13 वर्ष का एक हिन्दू बालक फारसी पढ़ने मदरसे जाया करता था। एक दिन मदरसे खेलते समय उसके मुस्लिम सहपाठियों ने हिन्दुओं की आराध्या माँ दुर्गा का बारम्बार उपहास किया। हिन्दू बालक के प्रतिवाद करने पर यह बात और अधिक बढ़ी तो उस हिन्दू बालक ने तर्क दिया कि ऐसी ही बदजुबानी यदि मुस्लिमों के पैगम्बर की बेटी फातिमा के बारे में की जाए तो कैसा लगेगा?
17वीं सदी, मुगलों का शासन और जनसँख्या में मुस्लिमों की बहुलता होना इस प्रतिप्रश्न को इस्लाम पर हमला सिद्ध करने के लिए पर्याप्त अनुकूल परिस्थितियाँ थीं। बात मदरसे के उस्ताद से होती हुई शहर काजी तक पहुँची। हिन्दू बालक को दोषी पाया ही जाना था, दोषी पाया गया। चिरपरिचित दो विकल्प देने की उदारता दिखाई गई
१. इस्लाम कुबूल करो और जीवित रहो....अथवा
२. सिर कलम होगा
हिन्दू परिवार में हाहाकार मच गया, कहा जाता है कि पुत्रमोह में माँ-बाप कमजोर पड़े भी कि मुसलमान बनकर ही सही किन्तु जीवित तो रहोगे पर 13 वर्ष का वह बालक धर्म से नहीं डिगा।
उस हिन्दू बालक का नाम था #हकीकत_राय।
1734 में इस्लाम की तौहीन के इल्जाम में 13 वर्षीय हकीकत राय का सिर कलम कर दिया गया और इस प्रकार इस्लाम की शान बरकरार रखी गई।
वो दिन जब वीर हकीकत राय का बलिदान हुआ, बसन्त पंचमी का ही दिन था। वह कुशाग्र बुद्धि का था और पारिवारिक संस्कारों के चलते अपने धर्म को लेकर सजग भी था।
अविभाजित भारत के लाहौर में बसन्त पंचमी के दिन वीर हकीकत राय की याद में एक मेला लगा करता था, विभाजन के बाद भारत के पंजाब में कई स्थानों पर अब भी वीर बालक को याद किया जाता है। एक बात और, एक कॉलोनी या बसावट हकीकत नगर के नाम से लगभग हर उस शहर में मिलेगी जिसमें पाकिस्तान से विस्थापित होकर आए लोग अधिक संख्या में बसे थे और अपने इतिहास को याद रखने का यह उनका एक अनकहा प्रयास था।
वर्तमान के एक स्थापित सेक्यूलर पत्रकार शिरोमणि ने अपने कार्यक्रम में पूछा था, "क्या हो जाएगा यदि भारत में मुस्लिम बहुसंख्यक हो जाएंगे? कम से कम इंसानियत तो जिंदा रहेगी न?"
यह उदाहरण उसको उत्तर के रूप में दिया जा सकता था किंतु जिन्हें आँखों के सामने के प्रशांत पुजारी और रामालिंगम नहीं दिखते, उन्हें तीन सौ वर्ष पहले का हकीकत राय कैसे दिखता?
आज के कथित सेक्यूलर वही हैं जो अपने ऐन्द्रिक स्वादों और भौतिक स्वार्थों की पूर्ति करने के लिए स्वधर्म, निज अराध्यों, स्वजनों का अपमान करते हुए धरती का बोझ बने रहने को ही इंसानियत का जिंदा रहना मानते हैं।
कुछ दिनों पहले हमारे एक मित्र बहुत व्यथित थे कि हकीकत राय को लोग भूल गए, मैंने कह दिया कि न भूला हूँ और न भूलने दूँगा। बसन्त पंचमी आती है तो मैं चाहे एक को ही याद दिला पाऊँ किन्तु वीर हकीकत राय के बलिदान को याद अवश्य करता हूँ और ऐसा मैं अकेला नहीं हूँ। मुझे भी आश्चर्य हुआ था जब यूट्यूब पर हकीकत राय पर बनी हरियाणवी रागिनी और फिल्में भी दिखीं।
आप सबको बसन्त पंचमी की हार्दिक शुभकामनायेँ। आज के दिन आप किसी एक को भी हकीकत राय की कहानी सुना पाएं तो यह उस वीर बालक को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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