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बुधवार, 28 जून 2023

क्या आप जानते हैं मणिपुर हिंसा का तथ्य यदि नही तो ये तथ्य पढ़कर अपडेट हो।

क्या आप जानते हैं मणिपुर हिंसा का तथ्य यदि नही तो ये तथ्य पढ़कर अपडेट हो।


अब मणिपुर करते है की बात मणिपुर हिंसा पर क्यों दुखी है। विपक्षी दल इसका एक स्पष्ट कारण जान लीजिए। मणिपुर के मूल निवासी है मैती आदिवासी। स्वतंत्रता के पहले मणिपुर के राजाओं के बीच में आपस में जमकर युद्ध होते थे, अनेक कमजोर मैती राजाओं ने युद्ध में अपनी सेना में पड़ोसी देश म्यांमार से बड़ी संख्या में कुकी और रोहिंग्या हमलावरों को  भारत में बुलाया और विदेशी रोहिंग्या तथा कुकी से मिलकर आपस में युद्ध किया। धीरे-धीरे कुकी हमलावरों ने मणिपुर में अपना निवास बनाना शुरू किया और परिवार बढ़ाना शुरू किया। देखते ही देखते कुकी जनसंख्या तेजी से बढ़ने लगी। बेहद आक्रामक और हमलावर कुकियो ने मणिपुर की ऊंची ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया। और मैती आदिवासियों को वहां से भगा दिया। मैती आदिवासी भागकर मणिपुर के मैदानी इलाकों में आकर रहने लगे। विदेशी कुकी और रोहिंग्या ने मणिपुर की ऊंची पहाड़ियों पर अफीम की खेती आरंभ कर दी। मणिपुर की सीमा चीन और म्यांमार से लगी है। चीन ने मणिपुर पर नजरें डालना शुरू किया और भारत विरोधी दलों को सहायता देना शुरू किया। पाकिस्तान ने भी म्यांमार के रोहिंग्या मुस्लिमों के माध्यम से मणिपुर में घुसपैठ शुरू कर दी और बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुस्लिमों को धकेल दिया गया। 
लेकिन सबसे बड़ा षड्यंत्र रचा क्रिश्चियन मिशनरीज ने । मिशनरी ने मणिपुर के पिछड़े आदिवासी क्षेत्रों में 2000 से अधिक चर्च बनाए और क्रिश्चियन मिशनरीज ने बेहद तेजी से धर्म परिवर्तन शुरू कर दिया। जिसमें सबसे ज्यादा मैती आदिवासियों का धर्म परिवर्तन कर क्रिश्चन बना दिया गया। मणिपुर में निरंतर हिस्सा हो रही थी। वर्ष 1981 में भीषण हिंसा हुई तब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी। 10,000 से अधिक मैती आदिवासी मारे गए। उसके बाद इंदिरा गांधी जागी और सेना को भेजा गया तथा शांति करवाई गई। शांति समझौते में मैती मैदान में रहेंगे और कुकी ऊपर पहाड़ियों पर रहेंगे ऐसा निर्णय हुआ। इस कारण शांति बनी। जिसमें मूल निवासी मैती का बहुत नुकसान हो गया। धीरे-धीरे कुकी, रोहिंग्या और नगा समाजों ने मणिपुर की ऊंची पहाड़ियों पर अफीम की बेशुमार खेती करनी शुरू कर दी। हजारों खेत में अफीम की खेती शुरू हो गई, खरबों रुपए का व्यापार होने लगा इस कारण नशीले पदार्थ का माफिया और आतंकवादी संगठन सक्रिय हो गए तथा जमकर हथियारों की आपूर्ति कर दी गई। वर्ष 2008 में फिर जोरदार गृह युद्ध शुरू हो गया। तब सोनिया गांधी के निर्देश पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार ने कुकी तथा परिवर्तित क्रिश्चनओं के साथ मिलकर मैती आदिवासियों के साथ समझौता किया और मणिपुर की ऊंची पहाड़ियों पर अफीम की खेती को अधिकृत मान्यता देकर पुलिस कार्रवाई ना करने का आश्वासन दिया। इसके बाद मणिपुर से पूरे भारत देश में तेजी से नशीले पदार्थों को भेजा जाने लगा। मणिपुर नशीले पदार्थों का गोल्डन ट्राईंगल बन गया। चीन, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और म्यांमार से तेजी से आर्थिक मदद कर मणिपुर से उगाई गई अफीम को भारत के अन्य राज्यों में भेजकर पंजाब आदि राज्यों को नशीले बनाना शुरू कर दिया। लेकिन वर्ष 2014 केन्द्र में सरकार बदली। केंद्र सरकार की नजरें पूरे भारत पर थी। जहां जहां धर्म परिवर्तन हो रहे थे जहां पर हिंदू खतरे में दिखाई दे रहे थे। जो राज्य भारत से अलग होने की फिराक में हो रहे थे। केंद्र सरकार ने उन राज्यों को पहचान कर वहां पर धीरे-धीरे कार्रवाई शुरू कर दी। उनमें एक राज्य मणिपुर भी था l वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को पहली बार मणिपुर में सफलता मिली और कांग्रेस से बीजेपी में आए वीरेंद्र सिंह को भारतीय जनता पार्टी ने मुख्यमंत्री बना दिया। मैती समाज के मुख्यमंत्री वीरेंद्र सिंह 30 वर्षों से मणिपुर में राजनीति कर रहे हैं और उन्हें मणिपुर की मूल समस्या मालूम थी। वीरेंद्र सिंह खुद ही मैती समाज से आते हैं। जो कि आदिवासी संकट को जानते थे। नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने वीरेंद्र सिंह को अफीम की खेती नष्ट करने के निर्देश दिए। जिसके बाद मुख्यमंत्री वीरेंद्र सिंह ने अफीम की खेती पर हमला बोल दिया और हजारों एकड़ खेती में लगे अफीम के पौधों को नष्ट कर दिया। इससे कुकी और क्रिश्चियन मिशनरी, रोहिंग्या के साथ साथ  चीन तथा पाकिस्तान में खलबली मच गई। वे किसी तरह मणिपुर में दोबारा अफीम की खेती आरंभ करना चाहते हैं। आजादी के पहले से ही मैती समाज को आदिवासी समाज का दर्जा हासिल था। और वह एसटी वर्ग में आते थे। लेकिन आजादी के बाद, चीन की चमची तत्कालीन केंद्र सरकार ने मैती समाज से एसटी वर्ग से निकाल लिया। और क्रिश्चियन मिशनरी तथा कुकी समुदाय को एसटी बना दिया। इस बात से मैती नाराज हो गए और निरंतर आक्रोश प्रदर्शन करने लगे। जिस कारण बार-बार मणिपुर में हिंसा हो रही थी। मैती समाज ने वर्ष 2010 में हाई कोर्ट में याचिका दायर कर एसटी वर्ग में शामिल करने की मांग की। वर्ष 2023 में हाईकोर्ट ने मैती समाज के दावे को मंजूर किया और मैती समाज को दुबारा आदिवासी वर्ग में शामिल करने के आदेश जारी किए। चूंकि क्रिश्चियन और कुकी हमलावर अफीम की खेती बंद करने से तथा मिशनरीज के धर्म प्रसार को रोके जाने से नाराज थे। उन्होंने हाईकोर्ट के आदेश का पूरा फायदा उठाया और मणिपुर में आग लगा दी। आज मणिपुर जो हिंसा दिखाई दे रही है वह भारत के लिए लाभदायक ही है क्योंकि मैती समाज ने क्रिश्चियन मिशनरीज के लगभग 300 चर्च तोड़कर नष्ट कर दिए हैं। क्रिश्चियन मिशनरी पर हमले हो रहे हैं और कुकियो को भगाया जा रहा है। आज जो कुछ भी मणिपुर में हो रहा है वह भारत के लिए फायदेमंद है। अन्यथा मणिपुर जल्द ही एक नया देश बनने की राह पर था। वर्ष 2014 में सरकार नहीं बनती तो चीन धीरे-धीरे मणिपुर पर कब्जा कर लेता। लेकिन बेहद ही चालाकी से केंद्र सरकार ने मणिपुर में मूल भारतीयों को उनका अधिकार दिलाना शुरू कर दिया। यह बात विरोधी दलो को खल गई। पिछले 70 सालों से मणिपुर पर कांग्रेस का कब्जा था। अपने हाथ से मणिपुर जाने के बाद तथा क्रिश्चियन मिशनरीज का काम रुकवाने से नाराज सभी विरोधी दल मणिपुर हिंसा को लेकर केंद्र सरकार की बदनामी कर रहे हैं।  आप इन तथ्यों  से अवगत होने चाहिए ताकि लोगों को मालूम पड़े कि मणिपुर हिंसा की असली वजह क्या है। 🙏🕉️🇮🇳🚩🚩

शुक्रवार, 23 जून 2023

वृन्दावन के चींटें

*((( वृन्दावन के चींटें ))))*



एक सच्ची घटना सुनिए एक संत की
वे एक बार वृन्दावन गए वहाँ कुछ दिन घूमे फिरे दर्शन किए
जब वापस लौटने का मन किया तो सोचा भगवान् को भोग लगा कर कुछ प्रसाद लेता चलूँ..
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संत ने रामदाने के कुछ लड्डू ख़रीदे मंदिर गए.. प्रसाद चढ़ाया और आश्रम में आकर सो गए.. सुबह ट्रेन पकड़नी थी
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अगले दिन ट्रेन से चले.. सुबह वृन्दावन से चली ट्रेन को मुगलसराय स्टेशन तक आने में शाम हो गयी..

संत ने सोचा.. अभी पटना तक जाने में तीन चार घंटे और लगेंगे.. भूख लग रही है.. मुगलसराय में ट्रेन आधे घंटे रूकती है.. 
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चलो हाथ पैर धोकर संध्या वंदन करके कुछ पा लिया जाय..
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संत ने हाथ पैर धोया और लड्डू खाने के लिए डिब्बा खोला..
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उन्होंने देखा लड्डू में चींटे लगे हुए थे.. उन्होंने चींटों को हटाकर एक दो लड्डू खा लिए
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बाकी बचे लड्डू प्रसाद बाँट दूंगा ये सोच कर छोड़ दिए
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पर कहते हैं न संत ह्रदय नवनीत समाना

बेचारे को लड्डुओं से अधिक उन चींटों की चिंता सताने लगी..
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सोचने लगे.. ये चींटें वृन्दावन से इस मिठाई के डिब्बे में आए हैं..
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बेचारे इतनी दूर तक ट्रेन में मुगलसराय तक आ गए
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कितने भाग्यशाली थे.. इनका जन्म वृन्दावन में हुआ था, 
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अब इतनी दूर से पता नहीं कितने दिन या कितने जन्म लग जाएँगे इनको वापस पहुंचने में..!
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पता नहीं ब्रज की धूल इनको फिर कभी मिल भी पाएगी या नहीं..!!
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मैंने कितना बड़ा पाप कर दिया.. इनका वृन्दावन छुड़वा दिया
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नहीं मुझे वापस जाना होगा..
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और संत ने उन चींटों को वापस उसी मिठाई के डिब्बे में सावधानी से रखा.. और वृन्दावन की ट्रेन पकड़ ली।
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उसी मिठाई की दूकान के पास गए डिब्बा धरती पर रखा.. और हाथ जोड़ लिए
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मेरे भाग्य में नहीं कि तेरे ब्रज में रह सकूँ तो मुझे कोई अधिकार भी नहीं कि जिसके भाग्य में ब्रज की धूल लिखी है उसे दूर कर सकूँ
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दूकानदार ने देखा तो आया..
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महाराज चीटें लग गए तो कोई बात नहीं आप दूसरी मिठाई तौलवा लो..
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संत ने कहा.. भईया मिठाई में कोई कमी नहीं थी
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इन हाथों से पाप होते होते रह गया उसी का प्रायश्चित कर रहा हूँ..!
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दुकानदार ने जब सारी बात जानी तो उस संत के पैरों के पास बैठ गया.. भावुक हो गया
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इधर दुकानदार रो रहा था... उधर संत की आँखें गीली हो रही थीं!!
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बात भाव की है.. बात उस निर्मल मन की है.. बात ब्रज की है.. बात मेरे वृन्दावन की है.. 
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बात मेरे नटवर नागर और उनकी राधारानी की है.. बात मेरे कृष्ण की राजधानी की है।

बूझो तो बहुत कुछ है.. नहीं तो बस पागलपन है.. बस एक कहानी

          घर से जब भी बाहर जाये
 तो घर में विराजमान अपने प्रभु से जरूर   
                 मिलकर जाएं
                       और
 जब लौट कर आए तो उनसे जरूर मिले
                    क्योंकि
 उनको भी आपके घर लौटने का इंतजार     
                    रहता है
*"घर" में यह नियम बनाइए की जब भी आप घर से बाहर निकले तो घर में मंदिर के पास दो घड़ी खड़े रह कर कहें* 
               "प्रभु चलिए..
        आपको साथ में रहना हैं"..!
     *ऐसा बोल कर ही घर से निकले*
           *क्यूँकिआप भले ही*
"लाखों की घड़ी" हाथ में क्यूँ ना पहने हो        
                      पर
  *"समय" तो "प्रभु के ही हाथ" में हैं न*
 *_🌸 जय श्री राधे  🌸_*
       *_-:~ प्रस्तुतिकरण -:~_*
        *कैलाश चंद्र लढ़ा 
        *_।।जय जय श्री राम।। _*
        *_ ।।हर हर महादेव।।  _*

बुधवार, 21 जून 2023

Movie Review of Film: आदिपुरुष

Movie Review of Film: आदिपुरुष 
*************
फिल्म के लेखक समेत सोशल मीडिया पर कुछेक लोगों ने ये समझाने की कोशिश की कि... 
फिल्म के ऐसे छपरी डायलॉग्स और सीन्स देश के युवाओं (15-25 आयुवर्ग) को रामायण से कनेक्ट करने के लिए डाला गया है....

और, चूंकि हमलोग रामानंद सागर वाले रामायण को देखने के कारण पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं इसीलिए इस तथाकथित लेटेस्ट टेक्नोलॉजी का विरोध कर रहे हैं...

तो, मुझे भी एकबारगी ऐसा लगा कि शायद मैं ही गलत हूँ.

और , कल चूँकि रविवार अर्थात छुट्टी का दिन था ,
तो मैंने अपने घर के लोगों और अपने दो मित्रों को परिवार सहित घर बुलाया लिया और उन्हें बताया कि मेरे पास एक लेटेस्ट फिल्म है जो रामायण पर आधारित है.

इस तरह हम कुल... 15-16 लोग फिल्म देखने बैठे जिसमें 5 से 8 साल के 4 बच्चे, 10 से 19 साल के 3 बच्चे, 25-40 साल के 6 लोग एवं 70-90 साल आयुवर्ग के 2 लोग थे.

फिल्म देखने से पहले ही मैंने उन्हें थोड़ी सी भूमिका दे दी कि इस रामायण बेस्ड फिल्म में लेटेस्ट टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है...

इसीलिए, देख के मजा आ जायेगा.

इसके बाद मैंने.... अपने मोबाइल को स्मार्ट व्यू के माध्यम से टीवी से कनेक्ट कर फिल्म को चला दिया.

कास्टिंग के शुरुआती... जय श्री राम वाले भजन से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया.
लेकिन, जैसे ही फिल्म शुरू हुई और रावण को वरदान वाला एपिसोड शुरू हुआ तो... मित्र के 15 वर्षीय बेटे ने कहा कि... ये कौन है ?.

इस पर मैंने बताया कि... ये ब्रम्हा जी है.

इस पर वो हँसने लगा और कहा कि... लेकिन, ये तो बिल्कुल किसी पादरी जैसा लग रहा है.

फिर मैंने उसे चुप करवाते हुए आगे देखने को बोला.

जैसे ही रावण को जमीन या आसमान में, घर या बाहर में न मरने वाला वरदान दिया गया तो मेरे मित्र ने कहा : अबे, ये वरदान को हिरणकश्यपु को मिला था न ???

तो, साला इसको रावण से काहे जोड़ रहे हैं ?

क्रिएटिविटी का हवाला देकर उसको भी जैसे तैसे चुप करवाया और फिल्म आगे बढ़ी.
आगे बढ़ने पर... 
लक्ष्मण को लक्ष्मण रेखा खींचने वाला सीन आ गया जिसपर भाभी जी ने मुझे देखते हुए कहा कि.... लक्ष्मण रेखा तो एक बार ही खींची गई थी न ?
तो, ये अभी कैसे ???

खैर, उनको भी चुप करवाया और फिल्म आगे बढ़ी.

आगे बढ़ते ही भगवान राम के राक्षसों से लड़ने वाला सीन आ गया और मेरी 12 वर्षीय भतीजी हंसते हुए बोली.... 
अरे, इसमें तो भगवान राम तो राक्षसों को लात-घूंसे से मार रहे हैं ??

खैर, माता सीता के अपहरण के समय जब वो चमगादड़ आया तो पापा पूछ बैठे कि ये क्या है ?
मनोजवा की तरफ से मैंने सफाई देते हुए कहा कि... इसको आप पुष्पक विमान मान लो.

इस पर वे मुझे आंख तरेर कर देखते हुए बोले : तुम ही ये सब फालतू चीज देखा करो.
हम चले.

और, मम्मी पापा हॉल से उठ कर चले गए.

खैर, उनके जाने पर भी फिल्म जारी रही और माता सीता को रावण द्वारा ले जाते समय जब भगवान राम उस चमगादड़ का दौड़ते हुए पीछा करने लगते हैं तो...

भतीजी ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि... अरे, जब इनको रावण दिख रहा है तो ये उसे तीर क्यों नहीं मार रहे हैं ?

दौड़ क्यों रहे हैं इसके पीछे ?

उसकी बात सुनकर सब मुझे देखने लगे और मैं दूसरी तरफ.

कुल-मिलाकर फिल्म के एक घंटा पूरा होते होते... 
मैं सबसे पापी, कमीना और न जाने क्या क्या सुना.

और, अंततः फिल्म को एक घंटे  के बाद ही बंद कर देना पड़ा.

फिल्म को बंद करने के बाद भी मैं सबसे उपाधियाँ ही सुनता रहा कि... 
मैंने गंगा बोलकर उन्हें छोटे नाले में कैसे कूदवा दिया.

खैर, उसके बाद रेस्टोरेंट से खाना पार्सल मंगवा कर सबको ख़िलाया और जैसे तैसे घर से विदा किया.

और हाँ... मुझे गरियाने वालों में सिर्फ मेरे मित्र ही नहीं थे बल्कि मम्मी पापा भी थे..

लेकिन, गनीमत रही कि बच्चे मेरे बदले फिल्म मेकर्स को गाली दे रहे थे... 
और, मिल जाने पर उन्हीं का कान-कपार फोड़ने की बात कर रहे थे.

इस तरह... मेरा घरेलू फिल्मी कार्यक्रम समाप्त हो गया.

फिर भी.... उस समय के बाद से मैं इसी सोच में डूबा हुआ हूँ कि फिल्म वाले और कुछेक विद्वान जन बता रहे हैं कि फिल्म बच्चों और युवाओं को ध्यान में रखकर बनाई गई है..

लेकिन, मेरे यहाँ के युवा तो फिल्म मेकर्स को गालियाँ दे रहे हैं और उनका कान-कपार फोड़ने की बात रहे हैं.
तो, आखिर ये फिल्म किन युवाओं को ध्यान में रखकर बनाई गई है ???

अगर... ऐसे तथाकथित ऐसे युवा कहीं धरती पर मौजूद भी हैं तो..
भाई, जरूरत ऐसे युवाओं को कान के नीचे बजा कर सही ज्ञान देने की है.
न कि.... उन्हीं के पसंद के हिसाब से कंटेंट परोस देने की.

क्योंकि, युवा तो युवा है.

और, क्या पता कि.. पश्चिमी सभ्यता से इंस्पायर कोई गे युवा उस मनोजवा 

अगर नहीं.... तो, फिर युवाओं के इच्छा के नाम पर उसे हमारी धार्मिक मान्यता और धार्मिक ग्रंथों में मिलावट करने का अधिकार किसने दे दिया ???

जगन्नाथजी से जुड़े दस चमत्कार

 जगन्नाथजी से जुड़े दस चमत्कार"



पहला चमत्कार :-
 हवा के विपरीत लहराता ध्वज : श्री जगन्नाथ मंदिर के ऊपर स्थापित लाल ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। ऐसा किस कारण होता है यह तो वैज्ञानिक ही बता सकते हैं लेकिन यह निश्चित ही आश्चर्यजनक बात है। यह भी आश्चर्य है कि प्रतिदिन सायंकाल मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज को मानव द्वारा उल्टा चढ़कर बदला जाता है। ध्वज भी इतना भव्य है कि जब यह लहराता है तो इसे सब देखते ही रह जाते हैं। ध्वज पर शिव का चंद्र बना हुआ है।

दूसरा चमत्कार :-
 गुंबद की छाया नहीं बनती : यह दुनिया का सबसे भव्य और ऊंचा मंदिर है। यह मंदिर 4 लाख वर्गफुट में क्षेत्र में फैला है और इसकी ऊंचाई लगभग 214 फुट है। मंदिर के पास खड़े रहकर इसका गुंबद देख पाना असंभव है। मुख्य गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय अदृश्य ही रहती है। हमारे पूर्वज कितने बड़े इंजीनियर रहे होंगे यह इस एक मंदिर के उदाहरण से समझा जा सकता है। पुरी के मंदिर का यह भव्य रूप 7वीं सदी में निर्मित किया गया।

 तीसरा चमत्कार :-
 चमत्कारिक सुदर्शन चक्र : पुरी में किसी भी स्थान से आप मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को देखेंगे तो वह आपको सदैव अपने सामने ही लगा दिखेगा। इसे नीलचक्र भी कहते हैं। यह अष्टधातु से निर्मित है और अति पावन और पवित्र माना जाता है।

चौथा चमत्कार :-
 हवा की दिशा : सामान्य दिनों के समय हवा समुद्र से जमीन की तरफ आती है और शाम के दौरान इसके विपरीत, लेकिन पुरी में इसका उल्टा होता है। अधिकतर समुद्री तटों पर आमतौर पर हवा समुद्र से जमीन की ओर आती है, लेकिन यहाँ हवा जमीन से समुद्र की ओर जाती है।

पांचवां चमत्कार :-
 गुंबद के ऊपर नहीं उड़ते पक्षी : मंदिर के ऊपर गुंबद के आसपास अब तक कोई पक्षी उड़ता हुआ नहीं देखा गया। इसके ऊपर से विमान नहीं उड़ाया जा सकता। मंदिर के शिखर के पास पक्षी उड़ते नजर नहीं आते, जबकि देखा गया है कि भारत के अधिकतर मंदिरों के गुंबदों पर पक्षी बैठ जाते हैं या आसपास उड़ते हुए नजर आते हैं।

छठा चमत्कार :-
दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर : 500 रसोइए 300 सहयोगियों के साथ बनाते हैं भगवान जगन्नाथजी का प्रसाद। लगभग 20 लाख भक्त कर सकते हैं यहाँ भोजन। कहा जाता है कि मंदिर में प्रसाद कुछ हजार लोगों के लिए ही क्यों न बनाया गया हो लेकिन इससे लाखों लोगों का पेट भर सकता है। मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है। प्रसाद की एक भी मात्रा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती। मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं और सब कुछ लकड़ी पर ही पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है अर्थात सबसे ऊपर रखे बर्तन का खाना पहले पक जाता है। है न चमत्कार!

सातवां चमत्कार :-
 समुद्र की ध्वनि : मंदिर के सिंहद्वार में पहला कदम प्रवेश करने पर ही (मंदिर के अंदर से) आप सागर द्वारा निर्मित किसी भी ध्वनि को नहीं सुन सकते। आप (मंदिर के बाहर से) एक ही कदम को पार करें, तब आप इसे सुन सकते हैं। इसे शाम को स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है। इसी तरह मंदिर के बाहर स्वर्ग द्वार है, जहाँ पर मोक्ष प्राप्ति के लिए शव जलाए जाते हैं लेकिन जब आप मंदिर से बाहर निकलेंगे तभी आपको लाशों के जलने की गंध महसूस होगी।

आठवां चमत्कार :-
 रूप बदलती मूर्ति : यहाँ श्रीकृष्ण को जगन्नाथ कहते हैं। जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा विराजमान हैं। तीनों की ये मूर्तियां काष्ठ की बनी हुई हैं। यहाँ प्रत्येक 12 साल में एक बार होता है प्रतिमा का नव कलेवर। मूर्तियां नई जरूर बनाई जाती हैं लेकिन आकार और रूप वही रहता है। कहा जाता है कि उन मूर्तियों की पूजा नहीं होती, केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं।

नौवां चमत्कार :-
विश्व की सबसे बड़ी रथयात्रा : आषाढ़ माह में भगवान रथ पर सवार होकर अपनी मौसी रानी गुंडिचा के घर जाते हैं। यह रथयात्रा 5 किलोमीटर में फैले पुरुषोत्तम क्षेत्र में ही होती है। (रानी गुंडिचा भगवान जगन्नाथ के परम भक्त राजा इंद्रदयुम्न की पत्नी थी इसीलिए रानी को भगवान जगन्नाथ की मौसी कहा जाता है।) अपनी मौसी के घर भगवान 8 दिन रहते हैं। आषाढ़ शुक्ल दशमी को वापसी की यात्रा होती है। भगवान जगन्नाथ का रथ नंदीघोष है। देवी सुभद्रा का रथ दर्पदलन है और भाई बलभद्र का रक्ष तल ध्वज है। पुरी के गजपति महाराज सोने की झाड़ू बुहारते हैं जिसे छेरा पैररन कहते हैं।

दसवां चमत्कार :-
 हनुमानजी करते हैं जगन्नाथ की समुद्र से रक्षा : माना जाता है कि 3 बार समुद्र ने जगन्नाथजी के मंदिर को तोड़ दिया था। कहते हैं कि महाप्रभु जगन्नाथ ने वीर मारुति (हनुमानजी) को यहाँ समुद्र को नियंत्रित करने हेतु नियुक्त किया था, परंतु जब-तब हनुमान भी जगन्नाथ-बलभद्र एवं सुभद्रा के दर्शनों का लोभ संवरण नहीं कर पाते थे। वे प्रभु के दर्शन के लिए नगर में प्रवेश कर जाते थे, ऐसे में समुद्र भी उनके पीछे नगर में प्रवेश कर जाता था। केसरीनंदन हनुमानजी की इस आदत से परेशान होकर जगन्नाथ महाप्रभु ने हनुमानजी को यहाँ स्वर्ण बेड़ी से आबद्ध कर दिया। यहाँ जगन्नाथपुरी में ही सागर तट पर बेदी हनुमान का प्राचीन एवं प्रसिद्ध मंदिर है। भक्त लोग बेड़ी में जकड़े हनुमानजी के दर्शन करने के लिए आते हैं।
    

                


भगवान कृष्ण और भाई बलराम दोनों भी माता यशोदा से मुख से अपनी लीलाओं को सुनने लगे। अपनी शैतानियों और क्रियाओं को सुनते-सुनते उनके बाल खड़े होने लगे, आश्चर्य की वजह से आंखें बड़ी हो गईं और मुंह खुला रह गया। वहीं, खुद सुभद्रा भी इतनी मंत्रमुग्ध हो गईं कि प्रेम भाव में पिघलने लगीं। यही कारण है कि जगन्नाथ मंदिर में उनका कद सबसे छोटा है। सभी कृष्ण जी लीलाओं को सुन रहे थे कि इस बीच यहां नारद मुनि आ गए। 

नारद जी सबके हाव-भाव देखने लगे ही थे कि सबको अहसास हुआ कि कोई आ गया है। इस वजह से कृष्ण लीला का पाठ यहीं रुक गया। नारद जी ने कृष्ण जी के उस मन को मोह लेने वाले अवतार को देखकर कहा कि  'वाह प्रभु, आप कितने सुन्दर लग रहे हैं। आप इस रूप में अवतार कब लेंगे?” उस वक्त कृष्ण जी ने कहा कि वह कलियुग में ऐसा अवतार लेगें। 
 
वादे के अनुसार कलियुग में श्री कृष्ण ने राजा इंद्रद्युम्न के सपने में आए और उनसे कहा कि वह पुरी के दरिया किनारे एक पेड़ के तने में उनका विग्रह बनवाएं और बाद में उसे मंदिर में स्थापित करा दें। श्रीकृष्ण के आदेशानुसार राजा ने इस काम के लिए काबिल बढ़ई की तलाश शुरू की। कुछ दिनों में एक बूढ़ा ब्राह्मण उन्हें मिला और इस विग्रह को बनाने की इच्छा जाहिर की। लेकिन इस ब्राह्मण ने राजा के सामने एक शर्त रखी कि वह इस विग्रह को बंद कमरे में ही बनाएगा और उसके काम करते समय कोई भी कमरे का दरवाज़ा नहीं खोलेगा नहीं तो वह काम अधूरा छोड़ कर चला जाएगा।

शुरुआत में काम की आवाज़ आई लेकिन कुछ दिनों बाद उस कमरे से आवाज़ आना बंद हो गई। राजा सोच में पड़ गया कि वह दरवाजा खोलकर एक बार देखे या नहीं। कहीं उस बूढ़े ब्राह्मण को कुछ हो ना गया हो। इस चिंता में राजा ने एक दिन उस कमरे का दरवाज़ा खोल दिया। दरवाज़ा खुलते ही उसे सामने अधूरा विग्रह मिला और ब्राह्मण गायब था।। तब उसे अहसास हुआ कि ब्राह्मण और कोई नहीं बल्कि खुद विश्वकर्मा थे। शर्त के खिलाफ जाकर दरवाज़ा खोलने से वह चले गए। 
 
उस वक्त नारद मुनि पधारे और उन्होंने राजा से कहा कि जिस प्रकार भगवान ने सपने में आकर इस विग्रह को बनाने की बात कही ठीक उसी प्रकार इसे अधूरा रखने के लिए भी द्वार खुलवा लिया। राजा ने उन अधूरी मूरतों को ही मंदिर में स्थापित करवा दिया। यही कारण है कि जगन्नाथ पुरी के मंदिर में कोई पत्थर या फिर अन्य धातु की मूर्ति नहीं बल्कि पेड़ के तने को इस्तेमाल करके बनाई गई मूरत की पूजा की जाती है। 
 
इस मंदिर के गर्भ गृह में श्रीकृष्ण, सुभद्रा एवं बलभद्र (बलराम) की मूर्ति विराजमान है। कहा जाता है कि माता सुभद्रा को अपने मायके द्वारिका से बहुत प्रेम था इसलिए उनकी इस इच्छा को पूर्ण करने के लिए श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा जी ने अलग रथों में बैठकर द्वारिका का भ्रमण किया था। तब से आज तक पुरी में हर वर्ष रथयात्रा निकाली जाती है।

          ~०~

मंगलवार, 20 जून 2023

कुलदेवी की पूजा करना क्यों जरूरी है - कुलदेवी को मनाओ ,मौज करोगे। राजा जैसी जिंदगी जिओ।



जानें कुलदेवता, कुलदेवी की पूजा करना क्यों जरूरी है कुलदेवी, कुलदेवता के पूजन की सरल विधि 

भारत में हिन्दू पारिवारिक आराध्य व्यवस्था में कुलदेवता, कुलदेवी का स्थान सदैव से रहा है। प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज हैं। जिनसे उनके गोत्र का पता चलता है, बाद में कर्मानुसार इनका विभाजन वर्णों में हो गया।

विभिन्न कर्म करने के लिए, जो बाद में उनकी विशिष्टता बन गया और जाति कहा जाने लगा। हर जाति वर्ग, किसी न किसी ऋषि की संतान है और उन मूल ऋषि से उत्पन्न संतान के लिए वे ऋषि या ऋषि पत्नी कुलदेव / कुलदेवी के रूप में पूज्य भी हैं। जीवन में कुलदेवता का स्थान सर्वश्रेष्ठ है। आर्थिक सुबत्ता, कौटुंबिक सौख्य और शांती तथा आरोग्य के विषय में कुलदेवी की कृपा का निकटतम संबंध पाया गया है।

पूर्व के हमारे कुलों अर्थात पूर्वजों के खानदान के वरिष्ठों ने अपने लिए उपयुक्त कुल देवता अथवा कुलदेवी का चुनाव कर उन्हें पूजित करना शुरू किया था, ताकि एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति कुलों की रक्षा करती रहे जिससे उनकी नकारात्मक शक्तियों ऊर्जाओं और वायव्य बाधाओं से रक्षा होती रहे तथा वे निर्विघ्न अपने कर्म पथ पर अग्रसर रह उन्नति करते रहें।

कुलदेवी देवता दरअसल कुल या वंश की रक्षक देवी देवता होते है। ये घर परिवार या वंश परम्परा की प्रथम पूज्य तथा मूल अधिकारी देव होते है। सर्वाधिक आत्मीयता के अधिकारी इन देवो की स्थिति घर के बुजुर्ग सदस्यों जैसी महत्वपूर्ण होती है। अत: इनकी उपासना या महत्त्व दिए बगैर सारी पूजा एवं अन्य कार्य व्यर्थ हो सकते है।

इनका प्रभाव इतना महत्वपूर्ण होता है की यदि ये रुष्ट हो जाए तो अन्य कोई देवी देवता दुष्प्रभाव या हानि कम नही कर सकता या रोक नही लगा सकता। इसे यूं समझे – यदि घर का मुखिया पिताजी – माताजी आपसे नाराज हो तो पड़ोस के या बाहर का कोई भी आपके भले के लिये, आपके घर में प्रवेश नही कर सकता क्योकि वे “बाहरी” होते है। खासकर सांसारिक लोगो को कुलदेवी देवता की उपासना इष्ट देवी देवता की तरह रोजाना करना ही चाहिये।

ऐसे अनेक परिवार देखने मे आते है जिन्हें अपने कुल देवी देवता के बारे में कुछ भी नही मालूम नही होता है। किन्तु कुलदेवी – देवता को भुला देने मात्र से वे हट नही जाते, वे अभी भी वही रहेंगे।

यदि मालूम न हो तो अपने परिवार या गोत्र के बुजुर्गो से कुलदेवता – देवी के बारे में जानकारी लेवें, यह जानने की कोशिश करे की झडूला मुण्डन संस्कार आपके गोत्र परम्परानुसार कहा होता है, या “जात” कहा दी जाती है, या विवाह के बाद एक अंतिम फेरा (5 6 7 वां) कहा होता है। हर गोत्र धर्म के अनुसार भिन्नता होती है. सामान्यत: ये कर्म कुलदेवी, कुलदेवता के सामने होते है और यही इनकी पहचान है।

समय क्रम में परिवारों के एक दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने, धर्म परिवर्तन करने, आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने, जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने, संस्कारों के क्षय होने, विजातीयता पनपने, इनके पीछे के कारण को न समझ पाने आदि के कारण बहुत से परिवार अपने कुल देवता देवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा की उनके कुल देवता देवी कौन हैं या किस प्रकार उनकी पूजा की जाती है। इनमें पीढ़ियों से शहरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं, कुछ स्वयंभू आधुनिक मानने वाले और हर बात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान के गर्व में अथवा अपनी वर्त्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया या इन पर ध्यान नहीं दिया।

हमारे सुरक्षा आवरण हैं कुलदेवी / कुलदेवता
कुल देवता या देवी हमारे वह सुरक्षा आवरण हैं जो किसी भी बाहरी बाधा, नकारात्मक ऊर्जा के परिवार में अथवा व्यक्ति पर प्रवेश से पहले सर्वप्रथम उससे संघर्ष करते हैं और उसे रोकते हैं, यह पारिवारिक संस्कारो और नैतिक आचरण के प्रति भी समय समय पर सचेत करते रहते हैं, यही किसी भी ईष्ट की आराधना करे वह उस ईष्ट तक नहीं पहुँचता अगर कुलदेवी ओर इष्टदेवकी प्रसन्नता न हो , क्योकि सेतु कार्य करना बंद कर देता है, बाहरी बाधाये,अभिचार आदि, नकारात्मक ऊर्जा बिना बाधा व्यक्ति तक पहुँचने लगती है, कभी कभी व्यक्ति या परिवारों द्वारा दी जा रही ईष्ट की पूजा कोई अन्य बाहरी वायव्य शक्ति लेने लगती है, अर्थात पूजा न ईष्ट तक जाती है न उसका लाभ मिलता है, ऐसा कुलदेवता की निर्लिप्तता अथवा उनके कम सशक्त ( मतलब आपके रदय में जाग्रत नही होना )होने से होता है।

कुलदेवी की उपेक्षा अथवा भूलने  के कारण-
समय क्रम में परिवारों के एक दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने, धर्म परिवर्तन करने, आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने, जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने,  विजातीयता पनपने, इसके पीछे के कारण को न समझ पाने आदि के कारण बहुत से परिवार अपने कुल देवता/देवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा कि उनके कुल देवता/देवी कौन हैं या किस प्रकार उनकी पूजा की जाती है, इनमे पीढ़ियों से शहरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं, कुछ स्वयंभू आधुनिक मानने वाले और हर बात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान के गर्व में अथवा अपनी वर्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया या इनपर ध्यान नहीं दिया ।

क्या उपेक्षा से नाराज होकर कुलदेवी  बाधाएँ उत्पन्न करती हैं ?

कुलदेवी कभी भी अपने उपासकों का अनिष्ट नहीं करती। कुलदेवियों की पूजा ना करने पर उत्पन्न बाधाओं का कारण कुलदेवी नहीं अपितु हमारे सुरक्षा चक्र का टूटना है। देवी अथवा देवता तब शक्ति संपन्न होते हैं जब हम समय-समय पर उन्हें हवियाँ प्रदान करते हैं व नियमित रूप से उनकी उपासना करते हैं। जब हम इनकी उपासना बंद कर देते हैं तब कुलदेवी तब कुछ वर्षों तक तो कोई प्रभाव ज्ञात नहीं होता, किन्तु उसके बाद जब सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में दुर्घटनाओं, नकारात्मकता ऊर्जा “वायव्य” बाधाओं का बेरोक-टोक प्रवेश शुरू हो जाता है, उन्नति रुकने लगती है, पीढ़िया अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाती, संस्कारों का भय, नैतिक पतन, कलह, उपद्रव, अशांति शुरू हो जाती हैं,

व्यक्ति कारण खोजने का प्रयास करता है कारण जल्दी नहीं पता चलता क्योंकि व्यक्ति की ग्रह स्थितियों से इनका बहुत मतलब नहीं होता है, अतः ज्योतिष आदि से इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है, भाग्य कुछ कहता है और व्यक्ति के साथ कुछ और घटता है।  कुलदेवता या देवी सम्बन्धित व्यक्ति के पारिवारिक संस्कारों के प्रति संवेदनशील होते हैं और पूजा पद्धति, उलटफेर, विधर्मीय क्रियाओं अथवा पूजाओं से रुष्ट हो सकते हैं, सामान्यतया इनकी पूजा वर्ष में एक बार अथवा दो बार निश्चित समय पर होती है।  शादी-विवाह संतानोत्पत्ति आदि होने पर इन्हें विशिष्ट पूजाएँ भी दी जाती हैं, यदि यह सब बंद हो जाए तो या तो यह मूकदर्शक हो जाते हैं और परिवार बिना किसी सुरक्षा आवरण के पारलौकिक शक्तियों के लिए खुल जाता है। जिन नकारात्मक शक्तियों को कुलदेवी रोके रखती हैं, सुरक्षा चक्र के अभाव में वे सभी शक्तियां घर में प्रवेश कर परेशानियां उत्पन्न करती हैं। परिवार में विभिन्न तरह की परेशानियां शुरू हो जाती है।  अतः प्रत्येक व्यक्ति परिवार को अपने कुलदेवता या देवी को जानना चाहिए तथा यथायोग्य उन्हें पूजा प्रदान करनी चाहिए, जिससे परिवार की सुरक्षा-उन्नति होती रहे । यदि आप नहीं जानते कि आपकी कुलदेवी कौन है तो पूजा के लिए यह विधि कर सकते हैं

  किसी योग्य विद्धवान ब्राह्मण से मिलकर कुलदेवी प्रसन्ता केलिए पूजा ,अनुष्ठान ,होम हवन बिगैरे कर्म करे ताकि उनकी जागृति हो । तीर्थ स्थानों में जाकर पंडितो से मिलने और उनके पास आपके जो पूर्वजो की किताबें होती है वो आपके वंश के तीर्थ ब्राह्मण भी बता सकते है आपकी कुलदेवी ओर इष्टदेव कोन है । आपकी जाती शाख के अन्य लोगो से भी ये जानकारी मिल सकती है । और सबसे महत्वपूर्ण जब आप रदयस्थ भाव से जय कुलदेवी नाम स्मरण शुरू करेंगे तो वो आपके अंदर ही है ,उनकी जागृति अवश्य होती है और किसी न किसी रास्ते आपको उनकी सारी जानकारी वो ही दिला देती है।

कुल देवता, देवी की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो कोई ख़ास अंतर नहीं समझ में आता, किन्तु उसके बाद जब सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में दुर्घटनाओं, नकारात्मक ऊर्जा, वायव्य बाधाओं का बेरोक – टोक प्रवेश शुरू हो जाता है, उन्नति रुकने लगती है, पीढ़िया अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाती, संस्कारों का क्षय, नैतिक पतन, कलह, उपद्रव, अशांति शुरू हो जाती हैं, व्यक्ति कारण खोजने का प्रयास करता है, कारण जल्दी नहीं पता चलता क्योकि व्यक्ति की ग्रह स्थितियों से इनका बहुत मतलब नहीं होता है, अतः ज्योतिष आदि से इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है, भाग्य कुछ कहता है और व्यक्ति के साथ कुछ और घटता है।

कुल देवता या देवी हमारे वह सुरक्षा आवरण हैं जो किसी भी बाहरी बाधा, नकारात्मक ऊर्जा के परिवार में अथवा व्यक्ति पर प्रवेश से पहले सर्वप्रथम उससे संघर्ष करते हैं और उसे रोकते हैं, यह पारिवारिक संस्कारों और नैतिक आचरण के प्रति भी समय समय पर सचेत करते रहते हैं, यही किसी भी ईष्ट को दी जाने वाली पूजा को इष्ट तक पहुचाते हैं, यदि इन्हें पूजा नहीं मिल रही होती है तो यह नाराज भी हो सकते हैं और निर्लिप्त भी हो सकते हैं

ऐसे में आप किसी भी इष्ट की आराधना करे वह उस इष्ट तक नहीं पहुँचता, क्योकि सेतु कार्य करना बंद कर देता है, बाहरी बाधाये, अभिचार आदि, नकारात्मक ऊर्जा बिना बाधा व्यक्ति तक पहुचने लगती है, कभी कभी व्यक्ति या परिवारों द्वारा दी जा रही इष्ट की पूजा कोई अन्य बाहरी वायव्य शक्ति लेने लगती है, अर्थात पूजा न इष्ट तक जाती है न उसका लाभ मिलता है।

ऐसा कुलदेवता की निर्लिप्तता अथवा उनके कम शशक्त होने से होता है। कुलदेव परम्परा भी लुप्तप्राय हो गयी है, जिन घरो में प्राय: कलह रहती है, वंशावली आगे नही बढ रही है, निर्वंशी हो रहे हों, आर्थिक उन्नति नही हो रही है, विकृत संताने हो रही हो अथवा अकाल मौते हो रही हो, उन परिवारों में विशेष ध्यान देना चाहिए।

कुलदेवता या देवी सम्बंधित व्यक्ति के पारिवारिक संस्कारों के प्रति संवेदनशील होते हैं और पूजा पद्धति, उलटफेर, विधर्मीय क्रियाओं अथवा पूजाओं से रुष्ट हो सकते हैं, सामान्यतया इनकी पूजा वर्ष में एक बार अथवा दो बार निश्चित समय पर होती है, यह परिवार के अनुसार भिन्न समय होता है और भिन्न विशिष्ट पद्धति होती है, शादी – विवाह, संतानोत्पत्ति आदि होने पर इन्हें विशिष्ट पूजाएँ भी दी जाती हैं,

यदि यह सब बंद हो जाए तो या तो यह नाराज होते हैं या कोई मतलब न रख मूकदर्शक हो जाते हैं और परिवार बिना किसी सुरक्षा आवरण के पारलौकिक शक्तियों के लिए खुल जाता है, परिवार में विभिन्न तरह की परेशानियां शुरू हो जाती हैं, अतः प्रत्येक व्यक्ति और परिवार को अपने कुल देवता या देवी को जानना चाहिए तथा यथायोग्य उन्हें पूजा प्रदान करनी चाहिए, जिससे परिवार की सुरक्षा उन्नति होती रहे।

अक्सर कुलदेवी, देवता और इष्ट देवी देवता एक ही हो सकते है, इनकी उपासना भी सहज और तामझाम से परे होती है। जैसे नियमित दीप व अगरबत्ती जलाकर देवो का नाम पुकारना या याद करना, विशिष्ट दिनों में विशेष पूजा करना, घर में कोई पकवान आदि बनाए तो पहले उन्हें अर्पित करना फिर घर के लोग खाए, हर मांगलिक कार्य या शुभ कार्य में उन्हें निमन्त्रण देना या आज्ञा मांगकर कार्य करना आदि। इस कुल परम्परा की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की यदि आपने अपना धर्म बदल लिया हो या इष्ट बदल लिया हो तब भी कुलदेवी देवता नही बदलेंगे, क्योकि इनका सम्बन्ध आपके वंश परिवार से है।

किन्तु धर्म या पंथ बदलने सके साथ साथ यदि कुलदेवी, देवता का भी त्याग कर दिया तो जीवन में अनेक कष्टों का सामना करना पद सकता है जैसे धन नाश, दरिद्रता, बीमारिया, दुर्घटना, गृह कलह, अकाल मौते आदि। वही इन उपास्य देवो की वजह से दुर्घटना बीमारी आदि से सुरक्षा होते हुवे भी देखा गया है।

ऐसे अनेक परिवार भी है जिन्हें अपने कुल देवी देवता के बारे में कुछ भी नही मालूम। एक और बात ध्यान देने योग्य है किसी महिला का विवाह होने के बाद ससुराल की कुलदेवी / देवता ही उसके उपास्य हो जायेंगे न की मायके के। इसी प्रकार कोई बालक किसी अन्य परिवार में गोद में चला जाए तो गोद गये परिवार के कुल देव उपास्य होंगे।

कुलदेवी / कुलदेवता के पूजन की सरल विधि :–

1. जब भी आप घर में कुलदेवी की पूजा करे तो सबसे जरूरी चीज होती है पूजा की सामग्री। पूजा की सामग्री इस प्रकार ही होना चाहिये 4 पानी वाले नारियल, लाल वस्त्र, 10 सुपारिया, 8 या 16 श्रंगार कि वस्तुये, पान के 10 पत्ते, घी का दीपक, कुंकुम, हल्दी, सिंदूर, मौली, पांच प्रकार की मिठाई, पूरी, हलवा, खीर, भिगोया चना, बताशा, कपूर, जनेऊ, पंचमेवा।

2. ध्यान रखे जहा सिन्दूर वाला नारियल है वहां सिर्फ सिंदूर ही चढ़े बाकि हल्दी कुंकुम नहीं। जहाँ कुमकुम से रंग नारियल है वहां सिर्फ कुमकुम चढ़े सिन्दूर नहीं।

3. बिना रंगे नारियल पर सिन्दूर न चढ़ाएं, हल्दी रोली चढ़ा सकते हैं, यहाँ जनेऊ चढ़ाएं, जबकि अन्य जगह जनेऊ न चढ़ाए।

4. पांच प्रकार की मिठाई ही इनके सामने अर्पित करें। साथ ही घर में बनी पूरी हलवा खीर इन्हें अर्पित करें।

5. ध्यान रहे की साधना समाप्ति के बाद प्रसाद घर में ही वितरित करें, बाहरी को न दें।

6. इस पूजा में चाहें तो दुर्गा अथवा काली का मंत्र जप भी कर सकते हैं, किन्तु साथ में तब शिव मंत्र का जप भी अवश्य करें।

7. सामान्यतय पारंपरिक रूप से कुलदेवता कुलदेवी की पूजा में घर की कुँवारी कन्याओं को शामिल नहीं किया जाता। इसलिए उन्हें इससे अलग ही रखना चाहिये।

विशेष दिन और त्यौहार पर शुद्ध लाल कपड़े के आसान पर कुलदेवी कुलदेवता का चित्र स्थापित करके घी या तेल का दीपक लगाकर गूगल की धुप देकर घी या तेल से हवन करकर चूरमा बाटी का भोग लगाना चाहिए, अगरबत्ती, नारियल, सतबनी मिठाई, मखाने दाने, इत्र, हर फूल आदि श्रद्धानुसार।

नवरात्री में पूजा अठवाई के साथ परम्परानुसार करनी चाहिए।

पितृ देवता के पूजन की सरल विधि :- 

शुद्ध सफेद कपड़े के आसान पर पितृ देवता का चित्र स्थापित करके, घी का दीपक लगाकर गूगल धुप देकर, घी से हवन करकर चावल की सेनक या चावल की खीर पूड़ी का भोग लगाना चाहिए। अगरबत्ती , नारियल, सतबनी मिठाई, मखाने दाने, इत्र, हर फूल आदि श्रद्धानुसार।

चावल की सेनक : चावल को उबाल पका लेवे फिर उसमे घी और शक्कर मिला ले।

अठवाई : दो पूड़ी के साथ एक मीठा पुआ और उस पर सूजी का हलवा, इस प्रकार दो जोड़े कुल मिलाकर ४ पूड़ी ; २ मीठा पुआ और थोड़ा सूजी का हलवा ।

कुलदेवी / कुलदेवता को नहीं पूजने, नही मानने के दुष्प्रभाव, परिणाम :-

कुलदेवता या कुलदेवी का हमारे जीवन में बहुत महत्व होता है। इनकी पूजा आदिकाल से चलती आ रही है, इनके आशिर्वाद के बिना कोई भी शुभ कार्य नहीं होता है। यही वो देव या देवी है जो कुल की रक्षा के लिए हमेशा सुरक्षा घेरा बनाये रखती है।

आपकी पूजा पाठ, व्रत कथा जो भी आप धार्मिक कार्य करते है उनको वो आपके इष्ट तक पहुँचाते है। इनकी कृपा से ही कुल वंश की प्रगति होती है। लेकिन आज के आधुनिक युग में लोगो को ये ही नहीं पता की हमारे कुलदेव या देवी कौन है। जिसका परिणाम हम आज भुगत रहे हैं।

आज हमें यह पता ही नहीं चल रहा की हम सब पर इतनी मुसीबते आ क्यों रहे है ? बहुत से ऐसे लोग भी है जो बहुत पूजा पाठ करते है, बहुत धार्मिक है फिर भी उसके परिवार में सुख शांति नहीं है।

बेटा बेरोजगार होता है बहुत पढने लिखने के बाद भी पिता पुत्र में लड़ाई होती रहती है, जो धन आता है घर मे पता ही नहीं चलता कौन से रास्ते निकल जाता है। पहले बेटे बेटी की शादी नहीं होती, शादी किसी तरह हो भी गई तो संतान नहीं होती। ये संकेत है की आपके कुलदेव या देवी आपसे रुष्ट है।

आपके ऊपर से सुरक्षा चक्र हट चूका है, जिसके कारण नकारात्मक शक्तियां आप पर हावी हो जाती है। फिर चाहे आप कितना पूजा – पाठ करवा लो कोइ लाभ नहीं होगा।

लेकिन आधुनिक लोग इन बातो को नहीं मानते। आँखे बन्द कर लेने से रात नहीं हो जाती। सत्य तो सत्य ही रहेगा। जो हमारे बुजुर्ग लोग कह गए वो सत्य है, भले ही वो आप सबकी तरह अंग्रेजी स्कूल में ना पढ़े हो लेकिन समझ उनमे आपसे ज्यादा थी। उनके जैसे संस्कार आज के बच्चों में नहीं मिलेंगे।

आपसे निवेदन है की अपने कुलदेव या कुलदेवी का पता लगाऐ और उनकी शरण में जाये। अपनी भूल की क्षमा माँगे और नित्य कुलदेवता / कुलदेवी की भी पूजा किया जाता है।


एक मंदिर ऐसा है ,
जहाँ हमेशा आपका इन्तजार किया जाता है ,
मेरा कुलदीपक आएगा ,मैं उसको निहारूंगी,
देखूँगी,आशीर्वाद दूंगी। मेरा बेटा, बेटी आएगी।
वो मंदिर है , हमारी कुलदेवी का मंदिर।


ऐसे लोग बहुत देखे होंगे होंगे  जो बहुत पूजा पाठ करते है बहुत धार्मिक है फिर भी उसके परिवार में सुख शांति नही । जो धन आता है घर मे पता ही नही चलता कोनसे रास्ते निकल जाता है ।

शादी नही होती , शादी किसी तरह हो गई तो संतान नही होती । घर में कोई तरक्की बरकत नहीं होती। गृह क्लेश बना रहता है। घर परिवार में किसी की नहीं बनती। किसी को भेजो सुनार के पास ,वो मिलता है लुहार के पास।

ये संकेत है की आपके कुलदेव या देवी आपसे रुष्ट है | आपके ऊपर से सुरक्षा चक्र हट चूका है जिसके कारण नकारात्मक शक्तिया आप पर हावी हो जाती है । फिर चाहे आप कितना पूजा पाठ करवा लो , कोइ लाभ नही होगा ।

कुलदेवता या कुलदेवी का हमारे जीवन में बहुत महत्व होता है । इनकी पूजा आदिकाल से चलती आ रही है इनके आशिर्वाद के बिना कोई भी शुभ कार्य नही होता है।  यही वो देव या देवी है , जो कुल की रक्षा के लिए हमेशा सुरक्षा घेरा बनाये रखती है ।

इसलिए आपसे निवेदन है अपने कुलदेव या देवी का पता लगाओ और उनकी शरण मे जाओ अपनी भूल की क्षमा माँगो |

आपके बड़े बुजुर्ग ,आस पड़ोस की बुजुर्ग महिलाएं जरूर जानती होंगी आपकी कुल देवी कौन हैं ,या फिर आपके गोत्र के कुनबे के लोग ,काका ,ताऊ , बुआ | उन्ही से पता कीजिए ,थोड़ी कोशिश करनी होगी ,इधर उधर फ़ोन घुमाओ ,कुल देवी और उसका दिन , वार , तिथि का पता करो |

यदि कुलदेवी / कुलदेवता का पता नहीं चलता है ,तो भी ये साधना की जा सकती है। सच्चे दिल से कुलदेवी की प्रार्थना की जाय तो बहुत जल्दी फलित होती है। यदि माता प्रसन्न हो जाय तो ,अपने होने का सबूत भी किसी न किसी रूप में दे देती है। या फिर घर की खुशहाली बता देती है की कुलदीवे का आशीर्वाद घर पर है।

कुलदेवी कृपा प्राप्ति साधना –

यह साधना शुक्ल पक्ष कि अष्टमी , 12 , 13, 14  तिथि को करनी है |

किसी भी दिन शुक्रवार  शाम को , खीर बनाओ ( चाहे 100  ग्राम चावल की ) संध्या के समय ,यानि शाम सवा सात बजे या उसके बाद |

 घर में जहाँ पूजा करते हो वहां पर एक घी का दीपक प्रज्वलित करो , उसकी लौ के पास अंगारा रखो ,अंगारे पर  चुटकी भर खीर डालो ,खीर पर चम्मच से मामूली मामूली घी डालो , अंगारे पर देखो लौ आती है या नहीं |

अगर लौ आ जाती है तो हाथ जोड़ के कहो -हे कुल देवी , हे माता जी आपका ही पहरा है ,परिवार को स्वस्थ और खुशहाल करो |

और 7, 11, 21 या 108 बार इनमें से कोई एक या दोनो
( जो जैसे मानता है ) मन्त्रों का जाप कीजिए।

प्रत्येक परिवार में कुलदेवी और इष्ट देव/देवी ही होते है । कुल देवता की जगह ईष्ट का मंत्र भी कर सकते है।

कुलदेवता मंत्र —-
ॐ ह्रीं श्री कुल देवतायै मनोवांछितं साधय साधय फट्॥

कुलदेवी मंत्र —--
|| ॐ ह्रीं श्रीं कुलेश्वरी प्रसीद - प्रसीद ऐं नम : ||

साधना समाप्ति के बाद सहपरिवार आरती करे |
बाद में खीर का प्रसाद परिवार मे ही बाटना है |
बाहर किसी को नहीं देना ,इसका खास ख्याल रखना है।

3 दिन बाद सारी सामग्री जल मे परिवार के कल्याण कि प्रार्थना करते हुये प्रवाहित कर दे | 

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