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सोमवार, 17 जनवरी 2022

माँ शाकम्बरी पूर्णिमा विशेष शाकम्बरी देवी की पौराणिक कथा

माँ शाकम्बरी पूर्णिमा विशेष
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शाकम्बरी देवी की पौराणिक कथा
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दुर्गम नाम का एक महान्‌ दैत्य था। उस दुष्टात्मा दानव के पिता राजा रूरू थे। 'देवताओं का बल “वेद” है। वेदों के लुप्त हो जाने पर देवता भी नहीं रहेंगे, इसमें कोई संशय नहीं है। अतः पहले वेदों को ही नष्ट कर देना चाहिये'। यह सोचकर वह दैत्य तपस्या करने के विचार से हिमालय पर्वत पर गया। मन में ब्रह्मा जी का ध्यान करके उसने  आसन जमा लिया। वह केवल वायु पीकर रहता था। उसने एक हजार वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की।

उसके तेज से देवताओं और दानवों सहित सम्पूर्ण प्राणी सन्तप्त हो उठे। तब विकसित कमल के सामन सुन्दर मुख की शोभा वाले चतुर्मुख भगवान ब्रह्मा प्रसन्नतापूर्वक हंस पर सवार हो वर देने के लिये दुर्गम के सम्मुख प्रकट हो गये और बोले - 'तुम्हारा कल्याण हो ! तुम्हारे मन में जो वर पाने की इच्छा हो, मांग लो। आज तुम्हारी तपस्या से सन्तुष्ट होकर मैं यहाँ आया हूँ।' ब्रह्माजी के मुख से यह वाणी सुनकर दुर्गम ने कहा - सुरे,र ! मुझे सम्पूर्ण वेद प्रदान करने की कृपा कीजिये। साथ ही मुझे वह बल दीजिये, जिससे मैं देवताओं को परास्त कर सकूँ।

दुर्गम की यह बात सुनकर चारों वेदों के परम अधिष्ठाता ब्रह्माजी 'ऐसा ही हो' कहते हुए सत्यलोक की ओर चले गये। ब्रह्माजी को समस्त वेद विस्मृत हो गये।

इस प्रकार दुर्गम दानव ने प्रचण्ड तपस्या से चारों वेदों को प्राप्त कर लिया, ऋषियों की सभी शक्तियां दुर्गम द्वारा शोषित कर ली गई तथा यह आशीर्वाद भी प्राप्त कर लिया कि देवताओं को समर्पित समस्त पूजा उसे प्राप्त होनी चाहिये । जिससे कि वह अविनाशी हो जाये । शक्तिशाली दुर्गम ने लोगों पर अत्याचार करना आरम्भ कर दिया और धर्म के क्षय ने गंभीर सूखे को जन्म दिया और सौ वर्षों तक कोई वर्षा नहीं हुई । 

इस प्रकार सारे संसार में घोर अनर्थ उत्पन्न करने वाली अत्यन्त भयंकर स्थिति हो गयी। ऋषि, मुनि और ब्राह्मण लोग भीषण अनिष्टप्रद समय उपस्थित होने पर जगदम्बा की उपासना करने के हिमालय पर्वत पर गये, और अपने को सुरक्षित एवं बचाने के लिए हिमालय की कन्दराओं में छिप गए तथा माता देवी को प्रकट करने के लिए कठोर तपस्या की । समाधि, ध्यान और पूजा के द्वारा उन्होंने देवी की स्तुति की। वे निराहार रहते थे। उनका मन एकमात्र भगवती में लगा था। वे बोले - 'सबके भीतर निवास करने वाली देवेश्वरी ! तुम्हारी प्रेरणा के अनुसार ही यह दुष्ट दैत्यसब कुछ करता है। तुम बारम्बार क्या देख रही हो ? तुम जैसा चाहो वैसा ही करने में पूर्ण समर्थ हो। कल्याणी! जगदम्बिके  प्रसन्न हो हम तुम्हें प्रणाम करते हैं।''इस प्रकार ब्राह्मणों के प्रार्थना करने पर भगवती पार्वती, जो 'भुवनेश्वरी' एवं महेश्वरी' के नाम से विखयात हैं।,

ब्रह्मा, विष्णु आदि आदरणीय देवताओं के इस प्रकार स्तवन एवं विविध द्रव्यों के पूजन करने पर भगवती जगदम्बा तुरन्त संतुष्ट हो गयीं। ऋषि, मुनि और ब्राह्मण लोग की समाधि, ध्यान और पूजा के द्वारा उनके संताप के करुण क्रन्दन से विचलित होकर, ईश्वरी- माता देवी-फल, सब्जी, जड़ी-बूटी, अनाज, दाल और पशुओं के खाने योग्य कोमल एवं अनेक रस से सम्पन्न नवीन घास फूस लिए हुए प्रकट हुईं और अपने हाथ से उन्हें खाने के लिये दिये।,शाक का तात्पर्य सब्जी होता है, इस प्रकार माता देवी का नाम उसी दिन से ''शाकम्भरी'' पड  गया।

जगत्‌ की रक्षा में तत्पर रहने वाली करूण हृदया भगवती अपनी अनन्त आँखों से सहस्रों जलधारायें गिराने लगी। उनके नेत्रों से निकले हुए जल के द्वारा नौ रात तक त्रिलोकी पर महान्‌ वृष्टि होती रही।  

वे अनगिनत आँखें भी रखती थीं। इसलिए उन्हें सताक्षी के नाम से पुकारा गया । ऋषियों और लोगों की दुर्दशा को देख कर उनकी अनगिनत आँखों से लगातार नौ दिन एवं रात्रि तक आँसू  बहते रहे । यह (आँसू ) एक नदी में परिवर्तित हो गए जिससे सूखे का समापन हो गया ।  

जगत में कोलाहल मच जाने पर दूत के कहने पर दुर्गम दैत्य स्थिति को समझ गया। उसने अपनी सेना सजायी और अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित होकर वह युद्ध के लिये चल पड़ा। उसके पास एक अक्षोहिणी सेना थी। तदनन्तर देवताओं व महात्माओं को जब असुरों की सेना ने घेर लिया था तब करुणामयी मां ने बचाने के लिए,देवलोक के चारों ओर एक दीवार खड़ी कर दी और स्वयं घेरे से बाहर आकर युद्ध के लिए डट गई तथा दानवों से संसार को मुक्ति दिलाई।

तदनन्तर देवी और दैत्य-दोनों की लड़ाई ठन गयी। धनुष की प्रचण्ड टंकार से दिशाएँ गूँज उठी। भगवती की माया से प्रेरित शक्तियों ने दानवों की बहुत  बड़ी  सेना नष्ट कर दी। तब सेनाध्यक्ष दुर्गम स्वयं शक्तियों के सामने उपस्थित होकर उनसे युद्ध करने लगा। संसार के ऋषि एवं लोगों को बचाने के लिये, शाकम्बरी देवी ने दैत्य दुर्गम से युद्ध किया।   

अब भगवती जगदम्बा और दुर्गम दैत्य इन दोनों में भीषण युद्ध होने लगा।

माँ शाकम्बरी देवी ने अपने शरीर से दस शक्तियाँ उत्पन्न की थी । जिन्होंने युद्ध में देवी शाकम्बरी की सहायता की।

जगदम्बा के पाँच बाण दुर्गम की छाती में जाकर घुस गये। फिर तो रूधिर वमन करता हुआ वह दैत्य भगवती परमेश्वरी के सामने प्राणहीन होकर गिर पड़ा।

माँ शाकम्बरी देवी ने अंततः अपने भाले से दैत्य दुर्गम को मार डाला ।

तब वेदों का ज्ञान और ऋषियों की सभी शक्तियां जो दुर्गम द्वारा शोषित कर ली गई थीं, दानव दुर्गम को मारनेसे सभी शक्तियां सूर्यों के समान चमकदार सुनहरे प्रकाश में परिवर्तित हो गयीं और शाकम्बरी देवी के शरीर में प्रवेश कर गयीं।

देवी ने प्रसन्नतापूर्वक उस राक्षस से वेदों को त्राण दिलाकर देवताओं को सौंप दिया। वे बोलीं कि मेरे इस उत्तम महात्म्य का निरन्तर पाठ करना चाहिए। मैं उससे प्रसन्न होकर सदैव तुम्हारे समस्त संकट दूर करती रहूँगी।

शाकम्बरी देवी ने सभी वेद और शक्तियां देवताओं को वापस कर दिया। तब माता देवी या ईश्वरी का नाम“दुर्गा” हुआ क्योंकि उन्होंने दानव दुर्गम को मारा था । 

माँ शाकम्भरी देवी मन्दिर
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ऐसी मान्यता है कि माँ शाकम्भरी मानव के कल्याण के लिये धरती पर आयी थी।

मां शाकंभरी के तीन शक्तिपीठों की,  नौ देवियों में से एक हैं मां शाकंभरी देवी।

मां शाकंभरी धन-धान्य का आशीर्वाद देती हैं। इनकी अराधना से घर हमेशा शाक यानी अन्न के भंडार से भरा रहता है।

देश भर में मां शाकंभरी के तीन शक्तिपीठ हैं।

पहला प्रमुख राजस्थान से सीकर जिले में उदयपुर वाटी के पास सकराय मां के नाम से प्रसिद्ध है।

दूसरा स्थान राजस्थान में ही सांभर जिले के समीप शाकंभर के नाम से स्थित है और

तीसरा स्थान उत्तरप्रदेश के मेरठ के पास सहारनपुर में 40 किलोमीटर की दूर पर स्थित है।

शाकम्भरी जयंती पर उपाय
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 धन धान्य कि पूर्ती हेतु देवी शाकंभरी कि पंचो-उपचार पूजन करने के बाद देवी के चित्र पर लौकी का भोग लगाएं।

लड़कियों का विवाह जल्दी कराती है यह देवी स्तुति
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देवी दुर्गा की स्तुति केवल शक्ति के लिए नहीं की जाती है। मां दुर्गा पार्वती के रूप में लड़कियों को अच्छा वर भी दिलाती है और विवाह में आ रही बाधा को दूर भी करती है। कहा जाता है कि सीता और रुक्मणि दोनों ने पार्वती का पूजन किया था और इससे ही उन्हें राम और कृष्ण जैसे पति मिले। तुलसीदास ने रामचरितमानस में इसका उल्लेख भी किया है। सीता ने पार्वती का पूजन किया था,स्तुति की थी। इसके बाद ही उन्हें राम के दर्शन हुए थे। वही स्तुति रामचरितमानस में मिलती है। कई विद्वानों ने इस स्तुति को सिद्ध माना है। अगर कुंवारी लड़की रोजाना नियम से पार्वती पूजन कर इस स्तुति का पाठ करे तो उसे भी मनचाहा वर मिलता है। 

स्तुति
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जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी॥ 
जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता॥
नहिं तब आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना॥
भव भव बिभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि॥
सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायनी पुरारि पिआरी॥
देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे॥
मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबही कें॥
अर्थ - हे श्रेष्ठ पर्वतों के राजा हिमालय की पुत्री पार्वती! आपकी जय हो, जय हो, हे महादेवजी के मुख रूपी चंद्रमा की ओर टकटकी लगाकर और छ: मुखवाले स्वामी कार्तिकेयजी की माता! हे जगजननी! हे बिजली की-सी कांतियुत शरीर वाली! आपकी जय हो। आपका न आदि है, न मध्य है और न अंत है। आपके असीम प्रभाव को वेद भी नहीं जानते। आप संसार को उत्पन्न,पालन और नाश करने वाली हैं। विश्व को मोहित करने वाली और स्वतंत्र रूप से विहार करने वाली हैं। हे भक्तों को मुंहमांगा वर देने वाली! हे त्रिपुर के शत्रु शिवजी की प्रिय पत्नी! आपकी सेवा करने से चारों फल सुलभ हो जाते हैं। हे देवी! आपके चरण कमलों की पूजा करके देवता, मनुष्य और मुनि सभी सुखी हो जाते हैं। मेरे मनोरथ को आप भली भांति जानती हैं योंकि आप सदा सबके हृदय रूपी नगरी में निवास करती हैं।

शाकम्भरी देवी की आरती
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हरि ॐ श्री शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो

ऐसी अद्भुत रूप हृदय धर लीजो

शताक्षी दयालु की आरती कीजो

तुम परिपूर्ण आदि भवानी मां, सब घट तुम आप बखानी मां

शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो

तुम्हीं हो शाकुम्भर, तुम ही हो सताक्षी मां

शिवमूर्ति माया प्रकाशी मां,

शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो

नित जो नर-नारी अम्बे आरती गावे मां

इच्छा पूर्ण कीजो, शाकुम्भर दर्शन पावे मां

शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो

जो नर आरती पढ़े पढ़ावे मां, जो नर आरती सुनावे मां

बस बैकुंठ शाकुम्भर दर्शन पावे

शाकुम्भरी अंबाजी की आरती कीजो। 
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बाथरूम में मार्बल की टाइल्स पर फिसलन का डर होता है, कम खर्च में क्या उपाय करें कि फिसलन से सुरक्षित बचे रहें?

 

जब घर पे बच्चे और बुजुर्ग रहते हो तो यह एक सोचने वाली बात है की इसका उपाय कैसे डुंडा जाये क्यों की आज कल हर घर बाटरूम में टाइल्स डाली जाती है. दिखने में यह साफ़ सूत्रा और आकर्षक दिखाई देता है. लेकिन जब इस पर पानी डाला जाये तो पिसलने का डर रहता है. यंहा तक की कमर और घुटने भी चोट लग जाती है.

हमेशा बाटरूम सूखा रखिये

बाटरूम उसे करने के बाद वाइप करे

बाटरूम हर दिन साफ़ करे

साबुन और शैम्पू को सोप स्टैंड में रखिये

ऑनलाइन स्टोर में बाटरूम के लिए ही मैट्स मिलते है. उसका उपयोग करे


हलाल: एक आर्थिक जिहाद - जय आहूजा - जिस भी ब्रांड पर यह ये हलाल हरे कलर का लोगो प्रिंट हो उसका सम्पूर्ण बहिष्कार करें



विगत समय में “हलाल” चर्चा और विवाद का विषय बना, जब ज़ोमाटो, मॅक्डोनाल्ड आदि संस्थाओं ने यह स्पष्टीकरण दिया कि उनके यहाँ प्रयोग में लाया जाने वाला सारा मांस “हलाल” ही होता है। इस इण्डिक संवाद में श्री जय आहूजा द्वारा “हलाल” से हिन्दू समाज और व्यापार पर पड़ने वाले प्रभावों की समीक्षा की गई है। वे इस्लामी मत में “हलाल” की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए बताते हैं कि इसके ध्येयानुसार किसी भी पदार्थ के उत्पादन, विपणन आदि में इस्लामी मजहबी विधि का पालन किया जाना आवश्यक है और इस प्रक्रिया में किसी गैर-मुस्लिम को लाभ नहीं पहुँचना चाहिए। इस दुराग्रह के परिणामस्वरूप गैर-मुस्लिमों का खाद्य व्यापार, विशेषतः मांस-व्यापार से बहिष्कार हो रहा है। “हलाल” का दुराग्रह अब मांस-पदार्थों तक ही सीमित नहीं रह गया है, बल्कि शाकाहारी खाद्य पदार्थ, वस्त्र, कॉस्मेटिक आदि वस्तुओं को भी हलाल-सम्मत बनाकर व्यापार को भी मजहबी रंग दिया जा रहा है। ये एक प्रकार का ‘आर्थिक जिहाद’ है जिससे हिन्दू समाज के निर्धन वर्गों और व्यापारियों की मजहबी घेराबन्दी कर उनसे रोजगार छीना जा रहा है। “हलाल” से आर्थिक हानि के साथ-साथ गैर-मुस्लिमों की धार्मिक आस्थाओं का भी हनन हो रहा है। “हलाल” को एक षड्यन्त्र के तहत गैर-मुस्लिमों पर भी थोपा जा रहा है और फलस्वरूप अन्य विकल्प मिट जाने के कारण वे भी इस्लामी मजहबी विधान का पालन करने के लिए बाध्य हो रहे हैं। इस वीडियों को अवश्य देखें और “हलाल” के दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक बनें।
 

 






 खाने पिने की वस्तुओ पर ये हलाल हरे कलर का लोगो प्रिंट होता है
जिस भी ब्रांड पर यह प्रिंट हो उसका सम्पूर्ण बहिष्कार करें
और
उस दूकान वाले को बोले की ये हलाल वाला ब्रांड हमें नहीं चाइए
- राष्ट्र व 🚩धर्म निर्माण मे सहयोग करें 🙏

चुनाव सोशल मीडिया पर ही लड़ा जाने वाला है इसलिए

 आप से कुछ प्रार्थना है....


- चुनाव सोशल मीडिया पर ही लड़ा जाने वाला है इसलिए अब व्हाट्सएप के माध्यम से योगी जी के पक्ष में जनसमर्थन जुटाने के लिए मैं ज्यादा से ज्यादा लेख लिखने वाला हूं

-आपसे ये प्रार्थना है कि आप मेरे लेख चाहे अच्छे लगें या नहीं लगें... लेकिन उनको अपने परिवार... रिश्तेदारों... ग्रुप्स... दोस्तों और खासकर हिंदुओं को जरूर फारवर्ड करते रहिएगा... जब बूथ लेवल पर बने व्हाट्सएप ग्रुप्स में ये लेख पहुंचेंगे तो हिंदुओं को गोलबंद करना बहुत आसान होता जाएगा

-मैं योगी जी और श्रीराम मंदिर निर्माण की वजह से बीजेपी के समर्थन में लेख लिखता रहा हूं आगे भी लिखता रहूंगा तो आप ये मत समझ लेना कि हमें बीजेपी से कोई पैसा मिलता है... हमने अपना घर-बार परिवार सब छोड़कर सारा समय बिना किसी स्वार्थ के देश को समर्पित कर दिया है... मेरी सेवा को आप निस्वार्थ समझना

-लेखों के बीच में मेरा मोबाइल नंबर दिया होता है... उसको आप मत हटाना क्योंकि जैसे आप मुझसे मोबाइल नंबर से जुड़े हैं वैसे ही दूसरे लोग भी मोबाइल नंबर से ही जुड़ते हैं जब लोग साथ आएंगे तभी कारवां आगे बढ़ेगा इसी कारवें से ही हिंदुत्व की क्रांति का सूर्य उदय होगा

-मैं आपको कभी कभी विशेष परिस्थितियों में अपने ट्विटर लिंक भी दिया करूंगा अगर आप ट्विटर पर हैं तो उसको लाइक शेयर रीट्वीट करते रहिएगा और नहीं हैं तो भी कोई बात नहीं आप ग्रुप में शेयर कर देना जिसकी मर्जी होगी वह कर लेगा

-योगी जी को अगर 320 से ज्यादा सीटें नहीं मिलती हैं तो ब्रांड योगी कमजोर होगा और अगर कमजोर हुआ तो फिर हिंदुत्व भी कमजोर हो जाएगा इसलिए जीत के लिए कार्य नहीं करना है 350 सीट का लक्ष्य लेकर जोरदार तरीके से प्रचार करना है

-आपका स्नेह और आशीर्वाद मुझको बराबर मिलता रहा है... मेरी तरफ से कोई गलती हो तो क्षमा कीजिएगा...

धन्यवाद
भारत माता की जय
वंदेमातरम
जय श्री राम
हम जिएंगे या मरेंगे... ऐ वतन तेरे लिए !

हमने हिंदू बनकर 2014 और 2019 में वोट दिए तो आज देश में .............


 ये कहानी अधिकांश मित्रों ने सुनी, पढ़ी होगी लेकिन आज भी बहुत प्रासंगिक है और शिक्षाप्रद भी है -

एक बार अकबर ने बीरबल से कहा कि उसे ये पता करना है कि उसके दरबार में कितने लोग ईमानदार हैं, ये कैसे पता चलेगा?

बीरबल ने कुछ दिनों का समय माँगा फिर अकबर के पास गए और उन्हें एक प्रयोग बताया जिससे कि पता चल जाएगा कि दरबार में कितने लोग ईमानदार हैं।

अकबर को इतना समझ नहीं आया चूँकि बीरबल ने कहा है इसलिए उसने हामी भर दी।

एक बड़े से कढ़ाव को थोड़ा ऊँचाई पर रखा गया और उस तक पहुँचने के लिये एक सीढ़ी रखी गई, सीढ़ी की ऊँचाई इतनी ही थी कि थोड़ा हाथ ऊपर करने पर कढ़ाव तक पहुँच सकता था।

सभी दरबारियों से कहा गया कि आधी रात को सबको इसमें एक एक लोटा दूध डालना है। दरबारियों को कुछ पता नहीं था कि ये सब क्यों करवाया जा रहा है।

चूँकि अकबर का आदेश था तो सबको मानना ही था, सो सबने जाकर ये काम कर दिया।

अगले दिन दरबार सजा और उस कढ़ाव को लाया गया लेकिन उसे देखकर अकबर और सारे के सारे दरबारी अचंभित और अवाक रह गए क्योंकि उस कढ़ाव में केवल पानी ही भरा हुआ था।

सबने ये सोचकर एक लोटा पानी भर दिया कि मेरे अकेले के पानी भरने से किसी को क्या पता चलेगा??

इसी तरह "आएगा तो योगी ही" सोचकर, बोलने से योगीजी नहीं आयेंगे, मतदान के हर चरण में हर सच्चे सनातनी, राष्ट्रभक्त को अपने घर से निकलकर वोट करने जाना होगा और अपने सभी मित्रों, परिजनों, अड़ोसी, पड़ोसी सबको ले जाकर वोट डलवाने होंगे।

अटलजी के "शाइनिंग इंडिया" के जैसे "आएगा तो योगी ही" का हश्र नहीं होने देना है इसका सभी को ध्यान रखना है।

ना केवल उत्तरप्रदेश बल्कि गोवा, उत्तराखंड, पंजाब के सभी सच्चे सनातनियों, राष्ट्रभक्तों को यही करना है।

अपनी जाति, मनपसंद उम्मीदवार का ना होना भूलकर केवल हिन्दू बनकर "कमल का बटन" दबाना है।

ध्यान रखिये चुनावों से पहले धूर्त नेताओं के लिए आप केवल जातियों में बँटे हिंदू होते हैं और चुनाव के बाद केवल हिंदू, तभी न अखिलेश जैसा मुख्यमंत्री दो बजे बाद होली खेलने पर प्रतिबंध लगा देता था, कावड़ यात्रा निकलने नहीं देता था, डीजे नहीं बजने देता था।

हमने हिंदू बनकर 2014 और 2019 में वोट दिए तो आज देश में घोटाले बंद हो गए, आतंकी हमले कश्मीर तक सीमित रह गए, राम मंदिर का निर्णय हमारे पक्ष में हुआ, राम मंदिर का निर्माण शुरू हो गया, काशी में शानदार विश्वनाथ कॉरिडोर बन गया, को रो ना जैसी महामारी में इतनी बड़ी आबादी के होते हुए भी बहुत ज़्यादा नुकसान नहीं झेलना पड़ा।

विश्व का सबसे बड़ा और सबसे श्रेष्ठ वैक्सीनेशन ड्राइव भारत में हुआ और उसमें भी विशेष बात ये कि सारी वैक्सीन देश में ही तैयार हुई हमें किसी अन्य देश पर आश्रित नहीं होना पड़ा।

यदि इस समय कांग्रेस केंद्र में होती तो यकीन मानिये आधा देश सो चुका होता।

वोट उन्हें दीजिये जिनकी नीयत में खोट नहीं है।


साभार

जब किसी ताजे फल में बीज अंकुरित होने लगते हैं तो उसे क्या कहते हैं?

 

१९९० की बात है, हम चैन्नई में रहते थे और हमारी प्रथम संतान की आशा से थे। घर के समीप ही एक अम्मन-कोविल (देवी का मन्दिर) था, एक सुबह हम लोगों ने वहाँ अर्चना करी। नारियल बडा किया तो एक ओर से बहुत ही विचित्र रूप से फूला हुआ था। हम असमंजस में थे और श्रीमतीजी इस आशंका में कि अरे यह नारियल तो अच्छा नहीं निकला, बडा अपशकुन हो गया। द्वार पर अपना आसन जमाए फूल और पूजासामग्री बेचने वाली महिला को उपालम्भ दिया तो वह कहने लगी, यह तो फला हुआ नारियल है, और ऐसा नारियल तो सौभाग्यशालियों को ही मिलता है। पुजारी जो हमारे व्यवहार का अवलोकन कर रहा था, उसने भी फूलवाली का अनुमोदन किया और मेरी धर्मपत्नी से कहने लगा "अम्मा! आप नारियल का यह वाला भाग अवश्य खाना, आपको स्वस्थ लड़का ही होगा।"

हम लोगों ने जो देखा वह नारियल के ताजे फल में ही पौधे का प्रस्फुटन था। इस प्रकार के अंकुरण को साधारण भाषा में "फल का फलना" कहते हैं और इसके लिए वनस्पतिशास्त्रीय तकनीकी शब्द है "जरायुज अंकुरण" (viviparous germination — विविपैरस जर्मिनेशन)। इसमें फल के भीतर ही बीज अंकुरित हो जाता है।

इस प्रकार का अंकुरण तटवर्ती दलदलों (mangroves) में लगने वाली वनस्पतियों में होता है। इनमें बहुधा फल वृक्ष पर ही फलित हो जाता है तब यह फल दलदल में गिर जाता है, और वहीं जड़ पकड़ लेता है। यदि अंकुरण न हुआ हो तो यह फल ज्वार-भाटा की प्रक्रिया में बहकर पानी के मध्य पहुँच सकता है और भूमि न मिल पाने से नष्ट भी हो सकता है। अतः प्रकृति ने जरायुज अंकुरण प्रक्रिया का विकास किया है।


यह प्रक्रिया कुछ अन्य वनस्पतियों में भी देखी जा सकती है। जैसे, आम की सबसे अन्त में आने वाली किस्मों में एक है नीलम, यह प्रजाति बहुत ही स्वादिष्ट है।

किन्तु जब इसे काटा जाता है तो एक सिरा काला सा होता है और लोग इसे यह कहकर खरीदने से कतराते हैं कि अरे! इसमें तो सदा ही कीड़ा लगा होता है। बरसात आई और आम में कीड़ा लग रहा है यह कहकर आम खाना बन्द! किन्तु आम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए जरायुज अंकुरण कर रहा होता हैं।

जैसे यह।


यह स्ट्रॉबेरी जैसे फलो में भी देखा जा सकता है।


पपीते में तो यह बहुधा होता है।


अथवा यह मिर्च देखिए।



अर्ध नग्न महिलाओं को देख कर 90℅ कौन मजे लेता है

 

क्या आप जानते हैं कि अर्ध नग्न महिलाओं को देख कर 90℅ कौन मजे लेता है

एक दिन मोहल्ले में किसी ख़ास अवसर पर महिला सभा का आयोजन किया गया, सभा स्थल पर महिलाओं की संख्या अधिक और पुरुषों की कम थी..!!

मंच पर तकरीबन *पच्चीस वर्षीय खुबसूरत युवती, आधुनिक वस्त्रों से* *सुसज्जित, माइक थामें कोस रही थी पुरुष समाज को..!!*

वही पुराना आलाप.... कम और छोटे कपड़ों को जायज, और कुछ भी पहनने की स्वतंत्रता का बचाव करते हुए, पुरुषों की गन्दी सोच और खोटी नीयत का दोष बतला रही थी.!!

तभी अचानक सभा स्थल से... तीस बत्तीस वर्षीय सभ्य, शालीन और आकर्षक से दिखते नवयुवक ने खड़े होकर अपने विचार व्यक्त करने की अनुमति मांगी..!!

अनुमति स्वीकार कर माइक उसके हाथों मे सौप दिया गया .... हाथों में माइक आते ही उसने बोलना शुरु किया..!!

"माताओं, बहनों और भाइयों, मैं आप सबको नही जानता और आप सभी मुझे नहीं जानते कि, आखिर मैं कैसा इंसान हूं..??

लेकिन पहनावे और शक्ल सूरत से मैं आपको कैसा लगता हूँ बदमाश या शरीफ..??

सभास्थल से कई आवाजें गूंज उठीं... पहनावे और बातचीत से तो आप शरीफ लग रहे हो... शरीफ लग रहे हो... शरीफ लग रहे हो....

बस यही सुनकर, अचानक ही उसने अजीबोगरीब हरकत कर डाली... सिर्फ हाफ पैंट टाइप की अपनी अंडरवियर छोड़ कर के बाक़ी सारे कपड़े मंच पर ही उतार दिये..!!

ये देख कर .... पूरा सभा स्थल आक्रोश से गूंज उठा, मारो-मारो गुंडा है, बदमाश है, बेशर्म है, शर्म नाम की चीज नहीं है इसमें.... मां बहन का लिहाज नहीं है इसको, नीच इंसान है, ये छोड़ना मत इसको....

ये आक्रोशित शोर सुनकर... अचानक वो माइक पर गरज उठा...

"रुको... पहले मेरी बात सुन लो, फिर मार भी लेना , चाहे तो जिंदा जला भी देना मुझको..!!

अभी अभी तो....ये बहन जी कम कपड़े , तंग और बदन नुमाया छोटे-छोटे कपड़ों की पक्ष के साथ साथ स्वतंत्रता की दुहाई देकर गुहार लगाकर...

"नीयत और सोच में खोट" बतला रही थी...!!

तब तो आप सभी तालियां बजा-बजाकर सहमति जतला रहे थे..फिर मैंने क्या किया है..??

सिर्फ कपड़ों की स्वतंत्रता ही तो दिखलायी है..!!

"नीयत और सोच" की खोट तो नहीं ना और फिर मैने तो, आप लोगों को... मां बहन और भाई भी कहकर ही संबोधित किया था..फिर मेरे अर्द्ध नग्न होते ही.... आप में से किसी को भी मुझमें "भाई और बेटा" क्यों नहीं नजर आया..??

मेरी नीयत में आप लोगों को खोट कैसे नजर आ गया..??

मुझमें आपको सिर्फ "मर्द" ही क्यों नजर आया? भाई, बेटा, दोस्त क्यों नहीं नजर आया? आप में से तो किसी की "सोच और नीयत" भी खोटी नहीं थी... फिर ऐसा क्यों?? "

सच तो यही है कि..... झूठ बोलते हैं लोग कि...

"वेशभूषा" और "पहनावे" से कोई फर्क नहीं पड़ता…

हकीकत तो यही है कि मानवीय स्वभाव है कि किसी को सरेआम बिना "आवरण" के देख लें तो कामुकता जागती है मन में...

रूप, रस, शब्द, गन्ध, स्पर्श ये बहुत प्रभावशाली कारक हैं इनके प्रभाव से “विस्वामित्र” जैसे मुनि के मस्तिष्क में विकार पैदा हो गया था..जबकि उन्होंने सिर्फ रूप कारक के दर्शन किये..आम मनुष्यों की विसात कहाँ..??

दुर्गा शप्तशती के देव्या कवच में श्लोक 38 में भगवती से इन्हीं कारकों से रक्षा करने की प्रार्थना की गई है..

“रसे_रुपे_च_गन्धे_च_शब्दे_स्पर्शे_च_योगिनी।

सत्त्वं_रजस्तमश्चैव_रक्षेन्नारायणी_सदा।।”

रस रूप गंध शब्द स्पर्श इन विषयों का अनुभव करते समय योगिनी देवी रक्षा करें तथा सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण की रक्षा नारायणी देवी करें.!!

✍️ आज के समाज की सोच ये है कि अपने घर की बेटियां अपने बदन को ढके या ना ढके लेकिन बहु मुंह छिपाकर घुंघट में रहनी चाहिए आज के समाज में बदन ढकना जरूरी नहीं पर मुंह ढकना जरूरी है।

आज के समाज में गुंघट के लिए कोई जगह नहीं है वैसे ही इन अर्ध नग्न वस्त्रों के लिए भी कोई जगह नहीं है।

पेड़ में एक लाख सत्रह हजार तीन सौ अड़तालिस लीटर पानी स्टोरेज करने की क्षमता है।

 

इस पेड़ का नाम बाओबाब है और इसे हिन्दी में गोरक्षी कहते हैं। लगभग 30 मीटर ऊंचे और 11 मीटर चौड़े इस वृक्ष की बनावट बड़ी ही अजीब होती है क्योंकि इन्हें देखने से लगते है कि इनकी जड़े ऊपर और तना नीचे है। बाओबाब में केवल साल के 6 माह ही पत्ते लगे रहते हैं। इसे लोग बोआब, बोआबोआ, बोतल वृक्ष तथ उल्टा पेड़ के नाम से भी बुलाते हैं। हालांकि अरबी में इसे 'बु-हिबाब' कहते हैं जिसका अर्थ है 'कई बीजों वाला पेड़'।

बता दें कि अफ्रीका ने इसे 'द वर्ल्ड ट्री' की उपाधि भी प्रदान की है औरतो और इसे एक संरक्षित वृक्ष भी घोषित किया है। मेडागास्कर में स्थित कुछ बाओबाब वृक्ष बहुत ही पुराने हैं। यहां कुछ वृक्ष तो रोमनकाल से ही खड़े हैं। एक ऐसा ही वृक्ष इफेती शहर के पास भी स्थित है और इस पेड़ का नाम टी-पॉट बाओबाब है।

ऐसे नाम के पीछे कारण ये है कि इसके मुख्य तने से एक तना और निकला है। आपको बता दें कि ये पेड़ 1200 साल पुराना है। विशेषज्ञों का इस बारे में कहना है कि इस पेड़ में एक लाख सत्रह हजार तीन सौ अड़तालिस लीटर पानी स्टोरेज करने की क्षमता है।

परशुराम टांगीनाथ धाम कैसे पहुचे


टांगीनाथ धाम, झारखंड राज्य मे गुमला शहर से करीब 75 km दूर तथा रांची से करीब 150 km दूर घने जंगलों के बीच स्थित है। यहाँ पर आज भी भगवान परशुराम का फरसा ज़मीं मे गड़ा हुए है। झारखंड में फरसा को टांगी कहा जाता है, इसलिए इस स्थान का नाम टांगीनाथ धाम पड़ गया। धाम में आज भी भगवान परशुराम के पद चिह्न मौजूद हैं।

माना जाता है कि परशुराम ने यहीं पर घोर तपस्या की थी।

टांगीनाथ धाम मे भगवान विष्णु के छठवें अवतार परशुराम ने तपस्या कि थी। परशुराम टांगीनाथ कैसे पहुचे इसकी कथा इस प्रकार है। जब राम, राजा जनक द्वारा सीता के लिये आयोजित स्वयंवर मे भगवान शिव का धनुष तोड़ देते है तो परशुराम बहुत क्रोधित होते हुए वहा पहुँचते है और राम को शिव का धनुष तोड़ने के लिए भला – बुरा कहते है।

सब कुछ सुनकर भी राम मौन रहते है, यह देख कर लक्ष्मण को क्रोध आ जाता है और वो परशुराम से बहस करने लग जाते है। इसी बहस के दौरान जब परशुराम को यह ज्ञात होता है कि राम भी भगवान विष्णु के ही अवतार है तो वो बहुत लज्जित होते है और वहाँ से निकलकर पश्चाताप करने के लिये घने जंगलों के बीच आ जाते है। यहां वे भगवान शिव की स्थापना कर और बगल मे अपना फरसा गाड़ कर तपस्या करते है। इसी जगह को आज सभी टांगीनाथ धाम से जानते हैं।

यहाँ पर गड़े लोहे के फरसे कि एक विशेषता यह है कि हज़ारों सालों से खुले मे रहने के बावजूद इस फरसे पर ज़ंग नही लगी है। और दूसरी विशेषता यह है कि ये जमीन मे कितना नीचे तक गड़ा है इसकी भी कोइ जानकारी नही है। एक अनुमान 17 फ़ीट का बताया जाता है।

फरसे से जुडी किवदंती

कहा जाता है कि एक बार क्षेत्र मे रहने वाली लोहार जाति के कुछ लोगो ने लोहा प्राप्त करने के लिए फरसे को काटने प्रयास किया था। वो लोग फरसे को तो नही काट पाये पर उनकी जाति के लोगो को इस दुस्साहस कि कीमत चुकानी पड़ी और वो अपने आप मरने लगे। इससे डर के लोहार जाति ने वो क्षेत्र छोड़ दिया और आज भी धाम से 15 km की परिधि में लोहार जाति के लोग नही बसते है।

भगवान शिव से भी जोड़ा जाता है टांगीनाथ का सम्बन्ध

कुछ लोग टांगीनाथ धाम मे गड़े फरसे को भगवान शिव का त्रिशुल बताते हुए इसका सम्बन्ध शिवजी से जोड़ते है। इसके लिए वो पुराणों कि एक कथा का उल्लेख करते है जिसके अनुसार एक बार भगवान शिव किसी बात से शनि देव पर क्रोधित हो जाते है। गुस्से में वो अपने त्रिशूल से शनि देव पर प्रहार करते है। शनि देव त्रिशूल के प्रहार से किसी तरह अपने आप को बचा लेते है। शिवजी का फेका हुआ त्रिशुल एक पर्वत को चोटी पर जा कर धस जाता है। वह धसा हुआ त्रिशुल आज भी यथावत वही पडा है। चुकी टांगीनाथ धाम मे गडे हुए फरसे की उपरी आकर्ति कुछ-कुछ त्रिशूल से मिलती है इसलिए लोग इसे शिव जी का त्रिशुल भी मानते है।

राजस्थान की कोबरा (जिप्सी) जनजाति के बारे में

 राजस्थान की कोबरा (जिप्सी) जनजाति के बारे में

राजस्थान की कोबरा जनजाति को स्थानीय रूप से कलाबेलिया जनजाति के रूप में जाना जाता है। सामान्य तौर पर, यह राजस्थान की एक आवारा जिप्सी जनजाति में से एक है। वे आम तौर पर गाँव के मेलों में फ्लैमेन्को जिप्सी नृत्य करते हैं, और साँपों के आकर्षण हैं।

इसी तरह की एक जनजाति है, वह है भोपा जिप्सी जनजाति। वे अपने आदिवासी नृत्य, गाने करते हैं और आजीविका चलाने के लिए अपने अद्वितीय संगीत वाद्ययंत्रों का प्रदर्शन करते हैं।

अतीत में, इन समुदायों को संगीत, नृत्य और गायन में उनके कौशल के लिए राजस्थान के राज्यों द्वारा संरक्षण दिया गया था, लेकिन राजस्थान से रॉयल्टी समाप्त होने के बाद, ये लोग दिन में दो बार भोजन बनाने के लिए सड़कों पर प्रदर्शन करने आते हैं।

इन लोगों को समाज में अछूत माना जाता है और सामाजिक स्पेक्ट्रम के सबसे कम सामाजिक आर्थिक समूह से संबंधित हैं। जीवन दुख से भरा है, रोटी के लिए संघर्ष करना है, सिर पर छत नहीं है, ये लोग थार के रेगिस्तान में आवारा के रूप में चरम जीवन जीते हैं।

और आंखों के हिस्से में आना, रंगीन आँखें इन समुदायों में बहुत आम हैं। इन जिप्सियों में लगभग हर तरह की आंखें हैं। उनके आंखों के रंगों के कुछ कारण हैं जो मैं इस संग्रह के बाद आपको बताना चाहूंगा।

राजस्थान में इस तरह की आंखों पे ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता हैं, ज्यादातर गांवों में क्योंकि वे इन आंखों को देखने के अभ्यस्त हो गए हैं क्योंकि ये लोग प्रदर्शन करने के लिए गांव के इलाकों में आते थे।

मैं बचपन से इन लोगों को देख रहा हूं क्योंकि ये लोग हमारे इलाकों में प्रदर्शन करने आते हैं और आज भी ये लोग अलग-अलग समारोहों में प्रदर्शन करते हैं।

इन लोगों के अलावा, कुछ सामान्य लोगों के पास चमकीली बनावट के साथ रंगीन आँखें हैं, लेकिन यह जिप्सी समुदाय में उतना आम नहीं है।

अजीब नज़रों से थार का बूढ़ा आदमी

अम्बर पर एक राजस्थानी

इन रहस्यमयी रंगीन आंखों के पीछे सदियों की कहानी है, ये जनजाति हजार से अधिक वर्षों से थार के निवासी हैं। ये लोग युगों से आवारा हैं। मध्ययुगीन समय में जब यूरोपीय, यूनानी और अफगान जैसे आक्रमणकारियों ने भारत पर आक्रमण किया, ये लोग सबसे पहले पीड़ित थे, इन लोगों को नरसंहार, बलात्कार और लूटपाट किया गया था। और इस सारे चक्र के परिणामस्वरूप विभिन्न नस्लों का प्रजनन हुआ और परिणामस्वरूप इन लोगों की आंखों के रंग में बदलाव आया, कुछ आक्रमणकारियों ने उन्हें अलग-अलग स्थानों पर दास के रूप में ले लिया और बाद में वे रोमा जिप्सियों के रूप में चले गए।

हाँ, ये राजस्थानी आदिवासी रोमा लोगों के पूर्वज हैं और यह भूमि रोमा जिप्सियों की पैतृक भूमि है।

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