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मंगलवार, 28 नवंबर 2023

लाल बहादुर शास्त्री ने भारत को क्या योगदान दिया?

 

11 जनवरी को "जय जवान जय किसान" का नारा देने वाले हमारे देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री की पुण्यतिथि मनाई जाती है। पद के रहते हुए भी साधारण जीवन जीने वाले जिन्होंने प्रधानमंत्री रहते हुए भी खेती करना नहीं छोड़ा।🙏

शास्त्री जी ने प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए भी व्यक्तिगत उपयोग के लिए बैंक से लोन पर कार ली। उनके निधन के बाद बैंक ने शास्त्री जी की पत्नि से कार का लोन चुकाने का कहा जिसे उन्होंने फैमिली पैंशन के पैसे से चुकाया ।

कहा जाता है कि निधन के समय शास्त्री जी के नाम पर कोई मकान भी नहीं था।

साधारण जीवन जीने वाले विशाल व्यक्तित्व के स्वामी शास्त्री जी की मृत्यु कैसे हुई , इस बात का पता आजतक नहीं चल पाया है लेकिन यह बात सभी जानते हैं कि शास्त्रीजी राजनीति दांवपेंच की भेंट चढ़ गए।

शास्त्री जी की पुण्यतिथि पर एक लेख पढ़ा था उसी को साझा कर रही हूं।


देश क्या चाहता था...क्या हो गया...

एक मोड़ जहां से आकाश को चढ़ता देश डगमगा गया...वह मोड़ "शास्त्री" जी का जाना ही तो था, वह नेतृत्व के आदर्शों का हमसे मुंह मोड़ लेना ही तो था!

आज ग्यारह जनवरी को वह कमी जो हमें नित सालती है, ताशकंद में पड़ी वह खाई जो शायद अब तक हम पाट नहीं पाए है...उस पीड़ा ,उस कमी को ये शब्द कहने का प्रयास कर रहे है...जो हमने उनके बाद के युग मे समय समय पर महसूस की है...

हालांकि एक हौसला लेकर ये शब्द निकले है, कि शास्त्री मरेंगे नहीं... वे सदा ज़िंदा रहेंगे हममें, देशप्रथम और नैतिकता के प्रखर आदर्श के रूप में...

********

ओ गुदड़ी के लाल...ए कर्म बहादुर...

क्यों गए कंत...क्यों गए कंत

धरती पलक बिछाए बैठी ...

बाट जोहती रही तुम्हारी

कई करोड़ आंखों से ताके ...

जिस तलक दिगन्त...

क्यों गए कंत...

तुम गए तो देखों क्या गया हमारा...

कहें ये कैसे क्या रहा हमारा...

काले दिन हिस्से में आए...

बंध गए हाथ...कैद, शब्द... छंद

क्यों गए कंत....

धागे उधड़े...लोग भी उजड़े..

कई दरख़्त निज जड़ों से उखड़े...

दहशत ख़ूनी....मंडल...अंधजड़

हम हुए नैन संग अंध..

क्यों गए कंत...

देश बिछाए...बैठे आसन पर

जवान किसान को रख ताक़न पर

अगड़े पिछड़े ,हरे केसरी...

बने बस वोट... करें तिरंगा तंग

क्यों गए कंत...

अब खादी का बस रंग ही उजला

उस दिमाग में बसे रुपैया...

जन गण मन की आग लगाकर

जीते सत्ता की जंग...

क्यों गए कंत...

अब अपने ही अपनों को खाए...

देसी रंग ज्यो फिरंगी आए..

इस ठाठ बाट ओ राज पाट में

हुए फ़िर हम परतंत्र...

क्यों गए कंत...

उस ग्यारह को उम्मीदों का

वो गीत कहीं हमने था खोया...

तुम होते जो लाल बहादुर

क्यो होती खादी सत्तातुर

मज़बूती से ताना बाना

रख चलते देश तुम संग..

क्यों चले गए तुम कंत...🙏

~

स्रोत - व्हाट्सएप पोस्ट से प्राप्त

लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद 🙏😊

चौसठ योगिनी का उल्लेख पुराणों में मिलता है जिनकी अलग अलग कहानियां है । इनको आदिशक्ति मां काली का अवतार बताया है

 

चौसठ योगिनी का उल्लेख पुराणों में मिलता है जिनकी अलग अलग कहानियां है । इनको आदिशक्ति मां काली का अवतार बताया है

कहा जाता है घोर नामक दैत्य के साथ युद्ध करते हुए माता ने ये अवतार लिए थे। यह भी माना जाता है कि ये सभी माता पर्वती की सखियां हैं।

ब्रह्म वैवर्त पुराण में भी इन योगिनियों का वर्णन है लेकिन इस पुराण के अनुसार ये ६४ योगिनी कृष्ण की नासिका के छेद से ये प्रगट हुई है। इनकी संख्या 64 होने के पीछे भी कुछ तथ्य हैं । स्त्री के बिना पुरूष अधूरा है, वही पुरुष के बिना स्त्री अधूरी है । एक संपूर्ण पुरुष 32 कलाओ से युक्त होता है वही एक संपूर्ण स्त्री भी 32 कलाओ से युक्त होती है , दोनों के मिलन से बनते है 32 + 32 = 64, तो ये माना जा सकता है 64 योगिनी शिव और शक्ति जो सम्पूर्ण कलाओ से युक्त हैं उनके मिलन से प्रगट हुई हैं ।

चौसठ योगिनियों की पूजा करने से सभी देवियों की पूजा हो जाती है। इन चौंसठ देवियों में से दस महाविद्याएं और सिद्ध विद्याओं की भी गणना की जाती है। ये सभी आद्या शक्ति काली के ही भिन्न-भिन्न अवतार रूप हैं। कुछ लोग कहते हैं कि समस्त योगिनियों का संबंध मुख्यतः काली कुल से हैं और ये सभी तंत्र तथा योग विद्या से घनिष्ठ सम्बन्ध रखती हैं।

हर दिशा में 8 योगिनी फ़ैली हुई है, हर योगिनी के लिए एक सहायक योगिनी है, हिसाब से हर दिशा में 16 योगिनी हुई तो 4 दिशाओ में 16 × 4 = 64 योगिनी हुई । ६४ योगिनी ६४ तन्त्र की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती है। एक देवी की भी कृपा हो जाये तो उससे संबंधित तन्त्र की सिद्धी मानी जाती है।

नवरात्र के समय इन योगिनियों की पूजा बहुत ही फलदायी होती है। तंत्र तथा योग से जुड़े होने के कारण आप इनकी पूजा किसी जानकार से पूरी जानकारी लेकर ही करे।

समस्त योगिनियां अलौकिक शक्तिओं से सम्पन्न हैं तथा इंद्रजाल, जादू, वशीकरण, मारण, स्तंभन इत्यादि कर्म इन्हीं की कृपा द्वारा ही सफल हो पाते हैं। प्रमुख रूप से आठ योगिनियां हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं

1. सुर-सुंदरी योगिनी 2. मनोहरा योगिनी

3. कनकवती योगिनी 4. कामेश्वरी योगिनी

5. रति सुंदरी योगिनी 6. पद्मिनी योगिनी

7. नटिनी योगिनी 8. मधुमती योगिनी

सभी चौंसठ योगिनियों के नाम 👇

इन चौंसठ योगिनियों के नाम इस प्रकार हैं – 1.बहुरूप, 3.तारा, 3.नर्मदा, 4.यमुना, 5.शांति, 6.वारुणी 7.क्षेमंकरी, 8.ऐन्द्री, 9.वाराही, 10.रणवीरा, 11.वानर-मुखी, 12.वैष्णवी, 13.कालरात्रि, 14.वैद्यरूपा, 15.चर्चिका, 16.बेतली, 17.छिन्नमस्तिका, 18.वृषवाहन, 19.ज्वाला कामिनी, 20.घटवार, 21.कराकाली, 22.सरस्वती, 23.बिरूपा, 24.कौवेरी, 25.भलुका, 26.नारसिंही, 27.बिरजा, 28.विकतांना, 29.महालक्ष्मी, 30.कौमारी, 31.महामाया, 32.रति, 33.करकरी, 34.सर्पश्या, 35.यक्षिणी, 36.विनायकी, 37.विंध्यवासिनी, 38. वीर कुमारी, 39. माहेश्वरी, 40.अम्बिका, 41.कामिनी, 42.घटाबरी, 43.स्तुती, 44.काली, 45.उमा, 46.नारायणी, 47.समुद्र, 48.ब्रह्मिनी, 49.ज्वाला मुखी, 50.आग्नेयी, 51.अदिति, 51.चन्द्रकान्ति, 53.वायुवेगा, 54.चामुण्डा, 55.मूरति, 56.गंगा, 57.धूमावती, 58.गांधार, 59.सर्व मंगला, 60.अजिता, 61.सूर्यपुत्री 62.वायु वीणा, 63.अघोर और 64. भद्रकाली।

चित्र - गूगल से

धन्यवाद🙏💕|

पुलिस ने ऐसा मामला सुलझाया जिसमे न मरने वाले का कोई पता था और ना ही कोई सबूत था

 

जी हाँ एक केस है मेरी नजर मे जिसे मैं यहाँ वर्णित करना पसंद करूंगा । यह घटना है केरल के कोच्चि शहर की ।

7 जनवरी 2018 को कुछ लोग सरोवर के किनारे मछ्ली पकड़ने गए थे । वहाँ पर उनको एक प्लास्टिक का ड्रम दिखा जिसमे से अजीब सी बदबू आ रही थी । किसी अनहोनी के डर से लोगो ने इसकी सूचना पुलिस को दे दी । जब पुलिस ने ड्रम को देखा तो ड्रम सीमेंट और कंक्रीट से पूरी तरह पैक था । दुर्गंध का पता लगाने के लिए पुलिस ने ड्रम को तोड़ा ।

ड्रम तोड़ने पर उसमे से कुछ टूटी फूटी मानव अस्थियाँ , रस्सी की टुकड़ा , तीन नोट ( एक 100 और दो 500 के ) कपड़ो के चिथड़े और कुछ बालो के गुच्छे निकले ।

यह केश समाचार पत्रों मे छा गया था । इसके पेचीदेपन को देखते हुए इसे केरल के सेरलोक होम्स कहे जाने वाले इंस्पेक्टर सीबी टॉम को सौंपा गया ।

हड्डियों को जब ध्यान से देखा गया तो उसमे एक स्क्रू फंसा हुआ मिला ।

पुलिस को एक राहत की सांस मिली । स्क्रू के अलावा पुलिस को कुछ भी ऐसा नहीं मिला था जिससे की मृतक का पता किया जा सके । यहाँ तक की यह भी बताना मुश्किल था की मृतक नर था या मादा । हालांकि बालो की लंबाई से यह अंदाजा लगाया जा रहा था की मृतक कोई महिला थी परंतु समस्या यह थी की आजकल लंबे बालो का शौक लड़को को भी है तो हो सकता है की मरने वाला कोई नर रहा हो ।

चूंकि ड्रम मे मिली हुई नोट 500 के पूराने नोट थे जिससे यह अंदाजा लगाया जा रहा था की यह हत्या 8 नवंबर 2016 (जिस दिन नोटेबन्दी की घोषणा हुई थी ) उसके पहले हुई होगी । 2 वर्ष पुरानी लाश के बारे मे पता करना पुलिस के लिए बहुत मुश्किल था और तो और लाश का लिंग भी नहीं पता था की मरने वाला नर है या मादा ।

हड्डी मे मिले स्क्रू को जब बहुत ध्यान से एक उच्चस्तर के कैमरा से देखा गया तब उस स्क्रू पर PITKAR लिखा हुआ दिखा । नेट पर सर्च करने पर पता चला की यह पूणे की कंपनी है ,जो पूरे देश मे इस तरह के स्क्रू का निर्यात करती है । पुलिस ने जब इस कंपनी से पता किया तो पता चला की साल 2016 मे इस तरह के कुल 161 स्क्रू पूरे देश मे भेजे गए थे जिसमे से केवल 6 केरल मे भेजे गए थे । पुलिस ने काफी जांच करने के बाद केरल के उन 6 मरीजो के नाम और पता , पता लगा लिया जिनहे 2016 मे यह स्क्रू लगाया गया था ।

5 मरीज तो पुलिस को मिल गए लेकिन एक शकुंतला नाम की महिला का कहीं कुछ पता नहीं चल रहा था । अस्पताल मे जब सकुन्तला से मिलने आने वालों की लिस्ट निकाली गई तो उसमे से एक नाम था अस्वती दामोदरन । जब पुलिस अस्वती के घर पहुंची तो पता चला की शकुंतला अस्वती की माता थी । अस्वती ने बताया की उसे अपनी माँ को देखे हुए 2 बर्ष हो गए ।

अस्वती ने बताया की उसकी माँ की स्कूटी एक ट्रक से टकरा गई थी जिससे उसकी मा की बाएँ पैर मे फ्रेक्चर हो गया था और उसके बाएँ पैर मे एक स्क्रू लगाया गया था । इस बात से पुलिस को यह पता चल गया की मरने वाली महिला ही थी और उसका नाम शकुंतला था । अब पुलिस के समक्ष सबसे बड़ा प्रश्न यह था की शकुंतला की हत्या किसने और क्यूँ की ।

इसके लिए पुलिस ने अस्वती की कुंडली खंगलनी शुरू कर दी । फिर पुलिस को पता चला की अस्वती और उसका प्रेमी सुजीत , शकुंतला के साथ ही रहा करते थे । अस्वती ने अपने प्रेमी सुजीत के बारे मे पुलिस को पहले कुछ भी नहीं बताया था । पुलिस को समझ मे नहीं आ रहा था की प्रेमी वाली बात अस्वती ने क्यूँ छुपा रखी थी । पुलिस ने फिर से अस्वती को थाने बुलाकर पूछ ताछ शुरू की ।

पुलिस -" तुमने अपने प्रेमी सुजीत के बारे मे क्यूँ नहीं बताया ?"

अस्वती -" साहब क्या बताती वो तो 20 दिन पहले 9 जनवरी 2018 को ही आत्महत्या कर लिया है । "

पुलिस को आश्चर्य हुआ क्यूंकी 7 जनवरी को ड्रम मे लाश मिलने की खबर पूरे समाचार पत्रो मे छपी थी और 9 जनवरी को ही सुजीत ने आत्महत्या कर लिया । कहीं सुजीत तो ही हत्यारा नहीं था । अब इस बात का खुलासा केवल अस्वती ही कर सकती थी अतः पुलिस ने उससे सख्ती से पूछ ताछ शुरू कर दी ।

अस्वती ने कुछ ऐसी कहानी सुनाई ।

अस्वती - " साहब जब माँ अस्पताल से घर आई उसके कुछ दिन ही बाद माँ को चेचक हो गया था अतः मैं अपने बच्चे के साथ बगल के एक लॉज मे जाकर रहने लगी थी । एक सप्ताह बाद जब वापस आई तो माँ नहीं थी लेकिन वहाँ सुजीत था । उसने कहा की तुम्हारी माँ एक ईसाई मिसनरी के साथ दिल्ली चली गईं हैं और यह कहकर गईं है की अब उसिके साथ रहेंगी । साहब मेरी माँ और मेरे बीच संबंध अच्छे नहीं थे मेरी माँ मेरे और सुजीत के रिश्ते जो लेकर किचकिच करती रहती थी अतः मुझे खुशी हुई की अब कोई किचकिच करने वाला नहीं है । "

पुलिस ने अस्वती से यह जानकारी लेकर सुजीत की कुंडली खंगालनी शुरू कर दी । सुजीत का एक खास दोस्त था सुरेश जो ऑटो चलाता था । लोगो ने बताया की जिस दिन शकुंतला गायब हुई थी उस दिन सुजीत के साथ उसका दोस्त सुरेश भी शकुंतला के घर के आस पास दिखाई दिया था । रात के 2 बजे सुरेश और सुजीत ऑटो से कोई भारी समान ले जाते हुए भी देखे गए थे ।

पुलिस ने सुरेश को पकड़ कर जब सख्ती से पूछताछ की तो उसने सारे राज उगल दिएँ ।

सुरेश -" साहब , सुजीत शादी शुदा होते हुए भी अस्वती से संबंध बनाए हुए था । उसके शादी की खबर अस्वती को तो नहीं थी लेकिन शकुंतला को हो गई थी । शकुंतला यह सच्चाई बताकर अपने बेटी का दिल नहीं तोड़ना चाहती थी अतः वह सुरेश पर ही दबाव बना रही थी की वह उसके बेटी के जिंदगी से कहीं दूर चला जाये । शकुंतल ने यह धम्की भी दी की अगर उसने ऐसा नहीं किया तो यह राज वह अपनी बेटी को भी बता देगी । सुजीत काफी परेशान हो गया था और तब उसने शकुंतला को ही राश्ते से हटाने का तय कर लिया । चेचक के समय जब अस्वती घर से दूर रहने लगी तब सुजीत को मौका मिल गया । उसने गला दबाकर शकुंतला की हत्या कर दी और लाश को प्लास्टिक ड्रम मे भर कर उसके ऊपर से कंक्रीट डाल कर पाक कर दिया । उसके बाद मैंने और सुजीत ने रात को ऑटो से ड्रम ले जाकर पानी के अंदर डूबा दिया । "

आखिरकार पुलिस ने ऐसा मामला सुलझाया जिसमे न मरने वाले का कोई पता था और ना ही कोई सबूत था । मेरी नजर मे पुलिस द्वारा सुलझाया गया यह एक अद्भुत मामला था ।

शुक्रवार, 24 नवंबर 2023

यह अंतिम चुनाव है जब कांग्रेस के अलावा आप किसी को वोट दे सकते हो, यानी BJP को और उसके जीतने की उम्मीद कर सकते हो

*यह अंतिम चुनाव है जब कांग्रेस के अलावा आप किसी को वोट दे सकते हो, यानी BJP को और उसके जीतने की उम्मीद कर सकते हो ।*
क्योंकि अगले 5 सालों में इतने मुस्लिम बच्चे जो आज 13 साल से 17.9 साल के है , कांग्रेस का वोट बन जायेगा जो हिन्दू बच्चो के वोट से ज्यादा हो जाएगा ।

फिर उन हिन्दू बच्चों में से 25 -50 % अपने राज्य से बाहर रह रहे होंगे , किसी कॉलेज में या किसी नोकरी में 

बाकी बच्चे अलग अलग दलों के बीच बंट जाएंगे


लेकिन मुस्लिम बच्चे सभी लोकल में रहेंगे, लोकल धंधे में लगने के कारण और एकजुट रहेंगे वोट देने में ।

फिर कोई हिन्दू BJP को चाहे कितनी ही मन्नते मांग ले , जीता नहीं सकता । लिख कर ले लो ।


फिर अभो जो सिर्फ उदयपुर में हुआ है ,वह हर शहर में होगा ।😓😓😓

बाकी जो अब भी नहीं समझे ,उसे फिर वक्त ही समझायेगा ।

वोट देने से पहले अपने बच्चों की तरफ जरुर देख लेना ।

छबड़ा , टोंक , करोली इत्यादि में तो दंगे की भी  पूरी संभावनाएं रहती है और हुए भी है ।😰😰


सड़क नही बने अपना जीवन चल जाएगा
बिजली नही आये तो भी चल जाएगा
स्कूल भी नही हो तो भी चल जाएगा

(वैसे ऐसा होगा नही , हर सरकार काम करती ही है इन बेसिक सुविधाओं पर)

पर अगर धर्म चला गया तो conversion ही हाथ मे आएगा ।


और हाँ अगले 05 साल में जितने हिन्दू वोटर मरेंगे उतने मुस्लिम वोटर नही 

क्योंकि हिंदुओं की जिस पीढ़ी में सबसे ज्यादा भाई बहन है वह अब 60-70-80 वर्ष की उम्र के हो चुके है ।

इसके बाद वाली पीढ़ी तो गिनती के भाई बहन वाली है ।

राम मंदिर बनने में तो 75 साल लग गए 

लेकिन टूटने में कितने दिन लगेंगे ???m






🙏🙏
 *विलुप्त होता हुआ सनातन समाज उर्फ़ हिंदू समाज*..!!

गम्भीर विषय है । पढियेगा जरूर ।

देश की बात करना राजनीति है, अपने समाज के बारे में बात करना हिंदू-मुस्लिम करना हुआ..!! 

तेरी मानसिकता ही तेरी विनाश का कारण बनेगा..!! वह मानसिकता, जो कि तुम्हें पूरी तरह से ले डूबेगी...

ये व्यापारियों का ग्रुप है, इसमें राजनीति ना करें...
ये मोहल्ले का ग्रुप है, इसमें राजनीति ना करें...
ये वकीलों का ग्रुप है, इसमें राजनीति ना करें...
ये टीचर्स का ग्रुप है, इसमें राजनीति ना करें...
ये डॉक्टर्स का ग्रुप है, इसमें राजनीति ना करें...
ये समाज का ग्रुप है, इसमें राजनीति ना करें...
ये ऑफिस का ग्रुप है, इसमें राजनीति ना करें...

और न जाने क्या-क्या...!!

▪️गुड मॉर्निग के अनावश्यक 20-20 और 50-50 मैसेज भेजो, कोई परेशानी नहीं...
▪️पति-पत्नियों के ढेर सारे चुटकुले भेजो, कोई परेशानी नहीं...
▪️नए-नए औषधीय प्रयोग भेजो, कोई परेशानी नहीं...
▪️भगवान के 20-20 पोस्टर भेजो, कोई परेशानी नहीं...
▪️100-200 बधाई संदेश भेजो, कोई परेशानी नहीं...
▪️100-200 शोक संदेश भेजो, कोई परेशानी नहीं...
▪️अपने बच्चों की और पारिवारिक उत्सवों की फोटो और वीडियो भेज दो, कोई परेशानी नहीं...

बस देश की बात बिल्कुल मत करो...! देश की बात करना, यानि राजनीति करना हो गया... !
 
सनातन की बात करना यानि हिंदू-मुस्लिम करना हो गया... !
 
क्योंकि इस तरह के मेसेज में सीधा-सीधा आपका अपना कोई स्वार्थ सिद्ध नहीं हो रहा.. । आपकी इमेज नहीं बन रही... । आपकी पहचान नहीं बन रही... । आपकी जय जयकार नहीं हो रही... । आपकी वाह-वाह नहीं हो रही...।

इन्हीं छोटी-छोटी स्वार्थ लोलुपताओं के चलते हम दुनिया से मिटते जा रहे है हिंदुओं... पर हम सुधरेंगे नहीं...। क्योंकि हमें केवल हमारे खाने कमाने से मतलब है...। जबकि "वे" लोग बचपन से ही अपने बच्चों को यही तालीम दे रहे हैं कि, "हिंदू हमारे दुश्मन नंबर एक हैं और उनको इस देश से खतम करके अपना मज़हब  कायम करना है... यही हमारा पहला और आखिरी मकसद है।"

आप देश के बारे में अपने विचार रखना ही नहीं चाहते... क्योंकि वास्तव में आप देश के लिए सोच ही नहीं रहे हो... इसीलिए आपको उससे भी कष्ट होता है कि कहीं कोई तुम्हारे अंदर की सोती हुई सोच को ना जगा दे...। ऐसा हो गया तो फिर मेरे निजी स्वार्थों का क्या होगा..?

यदि आपको यह लेख चुभा है... कुछ पीड़ा हुई है... तो आप सच में एक स्वार्थी व्यक्ति हैं... 
*और यदि आपको लगता है कि, किसी ने आपको झकझोरने का सटीक प्रयास किया है तो आपके लिए निजी स्वार्थ से बढ़कर आपका राष्ट्र भारत है... सनातन धर्म है*...🚩🙏🏻
*साभार-*

एक दिन संघर्षशील कर्मठ ईमानदारी से प्रयास करने वालों का, अज्ञातवास अवश्य समाप्त होगा।

*समय बड़ा बलवान !*


वह शिखंडी से भीष्म को मात दिला सकता है!
कर्ण के रथ को फंसा सकता है!
द्रौपदी का चीरहरण करा सकता है!
अगर किसी से डरना है तोवह है !....समय !

महाभारत में एक प्रसंग आता है, जब धर्मराज युधिष्ठिर ने विराट के दरबार में पहुँचकर कहा-

“हे राजन! मैं व्याघ्रपाद गोत्र में उत्पन्न हुआ हूँ तथा मेरा नाम 'कंक' है। मैं द्यूत विद्या में निपुण हूँ। आपके पास आपकी सेवा करने की कामना लेकर उपस्थित हुआ हूँ।”

द्यूत ......जुआ ......यानि वह खेल जिसमें धर्मराज अपना सर्वस्व हार बैठे थे। कंक बन कर वही खेल वह राजा विराट को सिखाने लगे।

जिस बाहुबली के लिये रसोइये दिन रात भोजन परोसते रहते थे वह भीम बल्लभ का भेष धारण कर स्वयं रसोइया बन गया।

नकुल और सहदेव पशुओं की देखरेख करने लगे।

दासियों सी घिरी रहने वाली महारानी द्रौपदी .......स्वयं एक दासी सैरंध्री बन गयी।

......और वह धनुर्धर। उस युग का सबसे आकर्षक युवक, वह महाबली योद्धा। वह द्रोण का सबसे प्रिय शिष्य। वह पुरुष जिसके धनुष की प्रत्यंचा पर बाण चढ़ते ही युद्ध का निर्णय हो जाता था।वह अर्जुन पौरुष का प्रतीक अर्जुन। नायकों का महानायक अर्जुन।एक नपुंसक बन गया।

एक नपुंसक ?

उस युग में पौरुष को परिभाषित करने वाला अपना पौरुष त्याग कर होठों पर लाली लगा कर ,आंखों में काजल लगा कर एक नपुंसक "बृह्नला" बन गया।

युधिष्ठिर राजा विराट का अपमान सहते रहे। पौरुष के प्रतीक अर्जुन एक नपुंसक सा व्यवहार करते रहे। नकुल और सहदेव पशुओं की देख रेख करते रहे......भीम रसोई में पकवान पकाते रहे और द्रौपदी.....एक दासी की तरह महारानी की सेवा करती रही।

परिवार पर एक विपदा आयी तो धर्मराज अपने परिवार को बचाने हेतु कंक बन गया। पौरुष का प्रतीक एक नपुंसक बन गया।एक महाबली साधारण रसोईया बन गया।

*पांडवों के लिये वह अज्ञातवास नहीं था। अज्ञातवास का वह काल उनके लिये अपने परिवार के प्रति अपने समर्पण की पराकाष्ठा थी।*

वह जिस रूप में रहे।जो अपमान सहते रहे .......जिस कठिन दौर से गुज़रे .....उसके पीछे उनका कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं था। अज्ञातवास का वह काल परिस्थितियों को देखते हुये परिस्थितियों के अनुरूप ढल जाने का काल था !!

आज भी इस धरती में अज्ञातवास जी रहें ,ना जाने कितने महायोद्धा दिखाई देते हैं। कोई धन्ना सेठ की नौकरी करते हुये, उससे बेवजह गाली खा रहा है, क्योंकि उसे अपनी बिटिया की स्कूल की फीस भरनी है।

बेटी के ब्याह के लिये पैसे इकट्ठे करता बाप, एक सेल्समैन बन कर दर दर धक्के खा कर सामान बेचता दिखाई देता है।

*असंख्य पुरुष निरंतर संघर्ष से हर दिन अपना सुख दुःख छोड़ कर अपने परिवार के अस्तिव की लड़ाई लड़ रहे हैं।*

*रोज़मर्रा के जीवन में किसी संघर्षशील व्यक्ति से रूबरू हों तो उसका आदर कीजिये।*

उसका सम्मान कीजिये।

फैक्ट्री के बाहर खड़ा गार्ड......होटल में रोटी परोसता वेटर.....सेठ की गालियां खाता मुनीम....... वास्तव में कंक .......बल्लभ और बृह्नला हैं।

*क्योंकि कोई भी अपनी मर्ज़ी से संघर्ष या पीड़ा नही चुनता, वे सब यहाँ कर्म करते हैं। वे अज्ञातवास जी रहे हैं......!*

*परंतु वह अपमान के भागी नहीं हैं। वह प्रशंसा के पात्र हैं। यह उनकी हिम्मत है.....उनकी ताकत है ......उनका समर्पण है कि विपरीत परिस्थितियों में भी वह डटे हुये हैं।*

*वह कमजोर नहीं हैं ......उनके हालात कमज़ोर हैं.....उनका वक्त कमज़ोर है।*

*याद रहे......*
🔰
*अज्ञातवास के बाद बृह्नला जब पुनः अर्जुन के रूप में आये तो कौरवों के नाश कर दिया। पुनः अपना यश, अपनी कीर्ति सारे विश्व में फैला दी। वक्त बदलते वक्त नहीं लगता इसलिये जिसका वक्त खराब चल रहा हो,उसका उपहास और अनादर ना करें।*

उसका सम्मान करें, उसका साथ दें।

*क्योंकि एक दिन संघर्षशील कर्मठ ईमानदारी से प्रयास करने वालों का, अज्ञातवास अवश्य समाप्त होगा।*

समय का चक्र घूमेगा और बृह्नला का छद्म रूप त्याग कर धनुर्धर अर्जुन इतिहास में ऐसे अमर हो जायेंगे.. कि पीढ़ियों तक बच्चों के नाम उनके नाम पर रखे जायेंगे। इतिहास बृह्नला को भूल जायेगा। इतिहास अर्जुन को याद रखेगा।

*हर संघर्षशील,लग्नशील और कर्मठ व्यक्ति में बृह्नला को मत देखिये। कंक को मत देखिये। बल्लभ को मत देखिये। हर संघर्षशील व्यक्ति में धनुर्धर अर्जुन को देखिये। धर्मराज युधिष्ठिर और महाबली भीम को देखिये।*

*उसका भरपूर सहयोग करिए उसके ईमानदार प्रयासों को सराहे ! क्योंकि याद रखना एक दिन हर संघर्षशील व्यक्ति का अज्ञातवास खत्म होगा।*

यही नियति है।
यही समय का चक्र है।
यही महाभारत की भी सीख है!
*प्रभु सबका कल्याण करें ....*

गुरुवार, 23 नवंबर 2023

बॉलीवुड फिल्मों के पोस्टर को हॉलीवुड से कॉपी किया गया है?

 

  • मर्डर 3
  • ग़जनी
  • एतराज
  • जिंदगी ना मिलेगी दोबारा
  • Ra.One
  • PK
  • गुलाल
  • राउडी राठौर
  • एजेंट विनोद

Image Source:- Google

ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हे दाएं और बाएं में फर्क करना बहुत मुश्किल लगता है, ये मैं आपको केवल दो मिनट में सीखा सकता हूँ,

भारत में ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हे दाएं और बाएं में फर्क करना बहुत मुश्किल लगता है, ये मैं आपको केवल दो मिनट में सीखा सकता हूँ, मैं आपको मेरे स्कुल के दिनों की बात बताना चाहूंगा, लीजिये चलते हैं !

जब मैं १२-१३ साल का था तब मैं भी 'दायाँ और बायाँ' (Right & Left) को लेकर उलझन में था।

एक दिन मैंने अपनी हिंदी पढ़ाने वाली मेडम को बताया की 'मुझे अंग्रेजी में पता हैं कि कोनसा हाथ "Right Hand" हैं और कौनसा "Left Hand" किन्तु हिंदी में दाएं और बाएं मैं मुझे उलझन होती हैं।

वह थोड़ी देर तक मुझे देखती रही और फिर कुछ देर के लिए हँसी, मुझे लगा शायद मैंने कुछ ग़लत पूछ लिया था.. ख़ैर !

अगले दिन उन्होंने पूरी कक्षा को एक नया पाठ पढ़ाया, वही इस प्रश्न का उत्तर हैं।

आइये फिर से मेरे स्कूल में चलते हैं !

हाजरी लेने के बाद मेडम ने मुझे आगे बुलाया (क्योकिं मैं कक्षा का मोनिटर था ☺️) और अपने हाथ की पहली उंगली को अंगूठे से मिलाने और सभी बच्चों को दिखाने के लिए भी कहा !

मैंने जैसा मेडम ने बोला ठीक वैसा ही किया, आप फोटो में देख सकते हैं ।

क्या खास है इस फोटो में ?

कुछ भी तो नहीं ☺️

उन्होंने पूरी कक्षा के हरेक बच्चें से ऐसा करने के लिए कहा, हम सभी बच्चें कुछ नही समझ पा रहे थे कि क्या हो रहा है? क्यों हो रहा हैं?

कुछ बच्चें सोच रहे थे कि मेडम आज कोई नया खेल सिखाने जा रही हैं कुछ सोच रहे थे मेडम कुछ योगासन सिखाने की कोशिश में हैं..!

ख़ैर जब मुझे और मेरी कक्षा में किसी को कुछ समझ नही आया तब मेडम ने हमारी असमंझस को भाँप लिया और तब उन्होंने बोला :- बच्चों आज हम सीखेंगे दाएं और बाएं का फर्क !

हम सभी यह जानने के लिए बहुत उत्साहित थे खास कर के मैं क्योकिं मैंने ही तो कल मेडम को बताया था मुझे ये समझ नही आ रहा था !

अब सवाल के उत्तर पर आ रहा हूँ, यदि आप अपने बाएं (Left) हाथ की पहली उंगली को अंगूठे से मिलते हैं तो आपको अंग्रेजी अक्षर 'b' की जैसी आकृति दिखाई देखी और B = Baayaa'N / बायाँ (Left)।

ठीक इसी तरह अगर आप दाहिने (Right) हाथ से भी ऐसा करते हैं तो आपको अक्षर 'd' की आकृति दिखाई देगी और D =Daaya'N /दायाँ (Right) |

मैं बहुत खुश था, मेडम मुझे देख कर मुस्कुराई, मैं भी बदले में मुस्कुराया। मैंने मेडम को धन्यवाद दिया और उन्होंने मुझे आशीर्वाद। वैसे मैं सरकारी विद्यालय का छात्र था।

वाह, कितना आसान थे ये अंगुली को अंगूठे से मिलाओ 'b' दिखे तो बायाँ 'd' दिखे तो दायाँ ! मैं दाएँ औए बाएँ का अंतर समझ चुका था, उम्मीद करता हूँ आप भी सीख गए होंगे !

पढ़ने के लिए धन्यवाद!

यह कथा उन सभी ईमानदार डॉक्टरो को समर्पित हैं जो किसी की मजबूरी का फायदा नहीं उठाते।*

यह कथा उन सभी ईमानदार डॉक्टरो को समर्पित हैं जो किसी की मजबूरी का फायदा नहीं उठाते।*

वासु भाई और वीणा बेन गुजरात के एक शहर में रहते हैं। आज दोनों यात्रा की तैयारी कर रहे थे। 3 दिन का अवकाश था वे पेशे से चिकित्सक थे ।लंबा अवकाश नहीं ले सकते थे ।परंतु जब भी दो-तीन दिन का अवकाश मिलता ,छोटी यात्रा पर कहीं चले जाते हैं ।

        आज उनका इंदौर - उज्जैन जाने का विचार था । दोनों साथ-साथ मेडिकल कॉलेज में पढ़ते थे, वहीं पर प्रेम अंकुरित हुआ ,और बढ़ते - बढ़ते वृक्ष बना। दोनों ने परिवार की स्वीकृति से विवाह किया । 2 साल हो गए ,संतान कोई थी नहीं ,इसलिए यात्रा का आनंद लेते रहते थे ।

            विवाह के बाद दोनों ने अपना निजी अस्पताल खोलने का फैसला किया , बैंक से लोन लिया ।वीणा बेन स्त्री रोग विशेषज्ञ और वासु भाई डाक्टर आफ मेडिसिन थे ।इसलिए दोनों की कुशलता के कारण अस्पताल अच्छा चल निकला था ।

            आज इंदौर जाने का कार्यक्रम बनाया था । जब मेडिकल कॉलेज में पढ़ते थे वासु भाई ने इंदौर के बारे में बहुत सुना था । नई नई वस्तु है। खाने के शौकीन थे । इंदौर के सराफा बाजार और 56 दुकान पर मिलने वाली मिठाईयां नमकीन के बारे में भी सुना था, साथ ही महाकाल के दर्शन करने की इच्छा थी इसलिए उन्होंने इस बार इंदौर उज्जैन की यात्रा करने का विचार किया था ।

            यात्रा पर रवाना हुए ,आकाश में बादल घुमड़ रहे थे । मध्य प्रदेश की सीमा लगभग 200 किलोमीटर दूर थी। बारिश होने लगी थी।
म.प्र. सीमा से 40 किलोमीटर पहले छोटा शहर पार करने में समय लगा। कीचड़ और भारी यातायात में बड़ी कठिनाई से दोनों ने रास्ता पार किया।
भोजन तो मध्यप्रदेश में जाकर करने का विचार था । परंतु चाय का समय हो गया था ।उस छोटे शहर से चार 5 किलोमीटर आगे निकले ।सड़क के किनारे एक छोटा सा मकान दिखाई दिया ।जिसके आगे वेफर्स के पैकेट लटक रहे थे ।उन्होंने विचार किया कि यह कोई होटल है । वासु भाई ने वहां पर गाड़ी रोकी, दुकान पर गए , कोई नहीं था ।आवाज लगाई , अंदर से एक महिला निकल कर के आई। 
उसने पूछा क्या चाहिए ,भाई ?
           वासु भाई ने दो पैकेट वेफर्स के लिए ,और कहा बेन दो कप चाय बना देना ।थोड़ी जल्दी बना देना , हमको दूर जाना है । 
 पैकेट लेकर के गाड़ी में गए ।वीणा बेन और दोनों ने पैकेट के वैफर्स का नाश्ता किया ।
 चाय अभी तक आई नहीं थी ।
               दोनों कार से निकल कर के दुकान में रखी हुई कुर्सियों पर बैठे ।वासु भाई ने फिर आवाज लगाई ।

            थोड़ी देर में वह महिला अंदर से आई ।बोली -भाई बाड़े में तुलसी लेने गई थी , तुलसी के पत्ते लेने में देर हो गई ,अब चाय बन रही है ।
थोड़ी देर बाद एक प्लेट में दो मैले से कप ले करके वह गरमा गरम चाय लाई। 
            मैले कप को देखकर वासु भाई एकदम से अपसेट हो गए ,और कुछ बोलना चाहते थे ।परंतु वीणाबेन ने हाथ पकड़कर उनको रोक दिया ।

           चाय के कप उठाए ।उसमें से अदरक और तुलसी की सुगंध निकल रही थी ।दोनों ने चाय का एक सिप लिया । ऐसी स्वादिष्ट और सुगंधित चाय जीवन में पहली बार उन्होंने पी ।उनके मन की हिचकिचाहट दूर हो गई।
उन्होंने महिला को चाय पीने के बाद पूछा कितने पैसे ?
महिला ने कहा - बीस रुपये 
वासु भाई ने सौ का नोट दिया ।
          महिला ने कहा कि भाई छुट्टा नहीं है । ₹. 20 छुट्टा दे दो ।वासुभाई ने बीस रु का नोट दिया। महिला ने सौ का नोट वापस किया। 
वासु भाई ने कहा कि हमने तो वैफर्स के पैकेट भी लिए हैं !
           महिला बोली यह पैसे उसी के हैं ।चाय के पैसे नहीं लिए ।

अरे चाय के पैसे क्यों नहीं लिए ?

जवाब मिला ,हम चाय नहीं बेंचते हैं। यह होटल नहीं है ।
-फिर आपने चाय क्यों बना दी ?

- अतिथि आए ,आपने चाय मांगी ,हमारे पास दूध भी नहीं था । यह बच्चे के लिए दूध रखा था ,परंतु आपको मना कैसे करते ।इसलिए इसके दूध की चाय बना दी ।

-अभी बच्चे को क्या पिलाओगे ?

-एक दिन दूध नहीं पिएगा तो मर नहीं जाएगा । इसके पापा बीमार हैं वह शहर जा करके दूध ले आते ,पर उनको कल से बुखार है ।आज अगर ठीक हो जाएगे तो कल सुबह जाकर दूध ले आएंगे। 

            वासु भाई उसकी बात सुनकर सन्न रह गये। इस महिला ने होटल ना होते हुए भी अपने बच्चे के दूध से चाय बना दी और वह भी केवल इसलिए कि मैंने कहा था ,अतिथि रूप में आकर के ।
 संस्कार और सभ्यता में महिला मुझसे बहुत आगे हैं ।
            उन्होंने कहा कि हम दोनों डॉक्टर हैं ,आपके पति कहां हैं बताएं ।महिला उनको भीतर ले गई । अंदर गरीबी पसरी हुई थी ।एक खटिया पर सज्जन सोए हुए थे । बहुत दुबले पतले थे ।
           वासु भाई ने जाकर उनका मस्तक संभाला ।माथा और हाथ गर्म हो रहे थे ,और कांप रहे थे वासु भाई वापस गाड़ी में , गए दवाई का अपना बैग लेकर के आए । उनको दो-तीन टेबलेट निकालकर के दी , खिलाई ।
फिर कहा- कि इन गोलियों से इनका रोग ठीक नहीं होगा ।
              मैं पीछे शहर में जा कर के और इंजेक्शन और इनके लिए बोतल ले आता हूं ।वीणा बेन को उन्होंने मरीज के पास बैठने का कहा ।
 गाड़ी लेकर के गए ,आधे घंटे में शहर से बोतल ,इंजेक्शन ,ले कर के आए और साथ में दूध की थैलीयां भी लेकरआये। 
             मरीज को इंजेक्शन लगाया, बोतल चढ़ाई ,और जब तक बोतल लगी दोनों वहीं ही बैठे रहे ।
एक बार और तुलसी और अदरक की चाय बनी ।
दोनों ने चाय पी और उसकी तारीफ की। 
जब मरीज 2 घंटे में थोड़े ठीक हुए, तब वह दोनों वहां से आगे बढ़े। 

           3 दिन इंदौर उज्जैन में रहकर , जब लौटे तो उनके बच्चे के लिए बहुत सारे खिलौने ,और दूध की थैली लेकर के आए ।
           वापस उस दुकान के सामने रुके ,महिला को आवाज लगाई , तो दोनों बाहर निकल कर उनको देख कर बहुत खुश हो गये। 
उन्होंने कहा कि आप की दवाई से दूसरे दिन ही बिल्कुल स्वस्थ हो गया ।
वासु भाई ने बच्चे को खिलोने दिए ।दूध के पैकेट दिए । फिर से चाय बनी, बातचीत हुई ,अपनापन स्थापित हुआ। वासु भाई ने अपना एड्रेस कार्ड दिया ।कहा, जब भी आओ जरूर मिले ,और दोनों वहां से अपने शहर की ओर ,लौट गये ।

                शहर पहुंचकर वासु भाई ने उस महिला की बात याद रखी। फिर एक फैसला लिया। 

             अपने अस्पताल में रिसेप्शन पर बैठे हुए व्यक्ति से कहा कि ,अब आगे से आप जो भी मरीज आयें, केवल उसका नाम लिखेंगे ,फीस नहीं लेंगे ।फीस मैं खुद लूंगा। 

                और जब मरीज आते तो अगर वह गरीब मरीज होते तो उन्होंने उनसे फीस लेना बंद कर दिया ।
केवल संपन्न मरीज देखते तो ही उनसे फीस लेते ।
             धीरे धीरे शहर में उनकी प्रसिद्धि फैल गई । दूसरे डाक्टरों ने सुना ।उन्हें लगा कि इस कारण से हमारी प्रैक्टिस कम हो जाएगी ,और लोग हमारी निंदा करेंगे । उन्होंने एसोसिएशन के अध्यक्ष से कहा ।
 एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ वासु भाई से मिलने आए ,उन्होंने कहा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हो ?
              तब वासु भाई ने जो जवाब दिया उसको सुनकर उनका मन भी उद्वेलित हो गया ।
वासु भाई ने कहा कि मैं मेरे जीवन में हर परीक्षा में मेरिट में पहली पोजीशन पर आता रहा ।एमबीबीएस में भी ,एमडी में भी गोल्ड मेडलिस्ट बना ,परंतु सभ्यता संस्कार और अतिथि सेवा में वह गांव की महिला जो बहुत गरीब है ,वह मुझसे आगे निकल गयी। तो मैं अब पीछे कैसे रहूं? 

इसलिए मैं अतिथि सेवा में मानव सेवा में भी गोल्ड मेडलिस्ट बनूंगा । इसलिए मैंने यह सेवा प्रारंभ की । और मैं यह कहता हूं कि हमारा व्यवसाय मानव सेवा का है। सारे चिकित्सकों से भी मेरी अपील है कि वह सेवा भावना से काम करें ।गरीबों की निशुल्क सेवा करें ,उपचार करें ।यह व्यवसाय धन कमाने का नहीं ।
परमात्मा ने मानव सेवा का अवसर प्रदान किया है ,
               एसोसिएशन के अध्यक्ष ने वासु भाई को प्रणाम किया और धन्यवाद देकर उन्होंने कहा कि मैं भी आगे से ऐसी ही भावना रखकर के चिकित्सकीय सेवा करुंगा।
*"उपर्युक्त कथा का सम्बंध चिकित्सको से जरूर हैं तो यहाँ पर मेरा मानना यह हैं कि ज्योतिषी भी एक प्रकार का चिकित्सक होता हैं जिसको व्यक्ति अपनी शारीरिक और मानसिक समस्याओं के बारे में वह ज्योतिषी को बताता हैं।तो समस्त ज्योतिषियों को भी उपर्युक्त कथा से सीख लेने की आवश्यकता है।"*

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