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शुक्रवार, 24 नवंबर 2023

यह अंतिम चुनाव है जब कांग्रेस के अलावा आप किसी को वोट दे सकते हो, यानी BJP को और उसके जीतने की उम्मीद कर सकते हो

*यह अंतिम चुनाव है जब कांग्रेस के अलावा आप किसी को वोट दे सकते हो, यानी BJP को और उसके जीतने की उम्मीद कर सकते हो ।*
क्योंकि अगले 5 सालों में इतने मुस्लिम बच्चे जो आज 13 साल से 17.9 साल के है , कांग्रेस का वोट बन जायेगा जो हिन्दू बच्चो के वोट से ज्यादा हो जाएगा ।

फिर उन हिन्दू बच्चों में से 25 -50 % अपने राज्य से बाहर रह रहे होंगे , किसी कॉलेज में या किसी नोकरी में 

बाकी बच्चे अलग अलग दलों के बीच बंट जाएंगे


लेकिन मुस्लिम बच्चे सभी लोकल में रहेंगे, लोकल धंधे में लगने के कारण और एकजुट रहेंगे वोट देने में ।

फिर कोई हिन्दू BJP को चाहे कितनी ही मन्नते मांग ले , जीता नहीं सकता । लिख कर ले लो ।


फिर अभो जो सिर्फ उदयपुर में हुआ है ,वह हर शहर में होगा ।😓😓😓

बाकी जो अब भी नहीं समझे ,उसे फिर वक्त ही समझायेगा ।

वोट देने से पहले अपने बच्चों की तरफ जरुर देख लेना ।

छबड़ा , टोंक , करोली इत्यादि में तो दंगे की भी  पूरी संभावनाएं रहती है और हुए भी है ।😰😰


सड़क नही बने अपना जीवन चल जाएगा
बिजली नही आये तो भी चल जाएगा
स्कूल भी नही हो तो भी चल जाएगा

(वैसे ऐसा होगा नही , हर सरकार काम करती ही है इन बेसिक सुविधाओं पर)

पर अगर धर्म चला गया तो conversion ही हाथ मे आएगा ।


और हाँ अगले 05 साल में जितने हिन्दू वोटर मरेंगे उतने मुस्लिम वोटर नही 

क्योंकि हिंदुओं की जिस पीढ़ी में सबसे ज्यादा भाई बहन है वह अब 60-70-80 वर्ष की उम्र के हो चुके है ।

इसके बाद वाली पीढ़ी तो गिनती के भाई बहन वाली है ।

राम मंदिर बनने में तो 75 साल लग गए 

लेकिन टूटने में कितने दिन लगेंगे ???m






🙏🙏
 *विलुप्त होता हुआ सनातन समाज उर्फ़ हिंदू समाज*..!!

गम्भीर विषय है । पढियेगा जरूर ।

देश की बात करना राजनीति है, अपने समाज के बारे में बात करना हिंदू-मुस्लिम करना हुआ..!! 

तेरी मानसिकता ही तेरी विनाश का कारण बनेगा..!! वह मानसिकता, जो कि तुम्हें पूरी तरह से ले डूबेगी...

ये व्यापारियों का ग्रुप है, इसमें राजनीति ना करें...
ये मोहल्ले का ग्रुप है, इसमें राजनीति ना करें...
ये वकीलों का ग्रुप है, इसमें राजनीति ना करें...
ये टीचर्स का ग्रुप है, इसमें राजनीति ना करें...
ये डॉक्टर्स का ग्रुप है, इसमें राजनीति ना करें...
ये समाज का ग्रुप है, इसमें राजनीति ना करें...
ये ऑफिस का ग्रुप है, इसमें राजनीति ना करें...

और न जाने क्या-क्या...!!

▪️गुड मॉर्निग के अनावश्यक 20-20 और 50-50 मैसेज भेजो, कोई परेशानी नहीं...
▪️पति-पत्नियों के ढेर सारे चुटकुले भेजो, कोई परेशानी नहीं...
▪️नए-नए औषधीय प्रयोग भेजो, कोई परेशानी नहीं...
▪️भगवान के 20-20 पोस्टर भेजो, कोई परेशानी नहीं...
▪️100-200 बधाई संदेश भेजो, कोई परेशानी नहीं...
▪️100-200 शोक संदेश भेजो, कोई परेशानी नहीं...
▪️अपने बच्चों की और पारिवारिक उत्सवों की फोटो और वीडियो भेज दो, कोई परेशानी नहीं...

बस देश की बात बिल्कुल मत करो...! देश की बात करना, यानि राजनीति करना हो गया... !
 
सनातन की बात करना यानि हिंदू-मुस्लिम करना हो गया... !
 
क्योंकि इस तरह के मेसेज में सीधा-सीधा आपका अपना कोई स्वार्थ सिद्ध नहीं हो रहा.. । आपकी इमेज नहीं बन रही... । आपकी पहचान नहीं बन रही... । आपकी जय जयकार नहीं हो रही... । आपकी वाह-वाह नहीं हो रही...।

इन्हीं छोटी-छोटी स्वार्थ लोलुपताओं के चलते हम दुनिया से मिटते जा रहे है हिंदुओं... पर हम सुधरेंगे नहीं...। क्योंकि हमें केवल हमारे खाने कमाने से मतलब है...। जबकि "वे" लोग बचपन से ही अपने बच्चों को यही तालीम दे रहे हैं कि, "हिंदू हमारे दुश्मन नंबर एक हैं और उनको इस देश से खतम करके अपना मज़हब  कायम करना है... यही हमारा पहला और आखिरी मकसद है।"

आप देश के बारे में अपने विचार रखना ही नहीं चाहते... क्योंकि वास्तव में आप देश के लिए सोच ही नहीं रहे हो... इसीलिए आपको उससे भी कष्ट होता है कि कहीं कोई तुम्हारे अंदर की सोती हुई सोच को ना जगा दे...। ऐसा हो गया तो फिर मेरे निजी स्वार्थों का क्या होगा..?

यदि आपको यह लेख चुभा है... कुछ पीड़ा हुई है... तो आप सच में एक स्वार्थी व्यक्ति हैं... 
*और यदि आपको लगता है कि, किसी ने आपको झकझोरने का सटीक प्रयास किया है तो आपके लिए निजी स्वार्थ से बढ़कर आपका राष्ट्र भारत है... सनातन धर्म है*...🚩🙏🏻
*साभार-*

एक दिन संघर्षशील कर्मठ ईमानदारी से प्रयास करने वालों का, अज्ञातवास अवश्य समाप्त होगा।

*समय बड़ा बलवान !*


वह शिखंडी से भीष्म को मात दिला सकता है!
कर्ण के रथ को फंसा सकता है!
द्रौपदी का चीरहरण करा सकता है!
अगर किसी से डरना है तोवह है !....समय !

महाभारत में एक प्रसंग आता है, जब धर्मराज युधिष्ठिर ने विराट के दरबार में पहुँचकर कहा-

“हे राजन! मैं व्याघ्रपाद गोत्र में उत्पन्न हुआ हूँ तथा मेरा नाम 'कंक' है। मैं द्यूत विद्या में निपुण हूँ। आपके पास आपकी सेवा करने की कामना लेकर उपस्थित हुआ हूँ।”

द्यूत ......जुआ ......यानि वह खेल जिसमें धर्मराज अपना सर्वस्व हार बैठे थे। कंक बन कर वही खेल वह राजा विराट को सिखाने लगे।

जिस बाहुबली के लिये रसोइये दिन रात भोजन परोसते रहते थे वह भीम बल्लभ का भेष धारण कर स्वयं रसोइया बन गया।

नकुल और सहदेव पशुओं की देखरेख करने लगे।

दासियों सी घिरी रहने वाली महारानी द्रौपदी .......स्वयं एक दासी सैरंध्री बन गयी।

......और वह धनुर्धर। उस युग का सबसे आकर्षक युवक, वह महाबली योद्धा। वह द्रोण का सबसे प्रिय शिष्य। वह पुरुष जिसके धनुष की प्रत्यंचा पर बाण चढ़ते ही युद्ध का निर्णय हो जाता था।वह अर्जुन पौरुष का प्रतीक अर्जुन। नायकों का महानायक अर्जुन।एक नपुंसक बन गया।

एक नपुंसक ?

उस युग में पौरुष को परिभाषित करने वाला अपना पौरुष त्याग कर होठों पर लाली लगा कर ,आंखों में काजल लगा कर एक नपुंसक "बृह्नला" बन गया।

युधिष्ठिर राजा विराट का अपमान सहते रहे। पौरुष के प्रतीक अर्जुन एक नपुंसक सा व्यवहार करते रहे। नकुल और सहदेव पशुओं की देख रेख करते रहे......भीम रसोई में पकवान पकाते रहे और द्रौपदी.....एक दासी की तरह महारानी की सेवा करती रही।

परिवार पर एक विपदा आयी तो धर्मराज अपने परिवार को बचाने हेतु कंक बन गया। पौरुष का प्रतीक एक नपुंसक बन गया।एक महाबली साधारण रसोईया बन गया।

*पांडवों के लिये वह अज्ञातवास नहीं था। अज्ञातवास का वह काल उनके लिये अपने परिवार के प्रति अपने समर्पण की पराकाष्ठा थी।*

वह जिस रूप में रहे।जो अपमान सहते रहे .......जिस कठिन दौर से गुज़रे .....उसके पीछे उनका कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं था। अज्ञातवास का वह काल परिस्थितियों को देखते हुये परिस्थितियों के अनुरूप ढल जाने का काल था !!

आज भी इस धरती में अज्ञातवास जी रहें ,ना जाने कितने महायोद्धा दिखाई देते हैं। कोई धन्ना सेठ की नौकरी करते हुये, उससे बेवजह गाली खा रहा है, क्योंकि उसे अपनी बिटिया की स्कूल की फीस भरनी है।

बेटी के ब्याह के लिये पैसे इकट्ठे करता बाप, एक सेल्समैन बन कर दर दर धक्के खा कर सामान बेचता दिखाई देता है।

*असंख्य पुरुष निरंतर संघर्ष से हर दिन अपना सुख दुःख छोड़ कर अपने परिवार के अस्तिव की लड़ाई लड़ रहे हैं।*

*रोज़मर्रा के जीवन में किसी संघर्षशील व्यक्ति से रूबरू हों तो उसका आदर कीजिये।*

उसका सम्मान कीजिये।

फैक्ट्री के बाहर खड़ा गार्ड......होटल में रोटी परोसता वेटर.....सेठ की गालियां खाता मुनीम....... वास्तव में कंक .......बल्लभ और बृह्नला हैं।

*क्योंकि कोई भी अपनी मर्ज़ी से संघर्ष या पीड़ा नही चुनता, वे सब यहाँ कर्म करते हैं। वे अज्ञातवास जी रहे हैं......!*

*परंतु वह अपमान के भागी नहीं हैं। वह प्रशंसा के पात्र हैं। यह उनकी हिम्मत है.....उनकी ताकत है ......उनका समर्पण है कि विपरीत परिस्थितियों में भी वह डटे हुये हैं।*

*वह कमजोर नहीं हैं ......उनके हालात कमज़ोर हैं.....उनका वक्त कमज़ोर है।*

*याद रहे......*
🔰
*अज्ञातवास के बाद बृह्नला जब पुनः अर्जुन के रूप में आये तो कौरवों के नाश कर दिया। पुनः अपना यश, अपनी कीर्ति सारे विश्व में फैला दी। वक्त बदलते वक्त नहीं लगता इसलिये जिसका वक्त खराब चल रहा हो,उसका उपहास और अनादर ना करें।*

उसका सम्मान करें, उसका साथ दें।

*क्योंकि एक दिन संघर्षशील कर्मठ ईमानदारी से प्रयास करने वालों का, अज्ञातवास अवश्य समाप्त होगा।*

समय का चक्र घूमेगा और बृह्नला का छद्म रूप त्याग कर धनुर्धर अर्जुन इतिहास में ऐसे अमर हो जायेंगे.. कि पीढ़ियों तक बच्चों के नाम उनके नाम पर रखे जायेंगे। इतिहास बृह्नला को भूल जायेगा। इतिहास अर्जुन को याद रखेगा।

*हर संघर्षशील,लग्नशील और कर्मठ व्यक्ति में बृह्नला को मत देखिये। कंक को मत देखिये। बल्लभ को मत देखिये। हर संघर्षशील व्यक्ति में धनुर्धर अर्जुन को देखिये। धर्मराज युधिष्ठिर और महाबली भीम को देखिये।*

*उसका भरपूर सहयोग करिए उसके ईमानदार प्रयासों को सराहे ! क्योंकि याद रखना एक दिन हर संघर्षशील व्यक्ति का अज्ञातवास खत्म होगा।*

यही नियति है।
यही समय का चक्र है।
यही महाभारत की भी सीख है!
*प्रभु सबका कल्याण करें ....*

गुरुवार, 23 नवंबर 2023

बॉलीवुड फिल्मों के पोस्टर को हॉलीवुड से कॉपी किया गया है?

 

  • मर्डर 3
  • ग़जनी
  • एतराज
  • जिंदगी ना मिलेगी दोबारा
  • Ra.One
  • PK
  • गुलाल
  • राउडी राठौर
  • एजेंट विनोद

Image Source:- Google

ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हे दाएं और बाएं में फर्क करना बहुत मुश्किल लगता है, ये मैं आपको केवल दो मिनट में सीखा सकता हूँ,

भारत में ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हे दाएं और बाएं में फर्क करना बहुत मुश्किल लगता है, ये मैं आपको केवल दो मिनट में सीखा सकता हूँ, मैं आपको मेरे स्कुल के दिनों की बात बताना चाहूंगा, लीजिये चलते हैं !

जब मैं १२-१३ साल का था तब मैं भी 'दायाँ और बायाँ' (Right & Left) को लेकर उलझन में था।

एक दिन मैंने अपनी हिंदी पढ़ाने वाली मेडम को बताया की 'मुझे अंग्रेजी में पता हैं कि कोनसा हाथ "Right Hand" हैं और कौनसा "Left Hand" किन्तु हिंदी में दाएं और बाएं मैं मुझे उलझन होती हैं।

वह थोड़ी देर तक मुझे देखती रही और फिर कुछ देर के लिए हँसी, मुझे लगा शायद मैंने कुछ ग़लत पूछ लिया था.. ख़ैर !

अगले दिन उन्होंने पूरी कक्षा को एक नया पाठ पढ़ाया, वही इस प्रश्न का उत्तर हैं।

आइये फिर से मेरे स्कूल में चलते हैं !

हाजरी लेने के बाद मेडम ने मुझे आगे बुलाया (क्योकिं मैं कक्षा का मोनिटर था ☺️) और अपने हाथ की पहली उंगली को अंगूठे से मिलाने और सभी बच्चों को दिखाने के लिए भी कहा !

मैंने जैसा मेडम ने बोला ठीक वैसा ही किया, आप फोटो में देख सकते हैं ।

क्या खास है इस फोटो में ?

कुछ भी तो नहीं ☺️

उन्होंने पूरी कक्षा के हरेक बच्चें से ऐसा करने के लिए कहा, हम सभी बच्चें कुछ नही समझ पा रहे थे कि क्या हो रहा है? क्यों हो रहा हैं?

कुछ बच्चें सोच रहे थे कि मेडम आज कोई नया खेल सिखाने जा रही हैं कुछ सोच रहे थे मेडम कुछ योगासन सिखाने की कोशिश में हैं..!

ख़ैर जब मुझे और मेरी कक्षा में किसी को कुछ समझ नही आया तब मेडम ने हमारी असमंझस को भाँप लिया और तब उन्होंने बोला :- बच्चों आज हम सीखेंगे दाएं और बाएं का फर्क !

हम सभी यह जानने के लिए बहुत उत्साहित थे खास कर के मैं क्योकिं मैंने ही तो कल मेडम को बताया था मुझे ये समझ नही आ रहा था !

अब सवाल के उत्तर पर आ रहा हूँ, यदि आप अपने बाएं (Left) हाथ की पहली उंगली को अंगूठे से मिलते हैं तो आपको अंग्रेजी अक्षर 'b' की जैसी आकृति दिखाई देखी और B = Baayaa'N / बायाँ (Left)।

ठीक इसी तरह अगर आप दाहिने (Right) हाथ से भी ऐसा करते हैं तो आपको अक्षर 'd' की आकृति दिखाई देगी और D =Daaya'N /दायाँ (Right) |

मैं बहुत खुश था, मेडम मुझे देख कर मुस्कुराई, मैं भी बदले में मुस्कुराया। मैंने मेडम को धन्यवाद दिया और उन्होंने मुझे आशीर्वाद। वैसे मैं सरकारी विद्यालय का छात्र था।

वाह, कितना आसान थे ये अंगुली को अंगूठे से मिलाओ 'b' दिखे तो बायाँ 'd' दिखे तो दायाँ ! मैं दाएँ औए बाएँ का अंतर समझ चुका था, उम्मीद करता हूँ आप भी सीख गए होंगे !

पढ़ने के लिए धन्यवाद!

यह कथा उन सभी ईमानदार डॉक्टरो को समर्पित हैं जो किसी की मजबूरी का फायदा नहीं उठाते।*

यह कथा उन सभी ईमानदार डॉक्टरो को समर्पित हैं जो किसी की मजबूरी का फायदा नहीं उठाते।*

वासु भाई और वीणा बेन गुजरात के एक शहर में रहते हैं। आज दोनों यात्रा की तैयारी कर रहे थे। 3 दिन का अवकाश था वे पेशे से चिकित्सक थे ।लंबा अवकाश नहीं ले सकते थे ।परंतु जब भी दो-तीन दिन का अवकाश मिलता ,छोटी यात्रा पर कहीं चले जाते हैं ।

        आज उनका इंदौर - उज्जैन जाने का विचार था । दोनों साथ-साथ मेडिकल कॉलेज में पढ़ते थे, वहीं पर प्रेम अंकुरित हुआ ,और बढ़ते - बढ़ते वृक्ष बना। दोनों ने परिवार की स्वीकृति से विवाह किया । 2 साल हो गए ,संतान कोई थी नहीं ,इसलिए यात्रा का आनंद लेते रहते थे ।

            विवाह के बाद दोनों ने अपना निजी अस्पताल खोलने का फैसला किया , बैंक से लोन लिया ।वीणा बेन स्त्री रोग विशेषज्ञ और वासु भाई डाक्टर आफ मेडिसिन थे ।इसलिए दोनों की कुशलता के कारण अस्पताल अच्छा चल निकला था ।

            आज इंदौर जाने का कार्यक्रम बनाया था । जब मेडिकल कॉलेज में पढ़ते थे वासु भाई ने इंदौर के बारे में बहुत सुना था । नई नई वस्तु है। खाने के शौकीन थे । इंदौर के सराफा बाजार और 56 दुकान पर मिलने वाली मिठाईयां नमकीन के बारे में भी सुना था, साथ ही महाकाल के दर्शन करने की इच्छा थी इसलिए उन्होंने इस बार इंदौर उज्जैन की यात्रा करने का विचार किया था ।

            यात्रा पर रवाना हुए ,आकाश में बादल घुमड़ रहे थे । मध्य प्रदेश की सीमा लगभग 200 किलोमीटर दूर थी। बारिश होने लगी थी।
म.प्र. सीमा से 40 किलोमीटर पहले छोटा शहर पार करने में समय लगा। कीचड़ और भारी यातायात में बड़ी कठिनाई से दोनों ने रास्ता पार किया।
भोजन तो मध्यप्रदेश में जाकर करने का विचार था । परंतु चाय का समय हो गया था ।उस छोटे शहर से चार 5 किलोमीटर आगे निकले ।सड़क के किनारे एक छोटा सा मकान दिखाई दिया ।जिसके आगे वेफर्स के पैकेट लटक रहे थे ।उन्होंने विचार किया कि यह कोई होटल है । वासु भाई ने वहां पर गाड़ी रोकी, दुकान पर गए , कोई नहीं था ।आवाज लगाई , अंदर से एक महिला निकल कर के आई। 
उसने पूछा क्या चाहिए ,भाई ?
           वासु भाई ने दो पैकेट वेफर्स के लिए ,और कहा बेन दो कप चाय बना देना ।थोड़ी जल्दी बना देना , हमको दूर जाना है । 
 पैकेट लेकर के गाड़ी में गए ।वीणा बेन और दोनों ने पैकेट के वैफर्स का नाश्ता किया ।
 चाय अभी तक आई नहीं थी ।
               दोनों कार से निकल कर के दुकान में रखी हुई कुर्सियों पर बैठे ।वासु भाई ने फिर आवाज लगाई ।

            थोड़ी देर में वह महिला अंदर से आई ।बोली -भाई बाड़े में तुलसी लेने गई थी , तुलसी के पत्ते लेने में देर हो गई ,अब चाय बन रही है ।
थोड़ी देर बाद एक प्लेट में दो मैले से कप ले करके वह गरमा गरम चाय लाई। 
            मैले कप को देखकर वासु भाई एकदम से अपसेट हो गए ,और कुछ बोलना चाहते थे ।परंतु वीणाबेन ने हाथ पकड़कर उनको रोक दिया ।

           चाय के कप उठाए ।उसमें से अदरक और तुलसी की सुगंध निकल रही थी ।दोनों ने चाय का एक सिप लिया । ऐसी स्वादिष्ट और सुगंधित चाय जीवन में पहली बार उन्होंने पी ।उनके मन की हिचकिचाहट दूर हो गई।
उन्होंने महिला को चाय पीने के बाद पूछा कितने पैसे ?
महिला ने कहा - बीस रुपये 
वासु भाई ने सौ का नोट दिया ।
          महिला ने कहा कि भाई छुट्टा नहीं है । ₹. 20 छुट्टा दे दो ।वासुभाई ने बीस रु का नोट दिया। महिला ने सौ का नोट वापस किया। 
वासु भाई ने कहा कि हमने तो वैफर्स के पैकेट भी लिए हैं !
           महिला बोली यह पैसे उसी के हैं ।चाय के पैसे नहीं लिए ।

अरे चाय के पैसे क्यों नहीं लिए ?

जवाब मिला ,हम चाय नहीं बेंचते हैं। यह होटल नहीं है ।
-फिर आपने चाय क्यों बना दी ?

- अतिथि आए ,आपने चाय मांगी ,हमारे पास दूध भी नहीं था । यह बच्चे के लिए दूध रखा था ,परंतु आपको मना कैसे करते ।इसलिए इसके दूध की चाय बना दी ।

-अभी बच्चे को क्या पिलाओगे ?

-एक दिन दूध नहीं पिएगा तो मर नहीं जाएगा । इसके पापा बीमार हैं वह शहर जा करके दूध ले आते ,पर उनको कल से बुखार है ।आज अगर ठीक हो जाएगे तो कल सुबह जाकर दूध ले आएंगे। 

            वासु भाई उसकी बात सुनकर सन्न रह गये। इस महिला ने होटल ना होते हुए भी अपने बच्चे के दूध से चाय बना दी और वह भी केवल इसलिए कि मैंने कहा था ,अतिथि रूप में आकर के ।
 संस्कार और सभ्यता में महिला मुझसे बहुत आगे हैं ।
            उन्होंने कहा कि हम दोनों डॉक्टर हैं ,आपके पति कहां हैं बताएं ।महिला उनको भीतर ले गई । अंदर गरीबी पसरी हुई थी ।एक खटिया पर सज्जन सोए हुए थे । बहुत दुबले पतले थे ।
           वासु भाई ने जाकर उनका मस्तक संभाला ।माथा और हाथ गर्म हो रहे थे ,और कांप रहे थे वासु भाई वापस गाड़ी में , गए दवाई का अपना बैग लेकर के आए । उनको दो-तीन टेबलेट निकालकर के दी , खिलाई ।
फिर कहा- कि इन गोलियों से इनका रोग ठीक नहीं होगा ।
              मैं पीछे शहर में जा कर के और इंजेक्शन और इनके लिए बोतल ले आता हूं ।वीणा बेन को उन्होंने मरीज के पास बैठने का कहा ।
 गाड़ी लेकर के गए ,आधे घंटे में शहर से बोतल ,इंजेक्शन ,ले कर के आए और साथ में दूध की थैलीयां भी लेकरआये। 
             मरीज को इंजेक्शन लगाया, बोतल चढ़ाई ,और जब तक बोतल लगी दोनों वहीं ही बैठे रहे ।
एक बार और तुलसी और अदरक की चाय बनी ।
दोनों ने चाय पी और उसकी तारीफ की। 
जब मरीज 2 घंटे में थोड़े ठीक हुए, तब वह दोनों वहां से आगे बढ़े। 

           3 दिन इंदौर उज्जैन में रहकर , जब लौटे तो उनके बच्चे के लिए बहुत सारे खिलौने ,और दूध की थैली लेकर के आए ।
           वापस उस दुकान के सामने रुके ,महिला को आवाज लगाई , तो दोनों बाहर निकल कर उनको देख कर बहुत खुश हो गये। 
उन्होंने कहा कि आप की दवाई से दूसरे दिन ही बिल्कुल स्वस्थ हो गया ।
वासु भाई ने बच्चे को खिलोने दिए ।दूध के पैकेट दिए । फिर से चाय बनी, बातचीत हुई ,अपनापन स्थापित हुआ। वासु भाई ने अपना एड्रेस कार्ड दिया ।कहा, जब भी आओ जरूर मिले ,और दोनों वहां से अपने शहर की ओर ,लौट गये ।

                शहर पहुंचकर वासु भाई ने उस महिला की बात याद रखी। फिर एक फैसला लिया। 

             अपने अस्पताल में रिसेप्शन पर बैठे हुए व्यक्ति से कहा कि ,अब आगे से आप जो भी मरीज आयें, केवल उसका नाम लिखेंगे ,फीस नहीं लेंगे ।फीस मैं खुद लूंगा। 

                और जब मरीज आते तो अगर वह गरीब मरीज होते तो उन्होंने उनसे फीस लेना बंद कर दिया ।
केवल संपन्न मरीज देखते तो ही उनसे फीस लेते ।
             धीरे धीरे शहर में उनकी प्रसिद्धि फैल गई । दूसरे डाक्टरों ने सुना ।उन्हें लगा कि इस कारण से हमारी प्रैक्टिस कम हो जाएगी ,और लोग हमारी निंदा करेंगे । उन्होंने एसोसिएशन के अध्यक्ष से कहा ।
 एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ वासु भाई से मिलने आए ,उन्होंने कहा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हो ?
              तब वासु भाई ने जो जवाब दिया उसको सुनकर उनका मन भी उद्वेलित हो गया ।
वासु भाई ने कहा कि मैं मेरे जीवन में हर परीक्षा में मेरिट में पहली पोजीशन पर आता रहा ।एमबीबीएस में भी ,एमडी में भी गोल्ड मेडलिस्ट बना ,परंतु सभ्यता संस्कार और अतिथि सेवा में वह गांव की महिला जो बहुत गरीब है ,वह मुझसे आगे निकल गयी। तो मैं अब पीछे कैसे रहूं? 

इसलिए मैं अतिथि सेवा में मानव सेवा में भी गोल्ड मेडलिस्ट बनूंगा । इसलिए मैंने यह सेवा प्रारंभ की । और मैं यह कहता हूं कि हमारा व्यवसाय मानव सेवा का है। सारे चिकित्सकों से भी मेरी अपील है कि वह सेवा भावना से काम करें ।गरीबों की निशुल्क सेवा करें ,उपचार करें ।यह व्यवसाय धन कमाने का नहीं ।
परमात्मा ने मानव सेवा का अवसर प्रदान किया है ,
               एसोसिएशन के अध्यक्ष ने वासु भाई को प्रणाम किया और धन्यवाद देकर उन्होंने कहा कि मैं भी आगे से ऐसी ही भावना रखकर के चिकित्सकीय सेवा करुंगा।
*"उपर्युक्त कथा का सम्बंध चिकित्सको से जरूर हैं तो यहाँ पर मेरा मानना यह हैं कि ज्योतिषी भी एक प्रकार का चिकित्सक होता हैं जिसको व्यक्ति अपनी शारीरिक और मानसिक समस्याओं के बारे में वह ज्योतिषी को बताता हैं।तो समस्त ज्योतिषियों को भी उपर्युक्त कथा से सीख लेने की आवश्यकता है।"*

मंगलवार, 21 नवंबर 2023

दाढ़ी और मूंछ के सफ़ेद बालो का करे उपचार


*दाढ़ी और मूंछ के सफ़ेद बालो का करे उपचार*
बाल सफेद होने का कारण पैतृक प्रभाव भी होता है या बहुत ज्यादा तनाव लेना या बहुत ज्यादा सोंचना तथा शराब का ज्यादा सेवन और गर्मी पैदा करने वाले आहार का ज्यादा सेवन करना.

*प्रयोग करे :*
कडी पत्ता 100 मिलीलीटर पानी में थोडी सी कडी पत्तियों को डाल कर तब तक उबालें जब तक कि पानी आधा ना हो जाए। पानी आधा हो जाने के बाद इसे पी लें। रोजाना यह उपचार आजमाने से आपको फायदा मिलेगा। आपको अगर कड़ी पत्ता मिलने में दिक्कत है तो आप नर्सरी से लाके गमले में लगा ले ये आपके किचन में भी काम आती है .थोडी सी कडी पत्ती ले कर उसे नारियल तेल में डाल कर उबालें। यह तेल हल्का ठंडा हो जाए तब इससे अपने सिर और दाढी की मालिशकरें।

थोडी सी कडी पत्ती ले कर उसे पानी में उबाल कर पानी को आधा कर लें। उबलते पानी में आमला पाउडर मिलाएं। फिर जब पानी हल्का ठंडा हो जाए तब उसे पी लें।

आमला पाउडर और नारियल तेल को मिक्स करें। आमला की मात्रा 25 प्रतिशत नारियल तेल से ज्यादा होनी चाहिये। इसे 2 मिनट उबालें! जब यह तेल ठंडा हो जाए तब इससे अपनी दाढी और स्कैल्प को मसाज करें। जिनकी दाढ़ी पक रही है उनको एक महीने तक आपको रोजाना आमला जूस पीना चाहिये। 

यह बहुत ही प्रभावशाली उपाय है। आपको गाय के मक्खन से स्कैल्प और दाढी को मसाज करना चाहिये। इसे आपको महीने में 8 से 10 बार प्रयोग करना चाहिये।

नियमित आपको फल, हरी सब्जियां, दालें या दूसरी प्रोटीन वाले आहार खाएं।

*सावधानियां*
जंक फूड खाना बंद करें चाय, काफी और ड्रिंक ना पियें केमिकल डाइ का प्रयोग ना करे. 

आंवला नवमी आज - आंवला नवमी से ही द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था

आंवला नवमी आज
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धार्मिक मान्यता के अनुसार, आंवला नवमी से ही द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था। आंवला नवमी कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को होती है। आंवला नवमी के दिन व्रत रखकर आंवले के पेड़ और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आंवला नवमी से आंवले के पेड़ में भगवान विष्णु का वास होता है और कार्तिक पूर्णिमा तक उसमें श्रीहरि का वास रहता है। आंवला नवमी को अक्षय नवमी और कूष्मांड नवमी भी कहते हैं। आंवला नवमी के दिन व्रत और पूजा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है, इसलिए यह अक्षय नवमी कहलाती है।

आंवला नवमी की तिथि
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वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 21 नवंबर दिन मंगलवार को तड़के 03 बजकर 16 एएम पर शुरू हो रही है और इस तिथि का समापन 22 नवंबर दिन बुधवार को 01 बजकर 09 एएम पर होगा। उदयातिथि के आधार पर इस साल आंवला नवमी 21 नवंबर को मनाई जाएगी।

आंवला नवमी का पूजा मुहूर्त
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21 नवंबर को आंवला नवमी की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 48 मिनट से दोपहर 12 बजकर 07 मिनट तक है। इस दिन पूजा के लिए आपको 05 घंटे से अधिक का समय प्राप्त होगा। उस दिन का शुभ मुहूर्त या अभिजित मुहूर्त दिन में 11 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 28 मिनट तक है।

आंवला नवमी के दिन रवि योग और पंचक
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इस बार आंवला नवमी वाले दिन रवि योग बन रहा है। रवि योग रात में 08 बजकर 01 मिनट से बन रहा है, जो अगले दिन सुबह 06 बजकर 49 मिनट तक रहेगा। वहीं पूरे दिन पंचक लगा है।

आंवला नवमी के 4 महत्व
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1. आंवला नवमी से आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु का वास होता है, इस वजह से आंवले के पेड़ की पूजा करते हैं और आंवले का भोग लगाते हैं। आंवले को ही प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं। विष्णु कृपा से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है।

2. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ से अमृत की बूंदें टपकती हैं, इसलिए इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठने और भोजन करने की परंपरा है। ऐसा करने से सेहत अच्छी रहती है।

3. आंवला नवमी को भगवान विष्णु ने कूष्मांड राक्षस का वध किया था, इसलिए इसे कूष्मांड नवमी कहते हैं। आंवला नवमी पर कूष्मांड यानि कद्दू का दान करते हैं।

4. धार्मिक मान्यता के अनुसार, आंवला नवमी से ही द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था।

कैसे करें आंवला नवमी की पूजा
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इस बार अक्षय नवमी 21 नवंबर मंगलवार को होगी। इस दिन प्रातःकाल जागने के बाद स्नानादि से निवृत्त होकर आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजन करके पेड़ की जड़ में दूध की धारा गिरा कर तने में चारो तरफ सूत लपेटना चाहिए। इसके बाद कपूर या घी की बाती से आरती करके 108 परिक्रमाएं करना चाहिए। आंवला नवमी के पूजन में जल, रोली, अक्षत, गुड़, बताशा, आंवला और दीपक घर से लेकर ही जाना चाहिए। ब्राह्मण और ब्राह्मणी को भोजन कराकर वस्त्र तथा दक्षिणा आदि दान देकर स्वयं भोजन करना चाहिए। एक बात जरूर ध्यान रखें कि इस दिन के भोजन में आंवला अवश्य ही होना चाहिए। इस दिन आंवले का दान करने का भी विशेष महत्व है।

आंवला नवमी व्रत की कथा
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किसी समय में एक साहूकार था। वह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में नवमी के दिन आंवला के पेड़ के नीचे ब्राह्मणों को भोजन कराता और सोने का दान करता था। उसके लड़कों को यह सब करना अच्छा नहीं लगता था क्योंकि उन्हें लगता था कि वह धन लुटा रहे हैं। तंग आकर साहूकार दूसरे गांव में जाकर एक दुकान करने लगा। दुकान के आगे आंवले का पेड़ लगाया और उसे सींच कर बड़ा करने लगा। उसकी दुकान खूब चलने लगी और बेटों का कारोबार बंदी की स्थिति में पहुंच गया। वह सब भागकर अपने पिता के पास पहुंचे और क्षमा मांगी। तो पिता ने उन्हें क्षमा कर आंवले के वृक्ष की पूजा करने का कहा। उनका काम धंधा पहले की तरह चलने लगा।

सोमवार, 20 नवंबर 2023

बेटा बन कर, बेटी बनकर, दामाद बनकर और बहु बनकर कौन आता है ? जिसका तुम्हारे साथ कर्मों का लेना देना होता है। लेना देना नही होगा तो नही आयेगा।

🌴🌴ॐ नमो नारायण🌴🌴
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♻जो लोग 84 लाख योनि भोगने के बाद अनमोल मनुष्य जीवन प्राप्त करके हरिभजन नही करते, और मांस, मछली, खाकर पाप इकठ्ठा करते हैं, जिनके कारण बेज़ुबान जानवरों की क्रूर हत्या की जाती है और वो लोग बोलते हैं कि हमने कौनसा जानवर को मारा है, हमने तो होटल में बैठकर खाया है |
यमराज के दरबार मे उनका ये हाल होता है...।👇
♻ये एक अविवादित सत्य है👏
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🌟कर्मों का लेना देना🌟
गुरु महाराज क्या कहतें हैं, ध्यान से सुनो नर-नारियों। 
गुरु महाराज कहतें हैं कि बेटा बन कर, बेटी बनकर, दामाद बनकर और बहु बनकर कौन आता है ? जिसका तुम्हारे साथ कर्मों का लेना देना होता है। लेना देना नही होगा तो नही आयेगा।
♻एक फौजी था। उसके मां नहीं, बाप नहीं, शादी नहीं, बच्चे  नहीं, भाई नहीं, बहन नहीं। अकेला ही कमा कमा के फौज में जमा करता जा रहा था, तो थोड़े दिन में एक सेठ जी फौज में माल सप्लाई करते थे उनका परिचय हो गया। 
🍁सेठजी ने कहा जो तुम्हारे पास पैसा है वो उतने के उतने ही पड़ा हैं तुम मुझे दे दो मैं कारोबार में लगा दूं तो पैसे से पैसा बढ़ जायेगा, इसलिए तुम दे दो। 
फौजी ने सेठजी को पैसा दे दिया। सेठ जी ने कारोबार में लगा दिया। कारोबार उनका चमक गया, खूब कमाई होने लगी, कारोबार बढ़ गया।
थोड़े ही दिन में लड़ाई लग गई। लड़ाई में फौजी घोड़ी पर चढ़कर लड़ने गया। घोड़ी इतनी बदतमीज थी कि जितनी जोर जोर से लगाम खींचे उतनी ही तेज भागे। खीेंचते खींचते उसके गल्फर तक कट गये लेकिन लेकिन वो दौड़कर दुश्मनों के गोल में जाकर खड़ी हो गई। दुश्मनों ने बार किया, फौजी भी मर गया, घोड़ी भी मर गई।
अब सेठजी को मालूम हुआ कि फौजी मर गया तो सेठ जी बहुत खुश हुए कि उसका कोई वारिस तो है नहीं, अब ये पैसा देना किसको। अब मेरे पास पैसा भी हो गया, कारोबार भी चमक गया, लेने वाला भी नहीं रहा तो सेठजी बहुत खुश हुए। 

🌱तब तक कुछ ही दिन के बाद सेठजी के घर में लड़का पैदा हो गया, अब सेठजी और खुश, कि भगवान की बड़ी दया है। खूब पैसा भी हो गया, कारोबार भी हो गया, लड़का भी हो गया, लेने वाला भी मर गया सेठजी बहुत खुश। तब तक वो लड़का होशियार था पढ़ने में समझदार था । सेठजी ने उसे पढ़ाया लिखाया, जब वह पढ़ लिखकर बड़ा हो गया तो सोचा कि अब ये कारोबार सम्हाल लेगा, चलो अब इसकी शादी कर दें।
शादी करते ही घर में आ गई बहुरानी, दुल्हन आ गई। 
अब उसने सोचा कि चलो, बच्चे की शादी हो गई अब कारोबार सम्हालेगा। लेकिन कुछ दिन में बच्चे की तबियत खराब हो गई। 

🌞अब सेठ जी डाॅक्टर के पास, हकीम के पास, वैद्य के पास दौड़ रहे हैं। वैद्य जी जो दे रहे हैं दवा खिला रहे हैं, और दवा असर नहीं कर रही, बीमारी बढ़ती ही जा रही। पैसा बरबाद हो रहा है, और बीमारी बढ़ती ही जा रही है, रोग गठ नही रहा, पैसा खूब लग रहा है। अब अन्त में डाॅक्टर ने कह दिया कि ला-इलाज मर्ज हो गया, इसको अब असाध्य रोग हो गया, ये बच्चा दो दिन में मर जायेगा।
डाॅक्टरों के जवाब देने पर सेठजी निराश होकर बच्चे को लेकर रोते हुए आ रहे। रास्ते में एक आदमी मिला। कहा अरे सेठजी क्या हुआ बहुत दुखी लग रहे हो ? 
♻सेठजी ने कहा, ये बच्चा जवान था, हमने सोचा बुढ़ापे में मदद करेगा। अब ये बीमार हो गया शादी होते ही। हमने इसके लिये खूब पैसा लगा दिया, जिसने जितना मांगा उतना दिया लेकिन आज डाॅक्टरों ने जवाब दे दिया, अब ये बचेगा नहीं। असाध्य रोग हो गया, लाइलाज मर्ज हो गई। अब ले जाओ घर दो दिन में मर जायेगा। 
आदमी ने कहा अरे सेठजी, तुम क्यों दिल छोड़ रहे हो। मेरे पड़ोस में वैद्य जी दवा देते हैं। दो आने की पुड़िया खाकर मुर्दा भी उठकर खड़ा हो जाता है। जल्दी से तुम वैद्य जी की दवा ले आओ।
🌿सेठजी दौड़कर गये, दो आने की पुड़िया ले आये और पैसा दे दिया। पुड़िया ले आये बच्चे को खिलाई बच्चा पुड़िया खाते ही मर गया। जब बच्चा मर गया अब सेठजी रो रहे हैं, सेठानी भी रो रही और घर में बहुरानी और पूरा गांव भी रो रहा । गांव में शोर मच गया कि बहुरानी सेठ की कमर जवानी में टूट गई, सब लोग रो रहे हैं।
तब तक एक महात्मा जी आ गये। 

♻उन्होनें कहा भाई क्यों रोना धोना। बोले- इस सेठ का एक ही जवान लड़का था वो भी मर गया इसलिए सब लोग रो रहे हैं। सब दुखी हो रहे हैं। 
🍁महात्मा बोले- सेठजी रोना क्यों, बोले महाराज जिसका जवान बेटा मर जाये वो रोयेगा नही तो क्या करेगा। 
बोले तो आपको क्यों रोना, बोले मेरा बेटा मरा तो और किसको रोना।
कहने लगे और उस दिन तो आप बड़े खुश थे। बोले कि किस दिन? बोले फौजी ने जिस दिन पैसा दिया था। 
🌞कहने लगे हां कारोबार के लिए पैसा मिला था तो खुशी तो थी। 
बोले कि और उस दिन तो आपकी खुशी का ठिकाना ही नही था। 
बोले कि किस दिन? अरे जिस दिन फौजी मर गया, सोचा कि अब तो पैसा भी नहीं देना पड़ेगा। माल बहुत हो गया, कारोबार खूब चमक गया, अब देना भी नहीं पड़ेगा बहुत खुश थे। बोले हां महाराज! खुश तो था। 
🌾बोले और उस दिन तो आपकी खुशी का ठिकाना ही न था, पता नही कितनी मिठाईयां बट गईं। बोले किस दिन?  अरे जिस दिन लड़का पैदा हुआ था। बोले महाराज लड़का पैदा होता है तो सब खुश होते हैं मैं भी हो गया तो क्या बात।

🍁कहने लगे उस दिन तो खुशी से आपके पैर जमीन पर नही पड़ता था। बोले किस दिन? अरे जिस दिन बेटा ब्याहने जा रहे थे। कहने लगे महाराज बेटा ब्याहने जाता है तो हर आदमी खुश होता है तो मैं भी खुश हो गया। 
🌿तो जब इतनी बार खुश हो गए तो जरा सी बात के लिए रो क्यों रहे हो। 
महाराज ये जरा सी बात है।  जवान बेटा मर गया ये जरा सी बात है।
कहने लगे अरे सेठजी वहीं फौजी पैसा लेने के लिए बेटा बन कर आ गया। पढ़ने में, लिखने में, खाने में, पहनने में और शौक मे, श्रृंगार में जितना लगाना था लगाया। शादी ब्याह में सब लग गया। और ब्याज दर ब्याज लगाकर डाक्टरों को दिलवा दिया। अब जब दो आने पैसे बच गये वो भी वैद्य जी को दिलवा दिये और पुड़िया खाकर चल दिया। जब कर्मो का लेना देना पूरा हुआ गया।

♻सेठजी ने कहा हमारे साथ तो कर्मो का लेन देन था। चलो हमारे साथ तो जो हुआ सो हुआ। लेकिन वो जवान बहुरानी घर में रो रही है, जवानी में उसको धोखा देकर, विधवा बनाकर चला गया उसका क्या जुर्म था कि उसके साथ ऐसा गुनाह किया। 
महात्मा बोले- यह वही घोड़ी है । जिसने जवानी में उसको धोखा दिया इसने भी जवानी में उसको धोखा दे दिया।
ऐ नर नारियों! अगर तुम सत्संग सुनोगे तो तुम इनके लिए रोने वाले नहीं और ये तुम्हारे लिए रोने वाले नहीं। लेकिन सत्संग न सुनने से विवेक न होने से तुम इनके लिए रोते हो, ये तुम्हारे लिए रोते हैं। 
जब तुम्हारे साथ कर्मो का लेन देन है, कर्मो का लेन देन पूरा हुआ चला गया रोना .......हरि ॐ
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अच्छे अच्छे महलों मे भी एक दिन कबूतर अपना घोंसला बना लेते है ..

*" अच्छे अच्छे महलों मे भी एक दिन कबूतर अपना घोंसला बना लेते है ...*

               *💥सेठ घनश्याम के दो पुत्रों में जायदाद और ज़मीन का बँटवारा चल रहा था*
और एक चार बेड रूम के घर को लेकर विवाद गहराता जा रहा था
  *एकदिन दोनो भाई मरने मारने पर उतारू हो चले , तो पिता जी बहुत जोर से हँसे।* 

*पिताजी को हँसता देखकर दोनो भाई  लड़ाई को भूल गये,*  और पिताजी से हँसी का कारण पूछा । 
               *पिताजी ने कहा-- इस छोटे से ज़मीन के टुकडे के लिये इतना लड़ रहे हो*

*छोड़ो इसे आओ मेरे साथ एक अनमोल खजाना दिखता हूँ मैं तुम्हे !*

              पिता घनश्याम जी और दोनो पुत्र पवन और मदन उनके साथ रवाना हुये ।

पिताजी ने कहा देखो यदि तुम आपस मे लड़े तो फिर मैं तुम्हे उस खजाने तक नही लेकर जाऊँगा और बीच रास्ते से ही लौटकर आ जाऊँगा !
                  *अब दोनो पुत्रों ने खजाने के चक्कर मे एक समझौता किया की चाहे कुछ भी हो जाये पर हम लड़ेंगे नही प्रेम से यात्रा पे चलेंगे !*

   गाँव जाने के लिये एक बस मिली पर  सीट दो की मिली, और  वो तीन थे, 

अब पिताजी के साथ थोड़ी देर पवन बैठे तो थोड़ी देर मदन ।

ऐसे चलते-चलते लगभग दस घण्टे का सफर तय किया ,तब गाँव आया।
                  *घनश्याम जी दोनो पुत्रों को लेकर एक बहुत बड़ी हवेली पर गये हवेली चारों तरफ से सुनसान थी।* 
घनश्याम जी ने देखा कि हवेली मे जगह जगह कबूतरों ने अपना घोसला बना रखा है, तो घनश्याम वहीं बैठकर रोने लगे।

   *पुत्रों ने पुछा क्या हुआ पिताजी आप रो क्यों रहे है ?*

     रोते हुये उस वृद्ध पिता ने कहा जरा ध्यान से देखो इस घर को, जरा याद करो वो बचपन जो तुमने यहाँ बिताया था ,

*तुम्हे याद है बच्चों इसी हवेली के लिये मैं ने अपने बड़े भाई से बहुत लड़ाई की थी, ये हवेली तो मुझे मिल गई पर मैंने उस भाई को हमेशा के लिये खो दिया ।*

क्योंकि वो दूर देश में जाकर बस गया और फिर वक्त्त बदला 

एक दिन हमें भी ये हवेली छोड़कर जाना पड़ा ! 

         *अच्छा तुम ये बताओ बेटा कि जिस सीट पर हम बैठकर आये थे*
*क्या वो बस की सीट हमें मिल गई?*
*और यदि मिल भी जाती तो क्या वो सीट हमेशा-हमेशा के लिये हमारी हो जाती ?* 

मतलब की उस सीट पर हमारे सिवा और कोई न बैठ सकता ।

*दोनो पुत्रों ने एक साथ कहा कि ऐसे कैसे हो सकता है , बस की यात्रा तो चलती रहती है और उस सीट पर सवारियाँ बदलती रहती है।* 
पहले हम बैठे थे ,

आज कोई और बैठा होगा 

और

पता नही ,कल कोई और बैठेगा।

*और वैसे भी उस सीट में क्या धरा है जो थोड़ी सी देर के लिये हमारी है !*

                 पिताजी पहले  हँसे और  फिर आंखों में आंसू भरकर बोले , देखो यही  मैं तुम्हे समझा रहा हूँ ,*कि जो थोड़ी देर के लिये जो तुम्हारा है , *तुमसे पहले उसका मालिक कोई और था, थोड़ी सी देर के लिये तुम हो और थोड़ी देर बाद कोई और हो जायेगा।*

  *बस बेटा एक बात ध्यान रखना कि इस थोड़ी सी देर के लिये कही  तुम अपने अनमोल रिश्तों की आहुति न दे देना*, 
*यदि पैसों का प्रलोभन आये तो इस हवेली की इस स्थिति को देख लेना कि अच्छे अच्छे महलों में भी* 

*एक दिन कबूतर अपना  घोंसला बना लेते है।*

*बेटा मुझे यही कहना था --कि  बस की उस सीट को याद कर लेना जिसकी रोज  सवारियां बदलती रहती है* 

*उस सीट के खातिर अनमोल रिश्तों की आहुति न दे देना*

*जिस तरह से बस की यात्रा में तालमेल बिठाया था बस वैसे ही जीवन की यात्रा मे भी तालमेल बिठाते  रहना  !*
           *दोनो पुत्र पिताजी का अभिप्राय समझ गये, और पिता के चरणों में गिरकर रोने लगे !*

                 *शिक्षा :-*

     *मित्रों, जो कुछ भी ऐश्वर्य -धन  सम्पदा हमारे पास है वो सबकुछ बस थोड़ी देर के लिये ही है , थोड़ी-थोड़ी देर मे यात्री भी बदल जाते है और मालिक भी।*

*रिश्तें बड़े अनमोल होते है* 

*छोटे से ऐश्वर्य धन  या *सम्पदा* के चक्कर मे कहीं किसी *अनमोल रिश्तें को न खो देना*    ...

🙏🙏

*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
*जिसका मन मस्त है*
*उसके पास समस्त है!!*


*हमारा आदर्श : सत्यम्-सरलम्-स्पष्टम्*

रविवार, 19 नवंबर 2023

कुछ ऐसे होते हैं कृष्ण पक्ष में जन्मे लोग स्वभाव से निष्ठुर होने के साथ-साथ होते हैं क्रूर

कुछ ऐसे होते हैं कृष्ण पक्ष में जन्मे लोग
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स्वभाव से निष्ठुर होने के साथ-साथ होते हैं क्रूर
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हिंदू धर्म में ग्रहों और नक्षत्रों को लोग काफी महत्वपूर्ण मानते हैं। व्यक्ति के जन्म के समय से उसके भाग्य का और उसके स्वभाव का पता लगाया जाता है। जब भी किसी बच्चे का जन्म होता है तो उसके जन्म के समय को सबसे पहले नोट किया जाता है। इसके द्वारा उसके ग्रहों नक्षत्रों को देखते हुए उसकी कुंडली बनाई जाती है जो उसका आने वाला भविष्य कैसा रहेगा इन सब बातों के बारे में पता लगता है।

ज्योतिष के अनुसार बच्चे के जन्म के समय के साथ उसके स्वभाव पर उसके घर के माहौल का भी बेहद असर पड़ता है। इसी के साथ उसकी कुंडली में जो ग्रह विराजमान होते हैं वो भी उसके जीवन पर असर डालते हैं। ज्योतिषियों के अनुसार व्यक्ति की कुंडली के ग्रहों से व्यक्ति के स्वभाव के बारे में बताया जा सकता है।

जहां पर लोग अंग्रेजी कैलेंडर देखते हैं उसकी तरह से हिंदू धर्म का कैलेंडर पंचांग होता है। बता दें कि हिंदू धर्म में पंचांग का विशेष महत्व होता है। पंचांग अर्थात पांच कारकों तिथि, योग, करण, वार और नक्षत्र से मिलकर बनता हैं और इसी के आधार पर पंचांग द्वारा गणना की जाती है, इसलिए ही इसे पंचांग कहा जाता है।

पंचांग के अनुसार एक साल में 12 महीने होते हैं और जिसमें हर एक दिन को एक तिथि कहा जाता है। हर दिन की तिथि की अवधि 19 घंटों से लेकर 24 घंटे तक की होती है। पंचांग के अनुसार हर महीने में 30 दिन होते हैं। और इन दिनों की संख्या की गणना सूरज और चंद्रमा की गति के अनुसार निर्धारित की जाती है। चन्द्रमा की कलाओं के ज्यादा होने या कम होने के अनुसार ही महीने को दो पक्षों में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में बांटा गया है। इन दोनों ही पक्षों में जन्म लेने वाले जातकों के स्वभाव में काफी अंतर होता है। तो आज हम आपको बताएंगे कि कृष्ण पक्ष में जन्में लोग कैसे होते हैं। 

पूर्णिमा और अमावस्या के बीच के भाग को कृष्ण पक्ष कहा जाता है। पूर्णिमा के अगले दिन से ही कृष्ण पक्ष लग जाता है। बता दें कि कृष्ण पक्ष को अशुभ माना जाता है और ऐसी मान्यता है कि इस पक्ष में कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाने चाहिए।

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पूर्णिमा के बाद चंद्रमा घटने लगता है जिसके बाद चंद्रमा की शक्तियां कम होने लगती है और चंद्रमा के आकार में भी कमी आने लगती और रातें अंधेरी होने लगती है इस कारण से इस पक्ष को शुभ नहीं माना जाता है। इसलिए जो लोग पंचांग में विश्वास करते हैं वो कृष्ण पक्ष में कोई भी शुभ कार्य नहीं करते हैं।

कैसे होते हैं कृष्ण पक्ष में जन्में लोग
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कृष्णपक्ष में जन्म लेने वाले स्वभाव से निष्ठुर, द्वेषी स्वभाव, क्रूर होते हैं इसी के साथ वो ज्यादा सुंदर शरीर वाले भी नहीं होते हैं। हालांकि वो परिश्रमशील होते हैं।
रात में जन्म लेने वाले लोग तामसिक स्वभाव वाले होते हैं और काम को छिपाकर कर करते हैं। इसी के साथ ऐसे लोग व्यर्थ में और अधिक बोलने वाले होते हैं।

हिंदी महीनों के अनुसार जन्म लेने वालों का स्वभाव
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इसी के साथ आषाढ़ महीने में जन्म लेने वाले लोग धर्म कर्म में रूचि रखते हैं लेकिन इसी के साथ ऐसे लोग आर्थिक तंगी से सदैव घिरे रहते हैं।
माघ मास में जन्म लेने वाले लोग काफी बुद्धिमान होते हैं इसी के साथ उनमें पैसा कमाने की ललक होती है। किंतु वो बहुत ही खरा बोलते हैं।
वहीं कार्तिक महीने में जन्म लेने वाले लोग स्वभाव से केवल निष्ठुर होते हैं लेकिन वो धनवान होते हैं।
प्रतिपदा को जन्मे लोग दुर्जन और कुसंगी होते हैं।
द्वितीया तिथि को जन्मे लोग स्वभाव से स्वार्थी होते हैं।
तृतीया को जन्मे लोग स्वभान से ईर्ष्यालु प्रर्वत्ति के होते हैं।


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