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सोमवार, 15 जनवरी 2024

उत्तरायण होते सूर्य की कृतज्ञ वंदना के सनातन पर्व मकर संक्रान्ति की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ

*🔰उत्तरायण होते सूर्य की कृतज्ञ वंदना के सनातन पर्व मकर संक्रान्ति की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ।💐⤵️⤴️*
🔶भारत के प्रमुख पर्वों में से एक मकर सङ्क्रान्ति (मकर संक्रांति) उत्सव पूरे भारत और नेपाल में भिन्न रूपों में मनाया जाता है। पौष मास में जिस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है उस दिन इस पर्व को मनाया जाता है। इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में जाना जाता हैं जबकि कर्नाटक, केरल,तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। बिहार के कुछ जिलों में यह पर्व 'तिला संक्रांत' नाम से भी प्रसिद्ध है। 14 जनवरी के बाद से सूर्य उत्तर दिशा की ओर अग्रसर (जाता हुआ) होता है। इसी कारण इस पर्व को 'उतरायण' (सूर्य उत्तर की ओर) भी कहते है। 

*🔶मकर संक्रांति, उत्तरायण, उत्तरेणी, खिचड़ी, पोंगल, तिल संक्रांति, टुसू, माघ बिहु, सकट पर्व या कोई और नाम हो, उत्सवधर्मिता, प्रकृति की उपासना और सौहार्द का भाव इन सब में समान रूप से निहित है। आप सब में भी भगवान सूर्य की सात्विकता, ऊर्जा और तेज का संचार हो। 🙏🏻☀️*

रविवार, 14 जनवरी 2024

भारतीय मन हर स्थिति में "राम" को साक्षी बनाने का आदी है।

भारतीय मन हर स्थिति में "राम" को साक्षी बनाने का आदी है।
दुःख में --
"हे राम"

पीड़ा में --
"अरे राम"

लज्जा में --
"हाय राम"

अशुभ में --
"अरे राम राम"

अभिवादन में--
"राम राम"

शपथ में--
"राम दुहाई"

अज्ञानता में --
"राम जाने"

अनिश्चितता में --
"राम भरोसे"

अचूकता के लिए--
 "रामबाण"

सुशासन के लिए--
 "रामराज्य"

मृत्यु के लिए --
"राम नाम सत्य" 

जैसी अभिव्यक्तियां 
पग-पग पर "राम" को 
साथ खड़ा करतीं हैं।
"राम" भी इतने सरल हैं कि...
 हर जगह खड़े हो जाते हैं।
 जिसका कोई नहीं...
 उसके लिए "राम" हैं-
 "निर्बल" के बल "राम"।

🙏 _*जय जय श्री राम*_ 🙏

🚩 *राम काज किये बिना मोहें कहा विश्राम*
🙏🏻🚩 *जय श्रीराम* 🙏🏻🚩

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अंत में हम तो जाते अपने गांव... सबको राम राम राम

#जब_राम_गये_ससुराल

#जब_राम_गये_ससुराल
कहते हैं लंका से लौटने के बाद और राज्याभिषेक के बाद माता सुनयना ने जँवाई बेटा को मिथिला आने का सासू माँ का लाड़ भरा आग्रह भेजा। 

राम भला कैसे इनकार करते। 

लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न को भी ससुराल जाने का चाव पूरा हुआ। 

हनुमान उन दिनों वहीं थे सो उनको भी आने का आग्रह हुआ। 

सुग्रीव, अंगद, नल, नील आदि ने प्रभु से शिकायत की कि ये तो सरासर पक्षपात है। 

मंद मंद मुस्कुराते हुए प्रभु ने सबको  स्वीकृति दे दी। 

वानरों से भलीभांति परिचित डिग्निटी पसंद लक्ष्मण की पेशानियों पर बल पड़ गए कि कहीं संभ्रांत आर्य नागर परंपरा से अनभिज्ञ सरल परंतु उजड्ड वानर ससुराल में भैया के साथ साथ पूरे रघुवंश को हमेशा के लिए हंसी का पात्र न बना दें। 

लक्ष्मण इस बात से भली भांति परिचित थे कि औपनिषदिक जनक परंपरा के गंभीर राजाओं की श्रृंखला के बावजूद  मिथिला वाले किसी की टांग खींचकर मजे लेने से कभी बाज नहीं आते हैं और बुरा मानने पर कवित्तों के माध्यम से सदियों तक ताना देने में समर्थ हैं।  

लेकिन भैया का आदेश टाल भी नहीं सकते थे इसलिए उन्होंने सुग्रीव, हनुमान, अंगद, नल नील आदि को नागर परंपराओं की ट्रेनिंग देना शुरू किया और बाकी वानरों से कहा कि वे ठीक वैसा ही करें जैसा उनके यूथपति करें। 

कैसे प्रणाम करना है,
कैसे प्रणाम का उत्तर देना है, 
कैसे बैठना है, उठना है, 

विशेषतः सामूहिक भोज के राजसी नियम कायदे क्या हैं। 

रास्ते भर ये ट्रेनिंग लेते हुए अयोध्या का यह अद्भुत सार्थ मिथिला पहुँचा। 

सुसंस्कृत कर्मकांडी वासिष्ठ आचार्य, अयोध्या के संभ्रांत श्रेष्ठि, पौरजन, श्रृंगवेरपुर के श्यामल निषाद, सौराष्ट्र से आये ऋक्ष और दक्षिण के वानर

शिव बारात का दृश्य पुनः उपस्थित हो गया। 

मिथिला में जवाईयों व उनके मित्रों, सहयोगियों का हार्दिक स्वागत हुआ। 

खाना पीना, नृत्य संगीत उत्सव के बीच श्रीराम के लौटने के आग्रहों को ठुकराते और मैथिलों के मनुहारों के बीच एक महीना कब बीत गया, पता ही नहीं चला।  

अंततः अनासक्त राजर्षि सीरध्वज को भी भाव भरे भारी मन से लौटने की अनुमति देनी पड़ी। 

विदाई पूर्व संध्या पर भव्य सामूहिक भोज का आयोजन हुआ। 

लक्ष्मण बहुत संतुष्ट थे। 
सबकुछ उनकी ट्रेनिंग व प्लान के हिसाब से ही हुआ व सबकुछ ठीक हुआ। 

संध्या को भोज में सब पंक्तियों में विराजे। 

अपनी अपनी रुचि के अनुसार सामिष निरामिष व्यंजनों की लंबी तालिका थी और विशिष्ट व्यंजन के रूप में था- कटहल  

हनुमान जी को कटहल बहुत भाया विशेषतः अलोने स्वाद की उसकी गुठली। 

हनुमान जी ने कटहल की गुठली निकालने को उंगलियों से दवाब डाला और गुठली हवा में उछल गई। 

हनुमान जी के दिमाग में कौंधा,"हो गई बेइज्जती।" 

और इज्जत बचाने की खातिर वे उस गुठली को पकड़ने उछल पड़े। 

अंगद भी उधर देख रहे थे। 

सीनियर की उछाल को इशारा माना और उन्होंने भी कटहल की गुठली उछाली और उछल पड़े। 

फिर क्या था। 

कटहल की गुठलियां हवा में उछलने लगीं और उनके साथ ही वानर भी। 

धीर गंभीर राम हंस पड़े। 

राम को हंसता देख उत्साहित हनुमान ने दूसरी गुठली उचकायी और फिर उछल पड़े।

फिर क्या था! घमासान धमाचौकड़ी मच गई। 

अयोध्या वाले झेंपे जा रहे थे और मिथिला वाले हंस हंस कर मजे लिए जा रहे थे। 

लक्ष्मण सिर पकड़कर बैठ गए और हनुमान जी ने  पूरी मासूमियत से आकर पूछा, "लक्ष्मण भैया, हम सब ठीक -ठाक कर रहे  है न?" 

इस भोले से प्रश्न को सुनकर रोकते रोकते भी लक्ष्मण की हंसी छूट पड़ी। 

इधर  कभी न देखी गई राम की उन्मुक्त हँसी जारी थी। 
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#मेरे_राम_आ_रहे_हैं!

🚩 *राम काज किये बिना मोहें कहा विश्राम*
🙏🏻🚩 *जय श्रीराम* 🙏🏻🚩

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इस समय ना केवल भारत बल्कि संपूर्ण विश्व राममय हो चला है, लोगों की कॉलर ट्यून से लेकर रिंगटोन तक, डीपी से लेकर स्टेटस तक सब राममय हो गए हैं, क्या बच्चे, क्या बड़े, गाँव गाँव, शहर शहर प्रभात फेरियाँ निकल रही हैं, लोगों ने अब नमस्कार, हैलो की बजाय 'जय श्रीराम' बोलना आरंभ कर दिया है।

*अगले सोमवार यानि 22 जनवरी 2024 को ना केवल देश बल्कि संपूर्ण विश्व एक ऐसी अद्भुत घटना का साक्षी बनने जा रहा है जिसके लिये हिन्दुओं ने कई शताब्दी संघर्ष किया, बलिदान दिया, अपना तन मन धन सब न्यौछावर कर दिया, अपने ही देश में अपने ही आराध्य के मंदिर के लिये हिन्दुओं को   क्या क्या दुःख, अपमान नहीं झेलना पड़े।*
इस समय ना केवल भारत बल्कि संपूर्ण विश्व राममय हो चला है, लोगों की कॉलर ट्यून से लेकर रिंगटोन तक, डीपी से लेकर स्टेटस तक सब राममय हो गए हैं, क्या बच्चे, क्या बड़े, गाँव गाँव, शहर शहर प्रभात फेरियाँ निकल रही हैं, लोगों ने अब नमस्कार, हैलो की बजाय 'जय श्रीराम' बोलना आरंभ कर दिया है।

*दुकानों पर भगवा पताकाएँ सज गई हैं, लोगों में 22 जनवरी को लेकर अभूतपूर्व उत्साह है, हर कोई बस प्रभु आगमन के दिन गिन रहा है और स्वयं को इस अद्भुत दिन को,क्षणों को अपने नेत्रों में सदैव के सजाने को आतुर है।*

कोई अयोध्याजी से आई अक्षत पाकर ही भावुक हुआ जा रहा है, स्वयं को भाग्यशाली मान रहा है, कोई गायों का शुद्ध देसी घी लेकर जा रहा है, तो कोई विशालकाय ताला बनाकर भेज रहा है, तो कोई विशालकाय अगरबत्ती बनाकर भेज रहा है, तो कोई अकेला ही हज़ारों किलोमीटर पैदल चल पड़ा है अर्थात् जिससे जो बन पा रहा है वो अपना योगदान देने में लगा है।

*राम मंदिर न्यास ने देश विदेश की अनेक हस्तियों को निमंत्रण दिया है, अधिकांश लोग इस निमंत्रण को पाकर स्वयं को धन्य समझ रहे हैं तो कई ऐसे अभागे भी हैं जिन्होंने इस पुनीत आमंत्रण को ठुकरा दिया है।*

ठुकराने वाले लोग वही हैं जिन्होंने वर्षों तक राम जी के मंदिर निर्माण में अड़ंगे लगाए, रामजी को तम्बू में रखा, राम मंदिर पर कभी निर्णय ना आ पाए इसके लिये सारे हथकंडे अपनाये, रामजी को काल्पनिक बताया, रामसेतु को तोड़ने तक की तैयारी कर ली गई थी, इनका उद्देश्य केवल हिन्दुओं को अपमानित करने, रामजी को सदैव तम्बू में रखने और अपने तथाकथित वोटबैंक को खुश रखने के सिवाय कुछ नहीं था।

*भाजपा एकमात्र ऐसा राजनीतिक दल था जिसके घोषणापत्र में राम मंदिर निर्माण का संकल्प था और ये सभी जानते हैं कि जिसके हाथ में सत्ता की चाभी होती है उसी की तूती बोलती है, इसलिये जब तक सत्ता कांग्रेस जैसी देशद्रोही हिन्दू विरोधी पार्टी के पास रही राम मंदिर का निर्णय कभी नहीं आ पाया परंतु सत्ता नरेंद्र मोदी जैसे व्यक्ति के हाथ में आई तो उनके पहले ही कार्यकाल में राम मंदिर का निर्णय हिन्दुओं के पक्ष में आ गया।*

जब भाजपा ने नारा दिया "मंदिर वहीं बनाएंगे" तब आज का सारा विपक्ष और इनके समर्थक भाजपा और उसके समर्थकों पर तंज कसते थे "मंदिर वहीं बनाएँगे, परंतु तारीख़ नहीं बताएँगे" और ये तंज वो कसते थे जो राम मंदिर का निर्णय कभी ना आने पाए इसके लिये सत्ता का दुरूपयोग करने से कभी पीछे नहीं हटे।

*आज विपक्ष इस राम मंदिर के उद्घाटन को भाजपा का कार्यक्रम बताकर इससे दूरी बना रहा है क्योंकि विपक्ष जानता है कि राम मंदिर निर्माण की इस प्रचंड लहर में वो आगामी लोकसभा चुनावों में तिनके की भांति उड़ जाने वाला है।*

विपक्ष का गठबंधन ठीक से बन भी नहीं पाया था कि उसके नेताओं में इतनी फूट पड़ी कि सारा घड़ा ही फूट गया है, विपक्ष लाचार है, बेबस है, यही लाचारी, यही बेबसी हिन्दुओं ने वर्षों तक झेली है जब सत्ता के मद में डूबी कांग्रेस, गाँधी परिवार ने रामजी को तम्बू में रहने को विवश किया जबकि स्वयं अरबों खरबों की संपत्ति अर्जित करते रहे।

*रामजी को भी सही उत्तराधिकारियों के आने की प्रतीक्षा थी इसलिए उन्होंने भी वनवास की तरह तम्बू निवास को स्वीकार किया और जब केंद्र और राज्य में दोनों ही जगह सही उत्तराधिकारियों के हाथों में सत्ता सौंपी तब स्वयं ही सारे मार्ग सुगम करते चले गए।*

आज योगीजी की जगह उत्तरप्रदेश में अखिलेश यादव होते तब भी इतना वृहद आयोजन होना, संपूर्ण अयोध्या को सजाना, विकास कार्यों का इतनी तीव्रता से होना असंभव था, अखिलेश पूरी तरह से केंद्र को असहयोग करते, बाधाएँ उत्पन्न करते परंतु जब रामजी ने स्वयं आना चाहा तो सब कुछ उनके अनुसार ही होता चला गया।

*ये कार्यक्रम राम मंदिर न्यास की तरफ से आयोजित है, प्रधानमंत्री देश के प्रधान होने के कारण आमंत्रित हैं, मुख्य अतिथि हैं, भूमि पूजन में भी वो सम्मिलित रहे थे। उनके स्वयं के चाहने से ये सब होना असंभव था यदि प्रभु की कृपा उन पर नहीं होती या उन्हें प्रभु ने नहीं चुना होता।*

आज विपक्ष चीख रहा है कि भाजपा इसका श्रेय क्यों ले रही है तो विपक्ष से भी यही प्रश्न है कि आपके पास तो कहीं अधिक अवसर और समय था श्रेय लेने का लेकिन आपने तो प्रभु को तम्बू में रखने का निर्णय लिया हुआ था, तंज भी इसी भाजपा पर कसते थे तो आज इसका श्रेय भी भाजपा क्यों ना ले?

*करोड़ों रुपयों के हज हाउस बनाने वाले, करोड़ों रुपयों की बरसों तक हज सब्सिडी देने वाले, वक़्फ़ बोर्ड को देश की बहुत बड़ी संपत्ति उपहार स्वरुप देनेवाले आज कह रहे हैं कि मंदिर की बजाय वहाँ अस्पताल बनाते तो ज़्यादा सही होता।*

अस्पताल तो देश में हज़ारों लाखों हैं, आयुष्मान भारत योजना में करोड़ों ग़रीब परिवारों का इलाज भी हुआ है, हो रहा है लेकिन राम मंदिर देश और हिंदुत्व की दशा और दिशा बदलने वाला है।

*ना केवल देश भर से बल्कि विदेशों से सदियों तक लोग प्रभु श्रीराम, माता जानकी, लक्ष्मण जी और हनुमान जी के दर्शन करने आएँगे, अयोध्या जी और उसके आसपास के इलाके कितने संपन्न और सुखी हो जायेंगे इसकी कल्पना करना कठिन नहीं है, ये एक मंदिर जानें कितने लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोज़गार देगा, अच्छी जीवनशैली, अच्छी शिक्षा देगा।*

कलयुग में इस भव्य राम मंदिर के उद्घाटन का साक्षी बनना जहाँ हमारे भाग्यशाली होने का प्रतीक है वहीं इस पर विलाप करने वाले कितने अभागे हैं ये भी हम देख पा रहे हैं।

*राम को काल्पनिक बताने वाले उन्हें अप्रासंगिक बनाने वाले अब स्वयं ही अप्रासंगिक हो चले हैं, अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं, प्रभु के साथ छल कपट के परिणाम तो भुगतने ही होंगे।*

आखिर होई वही जो राम रचि राखा !!

जय श्रीराम 🙏🏻🌹🚩

*मेरी झोपड़ी के भाग अब खुल जाएँगे, राम आएँगे*

एक रामभक्त, हनुमान भक्त 


🚩 *राम काज किये बिना मोहें कहा विश्राम*
🙏🏻🚩 *जय श्रीराम* 🙏🏻🚩

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पौराणिक काल के 24 चर्चित श्रापो की कहानी 🌳*

*🌳 पौराणिक काल के 24 चर्चित श्रापो की कहानी 🌳*

सनातन पौराणिक ग्रंथो में अनेको अनेक श्रापों का वर्णन मिलता है। हर श्राप के पीछे कोई न कोई कहानी जरूर मिलती है। आज हम आपको 24 ऐसे ही प्रसिद्ध श्राप और उनके पीछे की कथा बताएँगे।

1..युधिष्ठिर का स्त्री जाति को श्राप : –
महाभारत के शांति पर्व के अनुसार युद्ध समाप्त होने के बाद जब कुंती ने युधिष्ठिर को बताया कि कर्ण तुम्हारा बड़ा भाई था तो पांडवों को बहुत दुख हुआ। तब युधिष्ठिर ने विधि-विधान पूर्वक कर्ण का भी अंतिम संस्कार किया। माता कुंती ने जब पांडवों को कर्ण के जन्म का रहस्य बताया तो शोक में आकर युधिष्ठिर ने संपूर्ण स्त्री जाति को श्राप दिया कि – आज से कोई भी स्त्री गुप्त बात छिपा कर नहीं रख सकेगी।

2..ऋषि किंदम का राजा पांडु को श्राप: –1
महाभारत के अनुसार एक बार राजा पांडु शिकार खेलने वन में गए। उन्होंने वहां हिरण के जोड़े को मैथुन करते देखा और उन पर बाण चला दिया। वास्तव में वो हिरण व हिरणी ऋषि किंदम व उनकी पत्नी थी। तब ऋषि किंदम ने राजा पांडु को श्राप दिया कि जब भी आप किसी स्त्री से मिलन करेंगे। उसी समय आपकी मृत्यु हो जाएगी। इसी श्राप के चलते जब राजा पांडु अपनी पत्नी माद्री के साथ मिलन कर रहे थे, उसी समय उनकी मृत्यु हो गई।

3..माण्डव्य ऋषि का यमराज को श्राप: –
महाभारत के अनुसार माण्डव्य नाम के एक ऋषि थे। राजा ने भूलवश उन्हें चोरी का दोषी मानकर सूली पर चढ़ाने की सजा दी। सूली पर कुछ दिनों तक चढ़े रहने के बाद भी जब उनके प्राण नहीं निकले, तो राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने ऋषि माण्डव्य से क्षमा मांगकर उन्हें छोड़ दिया।
Pतब ऋषि यमराज के पास पहुंचे और उनसे पूछा कि मैंने अपने जीवन में ऐसा कौन सा अपराध किया था कि मुझे इस प्रकार झूठे आरोप की सजा मिली। तब यमराज ने बताया कि जब आप 12 वर्ष के थे, तब आपने एक फतींगे की पूंछ में सींक चुभाई थी, उसी के फलस्वरूप आपको यह कष्ट सहना पड़ा।
तब ऋषि माण्डव्य ने यमराज से कहा कि 12 वर्ष की उम्र में किसी को भी धर्म-अधर्म का ज्ञान नहीं होता। तुमने छोटे अपराध का बड़ा दण्ड दिया है। इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम्हें शुद्र योनि में एक दासी पुत्र के रूप में जन्म लेना पड़ेगा। ऋषि माण्डव्य के इसी श्राप के कारण यमराज ने महात्मा विदुर के रूप में जन्म लिया।

4..नंदी का रावण को श्राप: –
वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार रावण भगवान शंकर से मिलने कैलाश गया। वहां उसने नंदीजी को देखकर उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई और उन्हें बंदर के समान मुख वाला कहा। तब नंदीजी ने रावण को श्राप दिया कि बंदरों के कारण ही तेरा सर्वनाश होगा।

5..कद्रू का अपने पुत्रों को श्राप : –
महाभारत के अनुसार ऋषि कश्यप की कद्रू व विनता नाम की दो पत्नियां थीं। कद्रू सर्पों की माता थी व विनता गरुड़ की। एक बार कद्रू व विनता ने एक सफेद रंग का घोड़ा देखा और शर्त लगाई। विनता ने कहा कि ये घोड़ा पूरी तरह सफेद है और कद्रू ने कहा कि घोड़ा तो सफेद हैं, लेकिन इसकी पूंछ काली है।

कद्रू ने अपनी बात को सही साबित करने के लिए अपने सर्प पुत्रों से कहा कि तुम सभी सूक्ष्म रूप में जाकर घोड़े की पूंछ से चिपक जाओ, जिससे उसकी पूंछ काली दिखाई दे और मैं शर्त जीत जाऊं। कुछ सर्पों ने कद्रू की बात नहीं मानी। तब कद्रू ने अपने उन पुत्रों को श्राप दिया कि तुम सभी जनमजेय के सर्प यज्ञ में भस्म हो जाओगे।

6..उर्वशी का अर्जुन को श्राप : –
महाभारत के युद्ध से पहले जब अर्जुन दिव्यास्त्र प्राप्त करने स्वर्ग गए, तो वहां उर्वशी नाम की अप्सरा उन पर मोहित हो गई। यह देख अर्जुन ने उन्हें अपनी माता के समान बताया। यह सुनकर क्रोधित उर्वशी ने अर्जुन को श्राप दिया कि तुम नपुंसक की भांति बात कर रहे हो। इसलिए तुम नपुंसक हो जाओगे, तुम्हें स्त्रियों में नर्तक बनकर रहना पड़ेगा। यह बात जब अर्जुन ने देवराज इंद्र को बताई तो उन्होंने कहा कि अज्ञातवास के दौरान यह श्राप तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हें कोई पहचान नहीं पाएगा।

7..तुलसी का भगवान विष्णु को श्राप : –
शिवपुराण के अनुसार शंखचूड़ नाम का एक राक्षस था। उसकी पत्नी का नाम तुलसी था। तुलसी पतिव्रता थी, जिसके कारण देवता भी शंखचूड़ का वध करने में असमर्थ थे। देवताओं के उद्धार के लिए भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का रूप लेकर तुलसी का शील भंग कर दिया। तब भगवान शंकर ने शंखचूड़ का वध कर दिया। यह बात जब तुलसी को पता चली तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर हो जाने का श्राप दिया। इसी श्राप के कारण भगवान विष्णु की पूजा शालीग्राम शिला के रूप में की जाती है।

8..श्रृंगी ऋषि का परीक्षित को श्राप : –
पाण्डवों के स्वर्गारोहण के बाद अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित ने शासन किया। उसके राज्य में सभी सुखी और संपन्न थे। एक बार राजा परीक्षित शिकार खेलते-खेलते बहुत दूर निकल गए। तब उन्हें वहां शमीक नाम के ऋषि दिखाई दिए, जो मौन अवस्था में थे। राजा परीक्षित ने उनसे बात करनी चाहिए, लेकिन ध्यान में होने के कारण ऋषि ने कोई जबाव नहीं दिया।

ये देखकर परीक्षित बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने एक मरा हुआ सांप उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया। यह बात जब शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी को पता चली तो उन्होंने श्राप दिया कि आज से सात दिन बात तक्षक नाग राजा परीक्षित को डंस लेगा, जिससे उनकी मृत्यु हो जाएगी।

9..राजा अनरण्य का रावण को श्राप : –
वाल्मीकि रामायण के अनुसार रघुवंश में एक परम प्रतापी राजा हुए थे, जिनका नाम अनरण्य था। जब रावण विश्वविजय करने निकला तो राजा अनरण्य से उसका भयंकर युद्ध हुई। उस युद्ध में राजा अनरण्य की मृत्यु हो गई। मरने से पहले उन्होंने रावण को श्राप दिया कि मेरे ही वंश में उत्पन्न एक युवक तेरी मृत्यु का कारण बनेगा। इन्हीं के वंश में आगे जाकर भगवान श्रीराम ने जन्म लिया और रावण का वध किया।

10..परशुराम का कर्ण को श्राप : –
महाभारत के अनुसार परशुराम भगवान विष्णु के ही अंशावतार थे। सूर्यपुत्र कर्ण उन्हीं का शिष्य था। कर्ण ने परशुराम को अपना परिचय एक सूतपुत्र के रूप में दिया था। एक बार जब परशुराम कर्ण की गोद में सिर रखकर सो रहे थे, उसी समय कर्ण को एक भयंकर कीड़े ने काट लिया। गुरु की नींद में विघ्न न आए, ये सोचकर कर्ण दर्द सहते रहे, लेकिन उन्होंने परशुराम को नींद से नहीं उठाया।

नींद से उठने पर जब परशुराम ने ये देखा तो वे समझ गए कि कर्ण सूतपुत्र नहीं बल्कि क्षत्रिय है। तब क्रोधित होकर परशुराम ने कर्ण को श्राप दिया कि मेरी सिखाई हुई शस्त्र विद्या की जब तुम्हें सबसे अधिक आवश्यकता होगी, उस समय तुम वह विद्या भूल जाओगे।

11..तपस्विनी का रावण को श्राप: –
वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार रावण अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था। तभी उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी, जो भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। रावण ने उसके बाल पकड़े और अपने साथ चलने को कहा। उस तपस्विनी ने उसी क्षण अपनी देह त्याग दी और रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी।

12..गांधारी का श्रीकृष्ण को श्राप : –
महाभारत के युद्ध के बाद जब भगवान श्रीकृष्ण गांधारी को सांत्वना देने पहुंचे तो अपने पुत्रों का विनाश देखकर गांधारी ने श्रीकृष्ण को श्राप दिया कि जिस प्रकार पांडव और कौरव आपसी फूट के कारण नष्ट हुए हैं, उसी प्रकार तुम भी अपने बंधु-बांधवों का वध करोगे। आज से छत्तीसवें वर्ष तुम अपने बंधु-बांधवों व पुत्रों का नाश हो जाने पर एक साधारण कारण से अनाथ की तरह मारे जाओगे। गांधारी के श्राप के कारण ही भगवान श्रीकृष्ण के परिवार का अंत हुआ।

13..महर्षि वशिष्ठ का वसुओं को श्राप: –
महाभारत के अनुसार भीष्म पितामह पूर्व जन्म में अष्ट वसुओं में से एक थे। एक बार इन अष्ट वसुओं ने ऋषि वशिष्ठ की गाय का बलपूर्वक अपहरण कर लिया। जब ऋषि को इस बात का पता चला तो उन्होंने अष्ट वसुओं को श्राप दिया कि तुम आठों वसुओं को मृत्यु लोक में मानव रूप में जन्म लेना होगा और आठवें वसु को राज, स्त्री आदि सुखों की प्राप्ति नहीं होगी। यही आठवें वसु भीष्म पितामह थे।

14..शूर्पणखा का रावण को श्राप: –
वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण की बहन शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था। वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।

15..ऋषियों का साम्ब को श्राप : –
महाभारत के मौसल पर्व के अनुसार एक बार महर्षि विश्वामित्र, कण्व आदि ऋषि द्वारका गए। तब उन ऋषियों का परिहास करने के उद्देश्य से सारण आदि वीर कृष्ण पुत्र साम्ब को स्त्री वेष में उनके पास ले गए और पूछा कि इस स्त्री के गर्भ से क्या उत्पन्न होगा। क्रोधित होकर ऋषियों ने श्राप दिया कि श्रीकृष्ण का ये पुत्र वृष्णि और अंधकवंशी पुरुषों का नाश करने के लिए लोहे का एक भयंकर मूसल उत्पन्न करेगा, जिसके द्वारा समस्त यादव कुल का नाश हो जाएगा।

16..दक्ष का चंद्रमा को श्राप : –
शिवपुराण के अनुसार प्रजापति दक्ष ने अपनी 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रमा से करवाया था। उन सभी पत्नियों में रोहिणी नाम की पत्नी चंद्रमा को सबसे अधिक प्रिय थी। यह बात अन्य पत्नियों को अच्छी नहीं लगती थी। ये बात उन्होंने अपने पिता दक्ष को बताई तो वे बहुत क्रोधित हुए और चंद्रमा को सभी के प्रति समान भाव रखने को कहा, लेकिन चंद्रमा नहीं माने। तब क्रोधित होकर दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग होने का श्राप दिया।

17..माया का रावण को श्राप : –
रावण ने अपनी पत्नी की बड़ी बहन माया के साथ भी छल किया था। माया के पति वैजयंतपुर के शंभर राजा थे। एक दिन रावण शंभर के यहां गया। वहां रावण ने माया को अपनी बातों में फंसा लिया। इस बात का पता लगते ही शंभर ने रावण को बंदी बना लिया। उसी समय शंभर पर राजा दशरथ ने आक्रमण कर दिया।

इस युद्ध में शंभर की मृत्यु हो गई। जब माया सती होने लगी तो रावण ने उसे अपने साथ चलने को कहा। तब माया ने कहा कि तुमने वासना युक्त होकर मेरा सतित्व भंग करने का प्रयास किया। इसलिए मेरे पति की मृत्यु हो गई, अत: तुम्हारी मृत्यु भी इसी कारण होगी।

18..शुक्राचार्य का राजा ययाति को श्राप : –
महाभारत के एक प्रसंग के अनुसार राजा ययाति का विवाह शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी के साथ हुआ था। देवयानी की शर्मिष्ठा नाम की एक दासी थी। एक बार जब ययाति और देवयानी बगीचे में घूम रहे थे, तब उसे पता चला कि शर्मिष्ठा के पुत्रों के पिता भी राजा ययाति ही हैं, तो वह क्रोधित होकर अपने पिता शुक्राचार्य के पास चली गई और उन्हें पूरी बात बता दी। तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने ययाति को बूढ़े होने का श्राप दे दिया था।

19..ब्राह्मण दंपत्ति का राजा दशरथ को श्राप : –
वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार जब राजा दशरथ शिकार करने वन में गए तो गलती से उन्होंने एक ब्राह्मण पुत्र का वध कर दिया। उस ब्राह्मण पुत्र के माता-पिता अंधे थे। जब उन्हें अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार मिला तो उन्होंने राजा दशरथ को श्राप दिया कि जिस प्रकार हम पुत्र वियोग में अपने प्राणों का त्याग कर रहे हैं, उसी प्रकार तुम्हारी मृत्यु भी पुत्र वियोग के कारण ही होगी।

20..नंदी का ब्राह्मण कुल को श्राप : –
शिवपुराण के अनुसार एक बार जब सभी ऋषिगण, देवता, प्रजापति, महात्मा आदि प्रयाग में एकत्रित हुए तब वहां दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर का तिरस्कार किया। यह देखकर बहुत से ऋषियों ने भी दक्ष का साथ दिया। तब नंदी ने श्राप दिया कि दुष्ट ब्राह्मण स्वर्ग को ही सबसे श्रेष्ठ मानेंगे तथा क्रोध, मोह, लोभ से युक्त हो निर्लज्ज ब्राह्मण बने रहेंगे। शूद्रों का यज्ञ करवाने वाले व दरिद्र होंगे।

21..नलकुबेर का रावण को श्राप : –
वाल्मीकि रामायण के अनुसार विश्व विजय करने के लिए जब रावण स्वर्ग लोक पहुंचा तो उसे वहां रंभा नाम की अप्सरा दिखाई दी। अपनी वासना पूरी करने के लिए रावण ने उसे पकड़ लिया। तब उस अप्सरा ने कहा कि आप मुझे इस तरह से स्पर्श न करें, मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर के लिए आरक्षित हूं। इसलिए मैं आपकी पुत्रवधू के समान हूं।

लेकिन रावण ने उसकी बात नहीं मानी और रंभा से दुराचार किया। यह बात जब नलकुबेर को पता चली तो उसने रावण को श्राप दिया कि आज के बाद रावण बिना किसी स्त्री की इच्छा के उसको स्पर्श करेगा तो उसका मस्तक सौ टुकड़ों में बंट जाएगा।

22..श्रीकृष्ण का अश्वत्थामा को श्राप : –
महाभारत युद्ध के अंत समय में जब अश्वत्थामा ने धोखे से पाण्डव पुत्रों का वध कर दिया, तब पाण्डव भगवान श्रीकृष्ण के साथ अश्वत्थामा का पीछा करते हुए महर्षि वेदव्यास के आश्रम तक पहुंच गए। तब अश्वत्थामा ने पाण्डवों पर ब्रह्मास्त्र का वार किया। ये देख अर्जुन ने भी अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ा।

महर्षि व्यास ने दोनों अस्त्रों को टकराने से रोक लिया और अश्वत्थामा और अर्जुन से अपने-अपने ब्रह्मास्त्र वापस लेने को कहा। तब अर्जुन ने अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया, लेकिन अश्वत्थामा ये विद्या नहीं जानता था। इसलिए उसने अपने अस्त्र की दिशा बदलकर अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर कर दी।
यह देख भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया कि तुम तीन हजार वर्ष तक इस पृथ्वी पर भटकते रहोगे और किसी भी जगह, किसी पुरुष के साथ तुम्हारी बातचीत नहीं हो सकेगी। तुम्हारे शरीर से पीब और लहू की गंध निकलेगी। इसलिए तुम मनुष्यों के बीच नहीं रह सकोगे। दुर्गम वन में ही पड़े रहोगे।

23..तुलसी का श्रीगणेश को श्राप :-
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार तुलसीदेवी गंगा तट से गुजर रही थीं, उस समय वहां श्रीगणेश तप कर रहे थे। श्रीगणेश को देखकर तुलसी का मन उनकी ओर आकर्षित हो गया। तब तुलसी ने श्रीगणेश से कहा कि आप मेरे स्वामी हो जाइए, लेकिन श्रीगणेश ने तुलसी से विवाह करने से इंकार कर दिया। क्रोधवश तुलसी ने श्रीगणेश को विवाह करने का श्राप दे दिया और श्रीगणेश ने तुलसी को वृक्ष बनने का।

24..नारद का भगवान विष्णु को श्राप : –
शिवपुराण के अनुसार एक बार देवऋषि नारद एक युवती पर मोहित हो गए। उस कन्या के स्वयंवर में वे भगवान विष्णु के रूप में पहुंचे, लेकिन भगवान की माया से उनका मुंह वानर के समान हो गया। भगवान विष्णु भी स्वयंवर में पहुंचे। उन्हें देखकर उस युवती ने भगवान का वरण कर लिया। यह देखकर नारद मुनि बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि जिस प्रकार तुमने मुझे स्त्री के लिए व्याकुल किया है। उसी प्रकार तुम भी स्त्री विरह का दु:ख भोगोगे। भगवान विष्णु ने राम अवतार में नारद मुनि के इस श्राप को पूरा किया।

शनिवार, 13 जनवरी 2024

चमत्कारी शनि मंदिर : जहां शनि देव साक्षात विराजमान होते हैं * शनि देव के भारत में तमाम मंदिर हैं लेकिन कुछ स्थान ऐसे हैं जहां शनि देव साक्षात विराजमान होते हैं।

 * चमत्कारी शनि मंदिर : जहां शनि देव साक्षात विराजमान होते हैं*
शनि देव के भारत में तमाम मंदिर हैं लेकिन कुछ स्थान ऐसे हैं जहां शनि देव साक्षात विराजमान होते हैं।
भक्तों पर शनि देव की कृपा हमेशा बनी रहता है। शनि देव भक्तों पर जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी गलतियों को क्षमा भी कर देते हैं। जो भक्त शनि देव के सामने अपना सबकुछ समर्पित कर देता है वह जीवन में हमेशा सुखी रहता है।
शनि देव के भारत में तमाम मंदिर हैं लेकिन कुछ स्थान ऐसे हैं जहां शनि देव साक्षात विराजमान होते हैं। तो चलिए आपको भी स्थानों के बारे में बताते हैं जहां जाकर आप शनि देव दर्शन कर मनचाहा फल प्राप्त कर सकते हैं।

*1⃣शनि शिंगणापुर*
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित है शिंगणापुर गांव इसे शनि शिंगणापुर के नाम से भी जाना जाता है। इस गांव में शनि देव का चमत्कारी मंदिर स्थित है। इस गांव में किसी भी घर या दुकान में दरवाजा नहीं है। यहां शनि देव की कोई मूर्ति नहीं बल्कि एक बड़ा सा काला पत्थर है, जिसे शनि का विग्रह रूप माना जाता है। गांव में शनि देव की कृपा हमेशा बनी रहती है और यहां कभी चोरी नहीं होती।

*2⃣उज्जैन का शनि मंदिर*
मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी उज्जैन मानी जाती है। यहां भगवान महाकाल का मंदिर है जो पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। भगवान शिव के मंदिर के साथ-साथ यहां प्राचीन शनि मंदिर भी है। यहां स्थित शनि मंदिर की विशेषता ये है कि यहां शनि देव के साथ-साथ अन्य नवग्रहों की मूर्तियां भी हैं, जिसकी वजह से इसे नवग्रह मंदिर भी कहा जाता है। उज्जैन के इस मंदिर में दूर-दूर से शनि भक्त दर्शन करने आते हैं।

*3⃣महादेव के साथ विराजमान शनि देव*
तिरुनल्लर शनि मंदिर तमिलनाडु के प्रमुख मंदिरों में गिना जाता है। मान्यता है कि जिन लोगों पर शनि की कृपा नहीं होती है वो लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं। शनि मंदिर, तिरुनल्लर शनि देव को समर्पित तमिलनाडु के नवग्रह मंदिरों में से एक है। भारत में स्थित शनि देव के मंदिरों में यह सबसे पवित्र भी माना जाता है। माना जाता है कि इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने से शनि ग्रह के सभी बुरे प्रभावों से मुक्ति मिल जाती है।

*4⃣भगवान श्रीकृष्ण ने यहां किए शनि देव के दर्शन*
उत्तर प्रदेश में ब्रज मंडल के कोसीकलां गांव के पास भी एक शनि मंदिर स्थित है। मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण ने शनिदेव को दर्शन दिए थे। जिसका वर्णन गीता में मिलता है। इस जगह को लेकर यह भी कहा जाता है की जो भक्त यहां की परिक्रमा करता है, उसे भगवान शनि कभी कष्ट नहीं पहुंचाते।

*5⃣स्त्री रुप में विराजमान हैं शनिदेव*
गुजरात में भावनगर के सारंगपुर में भगवान हनुमान का एक प्राचीन मंदिर स्थित है। इस मंदिर को कष्टभंजन हनुमानजी के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि यहां भगवान हनुमान के साथ शनि देव भी विराजित हैं। यहां पर शनि देव स्त्री रूप में हनुमान के चरणों में बैठे दिखाई देते हैं। इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि यदि किसी भी भक्त की कुंडली में शनि दोष हो तो कष्टभंजन हनुमान के दर्शन करने से सभी दोष खत्म हो जाते हैं।

*6⃣इंदौर के शनिदेव* 
इंदौर (अहिल्या नगरी) में शनिदेव का प्राचीन व चमत्कारिक मंदिर जूनी इंदौर में स्थित है। इस मंदिर के संबंध में कथा प्रचलित है- 
मंदिर के स्थान पर लगभग 300 वर्ष पूर्व एक 20 फुट ऊंचा टीला था, जहां वर्तमान पुजारी के पूर्वज पंडित गोपालदास तिवारी आकर ठहरे। एक रात शनिदेव ने पंडित गोपालदास को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि उनकी एक प्रतिमा उस टीले के अंदर दबी हुई है। शनिदेव ने पंडित को टीला खोदकर प्रतिमा बाहर निकालने का आदेश दिया। जब पंडित कहा कि वे दृष्टिहीन होने से इस कार्य में असमर्थ हैं, तो शनिदेव उनसे बोले- 'अपनी आंखें खोलो, अब तुम सब कुछ देख सकोगे।' आंखें खोलने पर पंडित गोपालदास ने पाया कि उनका अंधत्व दूर हो गया है और वे सबकुछ साफ-साफ देख सकते हैं। दृष्टि पाने के बाद पंडितजी ने टीले को खोदना शुरू किया। उनकी आंखें ठीक होने की वजह से अन्य लोगों को भी उनके स्वप्न की बात पर यकीन हो गया तथा वे खुदाई में उनकी मदद करने लगे। पूरा टीला खोदने पर पंडितजी का स्वप्न सच साबित हुआ तथा उसमें से शनिदेव की एक प्रतिमा निकली। बाहर निकालकर उसकी स्थापना की गई। यही प्रतिमा आज इस मंदिर में स्थापित है। 
🚩ॐ शं शनैश्चराय नमः🚩

जानते हो राम ! तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ, जब तुम जन्मे भी नहीं थे, यह भी नहीं जानती थी कि तुम कौन हो ? कैसे दिखते हो ? क्यों आओगे मेरे पास ? बस इतना ज्ञात था कि कोई पुरुषोत्तम आएगा, जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा ।

शबरी को आश्रम सौंपकर महर्षि मतंग जब देवलोक जाने लगे, तब शबरी भी साथ जाने की जिद करने लगीं ।
शबरी की उम्र "दस वर्ष" थी । वो महर्षि मतंग का हाथ पकड़ रोने लगीं ।

महर्षि शबरी को रोते देख व्याकुल हो उठे । शबरी को समझाया "पुत्री इस आश्रम में भगवान आएंगे, तुम यहीं प्रतीक्षा करो ।"

अबोध शबरी इतना अवश्य जानती थी कि गुरु का वाक्य सत्य होकर रहेगा, उसने फिर पूछा- "कब आएंगे..?"

महर्षि मतंग त्रिकालदर्शी थे । वे भूत भविष्य सब जानते थे, वे ब्रह्मर्षि थे । महर्षि शबरी के आगे घुटनों के बल बैठ गए और शबरी को नमन किया ।

 आसपास उपस्थित सभी ऋषिगण असमंजस में डूब गए ।  ये उलट कैसे हुआ । गुरु यहां शिष्य को नमन करे, ये कैसे हुआ ???

महर्षि के तेज के आगे कोई बोल न सका ।
महर्षि मतंग बोले- 
पुत्री अभी उनका जन्म नहीं हुआ ।
अभी दशरथ जी का लग्न भी नहीं हुआ ।
उनका कौशल्या से विवाह होगा । फिर भगवान की लम्बी प्रतीक्षा होगी । 
फिर दशरथ जी का विवाह सुमित्रा से होगा । फिर प्रतीक्षा..

फिर उनका विवाह कैकई से होगा । फिर प्रतीक्षा.. 

फिर वो "जन्म" लेंगे, फिर उनका विवाह माता जानकी से होगा । फिर उन्हें 14 वर्ष वनवास होगा और फिर वनवास के आखिरी वर्ष माता जानकी का हरण होगा । तब उनकी खोज में वे यहां आएंगे । तुम उन्हें कहना आप सुग्रीव से मित्रता कीजिये । उसे आतताई बाली के संताप से मुक्त कीजिये, आपका अभीष्ट सिद्ध होगा । और आप रावण पर अवश्य विजय प्राप्त करेंगे ।

शबरी एक क्षण किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई । "अबोध शबरी" इतनी लंबी प्रतीक्षा के समय को माप भी नहीं पाई ।

वह फिर अधीर होकर पूछने लगी- "इतनी लम्बी प्रतीक्षा कैसे पूरी होगी गुरुदेव ???"

महर्षि मतंग बोले- "वे ईश्वर हैं, अवश्य ही आएंगे । यह भावी निश्चित है । लेकिन यदि उनकी इच्छा हुई तो काल दर्शन के इस विज्ञान को परे रखकर वे कभी भी आ सकते हैं । लेकिन आएंगे "अवश्य"...!

जन्म मरण से परे उन्हें जब जरूरत हुई तो प्रह्लाद के लिए खम्बे से भी निकल आये थेक्ष। इसलिए प्रतीक्षा करना । वे कभी भी आ सकते हैं । तीनों काल तुम्हारे गुरु के रूप में मुझे याद रखेंगे । शायद यही मेरे तप का फल है ।"

शबरी गुरु के आदेश को मान वहीं आश्रम में रुक गईं । उसे हर दिन प्रभु श्रीराम की प्रतीक्षा रहती थीं । वह जानती थीं समय का चक्र उनकी उंगली पर नाचता है, वे कभी भी आ सकतें हैं । 

हर रोज रास्ते में फूल बिछाती है और हर क्षण प्रतीक्षा करती ।

कभी भी आ सकतें हैं ।
हर तरफ फूल बिछाकर हर क्षण प्रतीक्षा । शबरी बूढ़ी हो गई । लेकिन प्रतीक्षा उसी अबोध चित्त से करती रही ।

और एक दिन उसके बिछाए फूलों पर प्रभु श्रीराम के चरण पड़े । शबरी का कंठ अवरुद्ध हो गया । आंखों से अश्रुओं की धारा फूट पड़ी ।

गुरु का कथन सत्य हुआ । भगवान उसके घर आ गए । शबरी की प्रतीक्षा का फल ये रहा कि जिन राम को कभी तीनों माताओं ने जूठा नहीं खिलाया, उन्हीं राम ने शबरी का जूठा खाया ।

ऐसे पतित पावन मर्यादा, पुरुषोत्तम, दीन हितकारी श्री राम जी की जय हो । जय हो । जय हो.। एकटक देर तक उस सुपुरुष को निहारते रहने के बाद वृद्धा भीलनी के मुंह से स्वर/बोल फूटे-

"कहो राम ! शबरी की कुटिया को ढूंढ़ने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ..?"

राम मुस्कुराए- "यहां तो आना ही था मां, कष्ट का क्या मोल/मूल्य..?"

"जानते हो राम ! तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ, जब तुम जन्मे भी नहीं थे, यह भी नहीं जानती थी कि तुम कौन हो ? कैसे दिखते हो ? क्यों आओगे मेरे पास ? बस इतना ज्ञात था कि कोई पुरुषोत्तम आएगा, जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा ।

राम ने कहा- "तभी तो मेरे जन्म के पूर्व ही तय हो चुका था कि राम को शबरी के आश्रम में जाना है ।”

"एक बात बताऊँ प्रभु ! भक्ति में दो प्रकार की शरणागति होती है । पहली ‘वानरी भाव’ और दूसरी ‘मार्जारी भाव’ ।

”बन्दर का बच्चा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी माँ का पेट पकड़े रहता है, ताकि गिरे न...  उसे सबसे अधिक भरोसा माँ पर ही होता है और वह उसे पूरी शक्ति से पकड़े रहता है । यही भक्ति का भी एक भाव है, जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है । दिन रात उसकी आराधना करता है...!” (वानरी भाव)

पर मैंने यह भाव नहीं अपनाया । ”मैं तो उस बिल्ली के बच्चे की भाँति थी, जो अपनी माँ को पकड़ता ही नहीं, बल्कि निश्चिन्त बैठा रहता है कि माँ है न, वह स्वयं ही मेरी रक्षा करेगी, और माँ सचमुच उसे अपने मुँह में टांग कर घूमती है । मैं भी निश्चिन्त थी कि तुम आओगे ही, तुम्हें क्या पकड़ना...।" (मार्जारी भाव)

राम मुस्कुराकर रह गए..!!

भीलनी ने पुनः कहा- "सोच रही हूँ बुराई में भी तनिक अच्छाई छिपी होती है न... “कहाँ सुदूर उत्तर के तुम, कहाँ घोर दक्षिण में मैं !" तुम प्रतिष्ठित रघुकुल के भविष्य, मैं वन की भीलनी ।  यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो तुम कहाँ से आते..?”

राम गम्भीर हुए और कहा-

भ्रम में न पड़ो मां ! “राम क्या रावण का वध करने आया है..?”

रावण का वध तो लक्ष्मण अपने पैर से बाण चलाकर भी कर सकता है ।

राम हजारों कोस चलकर इस गहन वन में आया है, तो केवल तुमसे मिलने आया है माँ, ताकि “सहस्त्रों वर्षों के बाद भी, जब कोई भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे, कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने मिलकर गढ़ा था ।” 

"जब कोई भारत की परम्पराओं पर उँगली उठाये तो काल उसका गला पकड़कर कहे कि नहीं ! यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ, एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है ।"

राम वन में बस इसलिए आया है, ताकि “जब युगों का इतिहास लिखा जाए, तो उसमें अंकित हो कि "शासन/प्रशासन और सत्ता" जब पैदल चलकर वन में रहने वाले समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे, तभी वह रामराज्य है ।”
(अंत्योदय)

राम वन में इसलिए आया है, ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतीक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं । राम रावण को मारने भर के लिए नहीं आया है माँ !

माता शबरी एकटक राम को निहारती रहीं ।

राम ने फिर कहा-

राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता ! “राम की यात्रा प्रारंभ हुई है, भविष्य के आदर्श की स्थापना के लिए ।”

"राम राजमहल से निकला है, ताकि “विश्व को संदेश दे सके कि एक माँ की अवांछनीय इच्छओं को भी पूरा करना ही 'राम' होना है ।”

"राम निकला है, ताकि “भारत विश्व को सीख दे सके कि किसी सीता के अपमान का दण्ड असभ्य रावण के पूरे साम्राज्य के विध्वंस से पूरा होता है ।”

"राम आया है, ताकि “भारत विश्व को बता सके कि अन्याय और आतंक का अंत करना ही धर्म है ।”

"राम आया है, ताकि “भारत विश्व को सदैव के लिए सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाए और खर-दूषणों का घमंड तोड़ा जाए ।” 

और

"राम आया है, ताकि “युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी शबरी के आशीर्वाद से जीते जाते हैं ।”

शबरी की आँखों में जल भर आया था ।
उसने बात बदलकर कहा-  "बेर खाओगे राम..?”

राम मुस्कुराए, "बिना खाये जाऊंगा भी नहीं माँ !"

शबरी अपनी कुटिया से झपोली में बेर लेकर आई और राम के समक्ष रख दिये ।

राम और लक्ष्मण खाने लगे तो कहा- 
"बेर मीठे हैं न प्रभु..?” 

"यहाँ आकर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूँ माँ ! बस इतना समझ रहा हूँ कि यही अमृत है ।”

शबरी मुस्कुराईं, बोली-   "सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो, राम !"

मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान श्री राम को बारंबार सादर वन्दन।

जय श्री राम🙏🏻
 जय जय श्री राम 


🚩 *राम काज किये बिना मोहें कहा विश्राम*
🙏🏻🚩 *जय श्रीराम* 🙏🏻🚩

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राम आ रहे हैं तुम आओ, ना आओ तुम्हारी मर्जी!*तुम बहिष्कार करो, या ना करो, तुम्हारी मर्जी।तुम मुहूर्त,कर्मकांड, मंदिर शिल्प, मन्दिर की पूर्णता, अपूर्णता में कमी निकालो तुम्हारी मर्जी।*

*राम आ रहे हैं*
🚩🚩🚩🚩🚩🚩
*तुम आओ, ना आओ तुम्हारी मर्जी!*
*तुम बहिष्कार करो, या ना करो, तुम्हारी मर्जी।*
*तुम मुहूर्त,कर्मकांड, मंदिर शिल्प, मन्दिर की पूर्णता, अपूर्णता में कमी निकालो तुम्हारी मर्जी।*

*पर सुन लो, और जान लो......*
*पूरा भारत, आमजन, खास जन, बलिदानियों, शहीद कारसेवकों के परिवार, असली शिव सैनिक, सभी खासोआम जगतगुरु, महामंडलेश्वर, देश के सभी तीर्थों के महंत,प्रमुख मंदिरों के आचार्य, पीठाधीश्वर,सभी अखाड़ो के प्रमुख, देश के 1 करोड़ सनातनी, 8000 VVIP, धनकुबेर, अम्बानी अडानी डालमिया, बजाज, प्रमुख उद्यमी, देश के प्रतिष्ठित ऐसे लोग जिन्होंने देश का नाम सम्पूर्ण विश्व मे ऊंचा किया है, नामी खिलाड़ी, रामजी के भक्तजन, शबरी उर्मिला जो 31 सालों से मौन है,*
*अयोध्या के पास के 105 गांवों के ठाकुर जिन्होंने 500 सालों से राम मंदिर बनने तक पगड़ी, जूते नही पहनने की सौगंध खाई वो, और सभी आमोखास वो व्यक्ति जिसके हृदय में राम बसते हैं, और केरल से कश्मीर नेपाल भूटान तक।*
असम बंगाल से राजस्थान गुजरात तक के देश के राम में आस्था विश्वास रखने वाले वे लोग, *जो राम को जीते हैं राम के लिये मरते हैं, जिनका संबोधन राम राम है।* *जिनकी आस्था, अस्मिता, आत्मगौरव, अभिमान राम हैं, वे सभी, कोई 8000 किलोमीटर से सर पर रामचरण रखे पैदल, कोई कार, कोई गाड़ी, कोई ट्रैन से आ रहे हैं, पर आ रहे हैं,* सब पधार रहे हैं, *पूरा देश नाच रहा है झूम रहा है* जगह-जगह पर पूजा हो रही है, *बंदनवार सज रही है* सांस्कृतिक कार्यक्रम हो रहे हैं नए-नए गाने बनाए जा रहे हैं नई-नई पुस्तक लॉन्च हो रही है नए-नए भजन बनाए जा रहे हैं सामूहिक कार्यक्रम हो रहे हैं गोष्ठियां हो रही है, चर्चाएं हो रही हैं *पूरा राष्ट्र खुशी के मारे सब कुछ भूल कर नर्तन कर रहा है, कीर्तन कर रहा है, भजन कर रहा है,* हर कोई व्यक्ति *आह्लादित है उमंगित है अर्जित है* 500 सालों का इंतजार खत्म हो रहा है, *राम आ रहे हैं*..... *हमारे राम आ रहे हैं*... *वैसे ही* जैसे *रावण* को खत्म करके राम *अयोध्या* पधारे थे. *उस समय केवल अयोध्या ने तैयारियां की थी, अब पूरा देश उनके स्वागत में घी के दीए जला रहा है।।*
*और....*
*सुनो...*
1 राम मंदिर के भूतल का निर्माण समर्पण निधि के ब्याज से ही हो गया है
2 *नेपाल कंबोडिया सिंगापुर श्री लंका इंडोनेशिया थाईलैंड जैसे कई देशों ने अयोध्या में अपने काउंसलेट बनाने के लिए जमीन मांग ली है*
3 अयोध्या में पर्यटन से *55000 करोड़* सालाना आने वाले हैं आसपास के 6-7 जिलों के आर्थिक परिदृश्य में परिवर्तन आने वाला है.
4 अयोध्या में *160 नए होटल* खोलने के लिए प्राइवेट कंपनियों के प्रस्ताव आ चुके हैं
5 करोड़ों रुपए का चढ़ावा राम मंदिर में रोजाना आने वाला है
6 तुम आओ या ना हो अयोध्या *विश्व का सांस्कृतिक चेतना केंद्र बनने वाला है*
7 तुम मानो या ना मानो 22 जनवरी राम मंदिर में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा के दिन *50000 करोड रुपए का व्यवसाय होने वाला है*
8 तुम मानो या ना मानो राम जी के काज में इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने वाली कंपनियों के *शेयरों में कई गुना वृद्धि* हो चुकी है एलएनटी का शेयर ₹400 से 972 पहुंच चुका है और ₹4000 तक जाने वाला है
9 अयोध्या में अब *अंतरराष्ट्रीय पुष्पक विमान चलने वाला है और सरयू में अब क्रूज भी चलने वाला है*
10. *22 जनवरी प्रतिष्ठा के दिन संपूर्ण विश्व टेलीविजन पर लाइव जुड़कर पूरे विश्व में एक नया कीर्तिमान बनाने वाला है*
11 *तुम मानो या ना मानो विरोधियों तुम्हारी दुकान पर बस अब ताला पड़ने वाला है*
◆ *अब तुम मानो या ना मानो अब यह देश ही नहीं पूरा विश्व राममय होने वाला है।◆*

*सिया राम मय सब जग जानी.*
*करहु कृपा जगदंबा भवानी!!!*

*जय श्रीराम...!!,🚩,🚩*

*प्रभु आपसे बस इतनी सी अरदास है....*
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*"जो भी इस पोस्ट को पढ़े, लाइक करें, शेयर करें और फॉरवर्ड करें, बस उस पर अपनी कृपा का हाथ रख देना।"*
*और जब आए अंत समय, तब उसके सम्मुख हो जाना। बस आपसे यही अरदास है कि इस पोस्ट को पढ़ने भेजने शेयर करने वाले को अपने लोक में अपने सेवक "हनुमान"के रूप में स्थान दे देना।*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🚩 *राम काज किये बिना मोहें कहा विश्राम*
🙏🏻🚩 *जय श्रीराम* 🙏🏻🚩

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श्री बाँके बिहारी जी की मंगला आरती क्यों नहीं होती जाने सत्य*

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*श्री बाँके बिहारी जी की मंगला आरती क्यों नहीं होती जाने सत्य*
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एक बार कलकत्ता से बूढ़े ब्राह्मण श्री बिहारी जी के दर्शन के लिए वृंदावन आये तो प्रभु से मिलने के बाद वहीं के हो गए। 

उन्होंने मंदिर के गोस्वामी जी से सेवा मांगी तो स्वामी जी ने कहा - बाबा! इस उम्र में आप क्या सेवा कर पाओगे? 

बाबा ने बहुत विनती की तो स्वामी जी ने श्री बिहारी जी की चौखट पर रात की चौकीदारी की सेवा लगा दी और कहा - बाबा! आपको यह ध्यान रखना है कि कोई चोर चकुटा मंदिर में प्रवेश न कर पाए।

बाबा ने  बड़े भाव से सेवा स्वीकार की।

कई वर्ष बीत गये सेवा करते हुए।

एक बार क्या देखते हैं कि बिहारी जी आधी रात को चल दिये सेवाकुंज की ओर, तो बाबा भी चल दिए उनके पीछे पीछे! सेवाकुंज के नजदीक पहुंचने पर बिहारी जी थक गए। उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो बाबा भी उनके पीछे थे। 

उन्होंने बाबा से कहा कि, मैं बहुत थक गया हूँ आप मुझे सेवाकुंज तक तो पहुंचा दो।

बाबा श्री बांके बिहारी जी को अपने कंधों पर बैठाकर सेवाकुंज की चौखट पर ले गए।

प्रभु ने बाबा से कहा - मुझे यहीं उतार दो और मेरा इंतजार करो।

बाबा के मन में आया कि प्रभु इतनी रात में सेवाकुंज में क्या करने आयें हैं? जानने की इच्छा से उन्होंने आले से झांक कर देखा तो उन्हें दिव्य प्रकाश नज़र आया। उस प्रकाश में उन्होंने श्री बिहारी जी को श्री राधा जी संग रास करते हुए देखा। बाबा की हालत पागलों जैसी हो गई और गिर कर बेहोश हो गए।

सुबह बिहारी जी ने बाबा को पुकारा और बाबा से कहा - बाबा! मुझे मंदिर तक नहीं ले जाओगे।

बाबा ने बिहारी जी को सुबह चार बजे मंदिर में पहुंचाया और गोस्वामी जी से सारा वृत्तांत कहा।

गोस्वामी जी मंगला आरती के लिए बिहारी जी को उठाने लगे तो बाबा ने उनके पांव पकड़ लिये और कहने लगे - मेरे गोविन्द अभी तो सोयें हैं!

कहते हैं कि उसी दिन से साल में जन्माष्टमी को छोड़कर कभी भी श्री बांके बिहारी जी की मंगला आरती नहीं हुई और उसी दिन ही श्री बिहारी जी ने उस बाबा को अपने सेवाधाम में बुला लिया..!!
    *🙏🙏🏿🙏🏻जय जय श्री राधे*🙏🏼🙏🏽🙏🏾

निर्माणाधीन (शिखर, कलश, ध्वजादि रहित) मंदिर में प्राणप्रतिष्ठा की अशास्त्रीयता-- सर्वत्र प्रसारित करें!!

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सावधान
राजनैतिक हिंदू पोस्ट से दुर रहे।
पोस्ट से पुर्व अज्ञानी हिंदु के लिए गीता मे भगवान श्रीकृष्ण का आदेश 
अवश्य स्मरण करने योग्य है।
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श्रीमद्भगवद्गीता 
अध्याय १६ श्लोक २३

यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः।
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्।।16.23।।

देवप्रासाद(मन्दिर) निर्माण के प्रमुख हेतु के विषय में बताते हुए कहा गया है कि देवप्रासाद के प्रत्येक अङ्ग और उपाङ्गो में देव और देवियों के विन्यास करके देवप्रतिष्ठा के समय उसका अभिषेक किया जाता है। इसलिए देवप्रासाद सर्वदेवमय बन जाता है। 

देवप्रासाद को स्थाप्यदेवता/श्रीहरि का स्थूल विग्रह माना गया है। यथा-

'प्रासादो वासुदेवस्य मूर्तिरूपो निबोध मे॥' 
'निश्श्चलत्वं च गर्भोऽस्या अधिष्ठाता तु केशवः।
एवमेष हरिः साक्षात्प्रासादत्वेन संस्थितः॥'
(आग्नेयमहापुराण ६१।१९,२६)

'प्रासादं देवदेवस्य प्रोच्यते तात्त्विकी तनुः।
तत्त्वानि विन्यसेत्पीठे यथा तत्त्वाधिवासकः॥'
(विश्वामित्रसंहिता १४।८४)

'प्रासादो देवरूपः स्यात्...'
(विश्वकर्माविरचित क्षीरार्णव २)

अतः देवप्रासाद की प्रतिष्ठा (विधानवर्णन- आग्नेयमहापुराण १०१ में) के पश्चात प्रासाद का देवता के विग्रह के रूप में ध्यान किया जाता है, जिसमें प्रासाद के मूल या भूतलवर्ती हिस्सों से लेकर शिखर और ध्वज पर्यन्त विभिन्न अंशों में स्थाप्य देवता के विभिन्न अवयवों(अंगों) की कल्पना की जाती है।

ईश्वर उवाच-
प्रासादस्थापनं वक्ष्ये तच्चैतन्यं स्वयोगतः।
शुकनाशासमाप्तौ तु पूर्ववेद्याश्च मध्यतः॥
(आग्नेयमहापुराण १०१।१)
श्रीशिवजी ने कहा- 
स्कन्द! अब मैं मन्दिर की प्रतिष्ठा का वर्णन कर रहा हूँ और उसमें चैतन्य का योग बतला रहा हूँ।

विधायैवं प्रकृत्यन्ते कुम्भे तं विनिवेशयेत्॥
(आग्नेयमहापुराण १०१।१३)
विधिपूर्वक समस्त उपदिष्ट कर्मों को करने के पश्चात उस पुरुष को कलश में स्थापित करना चाहिए।

उक्त श्लोकों के आधार पर यह तथ्य सुस्पष्ट हो जाता है कि प्रासाद(मन्दिर) भगवान् वासुदेव का (स्थूल) मूर्तिरूप है-

पत्ताकां प्रकृतिं विद्धि दण्डं पुरुषरूपिणंम्।
प्रासादो वासुदेवस्य मूर्तिरूपो निबोध मे॥
धारणाद्धरणीं विद्धि आकाशं सुषिरात्मकम्।
तेजस्तत्पावकं विद्धि वायुं स्पर्शगतं तथा॥
पाषाणादिष्वेवजलं पार्थिवं पृथिवीगुणम्।
प्रतिशब्दोद्भवं शब्दं स्पर्श स्यात्कर्कशादिकम्॥
शुक्लादिकं भवेद्रूपं रसमाह्लाद दर्शकम्।
धूपादिगन्धं गन्धं तु वाग्भेर्यादिषु संस्थिता॥
शुकनासाश्रिता नासा बाहू भद्रात्मकौ स्मृतौ।
शिरस्त्वण्डं निगदितं कलशाः मूर्धजाः स्मृताः॥
कण्ठं कण्ठमितिज्ञेयं स्कन्धो वेदी निगद्यते।
पायूपस्थे प्रणाले तु त्वक्सुधा परिकीर्तिता॥
मुखं द्वारं भबेदस्य प्रतिमा जीव उच्यते।
तच्छक्तिं पिण्डिकां विद्धि प्रकृतिं च तदाकृतिम्॥
निश्श्चलत्वं च गर्भोऽस्या अधिष्ठाता तु केशवः।
एवमेष हरिः साक्षात्प्रासादत्वेन संस्थितः॥
जङ्घं त्वस्य शिवो ज्ञेयः स्कन्धे धाता व्यवस्थितः।
ऊर्ध्वभागे स्थितो विष्णुरेवं तस्य स्थितस्य हि॥
(आग्नेयमहापुराण ६१।१९-२७)

'मध्ये ब्रह्मा शिवोऽन्ते स्यात् कलशे तु स्वयं हरिः॥ 
कलशान्ते महाविष्णुः सदाविष्णुस्तदग्रतः।....'
'मेखला रशना कुक्षिर्गर्भः स्तम्भाश्च बाहवः।
मध्यं नाभिश्च हृत् पीठमपानं जलनिर्गमः॥
पादाधारस्त्वहंकारः पिण्डिका बुद्धिरुच्यते।
तदन्ते प्रकृतिः पद्मं प्रतिमा पुरुषः स्मृतः॥
पादाधारस्त्वहंकारः पिण्डिका बुद्धिरुच्यते।
तदन्ते प्रकृतिः पद्मं प्रतिमा पुरुषः स्मृतः॥
घण्टा जिह्वा मनो दीपो दारु स्नायुः शिलाऽस्थि च।
त्वक् सुधा लेपनं मांसं रुधिरं तत्र यो रसः॥
चक्षुः शिखरपार्श्वे तु ध्वजाग्रं च शिखा भवेत्।
तलकुम्भो भवेत् पाणिर्द्वारं प्रजननं स्मृतम्॥
शुकनासैव नासोक्ता गवाक्षं श्रवणं विदुः।
कपोतालिं तथा स्कन्धं कण्ठं चामलसारकम्॥
घटं शिरो घृतं मज्जा वाङ् मन्त्रः सेचन पयः।
नामशैत्यादिवर्णान्नधूपेषु विषयाः स्थिताः॥
रन्ध्रे वातायने धाम्नि लेपे स्थैर्य च खादयः।
पर्वाणि सन्धयो ज्ञेया लोहबन्धास्तथा नखाः॥
केशरोमाणि चैवास्य विज्ञेया दुग्धकूर्चकाः।
प्रासादपादमात्रोच्चः प्राकारः परितो भवेत्॥'
(विष्णुसंहिता १६।६३-७०)

'तत्रापि तत्त्वविन्यासं वक्ष्यामि शृणु तत्त्वतः॥
शिला ध्यातास्य पृथिवी स्नानवेद्याप उच्यते।
तेजो रविकराः ज्ञेयाः जालान्तर्गताः मुने॥
गवाक्षस्तु समीरस्स्यात् गगनं गगनं स्मृतम्।
प्राग्द्वारमुच्यते तस्य कवाटौ कीर्तितौ करौ॥
पादाः पादास्तु विज्ञेयाः पायुः स्याज्जलनिर्गमः।
योनिराणि समाख्याता विमानस्याग्रतो मुने॥
श्रोत्रे कपोतपाली तु त्वक् सुधा परिकीर्तिता।
नेत्रे शिखरपार्श्वे तु जिह्वा ज्ञेया च वेदिका॥
घ्राणं नासा समाख्याता गीर्वाणनिकरान्विता।
श्यामकृष्णौ तथा पीतं रक्तश्वेतौ यथाक्रमम्॥
गन्धमात्रादिकाः पञ्च वर्णास्तु परिकीर्तिताः।
मनो दीपस्तु विज्ञेयः पिण्डिका बुद्धिरुच्यते॥
पादाधारो विमानस्तु प्रकृतिः पिण्डिकान्तरम्।
पञ्चविंशतिको ज्ञेयः प्रतिमा पुरुषः परः॥
विज्ञेया दण्डकूर्चास्तु केशरोमाणि सर्वतः।
विमानमेवं सङ्कल्प्य सर्वतत्त्वसमन्वितम्॥'
(नारदसंहिता १५।१७३-१८१)

ध्वजादि अंगों से रहित देवालयों में तो असुर वास करते हैं। यथा-
ततो ध्वजस्य विन्यासः कर्तव्यः पृथिवीपते।
असुरा वासमिच्छन्ति ध्वजहीने सुरालये॥
(विष्णुधर्मोत्तरपुराण ९४।४४)
अर्थात- हे राजन! तत्पश्चात देवमन्दिर में ध्वज को प्रतिष्ठित करना चाहिए। (क्योंकि) ध्वजविहीन देवालय में असुर वास करना चाहते हैं!

तथा ध्वजारोह करने से भूताप्रेतादि नष्ट होते हैं ऐसा शास्त्रों का स्पष्ट निर्देश है-
चत्वारो वा चतुर्दिक्षु स्थापनीया गरुत्मतः।
ध्वजारोहं प्रवक्ष्यामि येन भूतादि नश्यति॥
प्रासादस्य प्रतिष्ठां तु ध्वजरूपेण मे शृणु। 
ध्वजं कृत्वा सुरैर्दैत्या जिताः शस्त्रादिचिह्नितम्॥
(आग्नेयमहापुराण ६१।१६, २८)

हरिप्रोक्त तथा श्रीविश्वकर्मा विरचित ग्रंथ 'क्षीरार्णव' में विश्वकर्मा जी कहते हैं-
प्रासादो देवरूपः स्यात् पादौ पाद शिलास्तथा। 
गर्भश्चैवोदरं ज्ञेयं जंघा पादोर्ध्व मुच्यते॥
स्तंभाश्च जानवो ज्ञेया घंटा जिह्वा प्रकीर्तिता।
दीपः प्राण रूपो ज्ञेया ह्यपाने जल निर्गतः॥
ब्रह्मस्थानं यदैतच्च तन्नाभिः परिकीर्तिता।
हृदयं पीठिका ज्ञेया प्रतिमा पुरुषः स्मृतः॥
पादचारस्त्वहंकारो ज्योतिस्तच्चक्षुरुच्यते।
तदूर्ध्वं प्रकृतिस्तस्य प्रतिमात्मा स्मृतौ बुधैः॥
तलकुंभादधोद्वार तस्य प्रजननं स्मृतम्।
शुकनासा भवेन्नासा गवाक्षः कर्णउच्यते॥
कायापाली स्मृतः स्कंधे ग्रीवा चामलसारिका। 
कलशस्तु शिरोज्ञेयो मज्जादित्पर संयुतं॥
मेदश्च वसुधा विद्यात् प्रलेपो मासमुच्यते।
अस्थिनो च शिलास्तस्य स्नायुकीलादयः स्मृताः॥
चक्षुषि शिखरास्तस्य ध्वजाकेश प्रकीर्तिताः।
एव पुरुषरूपं तु ध्यायेच्च मनसा सुधीः॥
(विश्वकर्माविरचित क्षीरार्णव, श्लोक- २-९)

यहाँ देवप्रासाद(देवमन्दिर) को अधिष्ठित देवता का शरीररूप माना गया है। देवप्रासाद के कलश को देवता का शिर/मस्तक जानना चाहिए। शिखर को देवता का नेत्र तथा ध्वजा को केश जानना चाहिए।

इन्हीं श्लोकों को प्रतिष्ठामयूख में श्रीनीलकण्ठभट्ट ने उद्धृत किया गया है-

पादौ पादशिलास्तस्य जङ्घा पादोर्ध्वमुच्यते।
गर्भश्चैवोदरं ज्ञेयं कटिश्च कटिमेखला॥
स्तम्भाश्च बाहवो ज्ञेया घण्टा जिह्वा प्रकीर्तिता।
दीपः प्राणोऽस्य विज्ञेयो ह्यपानो जलनिगमः॥
ब्रह्मस्थानं यदेतच्च तन्नाभिः परिकीर्तिता।
हृत्पद्म पिण्डिका ज्ञेया प्रतिमा पुरुषः स्मृतः॥
पादचारस्त्वहङ्कारो ज्योतिस्तच्चक्षुरुच्यते।
तदूर्ध्वं प्रकृतिस्तस्य प्रतिमात्मा स्मृतो बुधः॥
नलकुम्भादधोद्वारं तस्य प्रजननं स्मृतम्।
शुकनासा भवेन्नासा गवाक्षः कर्ण उच्यते॥
कपोतपाली स्कन्धोऽस्य ग्रीवा चामलसारिका।
कलशस्तु शिरो ज्ञेयं मज्जादिप्रदसंहितम्॥
मेदश्चैव सुधां विद्यात्प्रलेपो मांसमुच्यते।
प्रस्थीनि च शिलास्तस्य स्नायुः कीलादयः स्मृताः॥
चक्षुषी शिखरास्तस्य ध्वजाः केशाः प्रकीर्तिताः।
एवं पुरुषरूपं त ध्यात्वा च मनसा सुधीः॥
प्रासादं पूजयेत्पश्चाद्‌गन्धध्वजादिभिः शुभेः।
सूत्रण वेष्टयेद्देवं वासस्तत्परिकल्पयेत्॥
प्रासादमेवमभ्यर्च्य वाहनं चाग्रमण्डपे। इति।
(प्रतिष्ठामयूखे, श्रीनीलकण्ठभट्ट)

अर्थात- देवप्रासाद में पादशिला को प्रासादरूपी देवता(श्रीहरि) के दोनों चरणों के रूप में ध्यान करे। पाद के ऊपर के भाग को प्रासादरूपी देवता के जंघाओं के रूप में ध्यान करे। गर्भगृह को श्रीहरि का उदर (पेट) समझना चाहिए और प्रासाद के कटिभाग को कटि की मेखला समझना चाहिए। प्रासाद के स्तम्भों को प्रासाद रूपी देवता की भुजाएँ समझना चाहिए। घण्टा को जिह्वा, दीपक को प्राण और जलनिर्गम को अपान समझना चाहिए। प्रासाद के गर्भगृह की भूमि के मध्य में स्थित ब्रह्मस्थान को श्रीहरि की नाभि कहा गया है। पिण्डिका को हृदय कमल समझना चाहिए और पिण्डिका के ऊपर स्थापित प्रतिमा को पुरुष (आत्मा) समझना चाहिए। पादचार को उस प्रासाद रूपी देवपुरुष का अहङ्कार, ज्योति को नेत्र, उसके ऊपर के भाग को प्रकृति और प्रतिमा को विद्वानों ने आत्मा कहा है। नलकुम्भ के अधोवर्ती द्वार को उसका जननेन्द्रिय कहा गया है। शुकनासा को उसकी नासिका और गवाक्ष को कान कहा गया है। कपोतपाली को उसका (श्रीहरि का) स्कन्ध (कन्धा), अमलसारिका को ग्रीवा (गरदन), प्रासाद-शिखरस्थ कलश को शिर और ईंट-पत्थर आदि को जोड़ने के लिए प्रयुक्त गारे को मज्जा आदि समझना चाहिए। सुधा के लेप को मेद, प्रलेप को मांस, शिलाओं, इंटो आदि को अस्थियाँ और कोलो आदि को स्नायु समझे। मन्दिर के शिखरों को श्रीहरि के दोनों नेत्र, ध्वजों और पताकाओं को केश कहा गया है। इस प्रकार विद्वान् आचार्य अपने मन में उस प्रासाद का पुरुष रूप में ध्यान करके शुभ गन्धों और ध्वजाओ आदि से उस प्रासाद का पूजन करे। उस प्रासाद रूपी देव को सूत्र से वेष्टित करे बऔर उस वेष्टन-सूत्र में प्रासादरूपी देवता के वस्त्र की कल्पना करें।

उक्त शास्त्रीयसंदर्भों के आधार पर मन्दिरको अधिष्ठित देवता का शरीर माना जाता है। कलश को देवता का शिर, शिखर को देवता का नेत्र तथा ध्वजा को केश जानना चाहिए।

तब इन अंगों से विहीन शरीर में आत्मा(मूर्ति) की प्रतिष्ठा कैसै हो सकती है? बिना शिर वाले, बिना नेत्र वाले, बिना केश वाले ऐसे निर्माणाधीन प्रासादपुरुष के शरीर(मन्दिर) में आत्मा की प्रतिष्ठा पूर्णतः अशास्त्रीय ही सिद्ध होती है! विष्णुधर्मोत्तरपुराण के अनुसार ऐसे हीनांग ध्वाजादि रहित प्रासाद में तो असुर ही निवास करेंगे-
असुरा वासमिच्छन्ति ध्वजहीने सुरालये॥
(विष्णुधर्मोत्तरपुराण ९४।४४)

हर हर महादेव
आध शंकराचार्य भगवान कि जय हो
हर हर शंकर
जय जय शंकर


🚩 *राम काज किये बिना मोहें कहा विश्राम*
🙏🏻🚩 *जय श्रीराम* 🙏🏻🚩

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