जानें कुलदेवता, कुलदेवी की पूजा करना क्यों जरूरी है कुलदेवी, कुलदेवता के पूजन की सरल विधि
भारत में हिन्दू पारिवारिक आराध्य व्यवस्था में कुलदेवता, कुलदेवी का स्थान सदैव से रहा है। प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज हैं। जिनसे उनके गोत्र का पता चलता है, बाद में कर्मानुसार इनका विभाजन वर्णों में हो गया।
विभिन्न कर्म करने के लिए, जो बाद में उनकी विशिष्टता बन गया और जाति कहा जाने लगा। हर जाति वर्ग, किसी न किसी ऋषि की संतान है और उन मूल ऋषि से उत्पन्न संतान के लिए वे ऋषि या ऋषि पत्नी कुलदेव / कुलदेवी के रूप में पूज्य भी हैं। जीवन में कुलदेवता का स्थान सर्वश्रेष्ठ है। आर्थिक सुबत्ता, कौटुंबिक सौख्य और शांती तथा आरोग्य के विषय में कुलदेवी की कृपा का निकटतम संबंध पाया गया है।
पूर्व के हमारे कुलों अर्थात पूर्वजों के खानदान के वरिष्ठों ने अपने
लिए उपयुक्त कुल देवता अथवा कुलदेवी का चुनाव कर उन्हें पूजित करना शुरू
किया था, ताकि एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति कुलों की रक्षा करती रहे
जिससे उनकी नकारात्मक शक्तियों ऊर्जाओं और वायव्य बाधाओं से रक्षा होती रहे
तथा वे निर्विघ्न अपने कर्म पथ पर अग्रसर रह उन्नति करते रहें।
कुलदेवी देवता दरअसल कुल या वंश की रक्षक देवी देवता होते है। ये घर परिवार या वंश परम्परा की प्रथम पूज्य तथा मूल अधिकारी देव होते है। सर्वाधिक आत्मीयता के अधिकारी इन देवो की स्थिति घर के बुजुर्ग सदस्यों जैसी महत्वपूर्ण होती है। अत: इनकी उपासना या महत्त्व दिए बगैर सारी पूजा एवं अन्य कार्य व्यर्थ हो सकते है।
इनका प्रभाव इतना महत्वपूर्ण होता है की यदि ये रुष्ट हो जाए तो अन्य कोई देवी देवता दुष्प्रभाव या हानि कम नही कर सकता या रोक नही लगा सकता। इसे यूं समझे – यदि घर का मुखिया पिताजी – माताजी आपसे नाराज हो तो पड़ोस के या बाहर का कोई भी आपके भले के लिये, आपके घर में प्रवेश नही कर सकता क्योकि वे “बाहरी” होते है। खासकर सांसारिक लोगो को कुलदेवी देवता की उपासना इष्ट देवी देवता की तरह रोजाना करना ही चाहिये।
ऐसे अनेक परिवार देखने मे आते है जिन्हें अपने कुल देवी देवता के बारे में कुछ भी नही मालूम नही होता है। किन्तु कुलदेवी – देवता को भुला देने मात्र से वे हट नही जाते, वे अभी भी वही रहेंगे।
यदि मालूम न हो तो अपने परिवार या गोत्र के बुजुर्गो से कुलदेवता – देवी के बारे में जानकारी लेवें, यह जानने की कोशिश करे की झडूला मुण्डन संस्कार आपके गोत्र परम्परानुसार कहा होता है, या “जात” कहा दी जाती है, या विवाह के बाद एक अंतिम फेरा (5 6 7 वां) कहा होता है। हर गोत्र धर्म के अनुसार भिन्नता होती है. सामान्यत: ये कर्म कुलदेवी, कुलदेवता के सामने होते है और यही इनकी पहचान है।
समय क्रम में परिवारों के एक दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने, धर्म परिवर्तन करने, आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने, जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने, संस्कारों के क्षय होने, विजातीयता पनपने, इनके पीछे के कारण को न समझ पाने आदि के कारण बहुत से परिवार अपने कुल देवता देवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा की उनके कुल देवता देवी कौन हैं या किस प्रकार उनकी पूजा की जाती है। इनमें पीढ़ियों से शहरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं, कुछ स्वयंभू आधुनिक मानने वाले और हर बात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान के गर्व में अथवा अपनी वर्त्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया या इन पर ध्यान नहीं दिया।
हमारे सुरक्षा आवरण हैं कुलदेवी / कुलदेवता
कुल देवता या देवी हमारे वह सुरक्षा आवरण हैं जो किसी भी बाहरी बाधा,
नकारात्मक ऊर्जा के परिवार में अथवा व्यक्ति पर प्रवेश से पहले सर्वप्रथम
उससे संघर्ष करते हैं और उसे रोकते हैं, यह पारिवारिक संस्कारो और नैतिक
आचरण के प्रति भी समय समय पर सचेत करते रहते हैं, यही किसी भी ईष्ट की
आराधना करे वह उस ईष्ट तक नहीं पहुँचता अगर कुलदेवी ओर इष्टदेवकी प्रसन्नता
न हो , क्योकि सेतु कार्य करना बंद कर देता है, बाहरी बाधाये,अभिचार आदि,
नकारात्मक ऊर्जा बिना बाधा व्यक्ति तक पहुँचने लगती है, कभी कभी व्यक्ति या
परिवारों द्वारा दी जा रही ईष्ट की पूजा कोई अन्य बाहरी वायव्य शक्ति लेने
लगती है, अर्थात पूजा न ईष्ट तक जाती है न उसका लाभ मिलता है, ऐसा
कुलदेवता की निर्लिप्तता अथवा उनके कम सशक्त ( मतलब आपके रदय में जाग्रत
नही होना )होने से होता है।
कुलदेवी की उपेक्षा अथवा भूलने के कारण-
समय क्रम में परिवारों के एक दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने, धर्म
परिवर्तन करने, आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने, जानकार व्यक्ति के
असमय मृत होने, विजातीयता पनपने, इसके पीछे के कारण को न समझ पाने आदि के
कारण बहुत से परिवार अपने कुल देवता/देवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही
नहीं रहा कि उनके कुल देवता/देवी कौन हैं या किस प्रकार उनकी पूजा की जाती
है, इनमे पीढ़ियों से शहरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं, कुछ स्वयंभू
आधुनिक मानने वाले और हर बात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान
के गर्व में अथवा अपनी वर्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया
या इनपर ध्यान नहीं दिया ।
क्या उपेक्षा से नाराज होकर कुलदेवी बाधाएँ उत्पन्न करती हैं ?
कुलदेवी कभी भी अपने उपासकों का अनिष्ट नहीं करती। कुलदेवियों की पूजा ना
करने पर उत्पन्न बाधाओं का कारण कुलदेवी नहीं अपितु हमारे सुरक्षा चक्र का
टूटना है। देवी अथवा देवता तब शक्ति संपन्न होते हैं जब हम समय-समय पर
उन्हें हवियाँ प्रदान करते हैं व नियमित रूप से उनकी उपासना करते हैं। जब
हम इनकी उपासना बंद कर देते हैं तब कुलदेवी तब कुछ वर्षों तक तो कोई प्रभाव
ज्ञात नहीं होता, किन्तु उसके बाद जब सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में
दुर्घटनाओं, नकारात्मकता ऊर्जा “वायव्य” बाधाओं का बेरोक-टोक प्रवेश शुरू
हो जाता है, उन्नति रुकने लगती है, पीढ़िया अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाती,
संस्कारों का भय, नैतिक पतन, कलह, उपद्रव, अशांति शुरू हो जाती हैं,
व्यक्ति कारण खोजने का प्रयास करता है कारण जल्दी नहीं पता चलता क्योंकि
व्यक्ति की ग्रह स्थितियों से इनका बहुत मतलब नहीं होता है, अतः ज्योतिष
आदि से इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है, भाग्य कुछ कहता है और व्यक्ति के साथ
कुछ और घटता है। कुलदेवता या देवी सम्बन्धित व्यक्ति के पारिवारिक
संस्कारों के प्रति संवेदनशील होते हैं और पूजा पद्धति, उलटफेर, विधर्मीय
क्रियाओं अथवा पूजाओं से रुष्ट हो सकते हैं, सामान्यतया इनकी पूजा वर्ष में
एक बार अथवा दो बार निश्चित समय पर होती है। शादी-विवाह संतानोत्पत्ति
आदि होने पर इन्हें विशिष्ट पूजाएँ भी दी जाती हैं, यदि यह सब बंद हो जाए
तो या तो यह मूकदर्शक हो जाते हैं और परिवार बिना किसी सुरक्षा आवरण के
पारलौकिक शक्तियों के लिए खुल जाता है। जिन नकारात्मक शक्तियों को कुलदेवी
रोके रखती हैं, सुरक्षा चक्र के अभाव में वे सभी शक्तियां घर में प्रवेश कर
परेशानियां उत्पन्न करती हैं। परिवार में विभिन्न तरह की परेशानियां शुरू
हो जाती है। अतः प्रत्येक व्यक्ति परिवार को अपने कुलदेवता या देवी को
जानना चाहिए तथा यथायोग्य उन्हें पूजा प्रदान करनी चाहिए, जिससे परिवार की
सुरक्षा-उन्नति होती रहे । यदि आप नहीं जानते कि आपकी कुलदेवी कौन है तो
पूजा के लिए यह विधि कर सकते हैं
किसी योग्य विद्धवान ब्राह्मण से मिलकर कुलदेवी प्रसन्ता केलिए पूजा
,अनुष्ठान ,होम हवन बिगैरे कर्म करे ताकि उनकी जागृति हो । तीर्थ स्थानों
में जाकर पंडितो से मिलने और उनके पास आपके जो पूर्वजो की किताबें होती है
वो आपके वंश के तीर्थ ब्राह्मण भी बता सकते है आपकी कुलदेवी ओर इष्टदेव कोन
है । आपकी जाती शाख के अन्य लोगो से भी ये जानकारी मिल सकती है । और सबसे
महत्वपूर्ण जब आप रदयस्थ भाव से जय कुलदेवी नाम स्मरण शुरू करेंगे तो वो
आपके अंदर ही है ,उनकी जागृति अवश्य होती है और किसी न किसी रास्ते आपको
उनकी सारी जानकारी वो ही दिला देती है।
कुल देवता, देवी की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो कोई ख़ास अंतर
नहीं समझ में आता, किन्तु उसके बाद जब सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में
दुर्घटनाओं, नकारात्मक ऊर्जा, वायव्य बाधाओं का बेरोक – टोक प्रवेश शुरू हो
जाता है, उन्नति रुकने लगती है, पीढ़िया अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाती,
संस्कारों का क्षय, नैतिक पतन, कलह, उपद्रव, अशांति शुरू हो जाती हैं,
व्यक्ति कारण खोजने का प्रयास करता है, कारण जल्दी नहीं पता चलता क्योकि
व्यक्ति की ग्रह स्थितियों से इनका बहुत मतलब नहीं होता है, अतः ज्योतिष
आदि से इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है, भाग्य कुछ कहता है और व्यक्ति के
साथ कुछ और घटता है।
कुल देवता या देवी हमारे वह सुरक्षा आवरण हैं जो किसी भी बाहरी बाधा, नकारात्मक ऊर्जा के परिवार में अथवा व्यक्ति पर प्रवेश से पहले सर्वप्रथम उससे संघर्ष करते हैं और उसे रोकते हैं, यह पारिवारिक संस्कारों और नैतिक आचरण के प्रति भी समय समय पर सचेत करते रहते हैं, यही किसी भी ईष्ट को दी जाने वाली पूजा को इष्ट तक पहुचाते हैं, यदि इन्हें पूजा नहीं मिल रही होती है तो यह नाराज भी हो सकते हैं और निर्लिप्त भी हो सकते हैं
ऐसे में आप किसी भी इष्ट की आराधना करे वह उस इष्ट तक नहीं पहुँचता, क्योकि सेतु कार्य करना बंद कर देता है, बाहरी बाधाये, अभिचार आदि, नकारात्मक ऊर्जा बिना बाधा व्यक्ति तक पहुचने लगती है, कभी कभी व्यक्ति या परिवारों द्वारा दी जा रही इष्ट की पूजा कोई अन्य बाहरी वायव्य शक्ति लेने लगती है, अर्थात पूजा न इष्ट तक जाती है न उसका लाभ मिलता है।
ऐसा कुलदेवता की निर्लिप्तता अथवा उनके कम शशक्त होने से होता है। कुलदेव परम्परा भी लुप्तप्राय हो गयी है, जिन घरो में प्राय: कलह रहती है, वंशावली आगे नही बढ रही है, निर्वंशी हो रहे हों, आर्थिक उन्नति नही हो रही है, विकृत संताने हो रही हो अथवा अकाल मौते हो रही हो, उन परिवारों में विशेष ध्यान देना चाहिए।
कुलदेवता या देवी सम्बंधित व्यक्ति के पारिवारिक संस्कारों के प्रति संवेदनशील होते हैं और पूजा पद्धति, उलटफेर, विधर्मीय क्रियाओं अथवा पूजाओं से रुष्ट हो सकते हैं, सामान्यतया इनकी पूजा वर्ष में एक बार अथवा दो बार निश्चित समय पर होती है, यह परिवार के अनुसार भिन्न समय होता है और भिन्न विशिष्ट पद्धति होती है, शादी – विवाह, संतानोत्पत्ति आदि होने पर इन्हें विशिष्ट पूजाएँ भी दी जाती हैं,
यदि यह सब बंद हो जाए तो या तो यह नाराज होते हैं या कोई मतलब न रख मूकदर्शक हो जाते हैं और परिवार बिना किसी सुरक्षा आवरण के पारलौकिक शक्तियों के लिए खुल जाता है, परिवार में विभिन्न तरह की परेशानियां शुरू हो जाती हैं, अतः प्रत्येक व्यक्ति और परिवार को अपने कुल देवता या देवी को जानना चाहिए तथा यथायोग्य उन्हें पूजा प्रदान करनी चाहिए, जिससे परिवार की सुरक्षा उन्नति होती रहे।
अक्सर कुलदेवी, देवता और इष्ट देवी देवता एक ही हो सकते है, इनकी उपासना भी सहज और तामझाम से परे होती है। जैसे नियमित दीप व अगरबत्ती जलाकर देवो का नाम पुकारना या याद करना, विशिष्ट दिनों में विशेष पूजा करना, घर में कोई पकवान आदि बनाए तो पहले उन्हें अर्पित करना फिर घर के लोग खाए, हर मांगलिक कार्य या शुभ कार्य में उन्हें निमन्त्रण देना या आज्ञा मांगकर कार्य करना आदि। इस कुल परम्परा की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की यदि आपने अपना धर्म बदल लिया हो या इष्ट बदल लिया हो तब भी कुलदेवी देवता नही बदलेंगे, क्योकि इनका सम्बन्ध आपके वंश परिवार से है।
किन्तु धर्म या पंथ बदलने सके साथ साथ यदि कुलदेवी, देवता का भी त्याग कर दिया तो जीवन में अनेक कष्टों का सामना करना पद सकता है जैसे धन नाश, दरिद्रता, बीमारिया, दुर्घटना, गृह कलह, अकाल मौते आदि। वही इन उपास्य देवो की वजह से दुर्घटना बीमारी आदि से सुरक्षा होते हुवे भी देखा गया है।
ऐसे अनेक परिवार भी है जिन्हें अपने कुल देवी देवता के बारे में कुछ भी नही मालूम। एक और बात ध्यान देने योग्य है किसी महिला का विवाह होने के बाद ससुराल की कुलदेवी / देवता ही उसके उपास्य हो जायेंगे न की मायके के। इसी प्रकार कोई बालक किसी अन्य परिवार में गोद में चला जाए तो गोद गये परिवार के कुल देव उपास्य होंगे।
कुलदेवी / कुलदेवता के पूजन की सरल विधि :–
1. जब भी आप घर में कुलदेवी की पूजा करे तो सबसे जरूरी चीज होती है पूजा की सामग्री। पूजा की सामग्री इस प्रकार ही होना चाहिये 4 पानी वाले नारियल, लाल वस्त्र, 10 सुपारिया, 8 या 16 श्रंगार कि वस्तुये, पान के 10 पत्ते, घी का दीपक, कुंकुम, हल्दी, सिंदूर, मौली, पांच प्रकार की मिठाई, पूरी, हलवा, खीर, भिगोया चना, बताशा, कपूर, जनेऊ, पंचमेवा।
2. ध्यान रखे जहा सिन्दूर वाला नारियल है वहां सिर्फ सिंदूर ही चढ़े बाकि हल्दी कुंकुम नहीं। जहाँ कुमकुम से रंग नारियल है वहां सिर्फ कुमकुम चढ़े सिन्दूर नहीं।
3. बिना रंगे नारियल पर सिन्दूर न चढ़ाएं, हल्दी रोली चढ़ा सकते हैं, यहाँ जनेऊ चढ़ाएं, जबकि अन्य जगह जनेऊ न चढ़ाए।
4. पांच प्रकार की मिठाई ही इनके सामने अर्पित करें। साथ ही घर में बनी पूरी हलवा खीर इन्हें अर्पित करें।
5. ध्यान रहे की साधना समाप्ति के बाद प्रसाद घर में ही वितरित करें, बाहरी को न दें।
6. इस पूजा में चाहें तो दुर्गा अथवा काली का मंत्र जप भी कर सकते हैं, किन्तु साथ में तब शिव मंत्र का जप भी अवश्य करें।
7. सामान्यतय पारंपरिक रूप से कुलदेवता कुलदेवी की पूजा में घर की कुँवारी कन्याओं को शामिल नहीं किया जाता। इसलिए उन्हें इससे अलग ही रखना चाहिये।
विशेष दिन और त्यौहार पर शुद्ध लाल कपड़े के आसान पर कुलदेवी कुलदेवता का चित्र स्थापित करके घी या तेल का दीपक लगाकर गूगल की धुप देकर घी या तेल से हवन करकर चूरमा बाटी का भोग लगाना चाहिए, अगरबत्ती, नारियल, सतबनी मिठाई, मखाने दाने, इत्र, हर फूल आदि श्रद्धानुसार।
नवरात्री में पूजा अठवाई के साथ परम्परानुसार करनी चाहिए।
पितृ देवता के पूजन की सरल विधि :-
शुद्ध सफेद कपड़े के आसान पर पितृ देवता का चित्र स्थापित करके, घी का दीपक लगाकर गूगल धुप देकर, घी से हवन करकर चावल की सेनक या चावल की खीर पूड़ी का भोग लगाना चाहिए। अगरबत्ती , नारियल, सतबनी मिठाई, मखाने दाने, इत्र, हर फूल आदि श्रद्धानुसार।
चावल की सेनक : चावल को उबाल पका लेवे फिर उसमे घी और शक्कर मिला ले।
अठवाई : दो पूड़ी के साथ एक मीठा पुआ और उस पर सूजी का हलवा, इस प्रकार दो जोड़े कुल मिलाकर ४ पूड़ी ; २ मीठा पुआ और थोड़ा सूजी का हलवा ।
कुलदेवी / कुलदेवता को नहीं पूजने, नही मानने के दुष्प्रभाव, परिणाम :-
कुलदेवता या कुलदेवी का हमारे जीवन में बहुत महत्व होता है। इनकी पूजा आदिकाल से चलती आ रही है, इनके आशिर्वाद के बिना कोई भी शुभ कार्य नहीं होता है। यही वो देव या देवी है जो कुल की रक्षा के लिए हमेशा सुरक्षा घेरा बनाये रखती है।
आपकी पूजा पाठ, व्रत कथा जो भी आप धार्मिक कार्य करते है उनको वो आपके इष्ट तक पहुँचाते है। इनकी कृपा से ही कुल वंश की प्रगति होती है। लेकिन आज के आधुनिक युग में लोगो को ये ही नहीं पता की हमारे कुलदेव या देवी कौन है। जिसका परिणाम हम आज भुगत रहे हैं।
आज हमें यह पता ही नहीं चल रहा की हम सब पर इतनी मुसीबते आ क्यों रहे है ? बहुत से ऐसे लोग भी है जो बहुत पूजा पाठ करते है, बहुत धार्मिक है फिर भी उसके परिवार में सुख शांति नहीं है।
बेटा बेरोजगार होता है बहुत पढने लिखने के बाद भी पिता पुत्र में लड़ाई होती रहती है, जो धन आता है घर मे पता ही नहीं चलता कौन से रास्ते निकल जाता है। पहले बेटे बेटी की शादी नहीं होती, शादी किसी तरह हो भी गई तो संतान नहीं होती। ये संकेत है की आपके कुलदेव या देवी आपसे रुष्ट है।
आपके ऊपर से सुरक्षा चक्र हट चूका है, जिसके कारण नकारात्मक शक्तियां आप पर हावी हो जाती है। फिर चाहे आप कितना पूजा – पाठ करवा लो कोइ लाभ नहीं होगा।
लेकिन आधुनिक लोग इन बातो को नहीं मानते। आँखे बन्द कर लेने से रात नहीं हो जाती। सत्य तो सत्य ही रहेगा। जो हमारे बुजुर्ग लोग कह गए वो सत्य है, भले ही वो आप सबकी तरह अंग्रेजी स्कूल में ना पढ़े हो लेकिन समझ उनमे आपसे ज्यादा थी। उनके जैसे संस्कार आज के बच्चों में नहीं मिलेंगे।
आपसे निवेदन है की अपने कुलदेव
या कुलदेवी का पता लगाऐ और उनकी शरण में जाये। अपनी भूल की क्षमा माँगे और
नित्य कुलदेवता / कुलदेवी की भी पूजा किया जाता है।
एक मंदिर ऐसा है ,
जहाँ हमेशा आपका इन्तजार किया जाता है ,
मेरा कुलदीपक आएगा ,मैं उसको निहारूंगी,
देखूँगी,आशीर्वाद दूंगी। मेरा बेटा, बेटी आएगी।
वो मंदिर है , हमारी कुलदेवी का मंदिर।
ऐसे लोग बहुत देखे होंगे होंगे जो बहुत पूजा पाठ करते है बहुत धार्मिक है फिर भी उसके परिवार में सुख शांति नही । जो धन आता है घर मे पता ही नही चलता कोनसे रास्ते निकल जाता है ।
शादी नही होती , शादी किसी तरह हो गई तो संतान नही होती । घर में कोई तरक्की बरकत नहीं होती। गृह क्लेश बना रहता है। घर परिवार में किसी की नहीं बनती। किसी को भेजो सुनार के पास ,वो मिलता है लुहार के पास।
ये संकेत है की आपके कुलदेव या देवी आपसे रुष्ट है | आपके ऊपर से सुरक्षा चक्र हट चूका है जिसके कारण नकारात्मक शक्तिया आप पर हावी हो जाती है । फिर चाहे आप कितना पूजा पाठ करवा लो , कोइ लाभ नही होगा ।
कुलदेवता या कुलदेवी का हमारे जीवन में बहुत महत्व होता है । इनकी पूजा आदिकाल से चलती आ रही है इनके आशिर्वाद के बिना कोई भी शुभ कार्य नही होता है। यही वो देव या देवी है , जो कुल की रक्षा के लिए हमेशा सुरक्षा घेरा बनाये रखती है ।
इसलिए आपसे निवेदन है अपने कुलदेव या देवी का पता लगाओ और उनकी शरण मे जाओ अपनी भूल की क्षमा माँगो |
आपके बड़े बुजुर्ग ,आस पड़ोस की बुजुर्ग महिलाएं जरूर जानती होंगी आपकी कुल देवी कौन हैं ,या फिर आपके गोत्र के कुनबे के लोग ,काका ,ताऊ , बुआ | उन्ही से पता कीजिए ,थोड़ी कोशिश करनी होगी ,इधर उधर फ़ोन घुमाओ ,कुल देवी और उसका दिन , वार , तिथि का पता करो |
यदि कुलदेवी / कुलदेवता का पता नहीं चलता है ,तो भी ये साधना की जा सकती है। सच्चे दिल से कुलदेवी की प्रार्थना की जाय तो बहुत जल्दी फलित होती है। यदि माता प्रसन्न हो जाय तो ,अपने होने का सबूत भी किसी न किसी रूप में दे देती है। या फिर घर की खुशहाली बता देती है की कुलदीवे का आशीर्वाद घर पर है।
कुलदेवी कृपा प्राप्ति साधना –
यह साधना शुक्ल पक्ष कि अष्टमी , 12 , 13, 14 तिथि को करनी है |
किसी भी दिन शुक्रवार शाम को , खीर बनाओ ( चाहे 100 ग्राम चावल की ) संध्या के समय ,यानि शाम सवा सात बजे या उसके बाद |
घर में जहाँ पूजा करते हो वहां पर एक घी का दीपक प्रज्वलित करो , उसकी लौ के पास अंगारा रखो ,अंगारे पर चुटकी भर खीर डालो ,खीर पर चम्मच से मामूली मामूली घी डालो , अंगारे पर देखो लौ आती है या नहीं |
अगर लौ आ जाती है तो हाथ जोड़ के कहो -हे कुल देवी , हे माता जी आपका ही पहरा है ,परिवार को स्वस्थ और खुशहाल करो |
और 7, 11, 21 या 108 बार इनमें से कोई एक या दोनो
( जो जैसे मानता है ) मन्त्रों का जाप कीजिए।
प्रत्येक परिवार में कुलदेवी और इष्ट देव/देवी ही होते है । कुल देवता की जगह ईष्ट का मंत्र भी कर सकते है।
कुलदेवता मंत्र —-
ॐ ह्रीं श्री कुल देवतायै मनोवांछितं साधय साधय फट्॥
कुलदेवी मंत्र —--
|| ॐ ह्रीं श्रीं कुलेश्वरी प्रसीद - प्रसीद ऐं नम : ||
साधना समाप्ति के बाद सहपरिवार आरती करे |
बाद में खीर का प्रसाद परिवार मे ही बाटना है |
बाहर किसी को नहीं देना ,इसका खास ख्याल रखना है।
3 दिन बाद सारी सामग्री जल मे परिवार के कल्याण कि प्रार्थना करते हुये प्रवाहित कर दे |
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