भारत दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। यह पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित है, भारत भौगोलिक दृष्टि से विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा देेश है, जबकि जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है।
नागार्जुन भारत के धातुकर्मी एवं रसशास्त्री (alchemist) थे।इनका जन्म महाकौशल मे हुआ था जिसकी राजधानी श्रीपुर था जिसे वर्तमान मे छत्तीसगढ कहते है तथा श्रीपुर को सिरपुर कहते है जो की महासमुन्द जिले मे आता है।श्रीपुर प्राचीन काल मे वैभव की नगरी कहलाती थी अभी के समय वहा उत्खनन मे प्राचीन बौद्ध विहार होने के साक्ष्य मिले है। विदर्भ और महकौसल की सीमा एक दूसरे के साथ मिलती थी इनका जन्म 50ईपू से 120 ई तक माना जाता है चीनी यात्री ह्वेनसाग कुछ दुरी पर स्थित तुरतुरिया जाने का प्रामाण मिलता है।
चीनी और तिब्बती साहित्य के अनुसार वे 'वैदेह देश' (विदर्भ) में जन्मे थे और पास के सतवाहन वंश द्वारा शासित क्षेत्र में चले गये थे। इसके अलावा इतिहास में महायान सम्प्रदाय के दार्शनिक नागार्जुन तथा रसशास्त्री नागार्जुन में भी भ्रम की स्थिति बनी रहती है। महाराष्ट्र के नागलवाडी ग्राम में उनकी प्रयोगशाला होने के प्रमाण मिले हैं। कुछ प्रमाणों के अनुसार वे 'अमरता' की प्राप्ति की खोज करने में लगे हुए थे और उन्हें पारा तथा लोहा के निष्कर्षण का ज्ञान था। द्वितीयक साहित्य में भी रसशास्त्री नागार्जुन के बारे में बहुत ही भ्रम की स्थिति है। पहले माना जाता था कि रसरत्नाकर नामक प्रसिद्ध रसशास्त्रीय ग्रन्थ उनकी ही रचना है किन्तु १९८४ के एक अध्ययन में पता चला कि रसरत्नाकर की पाण्डुलिपि में एक अन्य रचनाकार (नित्यानन्द सिद्ध) का नाम आया है।
इस
संदर्भ में सर्वप्रथम 'नागार्जुन' का ही नाम आता है। यह महान गुणों के धनी
थे जो विभिन्न धातुओं को सोने में बदलने की विधि जानते थे और उसका
सफलतापूर्वक प्रदर्शन भी किया था ।
सोना बनाने का रहस्य
कहते हैं कि इनका जन्म द्वितीय शताब्दी में हुआ था और गुजरात के सोमनाथ के निकट देहक नामक किले में हुआ था । नागार्जुन ने रसायन शास्त्र और धातु विज्ञान पर बहुत शोध कार्य किया। उन्होंने कई पुस्तकों की रचना करी जिसमें 'रस रत्नाकर' और 'रसेंद्र मंगल' बहुत प्रसिद्ध है ।
उन्होंने कई असाध्य रोगों को खत्म करने की कई औषधियां भी प्राप्त करी। प्रयोगशाला में नागार्जुन ने पारे पर बहुत प्रयोग किऐ।
उन्होंने विस्तार से पारे को शुद्ध करना और औषधीय प्रयोग की विधियां बताई। पारे के प्रयोग न केवल धातु परिवर्तन किया जाता था अपितु शरीर को निरोगी बनाने और दीर्घायु बनाने में प्रयोग किया जाता था।
इस तरह हमारा प्राचीन भारत बहुत ही श्रेष्ठ था जहां पर अनेकों अनेक महान वैज्ञानिक पैदा हुए और इस धरा को समृद्धशाली बनाया।
सोना बनाने का रहस्य
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आइय़े फ़िर से सोना बनायें ।
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