"सोना बनाने के रहस्यमय नुस्खे" लेख को मेरे ब्लाग पाठकों ने न सिर्फ़ जबर्दस्त सराहा । बल्कि कई लोगों ने सोना बनाने हेतु प्रयोग भी किये ।
ये बात अलग है कि जिन लोगों के मेरे पास फ़ोन आये । उनमें से कोई भी सफ़ल नहीं हुआ ।
ज्यादातर लोगों की मिश्रण धातुयें जल गयी ।
इसका कारण क्या था ??
संक्षिप्त में । मगर सारगर्भित लेख को जल्दबाजी में पढकर ।
बिना ठीक से समझे ही प्रयोग शुरू कर देना ।
यहां ध्यान देने की एक बात है ।
सोने जैसी चीज आप चूल्हे । अंगीठी पर घर के नमक मिर्च डालकर बना लो । तो फ़िर सोने का महत्व ही क्या रह जायेगा ।
उसकी कीमत क्या होगी ?
क्योंकि हर कोई ही उसे बना लेगा ?
पाठकों की प्रतिक्रिया के आधार पर । उनके सामने जो जो कठिनाईयां आयीं । उनका निदान और समाधान यहां करने की कोशिश करूंगा । इसी संदर्भ में एक बात याद आ गयी । कुछ लोग जो सोना बनाने में विफ़ल रहे । या धन से सामर्थ्यवान थे । उन्होंने कहा । आप यहां हमारे पास आ जाइये । हम आपको सभी सुविधा देंगे । सोचने वाली बात है । मुझे सोने में कोई इंट्रेस्ट होता ? तो मैं फ़िर खुद ही समर्थ था । कोई भी सच्चा साधु भलीभांति जानता है कि धन नाशवान है । यहीं सब पडा रह जायेगा । और परम धन जो सतनाम की जप कमाई से पैदा होता है । वह अक्षय धन है । जो सदा रहता है ।भगवान की कृपा से मेरे पास सामान्य जीवन की आवश्यकतायें पूरी करने हेतु सभी व्यवस्था है ।
और न भी होती ? तो संतमत का एक सिद्धांत है कि कोई भी इंसान अपनी बुद्धि मेहनत आदि से अपनी व्यवस्था कर रहा है । ये उसका सिर्फ़ मायाकृत भारी भृम है ??? मां के गर्भ से लेकर । चींटी से कुंजर तक । नभचर । जलचर । थलचर । वनचर सबकी व्यवस्था ईश्वरीय सत्ता के द्वारा ही हो रही है । हम सब कठपुतली हैं । निमित्त मात्र हैं ? समय से पहले और किस्मत से ज्यादा किसी को कुछ प्राप्त नहीं होता ? फ़िर भी इंसान को आगे के लिये प्रयत्नशील रहना चाहिये । क्योंकि हमारे आज से ही आने वाले कल का निर्माण होता है ।
यहां मैं एक बात स्पष्ट कर दूं । सोना बनाना या किसी चमत्कारिक औषधि जैसे ग्यान सत्ता द्वारा परोपकारी और भक्तभाव के लोगों को ही दिये जाते हैं क्योंकि ये सामान्य ग्यान के अंतर्गत नहीं आता । खैर..। जो लोग प्रयोग करना चाहते हैं । उनके लिये कुछ बिंदु स्पष्ट कर रहा हूं ।
तोरस, मोरस, गंधक, पारा
इनहीं मार इक नाग संवारा।
नाग मार नागिन को देही
सारा जग कंचन कर लेही।।
सोना । चांदी आदि बनाने में 5 चीजों की प्रमुख आवश्यकता होती है । सबसे पहले 1 तेज ताप हेतु भट्टी । 2 -वेधक । 3 - आठ धातु । 4 - पीले लाल वर्ग के फ़ूल ( ये फ़ूल जितने जंगली मिलें । उतना ही बेहतर है ।क्योंकि जंगली फ़ूलों में पाये जाने वाले दृव्य और रसायन बेहद शक्तिशाली होते है । जबकि शहर की आवोहवा और मिट्टी बेकार होने से पौधों में जंगली पौधों के समान ताकत नहीं होती । ) 5 गंधक । गोंद आदि अन्य चीजें जो लेख में वर्णित हैं ।
1- सबसे पहली चीज है । भट्टी - ये भट्टी चाहे विधुत की हो या किसी अन्य की । मुख्य बात है । तेज ताप की । ये ताप इतना तेज होना चाहिये कि शीशा । लोहा । तांवा जैसी धातुओं का चूर्ण दो तीन मिनट में ही पिघलकर तरल ( यानी पानी की तरह ) हो जाय ।
2 - वेधक । धूर्त तेल ( धतूरे का तेल ) अहिफ़ेन ( अफ़ीम ) कंगुनी तेल । मूंग तेल । जायफ़ल का तेल । हयमार तेल । शिफ़ा ( ब्रह्मकन्द का तेल ) आदि को बेधक माना गया है । अब आप वेधक का मतलब ठीक से समझिये । इसकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है ? वेधक का मतलब होता है । कण कण को वेध देने वाला । उदाहरण । 1 - जिस प्रकार आप एक दो किलो पकाई हुयी गरम सब्जी में एक छोटा सा तीखे रस वाला नीबू पूरा निचोड दें । तो नीबू सब्जी के फ़ुल स्वाद को बदलकर अपने स्वाद में । अपने प्रभाव में बदल देगा । यानी उसके कण कण में घुस जायेगा । 2 - आप 5 किलो मिर्च आदि का अचार रखें । और उसमें चौथाई कप अच्छा सिरका डाल दें । तो सिरका कण कण में समा जायेगा ।.. तो साहब । इन्हीं वेधक पदार्थ के साथ पारे की क्रिया कराकर शतवेधी ( सौ प्रकार के मिश्रण को वेधने वाला ) सहस्त्रवेधी ( हजार प्रकार के मिश्रण को वेधने वाला ) सर्ववेधी ( सभी प्रकार के मिश्रण को वेधने वाला ) बनाया जाता है ।
3 - आठ धातु । आठ धातु आप सब जानते ही हैं । इसमें ये ध्यान रखना है कि धातुयें । मिलावट से रहित ।एकदम शुद्ध और उत्तम गुण वाली निर्दोष हो । इन धातुओं का आपको बेहद महीन मैदा के समान चूर्ण करना होगा । और बेहतर होगा कि आप एक बार धातु को पिघलाकर उसका चूर्ण करें । इस तरह उसकी अशुद्धियां खत्म हो जायेंगी । अधिक जानकारी के लिये । धातु का कार्य करने वाले या स्वर्णकार भाइयों से धातु शोधन के बारे में जानकारी ले सकते हैं ।
4 - पीले लाल वर्ग के फ़ूल ( ये फ़ूल जितने जंगली मिलें । उतना ही बेहतर है ।क्योंकि जंगली फ़ूलों में पाये जाने वाले दृव्य और रसायन बेहद शक्तिशाली होते है । जबकि शहर की आवोहवा और मिट्टी बेकार होने से पौधों में जंगली पौधों के समान ताकत नहीं होती । ) ये फ़ूल जितने दुर्लभ और जंगली पौधों के होंगे । उतना ही रिजल्ट बेहतर होगा । ध्यान रहे । तीखी खुशबू वाले फ़ूल अच्छा कार्य करेंगे । इसमें प्रयोग होने वाली एक बेहद महत्वपूर्ण चीज की मैं तलाश करता रहा था । पर उस समय मिली नहीं थी । ये थी । कलियारी पौधे की जड । बाद में पता चला कि ये पौधा आसाम की तरफ़ मिलता है ।
5 - गंधक । गोंद आदि अन्य चीजें जो लेख में वर्णित हैं ।..इन सभी चीजों का मिलना अधिक कठिन नहीं है । और थोडी सी ही खोजवीन के बाद इनके बारे में जाना और इनको प्राप्त भी किया जा सकता है । अब आईये चीजों की तैयारी के बाद सोना बनाते हैं ।
1 - सबसे पहले वांछित धातु का पिघलता लावा । 2 - पीले लाल वर्ग के फ़ूलों का निकाला हुआ रस । 100 gm धातु मिश्रण की मात्रा पर कम से कम 400 gm रस । क्योंकि ये तेजी से जलेगा भी । 3 - वेधक । बेहतर हो । वेधक को पारे के साथ क्रिया कराकर । जब वेधक तैयार हो जाय । तो सफ़लता शीघ्र मिलेगी । 4 - किसी भी विधि ( जो फ़ार्मूला आप अपनायें । उसमें वर्णित गंधक । गोंद आदि दृव्यों का विधि अनुसार तैयार हुआ सार । )
प्रयोग ऐसे करें । - धातु के पिघलते लावे में । शीघ्रता से फ़ूलों का अर्क । पहले से ही तैयार हुआ वेधक । और अन्य वांछित चीजों का पहले से ही तैयार सार दृव्य । ये सभी चीजें । आपको खोलती हुयी धातु में आधा मिनट में डाल देनी है । और जब ये सभी एकरस ( जो अधिक से अधिक दो तीन मिनट में हो जायेगा । उस समय देखकर अपनी बुद्धि अनुसार निर्णय लें । ) तब ताप को बन्द कर दें । धातु जले भी नहीं और मिश्रण ठीक से पक जाय । ये ध्यान रखना है ।..अगर आपने चीजों को सही अनुपात में और विधि को ठीक से समझकर प्रयोग किया । तो एक बार या दो तीन बार में ही सफ़लता मिल सकती है । पूर्ण जानकारी के लिये इसी ब्लाग में मेरे तीनों लेख । सोना बनाने के रहस्यमय नुस्खे । लेख 1 । 2 । 3 । और पढें ।
महारस ये हैं । - माक्षिक । विमल । शैल । चपल । रसक । सस्यक । दरद । और स्रोतोडाजन ( रसार्णव ) ।
विशेष - मैं फ़िर से यही बात कहूंगा । कि ये प्रयोग वही लोग करें । जो इस सम्बन्ध में पहले से कुछ जानकारी रखते हैं । और पैसे से सम्पन्न हैं । आर्थिक रूप से कमजोर लोग जुगाड से इसमें सफ़लता नहीं पा सकते । इसलिये उनका कुछ लाभ होने के स्थान पर ? कुछ हजार का नु्कसान हो जाय । तो क्या फ़ायदा ? आगे आपकी मरजी ?
by - http://ohmygod-rajeev.blogspot.in/2011/01/blog-post_02.html
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