसी को कुछ न देंगे तो अगले जन्म में मेरे-जैसे याचक बनेंगे।

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सोमवार, 7 अगस्त 2023

संस्कारी इवेंट द्वारा आयोजित हर उम्र के गायक कलाकारों की प्रतियोगिता का फाइनल राउंड सम्पन्न



सूर्यनगरी जोधपुर में 8 वर्ष से 60 वर्ष की उम्र तक के छुपे हुए गायक कलाकारो मे 16 जुलाई को हुए आडिशन मे चुने गये कलाकारो को 23 जुलाई को सेमी फाइनल मे तराशे गये कलाकारो का सुरों का धमाल संस्कारी इवेंट्स द्वारा आयोजित गायन प्रतियोगिता का फाइनल 06 अगस्त 2023 रविवार शाम 4:15 बजे से महिला पीजी महाविद्यालय ऑडिटोरियम, प्रताप नगर में आयोजित किया गया जिसमे कार्यक्रम के विशेष एवं मुख्य अतिथि के रूप में न्यायमूर्ति देवेन्द्र कछवाहा अध्यक्ष, राज्य उपभोक्ता आयोग, राजस्थान एवं आनंद पुरोहित जी वरिष्ठ अधिवक्ता राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर एवं समाज सेवी आदर्श शर्मा उपस्थित हुए |



कार्यक्रम के आयोजक श्री अभिषेक शर्मा ने बताया कि कार्यक्रम का शुभारंभ भारतीय संस्कृति के अनुसार भगवान गणेश जी का दीप प्रज्वलन व पुष्प माला द्वारा किया गया जिसमे नन्ही बालिकाएं स्वस्ति भंसाली व यति शर्मा द्वारा गणेश वंदना की प्रस्तुति दी गयी, आए हुए अतिथियों को केसरिया दुपट्टा औढ़ाकर मारवाड़ी परंपरा से साफा व माला पहना कर सम्मानित किया गया 


कार्यक्रम में वैष्णवी दवे ने महाभारत पर नृत्य कर मंत्रमुग्ध कर दिया, अन्य प्रतिभाओ में तनिष्क धारू, धृति, कनिष्क शर्मा, मयंक, अधिराज आदि बाल कलाकारों ने अपना अद्भुत प्रदर्शन किया। मयंक शर्मा व अनिल आसोपा ने बांसुरी बजाकर समां बांध दिया

कार्यक्रम में फाइनल राउंड की प्रतियोगिता के जज के रूप में कमलेश पुरोहित, राजीव वशिष्ठ, धर्मेंद्र सिंह, निशि दुबे आदि ने निर्णायक मंडल की भूमिका निभाई।

कार्यक्रम की मंच सञ्चालन मे कनिष्क शर्मा, श्रीमती संतोष जांगिड़ ने किया और एंकर के रूप में लोढ़ा इवेंट्स के विपिन लोढ़ा और हर्षि लोढ़ा की जुगलबंदी में मंच पर मारवाड़ी और हिंदी भाषा में दर्शको को ठहाके लगवाते हुए मंच संचालन किया

कार्यक्रम प्रतियोगियों मे श्री विठलेश व्यास ने

ओ दुनिया के रखवाले गीत की प्रस्तुति देकर दर्शको को भाव विभोर कर दिया, श्रीमति सीमा सिंघवी ने वन्दे मातरम् गीत की प्रस्तुति देकर दर्शको को देशभक्ति के रस मे डुबो दिया, लीशा ओझा ने मेरे ढोलना सुन मेरे प्यार की धुन पर अपनी प्रस्तुति देकर दर्शकों के साथ जज साहब को भी आश्चर्यचकित कर दिया,

जोधपुर के पधारे हुए कई रॉक स्टार गायक कलाकार, संगीत प्रेमियों ने सभी कलाकारो की प्रस्तुतियों का जोरदार तालियों से उत्साहवर्धन किया, कार्यक्रम को इतना ऐतिहासिक और सफल बनाने में संस्कारी इवेंट के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर इस मंच को सफल बनाने के लिए साँवरिया के संस्थापक और पुलिस पब्लिक प्रेस के जोधपुर ब्यूरो चीफ कैलाश चंद्र लढा, सुर संगम संगीत संस्थान, टीम रुद्राक्ष, टीम तराना, टीम सुर सुधा , टीम ब्लू सिटी,  टीम सुरीली सूर्य नगरी, आदि के उत्तम भंसाली, राजेश, अशोक व्यास, सुनील मेहता, विमल सोनी, दीपक तंवर, हंसमुख दाधीच, जीतेन्द्र ओझा, विशाल पुरोहित, अनिल इंदु शर्मा, वीरेंदर कछवाहा, अभिलेश वढेरा ने कार्यभार संभाला।

कार्यक्रम के दौरान ए शार्प म्यूजिकल स्कूल की छात्राओं ने अच्युतम केशवम पर एक साथ गिटार, पियानो के साथ सामूहिक प्रस्तुति दी,


सूर्यनगरी में संगीत प्रेमियों के इतने बड़े इवेंट महिला पी जी विद्यालय का हाल क्षमता से अधिक खचाखच भरा था संगीत का समा बँधा था और मौसम भी खुशगवार हो गया था कार्यक्रम में एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियों ने दर्शकों को अचंभित कर दिया, जोधपुर में इतनी प्रतिभाएं भरी पड़ी है और उनको बाहर निकालकर उभारने का कार्य किया संस्कारी इवेंट के संचालक अभिषेक शर्मा ने और इसमें उनका साथ उनकी धर्मपत्नी वंदना शर्मा ने दिया

कार्यक्रम के दौरान अंतिम चरण में लाइट जाने पर दर्शको ने अपने अपने मोबाइल से लाइट जलाकर कार्यक्रम में अँधेरे को भी एन्जॉय किया

कार्यक्रम मे 8 से 15 वर्ष की आयु के प्रतियोगियों मे श्री धैर्य जैन ने प्रथम स्थान प्राप्त किया व नंदिनी आसोपा ने द्वितीय स्थान प्राप्त किया व कुंज लढा (माहेश्वरी) ने तृतीय स्थान प्राप्त किया

कार्यक्रम मे 16 से 40 वर्ष की आयु के प्रतियोगियों मे लीशा ओझा ने प्रथम स्थान प्राप्त किया व श्री विठलेश व्यास ने द्वितीय स्थान प्राप्त किया व श्री अनुश्री पनिया  ने तृतीय स्थान प्राप्त किया

कार्यक्रम मे 41 से 60 वर्ष की आयु के प्रतियोगियों मे श्रीमति सीमा सिंघवी ने प्रथम स्थान प्राप्त किया व श्री मोहम्मद युसूफ ने  द्वितीय स्थान प्राप्त किया व श्री अनिल इंदु शर्मा  ने तृतीय स्थान प्राप्त किया




मानवता की सेवा मे समर्पित साँवरिया के संस्थापक श्री कैलाश चंद्र लढा ने सभी को एक एक पौधा देकर पर्यावरण के प्रति अपनी कर्तव्य को निभाने का संकल्प दिलवाया, उन्होंने बताया की सांवरिया द्वारा विभिन्न संस्थाओ के माध्यम से अब तक लगभग 5000 से भी ज्यादा पौधे का वितरण अब तक जोधपुर में कर चुके है

कार्यक्रम में पधारे गिटार वर्ल्ड के श्रीमती विजय अरोड़ा, श्रीमती मेघा अमित अरोड़ा, मुकेश पारख द्वारा ऑडिशन, सेमि फाइनल, फाइनल तीनो कार्यक्रम में चयनित हुए प्रतिभागियों के अलावा कुछ अलग परफॉर्म करने वाले ३ प्रतिभागी जिनमे  सीमा सिंघवी, विठलेश व्यास, कुंज लढा माहेश्वरी का अपनी और से चयन कर उन्हें गिटार देकर सम्मानित किया 
 

कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों को शील्ड ट्रॉफी व सर्टिफिकेट  देकर व केसरिया दुपट्टा पहनाकर  सम्मानित किया गया
इस कार्यक्रम में सीनियर सिटीजन कलाकारों को विशेष रूप से लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड  दिया

कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि न्यायमूर्ति देवेन्द्र कछवाहा ने मंच से संस्कारी इवेंट के लिए कहा की सभी उम्र के लोगो में गाने की इच्छा तो होती है पर उन्हें इस प्रकार का मंच नहीं मिल पाता है आपने ऐसा मंच उपलब्ध कराकर सबको हर उम्र में अपने मन की अपनी इच्छाओ को प्रदर्शित करने का अच्छा मौका दिया
आनंद पुरोहित जी ने कहा की ऐसे प्रोग्राम होते रहने चाहिए ऐसे मंच से प्रतिभाओ को आगे लाने हेतु संस्था अच्छा कार्य कर रही है





जोधपुर के जाने-माने संगीत से जुड़े हुए कार्यक्रम मे सहयोगी संस्थाओ मे साँवरिया के संस्थापक कैलाश चंद्र लढा , पुलिस पब्लिक प्रेस,  गिटार वर्ल्ड, जेम्स एंड आर्ट प्लाजा, रीगेंट इंस्टिट्यूट, एनएसएस सिक्योरिटीज, जोगमाया जेवेलर्स, राज एजेंसी, विक्की टेडर्स, डायनामिक प्रिंटर्स तरुण सोटवाल , मेहता इंवेस्टमेंट्स, आर जे  विजय मनोरिया, अशोक टेंट हाउस आदि के संचालक, सोनू जेठवानी, निर्मल सिंघवी, डॉ. सुधा व्यास, वीरेंद्र कछवाह, संगीतकार श्रीमती नीलम सिंह, तरुण सिंह, विमल सोनी, एडवोकेट महेंद्र छंगाणी, गुलाब सिंह एवं कई गणमान्य नागरिक विशिष्ठ अतिथि के रूप में उपस्थित थे सभी को मंच पर आमंत्रित कर सम्मानित किया गया,

मीडिया से कई पत्रकार पधारे और कार्यक्रम का लाइव कवरेज किया, रमेश जी सारस्वत एवं अश्विनी जी, अलंकार जी आदि ने कार्यक्रम  की सराहना की

इस ऐतिहासिक इवेंट की सबसे मुख्य बात यह थी की इतने बड़े ऐतिहासिक इवेंट में छोटे से छोटे सहयोगी को मंच पर बुलाकर सम्मानित किया गया जिसमे महिला पीजी विद्यालय के रखवाले , मिर्चीबड़े वाले, चाय वाले, हलवाई, टेंट हाउस वाले, साउंड वाले, कैमरा वाले, डेकोरेशन वाले आदि सभी के कर्मचारियों को मंच पर आमंत्रित कर सम्मानित किया गया

अंत में संस्कारी इवेंट के आयोजक अभिषेक शर्मा वंदना शर्मा ने  व साँवरिया के संस्थापक कैलाश चंद्र लढा ने सभी का आभार व् धन्यवाद अर्पित किया और सभी उम्र के बच्चे बड़े बूढ़ों आदि ने मंच पर मिलकर मित्रता दिवस पर बधाई दी जमकर डांस व एन्जॉय किया





गुरुवार, 3 अगस्त 2023

अपनी मृत्यु और अपनों की मृत्यु डरावनी लगती है। बाकी तो मौत को enjoy ही करता है आदमी ...

अपनी मृत्यु और अपनों की मृत्यु डरावनी लगती है। बाकी तो मौत को enjoy ही करता है आदमी ...
थोड़ा समय निकाल कर अंत तक पूरा पढ़ना

मौत के स्वाद का चटखारे लेता मनुष्य ...
थोड़ा कड़वा लिखा है पर मन का लिखा है ...

मौत से प्यार नहीं , मौत तो हमारा स्वाद है.....

बकरे का,
गाय का,
भेंस का,
ऊँट का,
सुअर,
हिरण का,
तीतर का,
मुर्गे का,
हलाल का,
बिना हलाल का,
ताजा बकरे का,
भुना हुआ,
छोटी मछली,
बड़ी मछली,

हल्की आंच पर सिका हुआ। न जाने कितने बल्कि अनगिनत स्वाद हैं मौत के।
क्योंकि मौत किसी और की, और स्वाद हमारा....

स्वाद से कारोबार बन गई मौत।
मुर्गी पालन, मछली पालन, बकरी पालन, पोल्ट्री फार्म्स।
नाम *पालन* और मक़सद *हत्या*❗
स्लाटर हाउस तक खोल दिये। वो भी ऑफिशियल। गली गली में खुले नान वेज रेस्टॉरेंट, मौत का कारोबार नहीं तो और क्या हैं ? मौत से प्यार और उसका कारोबार इसलिए क्योंकि मौत हमारी नही है।

जो हमारी तरह बोल नही सकते, अभिव्यक्त नही कर सकते, अपनी सुरक्षा स्वयं करने में समर्थ नहीं हैं...

उनकी असहायता को हमने अपना बल कैसे मान लिया ?

कैसे मान लिया कि उनमें भावनाएं नहीं होतीं ?
या उनकी आहें नहीं निकलतीं ?

डाइनिंग टेबल पर हड्डियां नोचते बाप बच्चों को सीख देते है, बेटा कभी किसी का दिल नही दुखाना ! किसी की आहें मत लेना ! किसी की आंख में तुम्हारी वजह से आंसू नहीं आना चाहिए !

बच्चों में झुठे संस्कार डालते बाप को, अपने हाथ मे वो हडडी दिखाई नही देती, जो इससे पहले एक शरीर थी, जिसके अंदर इससे पहले एक आत्मा थी, उसकी भी एक मां थी ...??
जिसे काटा गया होगा ?
जो कराहा होगा ?
जो तड़पा होगा ?
जिसकी आहें निकली होंगी ?
जिसने बद्दुआ भी दी होगी ?

कैसे मान लिया कि जब जब धरती पर अत्याचार बढ़ेंगे तो भगवान सिर्फ तुम इंसानों की रक्षा के लिए अवतार लेंगे ..❓

क्या मूक जानवर उस परमपिता परमेश्वर की संतान नहीं हैं .❓

क्या उस ईश्वर को उनकी रक्षा की चिंता नहीं है ..❓

धर्म की आड़ में उस परमपिता के नाम पर अपने स्वाद के लिए कभी ईद पर बकरे काटते हो, कभी दुर्गा मां या भैरव बाबा के सामने बकरे की बली चढ़ाते हो। कहीं तुम अपने स्वाद के लिए मछली का भोग लगाते हो ।

कभी सोचा ...!!!
क्या ईश्वर का स्वाद होता है ? ....क्या है उनका भोजन ?

किसे ठग रहे हो ?
भगवान को ?
अल्लाह को ?
जीसस को?
या खुद को ?

मंगलवार को नानवेज नही खाता ...!!!
आज शनिवार है इसलिए नहीं ...!!!
अभी रोज़े चल रहे हैं ....!!!
नवरात्रि में तो सवाल ही नही उठता ....!!!

झूठ पर झूठ....
...झूठ पर झूठ।। #veg #animallovers #nonveg

असुर निकंदन भय भंजन कुछ आन करो,पवन तनय संकट मोचन कल्याण करो ।

धुन- दूल्हे का सेहरा सुहाना लगता है

असुर निकंदन भय भंजन कुछ आन करो,
पवन तनय संकट मोचन कल्याण करो ।
भीड़ पड़ी अब भारी हे बजरंगबली,
भक्तो के दुःख दूर मेरे हनुमान करो ॥

गयारवे हो रूध्र तुम हो, ले के अवतारी,
ज्ञानियो में आप ग्यानी योधा बलशाली ।
बाल अवस्था में चंचल आप का था मन,
सूर्य को तुम खा गए नटखट बड़ा बचपन ।
मैं हूँ निर्बल बल बुद्धि का दान करो,
पवन तनय संकट मोचन कल्याण करो ॥

श्री राम का तुम सा ना सेवक और है दूजा,
आज घर घर में तुम्हारी हो रही पूजा ।
दीन दुखिओं की कतारें द्वार पे लम्बी,
आप की महिमा को सुन कर आया मैं भी ।
अपने भक्तों का बजरंगी मान करो,
पवन तनय संकट मोचन कल्याण करो ॥

हे बजरंगी अब दया की कीजिये दृष्टि,
गा रही महिमा तुम्हारी यह सारी सृष्टि ।
आपकी कृपा हो जिसपे, राम मिले उसको,
बेदड़क आया ‘लक्खा’ अब और कहूँ किसको ।
दया की दृष्टि तुम मुझपर बलवान करो,
पवन तनय संकट मोचन कल्याण करो ॥

मनड़ा रे जे तू बालाजी ने ध्याय सी

मनड़ा रे जे तू बालाजी ने ध्याय सी
तर्ज – और इस दिल में क्या रखा है,
मनड़ा रे जे तू बालाजी ने ध्याय सी, कष्ट तेरा सगळा कट जायसी,
सच्चे मन से तू देख बुलाय सी,  बजरंग बेड़ो पार लगाय सी,
बाबो बेड़ो पार लगाय सी, मनड़ा रे जेतू बालाजी ने ध्याय सी।।

सालासर रो बाबो सदा सुख बरसावे,  सँवर जावे बिगड़ी शरण जो आ जावे,
दुलारो अंजनी को भगता को रखवाळो,  खुल्यो है भंडारो जो चावे सो पावे,
झूठी मोह माया ने तज के ले बजरंग को नाम,  ले बजरंग को नाम,
याद करे जो बजरंगी ने, कट जावे रे लख चौरासी,  मनड़ा रे जेतू बालाजी ने ध्याय सी।।

लगी शक्ति रण में काल हो बलकारी, लखन मूर्च्छा घेरयो बड़ी विपदा भारी,
प्रभु श्री राम जी के देख आंख्या में पाणी, उठ्या महावीर झट से भरी रे किलकारी,
संजीवन लेकर ही आयो होण नही दी भोर, होण नही दी भोर, 
भोर भई श्री राम जी बोल्या, संकट मोचन नाम कहासी, मनड़ा रे जे तू बालाजी ने ध्याय सी।।

ऐ लक्खा ठाट तेरी यो धरी रह जाणी है,  ढेरी धन दौलत की काम नई आणि है,
भजन कर राम नाम को जो तारण हारी है, सरल कव लोक कहावे पर बाबा श्याणी है,
करले काम रे भजले राम जब तक आवे सांस,  जब तक आवे सांस,
सांस और वक्त गया नही आवे, चेत रे चेत घणो पछतासि, मनड़ा रे जे तू बालाजी ने ध्याय सी।।  

मनड़ा रे जे तू बालाजी ने ध्याय सी, कष्ट तेरा सगळा कट जाये सी,
सच्चे मन से तू देख बुलाय सी, बजरंग बेड़ो पार लगाय सी,
बाबो बेड़ो पार लगाय सी, मनड़ा रे जे तू बालाजी ने ध्याय सी।।

बुधवार, 2 अगस्त 2023

बद्रीनाथ ओर केदारनाथ से जुड़ी भविष्यवाणी

बद्रीनाथ ओर केदारनाथ से जुड़ी भविष्यवाणी
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भविष्य में गंगा नदी पुन: स्वर्ग चली जाएगी फिर गंगा किनारे बसे तीर्थस्थलों का कोई महत्व नहीं रहेगा। वे नाममात्र के तीर्थ स्थल होंगे। केदारनाथ को जहां भगवान शंकर का आराम करने का स्थान माना गया है वहीं बद्रीनाथ को सृष्टि का आठवां वैकुंठ कहा गया है, जहां भगवान विष्णु 6 माह निद्रा में रहते हैं और 6 माह जागते हैं।

बद्रीनाथ की कथा अनुसार सतयुग में देवताओं, ऋषि-मुनियों एवं साधारण मनुष्यों को भी भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन प्राप्त होते थे।

 इसके बाद आया त्रेतायुग- इस युग में भगवान सिर्फ देवताओं और ऋषियों को ही दर्शन देते थे, लेकिन द्वापर में भगवान विलीन ही हो गए. इनके स्थान पर एक विग्रह प्रकट हुआ. ऋषि-मुनियों और मनुष्यों को साधारण विग्रह से संतुष्ट होना पड़ा।

शास्त्रों अनुसार सतयुग से लेकर द्वापर तक पाप का स्तर बढ़ता गया और भगवान के दर्शन दुर्लभ हो गए. द्वापर के बाद आया कलियुग, जो वर्तमान का युग है।

पुराणों में बद्री-केदारनाथ के रूठने का जिक्र मिलता है. पुराणों अनुसार कलियुग के पांच हजार वर्ष बीत जाने के बाद पृथ्वी पर पाप का साम्राज्य होगा।

कलियुग अपने चरम पर होगा तब लोगों की आस्था लोभ, लालच और काम पर आधारित होगी. सच्चे भक्तों की कमी हो जाएगी।

केदार घाटी में दो पहाड़ हैं- नर और नारायण पर्वत. विष्णु के 24 अवतारों में से एक नर और नारायण ऋषि की यह तपोभूमि है. उनके तप से प्रसन्न होकर केदारनाथ में शिव प्रकट हुए थे. माना जाता है कि जिस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे, बद्रीनाथ का मार्ग पूरी तरह बंद हो जाएगा।

भक्त बद्रीनाथ के दर्शन नहीं कर पाएंगे. पुराणों अनुसार आने वाले कुछ वर्षों में वर्तमान बद्रीनाथ धाम और केदारेश्वर धाम लुप्त हो जाएंगे और वर्षों बाद भविष्य में भविष्यबद्री नामक नए तीर्थ का उद्गम होगा.

उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा इस बात की ओर इशारा करती है कि मनुष्य ने विकास के नाम पर तीर्थों को विनाश की ओर धकेला है और तीर्थों को पर्यटन की जगह समझकर मौज-मस्ती करने का स्थान समझा है तो अब इसका भुगतान भी करना होगा।

पुराणों अनुसार गंगा स्वर्ग की नदी है और इस नदी को किसी भी प्रकार से प्रदूषित करने और इसके स्वाभाविक रूप से छेड़खानी करने का परिणाम होगा संपूर्ण जंबूखंड का विनाश और गंगा का पुन: स्वर्ग में चले जाना।
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कथा सूर्य नारायण की

कथा सूर्य नारायण की 
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पुराणों के अनुसार कश्यप ने अपनी पत्नी अदिति के गर्भ से 12 आदित्यों को जन्म दिया जिनमें भगवान नारायण का वामन अवतार भी शामिल था। 

ये 12 पुत्र इस प्रकार थे-

1वि-वस्वान (सूर्य)2-अर्यमा
3- पूरा, 4-त्वष्टा( विश्वकर्मा 
5- सविता 6- भग 7- धाता
8- विधाता 9- वरूण 10- मित्र 
11- इंद्र 12- त्रिविक्रम ( वामन)

वैदिक और पौराणिक आख्यानों के अनुसार भगवान श्री सूर्य समस्त जीव-जगत के आत्मस्वरूप हैं। 

ये ही अखिल सृष्टि के आदि कारण हैं। इन्हीं से सब की उत्पत्ति हुई है।
पौराणिक सन्दर्भ में सूर्यदेव की उत्पत्ति के अनेक प्रसंग प्राप्त होते हैं। यद्यपि उनमें वर्णित घटनाक्रमों में अन्तर है, किन्तु कई प्रसंग परस्पर मिलते-जुलते हैं। सर्वाधिक प्रचलित मान्यता के अनुसार भगवान सूर्य महर्षि कश्यप के पुत्र हैं। वे महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से उत्पन्न हुए। अदिति के पुत्र होने के कारण ही उनका एक नाम आदित्य हुआ। पैतृक नाम के आधार पर वे काश्यप प्रसिद्ध हुए। संक्षेप में यह कथा इस प्रकार है- 

एक बार दैत्य-दानवों ने मिलकर देवताओं को पराजित कर दिया। देवता घोर संकट में पड़कर इधर-उधर भटकने लगे। देव-माता अदिति इस हार से दु:खी होकर भगवान सूर्य की उपासना करने लगीं। भगवान सूर्य प्रसन्न होकर अदिति के समक्ष प्रकट हुए। उन्होंने अदिति से कहा- 

देवि! तुम चिन्ता का त्याग कर दो। मैं तुम्हारी इच्छा पूर्ण करूँगा तथा अपने हज़ार वें अंश से तुम्हारे उदर से प्रकट होकर तेरे पुत्रों की रक्षा करूँगा।
 इतना कहकर भगवान सूर्य अन्तर्धान हो गये।
कुछ समय के उपरान्त देवी अदिति गर्भवती हुईं। संतान के प्रति मोह और मंगल-कामना से अदिति अनेक प्रकार के व्रत-उपवास करने लगीं। 

महर्षि कश्यप ने कहा- 'अदिति! 
तुम गर्भवती हो, तुम्हें अपने शरीर को सुखी और पुष्ट रखना चाहिये, परन्तु यह तुम्हारा कैसा विवेक है कि तुम व्रत-उपवास के द्वारा अपने गर्भाण्ड को ही नष्ट करने पर तुली हो। अदिति ने कहा- 'स्वामी! आप चिन्ता न करें। मेरा गर्भ साक्षात सूर्य शक्ति का प्रसाद है। यह सदा अविनाशी है। समय आने पर अदिति के गर्भ से भगवान सूर्य का प्राकट्य हुआ और बाद में वे देवताओं के नायक बने। उन्होंने देवशत्रु असुरों का संहार किया।

भगवान सूर्य के परिवार की विस्तृत कथा भविष्य पुराण, मत्स्य पुराण, पद्म पुराण, ब्रह्म पुराण, मार्कण्डेय पुराण तथा साम्बपुराण में वर्णित है।
ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देवगणों का बिना साधना एवं भगवत्कृपा के प्रत्यक्ष दर्शन होना सम्भव नहीं है। शास्त्र के आज्ञानुसार केवल भावना के द्वारा ही ध्यान और समाधि में उनका अनुभव हो पाता है, किन्तु भगवान सूर्य नित्य सबको प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं। इसलिये प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्य की नित्य उपासना करनी चाहिये।

वैदिक सूक्तों, पुराणों तथा आगमादि ग्रन्थों में भगवान सूर्य की नित्य आराधना का निर्देश है। मन्त्र महोदधि तथा विद्यार्णव में भगवान सूर्य के दो प्रकार के मन्त्र मिलते हैं। 
प्रथम मन्त्र- ॐ घृणि सूर्य आदित्य ॐ तथा द्वितीय मन्त्र- ॐ ह्रीं घृणि सूर्य आदित्य: श्रीं ह्रीं मह्यं लक्ष्मीं प्रयच्छ है।
भगवान सूर्य के अर्ध्यदान की विशेष महत्ता है। प्रतिदिन प्रात:काल रक्तचन्दनादि से मण्डल बनाकर तथा ताम्रपात्र में जल, लाल चन्दन, चावल, रक्तपुष्प और कुशादि रखकर सूर्यमन्त्र का जप करते हुए भगवान सूर्य को अर्ध्य देना चाहिये।
 सूर्यार्घ्य का मन्त्र ॐ एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर है। अर्ध्यदान से प्रसन्न होकर भगवान सूर्य आयु, आरोग्य, धन-धान्य, यश, विद्या, सौभाग्य, मुक्ति- सब कुछ प्रदान करते हैं।

              🌼🌼ॐ भास्कराय नम:🌼🌼

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