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मंगलवार, 20 जून 2023

पुराने समय में शूद्रों पर किस तरह के दिल दहलाने वाले अत्याचार किए जाते थे ?

 

चित्र स्रोत: गूगल

इस एक प्रश्न ने आज समाज में जैसी खाई पैदा कर दी है वो अब शायद ही कभी भर पाए। वैसे तो ये जवाब देने लायक प्रश्न ही नहीं है किन्तु फिर भी संक्षेप में आपकी शंका का समाधान कर देता हूँ।

कुछ लोगों के नाम बताता हूँ। मुझे पूरा विश्वास है कि यदि आपने रामायण और महाभारत पढ़ा है तो इनके नाम तो जानते ही होंगे। यदि नहीं सुने तो अनुरोध है कि एक बार अपने धार्मिक ग्रंथों को अवश्य पढ़ें।

चलिए पहले रामायण को देखते हैं।

  • रामायण के रचनाकार महर्षि वाल्मिकी वैसे तो ब्राह्मण थे किंतु रामायण के सबसे प्रसिद्ध संस्करण रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने इन्हे रत्नाकर नामक डाकू बताया है को शुद्र था। मानस के अनुसार शुद्र होते हुए भी उस व्यक्ति ने महर्षि का पद प्राप्त किया।
  • एक बालक ऐसा हुआ को श्रीराम का ऐसा भक्त बना जैसा आज तक कोई नही हुआ। महादेव के वरदान से उसने इतनी लंबी आयु पाई कि रामायण को 11 बार और महाभारत को 16 बार होते हुए देखा। उन्होंने पक्षीराज गरुड़ के भ्रम को दूर किया। उनका नाम था काकभुशंडी और उन्होंने शुद्र वर्ण में ही जन्म लिया।
  • एक ब्राह्मण कन्या ने शूद्र वर्ण के एक नाई से विवाह किया। उनका एक पुत्र हुआ, और ऐसा हुआ कि अल्पायु में ही सारे शास्त्रों का ज्ञाता बन गया। अपने कर्म से (ध्यान दें, कर्म से ना कि जन्म से) उसने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया। प्रताप उनका ऐसा था कि स्वयं श्रीराम उनकी मृत्यु के पश्चात उनके आश्रम में पधारे। उनका नाम था महर्षि मातंग और वे शूद्र थे।
  • इन्ही महर्षि मातंग की एक शिष्या थी जो जन्म से भीलनी थी। श्रीराम ने ना केवल इनका आशीर्वाद लिया बल्कि इनके जूठे बेर भी खाये। उस स्त्री का नाम था शबरी और वो भी शूद्र ही थी।
  • एक निषाद भी श्रीराम के अभिन्न मित्र थे। वनवास के समय श्रीराम इनके साथ ही रुके और साथ भोजन किया। इनका नाम था गुह और वे भी शूद्र ही थे।
  • एक व्यक्ति ने श्रीराम को नदी पार करवाई। उनके चरण अपने हाथों से धोए और जाते समय श्रीराम के हृदय से लगने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उस व्यक्ति का नाम था केवट और वो भी शुद्र ही था।
  • जब श्रीराम के पिता महाराज दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया तो जिन व्यक्तियों को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था उनमें एक थे महर्षि जाबालि। ये भी जन्म से शूद्र ही थे।
  • रामायण काल से बहुत पहले श्रीराम के एक पूर्वज थे जिन्होंने क्षत्रिय होते हुए भी केवल धर्म की रक्षा के लिए एक शुद्र के दास के रूप में कार्य किया। उनका नाम सभी जानते हैं, वे थे महाराज हरिश्चंद्र

आइए अब महाभारत को भी देख लिया जाए।

  • महाभारत के रचनाकार और हिन्दू धर्म के सर्वकालिक महान ऋषियों में से एक महर्षि व्यास भी शूद्र ही थे। प्रताप ऐसा था कि राजा महाराजा क्या, स्वयं भगवान श्रीकृष्ण भी उनके आगे शीश नवाते थे।
  • महर्षि व्यास की ही माता सत्यवती, जिससे हस्तिनापुर जैसे महान साम्राज्य के क्षत्रिय राजा शांतनु ने विवाह किया, शूद्र ही थी।
  • सत्यवती के ही पालक पिता दाशराज, एक शूद्र के अड़ जाने पर भीष्म ने समर्थ होते हुए भी उन्हें विवश नहीं किया बल्कि उनकी इच्छा का मान रखते हुए राज सिंहासन और अपने जीवन के सभी सुखों का त्याग कर दिया।
  • हस्तिनापुर जैसे विशाल महाजनपद के महामंत्री महात्मा विदुर, जिनकी गाथा से महाभारत भरा हुआ है, शूद्र वर्ण के ही थे।
  • कर्ण भले ही जन्म से क्षत्रिय हों लेकिन उनका ये रहस्य उनकी मृत्यु के बाद ही खुला। उससे पहले जीवन भर वे सूतपुत्र के नाम से ही जाने गए जो उच्च कुल का नहीं माना जाता था। फिर भी दुर्योधन जैसे राजकुल के क्षत्रिय के वे प्रिय मित्र थे, अंग महाजनपद के राजा बने और महाभारत के युद्ध में उस सेना के सेनापति भी बने जिसके सेनापति भीष्म जैसे क्षत्रिय और द्रोण जैसे ब्राह्मण रह चुके थे।
  • महाभारत में ऐसा वर्णन है कि राजकुल में जन्मे भीम ने शूद्र वर्ण में जन्मे कई मल्लों को अपने गुरु का स्थान दिया।
  • एक कुबड़ी थी जिसका नाम था त्रिवक्रा जिसे स्वयं श्रीकृष्ण ने स्पर्श कर स्वस्थ कर दिया था और अपने भक्त का स्थान दिया। वो भी शूद्र ही थी।
  • आज कल कथा कहते हुए हर धार्मिक पुस्तक में जिन सूत जी का वर्णन आता है उनका वास्तविक नाम था उग्रश्रवा सौती। ये भी जन्म से शूद्र ही थे पर कर्म से महान ऋषि हुए।
  • एक पौराणिक काल के क्षत्रिय राजा थे रंतिदेव। इनके यहाँ तो साक्षात् त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) ने एक साथ ब्राह्मण, शूद्र और चांडाल के रूप में अवतार लिया और इन क्षत्रिय राजा ने स्वयं अपने भोजन का भाग उन्हें दिया।

पौराणिक काल की बात बहुत हो गयी हो तो आधुनिक काल में आते हैं।

  • एक राजा था धनानंद। उसने एक ब्राह्मण का घोर अपमान किया। वो ब्राह्मण यदि चाहता तो किसी और क्षत्रिय राजा के पास जाकर सहायता मांग सकता था किन्तु उसने शूद्र वंश में जन्मे एक बालक को शिक्षा देकर इतना महान बनाया कि उसने ना सिर्फ धनानंद को परास्त किया बल्कि समस्त आर्यावर्त पर राज किया। और उसके बाद उसी शूद्र वर्ण के उत्तराधिकारियों ने सम्पूर्ण भारत पर 137 वर्षों तक अखंड राज्य किया। वो ब्राह्मण थे चाणक्य और वो शूद्र बालक थे चन्द्रगुप्त मौर्य
  • रुकिए श्रीमान! जिस राजा धनानंद और नन्द वंश की बात हमने अभी किया वो स्वयं शूद्र वर्ण के ही थे। और उस शूद्र वर्ण के राजाओं ने डेढ़ शताब्दियों तक इस देश पर राज्य किया।
  • कुछ नाम सुनिए - अवन्ति वर्मन, चिंतामणि धोबा, मयूरध्वज, सुहेलदेव, दलदेव, सतन पासी, बिजली पासी, लक्ष्मण पासी, पूँजा भील, कोटिया भील, बूंदा सिंह मीणा, जैत मीणा, बड़ा मीणा, आशा भील, मनोहर भील, विश्वासु भील, मांडलिक, नीलध्वज, चीला राय, लक्ष्मी नारायण, रघुदेव, मल्हार राव होल्कर, जादू राय, दलपत शाह, नरसिंह राय, महामणिक्य। अब आप कहेंगे इनमें क्या समानता है। तो भाई सबके आगे राजा लगा दीजिये। सब के सब किसी ना किसी प्रान्त के राजा थे और शूद्र वर्ण से ही थे। ऐसे वैसे शूद्र नहीं, आज काल हम जिन्हे महादलित कहते हैं, वे थे।
  • कुछ और नाम सुन लीजिये - घासीदास, रामदेव, रविदास, अच्युतनन्द, भोज भगत, बोगर, दादू दयाल, गाडगे महाराज, गोरोबा, गोरखनाथ, गुलाबराव, कबीर, कनकदास, कांचीपूर्ण, माधव देव, मत्स्येन्द्र नाथ, नंदनार, नरहरि सोनार, नारायण गुरु, निसर्गदत्त, पोतुलूरी वीरब्रह्मम, रामानंद राय, सरला दास, सिद्धरामेश्वर, तुकाराम, वैकुण्द स्वामी, वलम राम। अब आप फिर पूछेंगे कि इन सब में क्या समानता है? तो ये सभी भारत के हर प्रान्त के प्रसिद्ध संत हैं। सब के सब शूद्र वर्ण से ही हैं।

इन में से किस पर आपको दिल दहला देने वाले अत्याचार हुआ दिख रहा है?

समस्या ये है कि आज किसी को अपने इतिहास से कोई लेना देना नहीं है। सही इतिहास कोई पढ़ना नहीं चाहता किन्तु दलितों पर अत्याचार के ऊपर सोशल मीडिया पर भाषण जरूर देना चाहता है। अंबेडकर की बात हर कोई करना चाहता है लेकिन ये जानना नहीं चाहता कि दलित होते हुए भी उस ज़माने में अंबेडकर सूट-बूट और टाई पहनकर लन्दन पढाई करने कैसे पहुंचे।

हां, आधुनिक काल में दलितों पर अत्याचार हुआ है पर थोड़ा जानने का प्रयत्न कीजिये कि उन पर अत्याचार किस काल में आरम्भ हुआ। थोड़ा इतिहास पढ़ेंगे तो समझ आ जाएगा कि मुगलों और अंग्रेजों ने किस प्रकार समाज में इस खाई को पैदा किया। आज भी वही हो रहा है, पहले गोरे अंग्रेज अपने फायदे के लिए ऐसा करते थे और अब काले अंग्रेज वोटों के लिए करते हैं।

इस बात को आप तब ही समझ पाएंगे जब "वर्ण" और "जाति" का अंतर समझ पाएंगे। इस लेख

[1]
को पढ़ें, शायद चीजें कुछ और साफ हो जाये।

और हां, जिसे शंबूक नामक काल्पनिक चरित्र के कीड़े ने काट रखा है तो वे इस लेख

[2]
को पढ़ लें, शंबूक के प्रति आपका मोह भंग हो जाएगा।

आशा है कि आपकी दुविधा का अंत हो गया होगा।

फुटनोट

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