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रविवार, 6 फ़रवरी 2022

भगवान महेश के अनुग्रह से उत्पन्न हुई वैश्य वर्ण जाति को माहेश्वरी कहते हैं

भगवान शिव जिनका एक नाम महेश भी है, ऐसे देवाधिदेव महादेव और माता पार्वती के अनुग्रह से उत्पन्न हुई वैश्य वर्ण का पालन करने वाली जाति को माहेश्वरी (English : Maheshwari) कहते हैं। भारत के राजस्थान राज्य में आने वाले मारवाड़ क्षेत्र से सम्बद्ध होने के कारण इन्हें मारवाड़ी भी कहा जाता है। माहेश्वरी जाति की उत्पत्ति भगवान शिव की महान कृपा-आशीर्वाद से ही हुआ है इसलिए 'श्री शिव परिवार' (भगवान शिवजी, माता पार्वतीजी, देवसेनापति कुमार श्री कार्तिकेयजी एवं प्रथमपूज्य देवता श्री गणेशजी) को माहेश्वरियों के कुलदेवता / कुलदैवत माना जाता है। माहेश्वरी जाति के मंदिरों में मुख्य रूप से श्री शिव परिवार की ही स्थापना होती है, यद्यपि यह भी सत्य है कि अधिकांश माहेश्वरियों ने वैष्णव संप्रदायों (वल्लभ सम्प्रदाय और रामानुज सम्प्रदाय आदि) से दीक्षा ग्रहण की हुई है। परंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि यहाँ इष्ट का भेद है। सनातन धर्म में इष्ट देव के भेद से धर्म भेद को प्राप्त नहीं होता।

माहेश्वरी





विशेष निवासक्षेत्र
 भारत

"धर्मस्य मूलम् अर्थः" अर्थात धर्म का मूल अर्थ है। इसलिये स्वयं शास्त्रोक्त विधा से वैश्य धर्म (कृषि, गोपालन और वाणिज्य) का पालन करना, विश्व की अर्थव्यवस्था और अर्थ तंत्र को शास्त्रसम्मत बनाने का प्रकल्प चलना और विश्व में अर्थ के प्रकल्पों की भ्रष्ट होने से रक्षा करना माहेश्वरी समाज प्रमुख सिद्धान्त हैं। जब लोग शास्त्रोक्त यज्ञादि कर्मों से विमुख होने लगे थे तब संयोग ऐसे बने कि माहेश्वरी जाति की उत्पत्ति हुई, इस कारण माहेश्वरियों पर यह बहुत बड़ा दायित्व है कि धर्म का पालन तो करें ही लेकिन साथ ही निस्वार्थ भाव से धर्म की स्थापना करने के लिए अपने धन को उस ओर लगाए।

माहेश्वरी समाज सत्य, प्रेम और न्याय के पथ पर चलता है। शरीर को स्वस्थ-निरोगी रखना, कर्म करना (मेहनत और ईमानदारी से काम करना), बांट कर खाना और प्रभु की भक्ति (नाम जाप एवं योग साधना) करना इसके आधार हैं। माहेश्वरी अपने धर्माचरण का पूरी निष्ठा के साथ पालन करते है तथा वह जिस स्थान / देश / प्रदेश /शहर में रहते है वहां की स्थानिक संस्कृति का पूरा आदर-सम्मान करते है, इस बात का ध्यान रखते है; यह माहेश्वरी समाज की विशेष बात है। आज दुनियाभर के कई देशों में और तकरीबन भारत के हर राज्य, हर शहर में माहेश्वरी बसे हुए है और अपने अच्छे व्यवहार के लिए पहचाने जाते है। मधुबनी जिला,बिहार राज्य से तीन किलोमीटर उत्तर में ग्राम अहमादा,पंचायत रघुनी देहट में मैथिल ब्राह्मण परिवार जिनका गोत्र काश्यप है भी माँ माहेश्वरी को अपना कुलदेवी मानते हुए वर्षों से नियमित पूजा अर्चना करते आ रहे हैं।

ई.स. पूर्व 3133 में जब भगवान महेश जी और देवी महेश्वरी जी (माता पार्वती) के कृपा से 'माहेश्वरी' समाज की उत्पत्ति हुई थी तब भगवान महेश जी ने महर्षि पराशर, सारस्‍वत, ग्‍वाला, गौतम, श्रृंगी, दाधीच इन छः ऋषियों को माहेश्वरीयों का गुरु बनाया और उनको माहेश्वरीयों को मार्गदर्शित करने का दायित्व सौपा l कालांतर में इन गुरुओं ने ऋषि भारद्वाज को भी माहेश्वरी गुरु पद प्रदान किया जिससे माहेश्वरी गुरुओं की संख्या सात हो गई जिन्हे माहेश्वरीयों में सप्तर्षि कहा जाता है l सप्तगुरुओं ने भगवान महेश जी और माता महेश्वरी जी की प्रेरणा से इस अलौकिक पवित्र माहेश्वरी निशान (Symbol of Maheshwari community) और ध्वज का सृजन किया था l इस निशान को 'मोड़' कहा जाता है जिसमें एक त्रिशूल और त्रिशूल के बीच के पाते में एक वृत्त तथा वृत्त के बीच ॐ (प्रणव) होता है l माहेश्वरी ध्वजा (Flag) पर भी यह निशान अंकित होता है l केसरिया रंग के ध्वज पर गहरे नीले रंग में यह पवित्र निशान अंकित होता है, इसे 'दिव्यध्वज' कहते है l गुरुओं का मानना था की यह निशान और ध्वज सम्पूर्ण माहेश्वरियों को एकत्रित रखता है, आपस में एक-दूसरे से जोड़े रखता हैl

गुरुओं का मानना था कि इस अलौकिक पवित्र माहेश्वरी निशान के दर्शन मात्र से ही हमारे भीतर दिव्य-सृजनात्मक ऊर्जा (एनर्जी) का संचार होता है l इसे देखते ही अनेक प्रेरक भाव मन में प्रस्फुटित होते है l माहेश्वरी निशान की उपस्थिति आपके घर, परिवार और जीवन में जो भी बुरी (दुष्ट) शक्तियां है उनका विनाश करती है ; इस दिव्य निशान के दर्शन मात्र से ही जीवन में सौभाग्य का उदय हो जाता है। आजकल लगभग सभी माहेश्वरी पत्र-पत्रिकाओं, वैवाहिक कार्ड, दीपावली कार्ड, आमंत्रण-पत्र एवं अन्य कार्यक्रमों की पत्रिकाओं में इस निशान (प्रतीक चिह्न) का प्रयोग किया जाता है। यह निशान (प्रतीक चिह्न) माहेश्वरी परम्परा में श्रद्धा एवं विश्वास का द्योतक है। यह निशान माहेश्वरी समाज के आन-बाण-शान का प्रतीक है l

माहेश्वरी निशान का अर्थ





त्रिशूल धर्मरक्षा के लिए समर्पण का प्रतीक है l ”त्रिशूल” शस्त्र भी है और शास्त्र भी है. आततायियों के लिए यह एक शस्त्र है, तो सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र का यह एक अनिर्वचनीय शास्त्र भी हैl त्रिशूल पाप को नष्ट करने वाला एवं दुष्ट प्रवृत्ति का दमन करने वाला हैl जैसे ॐ स्वयं शिव स्वरुप है वैसे ही 'त्रिशूल' स्वयं शक्ति (आदिशक्ति माता पार्वती) स्वरुप हैl त्रिशूल का दाहिना पाता सत्य का, बाया पाता न्याय का और मध्य का पाता प्रेम का प्रतीक भी माना जाता हैl वृत्त के बीच का ॐ (प्रणव) स्वयं भगवान महेश जी का प्रतीक है, ॐ पवित्रता का प्रतीक है, ॐ अखिल ब्रम्हांड का प्रतीक हैl सभी मंगल मंत्रों का मूलाधार ॐ हैl परमात्मा के असंख्य रूप है उन सभी रूपों का समावेश ओंकार में हो जाता हैl ॐ सगुण निर्गुण का समन्वय और एकाक्षर ब्रम्ह भी हैl भगवदगीता में कहा है “ ओमित्येकाक्षरं ब्रम्ह”l माहेश्वरी समाज आस्तिक और प्रभुविश्वासी रहा है, इसी ईश्वर श्रध्दा का प्रतीक है- ॐ। माहेश्वरियों का यह गौरवशाली निशान बड़ा ही अर्थपूर्ण, पथ-प्रदर्शक और प्रेरणादायी है l

माहेश्वरी का बोधवाक्य - माहेश्वरीयों का बोधवाक्य' सर्वे भवन्तु सुखिन: माहेश्वरीयों की विचारधारा को, संस्कृति को दर्शाता है। सर्वे भवन्तु सुखिन: अर्थात केवल माहेश्वरियों का ही नही बल्कि सर्वे (सभीके) सुख की कामना करनेवाला तथा सत्य, प्रेम, न्याय का उद्घोषक यह माहेश्वरी निशान सचमुच बडा अर्थपूर्ण है। माहेश्वरी निशान का दर्शन अत्यंत मंगलमय है, इसे देखते ही आतंरिक शक्ति, आतंरिक ऊर्जा जागृत हो जाती है, इसे देखते ही अनेक प्रेरक भाव मन में प्रस्फुटित होते है।

उपयोग निर्देश संपादित करें
माहेश्वरी निशान (प्रतीक चिह्न) किसी भी विचारधारा, दर्शन या दल के ध्वज के समान है, जिसको देखने मात्र से पता लग जाता है कि यह किससे संबंधित है, परंतु इसके लिए किसी भी निशान (प्रतीक चिह्न) का विशिष्ट (विशेष /यूनिक) होना एवं सभी स्थानों पर समानुपाती होना बहुत ही आवश्यक है। यह भी आवश्यक है कि प्रतीक का प्रारूप बनाते समय जो मूल भावनाएँ इसमें समाहित की गई थीं, उन सभी मूल भावनाओं को यह चिह्न अच्छी तरह से प्रकट करता है।

इस निशान (प्रतीक चिह्न) को एक रूप छापने के लिए अब इसके फॉरमेट का विकास कर लिया गया है। इस फॉरमेट के उपयोग से इसे सही स्वरूप में छापा जा सकेगा। सुनिश्चित कर लें कि इसके सही प्रारूप/फॉरमेट का उपयोग हो रहा है।

माहेश्वरी समाज की उत्पति :

खण्डेलपुर राज्य के राजा खड़गलसेन बहुत ही धर्मावतार और प्रजाप्रेमी थे।

उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिये पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया , जिससे उनको सुजानसेन पुत्र प्राप्त हुआ

सुजानसेन का विवाह चंद्रावती के साथ हुआ। सुजानसेन को उतर दिशा में कभी भी नही जाने का कहा गया था, किन्तु हठ पूर्वक वो 72 उमरावों के साथ उत्तर दिशा में गए। वहां उन्हें श्रृंगी ऋषि और दाधीच ऋषि यज्ञ करते हुए मिले ।  

सुजानसेन ने ऋषि मुनियों के यज्ञ को विध्वंस कर दिया । जिसके कारण ऋषियों ने सुजानसेन व 72 उमरावों को श्राप देकर उन्हें पत्थर के बना दिये ।

जब सुजानसेन की पत्नी को पता चला तो उसने व 72 उमरावों की पत्नियों ने मिलकर शिवजी का ध्यान करके तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव और माता पार्वती प्रकट हुए और माता पार्वती के कहने पर भगवान शिव ने सभी उमरावों को व सुजानसेन को जीवन दान दिया । तब सबने महेश वंदना गाई । भगवान महेश के द्वारा जीवन दान मिलने के कारण माहेश्वरी कहलाये । ये एक सुंदर कहानी / गाथा के रूप में भी उपलब्ध है ।

माहेश्वरी खांपें - गौत्र - कुलदेवियाँ एवं मन्दिर
Gotra, Kuldevi List of Maheshwari
kuldevi-list-of-maheshwari-samaj

माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति

History of Maheshwari Samaj in Hindi : माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति राजपूतों से मानी जाती है। इस विषय में इतिहास कल्पद्रुम में कथा है कि जयपुर में खंडेला (सीकर जिला) नाम का एक स्थान है, यहाँ के राजा सुजातसेन के संतान नहीं थी। पंडितों ने बताया कि वन में जाकर कल्पवृक्ष के नीचे खुदाई करें वहाँ महादेव की प्रतिमा मिलेगी। उस प्रतिमा से आपको संतान का वरदान प्राप्त होगा।

राजा ने वैसा ही किया और पुत्र प्राप्ति का वरदान प्राप्त किया। कुछ समय बाद उनके पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। राजकुमार की अल्प आयु में ही राजा की मृत्यु हो गई।

एक दिन राजकुमार अपने अंगरक्षकों के साथ शिकार खेलने गया। उसे वहां 16 ऋषियों का एक समूह मिला। वहां एक जलाशय था। शिकार खेलने के पश्चात् राजकुमार एवं उसके साथियों ने उस जलाशय में अपने अस्त्र-शस्त्र धोये, इससे जलाशय का जल रक्त के कारण लाल हो गया। ऋषियों ने राजकुमार और उसके साथियों को राक्षस समझा इसलिए उन्होंने उन्हें शाप दे दिया जिसके प्रभाव से राजकुमार और उसके बहत्तर साथी उसी स्थान पर पत्थर बन गये। जब रानियों व राजकुमार के साथियों की पत्नियों ने यह सुना तो वे सभी सती होने चली। जब वे चिताओं पर चढ़ने लगीं तो वहां शिवजी प्रकट हुए और उन्हें सती होने से बचा लिया और उनके पुरुषों को पत्थर से फिर मनुष्य बना दिया। किन्तु शिवजी ने उन्हें क्षत्रिय धर्म त्यागकर व्यापार कार्यों में उद्यम करने का आदेश दिया। इस पर राजकुमार शिवजी का परम भक्त हो गया अउ उसके साथियों से माहेश्वरी समाज के बहत्तर गोत्र बने। 

Gotra wise Kuldevi List of Maheshwari Samaj | माहेश्वरी समाज के गोत्र एवं कुलदेवियां

माहेश्वरी खांपें - गौत्र - कुलदेवियाँ एवं मन्दिर

क्र॰सं॰ खांप गोत्र कुलदेवी मन्दिर
01 जेथलिया जाजाऊंश आनंदी माता रूपनगढ़ से ४० कि.मी. है नोसल,राजस्थान
02 सोनी धुम्रांस सेवल्या माता बागोर, तह, मांडल, जिला भीलवाडा/ओसियां में भी
03 सोमानी लियांस बंधर माता उदयपुर से 70 किमी तानागाँव, (मोरगांव) जम्मू में भी
04 जाखेटिया सीलांस सिसनाय माता मांडल गाँव, भीलवाडॉ॰
05 सोढानी सोढास जीण माता अरावली पर्वतमाला में, सीकर से 10 मील.
06 हुरकुट कश्यप विषवंत माता फलौदी गाँव के पास में है।
07 न्याती नाणसैण चांदसेन माता वाचर्देचण, मानपुरा गाँव के पास.
08 हेडा धनांस फलोदी माता रामगंज मंडी, मेड़ता रोड (नागौर) में भी.
09 करवा करवास सच्चियाय माता जोधपुर से 65 किमी ओसियां में.
10 कांकाणी गौतम आमल माता रीछेड गाँव, तह. कुम्भलगढ़, जि. राजसमन्द.
11 मालू/मालूदा खलांस संचाय माता जोधपुर से 65 किमी ओसियां में.
12 सारडा थोम्बरास संचाय माता जोधपुर से 65 किमी ओसियां में.
13 काह्ल्या कागायंस लीकासन माता ग्रा. लेखासान, नागौर (छोटी खाटू से 4 मील).
14 गिलडा गौत्रम डायल माता/ डेरू गाँव, नागौर से 20 किलोमीटर
15 जाजू वालांस फलोदी माता रामगंज स्टेशन के पास, मेड़ता रोड (नागौर).
16 बाहेती गौकलांस सिंदल माता राम गाँव, जैसलमेर के पास.
17 बिदादा गजांस पाढाय माता डीडवाना.
18 बिहाणी वालांस संचाय माता जोधपुर से 65 किमी ओसियां में.
19 बजाज भंसाली गाहिल माता आसोप, मेड़ता रोड से 40 किलोमीटर
20 कलंत्री कश्यप पाण्डुका माता ग्रा. जायल, जि. नागौर.
21 कासट अचलांस सच्चियाय माता जोधपुर से 65 किमी ओसियां में.
22 काचोला सीलांस पाढाय माता डीडवाना.
23 कालाणी धौलांस चावडां माता मेड़ता सिटी और मेड़ता रोड के मध्य.
24 झंवर घुम्रक्ष गाहील माता करमीसर गाँव, जि. बीकानेर.
25 काबरा अचित्रांस सुसमाद माता कृषिमंडी, कुचेरा (नागौर), मेड़ता रोड के पास.
26 डाड़ आमरांस भद्रकाली माता हनुमानगढ़, (बीकानेर).
27 डागा राजहंस सच्चियाय माता जोधपुर से 65 किमी ओसियां में
28 गट्टानी ढालांस चावड़ा माता मेड़ता सिटी और मेड़ता रोड के मध्य.
29 राठी कपिलांस संचाय माता जोधपुर से 65 किमी ओसियां में.
30 बिड़ला वालांस संचाय माता जोधपुर से 65 किमी ओसियां में.
31 दरक हरिद्रास नागणेची माता नेगडिया, नाथद्वारा, उदयपुर.
32 तोषनीवाल कौशिक खुखर माता तिंवरी, जि.जोधपुर से 32 किलोमीटर
33 अजमेरा मानांस नौसार माता कनेर, जि. चित्तोड़गढ़, पुष्कर घाटी में.
34 भण्डारी कोशिक नागणेची माता नेगडिया, नाथद्वारा, उदयपुर.
35 छापरवाल कौशिक बंधर माता उदयपुर से 70 किलोमीटर तानागाँव, (मोरगांव).
36 भट्ठड़ भट्टयास बिसल माता गडसीसर झील, जैसलमेर.
37 भूतड़ा अचलांस खीवंज माता पोकरण/ कटौती तह. जायल, नागौर में भी.
38 बंग सौढ़ास खांडल माता मूंडवा, (नागौर).
39 अटल गौतम सच्चियाय माता जोधपुर से 65 किमी ओसियां में
40 इन्नाणी शैषांश जैसल माता
41 भराडिया अचित्र दधीमचि माता किरणसरिया, मांगलोर जि. नागौर (रोलगाँव).
42 भन्साली भंसाली चावड़ा माता पाण्डुका जायल, मेड़ता सिटी-मेड़ता रोड के मध्य.
43 लड्ढा सीलांस बाकला माता उम्मेदनगर, तह. ओसियां, जि. जोधपुर.
44 मालपाणी भट्टयास बिसल माता भादरिया, जैसलमेर (पोकरण से 50 किमी).
45 सिकची कश्यप संचाय माता जोधपुर से 65 किमी ओसियां में.
46 लाहोटी कांगास गाहिल माता आसोप, मेड़ता रोड से 40 किलोमीटर
47 गदहया (गोयल) गौरांस बंधर माता उदयपुर से 70 किमी तानागाँव, (मोरगांव).
48 गगराणी कश्यप पाढाय माता डीडवाना.
49 खटोड मूंगास नौसाल्या माता दहौडी, तह. जावद, जि. मंदसौर (मालवा).
50 मोलासरिया निरमिलांस पाढाय माता नमक झील, डीडवाना
51 लखोटिया फाफडांस संचाय माता जोधपुर से 65 किमी ओसियां में.
52 असावा बालांस आसावरी माता ओसियां, किराडू (बाड़मेर), डीडवाना में भी.
53 चेचाणी सीलांस दधवंत माता मांगलोर (किरणसरिया), रोलगाँव जि. नागौर.
54 मानधना
जेसलानी/माणधनी माता कोट मोहल्ला, डीडवाना.
55 मूंधड़ा गोवांस मूँदल माता मुंदीयाड, जि. नागौर.
56 चोखाड़ा चंद्रास जीवन माता
57 चांडक चंद्रास आसापुरा माता आसापुर (उदयपुर), आनन्द से 18 मील.
58 बलदेवा बालांस हिंगलाज माता मूल मन्दिर बलूचिस्तान (पाकिस्तान) में.
59 बाल्दी लौरस गारस माता
60 बूब मूसाइंस भद्रकाली माता हनुमानगढ़.
61 बांगड़ चूडांस संचाय माता जोधपुर से 65 किमी ओसियां में.
62 मंडोवर बछांस धौलेसरी रुई माता बहतु गाँव, जि. अलवर.
63 तोतला कपिलांस खुखर माता तिंवरी, जि. जोधपुर से 32 किलोमीटर
64 आगीवाल चंद्रास भैसादं माता पाडा, डीडवाना.(नीमच में भी).
65 आगसूंड कश्यप जाखण माता
66 परतानी कश्यप संचाय माता जोधपुर से 65 किमी ओसियां में.
67 नावंधर बुग्दालिभ धरजल माता पोकरण, जि. जैसलमेर.
68 नवाल नानणांस नवासण माता
69 पलोड़ साडांस जुजेश्वरी माता नारनोल (हरियाणा), रेवाड़ी, महोसर में भी.
70 तापडिया पीपलांस आसापुरा माता आसापुर (उदयपुर), आनन्द से 18 मील.
71 मणियार कौशिक दायमा माता किरणसरिया, जि. नागौर.
72 धूत फाफडांस लीकासन माता ग्रा. लेखासान, नागौर (छोटी खाटू से 4 मील).

.... वंशोत्पति के बाद कुछ खान्पे और बनी, जिसकी जानकारी नीचे दी जा रही है :-

73 मंत्री कंवलांस संचाय माता सांवर गाँव, जि. अजमेर, चित्तौडगढ़ में भी.
74 देवपुरा पारस पाढाय माता डीडवाना.
75 पोरवाल/परवाल नानांस भद्रकाली माता/ .
76 धूपड सिरसेस फलोदी माता रामगंज मंडी, मेड़ता रोड (नागौर) में भी.
77 मोदाणी साडांस चावड़ा माता गाँव पाण्डुका, मेड़ता सिटी-मेड़ता रोड के मध्य.
78 नौलखा कश्यप/गावंस पाढाय माता डीडवाना, जायल जि. नागौर में भी.
79 टावरी माकरण चावड़ा माता गाँव पाण्डुका, मेड़ता सिटी-मेड़ता रोड के मध्य.
80 दरगड़ गोवंस नागणेची माता नेगडिया, नाथद्वारा, उदयपुर.
81 बागड़ी लियांस बंधर माता उदयपुर से 70 किमी तानागाँव, (मोरगांव) जम्मू में भी
82 खावड मूंगास नौसाल्या माता दहौडी, तह. जावद, जि. मंदसौर (मालवा).
83 लोहिया चंद्रास

84 रांदड कश्यप संचाय माता जोधपुर से 65 किमी ओसियां में.
85 कालिया झुमरंस आसावरी माता ओसियां, किराडू (बाड़मेर), डीडवाना में भी.

निम्न दी गई खान्पों में जाजू एवं राठी महेश्वरीयों में मुख्य मानी गई हैं।

  • निम्न खान्पों/नखों की कुलदेवी भी संचाय माता ही है :- (जोधपुर से 65 किमी ओसियां में).

दम्माणी, करनाणी, सुरजन, धूरया, गांधी, राईवाल, कोठारी, मालाणी, मूथा, मोदी, मोह्त्ता, फाफट आदि l इसके अलावा भी बहुत सी खान्पे है, जो यहाँ नहीं आ सकी है, जो 'राठी' खांप के गोत्र के अंतर्गत आती है l कुछेक अन्य भी हो सकती है l

  • भैयाओं की माता - लटियार माता, फलौदी.
  • तेलाओं की माता - चावड़ा माता, जायल (नागौर).
    • गोत्र केवल ब्रह्मण वर्ण में ही होते थे l अन्य वर्णों ने अपने पुरोहितों के गोत्रों को ही स्वीकार कर लिया है l
  • माहेश्वरियों के ये आठ गुरु हैं - 1. पारीक, 2. दाधीच, 3. गुर्जर गौड़, 4. खंडेलवाल, 5. सिखवाल, 6. सारस्वत, 7. पालीवाल, 8. पुष्करणा.

आगे इनकी और कई नख/उप-खांपे हुयी जैसे - ओझा, दायमा, शर्मा, आदि (आगे चलकर इन गुरुओं को पुरोहित कहकर जाना जाने लगा.).

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