हमारे यहां कभी-कभी एक छिपकली जैसा लेकिन वह चलता साँप जैसा जीव दिखाई देता है उसे यहाँ हमारी स्थानीय भाषा में 'सांप की मौसी' और 'बामनी' कहते हैं।
(चित्र :- हाथों में दस्ताना पहनकर पकड़ी हुई बामनी हालाँकि यह ख़तरनाक नहीं है।)
इसका रंग सांप जैसा चमकीला होता है। इसके काटने से जहर नहीं फैलता है।
बचपन में रेत में खेलते वक़्त निकला करती थी। हम तब किसी भी तरह इसकी पूछ को छु लेना चाहते थे। कहते है इसे छूना सौभाग्यशाली होता है।
चलते-चलते इसके बारे में थोड़ा सा और जान लेते है-
वैज्ञानिक नाम :- Eutropis Carinata
सामान्य नाम :- Keeled Indian Mabuya (स्किंक)
- जहरीली नही।
- अधिकतम लंबाई 15 cm
- पूछ को अलग कर सकती है। Regenerative Tail
- कीड़े इत्यादि खाकर इको सिस्टम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- स्किंक तमाम प्रकार के पर्यावासों में रहते हैं।
- छिपकली जैसी शक्ल-सूरत, आकार-प्रकार। लेकिन, चमकदार त्वचा और देखने में गोरी-चिट्टी और साफ-सुथरी। शायद इसी के चलते इसे बभनी कहा जाता होगा।
स्किंक जहरीले नहीं होते हैं। उन्हें देखकर डरन की जरूरत नहीं है। कुछ लोग सरीसृपों (रेप्टाइल) या रेंगने वाले जीवों से घृणा करते हैं। अक्सर ही इन्हें सांप के साथ जोड़कर देखा जाता है, इसलिए लोग इन्हें जहरीला भी समझते हैं। इन्हें देखकर घृणा करने की भी जरूरत नहीं है।
बदलाव :- आज घर पर फिर से दिखाई दी यह देखिए-
- भोजपुरी में इसे लोटनी कहते हैं।
- छत्तीसगढ़ी में बिजगुरीया
- सादरी में गछई कहते हैं।
- हमारे बचपन मे इसे नुकसान पहुचाने की सख्त मनाही थी,दादी कहती थीं ये अपने माँ की इकलौती औलाद होते हैं।
- इसे भोलेनाथ के कुँडल मानते हैं। कहते थे इसे छूने से पैसे मिलते है।
ये भी ईकोसिस्टम में अपनी भूमिका अदा कर रहे हैं। उससे कहीं ज्यादा, जितना होमो सेपियंस अदा कर रहे हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी करें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.