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मंगलवार, 4 फ़रवरी 2020

❛❛ RSS पर उंगली उठाने वालोें👇🏻 को इसे पढ़ाओ ! ❜❜

❛❛ RSS पर उंगली उठाने वालोें👇🏻 को इसे पढ़ाओ ! ❜❜

स्थान - श्रीनगर ( कश्मीर ) !
समय - 1965 का युद्ध !

❛❛ शत्रु तेज गति से आगे बढ रहे थे ! कश्मीर को शीघ्र सैन्य मदद चाहिए थी ! ❜❜

❛❛ दिल्ली के सेना कार्यालय से श्रीनगर को संदेश प्राप्त हुआ कि किसी भी परिस्थिति में श्रीनगर के हवाई अड्डे पर शत्रु का कब्जा नहीं होना चाहिए ! शत्रु नगर को जीत ले, तो भी चलेगा, किन्तु हवाई अड्डा बचना चाहिए ! हम हवाई जहाज से सेना के दस्ते भेज रहे है ! हवाई अड्डे पर सर्वत्र हिम के ढेर लगे हैं ! हवाई जहाज उतारना अत्यंत कठिन है ! श्रीनगर सें यह प्रतिउत्तर आया ! ❜❜

❛❛ मजदूर लगाकर तुरन्त हटाइए ! चाहे कितनी भी मजदूरी देनी पड़े और इस काम के लिए कितने भी मजदूर लगाने पड़े, व्यवस्था कीजिए ! ❜❜
 
❛❛ मजदूर नही मिल रहे हैं ! ❜❜

❛❛ और ऐसे समय में सेना के प्रमुखों को संघ याद आया ! ❜❜

❛❛ रात्रि के ग्यारह बजे थे. एक सैन्य जीप संघ - कार्यालय के आगे आकर रुकी ! उसमें से एक अधिकारी उतरे ! ❜❜

❛❛ कार्यालय में प्रमुख स्वंय सेवकों की बैठक चल रही थी ! प्रेमनाथ डोगरा व अर्जुन जीं वही बैठे थें ! ❜❜

❛❛ सेनाधिकारी ने गंभीर स्थिति का संदेश दिया ! फिर उसने पूछा - आप हवाई अड्डे पर लगे हिम के ढेर हटानें का कार्य कर सकेंगे क्या ? ❜❜

❛❛ अर्जुन जी ने कहा - अवश्य ! कितने व्यक्ति सहायता के लिए चाहिए ! ❜❜

❛❛ कम से कम डेढ़ सौ, जिससे तीन - चार घंटों में सारी बरफ हट जायेगी ! ❜❜

❛❛ अर्जुन जी ने कहा - हम छः सौ स्वयं सेवक देते है ! ❜❜

❛❛ इतनी रात्रि में आप इतने ? सैन्य अधिकारी ने आश्चर्य से कहा ! ❜❜

❛❛ आप हमें ले जाने के लिए वाहनों की व्यवस्था कीजिए ! ४५ मिनट में हम तैयार है ! ❜❜

❛❛ संघ कि पद्धति का कमाल था कि तय समय पर सभी ६०० स्वयं सेवक कार्यालय पर एकत्र होकर साथ साथ चले गए ! ❜❜

❛❛ दिल्ली को संदेश भेजा गया - बरफ हटाने का काम प्रारंम्भ हो गया है ! हवाई जहाज कभी भी आने दें ! ❜❜

❛❛ इतनी जल्दी मजदूर मिल गये क्या ? ❜❜

❛❛ हाँ, पर वे मजदूर नही, सभी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्य हैं ! ❜❜

❛❛ रात्रि के डे़ढ बजे वे काम पर लग गए ! २७ अक्टूबर को प्रातः के समय प्रथम सिख रेजीमेन्ट के ३२९ सैनिक हवाई जहाज से श्रीनगर उतरे और उन्होने बड़े प्रेम से स्वंय सेवको को गले लगाया ! फिर क्या था एक के बाद एक ऐसे आठ हवाई जहाज उतरे ! ❜❜

❛❛ उन सभी में प्रयाप्त मात्रा में शस्त्रास्त्र थे ! सभी स्वंय सेवको ने वे सारे शस्त्रास्त्र भी उतार कर ठिकाने पर रख दिये ! ❜❜
  
❛❛ हवाई अड्डा शत्रु के कब्जे में जाने से बच गया ! जिसका सामरिक लाभ हमें प्राप्त हुआ ! ❜❜

❛❛ हवाई पट्टी चौड़ी करने का कार्य भी तुरन्त करना था, इसलिए विश्राम किये बिना ही स्वंय सेवक काम में जुट गये ! ❜❜

संदर्भ पुस्तक : न फूल चढे न दीप जले !

!! नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे !!

❛❛ आपको जानकारी अच्छी लगी हो और R S S  के बारे मे जान के गर्व महसूस हुआ हो तो इस संदेश को आगे भी भेजे ••• !!! ❜❜

घरेलू टोटके

🍚🍚 घरेलू टोटके 🍚🍚

1. दही को जल्दी और अच्छी जमाने के लिए रात को जमाते वक्त दूध में हरी मिर्च का डंठल तोड़ कर डाल दें ! दही जबरदस्त जमेगी.

2. अगर सब्जी में नमक ज्यादा हो गया हो तो आटे को गूंथ कर उसके छोटे-छोटे पेड़े (लोइयां) बना कर डाल दें, नमक कम हो जायेगा |

3. प्याज को काट कर बल्ब या ट्यूब लाईट के साथ बाँधने से मच्छर व छिपकिली और मोर का पंख घर में कहीं भी लगाने से केवल छिपकिली नहीं आती |

4. यदि फ्रिज में कोई भी खुशबू या बदबू आती है तो आधा कटा हुआ निम्बू रखने से ख़त्म हो जायेगी.|

5. चावल के उबलने के समय 2 बूँद निम्बू के रस की डाल दें | चावल खिल जायेंगे और चिपकेंगे नहीं |

6. चीनी के डब्बे में तीन या चार लौंग डालने से चींटी नहीं आती.

7. बरसातों के दिनों में अक्सर नमक सूखा नहीं रह पाता वह सिल (गीला गीला सा) जाता है | आप नमक की डिबिया में 4-5 चावल के  दाने डाल दें | बहुत कम उसमे सीलापन आता है तब.

8. मेथी की कड़वाहट हटाने के लिये थोड़ा सा नमक डाल कर उसे थोड़ी देर के लिये अलग रख दें.

9. आटा गूंधते समय पानी के साथ थोड़ा सा दूध मिलाये। इससे रोटी और पराठे का स्वाद बदल जाएगा.

10.  जूते यदि पालिश से साफ नहीं हो रहे हों तो पेट्रोल लगा कर साफ कर लें। जूते चमक उठेंगे।

11. गंदे कपड़ों को उबले हुए आलू के पानी से साफ करें। कपड़े बिल्कुल साफ हो जायेंगे।

12.  फिल्टर काफी बनाने के बाद बचे हुए मिश्रण से बाथरूम का फर्श धोएं। फर्श चमक उठेगा।

13.  जल जाने पर जले हुए स्थान पर केला मसल कर लगा लें, फफोले नहीं बनेंगे।

14.  कपड़ों या बर्तनों से स्टिकर अथवा लेबल के निशान हटाने के लिये उसे सफेद स्पिरिट से साफ करें।

15.  जिस स्थान से चीटियां ज्यादा निकलती हों, वहां हल्दी तथा बोरिक पाउडर मिलाकर छिड़क दें। चीटियां नहीं आएंगी।

16.  मच्छर ज्यादा हो गए हों तो तवे या फ्राइंग पैन में थोड़ा सा काफी पाउडर डालकर भून दें और इसका धुआं कमरे में कर दें।

17.  सिल्की साड़ियों को डिटर्जेंटसे धोने के बजाय इन्हें धोने के लिये शैम्पू का प्रयोग करें।

18.  बालों में चमक लाने के लिये एक मग पानी में सिरका डाल कर बालों में रगड़ें और कुछ देर बाद धो लें। बालों में चमक आ जाएगी।

19.  कपड़े धोते समय पानी में थोड़ा सा नमक मिला दें। कपड़े आसानी से साफ हो जाएंगे और इनमें चमक भी आ जाएगी।

20.  शरीर में अगर कहीं चोट लग जाए या कट जाए और डाक्टर तक पहुँचने में देर लगे तो तुरंत खून निकलने वाली जगह पर चुटकी भर चाय पत्ती डालें | फिर उस स्थान पर रुई रखें और जोर से दबाए रखें | चाय पत्ती में टेनिन होने के कारण खून जमने लगता है |

भारत में लोग ठगे कैसे जाते हैं?

हाल ही में मुझे एक मजेदार मार्केटिंग ट्रिक पता लगी है, जिसे मैं आप सब के साथ साझा करना चाहूंगा। मैं शहद का नियमित उपभोक्ता हूं और डाबर शहद खरीदता हूं। यह कई तरह की पैकेजिंग में उपलब्ध है और अच्छा उत्पाद है।
खैर, पिछली बार जब मैं खरीदारी के लिए गया, तो मैंने इस उत्पाद का एक आकर्षक ऑफर देखा- '1 के साथ, 1 मुफ्त’।
मुझे 1 उत्पाद की कीमत पर 2 उत्पाद मिल रहे थे - MRP ₹ 280 में। इस तरह मैं असल में 280 रुपये की बचत कर रहा था। मैंने बिना ज्यादा सोचे, इसे खरीद लिया और मैं अपने घर वापस आकर बहुत खुश हुआ क्योंकि शहद एक महंगी चीज है और मैं इसका दैनिक आधार पर उपभोग करता हूं।
उस दिन बाद में, जब मैं खाली था तो मैंने सोचा कि क्यों न असली मुनाफे का हिसाब लगाया जाए। थोड़ी-सी गणित लगाने के बाद जो नतीजे निकलकर आए वो इस तरह हैं:
मैं आइटम 1 & 2 को नियमित रूप से खरीदता हूं, जबकि आइटम 3 ऑफर पर खरीदा था। तो चलिए पता लगाते हैं कि मुझे 1 रुपये में कितना शहद मिल रहा है (प्रत्येक आइटम के लिए)।
आइटम 1
शुद्ध मात्रा - 300 ग्राम
MRP - ₹ 110
डिस्काउंट के बाद मुझे यह ₹ 100 का मिला।
300/100 =3 (यानि ₹ 1 में 3.00 ग्राम शहद)
आइटम 2
शुद्ध मात्रा - 600 ग्राम
MRP - ₹ 199
डिस्काउंट के बाद मुझे यह ₹ 190 का मिला।
600/190 =3.15 (यानि ₹ 1 में 3.15 ग्राम शहद)
तो, सामान्य स्थिति में मुझे 1 रुपये में 3 ग्राम शहद मिल रहा है। इस लॉजिक के हिसाब से "1 के साथ 1 मुफ्त" पर ऑफर में मुझे 1 रुपये में लगभग दोगुना मिलना चाहिए। चलो इसका भी हिसाब लगाकर देख लेते हैं।
आइटम 3
शुद्ध मात्रा - 400 ग्राम 1 पैक में, तो 2 में 800 ग्राम
MRP - ₹ 280
डिस्काउंट के बाद मुझे यह ₹ 266 का मिला।
800/266 =3.007 (यानि ₹ 1 में 3.007 ग्राम शहद)
इस तरह, मुझे "1 के साथ एक मुफ्त" ऑफर के बावजूद उतनी ही मात्रा में शहद मिल रहा है। वास्तव में अगर मैं "1 के साथ एक मुफ्त" ऑफ़र के बिना आइटम-3 खरीदता हूं, तो इसमें मेरा घाटा है।

क्रोसब्रीड से उत्पन्न कुछ विचित्र और खूबसूरत जानवर



क्रोसब्रीड से उत्पन्न जानवर के नामकरण में आधा नाम नर से और आधा नाम मादा से लिया जाता है। इसके अलावा ऐसे जानवर अधिकतर बांझ उत्पन्न होते हैं। ऐसे ही कुछ विचित्र और खूबसूरत जानवरो में निम्नलिखित जानवर प्रमुख हैं।
नर शेर ( लायन)और मादा बाघ (टाइगर) के मिलन से उत्पन्न "लाईगर"।
नर बाघ (टाइगर) और मादा शेर(लायन) के मिलन से उत्पन्न "टाइगोन"।
जेब्रा और गधे(डंकी) के मिलन से "जोंकी"।
नर जगुआर और मादा शेर के मिलन से "जैगलायन"।
भेड़ और बकरी के मिलन से "जीप"।
पोलर बियर और ब्राउन बियर से "ग्रोलर बियर"।
काईयॉट(एक प्रकार का छोटा भेड़िया) और भेडिये (वॉल्फ) के मिलन से "काइवॉल्फ"।
ज़ेबरा और घोड़े की प्रजाति से "जेबरोइड"।
नर व्हेल व मादा डॉल्फिन से "वोल्फिन"।
भैंसे और गाय से "बीफेलो"।
घोडे व गधी से "खच्चर"।
ऊंट(केमल) और लामा से "कामा"।
नोट: ऐसे और भी काफी जानवर हैं।
मूल स्रोत:

कोरौना_वायरस के प्रोपेगैंडा से बचें क्योंकि ज्यादा खतरनाक #MediaFlu है।❗

कोरौना_वायरस के प्रोपेगैंडा से बचें क्योंकि ज्यादा खतरनाक #MediaFlu है।❗


हर साल मार्केट मे लोंच होता है नया वायरस आइए जानते है क्यो ?

आयुर्वेद के प्रखर वक्ता वैद्य नवनीत भारद्वाज जी द्वारा सच्चाइ को उजागर करने वाला लेख ।

#CoronaVirus #WuhanCoronaVirus

हर साल फार्मा कंपनियां ऐसे वायरस खुद बनाती है और लोगो को मरवाती है और फिर मीडिया में प्रोपेगैंडा फैलाती है जिसके लिये वैक्सीनेशन या दवाओं का बड़ा बाजार मंदी के दौर तक मे एकदम से खुल जाता है।  हजारो करोड़ो कमाने के लिये लगभग हर 2-5 वर्ष में एक नया वायरस बाजार में आता है।

विशेष - ध्यान रहे भारत मे भूगोल में अच्छे से अच्छा वायरस अपना दम तोड़ देता है लेकिन यदि आप तुलसी, गौमूत्र अर्क या  उत्तम ताजा गौमूत्र या हल्दी का सेवन करते रहेंगे तो  वायरस कुछ नही बिगाड़ सकता।

बंध करो अब SAAR ,Ebola ,SwineFlu ,BirdFlu ,ZikaVirus ,NipahVirus अब कोरोना  का रोना 

नोट- कोरोना वायरस से आयूर्वेद प्रेमियों को घबराने की जरूरत नहीं है. शुद्ध सात्विक आहार विहार का पालन करे. गिलोय और तुलसी का नियमित सेवन करें. यही दोनों औषध किसी भी तरह के respiratory infection से बचाने के लिए पर्याप्त है. याद रखे किसी भी वायरस को नष्ट नहीं किया जा सकता है. लेकिन स्वयं का प्रतिरोधक तंत्र इतना मजबूत कर सकते हैं कि यह वायरस हानि ना कर सके. इस काम के लिए गिलोय और तुलसी पर्याप्त हैं.
 गिलोय की 6 - 7 इंच लंबे तने को चबाते हुए रस निगल लें. तुलसी की पत्तियों को पीसकर शुद्ध शहद मिलाकर चाट लें. एक दो काली मिर्च मिला लें. इतने से ही इम्यून सिस्टम बे‍हतर होने लगेगा.
यदि किसी को गिलोय को चबाना चूसना तुलसी की पत्तियों को पीसना सिरदर्दी का काम लगता है तो बाजार से नामी गिरामी फार्मेसी की तुलसी घनवटी और गिलोय सत्व ले आये . दो गोली तुलसी घनवटी की चबाकर ऊपर से एक ग्राम गिलोय सत्व मिला हुआ शहद चाट लें. बस हो गया काम कोरोना ही नहीं किसी भी प्रकार के वायरस के प्रति अभेद्द्य सुरक्षा कवच इन दोनों के सेवन से मिल जाता है.

Note- इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करें ताकि किसी  रोगी को इसका फायदा मिल सके

#वैदिक_भारत

पकौड़ा बेचने वाले व्यापारी खौलते तेल में हाथ डालकर पकौड़ा तलते हैं यह कोई ट्रिक है या कोई चमत्कार है?


लोग अपने दुकान की बिक्री बढ़ाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाने रहते हैं और आजकल बहुत से रेस्टोरेंट वालों ने अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए एक बेहद आश्चर्यजनक तरीका अपनाया है और वह गर्म तेल में यानी खौलते तेल में हाथ डालकर पकौड़ा तलना।
इसे देखने के लिए लोगों की काफी भीड़ होती है। सोशल मीडिया पर मुफ्त में पब्लिसिटी मिलती है कई मेंस्ट्रीम मीडिया वाले भी इसे कवर करने पहुंचते हैं और देखते ही देखते पकौड़े वाले की बिक्री बहुत बढ़ जाती है।
पहले इलाहाबाद में किसी रेस्टोरेंट
वाले ने यह ट्रिक किया फिर दिल्ली में फिर नोएडा में फिर अहमदाबाद में फिर सूरत में फिर इंदौर में यानी कि अब बहुत से रेस्टोरेंट वाले अब इस ट्रिक को आजमा कर अपनी बिक्री बढ़ा रहे हैं।
लेकिन आप जानकर चौक जाएंगे यह ना कोई जादू है ना कोई चमत्कार है ना कोई दैवीय शक्ति है बल्कि यह एक विज्ञान है और आप भी खौलते तेल में हाथ डाल सकते हैं।
खौलते तेल में हाथ डालकर पकौड़ा निकालने के पीछे जो वैज्ञानिक कारण है उसे Leidenfrost effect कहते हैं इस इफ़ेक्ट का यह मतलब है कि खौलते तेल में हाथ डालकर कुछ भी बाहर निकाल सकता है उसके पहले उसे अपना हाथ ठंडे पानी में डालना होगा गर्म तेल हाथ पर पड़ते ही सबसे पहले वह पानी को गर्म कर कर भाप में बदल देता है और यह भाप गर्म तेल को हाथ की त्वचा के संपर्क में नहीं आने देता और यह असर कुछ ही समय के लिए रहता है इसीलिए हाथ कुछ सेकंड बाद बाहर निकाल लेना पड़ता है।
दरअसल सभी पकौड़े वाले पहले अपने हाथ को ठंडे पानी में डुबो देते हैं फिर वह खोलते तेल में हाथ डालते हैं

यदि कनखजूरा कान में घुस जाये और काट ले तो


गर्मियों के मौसम में कई सारे कीडे मकौड़े बाहर आ जाते है। जिनसे हमें कई तरह का खतरा बना रहता है। कई बार यह हमारे कान में घुस जाते है। जिससे बहुत पीड़ा होती है। हम घर पर भी इसे निकालने का प्रयास करते है। लेकिन यह संभव नहीं हो पाता है। और चिकित्सक तक ले जाने तक हमे कई सारी परेशानियों का समाना करना पड़ जाता है। इस दौरान इसके हमारे कान में काटने का भी डर होता है।
जिससे कान में कई तरह के इनफेक्शनंस भी हो सकते है।
कान मे घुसने वाले कीडों में चींटी, कसारी, व कनखजूरा अगर चींटी जैसा चीज कान में चली जाए तो सामान्य तौर पर पानी कान में डालने पर निकल जाती है। वहीं इससे ज्यादा परेशानी भी नहीं होती है। लेकिन जब कन खजुरा कान मे चला जाए तो बहुत सारी परेशानियों का समाना करना पड़ता है। इसके डंक मारने पर बहुत तेज दर्द होता है।
वहीं इसके काटने पर हमारे शरीर मे ऑक्सीजन की मात्रा कम होनें लगती है। और हमारा शरीर मे थकावट महसूस होनें लगती है। इसके कान में चले जाने पर सेंधा को पानी में मिलाकर कान में डाले जिससे कनखजूरा या तो कान में ही मर जाएगा। या फिर पानी के साथ बाहर आ जाएगा
क्योंकि सेंधा नमक की वजह से यह ज्यादा दैर तक कान में नहीं रह सकता है। जब यह कान से निकल जाए तब भी चिकित्सक की सलाह लेना जरूरी है। क्योंकि इसके डंक से कई परेशानिया हो सकती है।
कानखजूरा नमक यह जीव अक्सर गर्मियों के मौसम के अधिक देखने को मिलता है। वैसे तो गर्मियों के मौसम में कई प्रकार के अन्य खतरनाक जीव, जंतु, कीड़े-मकोड़े अपने अपने बिलो से बहार निकल आते है। पर उन सभी जीवो में कनखजूरा बहुत ही अधिक खतरनाक जीव होता है। इसलिए सोते हुए व्यक्ति को काटना जैसी घटना कई बार देखने को मिलती है। वैसे तो कनखजूरे का जहर और इसका काटना बहुत अधिक जानलेवा नहीं होता है। पर यदि एक बड़े अकार का गोजर किसी बच्चे या कमजोर हृदय वाले व्यक्ति को कटा ले। और उसका समय पर इलाज न हो तो उसे हृदय आघात भी हो सकता है। पर यह समस्या अतयंत दुर्लभ है क्योकि ऐसे मामले काम देखने को मिले है। सामन्यतः यह भी देखा गया है की कनखजूरा काटने के अलावा कई बार कान के अंदर भी घुस जाता है।
यदि कनखजूरा कान में घुस जाये और काट ले तो निम्न लक्षण महसूस हो सकते है –
  • कान लाल होना
  • कान में खुजली होना
  • कान में जलन
  • कान में दर्द होना
  • कान में घाव होना
  • कान का भारी होना आदि इसके लक्षण हैं।
  • सावधानियाँ व रोकथाम
यदि स्थिति बहुत अधिक गंभीर न हो तो कनखजूरे के द्वारा काटने पर उसका इलाज सामान्य तरीको से किया जा सकता है। पर अक्सर ऐसा माना जाता है की, इलाज से बेहतर सावधानी है। तो आइये जानते है की किन सावधानियों को बरतने से आप कनखजूरे के द्वारा काट खाने या कान में घुसने की समस्या से बच सकते है।
यह सभी सावधानी निम्नलिखित है –
  • गर्मी व बरसात के मौसम में खुले में जमीन पर न सोएँ
  • जूता पहनने से पहले उसे जांच ले व नंगे पैर न रहे
  • घर के अंदर पलंग पर ही सोएँ
  • सोते समय खुद को चादर से ढँक कर रखे
  • कान को किसी रुमाल या कपडे से बांध कर सोएँ
बच्चो को जमीन में पाए जाने वाले खुले बिलो से दूर रखें।।
कनखजूरा के काटने पर घरेलु उपाय
1. सेंधा नमक
सेंधा नमक बहुत ही कारगर तरीका है। अगर कनखजूरा किसी व्यक्ति के कान में घुस जाये तो सेंधा नमक को पानी में मिला कर कान में डालने से वह मर जाता है। और आसानी से कान से बहार निकल आता है।
2. चीनी (शक्कर)
यदि कनखजूरे आपके शरीर से चिपक जाये तो उस कनखजूरे के मुँह पर चीनी डालने से वह अपनी पकड़ ढीली कर देता है। और तुरंत आपके शरीर से अलग हो जाता है।
3. हल्दी व गाय का घी
जब किसी व्यक्ति को कनखजूरा काट ले। तो हल्दी में सेंधा नमक व गाय का घी मिला कर एक मिश्रण तैयार कर लें। और कनखजूरे द्वारा काटे गए स्थान पर यह मिश्रण लेप करने से कनखजूरे का विष ख़त्म हो जाता है व तुरंत रहत मिलती है।
4. ठंडा पानी या बर्फ
कनखजूरे के द्वारा काटे जाने पर, घाव वाले स्थान को तुरंत ठन्डे पानी से धोये व बर्फ से सिकाई करें। इस से उस स्थान की नसे सुन्न पढ़ जाएँगी व खून का बहना रुक जायेगा, और जहर आपके शरीर में नहीं फैलेगा।

शुक्रवार, 31 जनवरी 2020

आजकाल मास्टरनियों के जो हाल है उण नै बयां करती मारवाड़ी र मांय लिखी ये दो चारेक लाइनाँ...

आजकाल मास्टरनियों के जो हाल है उण नै बयां करती मारवाड़ी र मांय लिखी ये दो चारेक लाइनाँ...


मैडम जद हूं स्कूल जावण लागी,
 दर्पण ने छोड़कर शाला दर्पण पर समय बितावण लागी।

भूल गई टाबरां टीकरां ने,
सारे टाइम मोबाइल चलावण लागी।
सुबह घरां टाइम हूं खाणों कदै बण कोनी,
पर स्कूल में टेम हूं खाणों खुवावण लागी।
मैडम जद हूं स्कूल जावण लागी,
 दर्पण ने छोड़कर शाला दर्पण पर समय बितावण लागी।

घर हूं बाहर कदे निकली कोनी,
पर इब स्कूल में,
 स्कूटी पे एकली ही जावण लागी।
बांध के मुंह पर कपड़ों,
मुंह धूल सूं बचावण लागी।
मैडम जद हूं स्कूल जावण लागी,
 दर्पण ने छोड़कर शाला दर्पण पर समय बितावण लागी।

कदे किं की भी हाजिरी  लगाई कोनी जीवन में,
आजकाल ऑनलाइन हाजिरी लगावण लागी।
कदे ही टेम पर तैयार कोनी होयी,
पर इब टेम हूं स्कूल में खड़ी तैयार पावण लागी।
मैडम जद हूं स्कूल जावण लागी,
 दर्पण ने छोड़कर शाला दर्पण पर समय बितावण लागी।

घर की और टाबरां की कांस तो पहला सूं ही थी,
इब ऑनलाइन हाली कांस भी इनै खावण लागी।
बावली होगी स्कूल की भाग दौड़ में,
स्कूल और कागज कारवाही के नाम हूं ही घबरावण लागी।
मैडम जी जद हूं स्कूल जावण लागी,
 दर्पण ने छोड़कर शाला दर्पण पर समय बितावण लागी।

कदे सासू की सुनी कोनी,न आदमी की सुणी,
 पर इब रोज पीईईओ कन सूं डाँट खावण लागी।
अगले जन्म मोहे मास्टरनी ना बणा दीज्यो,
टाबरां न बस आ ही बात सिखावण लागी।
मैडम जद हूं स्कूल जावण लागी,
 दर्पण ने छोड़कर शाला दर्पण पर समय बितावण लागी.....

शनिवार, 18 जनवरी 2020

सनातनी स्त्रियाँ भी सोने के मृग के कारण घर में कलह न करें

स्त्रियों के लिए 

( सभी स्त्रियाँ अवश्य पढ़ें ) 

यह पोस्ट मैं विशेष रूप से स्त्रियों और उन परिवारों के लिए लिख रहा हूँ जिनकी बेटियाँ teen age में प्रवेश कर रहीं हैं ।

घटना का वर्णन वाल्मीकि रामायण के अनुसार है ।

राम रावण युद्ध समाप्त हो चुका है । हनुमान जी , सीता जी के पास जाते हैं और यह समाचार देते हैं ।

हनुमान जी पूछते हैं, माता , अब बाक़ी बचे हुए राक्षसों का क्या किया जाए ? क्योंकि बचे खुचे राक्षस बहुत ही भयभीत हैं ।

सीता जी कहती हैं की “ क्षमा दे दो “ ।

हनुमान जी कहते हैं, ऐसा क्यों माता ?

सीता : भूल तो सभी करते हैं और जो उस भूल का पश्चाताप करते हैं उन्हें क्षमा कर देना चाहिए ।

हनुमान जी की आँखों में प्रेम के आँशू थे ।

सीता जी बोली ..भूलें तो मुझसे भी हुई ..

आपसे भूल ? हनुमान जी को आश्चर्य हुआ 

सीता जी बोली , हाँ हनुमान जी मुझसे एक नहीं तीन भूलें एक ही दिन हुईं ।

हनुमान जी प्रश्नवाचक अवस्था में आ गए ।

सीता जी बोली ;

01. पहली भूल , सोने का मृग देखकर मुझमें उसके चर्म को पाने की कामना जगी और मैंने राम को उसके पीछे , स्त्री हठ करके भेजा ।

02. दूसरी भूल हुई , मारीच की आवाज़ सुनने के बाद , मैंने लक्ष्मण की बात सुननी बन्द कर दी । और लक्ष्मण जी को बुरा भला कहकर बाहर भेज दिया ।

03. और तीसरी सबसे बड़ी भूल करी की मैंने देखा एक हट्टा कट्टा व्यक्ति बाहर आया , मैंने देखा की उसने गेरूआ कपड़ा पहना है , शिखा सूत्र पहने हुए है और मेरी प्रशंसा करें जा रहा है । अपनी प्रशंसा सुनने के बाद मैं अपना विवेक खो बैठी । और भयानक भूल करते हुए जोगी भेषधारी राक्षस रावण के चंगुल में फँस गई ...

कथा का तात्पर्य निश्चय..

आज भी विधर्मी मुन्ना , गुड्डू , नन्हे , पप्पू, छोटे इत्यादि के नाम से , बढ़िया ट्रेंडी बाल कटवा कर , क्रीम स्रीम पोतकर और वॉलीवुडिया डॉयलॉग्स रटकर सनातनी बच्चियों को अपने चंगुल में डाल रहे हैं । 

सनातनी स्त्रियाँ भी सोने के मृग के कारण घर में कलह न करें , पड़ोसी के वहाँ 52 इंच की टीवी और आपके पास 32 इंच की तो उसके कारण घर में कलह न करें ।

कथाएं , आपको जीवन में सीख देने के लिए हैं और जीवन को आगे उन्नत बनाने के लिए हैं । 

मैंने संकेत दे दिया है । बच्चियाँ और स्त्रियाँ भी , मुन्ना नामधारी विधर्मियों से बचें ।
www.sanwariya.org 

मैंने स्कूल के इतिहास में भारत का स्वतंत्रता संग्राम पढ़ते वक्त दामोदर चापेकर, बालकृष्ण चापेकर और वासुदेव चापेकर की कहानी नहीं पढ़ी थी।

आज अगर कोई कहे कि घर में पूजा है, तो ये माना जा सकता है कि “सत्यनारायण कथा” होने वाली है। ऐसा हमेशा से नहीं था। दो सौ साल पहले के दौर में घरों में होने वाली पूजा में सत्यनारायण कथा सुनाया जाना उतना आम नहीं था। हरि विनायक ने कभी 1890 के आस पास स्कन्द पुराण में मौजूद इस संस्कृत कहानी का जिस रूप में अनुवाद किया, हमलोग लगभग वही सुनते हैं। हरि विनायक की आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत नहीं थी और वो दरबारों और दूसरी जगहों पर कीर्तन गाकर आजीविका चलाते थे।

कुछ तो आर्थिक कारणों से और कुछ अपने बेटों को अपना काम सिखाने के लिए उन्होंने अपनी कीर्तन मंडली में अलग से कोई संगीत बजाने वाले नहीं रखे। उन्होंने अपने तीनो बेटों को इसी काम में लगा रखा था। दामोदर, बालकृष्ण और वासुदेव को इसी कारण कोई ख़ास स्कूल की शिक्षा नहीं मिली। हाँ ये कहा जा सकता है कि संस्कृत और मराठी जैसी भाषाएँ इनके लिए परिवार में ही सीख लेना बिलकुल आसान था। ऊपर से लगातार दरबार जैसी जगहों पर आने जाने के कारण अपने समय के बड़े पंडितों के साथ उनका उठाना बैठना था। दामोदर हरि अपनी आत्मकथा में भी यही लिखते हैं कि दो चार परीक्षाएं पास करने से बेहतर शिक्षा उन्हें ज्ञानियों के साथ उठने बैठने के कारण मिल गयी थी।

आज अगर पूछा जाए तो हरि विनायक को उनके सत्यनारायण कथा के अनुवाद के लिए तो नहीं ही याद किया जाता। उन्हें उनके बेटों की वजह से याद किया जाता है। सर्टिफिकेट के आधार पर जो तीनों कम पढ़े-लिखे बेटे थे और अपनी पत्नी के साथ हरि विनायक पुणे के पास रहते थे। आज जिसे इंडस्ट्रियल एरिया माना जाता है, वो चिंचवाड़ उस दौर में पूरा ही गाँव हुआ करता था। 1896 के अंत में पुणे में प्लेग फैला और 1897 की फ़रवरी तक इस बीमारी ने भयावह रूप धारण कर लिया। ब्युबोनिक प्लेग से जितनी मौतें होती हैं, पुणे के उस प्लेग में उससे दोगुनी दर से मौतें हो रही थीं। तबतक भारत के अंतिम बड़े स्वतंत्रता संग्राम को चालीस साल हो चुके थे और फिरंगियों ने पूरे भारत पर अपना शिकंजा कस रखा था।

अंग्रेजों को दहेज़ में मिले मुंबई (तब बॉम्बे) के इतने पास प्लेग के भयावह स्वरुप को देखते हुए आईसीएस अधिकारी वाल्टर चार्ल्स रैंड को नियुक्त किया गया। उसे प्लेग के नियंत्रण के तरीके दमनकारी थे। उसे साथ के फौजी अफसर घरों में जबरन घुसकर लोगों में प्लेग के लक्षण ढूँढ़ते और उन्हें अलग कैंप में ले जाते। इस काम के लिए वो घरों में घुसकर औरतों-मर्दों सभी को नंगा करके जांच करते। तीनों भाइयों को साफ़ समझ में आ रहा था कि महिलाओं के साथ होते इस दुर्व्यवहार के लिए वाल्टर रैंड ही जिम्मेदार है। उन्होंने देशवासियों के साथ हो रहे इस दमन के विरोध में वाल्टर रैंड का वध करने की ठान ली।

थोड़े समय बाद (22 जून 1897 को) रानी विक्टोरिया के राज्याभिषेक की डायमंड जुबली मनाई जाने वाली थी। दामोदर, बालकृष्ण और वासुदेव ने इसी दिन वाल्टर रैंड का वध करने की ठानी। हरेक भाई एक तलवार और एक बन्दूक/पिस्तौल से लैस होकर निकले। आज जिसे सेनापति बापत मार्ग कहा जाता है, वो वहीँ वाल्टर रैंड का इन्तजार करने वाले थे मगर ढकी हुई सवारी की वजह से वो जाते वक्त वाल्टर रैंड की सवारी पहचान नहीं पाए। लिहाजा अपने हथियार छुपाकर दामोदर हरि ने लौटते वक्त वाल्टर रैंड का इंतजार किया। जैसे ही वाल्टर रवाना हुआ, दामोदर हरि उसकी सवारी के पीछे दौड़े और चिल्लाकर अपने भाइयों से कहा “गुंडया आला रे!”

सवारी का पर्दा खींचकर दामोदर हरि ने गोली दाग दी। उसके ठीक पीछे की सवारी में आय्रेस्ट नाम का वाल्टर का ही फौजी एस्कॉर्ट था। बालकृष्ण हरि ने उसके सर में गोली मार दी और उसकी फ़ौरन मौत हो गयी। वाल्टर फ़ौरन नहीं मरा था, उसे ससून हॉस्पिटल ले जाया गया और 3 जुलाई 1897 को उसकी मौत हुई। इस घटना की गवाही द्रविड़ बंधुओं ने दी थी। उनकी पहचान पर दामोदर हरि गिरफ्तार हुए और उन्हें 18 अप्रैल 1898 को फांसी दी गयी। बालकृष्ण हरि भागने में कामयाब तो हुए मगर जनवरी 1899 को किसी साथी की गद्दारी की वजह से पकड़े गए। बालकृष्ण हरि को 12 मई 1899 को फांसी दी गयी।

भाई के खिलाफ गवाही देने वाले द्रविड़ बंधुओं का वासुदेव हरि ने वध कर दिया था। अपने साथियों महादेव विनायक रानाडे और खांडो विष्णु साठे के साथ उन्होंने उसी शाम (9 फ़रवरी 1899) को पुलिस के चीफ कांस्टेबल रामा पांडू को भी मारने की कोशिश की मगर पकड़े गए। वासुदेव हरि को 8 मई 1899 और महादेव रानाडे को 10 मई 1899 को फांसी दी गयी। खांडो विष्णु साठे उस वक्त नाबालिग थे इसलिए उन्हें दस साल कैद-ए-बामुशक्कत सुनाई गयी।

मैंने स्कूल के इतिहास में भारत का स्वतंत्रता संग्राम पढ़ते वक्त दामोदर चापेकर, बालकृष्ण चापेकर और वासुदेव चापेकर की कहानी नहीं पढ़ी थी। जैसे पटना में सात शहीदों की मूर्ती दिखती है वैसे ही चापेकर बंधुओं की मूर्तियाँ पुणे के चिंचवाड में लगी हैं। उनकी पुरानी किस्म की बंदूकें देखकर जब हमने पूछा कि ये क्या 1857 के सेनानी थे? तब चापेकर बंधुओं का नाम और उनकी कहानी मालूम पड़ी। भारत के स्वतंत्रता संग्राम को अहिंसक साबित करने की जिद में शायद इनका नाम किताबों में शामिल करना उपन्यासकारों को जरूरी नहीं लगा होगा। काफी बाद में (2018) भारत सरकार ने दामोदर हरि चापेकर का डाक टिकट जारी किया है।

बाकी इतिहास खंगालियेगा भी तो चापेकर के किये अनुवाद से पहले, सत्यनारायण कथा के पूरे भारत में प्रचलित होने का कोई पुराना इतिहास नहीं निकलेगा। चापेकर बंधुओं को किताबों और फिल्मों आदि में भले कम जगह मिली हो, धर्म अपने बलिदानियों को कैसे याद रखता है, ये अगली बार सत्यनारायण की कथा सुनते वक्त जरूर याद कर लीजियेगा। धर्म है, तो राष्ट्र भी है!

धर्मो रक्षति रक्षितः
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भगवद्गीता पर पोस्ट लिखने पर कई बार लोग ये पूछते थे कि कौन सी पढूं? हम मन ही मन सोचते पांच सौ वाली भगवद्गीता पचास वाली से बेहतर होती है क्या! करीब हर शहर में गीता प्रेस की दुकानें होती हैं, जो भी आर्थिक सामर्थ्य के हिसाब से सही लगे बारह से दो सौ रुपये के बीच की वो खरीद के रख लें। इन्टरनेट से मुफ्त डाउनलोड हो सकता है, उसे भी पढ़ सकते हैं। फिर भला मुझसे क्यों पूछना है? चलो पूछ भी लिया और हमने बता भी दिया तो उस जानकारी का कोई कुछ करता भी है?

शुरूआती दौर में नतीजे नहीं दिखेंगे ऐसा मानते हुए हमने बताना जारी रखा। एक बार में ही पूरा पढ़ना बोरियत भरा और मुश्किल हो सकता है इसलिए पेंसिल लेकर गीता के साथ रखिये, और उसे किसी सामने की जगह पर रखिये जिस से आते जाते, टीवी देखते कभी भी उसपर नजर पड़ जाए। जब समय मिले, याद आये, उठा के दो-चार, पांच जितने भी श्लोक हो सके पढ़ लीजिये। रैंडमली कभी भी कहीं से भी पढ़िए और जिसे पढ़ लिया उसपर टिक मार्क कर दीजिये। थोड़े दिन में सारे श्लोक पढ़ चुके होंगे, ये भी बताते रहे।

कई बार यही दोहराने पर भी करीब साल भर होने को आया और नतीजे लगभग कुछ नहीं दिख रहे थे। फिर एक दिन किसी ने बताया कि उसने पूरी भगवद्गीता पढ़ ली है, फिर दुसरे ने, अचानक कई लोग बताने लगे थे! मामला यहीं नहीं रुका, लोगों ने बच्चों के लिहाज से लिखी गई भगवद्गीता की टीकाएँ उठाई, किसी ने अंग्रेजी वाली ली, किसी ने उपन्यास की सी शक्ल वाली, और लोग पढ़ते गए। अब एक कदम और आगे बढ़ते हुए भगवद्गीता बांटी भी जाने लगी है। कीमत बहुत ज्यादा नहीं होती इसलिए इतना मुश्किल भी नहीं। घर में होगी तो अपना पाठक वो खुद ढूंढ लेगी।

घर में होने वाले पूजा या अन्य आयोजनों में ऐसी किताबें आसानी से अतिथियों को भेंट की जा सकती हैं। कोशिश कीजिये, उतना मुश्किल भी नहीं है। कहते हैं :-

धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्।।

जो धर्म का नाश करता है, उसका नाश धर्म स्वयं कर देता है, जो धर्म और धर्म पर चलने वालों की रक्षा करता है, धर्म भी उसकी रक्षा अपनी प्रकृति की शक्ति से करता है। अत: धर्म का त्याग कभी नहीं करना चाहिए। आपके धर्म की रक्षा आपकी ही जिम्मेदारी है। अगली पीढ़ी तक उसे पहुँचाने का अगर आपने कोई प्रयास नहीं किया तो उसके क्षय का किसी और को दोषी भी मत कहिये, ये आपकी ही जिम्मेदारी है।

आप “राष्ट्र” का क्या अर्थ समझते हैं? कभी सोचा भी है क्या इस बारे में? अगर नहीं सोचा तो ऐसे सोचिये – भारत के प्रधानमंत्री अमेरिका जाते हैं और वहां भारी प्रवासी भारतीय और भारतवंशियों की भीड़ उनके नारे लगा रही होती है! चलिए प्रवासियों पर तो शायद असर होता होगा, लेकिन भारतवंशी को किसी के भारत का प्रधानमंत्री हो जाने, या ना होने से क्या फर्क पड़ेगा? उसके नाते रिश्ते तो दशकों पहले छूट गए।

वो ना भारत आता जाता है, ना ही जिन लोगों ने प्रधानमंत्री चुना, उनके जीवन से उसका कोई लेना-देना है। फिर वो खुश क्यों हो रहा है? कौन सी डोर उसे बांधती है? सवाल इतने पर ही ख़त्म नहीं होता, अभी दिल्ली के किले तक सिमित हो चुके मुग़ल साम्राज्य के शासक बहादुरशाह जफ़र पर चिपकाया जाने वाला शेर भी याद कीजिये – “गाज़ी खूं में बू रहेगी, जब तलक ईमान की, तख्ते लन्दन तक चलेगी तेग हिन्दुस्तान की”।

इसके साथ याद कीजिये कि जलियांवाला बाग़ के नरपिशाच को लन्दन में जाकर कुत्ते की मौत मारा गया था। एक आदमी के वहां होने से भारत का वहां होना अगर ऐसे समझने में दिक्कत होती हो तो इस तर्क को उल्टा कर लीजये। जो भारत में ही कहीं “भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा### के नारे लगा रहा था वो कौन था? भारतीय था या कोई बाहर का था? सीमाओं के हिसाब से राष्ट्र होता तो वो भारत में भारत का था।

सीमाओं के हिसाब से राष्ट्र तय नहीं होता। ये किसी एक भाषा, किसी एक धर्म, किसी एक जाति, काबिले, वंश से भी तय नहीं होता। इन सब से अलग राष्ट्र सिर्फ एक सोच है। ये विचार जहाँ होगा, राष्ट्र उस हर जगह होगा। फिर चाहे वो सोच भौगोलिक सीमाओं के अन्दर हो, या फिर इनके बाहर। इसे समझने में दिक्कत इसलिए है क्योंकि इस विषय पर सोचने कभी किसी ने कहा ही नहीं। 

#शहरी_नक्सलों की धड़पकड़ ने इस सवाल को जिन्दा कर दिया है। वो प्रोफेसरों, लेखकों, पत्रकारों और क्रांतिकारियों के वेश में आपके बच्चों को बरगलाकर ले जा रहे हैं। आपके बच्चों को बचाने क्या आपके पड़ोसी आने वाले हैं? नहीं आ रहे तो कम से कम खुद तो सोचकर देखिये...
✍🏻आनंद कुमार जी की पोस्टों से   संग्रहित

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