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गुरुवार, 17 अगस्त 2023

क्या किसी ‘गोदी मीडिया’ ने आपको कभी यह बताया है?

 

क्या किसी ‘गोदी मीडिया’ ने आपको कभी यह बताया है?

1977 से पहले…

लोक जनसम्पर्क विभाग द्वारा प्रोजेक्टर द्वारा 4’×3′ की सफेद कपड़े वाली स्क्रीन पर नगरों की गलियों में और गाँवों के चौराहों पर रात के 7-8 बजे उपकार और पूरब और पश्चिम फिल्में दिखायी जाती थी, जिनके एक दो गीतों में तिरंगे झंडे के साथ गाँधी और नेहरू का नाम अवश्य होता था। तब चूँकी आजादी नयी नयी मिली थी तो इन नामों का जादू सिर चढ़ कर बोला करता था।

हर सिनेमा हॉल में फिल्म आरंभ होने से पहले 15 मिनट की डाक्यूमेंट्री फिल्म दिखाना आवश्यक होता था जिनमें 14 मिनट और 50 सेकेंड के लिये नेहरू और इंदिरा गांधी के वीडियो उनके कारनामों सहित दिखाये जाते थे।

उन डाक्यूमेंट्री फिल्मों में लाल बहादुर शास्त्री को वायुयान से उतरते हुए केवल 5-10 सेकेंड के लिये ही दिखाया जाता था तो सिनेमा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठता था। उनके जय जवान जय किसान के नारे को दिखाना तो दूर की बात है 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में हुई विजय तो कभी दिखायी ही नहीं जाती थी।

उन फिल्मों में भारतीय संविधान निर्माता भीम राव अंबेडकर को कभी एक बार भी नहीं दिखाया जाता था। सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर इत्यादि को तो दिखाना ही क्यों था?

उन दिनों स्कूलों और कॉलिजों में जो प्रतियोगिता कार्यक्रम होते थे या यूथ फेस्टिवल होते थे तो उनमें उन्हीं भाषणों, नाटकों इत्यादि को प्रथम, द्वितीय और तृतीय पुरस्कार मिलते थे जो कि नेहरू और इंदिरा गांधी के कारनामों का बखान किया करते थे।

हर 14 नवंबर को स्कूली बच्चों से ‘चाचा’ नेहरू जिंदाबाद के नारे लगवा कर और उन्हें 2-2 लड्डू बाँट कर स्कूल की छुट्टी कर दी जाती थी।

हर 30 जनवरी को प्रातःकाल 10 बजे नगरपालिका का भोंपू बजा करता था। तब सरकारी कार्यालयों, स्कूलों इत्यादि में हर किसी को मौन खड़े हो कर ‘उसे’ श्रद्धांजलि देना आवश्यक होता था।

सरकारी कृषि विभाग के खेतों में कीट नाशक दवाओं का छिड़काव करने वाले छोटे हेलीकॉप्टर नुमा हवाई जहाजों से कांग्रेस उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार के पर्चें फैंकना सो सामान्य बात थी। उन चुनावों के दौरान चुनाव आयोग छुट्टी ले कर नानी के यहाँ चला जाता था।

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की रैलियों में सभी सरकारी कर्मचारियों की उपस्थिति आवश्यक होती थी और उनके अधिकारी उन रैलियों में हाजिरी रजिस्टर अपने साथ ले जाते थे और उपस्थित कर्मचारियों की हाजिरी लगाते थे। यदि कोई कर्मचारी किसी रैली में उपस्थित नहीं होता था तो बाद में उस पर कारवाई की जाती थी।

मैंने सोचा कि मैं ये बातें नयी पीढ़ी को भी बता देता हूँ।

हमारी सभी नसें हमारी नाभि से जुड़ी होती हैं जो इसे हमारे शरीर का केंद्र बिंदु बनाती है। नाभि ही जीवन है!

 

क्या आपको पता है?

हमारी नाभि (NABHI) हमारे निर्माता द्वारा हमें दिया गया एक अद्भुत उपहार है। 62 साल के एक व्यक्ति की बायीं आंख की रोशनी कम थी।

वह विशेष रूप से रात में मुश्किल से देख पाता था और नेत्र विशेषज्ञों ने उसे बताया था कि उसकी आँखें अच्छी स्थिति में हैं, लेकिन एकमात्र समस्या यह थी कि उसकी आँखों को रक्त की आपूर्ति करने वाली नसें सूख गई थीं और वह फिर कभी नहीं देख पाएगा।

विज्ञान के अनुसार गर्भाधान होने के बाद सबसे पहला भाग नाभि का निर्माण होता है। बनने के बाद, यह गर्भनाल के माध्यम से माँ की नाल से जुड़ जाता है।

हमारी नाभि निश्चित रूप से एक अद्भुत चीज़ है! विज्ञान के अनुसार, किसी व्यक्ति के निधन के बाद उसकी नाभि 3 घंटे तक गर्म रहती है, इसका कारण यह है कि जब एक महिला बच्चे को गर्भ धारण करती है, तो उसकी नाभि बच्चे की नाभि के माध्यम से बच्चे को पोषण प्रदान करती है। और एक पूर्ण विकसित बच्चा 270 दिन = 9 महीने में बनता है।

यही कारण है कि हमारी सभी नसें हमारी नाभि से जुड़ी होती हैं जो इसे हमारे शरीर का केंद्र बिंदु बनाती है। नाभि ही जीवन है!

"पेचोटी" नाभि के पीछे स्थित होती है जिसके ऊपर 72,000 से अधिक नसें होती हैं। हमारे शरीर में रक्त वाहिकाओं की कुल मात्रा पृथ्वी की परिधि के दोगुने के बराबर है।

नाभि पर तेल लगाने से आंखों का सूखापन, खराब दृष्टि, अग्न्याशय अधिक या कम काम करना, फटी एड़ियां और होंठ ठीक हो जाते हैं, चेहरे पर चमक बनी रहती है, बाल चमकदार होते हैं, घुटनों का दर्द, कंपकंपी, सुस्ती, जोड़ों का दर्द, शुष्क त्वचा ठीक होती है।

*आंखों का सूखापन, खराब दृष्टि, नाखूनों में फंगस, चमकती त्वचा, चमकदार बालों का उपाय*

रात को सोने से पहले अपनी नाभि में शुद्ध घी या नारियल तेल की 3 बूंदें डालें और इसे अपनी नाभि के चारों ओर डेढ़ इंच तक फैलाएं।

*घुटने के दर्द के लिए*

रात को सोने से पहले अपनी नाभि में अरंडी के तेल की 3 बूंदें डालें और इसे अपनी नाभि के चारों ओर डेढ़ इंच तक फैलाएं।

*कंपकंपी और सुस्ती के लिए, जोड़ों के दर्द, शुष्क त्वचा से राहत*

रात को सोने से पहले अपनी नाभि में 3 बूंद सरसों का तेल डालें और इसे अपनी नाभि के चारों ओर डेढ़ इंच तक फैला लें।

*अपनी नाभि में तेल क्यों डालें?*

आप नाभि का पता लगा सकते हैं कि कौन सी नसें सूख गई हैं और इस तेल को उसमें डालें ताकि वे खुल जाएं।

जब किसी बच्चे को पेट में दर्द होता है, तो हम आम तौर पर हींग और पानी या तेल मिलाकर नाभि के चारों ओर लगाते हैं। कुछ ही मिनटों में दर्द ठीक हो जाता है। तेल भी इसी तरह काम करता है.

इसे अजमाएं। कोशिश करने में कोई बुराई नहीं है.

आप अपने बिस्तर के बगल में आवश्यक तेल की एक छोटी ड्रॉपर बोतल रख सकते हैं और सोने से पहले नाभि पर कुछ बूंदें डालकर मालिश कर सकते हैं। इससे डालने में सुविधा होगी और आकस्मिक रिसाव से बचा जा सकेगा।

हॉलीवुड फिल्मों के बारे में कुछ होश उड़ा देने वाले तथ्य क्या हैं?

हालीवुड के कुछ अजीब तथ्य।।।

हालीवुड के कुछ ऐसे प्रसिध्द अभिनेता हैं जिनको लोगों ने कई किरदार में देखा पर पहचान ना पाएं।।।।

आपने एंडी सरिकस का नाम सुना होगा इनका 👇👇👇👇

यह मार्वेल की अवैज्ञर ऐज आफ एलटान फिल्म में एक विलेन बने थे जो वाइबेनिम बेचते थे।।।।

पर वो लार्ड आफ द रिंग्स में गोलम बनें थे

और प्लेनेट आफ दा ऐप्स में ये बनें थे

ऐसा इसलिए क्योंकि वीएफएक्स के लिए एक शानदार चेहरे और उसके हाव भाव की जरूरत पड़ती है।।। इसलिए एंडी सबसे बेहतरीन फिल्म अभिनेता हैं हालीवुड के पर रूकिए सिर्फ यही बेहतरीन फिल्म अभिनेता नहीं है इनकी तयह और भी बहुत से टैलेंटेड अभिनेता हैं जिनको बहुत कम लोग जानते हैं पर देखा जरूर है।।।

मिलिए दूसरे प्रसिध्द अभिनेता से डग जोंस से

इनको अपने हैल बाय फिल्म में ऐप के किरदार में देखा होगा 🙏👇👇👇

शेफ आफ वाटर फिल्म में जलीय देवता यही थे

और पैन विसर्जन फिल्म में अजीबोगरीब आंख वाले जीव यही थे

है ना बहुत ही जबरदस्त अभिनेता।।।

एक और अभी हाल ही में आएं हैं इन दोनों की तरह बेहतरीन अभिनेता हैं।।।

मिलिए गाडियस आफ गैलेक्सी फिल्म बनाने वाले जेम्स गन के भाई सीन गन से

ये जेम्स गन के भाई हैं

इनको अपने गाइडियस आफ गैलेक्सी में तीन अवतार में देखा है।।

एक कैगलिन ये 🙏👇👇👇👇

एक ये राकेट के रूप में

और एक गूरट के रूप में भी कभी कभी

गूट की आवाज बनें है विन डीज़ल

पर एक्टिंग का किरदार सीन गन ने किया।।

धन्यवाद

ग़दर 2 को मिल रहे बम्पर समर्थन के पीछे का क्या कारण है?

छोटे शहरों में तब अजीब आफर चलते थे, जिस थिएटर में ये फ़िल्म लगी थी उसी के मालिक की एक बहुत बड़ी किराना दुकान भी थी। उसने आफर निकाला कि 1000 रुपये की किराना खरीद पर ग़दर फ़िल्म के दो टिकिट मुफ्त मिलेंगे।

करीब 4-5 दिन तो टिकिट खिड़की खुलते ही बन्द हो जाती थी सिर्फ बॉक्स के टिकिट बिकते थे।

ये फ़िल्म मेरे बेस्ट फ्रेंड के साथ देखी थी। कसम से इस फ़िल्म को देखते समय जो माहौल थिएटर में था वैसा फिर कभी महसूस नही हुआ। आज भी हम दोनों मिलते हैं तो ग़दर फ़िल्म को ज़रूर याद करते हैं।ऐसी फिल्मों को देखने का मज़ा सिंगल स्क्रीन में ही है जिनमे तालियां, गालियां सब बिना किसी शर्म के दी जाएं।

सनी देओल तो इस फ़िल्म की जान थे ही, अमरीश पुरी ने भी अपने रोल में जान डाल दी थी। अमीषा पटेल ने 2-3 सालों में बॉलीवुड इतिहास की सबसे बड़ी हिट फिल्मों "कहो ना प्यार है और ग़दर" में काम किया पर उसके बाद गुम ही हो गई।

जब सकीना की अम्मी उसको कहती है कि कोई तुझे लेने नही आएगा,भूल जा उसको!! तब इस संवाद पर लोगों के रोंगटे ही खड़े हो गए

सांस जिस्म में आना भूल सकती है

सुबह निकलना भूल सकती है

आप अपने खुदा को भूल सकते है

लेकिन हम उन्हें भूल जाये नामुमकिन है ये

इसके बाद सकीना सिंदूर लगाने लगती है तो उसकी अम्मी सिंदूर उछाल देती है जो उसके सारे शरीर पे गिर जाता है।

इस फ़िल्म का संगीत बहुत अंडर रेटेड है।" मुसाफिर जाने वाले" गीत शायद आंनद बक्शी साहब का लिखा सर्वश्रेष्ठ है।

ना जाने क्या छूट रहा है

दिल में बस कुछ टूट रहा है

होंठों पर नहीं कोई कहानी

फिर भी आँख में आ गया पानी

नहीं हम भूलने वाले चलो एक दूसरे को करें रब के हवाले

निर्देशक अनिल शर्मा ने इसके पहले और इसके बाद बहुत सड़ी फिल्में बनाई पर ये फ़िल्म इतिहास के पन्नों में दर्ज है।

5 करोड़ लोगों ने वर्ष 2001 में ये फ़िल्म थिएटर में देखी थी तो इसके दूसरे भाग को तो समर्थन मिलना ही है।

कोई जाए न जाए सनी देओल की सबसे बड़ी प्रशंसक अंजलि जी तो ज़रूर जाएंगी 😂


स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस में झंडा फहराने में क्या अंतर है ?


UPSC इंटरव्यू में पूछा जाने वाला ऐसा सवाल जिसका उत्तर बहुत कम अभ्यर्थी दे पाते हैं

स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस में झंडा फहराने में क्या अंतर है ?

#पहला_अंतर

15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर झंडे को नीचे से रस्सी द्वारा खींच कर ऊपर ले जाया जाता है, फिर खोल कर फहराया जाता है, जिसे *ध्वजारोहण कहा जाता है क्योंकि यह 15 अगस्त 1947 की ऐतिहासिक घटना को सम्मान देने हेतु किया जाता है जब प्रधानमंत्री जी ने ऐसा किया था। संविधान में इसे अंग्रेजी में Flag Hoisting (ध्वजारोहण) कहा जाता है।

जबकि

26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर झंडा ऊपर ही बंधा रहता है, जिसे खोल कर फहराया जाता है, संविधान में इसे Flag Unfurling (झंडा फहराना) कहा जाता है।

#दूसरा_अंतर

15 अगस्त के दिन प्रधानमंत्री जो कि केंद्र सरकार के प्रमुख होते हैं वो ध्वजारोहण करते हैं, क्योंकि स्वतंत्रता के दिन भारत का संविधान लागू नहीं हुआ था और राष्ट्रपति जो कि राष्ट्र के संवैधानिक प्रमुख होते है, उन्होंने पदभार ग्रहण नहीं किया था। इस दिन शाम को राष्ट्रपति अपना सन्देश राष्ट्र के नाम देते हैं।

जबकि

26 जनवरी जो कि देश में संविधान लागू होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, इस दिन संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति झंडा फहराते हैं

#तीसरा_अंतर

स्वतंत्रता दिवस के दिन लाल किले से ध्वजारोहण किया जाता है।

जबकि

गणतंत्र दिवस के दिन राजपथ पर झंडा फहराया जाता है।

आपसे आग्रह है ये अंतर अपने बच्चों को जरूर बताएं। वंदे मातरम
जय हिन्द 🙏🙏🙏

सोमवार, 14 अगस्त 2023

क्यों कैसे डूबी द्वारका क्यों कब और कैसे डूबी द्वारिका

क्यों कैसे डूबी द्वारका 

क्यों कब और कैसे डूबी द्वारिका?
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श्री कृष्ण की नगरी द्वारिका महाभारत युद्ध के 36 वर्ष पश्चात समुद्र में डूब जाती है। द्वारिका के समुद्र में डूबने से पूर्व सारे यदुवंशी भी मारे जाते है। समस्त यदुवंशियों के मारे जाने और द्वारिका के समुद्र में विलीन होने के पीछे मुख्य रूप से दो घटनाएं जिम्मेदार है। एक माता गांधारी द्वारा श्री कृष्ण को दिया गया श्राप और दूसरा ऋषियों द्वारा श्री कृष्ण पुत्र सांब को दिया गया श्राप।

महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद जब युधिष्ठर का राजतिलक हो रहा था तब कौरवों की माता गांधारी ने महाभारत युद्ध के लिए श्रीकृष्ण को दोषी ठहराते हुए श्राप दिया की जिस प्रकार कौरवों के वंश का नाश हुआ है ठीक उसी प्रकार यदुवंश का भी नाश होगा।

महाभारत युद्ध के बाद जब छत्तीसवां वर्ष आरंभ हुआ तो तरह-तरह के अपशकुन होने लगे। एक दिन महर्षि विश्वामित्र, कण्व, देवर्षि नारद आदि द्वारका गए। वहां यादव कुल के कुछ नवयुवकों ने उनके साथ परिहास (मजाक) करने का सोचा। वे श्रीकृष्ण के पुत्र सांब को स्त्री वेष में ऋषियों के पास ले गए और कहा कि ये स्त्री गर्भवती है। इसके गर्भ से क्या उत्पन्न होगा?

ऋषियों ने जब देखा कि ये युवक हमारा अपमान कर रहे हैं तो क्रोधित होकर उन्होंने श्राप दिया कि- श्रीकृष्ण का यह पुत्र वृष्णि और अंधकवंशी पुरुषों का नाश करने के लिए एक लोहे का मूसल उत्पन्न करेगा, जिसके द्वारा तुम जैसे क्रूर और क्रोधी लोग अपने समस्त कुल का संहार करोगे। उस मूसल के प्रभाव से केवल श्रीकृष्ण व बलराम ही बच पाएंगे। श्रीकृष्ण को जब यह बात पता चली तो उन्होंने कहा कि ये बात अवश्य सत्य होगी।

मुनियों के श्राप के प्रभाव से दूसरे दिन ही सांब ने मूसल उत्पन्न किया। जब यह बात राजा उग्रसेन को पता चली तो उन्होंने उस मूसल को चुरा कर समुद्र में डलवा दिया। इसके बाद राजा उग्रसेन व श्रीकृष्ण ने नगर में घोषणा करवा दी कि आज से कोई भी वृष्णि व अंधकवंशी अपने घर में मदिरा तैयार नहीं करेगा। जो भी व्यक्ति छिपकर मदिरा तैयार करेगा, उसे मृत्युदंड दिया जाएगा। घोषणा सुनकर द्वारकावासियों ने मदिरा नहीं बनाने का निश्चय किया।

इसके बाद द्वारका में भयंकर अपशकुन होने लगे। प्रतिदिन आंधी चलने लगी। चूहे इतने बढ़ गए कि मार्गों पर मनुष्यों से ज्यादा दिखाई देने लगे। वे रात में सोए हुए मनुष्यों के बाल और नाखून कुतरकर खा जाया करते थे। सारस उल्लुओं की और बकरे गीदड़ों की आवाज निकालने लगे। गायों के पेट से गधे, कुत्तियों से बिलाव और नेवलियों के गर्भ से चूहे पैदा होने लगे। उस समय यदुवंशियों को पाप करते शर्म नहीं आती थी।

जब श्रीकृष्ण ने नगर में होते इन अपशकुनों को देखा तो उन्होंने सोचा कि कौरवों की माता गांधारी का श्राप सत्य होने का समय आ गया है। इन अपशकुनों को देखकर तथा पक्ष के तेरहवें दिन अमावस्या का संयोग जानकर श्रीकृष्ण काल की अवस्था पर विचार करने लगे। उन्होंने देखा कि इस समय वैसा ही योग बन रहा है जैसा महाभारत के युद्ध के समय बना था। गांधारी के श्राप को सत्य करने के उद्देश्य से श्रीकृष्ण ने यदुवंशियों को तीर्थयात्रा करने की आज्ञा दी। श्रीकृष्ण की आज्ञा से सभी राजवंशी समुद्र के तट पर प्रभास तीर्थ आकर निवास करने लगे।

प्रभास तीर्थ में रहते हुए एक दिन जब अंधक व वृष्णि वंशी आपस में बात कर रहे थे। तभी सात्यकि ने आवेश में आकर कृतवर्मा का उपहास और अनादर कर दिया। कृतवर्मा ने भी कुछ ऐसे शब्द कहे कि सात्यकि को क्रोध आ गया और उसने कृतवर्मा का वध कर दिया। यह देख अंधकवंशियों ने सात्यकि को घेर लिया और हमला कर दिया। सात्यकि को अकेला देख श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न उसे बचाने दौड़े। सात्यकि और प्रद्युम्न अकेले ही अंधकवंशियों से भिड़ गए। परंतु संख्या में अधिक होने के कारण वे अंधकवंशियों को पराजित नहीं कर पाए और अंत में उनके हाथों मारे गए।

अपने पुत्र और सात्यकि की मृत्यु से क्रोधित होकर श्रीकृष्ण ने एक मुट्ठी एरका घास उखाड़ ली। हाथ में आते ही वह घास वज्र के समान भयंकर लोहे का मूसल बन गई। उस मूसल से श्रीकृष्ण सभी का वध करने लगे। जो कोई भी वह घास उखाड़ता वह भयंकर मूसल में बदल जाती (ऐसा ऋषियों के श्राप के कारण हुआ था)। उन मूसलों के एक ही प्रहार से प्राण निकल जाते थे। उस समय काल के प्रभाव से अंधक, भोज, शिनि और वृष्णि वंश के वीर मूसलों से एक-दूसरे का वध करने लगे। यदुवंशी भी आपस में लड़ते हुए मरने लगे।

श्रीकृष्ण के देखते ही देखते सांब, चारुदेष्ण, अनिरुद्ध और गद की मृत्यु हो गई। फिर तो श्रीकृष्ण और भी क्रोधित हो गए और उन्होंने शेष बचे सभी वीरों का संहार कर डाला। अंत में केवल दारुक (श्रीकृष्ण के सारथी) ही शेष बचे थे। श्रीकृष्ण ने दारुक से कहा कि तुम तुरंत हस्तिनापुर जाओ और अर्जुन को पूरी घटना बता कर द्वारका ले आओ। दारुक ने ऐसा ही किया। इसके बाद श्रीकृष्ण बलराम को उसी स्थान पर रहने का कहकर द्वारका लौट आए।

द्वारका आकर श्रीकृष्ण ने पूरी घटना अपने पिता वसुदेवजी को बता दी। यदुवंशियों के संहार की बात जान कर उन्हें भी बहुत दुख हुआ। श्रीकृष्ण ने वसुदेवजी से कहा कि आप अर्जुन के आने तक स्त्रियों की रक्षा करें। इस समय बलरामजी वन में मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं, मैं उनसे मिलने जा रहा हूं। जब श्रीकृष्ण ने नगर में स्त्रियों का विलाप सुना तो उन्हें सांत्वना देते हुए कहा कि शीघ्र ही अर्जुन द्वारका आने वाले हैं। वे ही तुम्हारी रक्षा करेंगे। ये कहकर श्रीकृष्ण बलराम से मिलने चल पड़े।

वन में जाकर श्रीकृष्ण ने देखा कि बलरामजी समाधि में लीन हैं। देखते ही देखते उनके मुख से सफेद रंग का बहुत बड़ा सांप निकला और समुद्र की ओर चला गया। उस सांप के हजारों मस्तक थे। समुद्र ने स्वयं प्रकट होकर भगवान शेषनाग का स्वागत किया। बलरामजी द्वारा देह त्यागने के बाद श्रीकृष्ण उस सूने वन में विचार करते हुए घूमने लगे। घूमते-घूमते वे एक स्थान पर बैठ गए और गांधारी द्वारा दिए गए श्राप के बारे में विचार करने लगे। देह त्यागने की इच्छा से श्रीकृष्ण ने अपनी इंद्रियों का संयमित किया और महायोग (समाधि) की अवस्था में पृथ्वी पर लेट गए।

जिस समय भगवान श्रीकृष्ण समाधि में लीन थे, उसी समय जरा नाम का एक शिकारी हिरणों का शिकार करने के उद्देश्य से वहां आ गया। उसने हिरण समझ कर दूर से ही श्रीकृष्ण पर बाण चला दिया। बाण चलाने के बाद जब वह अपना शिकार पकडऩे के लिए आगे बढ़ा तो योग में स्थित भगवान श्रीकृष्ण को देख कर उसे अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ। तब श्रीकृष्ण को उसे आश्वासन दिया और अपने परमधाम चले गए। अंतरिक्ष में पहुंचने पर इंद्र, अश्विनीकुमार, रुद्र, आदित्य, वसु, मुनि आदि सभी ने भगवान का स्वागत किया।

इधर दारुक ने हस्तिनापुर जाकर यदुवंशियों के संहार की पूरी घटना पांडवों को बता दी। यह सुनकर पांडवों को बहुत शोक हुआ। अर्जुन तुरंत ही अपने मामा वसुदेव से मिलने के लिए द्वारका चल दिए। अर्जुन जब द्वारका पहुंचे तो वहां का दृश्य देखकर उन्हें बहुत शोक हुआ। श्रीकृष्ण की रानियां उन्हें देखकर रोने लगी। उन्हें रोता देखकर अर्जुन भी रोने लगे और श्रीकृष्ण को याद करने लगे। इसके बाद अर्जुन वसुदेवजी से मिले। अर्जुन को देखकर वसुदेवजी बिलख-बिलख रोने लगे। वसुदेवजी ने अर्जुन को श्रीकृष्ण का संदेश सुनाते हुए कहा कि द्वारका शीघ्र ही समुद्र में डूबने वाली है अत: तुम सभी नगरवासियों को अपने साथ ले जाओ।

वसुदेवजी की बात सुनकर अर्जुन ने दारुक से सभी मंत्रियों को बुलाने के लिए कहा। मंत्रियों के आते ही अर्जुन ने कहा कि मैं सभी नगरवासियों को यहां से इंद्रप्रस्थ ले जाऊंगा, क्योंकि शीघ्र ही इस नगर को समुद्र डूबा देगा। अर्जुन ने मंत्रियों से कहा कि आज से सातवे दिन सभी लोग इंद्रप्रस्थ के लिए प्रस्थान करेंगे इसलिए आप शीघ्र ही इसके लिए तैयारियां शुरू कर दें। सभी मंत्री तुरंत अर्जुन की आज्ञा के पालन में जुट गए। अर्जुन ने वह रात श्रीकृष्ण के महल में ही बिताई।

अगली सुबह श्रीकृष्ण के पिता वसुदेवजी ने प्राण त्याग दिए। अर्जुन ने विधि-विधान से उनका अंतिम संस्कार किया। वसुदेवजी की पत्नी देवकी, भद्रा, रोहिणी व मदिरा भी चिता पर बैठकर सती हो गईं। इसके बाद अर्जुन ने प्रभास तीर्थ में मारे गए समस्त यदुवंशियों का भी अंतिम संस्कार किया। सातवे दिन अर्जुन श्रीकृष्ण के परिजनों तथा सभी नगरवासियों को साथ लेकर इंद्रप्रस्थ की ओर चल दिए। उन सभी के जाते ही द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई। ये दृश्य देखकर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ।
       *महाकाल भक्त मंडली*

रविवार, 13 अगस्त 2023

उजीना: द हिन्दू स्टेट अंडर इज़रायली 🇮🇱 डॉक्ट्रिन... 🚩

🔴 उजीना: द हिन्दू स्टेट अंडर इज़रायली 🇮🇱 डॉक्ट्रिन... 🚩
आज किसी अज्ञात लेखक द्वारा प्रेषित की गई एक महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई। पता करने पर पाया कि जानकारी काफ़ी हद तक सही थी। इसलिए सोचा कि उसे अद्यतित करके आप सभी तक पहुंचाएं तो यह पोस्ट प्रेषित की। 

आपने भारत मे पल रहे अनेक मिनी पाकिस्तानों के नाम तो बहुत सुने होंगे लेकिन आपको शायद ही पता हो कि भारत में एक मिनी इज़रायल भी है। आज आपको इस मिनी इज़रायल के बारे में अवश्य जानना चाहिए और इससे सीख लेनी चाहिए।

मेवात, हरियाणा को मिनी पाकिस्तान कहा जाता है और इसकी तारीफ़ आप सबने सुनी भी होगी। लेकिन इसी मेवात क्षेत्र में एक गाँव है जिसका नाम है उजीना। इसी उजीना को मिनी इज़रायल भी कहा जाता है। दरअसल यह गांव चारों तरफ से ईमानवाले आतंकवादियों से घिरा हुआ है। ठीक वैसे ही जैसा कि इज़रायल! यहाँ पर लगभग 15 हजार की हिन्दू  आबादी है। 

यहाँ के लोग अच्छी तरह समझते हैं कि ईमानवालों के भाईचारे का मतलब क्या है? इसलिए इनके गाँव में कोई ईमानवाला घर नहीं है और यहाँ पर सभी हिन्दू है 100% हिन्दू। हिन्दू मतलब सिर्फ हिन्दू। इनके अंदर कोई जातीयता का कीड़ा नहीं है। सन 1947 के बाद से ही लगभग ये लोग भाईचारे में कोई भरोसा नहीं रखते हैं। इस गाँव में सेकुलर सु@रों को देखते ही मार दिया जाता है। 

कहते हैं कि सन 1992 के दंगों के समय ईमानवाले आतंकवादियों ने उजीना गाँव के एक हिन्दू लड़के को उठा लिया था उसके बाद वो लड़का कभी नहीं मिला। शायद उसे मार दिया गया। उसके बाद उजीना गांव के जवानों ने ऐसा तांडव मचाया कि अगले 1 वर्ष के अंदर 1,000 से भी अधिक ईमानवाले सु@र लापता हो गए और उनका कभी कोई पता नहीं चला।

उसके बाद ईमानवालों के दिल में उजीना का ऐसा ख़ौफ़ बैठा कि आज के दिन अगर कोई ईमानवाला सु@र ग़लती से भी उजीना के किसी हिन्दू से टकरा जाता है तो वह उसे देख कर फ़ौरन अपना रास्ता बदल लेता है। *अभी हम भी यही पर हे*

मतलब उजीना की स्थिति भौगोलिक रूप से तो इज़रायल जैसी है ही, उनकी युद्ध शैली भी एकदम इज़रायल जैसी ही है। उजीना के मात्र 15 हज़ार हिन्दू सम्पूर्ण मेवात क्षेत्र के 20 लाख से भी अधिक ईमानवाले आतंकवादियों पर भारी पड़ते हैं। 

अब ज़रा सोचिए कि यदि भारत के 10% हिन्दू भी उजीना के 15 हज़ार हिंदुओं की तरह हो जाएं तो भारत को गंदा करने वाले ईमानवाले आतंकवादियों का कैसा हश्र हो???

शलोॐ...!

-बाबा इज़रायली 🇮🇱
Baba Israeli

शुक्रवार, 11 अगस्त 2023

कहीं आप गौतम बुद्ध और भगवान बुद्ध को एक ही तो नहीं मान रहे, दोनों के बीच अंतर जानें..??

कहीं आप गौतम बुद्ध और भगवान बुद्ध को एक ही तो नहीं मान रहे, दोनों के बीच अंतर जानें..??

भगवान बुद्ध और गौतमक्षबुद्ध कई बार जब हम गौतम बुद्ध के बारे में पढ़ते हैं तो हमें लगता है की बुद्ध एक ही व्यक्ति हैं, यह भ्रम हर उम्र के लोगों को अक्सर रहता है और इसी बात को लेकर विद्यार्थी भी सबसे ज्यादा भ्रम रहते हैं परन्तु भ्रमित हों भी क्यों न क्यूं न क्योंकि दोनों में ही नाम और गोत्र और कार्यों में भी काफी हद तक समानता है, तो दोस्तों बड़ा ही रोचक विषय है, आज हम जानेंगे भगवान बुद्ध और गौतम बुद्ध के बारे में, उनके जन्म और वर्ण, और बाद में उनके समाज में अपने अपने क्या योगदान थें। विशेष गौतम बुद्ध और भगवान बुद्ध एक नहीं हैं। भगवान विष्णु के प्रमुख दस अवतारों में भगवान बुद्ध, नौवें अवतार हैं। भगवान बुद्ध भगवान क्षीरोदशायी विष्णु के अवतार हैं। बलि प्रथा की अनावश्यक जीव हिंसा को बंद करने के लिए ही इनका अवतार हुआ। इनकी माता का नाम श्रीमती अंजना था और पिता का नाम हेमसदन था जिनका जन्मस्थान भारत के 'गया' (बिहार) में है। विचार करने वाली बात यह है कि शुद्धोदन व माया के पुत्र, शाक्यसिंह बुद्ध  जिनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था और भगवान बुद्ध एक नहीं हैं। श्री शाक्यसिंह बहुत ही ज्ञानी व्यक्ति थे, उन्होंने कठिन तपस्या के बाद तत्त्वानुभूति की प्राप्ति की  हुई जिसके बाद वे बुद्ध कहलाए। जबकि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार हैं। श्रीललित विस्तार ग्रंथ के 21 वें अध्याय के 178 पृष्ठ पर बताया गया है कि संयोगवश गौतम बुद्ध जी ने उसी स्थान पर तपस्या की जिस स्थान पर भगवान बुद्ध ने तपस्या की थी। इसी कारण लोगों ने दोनों को एक ही मान लिया।"जन्म 
जर्मन के वरिष्ट स्कालर श्रीमैक्स मूलर जी (German Scholar Mr.Max Müller) के अनुसार शाक्यसिंह बुद्ध अर्थात गौतम बुद्ध (Gautam Budh), का जन्म कपिलवस्तु के लुम्बिनी के वनों में 477 बी सी में में हुआ था (when was gautama buddha born in which year )। जबकि भगवान बुद्ध (Bhagwan Buddh) आज से 5000 वर्ष पूर्व में वर्तमान में बिहार के 'गया' नामक स्थान में प्रकट हुए थे। जबकि श्रीमद् भागवत महापुराण (1.3.24) तथा श्रीनरसिंह पुराण (36/29) के अनुसार भगवान बुद्ध आज से लगभग 5000 साल पहले इस धरातल पर आए जबकि Max Muller के अनुसार गौतम बुद्ध 2491 साल पहले आए। कहने का तात्पर्य यह है कि गौतम बुद्ध और भगवान बुद्ध एक नहीं हैं।श्रीगोवर्धन मठ पुरी के पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती के अनुसार  भगवान बुद्ध और गौतम बुद्ध दोनों अलग-अलग काल में जन्मे अलग-अलग व्यक्ति थे। जिन गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का अंशावतार बताया गया है, उनका जन्म कीकट प्रदेश (मगध) में ब्राह्मण कुल में हुआ था। और उनके जन्म के सैकड़ों वर्षों के बाद कपिलवस्तु में जन्मे गौतम बुद्ध, क्षत्रिय राजकुमार थे।ब्राह्मण कुल के थे भगवान बुद्ध शंकराचार्य जी ने लोगों के पूछने पर बताया जब लोगों ने कहा कि- ब्राह्मणों ने ही बुद्ध को भगवान का अवतार घोषित कर पूजन की शुरुआत की थी , जिसपर उन्होंने कहा कि कर्मकांड में जिस बुद्ध की चर्चा होती है वे अलग हैं। भगवान बुद्ध की चर्चा वेदों (Vedas) में भी हुई है। जो की भगवान के अंशावतार हैं। इनकी चर्चा श्रीमद्भागवत (Shrimad Bhagavatam) में भी है। जो की  ब्राह्मण कुल जन्में थे। किस कारण भ्रम हुआ शंकराचार्य जी ने कहा की अमरसिंह जो की राजा विक्रमादित्य की राजसभा के नौ रत्नों में से एक थे। उन्होंने जब अमरकोष जो की संस्कृत भाषा का सबसे प्रसिद्ध कोष ग्रन्थ है उसकी रचना की थी। तो उस ग्रन्थ में भगवान बुद्ध (Bhagwan Buddha) के 10 और गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) के पांच पर्यायवाची नाम को एक ही क्रम में लिख दिया था, जिस कारण यह भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुयी थी. उन्होंने इसकी रचना तीसरी शताब्दी ई॰ पू॰ में की थी।दोनों का ही गोत्र था गौतम
शंकराचार्य ने कहा कि दोनों का गोत्र गौतम था। यह भी एक बड़ा कारण था कि इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया। अग्निपुराण में भगवान बुद्ध को लंबकर्ण कहा गया है, जिसका अर्थ है लम्बे कान वाला। जिसके बाद से गौतम बुद्ध के लंबे कान प्रतिमाओं में बनाए जाने लगीं। बौद्ध स्वयं को वैदिक नहीं मानते हैं जो की हैं भी नहीं। खुद को हिंदू नहीं मानते बौद्ध
उन्होंने कहा कि संविधान की धारा 25 के तहत जैन, बौद्ध और सिख सभी हिंदू परिभाषित किए गए हैं। बौद्ध तो खुद को हिंदू नहीं मानते हैं। अब जैन, सिख भी खुद को हिंदू नहीं बताने लगे हैं....साभार🙏

जय सनातन धर्म, जय श्रीराम, जय गोविंदा ✨🙏💖🕉️

बीवी से झगडे करने के फायदे..

बीवी से झगडे करने के फायदे..

1. नींद में कोई व्यवधान नहीं आता : सुन रहे हो क्या, लाइट बंद करो, पंखा बंद करो, चादर इधर दो, इधर मुह करो, टाइप कुछ भी बाते नहीं होती
2. पैसे की बचत : जब बीवी से झगड़ा हुआ रहता है इस दौरान बीवी पैसे नहीं मांगती,
3. तनाव से मुक्ति : झगड़े के दैरान बातचीत बंद होती है जिससे किचकिच कम होती है और पति तनाव से मुक्त रहता है,
4. आत्मनिर्भरता आती है : जो अपना काम आप कर सकते हैं वो इसलिए नहीं करते कि बीवी कर देती है, झगड़े के बाद वो छोटे मोटे काम (खुद ले कर पानी पीना, नहाने के बाद अपने कपडे खुद निकालना, अपने लिए खुद चाय बनाना) खुद कर के आदमी आत्मनिर्भर हो जाता है,
5. काम में व्यवधान नहीं होता : झगडे के दौरान काम के समय आपको बीवी के फ़ालतू कॉल (जानू क्या कर रहे हो, मन नहीं लग रहा है, आज बहुत गर्मी है, इस प्रकार के) नहीं आते, जिससे आप अपने काम में ध्यान केंद्रित कर सकते है
6. घर जल्दी जाने की चिंता से मुक्ति : ( अधिकांश पतियो को काम के बाद जल्दी घर आने के लिए घर से बारम्बार फ़ोन आते है मगर एक बार झगड़ा हो जाने के बाद आप कुछ दिन तक इस चिंता से दूर रह सकते है,
7. आप का मूल्य बढ़ता है : ये इंसान का मनोविज्ञान है कि जो चीज नहीं होती उसके मूल्य का अहसास तभी होता है, झगडे के दौरान बीवी को आपकी मूल्य का अहसास होता है
8. प्यार बढ़ता है : आपस में झगडे से प्यार बढ़ता है, क्योकि अक्सर देखा गया है एक बार बारिश हो जाए तो मौसम सुहाना हो जाता है..
और भी फायदे हैं.
मगर समयाभाव के कारण लिखना मुश्किल है.
तो आइये प्रण लें कि आज के बाद हम सभी पति महीने में एक न एक बार अपनी बीवी से झगड़ा जरूर करेंगे (बीवी तो हमेशा तैयार रहती है) ताकि महीने में कुछ दिन पति लोग भी कुछ शांति से गुजार सकें.
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पति हित में जारी. 😁😁

गुरुवार, 10 अगस्त 2023

#राखी_का_ऐतिहासिक_झूठ। राखी की इस झूठी कथा के षड्यंत्र में कभी मत फंसना..!

#राखी_का_ऐतिहासिक_झूठ !!
सन 1535 #दिल्ली का शासक है #हुमायूँ_बाबर का बेटा। उसके सामने देश में दो सबसे बड़ी चुनौतियां हैं, पहला #अफगान_शेर_खाँ और दूसरा #गुजरात_का_शासक_बहादुरशाह। पर तीन वर्ष पूर्व सन 1532 में #चुनार_दुर्ग पर घेरा डालने के समय शेर खाँ ने हुमायूँ का अधिपत्य स्वीकार कर लिया है और अपने बेटे को एक सेना के साथ उसकी सेवा में दे चुका है। #अफीम_का_नशेड़ी_हुमायूँ_शेर_खाँ की ओर से निश्चिन्त है, हाँ पश्चिम से बहादुर शाह का बढ़ता दबाव उसे कभी कभी विचलित करता है।
      हुमायूँ के व्यक्तित्व का सबसे बड़ा दोष है कि वह घोर नशेड़ी है। इसी नशे के कारण ही वह पिछले तीन वर्षों से दिल्ली में ही पड़ा हुआ है, और उधर बहादुर शाह अपनी शक्ति बढ़ाता जा रहा है। वह मालवा को जीत चुका है और मेवाड़ भी उसके अधीन है। पर अब दरबारी अमीर, सामन्त और उलेमा हुमायूँ को चैन से बैठने नहीं दे रहे। बहादुर शाह की बढ़ती शक्ति से सब भयभीत हैं। आखिर हुमायूँ उठता है और मालवा की ओर बढ़ता है।
      इस समय बहादुरशाह चित्तौड़ दुर्ग पर घेरा डाले हुए है। चित्तौड़ में किशोर राणा विक्रमादित्य के नाम पर राजमाता कर्णावती शासन कर रहीं हैं। उनके लिए यह विकट घड़ी है। सात वर्ष पूर्व खनुआ के युद्ध मे महाराणा सांगा के साथ अनेक योद्धा सरदार वीरगति प्राप्त कर चुके हैं। रानी के पास कुछ है, तो विक्रमादित्य और उदयसिंह के रुप में दो अबोध बालक, और एक राजपूतनी का अदम्य साहस। सैन्य बल में चित्तौड़ बहादुर शाह के समक्ष खड़ा भी नहीं हो सकता, पर साहसी राजपूतों ने बहादुर शाह के समक्ष शीश झुकाने से इनकार कर दिया है।

      इधर बहादुर शाह से उलझने को निकला हुमायूँ अब चित्तौड़ की ओर मुड़ गया है। अभी वह सारंगपुर में है तभी उसे बहादुर शाह का सन्देश मिलता है जिसमें उसने लिखा है, "चित्तौड़ के विरुद्ध मेरा यह अभियान विशुद्ध जेहाद है। जबतक मैं काफिरों के विरुद्ध जेहाद पर हूँ तबतक मुझपर हमला गैर-इस्लामिल है। अतः हुमायूँ को चाहिए कि वह अपना अभियान रोक दे।”
     हुमायूँ का बहादुर शाह से कितना भी बैर हो पर दोनों का मजहब एक है, सो हुमायूँ ने बहादुर शाह के जेहाद का समर्थन किया है। अब वह सारंगपुर में ही डेरा जमा के बैठ गया है, आगे नहीं बढ़ रहा।
     इधर चित्तौड़ राजमाता ने कुछ राजपूत नरेशों से सहायता मांगी है। पड़ोसी राजपूत नरेश सहायता के लिए आगे आये हैं, पर वे जानते हैं कि बहादुरशाह को हराना अब सम्भव नहीं। पराजय निश्चित है सो सबसे आवश्यक है चित्तौड़ के भविष्य को सुरक्षित करना। और इसी लिए रात के अंधेरे में बालक युवराज उदयसिंह को पन्ना धाय के साथ गुप्त मार्ग से निकाल कर बूंदी पहुँचा दिया जाता है।
    अब राजपूतों के पास एकमात्र विकल्प है वह युद्ध, जो पूरे विश्व में केवल वही करते हैं। शाका और जौहर…...

    आठ मार्च 1535, राजपूतों ने अपना अद्भुत जौहर दिखाने की ठान ली है। सूर्योदय के साथ किले का द्वार खुलता है। पूरी राजपूत सेना माथे पर केसरिया पगड़ी बांधे निकली है। आज सूर्य भी रुक कर उनका शौर्य देखना चाहता है, आज हवाएं उन अतुल्य स्वाभिमानी योद्धाओं के चरण छूना चाहती हैं, आज धरा अपने वीर पुत्रों को कलेजे से लिपटा लेना चाहती है, आज इतिहास स्वयं पर गर्व करना चाहता है, आज भारत स्वयं के भारत होने पर गर्व करना चाहता है।

     इधर मृत्यु का आलिंगन करने निकले वीर राजपूत बहादुरशाह की सेना पर विद्युतगति से तलवार भाँज रहे हैं, और उधर किले के अंदर महारानी कर्णावती के पीछे असंख्य देवियाँ मुह में गंगाजल और तुलसी पत्र लिए अग्निकुंड में समा रही हैं। यह जौहर है। वह जौहर जो केवल राजपूत देवियाँ जानती हैं। वह जौहर जिसके कारण भारत अब भी भारत है।
     किले के बाहर गर्म रक्त की गंध फैल गयी है, और किले के अंदर अग्नि में समाहित होती क्षत्राणियों की देहों की....!

 पूरा वायुमंडल बसा उठा है और घृणा से नाक सिकोड़ कर खड़ी प्रकृति जैसे चीख कर कह रही है- “भारत की आने वाली पीढ़ियों! इस दिन को याद रखना, और याद रखना इस गन्ध को। जीवित जलती अपनी माताओं के देह की गंध जबतक तुम्हें याद रहेगी, तुम्हारी सभ्यता जियेगी। जिस दिन यह गन्ध भूल जाओगे तुम्हें फारस होने में दस वर्ष भी नहीं लगेंगे…”

     दो घण्टे तक चले युद्ध में स्वयं से चार गुने शत्रुओं को मार कर राजपूतों ने वीरगति पा ली है, और अंदर किले में असंख्य देवियों ने अपनी राख से भारत के मस्तक पर स्वाभिमान का टीका लगाया है। युद्ध समाप्त हो चुका। राजपूतों ने अपनी सभ्यता दिखा दी, अब बहादुरशाह अपनी सभ्यता दिखायेगा।

     अगले तीन दिन तक बहादुर शाह की सेना चित्तौड़ दुर्ग को लुटती रही। किले के अंदर असैनिक कार्य करने वाले लुहार, कुम्हार, पशुपालक, व्यवसायी इत्यादि पकड़ पकड़ कर काटे गए। उनकी स्त्रियों को लूटा गया। उनके बच्चों को भाले की नोक पर टांग कर खेल खेला गया। चित्तौड़ को तहस नहस कर दिया गया।
     और उधर सारंगपुर में बैठा बाबर का बेटा हुमायूँ इस जेहाद को चुपचाप देखता रहा, खुश होता रहा।
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     युग बीत गए पर भारत की धरती राजमाता कर्णावती के जलते शरीर की गंध नहीं भूली। फिर कुछ गद्दारों ने इस गन्ध को भुलाने के लिए कथा गढ़ी- “राजमाता कर्णावती ने हुमायूँ के पास राखी भेज कर सहायता मांगी थी।”
     अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए मुँह में तुलसी दल ले कर अग्निकुंड में उतर जाने वाली देवियाँ अपने पति के हत्यारे के बेटे से सहायता नहीं मांगती पार्थ! राखी की इस झूठी कथा के षड्यंत्र में कभी मत फंसना..!

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