यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 11 दिसंबर 2023

हेल्थ आईडी कार्ड, आयुष्मान कार्ड के तहत फ्री इलाज की सुविधा, घर बैठे यूं बनवाए अपना कार्ड ये रहा पूरा प्रोसेस_* #आयुष्मान भारत

हेल्थ आईडी कार्ड, आयुष्मान कार्ड के तहत फ्री इलाज की सुविधा, घर बैठे यूं बनवाए अपना कार्ड ये रहा पूरा प्रोसेस_*

भारतीय प्रधानमंत्री पीएम नरेंद्र मोदी ने आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन की शुरुआत की थी. इस मिशन का उदेश्य देश के हर नागरिक को एक हेल्थ आईडी देना है.
 
अगर आप अभी चाहते हैं तो घर बैठे अपना हेल्थ आईडी कार्ड बना सकते हैं. आपको बता दे कि यह आई डी कार्ड पूरी तरह से डिजिटल सेवा पर आधारित है. यह आधार कार्ड की तरह दिखता है. इस कार्ड पर आपको एक नंबर दिया जाता है, जैसा नंबर आधार कार्ड पर होता है. गूगल प्ले स्टोर पर NDHM हेल्थ रिकॉर्ड (PHR Application) उपलब्ध हो गया है.
 
आपको सबसे पहले https://healthid.ndhm.gov.in/register पर जाना होगा. यहां आपको ऐसा पेज दिखाई देगा. Genrate Via Aadhaar पर क्लिक या टैप करें.
अब आपके सामने यह पेज खुलेगा और आप इसमें अपना आधार नंबर डाल सकते है. इसके बाद आपके इस आधार से लिंक मोबाइल नंबर पर ओटीपी आएगा. इसे सबमिट कर दे.
 
इसके बाद एक और पेज खुलेगा, जिसमें अपना मोबाइल नंबर माँगा जायेगा. इसको डालते ही एक और ओटीपी आएगा. अब इस ओटीपी को डालकर सबमिट कर दे.

इतना करते ही आपके आधार से जुड़े डिटेल आपकी स्क्रीन पर आएगा. आपकी फोटो से लेकर नंबर तक सब कुछ होगा.

अब इस पेज पर थोड़ा नीचे देखेंगे तो आप अपनी हेल्थ आईडी, जैसा कि मेल आईडी बनाएं. नीचे वाले बाक्स में अपनी मेल आईडी डाले. फिर सबमिट करें.

लीजिए आपका हेल्थ कार्ड यूनीक आईडी के साथ तैयार हो गया है. अब इसे डाउनलोड कर लें. जिनके पास मोबाइल नहीं है, वे रजिस्टर्ड सरकारी-निजी अस्पताल, कम्युनिटी हेल्थ सेंटर, प्राइमरी हेल्थ सेंटर, वेलनेस सेंटर और कॉमन सर्विस सेंटर आदि पर कार्ड बनवा सकेंगे.

देखें आपका हेल्थ कार्ड यूनीक आईडी के साथ तैयार हो गया है. अब इसे डाउनलोड कर लें.

🇮🇳 वन्दे मातरम 🇮🇳


*जागरूकता के लिए शेयर अवश्य करें*


शनिवार, 9 दिसंबर 2023

जब नागों की माता पहुंची हनुमान जी की बल-बुद्धि की परीक्षा लेने!!!!

जब नागों की माता पहुंची हनुमान जी की बल-बुद्धि की परीक्षा लेने!!!!

हनुमान जी को आकाश में बिना विश्राम लिए लगातार उड़ते देखकर समुद्र ने सोचा कि ये प्रभु श्री रामचंद्र जी का कार्य पूरा करने के लिए जा रहे हैं। किसी प्रकार थोड़ी देर के लिए विश्राम दिलाकर इनकी थकान दूर करनी चाहिए। उसने अपने जल के भीतर रहने वाले मैनाक पर्वत से कहा, ‘‘मैनाक! तुम थोड़ी देर के लिए ऊपर उठकर अपनी चोटी पर हनुमान जी को बिठाकर उनकी थकान दूर करो।’’ 
समुद्र का आदेश पाकर मैनाक प्रसन्न होकर हनुमान जी को विश्राम देने के लिए तुरंत उनके पास आ पहुंचा। उसने उनसे अपनी सुंदर चोटी पर विश्राम के लिए निवेदन किया तो हनुमान बोले, ‘‘मैनाक ! तुम्हारा कहना ठीक है, लेकिन भगवान श्री राम चंद्र जी का कार्य पूरा किए बिना मेरे लिए विश्राम करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।’’ ऐसा कह कर उन्होंने मैनाक को हाथ से छूकर प्रणाम किया और आगे चल दिए।
हनुमान जी को लंका की ओर प्रस्थान करते देख कर देवताओं ने सोचा कि ये रावण जैसे बलवान राक्षस की नगरी में जा रहे हैं।  अत: इस समय इनके बल-बुद्धि की विशेष परीक्षा कर लेना आवश्यक है। यह सोच कर उन्होंने नागों की माता सुरसा से कहा, ‘‘देवी, तुम हनुमान के बल-बुद्धि की परीक्षा लो।’’

देवताओं की बात सुनकर सुरसा तुरंत एक राक्षसी का रूप धारण कर हनुमान जी के सामने जा पहुंची और उनका मार्ग रोकते हुए बोली, ‘‘वानर वीर ! देवताओं ने आज मुझे तुमको अपना आहार बनाने के लिए भेजा है।’’
उसकी बातें सुनकर हनुमान जी ने कहा, ‘‘माता ! इस समय मैं प्रभु श्री रामचंद्र जी के कार्य से जा रहा हूं। उनका कार्य पूरा करके मुझे लौट आने दो। उसके बाद मैं स्वयं ही आकर तुम्हारे मुंह में प्रविष्ट हो जाऊंगा। यह तुमसे मेरी प्रार्थना है।’’ 

इस प्रकार हनुमान जी ने सुरसा से बहुत प्रार्थना की, लेकिन उसने किसी प्रकार भी उन्हें जाने न दिया। अंत में हनुमान जी ने कुद्ध होकर कहा, ‘‘अच्छा तो लो तुम मुझे अपना आहार बनाओ।’’
उनके ऐसा कहते ही सुरसा अपना मुंह सोलह योजन तक फैलाकर उनकी ओर बढ़ी। हनुमान जी ने भी तुरंत अपना आकार उसका दुगना अर्थात 32 योजन तक बढ़ा लिया। इस प्रकार जैसे-जैसे वह अपने मुख का आकार बढ़ाती गई, हनुमान जी अपने शरीर का आकार उसका  दुगना करते गए। अंत में सुरसा ने अपना मुंह फैलाकर 100 योजन तक चौड़ा कर लिया। 
हनुमान जी तुरंत अत्यंत छोटा रूप धारण करके उसके उस 100 योजन चौड़े मुंह में घुस कर तुरंत बाहर निकल आए। उन्होंने आकाश में खड़े होकर सुरसा से कहा, ‘‘माता ! देवताओं ने तुम्हें जिस कार्य के लिए भेजा था, वह पूरा हो गया है। अब मैं भगवान श्री राम चंद्र जी के कार्य के लिए अपनी यात्रा पुन: आगे बढ़ाता हूं।’’ 
सुरसा ने तब उनके सामने अपने असली रूप में प्रकट होकर कहा, ‘‘महावीर हनुमान ! देवताओं ने मुझे तुम्हारे बल-बुद्धि की परीक्षा लेने के लिए यहां भेजा था। तुम्हारे बल-बुद्धि की समानता करने वाला तीनों लोकों में कोई नहीं है। तुम शीघ्र ही भगवान श्री राम चंद्र जी के सारे कार्य पूर्ण करोगे। इसमें कोई संदेह नहीं है, ऐसा मेरा आशीर्वाद है।
🚩🙏 ॐ हं हनुमते नम:🙏🚩

उत्पन्ना एकादशी आज

उत्पन्ना एकादशी आज 

*********************
प्रत्येक वर्ष मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी का व्रत किया जाता है। इस वर्ष 8 दिसंबर को उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु और माता एकादशी की पूजा की जाती है। हिंदू धर्म के अनुसार, इसे उत्पन्ना एकादशी इसलिए कहते हैं, क्योंकि इस दिन एकादशी माता की उत्पत्ति भगवान विष्णु द्वारा हुई थी। विष्णु जी ने ही इन्हें एकादशी नाम दिया और प्रत्येक व्रत में मां एकादशी को श्रेष्ट होने का वरदान भी दिया। उसके बाद से ही एकादशी का व्रत रखा जाने लगा, साथ ही विष्णु जी की पूजा की जाने लगी।

उत्पन्ना एकादशी का शुभ मुहूर्त
====================
8 दिसंबर को उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखा जाएगा। प्रत्येक वर्ष 24 एकादशी होती है, जिसमें उत्पन्ना एकादशी सबसे महत्वपूर्ण होती है। 8 दिसंबर शुक्रवार को सुबह 5 बजकर 6 मिनट पर उत्पन्ना एकादशी की शुरुआत होगी। शनिवार यानी 9 दिसंबर को 6 बजकर 31 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। ऐसे में आप पूजा 8 तारीख को सुबह 7 बजे से लेकर 10 बजकर 54 मिनट तक कर सकते हैं। साथ ही व्रत का पारण आप अगले दिन 9 तारीख को दिन के समय 1 बजकर 15 मिनट से लेकर 3 बजकर 20 मिनट पर कर सकते हैं।

उत्पन्ना एकादशी की पूजा विधि
=====================
सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करें। विष्णु भगवान की पूजा और उत्पन्ना एकादशी व्रत करने का संकल्प लें। पूजा स्थल पर विष्णु जी और माता एकादशी की तस्वीर रखें। पंचामृत से भगवान विष्णु को स्नान कराएं। धूप, दीप, चंदन, वस्त्र, अक्षत, पान का पत्ता, पीले फूल, फल, मिठाई, सुपारी आदि चढ़ाएं। एकादशी माता को फल, मिठाई, फूल, धूप, दीप, अक्षत, कुमकुम अर्पित करें। विष्णु चालीसा और उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा का पाठ करें। अंत में आरती करें और विष्णु भगवान, माता एकादशी से हाथ जोड़कर आशीर्वाद लें। क्षमा प्रार्थना करें। इस दिन गरीब ब्राह्मण, जरूरतमंदों को पूजा में इस्तेमाल किए गए सामानों को दान कर सकते हैं। उन्हें दक्षिणा दें। फिर अगले दिन पारण करके उत्पन्ना एकादशी व्रत का समापन करें।

उत्पन्ना एकादशी पर करें ये उपाय
======================
1. यदि आपको संतान की प्राप्ति नहीं हो रही है तो पति और पत्नी इस दिन एक साथ पूजा-पाठ और व्रत करें। विधि-विधान से पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है। आपकी अन्य मनोकामनाएं भी पूर्ण होंगी।

2. यदि आप विष्णु जी के साथ इस दिन लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं तो मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। ऐसे में आपके घर में धन की कमी नहीं होती। सुख-समृद्धि में इजाफा हो सकता है।

3. भगवान विष्णु जी की पूजा करने के दौरान ओम नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र जपें। इससे आपकी अधूरी इच्छाएं, मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।

एकादशी व्रत की कथा
*********************
सूतजी कहने लगे- हे ऋषियों! इस व्रत का वृत्तांत और उत्पत्ति प्राचीनकाल में भगवान कृष्ण ने अपने परम भक्त युधिष्ठिर से कही थी। वही मैं तुमसे कहता हूँ।

एक समय यु‍धिष्ठिर ने भगवान से पूछा था ‍कि एकादशी व्रत किस विधि से किया जाता है और उसका क्या फल प्राप्त होता है। उपवास के दिन जो क्रिया की जाती है आप कृपा करके मुझसे कहिए। यह वचन सुनकर श्रीकृष्ण कहने लगे- हे युधिष्ठिर! मैं तुमसे एकादशी के व्रत का माहात्म्य कहता हूँ। सुनो।

सर्वप्रथम हेमंत ऋ‍तु में मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी से इस व्रत को प्रारंभ किया जाता है। दशमी को सायंकाल भोजन के बाद अच्छी प्रकार से दातुन करें ताकि अन्न का अंश मुँह में रह न जाए। रात्रि को भोजन कदापि न करें, न अधिक बोलें। एकादशी के दिन प्रात: 4 बजे उठकर सबसे पहले व्रत का संकल्प करें। इसके पश्चात शौच आदि से निवृत्त होकर शुद्ध जल से स्नान करें। व्रत करने वाला चोर, पाखंडी, परस्त्रीगामी, निंदक, मिथ्याभाषी तथा किसी भी प्रकार के पापी से बात न करे।

स्नान के पश्चात धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह चीजों से भगवान का पूजन करें और रात को दीपदान करें। रात्रि में सोना या प्रसंग नहीं करना चाहिए। सारी रात भजन-कीर्तन आदि करना चाहिए। जो कुछ पहले जाने-अनजाने में पाप हो गए हों, उनकी क्षमा माँगनी चाहिए। धर्मात्मा पुरुषों को कृष्ण और शुक्ल दोनों पक्षों की एकादशियों को समान समझना चाहिए।

जो मनुष्य ऊपर लिखी विधि के अनुसार एकादशी का व्रत करते हैं, उन्हें शंखोद्धार तीर्थ में स्नान करके भगवान के दर्शन करने से जो फल प्राप्त होता है, वह एकादशी व्रत के सोलहवें भाग के भी समान नहीं है। व्यतिपात के दिन दान देने का लाख गुना फल होता है। संक्रांति से चार लाख गुना तथा सूर्य-चंद्र ग्रहण में स्नान-दान से जो पुण्य प्राप्त होता है वही पुण्य एकादशी के दिन व्रत करने से मिलता है।

अश्वमेध यज्ञ करने से सौ गुना तथा एक लाख तपस्वियों को साठ वर्ष तक भोजन कराने से दस गुना, दस ब्राह्मणों अथवा सौ ब्रह्मचारियों को भोजन कराने से हजार गुना पुण्य भूमिदान करने से होता है। उससे हजार गुना पुण्य कन्यादान से प्राप्त होता है। इससे भी दस गुना पुण्य विद्यादान करने से होता है। विद्यादान से दस गुना पुण्य भूखे को भोजन कराने से होता है। अन्नदान के समान इस संसार में कोई ऐसा कार्य नहीं जिससे देवता और पितर दोनों तृप्त होते हों परंतु एकादशी के व्रत का पुण्य सबसे अधिक होता है।

हजार यज्ञों से भी ‍अधिक इसका फल होता है। इस व्रत का प्रभाव देवताओं को भी दुर्लभ है। रात्रि को भोजन करने वाले को उपवास का आधा फल मिलता है और दिन में एक बार भोजन करने वाले को भी आधा ही फल प्राप्त होता है। जबकि निर्जल व्रत रखने वाले का माहात्म्य तो देवता भी वर्णन नहीं कर सकते।

युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन! आपने हजारों यज्ञ और लाख गौदान को भी एकादशी व्रत के बराबर नहीं बताया। सो यह तिथि सब तिथियों से उत्तम कैसे हुई, बताइए।

भगवन कहने लगे- हे युधिष्ठिर! सतयुग में मुर नाम का दैत्य उत्पन्न हुआ। वह बड़ा बलवान और भयानक था। उस प्रचंड दैत्य ने इंद्र, आदित्य, वसु, वायु, अग्नि आदि सभी देवताओं को पराजित करके भगा दिया। तब इंद्र सहित सभी देवताओं ने भयभीत होकर भगवान शिव से सारा वृत्तांत कहा और बोले हे कैलाशपति! मुर दैत्य से भयभीत होकर सब देवता मृत्यु लोक में फिर रहे हैं। तब भगवान शिव ने कहा- हे देवताओं! तीनों लोकों के स्वामी, भक्तों के दु:खों का नाश करने वाले भगवान विष्णु की शरण में जाओ।

वे ही तुम्हारे दु:खों को दूर कर सकते हैं। शिवजी के ऐसे वचन सुनकर सभी देवता क्षीरसागर में पहुँचे। वहाँ भगवान को शयन करते देख हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करने लगे‍कि हे देवताओं द्वारा स्तुति करने योग्य प्रभो! आपको बारम्बार नमस्कार है, देवताओं की रक्षा करने वाले मधुसूदन! आपको नमस्कार है। आप हमारी रक्षा करें। दैत्यों से भयभीत होकर हम सब आपकी शरण में आए हैं।

आप इस संसार के कर्ता, माता-पिता, उत्पत्ति और पालनकर्ता और संहार करने वाले हैं। सबको शांति प्रदान करने वाले हैं। आकाश और पाताल भी आप ही हैं। सबके पितामह ब्रह्मा, सूर्य, चंद्र, अग्नि, सामग्री, होम, आहुति, मंत्र, तंत्र, जप, यजमान, यज्ञ, कर्म, कर्ता, भोक्ता भी आप ही हैं। आप सर्वव्यापक हैं। आपके सिवा तीनों लोकों में चर तथा अचर कुछ भी नहीं है।

हे भगवन्! दैत्यों ने हमको जीतकर स्वर्ग से भ्रष्ट कर दिया है और हम सब देवता इधर-उधर भागे-भागे फिर रहे हैं, आप उन दैत्यों से हम सबकी रक्षा करें।

इंद्र के ऐसे वचन सुनकर भगवान विष्णु कहने लगे कि हे इंद्र! ऐसा मायावी दैत्य कौन है जिसने सब देवताअओं को जीत लिया है, उसका नाम क्या है, उसमें कितना बल है और किसके आश्रय में है तथा उसका स्थान कहाँ है? यह सब मुझसे कहो।

भगवान के ऐसे वचन सुनकर इंद्र बोले- भगवन! प्राचीन समय में एक नाड़ीजंघ नामक राक्षस थ उसके महापराक्रमी और लोकविख्यात मुर नाम का एक पुत्र हुआ। उसकी चंद्रावती नाम की नगरी है। उसी ने सब देवताअओं को स्वर्ग से निकालकर वहाँ अपना अधिकार जमा लिया है। उसने इंद्र, अग्नि, वरुण, यम, वायु, ईश, चंद्रमा, नैऋत आदि सबके स्थान पर अधिकार कर लिया है।

सूर्य बनकर स्वयं ही प्रकाश करता है। स्वयं ही मेघ बन बैठा है और सबसे अजेय है। हे असुर निकंदन! उस दुष्ट को मारकर देवताओं को अजेय बनाइए।

यह वचन सुनकर भगवान ने कहा- हे देवताओं, मैं शीघ्र ही उसका संहार करूंगा। तुम चंद्रावती नगरी जाओ। इस प्रकार कहकर भगवान सहित सभी देवताओं ने चंद्रावती नगरी की ओर प्रस्थान किया। उस समय दैत्य मुर सेना सहित युद्ध भूमि में गरज रहा था। उसकी भयानक गर्जना सुनकर सभी देवता भय के मारे चारों दिशाओं में भागने लगे। जब स्वयं भगवान रणभूमि में आए तो दैत्य उन पर भी अस्त्र, शस्त्र, आयुध लेकर दौड़े।
 
भगवान ने उन्हें सर्प के समान अपने बाणों से बींध डाला। बहुत-से दैत्य मारे गए। केवल मुर बचा रहा। वह अविचल भाव से भगवान के साथ युद्ध करता रहा। भगवान जो-जो भी तीक्ष्ण बाण चलाते वह उसके लिए पुष्प सिद्ध होता। उसका शरीर छिन्न‍-भिन्न हो गया किंतु वह लगातार युद्ध करता रहा। दोनों के बीच मल्लयुद्ध भी हुआ।

10 हजार वर्ष तक उनका युद्ध चलता रहा किंतु मुर नहीं हारा। थककर भगवान बद्रिकाश्रम चले गए। वहां हेमवती नामक सुंदर गुफा थी, उसमें विश्राम करने के लिए भगवान उसके अंदर प्रवेश कर गए। यह गुफा 12 योजन लंबी थी और उसका एक ही द्वार था। विष्णु भगवान वहां योगनिद्रा की गोद में सो गए।
 
मुर भी पीछे-पीछे आ गया और भगवान को सोया देखकर मारने को उद्यत हुआ तभी भगवान के शरीर से उज्ज्वल, कांतिमय रूप वाली देवी प्रकट हुई। देवी ने राक्षस मुर को ललकारा, युद्ध किया और उसे तत्काल मौत के घाट उतार दिया। 
 
श्री हरि जब योगनिद्रा की गोद से उठे, तो सब बातों को जानकर उस देवी से कहा कि आपका जन्म एकादशी के दिन हुआ है, अत: आप उत्पन्ना एकादशी के नाम से पूजित होंगी। आपके भक्त वही होंगे, जो मेरे भक्त हैं।

गुरुवार, 7 दिसंबर 2023

पुण्य का फल देखना चाहता हूं…

रात्रि की कहानी 

पुण्य का फल देखना चाहता हूं…

एक सेठ बस से उतरे, उनके पास कुछ सामान था। आस-पास नजर दौडाई, तो उन्हें एक मजदूर दिखाई दिया। सेठ ने आवाज देकर उसे बुलाकर कहा- “अमुक स्थान तक इस सामान को ले जाने के कितने पैसे लोगे?’…….’आपकी मर्जी, जो देना हो, दे देना, लेकिन मेरी शर्त है कि जब मैं सामान लेकर चलूँ, तो रास्ते में या तो मेरी सुनना या आप सुनाना । सेठ ने डाँट कर उसे भगा दिया और किसी अन्य मजदूर को देखने लगे, लेकिन आज वैसा ही हुआ जैसे राम वन गमन के समय गंगा के किनारे केवल केवट की ही नाव थी। मजबूरी में सेठ ने उसी मजदूर को बुलाया । मजदूर दौड़कर आया और बोला – “मेरी शर्त आपको मंजूर है?”…..सेठ ने स्वार्थ के कारण हाँ कर दी। सेठ का मकान लगभग 500मीटर की दूरी पर था । मजदूर सामान उठा कर सेठ के साथ चल दिया और बोला, सेठजी आप कुछ सुनाओगे या मैं सुनाऊँ। सेठ ने कह दिया कि तू ही सुना। मजदूर ने खुश होकर कहा- ‘जो कुछ मैं बोलू, उसे ध्यान से सुनना , यह कहते हुए मजदूर पूरे रास्ते बोलता गया । और दोनों मकान तक पहुँच गये। मजदूर ने बरामदे में सामान रख दिया , सेठ ने जो पैसे दिये, ले लिये और सेठ से बोला! सेठजी मेरी बात आपने ध्यान से सुनी या नहीं।

सेठ ने कहा, मैने तेरी बात नहीं सुनी, मुझे तो अपना काम निकालना था। मजदूर बोला-” सेठजी! आपने जीवन की बहुत बड़ी गलती कर दी, कल ठीक सात बजे आपकी मौत होने वाली है”। सेठ को गुस्सा आया और बोले: तेरी बकवास बहुत सुन ली, जा रहा है या तेरी पिटाई करूँ???:….. मजदूर बोला: मारो या छोड दो, कल शाम को आपकी मौत होनी है, अब भी मेरी बात ध्यान से सुन लो । अब सेठ थोड़ा गम्भीर हुआ और बोला: सभी को मरना है, अगर मेरी मौत कल शाम होनी है तो होगी , इसमें मैं क्या कर सकता हूं । मजदूर बोला: तभी तो कह रहा हूं कि अब भी मेरी बात ध्यान से सुन लो। सेठ बोला: सुना, ध्यान देकर सुनूंगा । मरने के बाद आप ऊपर जाओगे तो आपसे यह पूछा जायेगा कि “हे मनुष्य ! पहले पाप का फल भोगेगा या पुण्य का “क्योंकि मनुष्य अपने जीवन में पाप-पुण्य दोनों ही करता है, तो आप कह देना कि पाप का फल भुगतने को तैयार हूं लेकिन पुण्य का फल आँखों से देखना चाहता हूं ।

इतना कहकर मजदूर चला गया । दूसरे दिन ठीक सात बजे सेठ की मौत हो गयी। सेठ ऊपर पहुँचा तो यमराज ने मजदूर द्वारा बताया गया प्रश्न कर दिया कि ‘पहले पाप का फल भोगना चाहता है कि पुण्य का’ । सेठ ने कहा ‘पाप का फल भुगतने को तैयार हूं लेकिन जो भी जीवन में मैंने पुण्य किया हो, उसका फल आंखों से देखना चाहता हूं। यमराज बोले-” हमारे यहाँ ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, यहाँ तो दोनों के फल भुगतवाए जाते हैं।” सेठ ने कहा कि फिर मुझसे पूछा क्यों, और पूछा है तो उसे पूरा करो, धरती पर तो अन्याय होते देखा है, पर यहाँ पर भी अन्याय है। यमराज ने सोचा, बात तो यह सही कह रहा है, इससे पूछकर बड़े बुरे फंसे, मेरे पास कोई ऐसी पावर ही नहीं है, जिससे इस जीव की इच्छा पूरी हो जाय, विवश होकर यमराज उस सेठ को ब्रह्मा जी के पास ले गये , और पूरी बात बता दी

ब्रह्मा जी ने अपनी पोथी निकालकर सारे पन्ने पलट डाले, लेकिन उनको कानून की कोई ऐसी धारा या उपधारा नहीं मिली, जिससे जीव की इच्छा पूरी हो सके। ब्रह्मा भी विवश होकर यमराज और सेठ को साथ लेकर भगवान के पास पहुचे और समस्या बतायी । भगवान ने यमराज और ब्रह्मा से कहा: जाइये , अपना -अपना काम देखिये , दोनों चले गये। भगवान ने सेठ से कहा- “अब बोलो, तुम क्या कहना चाहते हो?…सेठ बोला- “अजी साहब, मैं तो शुरू से एक ही बात कह रहा हूं कि पाप का फल भुगतने को तैयार हूं लेकिन पुण्य का फल आँखों से देखना चाहता हूं ।

भगवान बोले- “धन्य है वो सदगुरू(मजदूर) जो तेरे अंतिम समय में भी तेरा कल्याण कर गया , अरे मूर्ख ! उसके बताये उपाय के कारण तू मेरे सामने खडा है, अपनी आँखों से इससे और बड़ा पुण्य का फल क्या देखना चाहता है। मेरे दर्शन से तेरे सभी पाप भस्मीभूत हो गये। इसीलिए बचपन से हमको सिखाया जाता है कि, गुरूजनों की बात ध्यान से सुननी चाहिए , पता नहीं कौन सी बात जीवन में कब काम आ जाए।

जय श्रीराम

मंगलवार, 5 दिसंबर 2023

आज है काल भैरव अष्टमी शिवजी के भैरव रूप की पूजा का है दिन

आज है काल भैरव अष्टमी
**********************
शिवजी के भैरव रूप की पूजा का है दिन 
==========================
आज यानी 5 दिसंबर को काल भैरव अष्टमी है। इसे कालाष्टमी भी कहते हैं। इस दिन शिवजी के भैरव रूप की पूजा की जाती है। काल भैरव अष्टमी यानी कालाष्टमी का त्यौहार हर माह की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन कालभैरव की पूजा की जाती है जिन्हें शिवजी का एक अवतार माना जाता है. इसे कालाष्टमी, भैरवाष्टमी आदि नामों से जाना जाता है। आज के दिन मां दुर्गा की पूजा और व्रत का भी विधान माना गया है।

कालाष्टमी व्रत विधि 
=============
नारद पुराण के अनुसार कालाष्टमी के दिन कालभैरव और मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। इस रात देवी काली की उपासना करने वालों को अर्ध रात्रि के बाद मां की उसी प्रकार से पूजा करनी चाहिए जिस प्रकार दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि को देवी कालरात्रि की पूजा का विधान है।

इस दिन शक्ति अनुसार रात को माता पार्वती और भगवान शिव की कथा सुन कर जागरण का आयोजन करना चाहिए. आज के दिन व्रती को फलाहार ही करना चाहिए. कालभैरव की सवारी कुत्ता है। अतः इस दिन कुत्ते को भोजन करवाना शुभ माना जाता है।

क्यों रखा जाता है कालाष्टमी का व्रत 
======================
कथा के अनुसार एक दिन भगवान ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठ होने का विवाद उत्पन्न हुआ. विवाद के समाधान के लिए सभी देवता और मुनि शिव जी के पास पहुंचे. सभी देवताओं और मुनि की सहमति सेशिव जी को श्रेष्ठ माना गया. परंतु ब्रह्मा जी इससे सहमत नहीं हुए. ब्रह्मा जी, शिव जी का अपमान करने लगे.
अपमान जनक बातें सुनकर शिव जी को क्रोध आ गया जिससे कालभैरव का जन्म हुआ. उसी दिन से कालाष्टमी का पर्व शिव के रुद्र अवतार कालभैरव के जन्म दिन के रूप में मनाया जाने लगा।

कालाष्टमी व्रत फल 
==============
कालाष्टमी व्रत बहुत ही फलदायी माना जाता है. इस दिन व्रत रखकर पूरे विधि-विधान से काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति के सारे कष्ट मिट जाते हैं काल उससे दूर हो जाता है. इसके अलावा व्यक्ति रोगों से दूर रहता है और उसे हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है।

इस मंत्र का करें जाप
----------------------------
शिव पुराण में कहा है कि भैरव परमात्मा शंकर के ही रूप हैं इसलिए आज के दिन इस मंत्र का जाप करना फलदायी होता है

अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्, 
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!!

भैरव अष्टमी की पौराणिक कथा
*************************
एक बार की बात है, ब्रह्मा, विष्णु, महेश इन तीनों में श्रेष्ठता की लड़ाई चली। इस बात पर बहस बढ़ गई तो सभी देवताओं को बुलाकर बैठक की गई। सबसे यही पूछा गया कि श्रेष्ठ कौन है। सभी ने अपने अपने विचार व्यक्त किए और उतर खोजा लेकिन उस बात का समर्थन शिवजी और विष्णु ने तो किया परन्तु ब्रह्माजी ने शिवजी को अपशब्द कह दिए। इस बात पर शिवजी को क्रोध आ गया और शिवजी ने अपना अपमान समझा। 

शिवजी ने उस क्रोध में अपने रूप से भैरव को जन्म दिया। इस भैरव अवतार का वाहन काला कुत्ता है। इनके एक हाथ में छड़ी है इस अवतार को महाकालेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। इसलिए ही इन्हें दंडाधिपति कहा गया है। शिवजी के इस रूप को देख कर सभी देवता घबरा गए। भैरव ने क्रोध में ब्रह्मा जी के पांच मुखों में से एक मुख को काट दिया। तब से ब्रह्मा के पास चार मुख है। इस प्रकार ब्रह्माजी के सर को काटने के कारण भैरव जी पर ब्रह्महत्या का पाप आ गया। ब्रह्माजी ने भैरव बाबा से माफ़ी मांगी तब जाकर शिवजी अपने असली रूप में आए। 

भैरव बाबा को उनके पापों के कारण दंड मिला इसीलिए भैरव को कई दिनों तक भिखारी की तरह रहना पड़ा। इस प्रकार कई वर्षो बाद वाराणसी में इनका दंड समाप्त होता हैं। इसका एक नाम दंडपाणी पड़ा था। इस प्रकार भैरव जयंती को पाप का दंड मिलने वाला दिवस भी माना जाता है।
 

शनिवार, 2 दिसंबर 2023

74 वर्षों से लगा हुआ कलंक सिर्फ 30 मिनट में हटाया*भारत पिछले 74 साल से एक जहरीले कीड़े से पीड़ित था, जिसका नाम है *संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह* UNMO *United Nations Military Observer*

*74 वर्षों से लगा हुआ कलंक सिर्फ 30 मिनट में हटाया*
भारत पिछले 74 साल से एक जहरीले कीड़े से पीड़ित था, जिसका नाम है *संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह* UNMO *United Nations Military Observer*
 अब इसे मोदी सरकार ने खत्म कर दिया।

विदेश मंत्री एस जयशंकर जी ने इसमें बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। केवल 30 मिनट में इस पूरी समिति को अगले दस दिनों के भीतर भारत छोडने का आदेश दे दिया गया!

संयुक्त राष्ट्र की एक समिति संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह को भारत ने भारत से बाहर का रास्ता दिखा दिया है! 
 यह कमेटी 1948 से भारत में काम कर रही थी और कश्मीर मसले पर भारत और पाकिस्तान के रवैए खासकर खुद भारत के रवैए पर पैनी नजर रख रही थी!
  काम करने, घूमने, रहने, खाने-पीने, उठने-बैठने का सारा खर्च भारत उठा रहा था! 
 इस कमेटी ने भारत के खिलाफ काफी कड़े बयान दिए थे। उन्होंने कश्मीर को द्विपक्षीय मामला न बनाकर त्रिपक्षीय घोषित करने की कोशिश की और साथ ही भारत पर गंभीर आरोप लगाए जैसे "भारत हमारे, भारत और पाकिस्तान के बीच संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह के काम में बाधा डाल रहा है ताकि समिति ठीक से काम न कर सके"।
समिति यहीं नहीं रुकी... उन्होंने आगे कहा "वह राशि जो भारत हमें देता है हमारे खर्चों को कवर नहीं करता है। 
इसलिए भारत को हमारे भत्ते और खर्च बढ़ाने होंगे और भारत को इसका भुगतान करना होगा!"

ऐसा हुआ कि जिस कुत्ते को हमने पाल रखा था, वह हमारा खा रहा था और हम पर ही भौंक रहा था और तो अब काटने भी लगा था।
इस पर भारत सरकार ने उनसे इतना ही कहा: "तुम्हारे नाटक से हमने बहुत कुछ सहा है। अब तुम यहाँ से फौरन चले जाओ"। "तुम्हारे लिए भारत में कोई जगह नहीं बची है!" 
 केवल 30 मिनट में मोदी सरकार ने उनका वीजा रद्द कर दिया और उन्हें भारत छोडकर तुरंत अपने देश जाने के लिए कहा... 
अगले 10 दिनों के भीतर!!!
 पिछले 74 वर्षों से भारत इनमें से 40 से अधिक लोगों का खर्च वहन कर रहा था, 
जिन्हें अब निर्वासित कर दिया गया है!
और आपको पता है 74 वर्ष पूर्व उन्हें कौन लाया था...?
कांग्रेसियों के चिचा जान "जवाहर लाल नेहरू"!

99% जनता को तो इसकी जानकारी ही नहीं होगी कि अंग्रेजो की एक टीम आज तक भारत पर राज कर रहीं थीं *इन कांग्रेसियों के कारण से'*
आज मोदी जी ने अंग्रेजो के आखिरी स्तम्भ को भी भारत से उखाड़ फेंकने का कार्य किया है ''
🙏🙏वन्देमातरम 🙏🙏

*इस संदेश को कम से कम पांच ग्रुप में जरूर भेजे, ताकि समस्त भारतीयों को कांग्रेस की छद्म राजनीति के संबंध में पता चले*

बुधवार, 29 नवंबर 2023

ऐसी तसवीरें साझा कर सकते हैं जो हमें हँसने पर मजबूर कर दे

2.

3.

4.

5.

6.

7.

8.

9.

10.


सिर्फ भोपाल ही नहीं, ऐसी कई घटनाएं हैं जो हमारे राजनैतिक भ्रस्टाचार और नाकामियों की गवाही बनी हैं.

 

सिर्फ भोपाल ही नहीं, ऐसी कई घटनाएं हैं जो हमारे राजनैतिक भ्रस्टाचार और नाकामियों की गवाही बनी हैं. दिसंबर 2, 1984 की वो काली और गन्दी रात, जो शायद सिर्फ भोपालवासी ही नहीं हम पूरे देशवासी कभी नहीं भुला पाएंगे. यूनियन कार्बाइड की कीटनाशक बनाने वाली संयंत्र से अचानक मिथाइल इसोसयनिट (Methyl Isocyanate) गैस का रिसाव शुरू हुआ और देखते देखते आधिकारिक तौर पर 15000 ज़िन्दगियों को लील गया और 5 लाख लोगों को घायल कर गया, जिन्होंने भारी कष्ट झेले. सबसे तकलीफदेह बात तो ये है की आज भी यानी लगभग 35 सालों के बाद भी ये साबित नहीं हो पाया की एंडरसन को अमेरिका भागने में कौन-कौन दोषी थे. हाय रे कानून!!!!

(एंडरसन की तस्वीर पर थूकती एक पीड़ित महिला) image source : News: India News, Latest Bollywood News, Sports News, Business & Political News, National & International News | Times of India

3 दिसंबर 1984 की शाम हनुमानगंज, भोपाल पुलिस थाने में केस दर्ज हुआ। यूनियन कार्बाइड के मालिक वारेन एंडरसन, जो की एक अमेरिकी थे, को खबर गयी कि उनके भोपाल स्थित फैक्ट्री में कुछ दुर्घटना हुई है. चूँकि मीडिया आज के इतना अग्रेसिव और तादाद में नहीं था, इस वजह से वो सिर्फ जायजा लेने हिंदुस्तान आया था. 7 दिसंबर की सुबह 9.30 बजे इंडियन एयरलाइंस के विमान से भोपाल पहुंचा। एयरपोर्ट पर तत्कालीन एसपी स्वराज पुरी और डीएम मोती सिंह ने उसे रिसीव किया।

सुबह करीब 11 बजे बजे भोपाल के एसपी और डीएम, वारेन एंडरसन को एक सफेद एंबेसडर कार में यूनियन कार्बाइड के रेस्ट हाउस ले गए और वहीं उसे हिरासत में लिए जाने की जानकारी दी गई। इसी बीच एक गलती हो गयी. रेस्ट हाउस में रखे लैंडलाइन फ़ोन का कनेक्शन कट नहीं किया गया और ना ही एंडरसन पर निगरानी रखी गयी. उसने लगभग 20 मिनट किसी से फ़ोन पर बात की. फ़ोन पर अमेरिकियों से बात करते देख उस समय के जिला पदाधिकारी मोती सिंह जी ने उसे पुनः हिरासत में लिया. लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. उसके थोड़ी ही देर बाद कुछ अजीब हुआ.

उस समय के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह जी किसी रैली को सम्बोधित कर रहे थे और बीच रैली में ही उनको फ़ोन रिसीव करने के लिए अपना भाषण बंद करना पड़ा. दुसरे तरफ से उन्हें एक आदेश आया, जिसमे उन्हें वारेन एंडरसन को तत्काल छोड़ने को कहा गया.

दोपहर 3.30 बजे उस समय के पुलिस आरक्षी यानी एस पी स्वराज पूरी ने एंडरसन को बताया की आपके अमेरिका जाने का बंदोबस्त कर दिया गया है. 25,000 रुपए का बॉन्ड और कुछ जरूरी कागजों पर साइन करने के बाद एस पी पूरी उनके साथ भोपाल एयरपोर्ट तक आकर उसे फ्लाइट में बिठा दिया. दिल्ली के इंदिरा गाँधी एयरपोर्ट पर आने के बाद एयरपोर्ट के अंदर ही अंदर केंद्र सरकार की मदद से व्यवस्थित अमेरिका जाने वाले विमान में उसे बिठा दिया गया.

उस समय के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह जी ने अपने आत्मकथा में उस घटना का जिक्र करते हुए उस समय के विदेश सचिव आर डी प्रधान का जिक्र किया था, की फ़ोन पर निर्देश देने वाले व्यक्ति वही थे जिन्होंने तत्कालीन गृह मंत्री पी वी नरसिम्हा राव जी के आदेश पर अर्जुन सिंह जी को एंडरसन को तत्काल रिहा करवाने को बोला था. गौरतलब है की उस वक़्त राजीव गाँधी प्रधानमंत्री थे.

उसके बाद एंडरसन कभी भारत नहीं आया. हालांकि उसने वादा किया था की कोर्ट का सम्मान करेगा और हरेक ट्रायल पर वो भारत आएगा, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ. जस्टिस कोचर कमीशन का गठन हुआ उसमे उसे जिस हवाई जहाज़ के द्वारा दिल्ली ले जाय गया था, उसके चालक कप्तान हाफ़िज़ अली और उपचालक कप्तान ग्रोवर ने ये जानकारी दी की उनको ये कतई जानकारी नहीं थी की उस विमान में बैठा हुआ शख्श वारेन एंडरसन है, क्योंकि वो एक रेगुलर फ्लाइट थी.

यात्रा लॉग बुक, जिसे एक महत्त्वपूर्ण सबूत माना जा सकता था, उसे भी नष्ट कर दिया गया. कप्तान हाफ़िज़ अली ने कबूला की उन्होंने सिर्फ एस पी पूरी को एंडरसन को फ्लाइट में बिठाते हुए देखा और इंदिरा गाँधी एयरपोर्ट पर एंडरसन को रिसीव करने वाले कोई अनजान व्यक्ति था, जिसे वो नहीं पहचानते थे.

कई कमिटियां बनी और कई गवाहियां हुई. 2011 में अर्जुन सिंह और 2014 में वारेन एंडरसन, दोनों ही ऊपर चले गए, लेकिन एक अबूझ, रहस्यमयी पहेली हम भारतवासियों के लिए छोड़ गए, की आखिर वो कौन सा दबाव था, जिसने लाखों लोगों के गुनाहगार को भारत से भगाने में मदद की थी. हमें एक दूषित राजनैतिक इक्षाशक्ति को कोसने के अलावे कुछ नहीं मिला.


पहली तस्वीर वारेन एंडरसन की है, वारेन एंडरसन उसी यूनियन कार्बायड कम्पनी का मालिक था जिसकी कम्पनी में आज से 35 साल पहले आज के ही दिन मीथेन गैस के रिसने से हज़ारों जाने चली गयीं थी और लाखों लोगों पर उसका असर पड़ा था। लेकिन वारेन एंडरसन को पकड़ने के बावजूद रिहा कर दिया गया, और रिहा ही नहीं किया गया बल्कि उसके अमेरिका जाने का इंतज़ाम भी करवाया गया। और ये सब किया गया था उस आदमी के लिए जिसकी तस्वीर एंडरसन के बाजु में लगी हुई है।

उसका नाम था आदिल शहरयार...

कौन था आदिल शहरयार और क्या थी वारेन एंडरसन को छोड़े जाने के पीछे की कहानी...आइए जानते हैं...

3 दिसम्बर 1984, भोपाल के Union Carbide के कारख़ाने से मिथेन गैस रिसती है और 15000 से ज़्यादा लोग मर जाते हैं लाखों लोग विकलांग हो जाते हैं..

Union Carbide के मालिक वॉरन एंडरसन को भोपाल में गिरफ़्तार कर लिया जाता है। यूनियन कॉर्बायड अमेरिका की एक MNC है, जिसके मालिक को गिरफ़्तार करते ही अमेरिका का भारतीय दूतावास भारत पर दबाव बनाने की कोशिश शुरू कर देता है।

राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बने अभी 1 महीना और 3 दिन ही हुए हैं, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह हैं।

थोड़ा पीछे चलते हैं, नेहरु और बाद में इंदिरा गांधी के बहुत ज़्यादा क़रीबी रहे मुहम्मद यूनुस का बेटा अमेरिका की एक जेल में बंद है, आरोप आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने का है और जिसमें सज़ा उन्हें उम्र क़ैद की मिली हुई है, जिसके लिए उन्हें जीवन पर्यन्त जेल में ही रहना पड़ेगा।

वापस 6 दिसम्बर 84 पर आते हैं, गैस कांड में मरने वालों की संख्या बढ़ रही है, जनता का ग़ुस्सा भी बढ़ रहा है, और साथ ही बढ़ रहा है अमेरिका का भारत सरकार पर वॉरन एंडरसन को छोड़ने का प्रेशर।

इस बीच अमेरिका से एक डील होती है, वॉरन एंडरसन को रिहा करने के बदले प्रधानमंत्री राजीव गांधी के “भाई जैसे” बचपन के मित्र आदिल शहर्यार को रिहा करने की।

7 दिसम्बर 84, भोपाल के SP स्वराज पूरी के पास एक फ़ोन आता है कि “ऊपर से” निर्देश हैं, एंडरसन को रिहा किया जाए, SP और कलेक्टर ख़ुद सरकारी गाड़ी से एंडरसन को जेल से हवाई अड्डे छोड़ने जाते हैं, कार ख़ुद SP चला रहे हैं और कलेक्टर एंडरसन के बाजु में पीछे की सीट पर बैठे हैं। हवाई अड्डे पर एंडरसन को दिल्ली छोड़ने के लिए एक स्पेशल विमान खड़ा है जहाँ उन्हें विदा करने के लिए अर्जुन सिंह भी आते हैं, भोपाल से दिल्ली पहुँचते ही वहाँ एक स्पेशल चार्टर्ड खड़ा है जो एंडरसन को अमेरिका ले जाता है।

और कुछ ही महीनों बाद राजीव गांधी के अमेरिका दौरे के पहले ही दिन अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रॉनल्ड रीगन राजीव गांधी जी के “भाई जैसे” बचपन के मित्र की सज़ा माफ़ कर उन्हें रिहा कर देते हैं। अमेरिका के पूरे ज्ञात इतिहास में आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ है कि राष्ट्रपति ने फ़ेडरल कोर्ट के फ़ैसले को पलट दिया हो।

अब कुछ लोग इस बात को पढ़कर कोंग्रेस और राजीव गांधी जी को भला बुरा कहने लगेंगे, जबकि ये कहानी दोस्त की दूसरे दोस्त से किसी भी क़ीमत पर दोस्ती निभाने की है, जनता का क्या, जनता तो मरती ही रहती है...

 

दुर्वासा ऋषि बहुत क्रोधी स्वभाव के थे लेकिन फिर वह इतने सिद्ध पुरुष कैसे थे?

 

"ऋषि दुर्वासा का नाम सुनते ही मन में श्राप का भय पैदा हो जाता है की कंही हमको कोई श्राप न दे दे उनका खौफ्फ़ तो देवो में भी रहता है तो हम तो साधारण इंसान है. जाने "

"दुर्वासा" नाम तो सुना ही होगा? इसका अर्थ है जिसके साथ न रहा जा सके, वैसे भी क्रोधी व्यक्ति से लोग दूर ही रहते है लेकिन दुर्वासा ऋषि के तो हजारो शिष्य थे जो साथ ही रहते थे. कब जन्मे कैसे पले बढ़े और अब कहा है दुर्वासा ऋषि ये तो आपको बिलकुल भी पता नहीं होगा.
सबसे पहले जाने दुर्वासा के जन्म और नामकरण की कथा, ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार एक बार शिव और पारवती में तीखी बहस हुई. गुस्से में आई पारवती ने शिव जी से कह दिया की आप का ये क्रोधी स्वाभाव आपको साथ न रहने लायक बनाता है, तब शिव ने अपने क्रोध को अत्रि ऋषि की पत्नी अनुसूया के गर्भ में स्थापित कर दिया.
इसी के चलते अत्रि और अनुसूया के पुत्र दुर्वासा का नामकरण भी पारवती के साथ न रहने लायक कहने के चलते दुर्वासा ही रखा गया. इसके पहले अनुसूया के त्रिदेवो को बालक बनाकर पुत्र रूप में मांगने की कथा तो आपने सुन ही रखी होगी अब जाने आगे की कहानी.

image sources : pinterest

दुर्वासा ऋषि की शिक्षा पिता के सानिध्य में ही हुई थी लेकिन जल्द ही वो तपस्पि स्वाभाव के होने के चलते माता पिता को छोड़ वन में विचरने लगे थे. तब उनके पास एक ऋषि अपनी बेटी के साथ दुर्वासा के पास आये और उनसे अपनी बेटी का पाणिग्रहण करवा दिया. ऋषि ने दुर्वासा से अपनी बेटी के सब गुण कहे पर साथ में बताया उसका एक अवगुण जो सबपे भारी था.

ऋषि की लड़की का नाम था कंडली और उसमे एक ही अवगुण था की वो कलहकारिणी थी, दुर्वासा के उग्र स्वाभाव को जान ऋषि ने दुर्वासा से उसके सभी अपराध माफ़ करने की अपील की. ऐसे में दुर्वासा ने कहा की मैं अपनी पत्नी के 100 अपराध क्षमा करूँगा उसके बाद नहीं.

दोनों की शादी हो गई और ब्रह्मचारी दुर्वासा गृहस्थी में पड़ गए, लेकिन अपने स्वाभाव के चलते कंदली बात बात पर पति से कलह करती और अपने वरदान के चलते दुर्वासा को क्रोध सहना पड़ा.

image sources : kraftindia

जिन दुर्वासा के क्रोध से सृष्टि के जिव कांपते थे वो ही तब अपनी पत्नी के क्रोध से कांपते थे, कांपते इसलिए थे की उन्होंने वरदान दे दिया था और वो कुछ नहीं कर सकते थे. आलम ये था की दुर्वासा ने 100 से ज्यादा गलतिया (पत्नी की) माफ़ की लेकिन एक दिन उनका पारा असहनीय हो गया और उन्होंने तब अपनी ही पत्नी कंदली को भस्म कर दिया.

तभी उनके ससुर आ पहुंचे और दुर्वासा की ये करनी देख उन्होंने उन्हें श्राप दे दिया और कहा की तुमसे सहन नहीं हुई तो उसका त्याग कर देना चाहिए था इसे मारा क्यों. इसी गलती के चलते दुर्वासा को अमरीश जी से बेइज्जत होना पड़ा था, अन्यथा रुद्रावतार का सुदर्शन क्या कर सकता था.

उस घटना के दिन से ही कंदली की राख कंदली जाती बन गई और आज भी वो जाती मौजूद है....... इसके आलावा श्री कृष्ण की वो बहिन (यशोदा की बेटी) जिसे कंस ने मारना चाहा था बाद में वासुदेव देवकी ने पाला और दुर्वासा से ही उनका तब विवाह हुआ था. उसका नाम था एकविंशा है न अद्भुद कथा...

image sources : dandvats

कर्ण से प्रेरित दुर्योधन ने योजनाबद्ध तरीके से दुर्वासा ऋषि और उनके हजारो शिष्यों को वनवासी पांडवो के पास तब भेजा जब वो भोजन कर चुके थे. हालाँकि पांडवो के पास अक्षय पात्र था लेकिन जब तक द्रौपदी न खाली तब तक ही उसमे भोजन रहता था और द्रौपदी तब खा चुकी थी.

ऐसे में दुर्वासा पहुँच गए और स्नान के लिए नदी किनारे गए तो द्रौपदी ने श्री कृष्ण को याद किया, श्री कृष्ण उस समय भोजन की थाली पर बैठे थे और थाली छोड़ कर अपनी परम भक्त की मदद को पहुँच गए. श्री कृष्ण ने तब अक्षय पात्र में बचे तिनके को खाकर अपनी और समस्त संसार की भूख शांत कर दी जिसमे दुर्वासा जी भी शामिल थे.

लेकिन दुर्वासा जान गए थे श्री कृष्ण की ये करनी, तब दुर्वासा जी ने श्री कृष्ण से कहा की शास्त्रों का लेख है की परोसी हुई थाली नहीं छोड़नी चाहिए और किसी का झूठा नहीं खाना चाहिए. आपने ऐसा किया है इसलिए आप को मेरा श्राप है की भोजन के लिए लड़ते हुए ही आपका वंश नाश हो जायेगा और ऐसा ही हुआ था.

लेकिन श्री कृष्ण सशरीर ही गोलोक गए थे हालाँकि कई जगह उन्हें देह त्याग की भी बात लिखी गई है, इसलिए परोसी हुई थाली न छोड़े और किसी का जूठा भी न खाये.

function disabled

Old Post from Sanwariya