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शुक्रवार, 12 जनवरी 2024

1947 से 2024 तक, सनातन धर्म के उत्थान में अपना योगदान बतायें 🌹श्री श्री 1008 महाचार्यों ?

🔸️जब द्रोपदी का चीर हरण हो रहा था तब पितामह भीष्म चुप्पी साधकर बैठे थे...
...जब कांची कामकोटि पीठम के शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी को दिवाली के दिन पूजा करते समय घसीटते हुए गिरफ्तार किया था, तब शेष तीनों शंकराचार्य मौन थे।
🔸️जब पांडवों को वनवास और अज्ञातवास पर भेजा जा रहा था, उन्हें लाक्षागृह में भस्म करने का प्रयास किया जा रहा था, तब भी भीष्म पितामह चुप थे।

...जब कश्मीर में हिंदुओं का नरसंहार और निष्कासन हो रहा था, तब सभी शंकराचार्य चुप थे।

🔸️महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह ने अपनी व्यक्तिगत प्रतिज्ञा और प्रतिष्ठा को धर्म के ऊपर रखा और अस्त्र-शस्त्र लेकर अधर्मी कौरवों के पक्ष में खड़े हो गए...

...आज जब हिंदू विरोधी सेनाएँ कुरुक्षेत्र (राम-मंदिर) के मैदान में खड़े होकर हमारे ऊपर तीर पर तीर छोड़ रही हैं तब शंकराचार्य अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को सर्वोपरि रखकर अधर्मियों के पक्ष में खड़े होकर तीर चला रहे हैं।

🔸️भीष्म पितामह हस्तिनापुर के समर्पित योद्धा थे, ज्ञानी थे सच्चरित्र थे लेकिन अन्याय को मौन समर्थन दिया इसलिए वह शरशय्या के अधिकारी बने, सिंहासन के नहीं...

...शंकराचार्य भी कितने ही ज्ञानी हों धर्माचार्य हों (जो कि शायद ही हों) लेकिन अन्याय के समय मौन रहने और युद्ध के समय अधर्मी कौरवों के पक्ष में खड़े होने के अपराध में उन्हें भी शरशय्या पर लेटना ही होगा।

जब श्री राम टाट के टेंट में थे, ये चारों शंकराचार्य सोने के सिंघासनो पर चढ़ कर हाथी की सवारी करते थे, कोई योगदान नहीं था, इन का रामजन्मभूमि के आंदोलन में.. अब क्रुद्ध हो रहे हैं... केवल इसलिये कि इनसे प्राण प्रतिष्ठा नहीं कराई जा रही, और कराई भी क्यों जाए, पता नहीं इन्हें कितना ज्ञान है?

जिज्ञासु मन का अति विनम्रता से एक प्रश्न:
1947 से 2024 तक, सनातन धर्म के उत्थान में अपना योगदान बतायें 🌹श्री श्री 1008 महाचार्यों ?


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गुरुवार, 11 जनवरी 2024

नए वाहन कानून में अज्ञानता और बहकावे के चलते ट्रक ड्राइवर हड़ताल पर जा रहे हैं । हड़ताल पर जाने से पहले ये समझें और सभी को समझाएं*🙏🏼जनहित में जारी🙏🏼


*नए वाहन कानून में अज्ञानता और बहकावे के चलते ट्रक ड्राइवर हड़ताल पर जा रहे हैं । हड़ताल पर जाने से पहले ये video जरूर सुने,समझें और सभी को समझाएं*🙏🏼जनहित में जारी🙏🏼

ड्राइवर की हड़ताल के पीछे संपूर्ण विपक्ष की चाल है राम मंदिर स्थापना महोत्सव में विघ्न डालने का आप समझिए tulkit गैंग की प्लानिंग को
मारना चाहिए इन लोगों को जनता ने भी जो नए कानून का विरोध कर रहे यह कानून इसीलिए लाया गया है की लापरवाही से जो कट मार के गाड़ियां चलाते हैं उनको सख्त सजा का प्रावधान हो तो सड़क हादसे रुकेंगे आए दिनों कई घर बर्बाद हो रहे लापरवाही से गाड़ियां चलाने वाले ना जाने कितने परिवार के लोगो युवाओं की जान ले रहे हैं नशा करके उनकी गति पर नियंत्रण होना जरूरी है
राम मंदिर के खिलाफ षडयंत्र है ट्रांसपोर्ट हड़ताल!!! मैंने आपसे पहले ही कहा था सावधान रहने की और षडयंत्र समझने की आवश्यकता है। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के यज्ञ में आसुरी शक्तियों ने हड्डी डालना शुरू कर दिया है। अब इसी से जुड़ी ट्रांसपोर्ट हड़ताल की "हड्डी प्लानिंग" को समझिए - 
1. ट्रांसपोटर्स हड़ताल करेंगे तो आम जनता को हर वस्तु की तंगी होगी। पेट्रोल पंप पर लाइन लगेगी आदि इत्यादि। जनता परेशान होगी। यानी राम मंदिर की खुशियों में खलल पड़ेगा।

2. इस देश की ट्रांसपोर्ट यूनियन पर किनका कब्ज़ा है? ये वही लोग हैं जो किसान आंदोलन के दौरान देश में अराजकता फैला रहे थे। सबसे ज़्यादा ट्रांसपोर्ट के व्यपार से कौन जुड़ा है? 

3. देखिएगा... इस आंदोलन को सबसे ज़्यादा हवा कौन देंगे... वही दल जिनके रामद्रोही होने का पुराना रिकॉर्ड है। 

4. अब पूरा टूलकिट गैंग ट्रक ड्राइवर की मजबूरी बताएगा। लेकिन वो ये नहीं बताएंगे कि सड़क पर वाहन चलाने वाले हम और आप जैसे 95% लोग हैं। नया कानून सब पर लागू होगा, फिर सिर्फ 5% को ही क्यों भड़काया जा रहा है?

5. ये टूलकिट गैंग ट्रक ड्राइवर्स का रोना बतायेगा... लेकिन ये उन लोगों का दर्द नहीं बाटेंगे जिनके अपने ट्रकों के पहिये के नीचे रौंदे गए हैं। 

6. नए कानून करीब 10 दिन पहले पास हुए। हड़ताल अब क्यों? राम मंदिर का डर इन असुर शक्तियों को भयभीत कर रहा है।

7. आप खुद सोचिए... जब आप हाइवे पर वाहन चलाते हैं तो क्या ये ट्रक सबसे ज़्यादा कानून नहीं तोड़ते? अपने अनुभव के आधार पर सोचिए। क्या इन पर लगाम नहीं लगाया जाना चाहिए?

जान लीजिए, ये सब राम मंदिर के खिलाफ देश विरोधी और सनातन के दुश्मनों का षड्यंत्र है। अब आप वही गलती मत करना, जो आपने CAA विरोधी आंदोलन, किसान आंदोलन और पहलवान आंदोलन में की थी!!!

स्वामी विवेकानंद जयंती। 12 जनवरी देशभर में मनाया जाएगा राष्ट्रीय युवा दिवस

स्वामी विवेकानंद जयंती आज
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देशभर में मनाया जाएगा राष्ट्रीय युवा दिवस
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हर साल 12 जनवरी को पूरे भारतवर्ष में उत्साह और खुशी से राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। इसी दिन स्वामी विवेकानंद जी की जयंती भी होती है। 1984 में भारत सरकार द्वारा स्वामी विवेकानंद की जयंती के दिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की गई और 1985 से हर साल 12 जनवरी यानी स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन पर राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जा रहा है। इस दिन को युवा दिवस के रूप में मनाए जाने का उद्देश्य स्वामी विवेकानंद के विचार और आदर्शों के महत्व को बढ़ावा देना है।

क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय युवा दिवस?
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देश का भविष्य देश के युवाओं पर निर्भर करता है। इसलिए किसी भी देश के विकास में उस देश के युवाओं का अहम योगदान होता है। ऐसे में यह बेहद जरूरी हो जाता है कि, युवाओं को सही मार्गदर्शन मिले। इसी उद्देश्य से हर साल राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है।

स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी बातें 
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स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था।
विवेकानंद का असली नाम नरेंद्रनाथ दत्त था और ये विख्यात आध्यात्मिक गुरु थे।
विवेकानंद जब 25 साल के थे, तभी इन्होंने सांसारिक मोह माया का त्याग कर दिया और संन्यासी बन गए।
1897 में इन्होंने कोलकाता में रामकृष्ण मिशन और 1898 में गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की।
अपनी मृत्यु से दो साल पहले 1900 में स्वामी विवेकानंद यूरोप से आखिरी बार भारत आए और बेलूर की ओर चल पड़े।
उन्होंने अपना अंतिम समय शिष्यों के साथ बिताया और 04 जुलाई 1902 को विवेकानंद ने अंतिम सांस ली।

12 जनवरी को क्यों मनाया जाता है युवा दिवस?
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स्वामी विवेकानंद धर्म, दर्शन, इतिहास, कला, सामाजिक विज्ञान और साहित्य के ज्ञाता थे। भारतीय शास्त्रीय संगीत में भी इनकी गहरी रुचि थी। स्वामी जी के विचार और कार्य आज भी युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। विवेकानंद के अनमोल और प्रेरणादायक विचार युवाओं को प्रोत्साहित करते हैं। यही कारण है कि, स्वामी विवेकानंद की जयंती यानी 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन विद्यालयों और कॉलेजों में विभिन्न कार्यक्रम के आयोजन होते हैं, रैलियां निकाली जाती हैं और व्याख्यान होते हैं।


यह कहावत तो मशहूर हैं कि हमारे देश में दुध - दही की नदियाँ बहती थी ! यदि इतना दुध - दही था , तो पक्का घी भी बहुत मात्रा में होता होगा !

यह कहावत तो मशहूर हैं कि हमारे देश में दुध - दही की नदियाँ बहती थी ! यदि इतना दुध - दही था , तो पक्का घी भी बहुत मात्रा में होता होगा ! इससे हम अनुमान लगा सकते हैं कि भोजन घी में ही बनता होगा !!
महाभारत काल मे कृष्ण का मक्खन से संबंध बताया गया रामायण काल में लिखा है कि राम के आने पर घी के दिये जलाये गये !

हमारे यहाँ तेल का उल्लेख पुराने ज़माने में कम देखने को मिला है !

सबसे पुराना तेल ऑलिव ऑयल बना था , कहा जाता है ऑलिव नामक बीजों से फ़िलिस्तीनी और इज़राइल में यह बनाया गया , जिसे 3000 ईसा साल पुराना बताते हैं !

चीनी और जापानी ने सोया तेल का उत्पादन 2000 ईसा पूर्व के रूप में किया था !

मैक्सिको और उत्तरी अमेरिका में, मूंगफली और सूरजमुखी के बीज को पानी में उबालने कर उसका उपयोग करना शुरू किया था !!

सरसों कई सदियों से दुनिया में सबसे अधिक उगाए और इस्तेमाल किए जाने वाले मसालों में से एक रहा है। , ऐसा माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति प्राचीन मिस्र में हुई थी।

यूनानियों ने सरसों को औषधि और मसाले के रूप में प्रयोग किया रोमनों ने इसे भोजन और दवा दोनों के रूप में उपयोग किया जाता था । रोमन लोग सरसों को उत्तरी फ़्रांस में ले आए

पाम तेल सबसे पहले अफ़्रीका में बनाया गया परन्तु बाद में मलेशिया और इंडोनेशिया ने इसकी खेती शुरू कर दी और आज 85% पॉम ट्री यहीं है !

पॉम ऑयल सुगंधित नही होता है इसलिए विदेशों में इसे व्यंजन बनाने में काम लेते हैं और व्यंजनों को तलने के लिए भी काम लेते हैं !

यह सब जानने के बाद लगता है कि भारत में तेल का प्रयोग बहुत देरी से हुआ हैं , हमारे यहाँ घी का प्रयोग ही होता होगा ! हमारी प्राचीन संस्कृति मे बहुत तला - भूना भोजन का ज़िक्र भी नही आता है !!

नारियल के तेल का आयुर्वेद मे ज़िक्र आता है कि यह मालिश के लिए काम मे लिया जाता था !

आयुर्वेद में सिर्फ़ घी को ही सेहत के लिए लाभकारी बताया है , तेल का ज़िक्र सिर्फ़ मालिश के लिए ही आता है , कई जगह बताया गया है कि घी याददाश्त सुधारने में मददगार है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि घी हमें बुद्धिमान बनाता है !! घी में ब्यूटाइरेट होता है, जो शरीर की सूजन को दूर करता है। !!

विटामिन-ए की भरपूर मौजूदगी इसे खास बनाती है। यह उन लोगों के लिए भी रामबाण है, जिन्हें लैक्टोज इनटॉलरेंस है यानी जिन्हें दूध ठीक से नहीं पचता या पी नहीं पाते, वे घी हजम कर सकते हैं !!

राजस्थान राज्य के पारंपरिक भोजन का यदि ज़िक्र करूँ तो वहाँ राजा - महाराजा के ज़माने में भोजन घी में ही पकता था दाल , बाटी , चुरमा , घेवर , मालपुआ और अन्य मिठाइयाँ , पंजाब या अमृतसर की बात करें तो वहाँ भी पारंपरिक तरीक़े से घी में पके छोले और कुलचे घी में ही बनाये जाते हैं ! सरसों का साग दाल मक्खनी घी से ही बनता है ! वाराणसी की तरफ़ शुद्ध घी की चाट , पुडी देखने को मिलेगी ! दक्षिण भारत की तरफ़ आये तो आज भी पारंपरिक रेस्टोरेन्ट उपमा , हलवा , दाल सभी घी में बनाते हैं ! चावल और इडली में भी ऊपर से घी डालकर ही खाया जाता है

खिचड़ी का उल्लेख बहुत प्राचीन काल से होता आया है और वो शुद्ध देशी घी में ही बनती थी —
जय श्री राम

माता सीता की यह रोचक लोककथा आपका दिल जीत लेगी, धन के भंडार भर देगी..

*माता सीता की यह रोचक लोककथा आपका दिल जीत लेगी, धन के भंडार भर देगी...*
इस कहानी को सीता माता कहती थी और श्रीराम
सुना करते थे। एक दिन श्रीराम भगवान को किसी काम के लिए बाहर जाना पड़ गया तो सीता माता कहने लगी कि भगवान मेरा तो बारह वर्ष का नितनेम (नित्य नियम) है। अब आप बाहर जाएंगे तो मैं अपनी कहानी किसे सुनाऊंगी? श्रीराम ने कहा कि तुम कुएं की पाल पर जाकर बैठ जाना और वहां जो औरतें पानी भरने आएंगी उन्हें अपनी कहानी सुना देना। 

सीता माता कुएं की पाल पर जाकर बैठ जाती हैं। एक स्त्री आई उसने रेशम की जरी की साड़ी पहन रखी थी और सोने का घड़ा ले रखा था। सीता माता उसे देख कहती हैं कि बहन मेरा बारह वर्ष का नितनेम सुन लो। पर वह स्त्री बोली कि मैं तुम्हारा नितनेम सुनूंगीं तो मुझे घर जाने में देर हो जाएगी और मेरी सास मुझसे लड़ेगी। उसने कहानी नहीं सुनी और चली गई। उसकी रेशम जरी की साड़ी फट गई, सोने का घड़ा मिट्टी के घड़े में बदल गया।  
सास ने देखा तो पूछा कि ये किस का दोष अपने सिर लेकर आ गई है? बहू ने कहा कि कुएं पर एक औरत बैठी थी उसने कहानी सुनने के लिए कहा लेकिन मैने सुनी नही जिसका यह फल मिला। 
 
बहू की बात सुनकर अगले दिन वही साड़ी और घड़ा लेकर सास कुएं की पाल पर गई। सास को वहीं माता सीता बैठी मिलीं तो माता सीता ने कहा कि बहन मेरी कहानी सुन लीजिए...  सास बोली कि एक बार छोड़, मैं तो चार बार कहानी सुन लूंगी... . 
 
राम आए लक्ष्मण आए देश के पुजारी आए 
नितनेम का नेम लाए आओ राम बैठो राम
तपी रसोई जियो राम, माखन मिसरी खाओ राम
दूध बताशा पियो राम,सूत के पलका मोठो राम
शाल दुशाला पोठो राम, शाल दुशाला ओढ़ो राम
जब बोलूं जब राम ही राम, राम संवारें सब के काम
खाली घर भंडार भरेंगे सब का बेड़ा पार करेंगे
 
श्री राम जय राम जय-जय राम
 
सास बोली कि बहन कहानी तो बहुत अच्छी लगी। कहानी सुनकर सास घर चली गई और उसकी साड़ी फिर से रेशम जरी की बन गई। मिट्टी का घड़ा फिर सोने के घड़े में बदल गया। बहू कहने लगी सासू मां, आपने ये सब कैसे किया? सास ने कहा कि बहू तू दोष लगा के आई थी और मैं अब दोष उतारकर आ रही हूं. . . बहू ने फिर पूछा कि वह कुएं वाली स्त्री कौन है? सास बोली कि वे सीता माता थीं... वे पुराने से नया कर देती हैं, खाली घर में भंडार भर देती हैं, वह लक्ष्मी जी का वास घर में कर देती हैं, आदमी की जो भी इच्छा हो उसे पूरा कर देती हैं.... बहू बोली कि ऎसी कहानी मुझे भी सुना दो.... सास बोली कि ठीक है तुम भी सुनो और सास ने कहानी शुरु की...  

राम आए लक्ष्मण आए देश के पुजारी आए 
नितनेम का नेम लाए आओ राम बैठो राम
तपी रसोई जियो राम, माखन मिसरी खाओ राम
दूध बताशा पियो राम,सूत के पलका मोठो राम
शाल दुशाला पोठो राम, शाल दुशाला ओढ़ो राम
जब बोलूं जब राम ही राम, राम संवारें सब के काम
खाली घर भंडार भरेंगे सब का बेड़ा पार करेंगे
 
श्री राम जय राम जय-जय राम
 
कहानी सुनकर बहू बोली कि कहानी तो बहुत अच्छी है.. .. सास ने कहा कि ठीक है इस कहानी को रोज कहा करेगें। अब सास-बहू रोज सवेरे उठती, नहाती-धोती और पूजा करने के बाद नितनेम की सीता की कहानी कहती। एक दिन उनके यहां एक पड़ोस की औरत आई और बोली कि बहन जरा सी आंच देना तो वह बोली कि आंच तो अभी हमने जलाई ही नहीं।

 पड़ोसन ने कहा कि तुम सुबह चार बजे से उठकर क्या कर रही हो फिर? उन्होंने कहा कि सुबह उठकर हम पूजा करते हैं फिर सीता माता की नितनेम की कहानी कहते हैं। 

पड़ोसन ने उनकी बात सुनकर फिर कहा कि सीता माता की कहानी कहने से तुम्हें क्या मिला? वे बोली कि इनकी कहानी कहने से घर में भंडार भर जाते हैं। सारे काम सिद्ध होते हैं, मन की इच्छा भी पूरी होती है। पड़ोसन कहती है कि बहन ऎसी कहानी तो मुझे भी सुना दो फिर। वह बोली कि ठीक है तुम भी यह कहानी सुन लो... 
 
राम आए लक्ष्मण आए देश के पुजारी आए 
नितनेम का नेम लाए आओ राम बैठो राम ……………..

सारी कहानी सुनने के बाद पड़ोसन कहने लगी बहन कहानी तो मुझे बहुत अच्छी लगी। अब वह पड़ोसन भी नितनेम सीता माता की कहानी कहने लगी। कहानी कहने से सीता माता ने पड़ोसन के भी भंडार भर दिए। अब  तो पूरे मोहल्ले में नितनेम की कथा चल पड़ी.. हर किसी की मनोकामना पूरी होने लगी...

 
हे सीता माता ! जैसे आपने उनके भंडार भरे, वैसे ही आप हमारे भी भंडार भरना। कहानी सुनने वाले के भी और कहानी कहने वाले के भी।
 
उत्तरप्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा के कुछ क्षेत्रों में आज भी यह कथा सीता जयंती पर चाव से सुनाई जाती है।
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🚩 *राम काज किये बिना मोहें कहा विश्राम*
🙏🏻🚩 *जय श्रीराम* 🙏🏻🚩

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22 जनवरी को हम क्या करेंगे?.आपके जीवन में दो बार दिवाली मनाने का योग

*22 जनवरी को हम क्या करेंगे?*🚩
 √.घर के द्वार को सजाएंगे🚩
 √.रंगोली बनाएंगे🚩
 √.दीपों की माला पहनाएंगे🚩
 √.राम दीपक जलाएंगे🚩
 √. फूल और पत्तों के तोरण लगाएंगे🚩
 √. कंदील लगाएंगे🚩
 √.पटाखे फोड़ेंगे🚩
 √.घर में मिठाइयां बनाएंगे🚩
 √.मीठे भोजन का आनंद सभी को मिलेगा🚩
 √.नये कपड़े पहनकर मंदिर जायेंगे🚩
 √.झंडे लगाए जाएंगे🚩
 √.आपके जीवन में दो बार दिवाली मनाने का योग *500 साल के इंतजार के बाद आया है इसलिए ऐसा करें और अपने पड़ोसियों को भी बताएं।*
  हम सभी को गर्व है कि हम हिन्दू हैं में भी यह सब करुंगा

🚩 *राम काज किये बिना मोहें कहा विश्राम*
🙏🏻🚩 *जय श्रीराम* 🙏🏻🚩

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शुक्रवार, 5 जनवरी 2024

द्रौपदी के ऐसे कौनसे राज हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं?


द्रौपदी के ऐसे कौनसे राज हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं?

कितना अविश्वसनीय लगता है सीता,द्रौपदी,मकरध्वज आदि लोगों के जन्म की प्रक्रिया प्राकृतिक न होकर क्रमशः धरती,अग्नि और मछली के माध्यम से हुई थी,जो बिल्कुल भी वैज्ञानिक और वास्तविक नहीं प्रतीत होता।

द्रौपदी तो एक युवा कन्या के रूप में आग्निवेदी से प्रकट हुई थी,जो अति विचित्र जान पड़ता है।


कहा जाता है कि द्रुपद ने द्रौपदी को कुरु वंश के नाश के लिए उत्पन्न करवाया था।राजा द्रुपद द्रोणाचार्य को आश्रय देने वाले कुरु वंश से बदला लेना चाहते थे।

जब पांडव और कौरवों ने अपनी शिक्षा पूरी की थी तो द्रोणाचार्य ने उनसे एक गुरुदक्षिणा मांगी।द्रोणाचार्य ने वर्षो पूर्व द्रुपद से हुए अपने अपमान का बदला लेने के लिए पांडवो और कौरवों से कहा कि पांचाल नरेश द्रुपद को बंदी बनाकर मेरे समक्ष लाओ।[1]


पहले कौरवों ने आक्रमण किया परन्तु वो हारने लगे।यह देख पांडवो ने आक्रमण किया और द्रुपद को बंदी बना लिया।द्रोणाचार्य ने द्रुपद का आधा राज्य ले लिया और आधा उन्हें वापस करके छोड़ दिया।द्रुपद ने इस अपमान और राज्य के विभाजन का बदला लेने के लिए ही वह अद्भुत यज्ञ करवाया,जिससे द्रौपदी और धृष्टद्युम्न पैदा हुए थे।[2]

द्रौपदी के कौमार्य का राजः
संस्कृत का श्लोक है :

अहिल्या,द्रौपदी,सीता,तारा,मंदोदरी तथा
पंचेतानि स्मरेनित्यम्,महापातक् नाशनम्।

इस श्लोक का अर्थ है:अहल्या,द्रौपदी,सीता,तारा,मंदोदरी इन पञ्चकन्या के गुण और जीवन नित्य स्मरण और जाप करने से महापापों का नाश होता है।द्रौपदी को पंचकन्या में एक माना जाता है।पंचकन्या यानि ऐसी पांच स्त्रियाँ जिन्हें कन्या अर्थात कुंवारी होने का आशीर्वाद प्राप्त था।पंचकन्या अपनी इच्छा से कौमार्य पुनः प्राप्त कर सकती थीं.द्रौपदी को यह आशीर्वाद कैसे प्राप्त हुआ ?।[3]

ये सभी को पता है कि द्रौपदी के 5 पति थे,लेकिन वह अधिकतम 14 पतियों की पत्नी भी बन सकती थी।द्रौपदी के 5 पति होना नियति ने काफी समयपूर्व ही निर्धारित कर दिया था।इसका कारण द्रौपदी के पूर्वजन्म में छिपा था,जिसे भगवान कृष्ण ने सबको बताया था।

पूर्वजन्म में द्रौपदी राजा नल और उनकी पत्नी दमयंती की पुत्री थीं।उस जन्म में द्रौपदी का नाम नलयनी था।नलयनी ने भगवान शिव से आशीर्वाद पाने के लिए कड़ी तपस्या की।भगवान शिव जब प्रसन्न होकर प्रकट हुए तो नलयनी ने उनसे आशीर्वाद माँगा कि अगले जन्म में उसे 14 इच्छित गुणों वाला पति मिले।[4]

यद्यपि भगवान शिव नलयनी की तपस्या से प्रसन्न थे,परन्तु उन्होंने उसे समझाया कि इन 14 गुणों का एक व्यक्ति में होना असंभव है।किन्तु जब नलयनी अपनी जिद पर अड़ी रही तो भगवान शिव ने उसकी इच्छा पूर्ण होने का आशीर्वाद दे दिया। इस अनूठे आशीर्वाद में अधिकतम 14 पति होना और प्रतिदिन सुबह स्नान के बाद पुनः कुंवारी होना भी शामिल था।इस प्रकार द्रौपदी भी पंचकन्या में एक बन गयीं।

नलयनी का पुनर्जन्म द्रौपदी के रूप में हुआ।द्रौपदी के इच्छित 14 गुण पांचो पांडवों में थे।युधिष्ठिर धर्म के ज्ञानी थे।
भीम 1000 हाथियों की शक्ति से पूर्ण थे।
अर्जुन अद्भुत योद्धा और वीर पुरुष थे।
सहदेव उत्कृष्ट ज्ञानी थे।
नकुल कामदेव के समान सुन्दर थे।

द्रौपदी के पुत्रों के नाम

पांचो पांडवों से द्रौपदी के 5 पुत्र हुए थे।युधिष्ठिर से हुए पुत्र का नाम प्रतिविन्ध्य,भीम से सुतसोम,अर्जुन से श्रुतकर्म,नकुल से शतनिक,सहदेव से श्रुतसेन नामक पुत्र हुए।ये सभी पुत्र अश्वत्थामा के हाथों सोते समय मारे गए. द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न तथा शिखंडी का वध भी अश्वत्थामा ने ही किया था.

द्रौपदी की पूजा

दक्षिण भारत के कुछ राज्यों आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक में द्रौपदी की पूजा होती है और 400 से अधिक द्रौपदी के मंदिर भी हैं।इसके अतिरिक्त श्रीलंका, मलेशिया, मॉरिशस, साउथ अफ्रीका में भी द्रौपदी के भक्त हैं।ये लोग द्रौपदी को माँ काली का अवतार मानते हैं और उन्हें द्रौपदी अम्मन कहते हैं


द्रौपदी अम्मन की ग्राम देवी के रूप में पूजा होती है. इनसे जुडी कई मान्यताएं और कहानियाँ हैं।मुख्यतः वन्नियार जाति के लोग द्रौपदी अम्मन पूजक होते हैं।चित्तूर जिले के दुर्गासमुद्रम गाँव में द्रौपदी अम्मन का सालाना त्यौहार मनाया जाता है,जोकि काफी प्रसिद्ध है।

द्रौपदी से सबसे अधिक प्रेम कौन करता था

पांचों पांडवों में द्रौपदी सबसे अधिक प्रेम अर्जुन से करती थीं।अर्जुन ही द्रौपदी को स्वयंवर में जीत कर लाये थे,परन्तु द्रौपदी से पांडवों में सर्वाधिक प्रेम करने वाले महाबली भीम थे।अर्जुन जोकि द्रौपदी को जीत कर लाये थे,इस बात से बहुत प्रसन्न नहीं थे कि द्रौपदी पांचो भाइयों को मिले।अपनी अन्य पत्नी सुभद्रा पर एकाधिकार से अर्जुन को शांति मिलती थी।

इस बात से द्रौपदी को कष्ट होता था कि अर्जुन अपनी अन्य पत्नियों सुभद्रा,उलूपी,चित्रांगदा से प्रेमव्यवहार में व्यस्त रहते थे। युधिष्ठिर और द्रौपदी का सम्बन्ध धर्म से था।नकुल सहदेव सबसे छोटे थे,अतः उन्हें बाकी भाइयों का अनुसरण करना होता था।इन सबके बीच भीम ऐसे व्यक्ति थे,जो कि द्रौपदी से बहुत प्रेम करते थे,जिसे उन्होंने कई प्रकार से प्रदर्शित भी किया।

द्रौपदी चीर हरण के समय दो कौरव ऐसे भी थे,जिन्होंने इसका विरोध किया था।युयुत्सु और विकर्ण नामक दो कौरव भाइयों ने सभा में द्रौपदी की प्रार्थना का समर्थन किया था।युयुत्सु सबसे बुद्धिमान कौरव माने जाते थे।वे मन ही मन पांडवों और द्रौपदी से प्रभावित थे।बाद में महाभारत युद्ध के समय उन्होंने कौरवों का साथ छोड़कर पांडवों की तरफ से युद्ध किया था।[5]


कितनी अजीब बात है कि उस युग में एक दूसरे से प्रतिशोध लेने के लोग कठिन तपस्या और यज्ञ करते थे किन्तु देवी देवताओं से यह नहीं माँगते थे……
..कि वे उनको तंग करने वाले विकार काम,क्रोध,लोभ,मोह और अहंकार ही नाश कर दें कि "न रहेगा बाँस और न बजेगी बाँसुरी।"
इतने सारे लोगों का अपनत्व पाकर,पंचकन्या बनकर पूजित होने पर भी द्रौपदी चीरहरण जैसे अपमान का शिकार हुई।
काश,इसके बजाय उसको अपनी रक्षा स्वयं करने की शक्ति प्राप्त हुई होती..,तो वह वह नारीशक्ति की प्रेरणा के रूप में सबके हृदयों में स्थापित हो गई होती।
महाभारत के बहुत से पात्रों के विचित्र राज थे जिनमें द्रौपदी सबसे रहस्यमयी थी।

शकुनि के पासे तो निर्जीव थे,द्रौपदी महाभारत का जीवंत पासा थी,जिसका जन्म ही कुरू वंश के नाश के लिए दाँव पर लगने के लिए हुआ था।अधर्म के नाश के लिए बहुत से लोगों को अपनी बलि देनी पडती है।द्रौपदी भी उन में से एक थी।

यही विधि का विधान था!

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आंशिक स्त्रोतः

द्रौपदी के 5 अद्भुत रहस्य | Draupadi story in hindi | ShabdBeej

फुटनोट
[1]
http://कहा जाता है कि द्रुपद ने द्रौपदी को कुरु वंश के नाश के लिए उत्पन्न करवाया था।राजा द्रुपद द्रोणाचार्य को आश्रय देने वाले कुरु वंश से बदला लेना चाहते थे। जब पांडव और कौरवों ने अपनी शिक्षा पूरी की थी तो द्रोणाचार्य ने उनसे एक गुरुदक्षिणा मांगी।द्रोणाचार्य ने वर्षो पूर्व द्रुपद से हुए अपने अपमान का बदला लेने के लिए पांडवो और कौरवों से कहा कि पांचाल नरेश द्रुपद को बंदी बनाकर मेरे समक्ष लाओ। .
[2]
http://.पहले कौरवों ने आक्रमण किया परन्तु वो हारने लगे।यह देख पांडवो ने आक्रमण किया और द्रुपद को बंदी बना लिया।द्रोणाचार्य ने द्रुपद का आधा राज्य ले लिया और आधा उन्हें वापस करके छोड़ दिया।द्रुपद ने इस अपमान और राज्य के विभाजन का बदला लेने के लिए ही वह अद्भुत यज्ञ करवाया,जिससे द्रौपदी और धृष्टद्युम्न पैदा हुए थे।
[3]
http://.द्रौपदी के कौमार्य का राजः संस्कृत का श्लोक है : अहल्या द्रौपदी सीता तारा मन्दोदरी तथा। पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम् ॥ इस श्लोक का अर्थ है:अहल्या,द्रौपदी,सीता,तारा,मंदोदरी इन पञ्चकन्या के गुण और जीवन नित्य स्मरण और जाप करने से महापापों का नाश होता है। द्रौपदी को पंचकन्या में एक माना जाता है।पंचकन्या यानि ऐसी पांच स्त्रियाँ जिन्हें कन्या अर्थात कुंवारी होने का आशीर्वाद प्राप्त था।पंचकन्या अपनी इच्छा से कौमार्य पुनः प्राप्त कर सकती थीं.द्रौपदी को यह आशीर्वाद कैसे प्राप्त हुआ ?
[4]
http://.द्रौपदी के कौमार्य का राजः संस्कृत का श्लोक है : अहल्या द्रौपदी सीता तारा मन्दोदरी तथा। पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम् ॥ इस श्लोक का अर्थ है:अहल्या,द्रौपदी,सीता,तारा,मंदोदरी इन पञ्चकन्या के गुण और जीवन नित्य स्मरण और जाप करने से महापापों का नाश होता है। द्रौपदी को पंचकन्या में एक माना जाता है।पंचकन्या यानि ऐसी पांच स्त्रियाँ जिन्हें कन्या अर्थात कुंवारी होने का आशीर्वाद प्राप्त था।पंचकन्या अपनी इच्छा से कौमार्य पुनः प्राप्त कर सकती थीं.द्रौपदी को यह आशीर्वाद कैसे प्राप्त हुआ ?
[5]
http://.यद्यपि भगवान शिव नलयनी की तपस्या से प्रसन्न थे,परन्तु उन्होंने उसे समझाया कि इन 14 गुणों का एक व्यक्ति में होना असंभव है।किन्तु जब नलयनी अपनी जिद पर अड़ी रही तो भगवान शिव ने उसकी इच्छा पूर्ण होने का आशीर्वाद दे दिया। इस अनूठे आशीर्वाद में अधिकतम 14 पति होना और प्रतिदिन सुबह स्नान के बाद पुनः कुंवारी होना भी शामिल था।इस प्रकार द्रौपदी भी पंचकन्या में एक बन गयीं। नलयनी का पुनर्जन्म द्रौपदी के रूप में हुआ।द्रौपदी के इच्छित 14 गुण पांचो पांडवों में थे। युधिष्ठिर धर्म के ज्ञानी थे। भीम 1000 हाथियों की शक्ति से पूर्ण थे। अर्जुन अद्भुत योद्धा और वीर पुरुष थे। सहदेव उत्कृष्ट ज्ञानी थे। नकुल कामदेव के समान सुन्दर थे। द्रौपदी के पुत्रों के नाम पांचो पांडवों से द्रौपदी के 5 पुत्र हुए थे।युधिष्ठिर से हुए पुत्र का नाम प्रतिविन्ध्य,भीम से सुतसोम,अर्जुन से श्रुतकर्म,नकुल से शतनिक,सहदेव से श्रुतसेन नामक पुत्र हुए।ये सभी पुत्र अश्वत्थामा के हाथों सोते समय मारे गए. द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न का वध भी अश्वत्थामा ने ही किया था. द्रौपदी की पूजा दक्षिण भारत के कुछ राज्यों आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक में द्रौपदी की पूजा होती है और 400 से अधिक द्रौपदी के मंदिर भी हैं।इसके अतिरिक्त श्रीलंका, मलेशिया, मॉरिशस, साउथ अफ्रीका में भी द्रौपदी के भक्त हैं।ये लोग द्रौपदी को माँ काली का अवतार मानते हैं और उन्हें द्रौपदी अम्मन कहते हैं  द्रौपदी अम्मन की ग्राम देवी के रूप में पूजा होती है. इनसे जुडी कई मान्यताएं और कहानियाँ हैं।मुख्यतः वन्नियार जाति के लोग द्रौपदी अम्मन पूजक होते हैं।चित्तूर जिले के दुर्गासमुद्रम गाँव में द्रौपदी अम्मन का सालाना त्यौहार मनाया जाता है,जोकि काफी प्रसिद्ध है। द्रौपदी से सबसे अधिक प्रेम कौन करता था पांचों पांडवों में द्रौपदी सबसे अधिक प्रेम अर्जुन से करती थीं।अर्जुन ही द्रौपदी को स्वयंवर में जीत कर लाये थे,परन्तु द्रौपदी से पांडवों में सर्वाधिक प्रेम करने वाले महाबली भीम थे।अर्जुन जोकि द्रौपदी को जीत कर लाये थे,इस बात से बहुत प्रसन्न नहीं थे कि द्रौपदी पांचो भाइयों को मिले।अपनी अन्य पत्नी सुभद्रा पर एकाधिकार से अर्जुन को शांति मिलती थी। इस बात से द्रौपदी को कष्ट होता था कि अर्जुन अपनी अन्य पत्नियों सुभद्रा,उलूपी,चित्रांगदा से प्रेमव्यवहार में व्यस्त रहते थे। युधिष्ठिर और द्रौपदी का सम्बन्ध धर्म से था।नकुल सहदेव सबसे छोटे थे,अतः उन्हें बाकी भाइयों का अनुसरण करना होता था।इन सबके बीच भीम ऐसे व्यक्ति थे,जो कि द्रौपदी से बहुत प्रेम करते थे,जिसे उन्होंने कई प्रकार से प्रदर्शित भी किया। महाभारत युद्ध के 14वें दिन भीम ने ही चीरहरण करने वाले दुःशासन का वध कर उसके सीने का रक्त द्रौपदी को केश धोने के लिए दिया।इसके बाद ही द्रौपदी ने पुनः अपने केश बांधे। द्रौपदी चीर हरण के समय दो कौरव ऐसे भी थे,जिन्होंने इसका विरोध किया था।युयुत्सु और विकर्ण नामक दो कौरव भाइयों ने सभा में द्रौपदी की प्रार्थना का समर्थन किया था।युयुत्सु सबसे बुद्धिमान कौरव माने जाते थे।वे मन ही मन पांडवों और द्रौपदी से प्रभावित थे।बाद में महाभारत युद्ध के समय उन्होंने कौरवों का साथ छोड़कर पांडवों की तरफ से युद्ध किया था।

बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री प्रवीण बॉबी की बंद कमरे में दर्दनाक तरीके से हुयी मौत का रहस्य क्या आप जानते हैं?


हिंदी सिनेमा की सबसे खूबसूरत और बोल्ड ऐक्ट्रेसेस में से एक और टाइम मैगजीन पर फीचर होने वालीं पहली बॉलिवुड ऐक्ट्रेस परवीन बॉबी की जिंदगी के राज इतने दर्दनाक हैं, जो शायद ही आप जानते हों।

प्रवीण बॉबी ने देखते ही देखते ही फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाली और हिंदी सिनेमा की सबसे खूबसूरत और बोल्ड ऐक्ट्रेसेस में वो शुमार हो गई। परवीन बॉबी ने करीब दो दशकों तक हिंदी सिनेमा पर राज किया

टाइम मैगजीन पर नजर आने वालीं पहली हिरोइन

बॉलीवूड मे डेब्यू के 2-3 साल के अंदर ही उन्होंने इतनी ख्याति पा ली कि वह टाइम मैगजीन के कवर पर फीचर हुईं। टाइम मैगजीन के कवर पर नजर आने वाली वह बॉलिवुड की पहली स्टार रहीं। परवीन बॉबी का स्टारडम और जादू हर निर्माता-निर्देशक से लेकर हर हीरो के सिर चढ़कर बोल रहा था। अब हर कोई उनके साथ काम करने कि इच्छा रखता था।

हर टॉप हीरो के साथ काम

परवीन एक ऐसी ऐक्ट्रेस रहीं, जिन्होंने अमिताभ के अलावा उस वक्त के सभी लीड हीरो जैसे कि शशि कपूर, धर्मेंद्र, राजेश खन्ना, विनोद खन्ना और ऋषि कपूर और फिरोज खान के साथ काम किया।

बिना बताए गायब हो गईं परवीन बॉबी

80 के दशक तक सबकुछ ठीक चल रहा था। लेकिन 1983 में परवीन को न जाने क्या हुआ कि वह किसी को बताए बिना ही फिल्मों और इंडस्ट्री की चकाचौंध से गायब हो गईं। किसी को भी पता नहीं था कि परवीन आखिर अचानक क्यों और कहां चली गईं? उनकी कई फिल्में उनकी अनुपस्थिति में ही रिलीज की गईं।

अध्यात्म के चक्कर मे छोडी फिल्म इंडस्ट्री

बाद में पता चला कि परवीन बॉबी ने 1983 में ही भारत छोड़ दिया और आध्यात्म की तलाश में अपने दोस्तों के साथ अमेरिका चली गईं। उस वक्त परवीन बॉबी का करियर ऊंचाइयों पर था। इस दौरान उन्होंने कई देशों की यात्रा की। 1984 में जब परवीन को न्यू यॉर्क के एक एयरपोर्ट पर रोका गया तो उस वक्त उनका बर्ताव बदला-बदला सा महसूस हुआ। कुछ पहचान पत्र न दिखा पाने की वजह से परवीन बॉबी को कई दिनों तक मानसिक रूप से बीमार लोगों के साथ एक अस्पताल में रखा गया था।

1989 में मुंबई वापसी और मानसिक भीमारी

1989 में परवीन वापस मुंबई आ गईं। लेकिन तब तक वह पूरी तरह से बदल चुकी थीं। उनका वजन काफी बढ़ गया था और वह पहले के मुकाबले मोटी भी हो गई थीं। ऐसा कहा जाता है कि परवीन को सिजोफ्रेनिया था। अब इस मानसिक रोग की शिकार कब और कैसे हुईं, यह आज तक नहीं मालूम। पर ऐसा कहा जाता है कि दौलत और शोहरत के बावजूद परवीन अंदर से काफी अकेली थीं और शायद यही उनके मानसिक रोग की वजह बनी। हालांकि परवीन ने कभी भी इसे स्वीकार नहीं किया और वह फिल्म इंडस्ट्री पर ही आरोप लगाती रहीं कि उनके साथ इंडस्ट्री से जुड़े लोग षड्यंत्र रचा रहे हैं और उनकी छवि खराब करने की कोशिश कर रहे हैं।

मानसिक भीमारी बढणे लगी

वक्त के साथ परवीन बॉबी की हालत ऐसी हो गई थी कि अगर कोई पत्रकार या मीडियाकर्मी उनका इंटरव्यू लेने जाता तो वह दूर भागतीं या फिर उनसे अपना खाना और पानी टेस्ट करने के लिए कहतीं। परवीन के मन में यह शक बैठ गया था कि कोई उन्हें जान से मारना चाहता है। उन्हें यह तक शक बैठ गया कि उनके मेकअप में भी जहर है और इससे उनकी स्किन छिल जाएगी, खूबसूरती चली जाएगी। परवीन के अंदर मारे जाने का डर इस कदर बैठ गया था कि अपने आखिरी 4 सालों में परवीन बॉबी लगभग हर फोन कॉल को रेकॉर्ड करने लगी थीं। जो भी उन्हें फोन करता उसे पहले वह बताती हैं कि उसके फोन को सर्विलांस पर रखा गया है।

प्रवीण बॉबी कि मौत

परवीन बॉबी की जिंदगी में अब अकेलापन और भी बढ़ता जा रहा था। फिल्म इंडस्ट्री से उन्होंने खुद को काट लिया था लेकिन 1973 से 1992 के बीच वह अखबारों से लेकर मैगजीन तक के लिए लिखती रहीं। मुंबई के अपने घर में वह अकेली रहती थीं। किसी का कोई आना-जाना नहीं था। जो उनके अपने थे उन्होंने भी परवीन बॉबी से दुरिया बनाना शुरू कर दी। शायद यही वजह थी कि जब 20 जनवरी 2005 को वह अपने फ्लैट में मृत मिलीं तो किसी को कुछ पता ही नहीं चला। जिस सोसाइटी में परवीन रहती थीं वहां के सिक्यॉरिटी गार्ड ने जब देखा कि परवीन ने तीन दिनों से घर के बाहर रखा दूध और अखबार नहीं लिया है, तो उसने पुलिस को खबर दी।

कमरे कि हालत

कमरे में कुछ बिखरे हुए अखबार थे, शराब की कुछ बोतल और सिगरेट के कुछ टुकड़े थे। कहा जाता है कि परवीन बाबी की मौत दो दिन पहले गई थी। लेकिन दो दिन तक किसी को कानों-कान खबर ही नहीं हुई थी। पोस्टमार्टम में भी यही आया था कि उनकी मौत 72 घंटे पहले हो चुकी थी। अपने जुहू स्थित बंगले में उन्होंने खुद को बंद कर लिया था। मौत से 10 दिन पहले तक उनकी किसी पड़ोसी से बात भी नहीं हुई थी। खाना ऑर्डर करके मंगाती थीं और कमरे में बंद रहती थीं। इस दौरान सिगरेट और शराब ही उनके साथी थी।

गरिबो के नाम वसिहत छोड दि

आखिरी वक्त में जब परवीन को अपनी जायदाद का वारिस तलाश करना था तो उन्हें दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आया। हर रिश्ते से चोट खा चुकी परवीन अपनी जायदाद का 80 फीसदी हिस्सा गरीबों के नाम कर गीं। इसका खुलासा परवीन की मौत के 11 साल बाद हुआ। 11 साल तक परवीन बाबी की वसीयत की जांच चलती रही 14 अक्टूबर 2016 को इस बात की पुष्टि हो गई कि ये वसीयत सही है और परवीन ने ही अपनी दौलत गरीबों के नाम कर दी थी।

क्या तालिबान पूरे देश पर कब्जा कर लेगा?

लगता तो कुछ ऐसा ही है. अफगान सरकार, उसकी सेना और पूरा का पूरा एडमिनिस्ट्रेशन चरमरा चुका है. महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोग पहले ही देश छोड़कर भाग चुके हैं. सेना का मनोबल इतना गिरा हुआ है कि लड़ना तो छोड़िए, बिना एक गोली चलाए आत्मसमर्पण कर रही है.

ताजा जानकारी के अनुसार करीब 17 जिला मुख्यालयों पर आज सुबह तक कब्ज़ा हो चुका है

इसमे देश का दूसरा (कंधार), तीसरा (हेरात) और चौथा (मजार ए शरीफ) सबसे बड़ा शहर शामिल हैं. ये सिर्फ शहर ही नहीं बल्कि देश का सप्लाई लाइन भी है. अफगानिस्तान को पड़ोसी मुल्कों और दुनिया से जोड़ने वाली सड़के इन्हीं शहरो से होके जाती है.

मतलब कम शब्दों में कहें तो काबुल का पतन तय है. सवाल ये है कि ये आज होगा या कल या परसों…

इसके साथ ही भारत और पश्चिमी देशों द्वारा किए गए विकास के सारे काम पर पानी फिर गया है. पूरी दुनिया सन्न है और सारा ध्यान अपने फंसे हुए नागरिको को जैसे तैसे निकालने मे लगाया है.

खुद ही देखिए, पाक-अफगान सीमा पर तालिबानी अत्याचार से बचकर भागते लोग कैसे गिड़गिड़ा रहे हैं. पाकिस्तान क्या, अब कोई भी इनकी मदद नहीं कर पाएगा.

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अफगानिस्तान एक ब्लैकहोल से कम नहीं. यू ही नहीं इसे ग्रेवयार्ड ऑफ एम्पायर्स कहा जाता है. आप कितनी भी ताकत और पैसे लगा दो, कुछ समय के बाद आपको पीठ दिखाकर भागना ही पड़ेगा.

चलिए झांकते है इतिहास में उन साम्राज्यों पर जिन्होंने अफगानिस्तान पर कब्ज़ा तो किया पर ज्यादा दिन सम्भाल न सके.

प्रथम ईरानी साम्राज्य :

सिकंदर के सेनापति सेल्युक्स ने अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों को अपने दामाद चंद्रगुप्त मौर्य को दहेज मे दिया था.

इस्लाम के उदय के बाद अरबों ने अफगानिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया और मूलतः बौद्ध देश को इस्लामी बना दिया.

एक और ईरानी साम्राज्य. मौर्य और अब्बासिद को छोड़कर अबतक के सारे कब्ज़े ईरानीयों ने किए है.

महान मंगोल साम्राज्य

तुर्क-मंगोल तैमूर भी अफगानिस्तान के रास्ते ही भारत आया.

आखिरी प्रभावी विदेशी साम्राज्य जिसने अफगानिस्तान पर कब्ज़ा रखा. फिर उदय हुआ अहमद शाह अब्दाली (वही पानीपत वाला) का जिसे अफगानिस्तान का जनक कहा जाता है.

बाकी सोवियत संघ और अमेरिका का हश्र तो हम अपने आँखों के सामने देख ही रहे हैं.

सोमवार, 1 जनवरी 2024

राम की महिमा अद्भुत है -राम भक्त भी पगलाए रहते है और राम विद्रोही भी पागल हो जाते हैं -त्याग और समर्पण है राम कथा में,कांग्रेस ने भी कम “त्याग” नहीं किया

राम की महिमा अद्भुत है -
राम भक्त भी पगलाए रहते है और 
राम विद्रोही भी पागल हो जाते हैं -
त्याग और समर्पण है राम कथा में,
कांग्रेस ने भी कम “त्याग” नहीं किया -
एक आततायी बाबर ने 1527 में भव्य अलौकिक श्रीराम मंदिर को तोड़ कर अपनी इबादत के लिए एक मस्जिद बना दी और तब से सदियों से मंदिर के लिए संघर्ष होता रहा - यह हिन्दू मानस है जो कानून के सहारे अपना अधिकार वापस ले सका वरना इस्लामिक राज्य होता तो तलवार के जोर पर काम हो जाता पर ऐसा करना सनातन धर्म के DNA में है ही नहीं -

आज के हालात देख कर भी साबित होता है कि भगवान राम की महिमा अद्भुत है - एक तरफ जहां सब कुछ राममय हो रहा है और राम भक्त पागल से हुए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ भगवान राम को काल्पनिक कहने वाले राम द्रोही अलग तरह से पागल हो रहे हैं - माता शबरी जब राम की प्रतीक्षा में रोज अपने आंगन को पुष्पों से सजाती थी तब उसके आसपास के लोग कहते थे राम ने आना तो है नहीं, ये शबरी “पागल” हो गई है - तब कुछ लोग यह भी कहते थे कि भगवान के प्रेम में रम जाने को ही पागलपन कहते हैं -

दूसरी तरफ रावण और उसकी सेना भी भगवान राम के विरोध में पागलपन की स्थिति में ही थी और यही हाल आज कांग्रेस का है (कांग्रेस से मतलब कांग्रेस और समूचे विपक्ष से है) - जिन लोगों ने राम को काल्पनिक बताने में लज्जा नहीं आई और उनके विचार से राम रावण युद्ध हुआ ही नहीं, वे भी आज “पागल” हुए जा रहे हैं ये कहने के लिए कि राम तो सबके हैं लेकिन फिर भी जाएंगे नहीं - 

विरोधियों में पागलपन इसलिए है कि कैसे हिन्दू और मुस्लिम मानस दोनों को खुश रखें -इतना ही नहीं पाकिस्तान के साथ खड़ा रहने वाला फारूक अब्दुल्ला भी कह रहा है कि राम तो पूरे विश्व के हैं - उन्होंने तो हर धर्म को भाई चारा सिखाया था, उनके लिए कोई गरीब अमीर बड़ा छोटा नहीं था 

फ़ारूक़ मियां आप किस “भाई चारे” की बात कर रहे हो और भगवान राम के समय में कितने धर्मों की बात कर रहे हो जबकि वह काल केवल “सनातन धर्म” का युग था - आपने तो कश्मीर में हिंदुओं को भाई कह कर चारा बना कर हजम करा डाला जबकि भगवान राम ने तो हनुमान, सुग्रीव, विभीषण और न जाने कितनों को भाई कह कर गले लगाया परंतु किसी को “चारा” नहीं बनाया -

रामकथा तो त्याग और समर्पण की कथा है - हर किसी ने अपना अपना त्याग किया - पिता की आज्ञा मानने के लिए राम ने राजपाट त्याग दिया; कैकई ने एक पुत्र भरत के लिए दूसरे पुत्र राम को त्याग दिया, सीता ने पति के लिए सुख वैभव त्याग दिया, लक्ष्मण ने भाई के लिए सब कुछ त्याग दिया और कहते हैं जहां एक तरफ 14 वर्ष लक्ष्मण नहीं सोए तो उनकी पत्नी उर्मिला ने भी 14 वर्ष तक नींद का त्याग किया; भरत ने भगवान राम के लिए राज्य का त्याग कर दिया; हनुमान जी की तो बात ही अलग है - और इतना ही नहीं कहीं यह भी बताया गया है कि कैकई को राम के विरुद्ध भड़काने वाली मंथरा भी राम के बनवास जाने पर 14 वर्ष तक आत्मग्लानि के कारण अपने कक्ष से बाहर नहीं निकली - उसे बाहर निकाला भगवान राम ने आकर और “माता” कह कर आदर किया - इसके अतिरिक्त भी बहुत कुछ है 

लेकिन याद रहे, आज के युग में कांग्रेस ने भी कम त्याग नहीं किया - कांग्रेस तो एक आतताई और उसकी मस्जिद के लिए खून बहाने वालों के लिए भगवान राम को ही त्याग दिया, भगवान राम की सनातन संस्कृति को ही त्याग दिया दिया जिसे मिटाने के लिए कृतसंकल्प है कांग्रेस और उसके सहयोगी - कुछ ने तो राम के भक्तों को गोलियों से भून दिया था - यह त्याग भी कुछ कम नहीं हैं - इसलिए उनका पागल होना भी स्वाभाविक ही है और यह राम की महिमा ही है - 

राम के त्रेता युग में राक्षस यज्ञ विध्वंस करने स्वयं आते थे लेकिन आज निमंत्रण मिलने पर भी आने को राजी नहीं हैं - यह राम की महिमा है

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