11 जनवरी को "जय जवान जय किसान" का नारा देने वाले हमारे देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री की पुण्यतिथि मनाई जाती है। पद के रहते हुए भी साधारण जीवन जीने वाले जिन्होंने प्रधानमंत्री रहते हुए भी खेती करना नहीं छोड़ा।🙏
शास्त्री जी ने प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए भी व्यक्तिगत उपयोग के लिए बैंक से लोन पर कार ली। उनके निधन के बाद बैंक ने शास्त्री जी की पत्नि से कार का लोन चुकाने का कहा जिसे उन्होंने फैमिली पैंशन के पैसे से चुकाया ।
कहा जाता है कि निधन के समय शास्त्री जी के नाम पर कोई मकान भी नहीं था।
साधारण जीवन जीने वाले विशाल व्यक्तित्व के स्वामी शास्त्री जी की मृत्यु कैसे हुई , इस बात का पता आजतक नहीं चल पाया है लेकिन यह बात सभी जानते हैं कि शास्त्रीजी राजनीति दांवपेंच की भेंट चढ़ गए।
शास्त्री जी की पुण्यतिथि पर एक लेख पढ़ा था उसी को साझा कर रही हूं।
देश क्या चाहता था...क्या हो गया...
एक मोड़ जहां से आकाश को चढ़ता देश डगमगा गया...वह मोड़ "शास्त्री" जी का जाना ही तो था, वह नेतृत्व के आदर्शों का हमसे मुंह मोड़ लेना ही तो था!
आज ग्यारह जनवरी को वह कमी जो हमें नित सालती है, ताशकंद में पड़ी वह खाई जो शायद अब तक हम पाट नहीं पाए है...उस पीड़ा ,उस कमी को ये शब्द कहने का प्रयास कर रहे है...जो हमने उनके बाद के युग मे समय समय पर महसूस की है...
हालांकि एक हौसला लेकर ये शब्द निकले है, कि शास्त्री मरेंगे नहीं... वे सदा ज़िंदा रहेंगे हममें, देशप्रथम और नैतिकता के प्रखर आदर्श के रूप में...
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ओ गुदड़ी के लाल...ए कर्म बहादुर...
क्यों गए कंत...क्यों गए कंत
धरती पलक बिछाए बैठी ...
बाट जोहती रही तुम्हारी
कई करोड़ आंखों से ताके ...
जिस तलक दिगन्त...
क्यों गए कंत...
तुम गए तो देखों क्या गया हमारा...
कहें ये कैसे क्या रहा हमारा...
काले दिन हिस्से में आए...
बंध गए हाथ...कैद, शब्द... छंद
क्यों गए कंत....
धागे उधड़े...लोग भी उजड़े..
कई दरख़्त निज जड़ों से उखड़े...
दहशत ख़ूनी....मंडल...अंधजड़
हम हुए नैन संग अंध..
क्यों गए कंत...
देश बिछाए...बैठे आसन पर
जवान किसान को रख ताक़न पर
अगड़े पिछड़े ,हरे केसरी...
बने बस वोट... करें तिरंगा तंग
क्यों गए कंत...
अब खादी का बस रंग ही उजला
उस दिमाग में बसे रुपैया...
जन गण मन की आग लगाकर
जीते सत्ता की जंग...
क्यों गए कंत...
अब अपने ही अपनों को खाए...
देसी रंग ज्यो फिरंगी आए..
इस ठाठ बाट ओ राज पाट में
हुए फ़िर हम परतंत्र...
क्यों गए कंत...
उस ग्यारह को उम्मीदों का
वो गीत कहीं हमने था खोया...
तुम होते जो लाल बहादुर
क्यो होती खादी सत्तातुर
मज़बूती से ताना बाना
रख चलते देश तुम संग..
क्यों चले गए तुम कंत...🙏
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स्रोत - व्हाट्सएप पोस्ट से प्राप्त
लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद 🙏😊
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