शचीन्द्रनाथसान्याल क्रांतिकारी पुण्यतिथी 07 फरवरी
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मंगलवार, 8 फ़रवरी 2022
शचीन्द्रनाथ सान्याल क्रांतिकारी पुण्यतिथी 07 फरवरी - आनन्द जोशी, जोधपुर
हैप्पी #रोजडे (व्यंग्य) - आनंद जोशी, जोधपुर
हैप्पी #रोजडे (व्यंग्य)
श्रीमतीजी से आदेश मिला.. मंदिर में पूजा के लिये पुष्प लाना है ..
मै सूर्य-उदय से पूर्व ही फुल-माला की दुकान पहुचा , माली को 10/- का सिक्का देते हुवे ,बोला "एक गुलाब की माला देना", माली ने 10 का सिक्का वापस पकड़ाते बोला , अंकल, "आज गुलाब की माला , रोज के हिसाब से नही मिलेगी, आज कीमत में इजाफा है" मैने पुछा, क्यों भाई, वित्त मंत्री ने इस #बजट में गुलाब पर भी कोई भारी #टैक्स लगा दिया ? या सारे गुलाब स्वर कोकिला लताजी जी को अर्पण कर दिए है .. माली बोला , नही, ऐसा कुछ नही है, आज “रोजडे” है , इस कारण 10 रूपयें में गुलाब की माला नही, एक फूल मिल जाएगा .…....मैं रोजड़े को समझने का प्रयास करने लगा ही था कि इतने में....
एक #युवा, जिसका वजन मुश्किल से 40-45 किलोग्राम का रहा होगा , फर्राटेदार फटफट की आवाज करते हुवे #रॉयल इनफील्ड पर आया, मुह में भरी #गुटके की पीक, बीच सडक पर थूका , गुलाब का गुच्छ खरीदा , बदले में 100/- का नोट पकड़ाया ओर सुल्तान की तरह वापस नये गुटके के पाउच को मुह में डाला, पन्नी को सड़क पर फैका ओर फटफट करते हुवे आगे चला, उसके जाने के बाद मेरी नजर गुटके की पन्नी पर गई, जिस पर मोटे अक्षर से लिखा था, तम्बाकू खाने से होता है #कैंसर ....इतने में दो स्कूटी मेरे पास आकर रुकी, दोनो चालक के मुँह मास्क व स्काफ से बंदे हुवे थे, मैंने सोचा सर्दी ज्यादा है , ओर कोरोना भी है....लेकिन पिछवाडे का खुला बदन देख समझ आया कि वाहन चालक वर्तमान काल की #देवी रूपा है ....दोनो देवियों ने गुलाब गुच्छ खरीदे ओर #शिक्षण संस्थान के विपरीत दिशा में चलती बनी ....
गुलाबो की भारी मात्रा में खरीद फरोख्त देखकर वहां खड़े युवाओ से मैंने पुछा "बेटे आज तुम सभी लोग गुलाब किसके लिए लेकर खरीद रहे हों ? क्या आज भी तुम्होरे विघालय में बसन्त उत्सव मनाया जा रहा है ? या भारत राष्ट्र के वीर महान क्रांतिकारी #शर्चीद्र नाथ सान्याल , जिनकी आज 07 फरवरी को पुण्य तिथि है उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करने जा रहे हो ।
लडको ने कहा, अंकल हम “रोजडे” मना रहे है जो 07 फरवरी को आता है और .... ओर वो लडके अपने अपने हाथों में रोज लेकर मन्तव्य करते हुए अपने गन्तव्य की ओर चल दिए ओर मैं 10 का सिक्का पुनः अपनी जेब में डाल कर बिना #गुलाब खरीदे ही घर की ओर चलने लगा ....
पैदल ही अपने घर की ओर जा ही रहा था कि कि बीच खेतो में से कुछ #रोजडे(चौपाहिया जानवर) मुझे दिखाई दिये जिसके शरीर पर, सिर पर, कान पर, पूछ पर, किसी भी अंग पर #गुलाब नजर नही आया, मैं अब यह सोचने लगा कि युवा तो यह कह रहे था कि आज #रोजडे है ओर इस “रोजडे” के शरीर पर तो एक भी #गुलाब का फुल नही तो फिर आज गुलाब के फुल इतने मंहगे क्यु ? ………ओर मैं इसी सोच के साथ आगे चलने लगा ..........
शेष कल (अगर सोचने का समय मिला तो लिखने का प्रयास करूगा)😊
आनंद जोशी, जोधपुर
सोमवार, 7 फ़रवरी 2022
सांप की मौसी किसे कहा जाता है ?
हमारे यहां कभी-कभी एक छिपकली जैसा लेकिन वह चलता साँप जैसा जीव दिखाई देता है उसे यहाँ हमारी स्थानीय भाषा में 'सांप की मौसी' और 'बामनी' कहते हैं।
(चित्र :- हाथों में दस्ताना पहनकर पकड़ी हुई बामनी हालाँकि यह ख़तरनाक नहीं है।)
इसका रंग सांप जैसा चमकीला होता है। इसके काटने से जहर नहीं फैलता है।
बचपन में रेत में खेलते वक़्त निकला करती थी। हम तब किसी भी तरह इसकी पूछ को छु लेना चाहते थे। कहते है इसे छूना सौभाग्यशाली होता है।
चलते-चलते इसके बारे में थोड़ा सा और जान लेते है-
वैज्ञानिक नाम :- Eutropis Carinata
सामान्य नाम :- Keeled Indian Mabuya (स्किंक)
- जहरीली नही।
- अधिकतम लंबाई 15 cm
- पूछ को अलग कर सकती है। Regenerative Tail
- कीड़े इत्यादि खाकर इको सिस्टम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- स्किंक तमाम प्रकार के पर्यावासों में रहते हैं।
- छिपकली जैसी शक्ल-सूरत, आकार-प्रकार। लेकिन, चमकदार त्वचा और देखने में गोरी-चिट्टी और साफ-सुथरी। शायद इसी के चलते इसे बभनी कहा जाता होगा।
स्किंक जहरीले नहीं होते हैं। उन्हें देखकर डरन की जरूरत नहीं है। कुछ लोग सरीसृपों (रेप्टाइल) या रेंगने वाले जीवों से घृणा करते हैं। अक्सर ही इन्हें सांप के साथ जोड़कर देखा जाता है, इसलिए लोग इन्हें जहरीला भी समझते हैं। इन्हें देखकर घृणा करने की भी जरूरत नहीं है।
बदलाव :- आज घर पर फिर से दिखाई दी यह देखिए-
- भोजपुरी में इसे लोटनी कहते हैं।
- छत्तीसगढ़ी में बिजगुरीया
- सादरी में गछई कहते हैं।
- हमारे बचपन मे इसे नुकसान पहुचाने की सख्त मनाही थी,दादी कहती थीं ये अपने माँ की इकलौती औलाद होते हैं।
- इसे भोलेनाथ के कुँडल मानते हैं। कहते थे इसे छूने से पैसे मिलते है।
ये भी ईकोसिस्टम में अपनी भूमिका अदा कर रहे हैं। उससे कहीं ज्यादा, जितना होमो सेपियंस अदा कर रहे हैं।
बच्चों को फोन से दूर रखना तो ख़ासा मुश्किल काम है
बच्चे और धर्म
सम्मलेन “साइबर क्राइम” पर था और चूँकि ऑनलाइन गालीगलौच से अक्सर कम उम्र के या सोशल मीडिया पर नए आये लोगों के अवसाद में जाने की घटनाएँ होती रहती हैं, इसलिए वहाँ एक मनोवैज्ञानिक भी मौजूद थे। महिलाओं में से एक ने प्रश्न किया कि मोबाइल और सोशल मीडिया बच्चों के लिए घातक है, ये तो समझ में आता है, मगर बच्चों को फोन से दूर रखना तो ख़ासा मुश्किल काम है। वो तो मौका पाते ही फोन झपट लेते हैं और न देने पर रोना-धोना बंद करवाना भी काफी मुश्किल होता है! जवाब में मनोवैज्ञानिक ने प्रतिप्रश्न किया, अगर मैं आपके घर ऐसे वक्त आऊं जब आप कोई काम न कर रही हों, तो आप क्या करती मिलेंगी? क्या आप अपने मोबाइल फ़ोन में कोई वीडियो देख रही होंगी, या खाली समय में व्हाट्सएप्प वगैरह पर चैटिंग कर रही होंगी?
जब कई महिलाओं का जवाब हाँ में आया तो मनोवैज्ञानिक ने अपनी आगे की बात रखी। बच्चे वही सीखते हैं जो वो बड़ों को करते देखते हैं। इससे पिछली पीढ़ी में संभवतः कई लोग शाम में टीवी शो देखते पाए जाते थे तो अगली पीढ़ी यानी हम लोगों ने बचपन में वो सीख लिया। फिर अब जब वही टीवी शो वगैरह मोबाइल पर भी आने लगे तो हमारी पीढ़ी अपने खाली समय का काफी हिस्सा फोन पर बिताने लगी। किताबें पढ़ना, सिलाई-बुनाई, चित्रकारी जैसे शौक को अब उतना समय नहीं दिया जाता। बच्चे जो भी बड़ों को करते देखते हैं, वो उसी की नक़ल करके सीखते हैं। ऐसे में वो लगातार सभी को मोबाइल फ़ोन में व्यस्त देखने लगे, तो बाहर खेलने जाना, चित्रकारी या पढ़ने जैसी चीज़ें वो सीखेंगे कहाँ से?
इसी को थोड़ा आगे ले आकर आप ये सोचिये कि क्या आपको कोई भजन, पूरा न सही कोई एक दो वाक्य ही, याद हैं? जो याद हैं, क्या वो वही नहीं हैं जो आपके घर में कोई रिश्तेदार, संभवतः दादी-नानी जैसे कोई लोग गुनगुनाया करते थे? पूजा-पाठ जैसे तरीके भी आपने अपने परिवार के लोगों को जैसे करते पाया, वही सीखा है। जब आप खुद तिलक लगाये नहीं दिखते, पूजा नहीं करते, बच्चों को साथ लेकर मंदिर नहीं गए, तो आज थोड़ा बड़े होने पर, किशोरावस्था में आने पर वो अगर ये सब नहीं कर रहे हैं तो आश्चर्य क्यों होना चाहिए? ध्यान रहे किशोरावस्था तेरह वर्ष की आयु पर शुरू और उन्नीस पर ख़त्म मानी जाती है, और कानूनी तौर पर 18 से कम उम्र का कोई भी बच्चा ही है। ऐसे में हम जिन्हें बच्चा कह रहे हैं वो अगर 13 से 18 के बीच के हैं तो किशोरावस्था वाला विद्रोही स्वभाव और बच्चों वाली जिज्ञासा दोनों का सामना करना होगा।
अगर आप ये नहीं बता सकते कि कोई त्यौहार क्यों मनाया जाता है, तो क्या होगा? उदाहरण के तौर पर दुर्गा पूजा क्यों मनाई जाती है, ये अगर आपने नहीं बताया तो नतीजा यही होगा कि कोई और इयान डीकॉस्टा जैसा अपने फॉरवर्ड प्रेस के जरिये आकर जब उसे सिखा देगा कि महिषासुर एक मूल निवासी राजा था जिसे विदेशी दुर्गा ने छल से मार दिया तो उसके पास विश्वास करने के सिवा क्या चारा होगा? आपने तो कुछ बताया ही नहीं था। ऐसे ही जब आप नहीं बताते कि होली के आस-पास भारत में मौसम सूखा और गर्म होने लगता है। ऐसे मौसम में ही वन विभाग आग लगने की चेतावनियाँ जारी करना शुरू करता है। हिन्दुओं में परंपरागत रूप से आग जिन लकड़ियों में लग सकती हो उसे होलिका दहन में इकठ्ठा करके जला देते हैं और होली पर पानी का छिड़काव वातावरण में आद्रता बढ़ा देता है।
छोटे कस्बों-गावों में अब भी इस मौसम के शुरू होते ही घरों दुकानों के सामने पानी का छिड़काव करके सूखी लकड़ियों, जाड़े के बाद टूटे पत्तों, कागज और दूसरे ज्वलनशील कचरे को इकठ्ठा किया जाने लगता है। फिर सामुदायिक रूप से कई लोगों की निगरानी में इसे जला दिया जाता है ताकि आग को खुराक न मिले। रिहाइशी इलाकों में पानी के छिड़काव से आद्रता रहेगी, तो आस पास जंगलों में आग लगेगी तो भी मनुष्यों की आबादी वाले इलाके का अधिक नुकसान नहीं हो पायेगा। लेकिन आपने तो ये सिखाया ही नहीं! ऐसे में जब उसे कोई होली को पानी की बर्बादी बताएगा तो वो क्यों पूछेगा कि एक लीटर पानी साफ़ करने में जो आरओ नौ लीटर पानी बर्बाद कर देता है, उसे रोककर पानी बचाओ। वो क्यों बहकाने वाले को याद दिलाएगा कि दो-दो कारों को धोने में जो हर रोज पानी बर्बाद होता है, उसे बचाया जाए।
दीपावली के समय जब कोई उसे धुंए या प्रदुषण की सीख देने लगे तो जब उसे आपने ये पहले से बताया हो कि दफ्तरों में चौबीसों घंटे चलने वाले एसी का जो पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है, उसे भी देखा जाए, तभी वो इस बारे में पूछेगा। वर्ष भर कार पूल या पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग, फ्रिज बंद रखना, सिगरेट छोड़ना जैसा कुछ किसी ने किया है जो उससे पूछने आया है दीपावली के प्रदुषण पर, ये तो आपको याद दिलाना होगा। ऐसे सभी मसलों पर अगर आप सर हिलाते हुए कहते हैं कि हमारी युवा पीढ़ी धर्म से कटती जा रही है तब असल में उसकी ओर इशारा करते वक्त आपके ही हाथ की तीन उँगलियाँ आपकी तरफ मुड़ जाती हैं। कहीं न कहीं पिछली पीढ़ी ने उसे सिखाने, उसे बताने में कमी छोड़ी इसी लिए आज उसकी जानकारी कम है। कहीं न कहीं पिछली पीढ़ी ने उससे संवाद कम रखा, छोड़ दिया, या उसकी भाषा, उसे समझ में आने वाली शैली में नहीं किया, इसी लिए आज उसकी इस विषय में रूचि कम है।
याद रखिये कि जब आप कोई पौधा लगाते हैं और वो उस तरह फलता-फूलता, या पनपता नहीं जैसा उसे बढ़ना चाहिए था तो आप पौधे को दोष देने नहीं बैठते। आप देखते हैं की कहीं खाद-मिट्टी अनुपयुक्त तो नहीं, कहीं पानी ज्यादा या कम मिला हो ऐसा तो नहीं, कहीं वातावरण तो पौधे के लिए प्रतिकूल नहीं था? इसलिए जब ऐसे सवाल सामने आयें तो हमें सोचना होगा कि हमसे कहाँ कमियां रह गयी हैं। हमें आज ये अच्छी तरह मालूम है कि संविधान में सेक्युलर का हिन्दी अर्थ पंथनिरपेक्ष लिखा हुआ है, लेकिन उसे धर्म-निरपेक्ष बनाकर स्कूलों के पाठ्यक्रम से धर्म सम्बन्धी शिक्षा हटा ली गयी है। ये बच्चों ने नहीं हमारी आपकी, या हमसे पीछे की पीढ़ियों ने किया है। घर में अगर हमने सिखाया नहीं और स्कूल-कॉलेज में ये पाठ्यक्रम में था
रविवार, 6 फ़रवरी 2022
भगवान महेश के अनुग्रह से उत्पन्न हुई वैश्य वर्ण जाति को माहेश्वरी कहते हैं
भगवान शिव जिनका एक नाम महेश भी है, ऐसे देवाधिदेव महादेव और माता पार्वती के अनुग्रह से उत्पन्न हुई वैश्य वर्ण का पालन करने वाली जाति को माहेश्वरी (English : Maheshwari) कहते हैं। भारत के राजस्थान राज्य में आने वाले मारवाड़ क्षेत्र से सम्बद्ध होने के कारण इन्हें मारवाड़ी भी कहा जाता है। माहेश्वरी जाति की उत्पत्ति भगवान शिव की महान कृपा-आशीर्वाद से ही हुआ है इसलिए 'श्री शिव परिवार' (भगवान शिवजी, माता पार्वतीजी, देवसेनापति कुमार श्री कार्तिकेयजी एवं प्रथमपूज्य देवता श्री गणेशजी) को माहेश्वरियों के कुलदेवता / कुलदैवत माना जाता है। माहेश्वरी जाति के मंदिरों में मुख्य रूप से श्री शिव परिवार की ही स्थापना होती है, यद्यपि यह भी सत्य है कि अधिकांश माहेश्वरियों ने वैष्णव संप्रदायों (वल्लभ सम्प्रदाय और रामानुज सम्प्रदाय आदि) से दीक्षा ग्रहण की हुई है। परंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि यहाँ इष्ट का भेद है। सनातन धर्म में इष्ट देव के भेद से धर्म भेद को प्राप्त नहीं होता।
माहेश्वरी
विशेष निवासक्षेत्र | |
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भारत |
"धर्मस्य मूलम् अर्थः" अर्थात धर्म का मूल अर्थ है। इसलिये स्वयं शास्त्रोक्त विधा से वैश्य धर्म (कृषि, गोपालन और वाणिज्य) का पालन करना, विश्व की अर्थव्यवस्था और अर्थ तंत्र को शास्त्रसम्मत बनाने का प्रकल्प चलना और विश्व में अर्थ के प्रकल्पों की भ्रष्ट होने से रक्षा करना माहेश्वरी समाज प्रमुख सिद्धान्त हैं। जब लोग शास्त्रोक्त यज्ञादि कर्मों से विमुख होने लगे थे तब संयोग ऐसे बने कि माहेश्वरी जाति की उत्पत्ति हुई, इस कारण माहेश्वरियों पर यह बहुत बड़ा दायित्व है कि धर्म का पालन तो करें ही लेकिन साथ ही निस्वार्थ भाव से धर्म की स्थापना करने के लिए अपने धन को उस ओर लगाए।
माहेश्वरी समाज सत्य, प्रेम और न्याय के पथ पर चलता है। शरीर को स्वस्थ-निरोगी रखना, कर्म करना (मेहनत और ईमानदारी से काम करना), बांट कर खाना और प्रभु की भक्ति (नाम जाप एवं योग साधना) करना इसके आधार हैं। माहेश्वरी अपने धर्माचरण का पूरी निष्ठा के साथ पालन करते है तथा वह जिस स्थान / देश / प्रदेश /शहर में रहते है वहां की स्थानिक संस्कृति का पूरा आदर-सम्मान करते है, इस बात का ध्यान रखते है; यह माहेश्वरी समाज की विशेष बात है। आज दुनियाभर के कई देशों में और तकरीबन भारत के हर राज्य, हर शहर में माहेश्वरी बसे हुए है और अपने अच्छे व्यवहार के लिए पहचाने जाते है। मधुबनी जिला,बिहार राज्य से तीन किलोमीटर उत्तर में ग्राम अहमादा,पंचायत रघुनी देहट में मैथिल ब्राह्मण परिवार जिनका गोत्र काश्यप है भी माँ माहेश्वरी को अपना कुलदेवी मानते हुए वर्षों से नियमित पूजा अर्चना करते आ रहे हैं।
माहेश्वरी खांपें - गौत्र - कुलदेवियाँ एवं मन्दिर
क्र॰सं॰ | खांप | गोत्र | कुलदेवी | मन्दिर |
---|---|---|---|---|
01 | जेथलिया | जाजाऊंश | आनंदी माता | रूपनगढ़ से ४० कि.मी. है नोसल,राजस्थान |
02 | सोनी | धुम्रांस | सेवल्या माता | बागोर, तह, मांडल, जिला भीलवाडा/ओसियां में भी |
03 | सोमानी | लियांस | बंधर माता | उदयपुर से 70 किमी तानागाँव, (मोरगांव) जम्मू में भी |
04 | जाखेटिया | सीलांस | सिसनाय माता | मांडल गाँव, भीलवाडॉ॰ |
05 | सोढानी | सोढास | जीण माता | अरावली पर्वतमाला में, सीकर से 10 मील. |
06 | हुरकुट | कश्यप | विषवंत माता | फलौदी गाँव के पास में है। |
07 | न्याती | नाणसैण | चांदसेन माता | वाचर्देचण, मानपुरा गाँव के पास. |
08 | हेडा | धनांस | फलोदी माता | रामगंज मंडी, मेड़ता रोड (नागौर) में भी. |
09 | करवा | करवास | सच्चियाय माता | जोधपुर से 65 किमी ओसियां में. |
10 | कांकाणी | गौतम | आमल माता | रीछेड गाँव, तह. कुम्भलगढ़, जि. राजसमन्द. |
11 | मालू/मालूदा | खलांस | संचाय माता | जोधपुर से 65 किमी ओसियां में. |
12 | सारडा | थोम्बरास | संचाय माता | जोधपुर से 65 किमी ओसियां में. |
13 | काह्ल्या | कागायंस | लीकासन माता | ग्रा. लेखासान, नागौर (छोटी खाटू से 4 मील). |
14 | गिलडा | गौत्रम | डायल माता/ | डेरू गाँव, नागौर से 20 किलोमीटर |
15 | जाजू | वालांस | फलोदी माता | रामगंज स्टेशन के पास, मेड़ता रोड (नागौर). |
16 | बाहेती | गौकलांस | सिंदल माता | राम गाँव, जैसलमेर के पास. |
17 | बिदादा | गजांस | पाढाय माता | डीडवाना. |
18 | बिहाणी | वालांस | संचाय माता | जोधपुर से 65 किमी ओसियां में. |
19 | बजाज | भंसाली | गाहिल माता | आसोप, मेड़ता रोड से 40 किलोमीटर |
20 | कलंत्री | कश्यप | पाण्डुका माता | ग्रा. जायल, जि. नागौर. |
21 | कासट | अचलांस | सच्चियाय माता | जोधपुर से 65 किमी ओसियां में. |
22 | काचोला | सीलांस | पाढाय माता | डीडवाना. |
23 | कालाणी | धौलांस | चावडां माता | मेड़ता सिटी और मेड़ता रोड के मध्य. |
24 | झंवर | घुम्रक्ष | गाहील माता | करमीसर गाँव, जि. बीकानेर. |
25 | काबरा | अचित्रांस | सुसमाद माता | कृषिमंडी, कुचेरा (नागौर), मेड़ता रोड के पास. |
26 | डाड़ | आमरांस | भद्रकाली माता | हनुमानगढ़, (बीकानेर). |
27 | डागा | राजहंस | सच्चियाय माता | जोधपुर से 65 किमी ओसियां में |
28 | गट्टानी | ढालांस | चावड़ा माता | मेड़ता सिटी और मेड़ता रोड के मध्य. |
29 | राठी | कपिलांस | संचाय माता | जोधपुर से 65 किमी ओसियां में. |
30 | बिड़ला | वालांस | संचाय माता | जोधपुर से 65 किमी ओसियां में. |
31 | दरक | हरिद्रास | नागणेची माता | नेगडिया, नाथद्वारा, उदयपुर. |
32 | तोषनीवाल | कौशिक | खुखर माता | तिंवरी, जि.जोधपुर से 32 किलोमीटर |
33 | अजमेरा | मानांस | नौसार माता | कनेर, जि. चित्तोड़गढ़, पुष्कर घाटी में. |
34 | भण्डारी | कोशिक | नागणेची माता | नेगडिया, नाथद्वारा, उदयपुर. |
35 | छापरवाल | कौशिक | बंधर माता | उदयपुर से 70 किलोमीटर तानागाँव, (मोरगांव). |
36 | भट्ठड़ | भट्टयास | बिसल माता | गडसीसर झील, जैसलमेर. |
37 | भूतड़ा | अचलांस | खीवंज माता | पोकरण/ कटौती तह. जायल, नागौर में भी. |
38 | बंग | सौढ़ास | खांडल माता | मूंडवा, (नागौर). |
39 | अटल | गौतम | सच्चियाय माता | जोधपुर से 65 किमी ओसियां में |
40 | इन्नाणी | शैषांश | जैसल माता |
|
41 | भराडिया | अचित्र | दधीमचि माता | किरणसरिया, मांगलोर जि. नागौर (रोलगाँव). |
42 | भन्साली | भंसाली | चावड़ा माता | पाण्डुका जायल, मेड़ता सिटी-मेड़ता रोड के मध्य. |
43 | लड्ढा | सीलांस | बाकला माता | उम्मेदनगर, तह. ओसियां, जि. जोधपुर. |
44 | मालपाणी | भट्टयास | बिसल माता | भादरिया, जैसलमेर (पोकरण से 50 किमी). |
45 | सिकची | कश्यप | संचाय माता | जोधपुर से 65 किमी ओसियां में. |
46 | लाहोटी | कांगास | गाहिल माता | आसोप, मेड़ता रोड से 40 किलोमीटर |
47 | गदहया (गोयल) | गौरांस | बंधर माता | उदयपुर से 70 किमी तानागाँव, (मोरगांव). |
48 | गगराणी | कश्यप | पाढाय माता | डीडवाना. |
49 | खटोड | मूंगास | नौसाल्या माता | दहौडी, तह. जावद, जि. मंदसौर (मालवा). |
50 | मोलासरिया | निरमिलांस | पाढाय माता | नमक झील, डीडवाना |
51 | लखोटिया | फाफडांस | संचाय माता | जोधपुर से 65 किमी ओसियां में. |
52 | असावा | बालांस | आसावरी माता | ओसियां, किराडू (बाड़मेर), डीडवाना में भी. |
53 | चेचाणी | सीलांस | दधवंत माता | मांगलोर (किरणसरिया), रोलगाँव जि. नागौर. |
54 | मानधना | जेसलानी/माणधनी माता | कोट मोहल्ला, डीडवाना. | |
55 | मूंधड़ा | गोवांस | मूँदल माता | मुंदीयाड, जि. नागौर. |
56 | चोखाड़ा | चंद्रास | जीवन माता |
|
57 | चांडक | चंद्रास | आसापुरा माता | आसापुर (उदयपुर), आनन्द से 18 मील. |
58 | बलदेवा | बालांस | हिंगलाज माता | मूल मन्दिर बलूचिस्तान (पाकिस्तान) में. |
59 | बाल्दी | लौरस | गारस माता |
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60 | बूब | मूसाइंस | भद्रकाली माता | हनुमानगढ़. |
61 | बांगड़ | चूडांस | संचाय माता | जोधपुर से 65 किमी ओसियां में. |
62 | मंडोवर | बछांस | धौलेसरी रुई माता | बहतु गाँव, जि. अलवर. |
63 | तोतला | कपिलांस | खुखर माता | तिंवरी, जि. जोधपुर से 32 किलोमीटर |
64 | आगीवाल | चंद्रास | भैसादं माता | पाडा, डीडवाना.(नीमच में भी). |
65 | आगसूंड | कश्यप | जाखण माता |
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66 | परतानी | कश्यप | संचाय माता | जोधपुर से 65 किमी ओसियां में. |
67 | नावंधर | बुग्दालिभ | धरजल माता | पोकरण, जि. जैसलमेर. |
68 | नवाल | नानणांस | नवासण माता |
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69 | पलोड़ | साडांस | जुजेश्वरी माता | नारनोल (हरियाणा), रेवाड़ी, महोसर में भी. |
70 | तापडिया | पीपलांस | आसापुरा माता | आसापुर (उदयपुर), आनन्द से 18 मील. |
71 | मणियार | कौशिक | दायमा माता | किरणसरिया, जि. नागौर. |
72 | धूत | फाफडांस | लीकासन माता | ग्रा. लेखासान, नागौर (छोटी खाटू से 4 मील). |
.... वंशोत्पति के बाद कुछ खान्पे और बनी, जिसकी जानकारी नीचे दी जा रही है :-
73 | मंत्री | कंवलांस | संचाय माता | सांवर गाँव, जि. अजमेर, चित्तौडगढ़ में भी. |
74 | देवपुरा | पारस | पाढाय माता | डीडवाना. |
75 | पोरवाल/परवाल | नानांस | भद्रकाली माता/ | . |
76 | धूपड | सिरसेस | फलोदी माता | रामगंज मंडी, मेड़ता रोड (नागौर) में भी. |
77 | मोदाणी | साडांस | चावड़ा माता | गाँव पाण्डुका, मेड़ता सिटी-मेड़ता रोड के मध्य. |
78 | नौलखा | कश्यप/गावंस | पाढाय माता | डीडवाना, जायल जि. नागौर में भी. |
79 | टावरी | माकरण | चावड़ा माता | गाँव पाण्डुका, मेड़ता सिटी-मेड़ता रोड के मध्य. |
80 | दरगड़ | गोवंस | नागणेची माता | नेगडिया, नाथद्वारा, उदयपुर. |
81 | बागड़ी | लियांस | बंधर माता | उदयपुर से 70 किमी तानागाँव, (मोरगांव) जम्मू में भी |
82 | खावड | मूंगास | नौसाल्या माता | दहौडी, तह. जावद, जि. मंदसौर (मालवा). |
83 | लोहिया | चंद्रास |
| |
84 | रांदड | कश्यप | संचाय माता | जोधपुर से 65 किमी ओसियां में. |
85 | कालिया | झुमरंस | आसावरी माता | ओसियां, किराडू (बाड़मेर), डीडवाना में भी. |
निम्न दी गई खान्पों में जाजू एवं राठी महेश्वरीयों में मुख्य मानी गई हैं।
- निम्न खान्पों/नखों की कुलदेवी भी संचाय माता ही है :- (जोधपुर से 65 किमी ओसियां में).
दम्माणी, करनाणी, सुरजन, धूरया, गांधी, राईवाल, कोठारी, मालाणी, मूथा, मोदी, मोह्त्ता, फाफट आदि l इसके अलावा भी बहुत सी खान्पे है, जो यहाँ नहीं आ सकी है, जो 'राठी' खांप के गोत्र के अंतर्गत आती है l कुछेक अन्य भी हो सकती है l
- भैयाओं की माता - लटियार माता, फलौदी.
- तेलाओं की माता - चावड़ा माता, जायल (नागौर).
- गोत्र केवल ब्रह्मण वर्ण में ही होते थे l अन्य वर्णों ने अपने पुरोहितों के गोत्रों को ही स्वीकार कर लिया है l
- माहेश्वरियों के ये आठ गुरु हैं - 1. पारीक, 2. दाधीच, 3. गुर्जर गौड़, 4. खंडेलवाल, 5. सिखवाल, 6. सारस्वत, 7. पालीवाल, 8. पुष्करणा.
आगे इनकी और कई नख/उप-खांपे हुयी जैसे - ओझा, दायमा, शर्मा, आदि (आगे चलकर इन गुरुओं को पुरोहित कहकर जाना जाने लगा.).
चलिए हजारो साल पुराना इतिहास पढ़ते हैं -1800-1947 तक अंग्रेजो के शासन रहा और यहीं से जातिवाद शुरू हुआ ।
चलिए हजारो साल पुराना इतिहास पढ़ते हैं।
सम्राट शांतनु ने विवाह किया एक मछवारे की पुत्री सत्यवती से । उनका बेटा ही राजा बने इसलिए भीष्म ने विवाह न करके,आजीवन संतानहीन रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की।
सत्यवती के बेटे बाद में क्षत्रिय बन गए, जिनके लिए भीष्म आजीवन अविवाहित रहे, क्या उनका शोषण होता होगा?
महाभारत लिखने वाले वेद व्यास भी मछवारे थे, पर महर्षि बन गए, गुरुकुल चलाते थे वो।
विदुर, जिन्हें महा पंडित कहा जाता है वो एक दासी के पुत्र थे, हस्तिनापुर के महामंत्री बने, उनकी लिखी हुई विदुर नीति, राजनीति का एक महाग्रन्थ है।
भीम ने वनवासी हिडिम्बा से विवाह किया।
श्रीकृष्ण दूध का व्यवसाय करने वालों के परिवार से थे,
उनके भाई बलराम खेती करते थे, हमेशा हल साथ रखते थे।
यादव क्षत्रिय रहे हैं, कई प्रान्तों पर शासन किया और श्रीकृषण सबके पूजनीय हैं, गीता जैसा ग्रन्थ विश्व को दिया।
राम के साथ वनवासी निषादराज गुरुकुल में पढ़ते थे।
उनके पुत्र लव कुश महर्षि वाल्मीकि के गुरुकुल में पढ़े जो *वन के वासी थे।
तो ये हो गयी वैदिक काल की बात, स्पष्ट है कोई किसी का शोषण नहीं करता था,सबको शिक्षा का अधिकार था, कोई भी पद तक पहुंच सकता था अपनी योग्यता के अनुसार।
वर्ण सिर्फ काम के आधार पर थे वो बदले जा सकते थे, जिसको आज इकोनॉमिक्स में डिवीज़न ऑफ़ लेबर कहते हैं वो ही।
प्राचीन भारत की बात करें, तो भारत के सबसे बड़े जनपद मगध पर जिस नन्द वंश का राज रहा वो जाति से नाई थे ।
नन्द वंश की शुरुवात महापद्मनंद ने की थी जो की राजा नाई थे। बाद में वो राजा बन गए फिर उनके बेटे भी, बाद में सभी क्षत्रिय ही कहलाये।
उसके बाद मौर्य वंश का पूरे देश पर राज हुआ, जिसकी शुरुआत चन्द्रगुप्त से हुई,जो कि एक मोर पालने वाले परिवार से थे और एक ब्राह्मण चाणक्य ने उन्हें पूरे देश का सम्राट बनाया । 506 साल देश पर मौर्यों का राज रहा।
फिर गुप्त वंश का राज हुआ, जो कि घोड़े का अस्तबल चलाते थे और घोड़ों का व्यापार करते थे।140 साल देश पर गुप्ताओं का राज रहा।
केवल पुष्यमित्र शुंग के 36 साल के राज को छोड़ कर 92% समय प्राचीन काल में देश में शासन उन्ही का रहा, जिन्हें आज दलित पिछड़ा कहते हैं तो शोषण कहां से हो गया? यहां भी कोई शोषण वाली बात नहीं है।
फिर शुरू होता है मध्यकालीन भारत का समय जो सन 1100- 1750 तक है, इस दौरान अधिकतर समय, अधिकतर जगह मुस्लिम शासन रहा।
अंत में मराठों का उदय हुआ, बाजी राव पेशवा जो कि ब्राह्मण थे, ने गाय चराने वाले गायकवाड़ को गुजरात का राजा बनाया, चरवाहा जाति के होलकर को मालवा का राजा बनाया।
अहिल्या बाई होलकर खुद बहुत बड़ी शिवभक्त थी। ढेरों मंदिर गुरुकुल उन्होंने बनवाये।
मीरा बाई जो कि राजपूत थी, उनके गुरु एक चर्मकार रविदास थे और रविदास के गुरु ब्राह्मण रामानंद थे|।
यहां भी शोषण वाली बात कहीं नहीं है।
मुग़ल काल से देश में गंदगी शुरू हो गई और यहां से पर्दा प्रथा, गुलाम प्रथा, बाल विवाह जैसी चीजें शुरू होती हैं।
1800-1947 तक अंग्रेजो के शासन रहा और यहीं से जातिवाद शुरू हुआ । जो उन्होंने फूट डालो और राज करो की नीति के तहत किया।
अंग्रेज अधिकारी निकोलस डार्क की किताब "कास्ट ऑफ़ माइंड" में मिल जाएगा कि कैसे अंग्रेजों ने जातिवाद, छुआछूत को बढ़ाया और कैसे स्वार्थी भारतीय नेताओं ने अपने स्वार्थ में इसका राजनीतिकरण किया।
इन हजारों सालों के इतिहास में देश में कई विदेशी आये जिन्होंने भारत की सामाजिक स्थिति पर किताबें लिखी हैं, जैसे कि मेगास्थनीज ने इंडिका लिखी, फाहियान, ह्यू सांग और अलबरूनी जैसे कई। किसी ने भी नहीं लिखा की यहां किसी का शोषण होता था।
योगी आदित्यनाथ जो ब्राह्मण नहीं हैं, गोरखपुर मंदिर के महंत हैं, पिछड़ी जाति की उमा भारती महा मंडलेश्वर रही हैं। जन्म आधारित जातीय व्यवस्था हिन्दुओ को कमजोर करने के लिए लाई गई थी।
इसलिए भारतीय होने पर गर्व करें और घृणा, द्वेष और भेदभाव के षड्यंत्र से खुद भी बचें और औरों को भी बचाएं ।
यह पोस्ट अधिक से अधिक शेयर करें ... उन हिन्दू भाईयों को जोड़िये जो मुगलिया, अंग्रेजी और दलितों के षडयंत्र के कारण अपने🎁 आपको अलग मानते हैं और हिन्दू एकता में बाधा उत्पन्न करते हैं। लक्ष्य उनको भी जोड़ने का है ।
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