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रविवार, 14 जनवरी 2024

#जब_राम_गये_ससुराल

#जब_राम_गये_ससुराल
कहते हैं लंका से लौटने के बाद और राज्याभिषेक के बाद माता सुनयना ने जँवाई बेटा को मिथिला आने का सासू माँ का लाड़ भरा आग्रह भेजा। 

राम भला कैसे इनकार करते। 

लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न को भी ससुराल जाने का चाव पूरा हुआ। 

हनुमान उन दिनों वहीं थे सो उनको भी आने का आग्रह हुआ। 

सुग्रीव, अंगद, नल, नील आदि ने प्रभु से शिकायत की कि ये तो सरासर पक्षपात है। 

मंद मंद मुस्कुराते हुए प्रभु ने सबको  स्वीकृति दे दी। 

वानरों से भलीभांति परिचित डिग्निटी पसंद लक्ष्मण की पेशानियों पर बल पड़ गए कि कहीं संभ्रांत आर्य नागर परंपरा से अनभिज्ञ सरल परंतु उजड्ड वानर ससुराल में भैया के साथ साथ पूरे रघुवंश को हमेशा के लिए हंसी का पात्र न बना दें। 

लक्ष्मण इस बात से भली भांति परिचित थे कि औपनिषदिक जनक परंपरा के गंभीर राजाओं की श्रृंखला के बावजूद  मिथिला वाले किसी की टांग खींचकर मजे लेने से कभी बाज नहीं आते हैं और बुरा मानने पर कवित्तों के माध्यम से सदियों तक ताना देने में समर्थ हैं।  

लेकिन भैया का आदेश टाल भी नहीं सकते थे इसलिए उन्होंने सुग्रीव, हनुमान, अंगद, नल नील आदि को नागर परंपराओं की ट्रेनिंग देना शुरू किया और बाकी वानरों से कहा कि वे ठीक वैसा ही करें जैसा उनके यूथपति करें। 

कैसे प्रणाम करना है,
कैसे प्रणाम का उत्तर देना है, 
कैसे बैठना है, उठना है, 

विशेषतः सामूहिक भोज के राजसी नियम कायदे क्या हैं। 

रास्ते भर ये ट्रेनिंग लेते हुए अयोध्या का यह अद्भुत सार्थ मिथिला पहुँचा। 

सुसंस्कृत कर्मकांडी वासिष्ठ आचार्य, अयोध्या के संभ्रांत श्रेष्ठि, पौरजन, श्रृंगवेरपुर के श्यामल निषाद, सौराष्ट्र से आये ऋक्ष और दक्षिण के वानर

शिव बारात का दृश्य पुनः उपस्थित हो गया। 

मिथिला में जवाईयों व उनके मित्रों, सहयोगियों का हार्दिक स्वागत हुआ। 

खाना पीना, नृत्य संगीत उत्सव के बीच श्रीराम के लौटने के आग्रहों को ठुकराते और मैथिलों के मनुहारों के बीच एक महीना कब बीत गया, पता ही नहीं चला।  

अंततः अनासक्त राजर्षि सीरध्वज को भी भाव भरे भारी मन से लौटने की अनुमति देनी पड़ी। 

विदाई पूर्व संध्या पर भव्य सामूहिक भोज का आयोजन हुआ। 

लक्ष्मण बहुत संतुष्ट थे। 
सबकुछ उनकी ट्रेनिंग व प्लान के हिसाब से ही हुआ व सबकुछ ठीक हुआ। 

संध्या को भोज में सब पंक्तियों में विराजे। 

अपनी अपनी रुचि के अनुसार सामिष निरामिष व्यंजनों की लंबी तालिका थी और विशिष्ट व्यंजन के रूप में था- कटहल  

हनुमान जी को कटहल बहुत भाया विशेषतः अलोने स्वाद की उसकी गुठली। 

हनुमान जी ने कटहल की गुठली निकालने को उंगलियों से दवाब डाला और गुठली हवा में उछल गई। 

हनुमान जी के दिमाग में कौंधा,"हो गई बेइज्जती।" 

और इज्जत बचाने की खातिर वे उस गुठली को पकड़ने उछल पड़े। 

अंगद भी उधर देख रहे थे। 

सीनियर की उछाल को इशारा माना और उन्होंने भी कटहल की गुठली उछाली और उछल पड़े। 

फिर क्या था। 

कटहल की गुठलियां हवा में उछलने लगीं और उनके साथ ही वानर भी। 

धीर गंभीर राम हंस पड़े। 

राम को हंसता देख उत्साहित हनुमान ने दूसरी गुठली उचकायी और फिर उछल पड़े।

फिर क्या था! घमासान धमाचौकड़ी मच गई। 

अयोध्या वाले झेंपे जा रहे थे और मिथिला वाले हंस हंस कर मजे लिए जा रहे थे। 

लक्ष्मण सिर पकड़कर बैठ गए और हनुमान जी ने  पूरी मासूमियत से आकर पूछा, "लक्ष्मण भैया, हम सब ठीक -ठाक कर रहे  है न?" 

इस भोले से प्रश्न को सुनकर रोकते रोकते भी लक्ष्मण की हंसी छूट पड़ी। 

इधर  कभी न देखी गई राम की उन्मुक्त हँसी जारी थी। 
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#मेरे_राम_आ_रहे_हैं!

🚩 *राम काज किये बिना मोहें कहा विश्राम*
🙏🏻🚩 *जय श्रीराम* 🙏🏻🚩

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