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सोमवार, 22 जनवरी 2024

राम मंदिर न बन पाए, इसके लिए सबसे पहले गम्भीर प्रयास किसका रहा?

राम मंदिर न बन पाए, इसके लिए सबसे पहले गम्भीर प्रयास किसका रहा?
मंदिर निर्माण का श्रेय जिसे है मिल रहा है..उनकी बल्ले बल्ले हैं… जिन्हें नही मिल रहा मुंह फुलाये पड़े हैं और अड़ंगे लगाने का अथक प्रयास कर रहे हैं, उनकी एक ही तमन्ना है…कैसे भी प्राण प्रतिष्ठा टल जाए…
चलिए बनाने का श्रेय लेने सभी सामने आ रहे हैं…पर इसे न बनाने देने का का श्रेय भला कौन लेना चाहेगा…? स्वीकार भले ही कोई न करे, पर भारत जानता है कि पर्दे के सामने और पीछे से अड़ंगे लगाने में कौन सक्रिय रहा है..!

हालांकि 1992 के बाद से खुलेआम मंदिर का विरोध करने वालों की संख्या कम होती गयी और 2019 तक ऐसी स्थिति बन गयी थी कि कोई भी मंदिर के विरोध में मुंह सिर्फ किंतु परन्तु के साथ ही खोलता था।

पर एक ऐसा शख्स जो आजीवन मंदिर बनने के विरोध में खड़ा रहा, उसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं..

आगे का लेख Mann Jee भाई का लिखा हुआ है-

हिन्दुस्थान की आज़ादी को मात्र २ वर्ष हुए थे कि दिसंबर १९४९ में अयोध्या जी में रामलला प्रकट भये। इस घटना का विवरण अनेक जगह मिलता है - ये भी पढ़ने को मिलता है कि किस प्रकार चच्चा नेहरू ने उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री श्री गोबिंद बल्लभ पंत और गृह मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री को निर्देश दिए थे कि ये मूर्तियां वहां रहने ना पाए। किन्तु इस असल राजनैतिक उथल पुथल के पीछे एक कांग्रेसी नेता का हाथ था।

२२ दिसंबर १९४९ को जब ये सब घटनाक्रम शुरू हुआ तो फैज़ाबाद कांग्रेस कमिटी के गांधीवादी नेता श्री अक्षय ब्रह्मचारी ने घटनास्थल जा दौरा किया और भगवा "आ तक " की खूब भर्त्स्ना की।

ब्रह्मचारी ने खुद वहां के कारसेवको से हाथापाई की - ऊपर उच्च कमान को चिठियाँ लिखी - चच्चा नेहरू को उलाहना दिया कि क्या नेहरू आदर्शवाद में ये सब सम्प्रय्दिकता देखने को मिलेगी। जब ब्रह्मचारी को कोई सफलता ना मिली तो वो गाँधी बाबा की भांति आमरण अनशन पर बैठे। शास्त्री जी के कहने पर चार दिन बाद अपना अनशन तोडा। किन्तु ब्रह्मचारी जी असल गांधीवादी थे। २६ जनवरी १९५० को जब देश का संविधान लांच हुआ तो ब्रह्मचारी ने फिर आमरण अनशन छेड़ा - कारण - बाबरी से वो मूर्तियां हटाओ। इस बार अनशन पूरे ३२ दिन चला। संसद में बाकायदा चर्चा हुई कि क्या गाँधी बाबा के असल चेले को ऐसे मरने छोड़ दिया जाएगा। खैर - ब्रह्मचारी ने खुद ही अपना उपवास तोडा।

अपना शेष जीवन अक्षय ब्रह्मचारी ने इसी लड़ाई में लगाया - लाख कोशिश की कि राम मंदिर ना बनने पाए। इतनी पक्की जान थे ब्रह्मचारी जी कि २०१० में अल्लाह को प्यारे हुए। मरते दम इन्होने शास्त्री जी को कोसा था कि उनके चलते पहला अनशन तोडना पड़ा ना तो नौबत इतनी ना आती।

अक्षय ब्रह्मचारी जी एक सच्चे गाँधीवादी कांग्रेसी कार्यकर्त्ता थे जिनका रक्त आज भी कांग्रेस में बह रहा है।
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श्रीराममंदिर का इतिहास.🚩( 1528 से अब तक ) #rammandir #ayodhya #ram #india

*श्रीराममंदिर का इतिहास.🚩!* 
( 1528 से अब तक )_*
*#साभार*
*सन् 1528__*

बाबर के सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या के रामकोट में स्थित राम जन्मस्थान मंदिर को तोड़कर उसी स्थान पर मंदिर के अवशेषों से इस्लामिक ढांचे का निर्माण करवाया। तीन गुम्बद वाले इस ढांचे को मस्जिद जन्मस्थान कहा गया।

*सन् 1530 से सन् 1556__*

राम जन्मस्थान मंदिर टूटने से हिन्दू आहत थे। उन्होंने सतत संघर्ष किया। इस दौरान दस युद्ध हुए। स्वामी महेशानंद साधु सेना लेकर लड़े और रानी जयराज कुमारी स्त्री सेना। दोनों बलिदान हो गए।

*सन् 1556 से सन् 1605__*

यह अकबर का काल था। इस दौरान 20 युद्ध हुए। स्वामी बलराम आचार्य वीरगति को प्राप्त हुए। बाद में अकबर ने बीरबल और टोडरमल की राय से इस्लामिक ढांचे के सामने एक छोटे से चबूतरे पर हिन्दुओं को पूजा अर्चना की अनुमति दे दी।

*सन् 1528 से सन् 1731__*

हिन्दू राम जन्मभूमि पर कब्जा चाहते थे, जिस पर इस्लामिक ढांचा बना दिया गया था। इस कालखंड में 64 लड़ाइयां लड़ी गईं।

*सन् 1650 से सन् 1707__*

यह औरंगजेब का समय था। इस काल में गुरु गोविंद सिंह, बाबा वैष्णव दास, कुंवर गोपाल सिंह, ठाकुर जगदम्बा सिंह आदि के नेतृत्व में कुल 30 लड़ाइयां लड़ी गईं।

*सन् 1822__*

फैजाबाद अदालत के मुलाजिम हफीजुल्ला ने सरकार को एक रिपोर्ट भेजी, जिसमें कहा कि राम के जन्मस्थान पर बाबर ने मस्जिद बनवाई थी।

*सन् 1852__*

निर्मोही अखाड़े के संतों ने दावा किया कि बाबर ने मंदिर तोड़कर इस्लामिक ढांचा बनाया।

*सन् 1855__*

जन्मस्थान के पास हनुमान गढ़ी पर बैरागियों और मुसलमानों के बीच लड़ाई हुई। वाजिद अली शाह नेपांच दस्तावेजों समेत ब्रिटिश रेजीडेंट मेजर आर्टम को पर्चा भेजा, जिसमें लिखा कि इस ढांचे को लेकर हिन्दुओं और मुसलमानों में तनाव रहता है।

*सन् 1858__*

अंग्रेजी सरकार ने इस स्थान की घेराबंदी करवाते हुए ढांचे के अंदर का हिस्सा मुसलमानों को नमाज के लिए तथा बाहर का हिस्सा हिन्दुओं को पूजा अर्चना के लिए दे दिया।

*सन् 1860__*

डिप्टी कमिश्नर फैजाबाद की अदालत में ढांचे के खादिम मीर रज्जब अली ने एक एप्लीकेशन लगाई कि परिसर में एक निहंग सिख ने निशान साहिब गाड़कर एक चबूतरा बना दिया है, वह हटाया जाए।

*सन् 1877__*

मुसलमानों को ढांचे में जाने के लिए दूसरा रास्ता दे दिया गया।

*15 जनवरी 1855__*

निर्मोही अखाड़े के महंत रघुबर दास ने चबूतरा, जहॉं पूजा अर्चना होती थी, अदालत से वहॉं मंदिर बनवाने की अनुमति मांगी।

*24 फरवरी 1885__*

फैजाबाद की जिला अदालत ने महंत रघुबर दास की अर्जी को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह जगह ढांचे के बेहद निकट है। चबूतरे पर रघुबर दास का कब्जा है। दीवार उठाकर चबूतरे को अलग किया जा सकता है, लेकिन मंदिर नहीं बना सकते।

*17 मार्च 1886__*

जिला जज फैजाबाद कर्नल कैमियर ने माना कि ढांचा हिन्दुओं के पवित्र स्थान पर बना है। साथ ही कहा कि अब देर हो चुकी है। 356 वर्ष पुरानी गलती को सुधारना उचित नहीं। सभी पक्ष यथास्थिति बनाए रखें।

*20-21 नवम्बर 1912__*

बकरीद पर अयोध्या में गोहत्या के विरुद्ध पहला दंगा हुआ। 1906 से ही यहॉं म्यूनिसिपल कानून के अंतर्गत गोहत्या बैन थी।

*मार्च 1934__*

शाहजहॉंपुर में गोहत्या को लेकर दंगे हुए। हिन्दुओं ने इस्लामिक ढांचे को तोड़ने के प्रयास किए। ढांचे का गुम्बद और दीवार क्षतिग्रस्त हुए। अंग्रेजी सरकार ने बाद में इसकी मरम्मत करायी।

*सन् 1936__*

इस बात की कमिश्नरी जांच कराई गई कि क्या इस्लामिक ढांचा बाबर ने बनवाया था।

*20 फरवरी 1944__*

आधिकारिक गजट में यह जांच रिपोर्ट प्रकाशित हुई, जिसमें माना गया कि इस्लामिक ढांचा बाबर ने ही बनवाया था।

*22-23 दिसम्बर 1949__*

ढांचे के अंदर रामलला प्रकट हुए। मामला गर्माया। दोनों पक्षों ने केस दायर किए। सरकार ने इमारत में ताला लगाते हुए कुर्की के आदेश दे दिए। अदालत ने पूजा अर्चना की अनुमति जारी रखी।

*29 दिसम्बर 1949__*

फैजाबाद म्यूनिसिपल बोर्ड के चेयरमैन प्रिया दत्त राम को परिसर का रिसीवर नियुक्त कर दिया गया।

*6 जनवरी 1950__*

हिन्दू महासभा के गोपाल सिंह विशारद और दिगंबर अखाड़े के महंत परमहंस रामचंद्र दास ने फ़ैज़ाबाद अदालत में एक याचिका दायर कर जन्मस्थान पर स्वामित्व का मुक़दमा दायर किया। दोनों ने वहाँ पूजापाठ की अनुमति माँगी। सिविल जज ने भीतरी हिस्से को बंद रखकर पूजा पाठ की अनुमति देते हुए मूर्तियों को न हटाने का अंतरिम आदेश दिया और मुस्लिम पक्षकारों को पूजा में रुकावट न डालने के लिए पाबंद किया।

*अप्रैल 1955__*

इलाहबाद हाईकोर्ट ने 3 मार्च 1951 को सिविल जज के इस अंतरिम आदेश पर मुहर लगायी कि यहाँ पूजा अर्चना जारी रहेगी।

*दिसंबर 1959__*

निर्मोही अखाड़े ने इस विवाद पर तीसरी याचिका दायर कर मंदिर स्थान पर अपना दावा ठोंका और स्वयं को राम जन्मभूमि का संरक्षक बताया।

*18 दिसंबर 1961__*

सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड ने ढांचे में मूर्ति के विरोध में याचिका दायर की और दावा किया कि ढांचे और उसके आस पास की ज़मीन एक क़ब्रिस्तान है, जिस पर उसका दावा है। यह इस मामले में चौथा वाद था।

*अगस्त 1964__*

जन्माष्टमी के अवसर पर मुंबई में विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना हुई। इस स्थापना सम्मेलन में संघ के सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर, गुजराती साहित्यकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, संत तुकोजी महाराज और अकाली दल के मास्टर तारा सिंह उपस्थित थे।

*8 अप्रैल 1984__*

दिल्ली के विज्ञान भवन में संतों का एक सम्मेलन हुआ। इसे धर्म संसद नाम दिया गया। धर्म संसद में अयोध्या में राम जन्मभूमि मुक्ति का मुद्दा उठा।

*जून 1984__*

दिल्ली में जन्मभूमि स्थल पर मंदिर निर्माण के लिए हिन्दू समूह ने राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति बनायी। इसके अध्यक्ष महंत अवैद्यनाथ और परमहंस रामचंद्र दास तथा महामंत्री नृत्यगोपाल राम इसके उपाध्यक्ष बने। देश भर में राम जन्मभूमि मुक्ति के लिए रथ यात्राएं निकाली गईं।

*18 सितंबर 1985__*

दिल्ली में जगद्गुरु रामानंदाचार्य शिवराम आचार्य के नेतृत्व में श्रीराम जन्मभूमि न्यास का गठन हुआ। अशोक सिंघल इस न्यास के प्रबंधकर्ता और विष्णु हरि डालमिया कोषाध्यक्ष बने। स्वामी शिवरामआचार्य को न्यास का धर्मकर्ता बनाया गया।

 *1 फ़रवरी 1986__*

फ़ैज़ाबाद के वक़ील उमेश चन्द्र पाण्डेय की याचिका पर जिला जज फ़ैज़ाबाद के एम पांडे ने आदेश दिया कि ढांचे के ताले खोल दिए जाएं और हिन्दुओं को वहाँ पूजा पाठ की अनुमति दी जाए। इस निर्णय के 40 मिनट के अंदर ही सिटी मजिस्ट्रेट ने राम जन्मभूमि के ताले खुलवा दिए। मुस्लिमों ने हिन्दुओं को पूजापाठ की अनुमति मिलने का विरोध किया।

*3 फ़रवरी 1986__*

मोहम्मद हाशिम अंसारी ने हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में ताला खोले जाने के जिला जज के निर्णय को रोकने की अपील की।

सैयद शहाबुद्दीन ने ताला खोले जाने के विरुद्ध 14 फ़रवरी को देश भर में शोक दिवस मनाने की अपील की।

*6 फ़रवरी 1986__*

ताला खोले जाने के विरोध में लखनऊ में मुसलमानों की एक सभा हुई, जिसमें बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के गठन की घोषणा हुई। मौलाना मुज़फ़्फ़र हुसैन को कमेटी का अध्यक्ष तथा मोहम्मद आज़म ख़ान और जफ़रयाब जिलानी को संयोजक बनाया गया।

*मई 1988__*

बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने 12 अगस्त को अयोध्या मार्च की घोषणा कर राम जन्मभूमि मंदिर में नमाज़ पढ़ने की घोषणा की।

*1 फ़रवरी 1989__*

विश्व हिन्दू परिषद द्वारा प्रयाग में बुलायी गई धर्मसंसद ने 10 नवम्बर को प्रस्तावित मंदिर के शिलान्यास की घोषणा की। इस धर्म संसद में देवराहा बाबा भी पधारे थे। इस अवसर पर अयोध्या के प्रस्तावित मंदिर का लकड़ी का मॉडल भी जारी किया गया।

*मई 1989__*

विश्व हिन्दू परिषद ने आंदोलन को घर घर तक पहुँचाने के लिए राम शिलापूजन कार्यक्रम की घोषणा की।

*1 जुलाई 1989__*

हाईकोर्ट में एक याचिका दायर हुई जिसमें कहा कि राम मंदिर को तोड़कर उसके स्थान पर बनाए गए इस्लामिक ढांचे को वहाँ से हटाकर कहीं और ले जाया जाए। सरकार ने फ़ैज़ाबाद जिला अदालत में लंबे चले 4 मुकदमों के साथ मूल मुक़दमे को हाईकोर्ट की विशेष बेंच को स्थानांतरित कर दिया।हाईकोर्ट में सबकी एक साथ सुनवाई शुरू हुई।

*अगस्त 1989__*

बद्रीनाथ मंदिर में शंकराचार्य स्वामी शांतानंद ने पहली शिला पूजित कर शिला पूजन कार्यक्रम की शुरुआत की। देश भर में 2,97,633 स्थानों पर शिला पूजन कार्यक्रम चला।

*अक्तूबर 1989__*

राम मंदिर निर्माण के लिए अयोध्या में पूरे देश से लगभग तीन लाख राम शिलाएँ पहुँचाई गईं। इन रामशिलाओं का पूजन देश के हर गाँव में हुआ था।

*6 नवम्बर 1989__*

प्रधानमंत्री राजीव गांधी, गृहमंत्री बूटा सिंह व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने देवरहा बाबा से मिल कर शिलान्यास की जगह बदलने का निवेदन किया, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया।

*9 नवम्बर 1989__*

प्रस्तावित मंदिर के सिंहद्वार पर शिलान्यास हुआ। कामेश्वर चौपाल ने शिलान्यास की पहली ईंट रखी।

 *जनवरी 1990__*

विश्व हिन्दू परिषद ने प्रयाग में आयोजित संत सम्मेलन में राम जन्मभूमि स्थल पर फिर से कारसेवा की घोषणा की।

*जून 1990__*

हरिद्वार में विश्व हिन्दू परिषद की बैठक में निर्णय हुआ कि 30 अक्टूबर से अयोध्या में मंदिर का निर्माण कार्य शुरू किया जाएगा। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा की घोषणा की।

सितम्बर को सोमनाथ से चली यह रथयात्रा 30 अक्टूबर को फ़ैज़ाबाद पहुँचनी थी।

*17 अक्तूबर 1990__*

भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी कि अगर आडवाणी की रथ यात्रा रोकी गई तो वो केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लेगी।

*9 अक्टूबर 1990__*

विवादित ज़मीन के अधिग्रहण के लिए केंद्र सरकार ने तीन सूत्रीय अध्यादेश जारी किया।

*अक्तूबर 1990__*

भारी विरोध को देखते हुए सरकार ने BJP को भरोसे में लिए बिना उक्त अध्यादेश को तीसरे दिन ही वापस ले लिया। उधर केंद्र सरकार के कहने पर बिहार की लालू सरकार ने लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा रोकी और उन्हें गिरफ़्तार कर लिया। भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया। VP सिंह की सरकार अल्पमत में आ गयी।

*नवम्बर 1990__*

विश्व हिन्दू परिषद के कारसेवक अनेक पाबंदियों के बावजूद लाखों की संख्या में अयोध्या पहुँच गए। उन्होंने मंदिर तोड़कर बनाए गए इस्लामिक ढांचे पर तोड़फोड़ की और भगवा झंडा फहरा दिया। मुलायम सिंह सरकार ने गोलियां चलवा दीं। 40 से अधिक कारसेवक शहीद गए।

*7 नवंबर 1990__*

VP सिंह सरकार गिर गई। कांग्रेस के सहयोग से चंद्रशेखर देश के नए प्रधानमंत्री बने।

*मई 1991__*

देश में आम चुनाव हुए। UP में BJP की सरकार बनी। केंद्र में PV नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार ने कार्यभार संभाला। भाजपा को उत्तर प्रदेश की सत्ता मिलने से अयोध्या आंदोलन में तेज़ी आयी।

*अक्तूबर 1991__*

उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार ने अयोध्या में मंदिर तोड़कर बनाए गए ढांचे के आस पास की 2.77 एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण किया।

*फ़रवरी 1992__*

उत्तर प्रदेश सरकार ने अयोध्या में तोड़ दिए गए राम मंदिर परिसर के चारों और राम दीवार का निर्माण शुरू किया।

*मार्च 1992__*

विवादित स्थल के पास 1988-89 में अधिग्रहण की गई 42.09 एकड़ ज़मीन रामजन्मभूमि न्यास को रामकथा पार्क के लिए सौंप दी गई।अधिग्रहण की गई उस ज़मीन पर बने सभी मंदिर, आश्रम और भवनों को तोड़कर वहाँ ज़मीनों के समतलीकरण का काम शुरू हुआ। मुस्लिम पक्ष ने इस पर हाईकोर्ट से रोक लगाने की माँग की। जिसे मानने से कोर्ट ने मना कर दिया।

*9 जुलाई 1992__*

विश्व हिन्दू परिषद ने कारसेवा फिर शुरू की।

*24 नवम्बर 1992__*

राज्य सरकार को बताए बिना केंद्र सरकार ने केंद्रीय सुरक्षा बलों की एक कंपनी को अयोध्या भेजा। मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने एतराज़ जताया। केंद्र और राज्य में इस पर तनाव बढ़ा।

*नवम्बर 1992__*

उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ढांचे की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी लेते हुए एक हलफ़नामा दाख़िल किया कि अयोध्या में कोई स्थाई निर्माण नहीं होगा। सुप्रीमकोर्ट ने अपना एक पर्यवेक्षक नियुक्त किया, जिसका काम यह देखना था कि 6 दिसंबर को प्रस्तावित कारसेवा के नाम पर वहाँ कोई स्थाई निर्माण ना हो। मुरादाबाद के जिला जज तेज शंकर अयोध्या में सुप्रीम कोर्ट के पर्यवेक्षक बने।

*3 दिसंबर 1992__*

अयोध्या में 25 हज़ार अर्धसैनिक बल तैनात किए गए।

*6 दिसंबर 1992__*

विश्व हिन्दू परिषद, भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के कार्यकर्ताओं में ग़ुस्सा फूटा। नेतृत्व के आदेशों की अनदेखी करते हुए वहाँ उपस्थित लाखों कारसेवकों ने इस्लामिक ढांचे को गिरा दिया। देशभर में दंगे फैले। केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया। मुख्यमंत्री कल्याण सिंह बर्खास्तगी से पहले ही अपना इस्तीफ़ा सौंप चुके थे। शाम तक पूर्व मंदिरस्थल पर अस्थाई मंदिर बना मूर्तियाँ फिर से स्थापित कर दी गईं।

*6 दिसंबर 1992__*

दो एफ़आइआर ढांचा विध्वंस के विरुद्ध राम जन्मभूमि थाने में दर्ज की गईं।

*15 दिसंबर 1992__*

केंद्र सरकार ने राजस्थान, मध्यप्रदेश और हिमाचल प्रदेश की चुनी हुई BJP सरकारों को बर्खास्त करन दिया। आडवाणी समेत 6 लोगों को गिरफ़्तार करके ललितपुर जेल भेज दिया गया।

*दिसंबर 1992__*

ढांचे को ढहाने और उसके बाद फैले दंगे की जाँच के लिए लिब्राहन आयोग का गठन हुआ। 30 जून 2009 को आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी।

*7 जनवरी 1993__*

अयोध्या में राम जन्मभूमि परिसर की 67.7 एकड़ ज़मीन का केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश के माध्यम से अधिग्रहण किया, इसमें एक अस्थाई मंदिर भी था। इसी दिन राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143 ए के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट को प्रेसिडेंशियल रेफरेंस भी किया, कोर्ट बताए कि क्या विवादित ढांचे के नीचे कभी कोई मंदिर था और वहाँ मंदिर तोड़कर मस्जिद बनायी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने लंबी सुनवाई के बाद इस रेफरेंस को यह कहते हुए लौटा दिया कि वह इस पर राय नहीं दे सकता।

*मार्च 1993__*

ढांचे को गिराने की प्रतिक्रिया में मुंबई में बम धमाके हुए। इस विस्फोट और उसके बाद हुए दंगों में हजारों लोग मारे गए।

*फ़रवरी 2002__*

विश्व हिन्दू परिषद ने मंदिर निर्माण फिर से शुरू करने के लिए 15 मार्च की अंतिम तारीख़ तय की। देशभर से कारसेवक अयोध्या में इकट्ठा होने लगे। कारसेवकों को वापस ले जा रही साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे एस6 पर गुजरात के गोधरा में हमला किया गया। उस हमले में कारसेवक ज़िंदा जला दिए गए। इस घटना के बाद पूरे गुजरात में दंगे फैल गए, जिनमें हज़ार से अधिक लोगों की मौत हुई।

*अप्रैल 2002__*

इलाहाबाद हाईकोर्ट में तीन जजों की विशेष बेंच में इस बात की सुनवाई शुरू हुई कि विवादित स्थल पर किसका अधिकार है।

*5 मार्च 2003__*

इलाहाबाद हाईकोर्ट की विशेष बेंच ने ASI को इस बात की जाँच करने को कहा कि क्या वहाँ पहले कोई मंदिर था ?हाईकोर्ट ने एएसआई से कहा कि वह खुदाई कर इस बात का पता लगाए। ASI को मस्जिद के नीचे ग्यारहवीं सदी के एक मंदिर होने के साक्ष्य मिले।

*30 सितंबर 2010__*

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या विवाद को लेकर दायर की गई चार याचिकाओं पर निर्णय सुनाया। इस निर्णय में हाईकोर्ट ने कहा कि विवादित स्थल को तीन हिस्सों में बाँट दिया जाए– एक तिहाई हिस्सा रामलला को दिया जाए, जिसका प्रतिनिधित्व हिन्दू महासभा के पास है। एक तिहाई हिस्सा सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को दिया जाए और तीसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए।

दिसंबर में अखिल भारतीय हिन्दू महासभा और सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड इस निर्णय के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट गए।

*मई 2011__* 

सुप्रीम कोर्ट ने ज़मीन के बँटवारे पर रोक लगा दी और कहा कि इस स्थिति को पहले की तरह ही बने रहने दिया जाए।

*मई 2014__*

लोकसभा के आम चुनावों में नरेंद्र मोदी की अगुआई में भाजपा ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की और केंद्र की सत्ता में आई।

*जून 2015__*

विश्व हिन्दू परिषद ने राम मंदिर के निर्माण के लिए शिलाओं को फिर इकट्ठा करने का आह्वान किया। छह महीने बाद दिसंबर में दो ट्रक शिलाएँ पहुँच भी गयीं। उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार ने कहा कि वो अयोध्या में शिलाओं को लाने की अनुमति नहीं देंगे।

*8 फ़रवरी 2018__*

सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को दो सप्ताह में अपने अपने दस्तावेज़ तैयार करने का आदेश दिया। साथ ही यह भी कहा कि इस मामले में अब कोई नया पक्षकार नहीं जुड़ेगा।

*14 मार्च 2018__*

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को अनावश्यक दख़ल से बचाने के लिए मुख्य पक्षकारों के अलावा बाक़ी सारे पक्षों की ओर से दायर सभी 32 हस्तक्षेप अर्जियों को ख़ारिज कर दिया। अब वही पक्षकार बचे जो इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय में शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर दोनों पक्ष समझौते के लिए राज़ी हैं तो कोर्ट इसकी अनुमति दे सकता है। लेकिन वो किसी पक्ष को विवश नहीं कर सकता।

*9 जनवरी 2019__*

मामले की सुनवाई के लिए पाँच जजों की बेंच का गठन हुआ। इस बेंच के अध्यक्ष चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई बनाए गए। इसके साथ ही बेंच में बोबड़े, रमन्ना, ललित और डीवाई चंद्रचूड को शामिल किया गया।

*25 जनवरी 2019__*

जस्टिस UU ललित के बेंच से अलग होने के बाद नई बेंच का गठन हुआ। चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में इस बेंच में बोवड़े, डीवाई चंद्रचूड, अशोक भूषण और एस अब्दुल नज़ीर को शामिल किया गया।

*29 जनवरी 2019__*

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन देकर विवादित परिसर वाली ज़मीन को उसके मूल मौलिक मूल मालिक को देने की अनुमति माँगी।

*26 फ़रवरी 2019__*

सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से विवाद के हल के लिए मध्यस्थता की संभावना टटोल लेने को कहा।

*11 जुलाई 2019__*

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर इस मामले का निपटारा मध्यस्थता के माध्यम से नहीं होता है तो कोर्ट प्रतिदिन इस मामले की सुनवाई करेगा और उसके आधार पर निर्णय सुनाएगा। मध्यस्थता पैनल से उसकी रिपोर्ट सौंपने को कहा गया।

*2 अगस्त 2019__*

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता पैनल इस मामले को निपटाने में असफल रहा है। अब इस मामले की सुनवाई 6 अगस्त से प्रतिदिन दोबारा शुरू होगी।

*6 अगस्त 2019__*

सुप्रीम कोर्ट में मामले की प्रतिदिन सुनवाई शुरू हुई। 40 दिन तक लगातार सुनवाई के बाद सुप्रीमकोर्ट ने अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया।

*9 नवंबर 2019__*

सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक निर्णय सुनाया, जिसमें उसने इस्लामिक ढांचे को राम का जन्मस्थान माना और ज़मीन रामलला विराजमान को दे दी। इससे जन्मस्थान पर राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ़ हो गया।

कोर्ट ने कहा कि सरकार एक ट्रस्ट बनाकर मंदिर का निर्माण करवाए। परिसर पर सरकार का क़ब्ज़ा होगा। सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को मस्जिद के लिए अयोध्या में किसी दूसरी जगह 5 एकड़ ज़मीन दे दी जाए। कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े के दावे को ख़ारिज कर दिया। यह निर्णय 5 जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से दिया।

 *5 फ़रवरी 2020__*

सुप्रीम कोर्ट से आए निर्णय के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट की घोषणा की। ट्रस्ट में 15 सदस्य बनाए गए। जिनमें से 12 को भारत सरकार द्वारा नामित किया गया और 3 को 19 फ़रवरी 2020 को आयोजित ट्रस्ट ने अपनी पहली बैठक में चुना।

*5 अगस्त 2020__*

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन कर 12:44 मिनट पर मंदिर की आधारशिला रखी।

*1 जून 2022__*

प्रस्तावित मंदिर के गर्भगृह की पहली शिला रखी गई।

*सितम्बर 2023__*

गर्भगृह पूरा हुआ।

*22 जनवरी 2024__*
रामलला अपने भव्य मंदिर में विराजेंगे, उनकी प्राण प्रतिष्ठा होगी।

 माफ कीजिएगा, मैं जानता हूं कि लेख बहुत बड़ा हो गया है। हम चाहते है कि आप सबको हमारे भगवान श्रीराम मंदिर का इतिहास मालूम चले और आपको जानकारी हो कि इस मंदिर निर्माण के लिए हमारे पूर्वजों में कितना संघर्ष, त्याग, समर्पण और बलिदान किया है।

आज हम कितने सौभाग्यशाली है कि हमें आज इस श्री राम मंदिर के निर्माण को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।



*जय श्री राम*
*वंदेमातरम्*


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रविवार, 21 जनवरी 2024

जब सभी देशवासी थाली, घंटा बजा रहे थे। किंतु इस बात से हम सब अंजान थे कि हम क्यों थाली, घंटा बजा रहे हैं।

क्या आपको मालूम है ??                        
 
कोर्ट के २०१९ के निर्णय नुसार अयोध्या में श्री राम मंदिर का निर्माण कार्य चालू होने पर वहां पर रामलला की मूर्ति एक मंदिर में शिफ्ट करनी थी। उसके लिए मार्च २०२० का मुहूर्त नक्की हुवा। उसी समय पूरे भारत में करोना हु़वा। इस वजह से रामलला के जुलूस में किसी को भी शामिल नहीं किया जा सकता था। रामलला को धूमधाम से ले के नही जा सकते थे। इस लिए योगी आदित्यनाथजी फिकर में पड गए। उन्होंने मोदीजी को फोन लगा के कहा कि रामलला का जुलूस धूम धाम से होना चाहिए। तभी मोदीजी ने कहा "मैं सब देख लूंगा" और वो दिन था २५ मार्च २०२० गुढ़ीपड़वा। मोदी जी ने उस दिन सभी देशवासियों को थाली,घंटा नाद और भगवान के पास दिया बत्ती लगाने को बोला। और उसी समय योगी आदित्यनाथजी ने खुद अपने सिर पर रामलला की मूर्ति लेकर १.३ km चलकर साथमे ५ महंत, ४ सिक्यूरिटी गार्ड लेकर मूर्ति को शिफ्ट किया यह वही समय था जब सभी देशवासी थाली, घंटा बजा रहे थे। किंतु इस बात से हम सब अंजान थे कि हम क्यों थाली, घंटा बजा रहे हैं।      
  
बाद में मोदीजी ने योगी आदित्यनाथजी  से पूछा कि  क्या १०० करोड़ जनता के साथ इतनी धूमधाम से अयोध्या में जुलूस हो  सकता था?   
  
मोदी जी जो भी कार्य करते या करते हैं, वो कार्य कभी निरुद्देश्य नही हो सकता।                  
   🚩 *जय श्रीराम*🚩



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शनिवार, 20 जनवरी 2024

पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है

पौष पुत्रदा एकादशी आज
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संतान सुख व बच्चे के उज्ज्वल भविष्य के लिए पौष पुत्रदा एकादशी प्रभावशाली मानी गई है
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पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। पुराणों में एकादशी व्रत की महीमा का वर्णन करते हुए कहा गया है कि इसके प्रताप से दुखों, त्रिविध तापों से मुक्ति और हजारों यज्ञों को करने के समान फल देता है।

मान्यता है कि अपने नाम स्वरूप पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने से भगवान विष्णु स्वंय संकटों में संतान की रक्षा करते हैं। वंश वृद्धि के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत बहुत महत्वपूर्ण होता है।

पौष पुत्रदा एकादशी की तिथि
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पौष पुत्रदा एकादशी व्रत 21 जनवरी 2024, रविवार को है। पुत्रदा एकादशी का व्रत साल में दो बार रखा जाता है एक पौष माह में और दूसरा सावन महीने में। ये दोनों ही व्रत संतान प्राप्ति की कामना के लिए बहुत प्रभावशाली माने जाते हैं।

पौष पुत्रदा एकादशी का मुहूर्त 
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पंचांग के अनुसार पौष माह के शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि 20 जनवरी 2024 को रात 06 बजकर 26 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 21 जनवरी 2023 को रात 07 बजकर 26 मिनट पर खत्म होगी। उदयातिथि के अनुसार एकादशी व्रत 21 जनवरी को मान्य होगा।

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण समय 
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पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत पारण 22 जनवरी 2024 को सुबह 07.14 से सुबह 09.21 के बीच किया जाएगा। ये दिन बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन श्रीहरि के मनुष्य अवतार श्रीराम लला की 22 जनवरी को अयोध्या राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा होगी।

पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय - रात 07.51

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कैसे करें 
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पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने वाले श्रद्धालुओं को व्रत से पूर्व दशमी के दिन एक समय सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए।
व्रती को संयमित और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
एकादशी के दिन व्रत का संकल्प लेकर गंगा जल, तुलसी दल, तिल, फूल पंचामृत से श्रीहरि की पूजा करें।
संध्याकाल में दीपदान करें। तुलसी में दीपक लगाएं।
व्रत के अगले दिन द्वादशी पर किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर, दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करें।

प्राण प्रतिष्ठा के पूर्व देव की आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है। ऐसा क्यों?

*मूर्तिकार की कल्पना, उंगलियों की जादूगरी, छेनी की हजारों चोट और रेती की घिसाई। और इस तरह महीनों की तपस्या के बाद वह मूर्ति उभरती है, जिसमें देवता निवास करते हैं। पर मूर्ति से देवता होने की प्रक्रिया भी इतनी सहज कहाँ...*

आदौ रामतपोवनादिगमनं हत्वा मृगं कांचनं
वैदेहीहरणं जटायुमरणं सुग्रीवसम्भाषणम्।
बालीनिग्रहणं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनं
पश्चाद्रावणकुंभर्णहननमेतद्धि रामायणम्।।

।।एकश्लोकि रामायणं संपूर्णम्।।

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    सोच कर देखिये, पूरा संसार बड़े बड़े पत्थरों, पहाड़ों से भरा हुआ है। बड़े बड़े पहाड़ तोड़ कर सड़क के नीचे डाल दिये जाते हैं। घर की दीवालों में जोड़ दिए जाते हैं, फर्श में लगा दिए जाते हैं। पर उन्ही में किसी पत्थर का भाग्य उसे देवता बना देता है न? सौभाग्य-दुर्भाग्य का भेद केवल मनुष्य के लिए ही नहीं, हर जीव जन्तु, नदी तालाब, माटी पत्थर के लिए भी होता है।
     *प्राण प्रतिष्ठा के पूर्व देव की आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है। ऐसा क्यों? इसका शास्त्रीय उत्तर तो विद्वान जानें, मुझे जो लौकिक उत्तर समझ में आता है, वह सुनिये।*
     जब तक प्राण प्रतिष्ठा नहीं होती तब तक वह केवल मूर्ति होती है, पर प्रतिष्ठा होते ही वे देव हो जाते हैं। तो देव की पहली दृष्टि किसपर पड़े? कौन सहन कर पायेगा वह तेज? क्या कोई सामान्य जन? कभी नहीं। तो इसका सबसे सहज उपाय ढूंढा गया कि देव की पहली दृष्टि सीधे देव पर ही पड़े। इसीलिए आंखों की पट्टी खोलते समय उनके सामने आईना लगा दिया जाता है। इस भाव से कि आपन तेज सम्हारो आपै... इस तरह देव की पहली दृष्टि उन्ही पर पड़ती है, वे अपना तेज स्वयं ही सम्हारते हैं। कितना सुंदर विधान है न?
      *प्राणप्रतिष्ठा के पूर्व विग्रह को जलाधिवास, अन्नाधिवास, फलाधिवास, घृताधिवास और फिर शय्याधिवास में रखा जाता है। एक रात जल में निवास होता है, फिर अन्न से ढक कर रखा जाता है, फिर पुष्पादि से.... घी और फिर शय्या... जहाँ जहाँ जीवन है, जीवन के लिए आवश्यक तत्व हैं, वहाँ वहाँ से तेज प्राप्त करती है मूर्ति! उसके बाद होता है देव का आवाहन, और फिर वे विराजते हैं विग्रह में... इसके बाद खुलता है पट। लम्बी चरणबद्ध प्रक्रिया है... देवत्व यूँ ही नहीं आता।*
      कल कहीं एक मूर्खतापूर्ण प्रश्न पढ़ा। किसी ने लिखा था कि मनुष्य ईश्वर की प्राणप्रतिष्ठा कैसे कर सकता है? बकवास प्रश्न है यह। मनुष्य मूर्ति में ही नहीं, सृष्टि के कण कण में देवता को देख सकता है, पर इसके लिए हृदय में श्रद्धा होनी चाहिये। जैसे बिना आंखों के आप संसार को नहीं देख सकते, वैसे हीं बिना श्रद्धा के आप ईश्वर को नहीं देख सकते। हम देख लेते हैं देवत्व गङ्गा में, वृक्षों में, पहाड़ों में, अग्नि में, आकाश में... यह हमारी श्रद्धा की शक्ति है, हमारी संस्कृति की शक्ति है, हमारे धर्म की शक्ति है।
      *बाकी एक बात और! इस बार केवल एक मन्दिर में देव की प्राणप्रतिष्ठा ही नहीं हो रही। यह युगपरिवर्तन का उद्घोष है, यह भारतीय स्वाभिमान की पुनर्प्रतिष्ठा है।*
      आइये, देव के पट खुलने की प्रतीक्षा करें... वह क्षण धर्म के जयघोष का होगा, सनातन के विजय का होगा, असंख्य योद्धाओं की तृप्ति का होगा... जय जय श्रीराम।
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गुरुवार, 18 जनवरी 2024

मेरे प्रभु श्री राम आ रहे हैं

मेरे प्रभु श्री राम आ रहे हैं
 
पुनि मन्दिर महँ बात जनाई, आवत नगर कुशल रघुराई । ( श्रीरामचरितमानस )

शत्रुघ्न आज जल्दी से जल्दी महल में पहुँचना चाहते हैं… सुमन्त्र जी ! आप आज की रात सब व्यवस्था सम्भाल दीजिये ! मैं अकेले रहना चाहता हूँ… मैं एकान्त में बैठना चाहता हूँ । शत्रुघ्न कुमार ने अपने हृदय की बात कही… । बात सही भी तो है… जब अपने दुःख को इन शत्रुघ्न कुमार ने जग जाहिर नहीं किया… तो ख़ुशी का प्रदर्शन भी क्यों करें ।

कुमार ! आप विश्राम करें… और वैसे भी चौदह वर्ष का आपका “तप” कौन देख सका है… ये महामन्त्री सुमन्त्र ही जानता है कि आपकी तपस्या अप्रकट थी… हे कुमार ! दीवार पर चित्रकारी हो सकती है… पर नींव पर कोई कैसे चित्रकारी करे ! आप कुमार ! इस रघुकुल के नींव हैं… ये कहते हुए महामन्त्री के नेत्र बह चले थे । नहीं ! नहीं ! महामन्त्री जी !… तप तो मेरे प्रभु ने किया है… तप तो मेरे अग्रज लक्ष्मण ने किया है… पूज्या भाभी माँ सीता जी ने किया है… और मेरे आर्य मेरे हृदय में जिनके प्रति अगाध श्रद्धा है… उन श्री भरत भैया ने किया है… ।

प्रणाम किया सुमन्त्र जी ने… पता नहीं किस मिट्टी से बनें हैं आप रघुकुल के लोग… तप त्याग सेवा तो आपके खून में ही है । किसको बड़ा तपस्वी कहें, किसको छोटा ? ….कुमार शत्रुघ्न ! महल में जाकर देखा था मैंने… तप तो वहाँ भी चल रहा है… बहू रानी उर्मिला का तप, छोटी बहू श्रुतकीर्ति का तप, ओह ! । पर रूक गए बोलते बोलते सुमन्त्र जी ! उस दिन महल में मुझे जाना था, मैं ही लेकर आया था भरत जी का वह उच्छिष्ट ..जौ को पकाया गया गौ मूत्र में ।… भरत जी की पत्नी वही तो खाती रहीं हैं… मुझे उस दिन पता चला था… ।… तब मैंने देखा… कुशा के आसन में बैठीं थीं श्री भरत की पत्नी… माण्डवी । दूर से देखने में ऐसा लगा कोई सन्यासिनी तप करके बैठी है… वो तेज़ था मुख मण्डल में… । ये कहते हुए वाणी अवरुद्ध हो गयी थी महामन्त्री की । बड़ी मुश्किल से इतना ही कह पाये… आप जाएँ कुमार ! आज की रात्रि विश्राम करें… कल प्रातः मिलेंगे ।

इतना कहकर रथ चल पड़ा था महामन्त्री का… और इधर कुमार शत्रुघ्न का । महल में आते ही… अपने कक्ष का दरवाजा लगा लिया था शत्रुघ्न ने भीतर से… और नाच उठे थे । प्रभु आरहे हैं ! नेत्र ऐसे बरस रहे थे आज जैसे सावन की झरी हो । पर ये आनन्द का अश्रु प्रवाह था… ख़ुशी इतनी हो रही थी कुमार को… कि रुक नहीं रहा था उनका आनन्द । दरवाजा किसी ने खटखटाया । शान्त हो गए शत्रुघ्न कुमार… धीरे से द्वार खोला था… माता ! आइये… माँ सुमित्रा आयीं थीं ।

तुम क्या कर रहे हो कुमार ? माँ सुमित्रा ने पूछा । कुछ देर बोले ही नहीं… फिर थोड़ी ही देर में… माँ के गले लग गए… और माँ के अंक का स्पर्श पाते ही… शिशुवत् चपलता प्रकट हो गयी शत्रुघ्न कुमार की । माँ ! प्रभु आरहे हैं ? अपने गर्दन को ऊपर उठाकर सुमित्रा माँ की ओर देखते हुए शत्रुघ्न ने कहा । क्या ! सुमित्रा चौंक गयीं… कब आरहे हैं ? ….माँ ! कल मध्यान्ह में… माँ ! प्रयाग में आज रात्रि रुके हैं प्रभु । तूने सबको बता दिया ? जीजी कौशल्या को ?……नही… माँ ! मैंने किसी को नहीं बताया… मैं तो अकेले में इस आनन्द को अनुभव कर रहा था… माँ ! इस शत्रुघ्न के महल ने… शत्रुघ्न का दुःख बहुत देखा है… रुदन देखा है… जब बोल रहे थे शत्रुघ्न तब सुमित्रा महल के चारों ओर देख रही थीं…

फिर आगे बढ़ीं… दीवार में… लाल लाल धब्बे थे… जो सूख गए थे… पुत्र ! ये क्या है ? सुमित्रा ने पूछा । कुछ नही माँ !… ये रोते रहते थे… रात भर माँ ! और कभी कभी तो रोते रोते अपना सिर इस दीवार पर पटकते थे… मुझ से कहते थे… श्रुतकीर्ति ! मैं क्या करूँ ? मैं कहाँ जाऊँ ? …..भरत भैया का सहारा था… पर वो भी नन्दी ग्राम में बैठ गए… लक्ष्मण भैया भी प्रभु के साथ निकल गए….अब बचा है ये अभागी शत्रुघ्न… ये कहाँ जाए .?….. माँ ! ऐसा कहते हुए ये रोज रोते थे… लोगों के सामने इन्होंने कभी अपना दुःख प्रकट नही किया… दिन भर राज काज करते रहना… और रात में… अकेले में… रोना… । श्रुतकीर्ति ने आकर शत्रुघ्न कुमार की सारी बातें बता दी थी माँ सुमित्रा को । माँ ! ये भी बाबरी ही है… अब उन बातों को क्यों याद करना… अब तो माँ ! बस आज की रात है… कल तो जो सूर्योदय होगा अयोध्या में… वो आनन्द का सूर्योदय होगा… उत्सव का सूर्योदय होगा… सुख की किरणें फूटेंगीं ।

माँ सुमित्रा का हाथ पकड़ कर नाच उठे थे कुमार शत्रुघ्न । अरे ! तू ये बालक जैसी क्या हरकत कर रहा है शत्रुघ्न ?….हँसते हुए माँ सुमित्रा ने कहा । माँ ! मैं बालक ही तो हूँ… सबसे छोटा शत्रुघ्न कुमार… अब तो मेरे प्रभु आरहे हैं… आह ! । माँ ! सब सो रहे हैं महल में ? ….हाँ हाँ… पुत्र सब सो रहे हैं ! क्यों सो रहे हैं !… अरे ! आज की रात तो आनन्द की रात है… कल आरहे हैं ना… मेरे प्रभु !

इतना कहते हुए शत्रुघ्न भागे… अरे कहाँ जा रहा है तू ? ….सुमित्रा ने आवाज लगाई… पर शत्रुघ्न आज किसी की सुनेंगे ? ….अपने गले लगाकर श्रुतकीर्ति को… खूब हँसी सुमित्रा । पागल हो गया तेरा पति श्रुतकीर्ति !… आज चौदह वर्ष बाद किलकारियाँ गूँजी थीं इस महल में । सबका दरवाजा खटखटा कर चिल्ला रहे हैं… कुमार शत्रुघ्न ।

शत्रुघ्न को इतना भी नहीं पता कि द्वार खटखटाते हुए… कुमार ने मन्थरा का द्वार भी खटखटा दिया था… अरे ! उठो ! सोओ मत ! “प्रभु आ रहे हैं “… कल “मेरे प्रभु आ रहे हैं” । उठी है मन्थरा ! शत्रुघ्न की आवाज कान में गयी मन्थरा के… “प्रभु आरहे हैं” ? श्री राम आरहे हैं ? …..

चौदह वर्ष से ये दासी मन्थरा अपने कक्ष से बाहर ही नहीं आई थी । बाहर निकल जाती… तो नगर वासी इसे जीवित छोड़ देते ?….पर आज जब सुना… कि “प्रभु आरहे हैं” । ओह ! आनन्द के अश्रु इसके भी बहने लगे थे । अर्ध रात्रि हो गयी है… चौदह वर्ष बाद ये मन्थरा बाहर आई । कुमार ! क्या कहा फिर कहना ? …..लडखड़ाती आवाज, लाठी टेककर बाहर आई…

डरते हुए पूछा शत्रुघ्न से… कुमार ! क्या कहा फिर कहना ?…..प्रभु आरहे हैं ! ओह !… देह में अब हिम्मत नहीं रही मन्थरा के… कुबड़ी वैसे ही है… फिर भी लाठी टेककर धीरे धीरे चली… कैकेयी के महल की ओर ।

महारानी ! ओ महारानी ! ये आवाज लगाई… और द्वार खटखटाया मन्थरा ने, कैकेयी का । द्वार खोला… तू ! इतनी रात को क्यों आई है यहाँ ?…..कैकेयी को दया आती है इस बूढ़ी मन्थरा पर… तेरी तबियत तो ठीक है ना ?….हाँ… महारानी ! तबियत बिलकुल ठीक है… मैं तेरा दूसरा कूबड़ भी निकाल दूंगी… खबरदार जो मुझे “महारानी” कहा तो ! कैकेयी मन्थरा के महारानी कहने से नाराज हो गयी थी । अच्छा ! गुस्सा छोड़ दो… अभ्यास है ना… महारानी कहने का इसलिए ये शब्द निकल गए । बता क्यों आई है इतनी रात गए ?…..

प्रभु आरहे हैं ! श्री राम आरहे हैं ! क्या !… उछल पड़ी कैकेयी… और मन्थरा का हाथ पकड़ कर बोली… मंथरे ! तू सच कह रही है… मेरा राम आरहा है ! हाँ… हाँ… महारानी… महारानी कहते हुए कान पकड़ लिए मन्थरा ने… गलती होगयी… हाँ… बोलना है तो मुझे “राजमाता” बोल ! अपनी ठसक में आगयी थी कैकेयी… बोल राजमाता ! क्या !… ना !… मैं नही बोलती राजमाता… मन्थरा ने कहा… मेरी जीभ काली है… एक बार मैंने तुम्हें राजमाता क्या बनने के लिए कहा… सब कुछ बर्बाद हो गया… मेरे कारण ही… अब नहीं बोलूंगी ।

अरी ! मंथरी ! बोल… मैं राजमाता ही हूँ । अब राम ही तो मेरा पुत्र है… भरत ने तो मेरा परित्याग ही कर दिया है… ये कहते हुए फिर गम्भीर हो गयी थीं कैकेयी । हाँ… बहन ! तुम राजमाता हो… सच कह रही हो… राम मुझ से ज्यादा तो तुम्हारे पास ही रहता था… अब भी तुम्हें ही मानता है ।

कौशल्या जी ने प्रवेश किया था कैकेयी के महल में । जीजी !… प्रणाम किया झुककर कैकेयी ने कौशल्या जी के चरणों में । देखो ना ! कैसे पागल सा हो गया है ये शत्रुघ्न कुमार । सब को जगा दिया… सब नाच रहे हैं । कैकेयी बहन ! चलो माण्डवी को ये सूचना दें । नहीं जीजी ! मैं नहीं जाऊँगी… माण्डवी के महल में । कैकेयी ने कहा । ….तुम भी ना… चलो ! अपनी तो बहु है… ऐसे दिल पे मत लिया करो बात… चौदह वर्ष बीत गए… सब उसमें बह गया… देखो… इस मन्थरा को… कौशल्या ने कहा ।

मैं तो जा रही हूँ… सजने धजने… चौदह वर्ष तक अपना श्रृंगार भी नही किया है मैंने… मन्थरा ये बोलती हुयी चली… जीजी ! इस मन्थरा के लिए कोई लड़का हो तो देख दो… कैकेयी ने कौशल्या से कहा… वो मन्थरा… शरमा कर…”हट्ट” कहती हुयी चली गयी ।

माण्डवी ! पुत्री माण्डवी ! ….कुशा के आसन में बैठी माण्डवी… भरत की पत्नी । नेत्रों से अश्रु बह चले थे कैकेयी के । केश जटा ही बन गए थे… चौदह वर्ष तक इस तपस्विनी ने तेल, फुलेल, उबटन… कहाँ लगाये थे ! शरीर कृष हो गया था… पुत्री ! माण्डवी उठो ! नेत्र खोले माण्डवी ने… अर्ध रात्रि को… माताएं… ?

चरण वन्दन किये… राम आरहे हैं ! कौशल्या जी ने कहा । क्या ! …मुख की गम्भीरता तुरन्त समाप्त हो गई… माण्डवी की । कब ? माँ ! कब आरहे हैं ?….पुत्री ! कल आरहे हैं मध्यान्ह में । ओह ! माण्डवी के नेत्रों अश्रु बह चले थे… आनन्द के । कैकेयी ने आगे बढ़कर अपनी पुत्रवधु को सम्भाला था ।”अयोध्यावासियों ! कल मध्यान्ह में प्रभु पुष्पक विमान में बैठकर अयोध्या आरहे हैं ” ये क्या पागल हो गया शत्रुघ्न… अर्ध रात्रि को कोई ऐसे ढिढ़ोरा पीटता है… ।

माताओं ने पहले गम्भीरता से कहा… फिर एक दूसरे के मुख में देख कर खूब हँसी… और सब गले लग गए । मेरे श्री राम आरहे हैं !

जय श्री राम

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मंगलवार, 16 जनवरी 2024

गुरु गोविंद सिंह जयंती बुधवार, 17 जनवरी 2024

गुरु गोविंद सिंह जयंती आज
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गुरु गोविंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरु थे। उन्हें विद्वानों का संरक्षक माना जाता है । वे एक महान योद्धा तो थे ही, लेकिन साथ ही एक महान कवि-लेखक भी थे। उनके दरबार में 52 कवि और लेखक मौजूद हुआ करते थे। वह संस्कृत के अलावा कई भाषाओं की जानकारी रखते थे। कई सारे ग्रंथों की रचना गुरु गोविंद सिंह द्वारा की गई, जो समाज को काफी प्रभावित करती है। ‘खालसा पंथ’ की स्थापना जो सिखों के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है, इन्ही के द्वारा किया गया। गुरु गोविंद साहब ने सिखों के पवित्र ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ’ साहिब की स्थापना की थी ,वे मधुर आवाज के भी धनी थे। इसके साथ ही सहनशीलता और सादगी से भरे थे। गरीबों के लिये वे हमेशा लड़े और सबको बराबर का हक देने को कहा करते थे और भाईचारे से रहने का संदेश देते थे।

गुरु गोविंद सिंह जयंती की तिथि
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गुरु गोविंद सिंह की 357 वीं जन्म वर्षगांठ

गुरु गोविंद सिंह जयंती बुधवार, 17 जनवरी 2024

सप्तमी तिथि प्रारम्भ : 16 जनवरी 2024 को रात 11:57 बजे

सप्तमी तिथि समाप्त: 17 जनवरी 2024 को रात 10:06 बजे

गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म और उनके जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें
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गुरु गोविंद सिंह साहब का जन्म 22 दिसम्बर 1666 को बिहार के पटना शहर में श्री गुरु तेग बहादुर के यहां हुआ था, जो सिख समुदाय के नौवें गुरु थे। उनकी माता का नाम गुजरी देवी था। बचपन में वे गोविंदराय के नाम से जाने जाते थे। अपने जीवन के शुरुआती 4 वर्ष उन्होंने पटना के घर में ही बिताए, जहां उनका जन्म हुआ था।

बाद में 1670 में उनका परिवार पंजाब मे आनंदपुर साहब नामक स्थान पर रहने आ गया था। जो पहले चक्क नानकी नाम से जाना जाता था। यह हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों मे स्थित है। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा की शुरुआत चक्क नानकी से ही हुई थी। एक योद्धा बनने के लिये जिन कला की जरूरत पड़ती है, उन्होंने यही से सीखी। उसके  साथ ही संस्कृत, और फारसी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया था।

एक बार कश्मीरी पंडित अपनी फ़रियाद लेकर श्री गुरु तेग बहादुर के दरबार में आए। दरबार में पंडितों ने जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बनाए जाने की बात कही। साथ ही कहा कि हमारे सामने ये शर्त रखी गयी है, अगर धर्म परिवर्तन नहीं किया तो हमें प्राणों से हाथ धोने पड़ेंगे। ऐसा कोई महापुरुष हो, जो इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं करे और अपना बलिदान दे सके, तो सबका भी धर्म परिवर्तन नहीं किया जाएगा। 

उस समय गुरु गोविंद सिंह जी नौ साल के थे। उन्होंने अपने पिता गुरु तेग बहादुर जी से कहा आपसे बड़ा महापुरुष और कौन हो सकता है! कश्मीरी पण्डितों की फरियाद सुनकर गुरु तेग बहादुर ने जबरदस्ती धर्म परिवर्तन के खिलाफ खुद का बलिदान दिया। लोगों को जबरदस्ती धर्म परिवर्तन से बचाने के लिए स्वयं इस्लाम न स्वीकारने के कारण 11 नवम्बर 1675 को औरंगज़ेब ने दिल्ली के चांदनी चौक में आम लोगों के सामने उनके पिता गुरु तेग बहादुर का सिर धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद 29 मार्च 1676  में श्री गोविन्द सिंह जी को सिखों का दसवां गुरु घोषित किया गया।

गुरु गोविंद सिंह का विवाह
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गुरु गोविंद सिंह जी का पहला विवाह 10 साल की उम्र में ही हो गया था। 21 जून, 1677 के दिन माता जीतो के साथ आनन्दपुर से 10 किलोमीटर दूर बसंतगढ़ में विवाह सम्पन्न हुआ था। गुरु गोविंद सिंह और माता जीतो के 3 पुत्र हुए जिनके नाम जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फ़तेह सिंह थे। 17 वर्ष की उम्र में दूसरा विवाह माता सुन्दरी के साथ 4 अप्रैल, 1684 को आनन्दपुर में ही हुआ। उनका एक बेटा हुआ, जिसका नाम अजित सिंह था। उसके बाद 33 वर्ष की आयु में तीसरा विवाह 15 अप्रैल, 1700 में माता साहिब देवन के साथ किया। वैसे तो उनकी कोई सन्तान नहीं थी, पर सिख पन्थ के पन्नों और गुरु गोविंद सिंह जी के जीवन में उनका भी बहुत प्रभावशाली स्थान था। इस तरह से गुरु गोविंद साहब की कुल 3 शादियां हुई थी। 

खालसा पंथ की स्थापना
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सन 1699 में बैसाखी के दिन गुरु गोविंद साहब ने खालसा पंथ की स्थापना की, जिसके अंतर्गत सिख धर्म के अनुयायी विधिवत् दीक्षा प्राप्त करते है। सिख समुदाय की एक सभा में उन्होंने सबके सामने पूछा – “कौन अपने सर का बलिदान देना चाहता है”? उसी समय एक स्वयंसेवक इस बात के लिए राज़ी हो गया और गुरु गोविंद सिंह उसे तम्बू में ले गए और कुछ देर बाद वापस लौटे एक खून लगे हुए तलवार के साथ। गुरु ने दोबारा उस भीड़ के लोगों से वही सवाल दोबारा पूछा और उसी प्रकार एक और व्यक्ति राज़ी हुआ और उनके साथ गया, पर वे तम्बू से जब बाहर निकले तो खून से सना तलवार उनके हाथ में था। उसी तरह पांचवा स्वयंसेवक जब उनके साथ तम्बू के भीतर गया, कुछ देर बाद गुरु गोविंद सिंह सभी जीवित सेवकों के साथ वापस लौटे ,तो उन्होंने उन्हें पंज प्यारे या पहले खालसा का नाम दिया।

उसके बाद गुरु गोविंद जी ने एक लोहे का कटोरा लिया और उसमें पानी और चीनी मिला कर दो-धारी तलवार से घोल कर अमृत का नाम दिया। पहले 5 खालसा बनने के बाद उन्हें छठवां खालसा का नाम दिया गया, जिसके बाद उनका नाम गुरु गोविंद राय से गुरु गोविंद सिंह रख दिया गया। उन्होंने पांच ककारों का महत्व खालसा के लिए समझाया और कहा – केश, कंघा, कड़ा, किरपान, कछैरा।

तभी से सिख समुदाय अपने साथ कहा – केश, कंघा, कड़ा, किरपान (कृपाण), कछैरा (कच्छा) अपने साथ रखते है ।

बहादुर शाह जफ़र के साथ गुरु गोविंद सिंह के रिश्ते
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जब औरंगजेब की मृत्यु हुई, उसके के बाद बहादुरशाह को बादशाह बनाने में गुरु गोविंद सिंह  ने मदद की थी। गुरु गोविंद जी और बहादुर शाह के आपस मे रिश्ते बहुत ही सकारात्मक और मीठे थे। जिसे देखकर सरहिंद का नवाब वजीर खां डर गया। अपने डर को दूर करने के लिये उसने अपने दो आदमी गुरुजी के पीछे लगा दिए। इन दो आदमियों ने ही गुरु साहब पर धोखे से वार किया, जिससे 7 अक्टूबर 1708 को गुरु गोविंद सिंह जी नांदेड साहिब में दिव्य ज्योति में लीन हो गए। 

उन्होंने अपने अंत समय में सिक्खों को गुरु ग्रंथ साहिब को अपना गुरु मानने को कहा और भी गुरु ग्रंथ साहिब के सामने नतमस्तक हुए। गुरुजी के बाद माधोदास ने, जिसे गुरुजी ने सिक्ख बनाया बंदासिंह बहादुर नाम दिया था, सरहिंद पर आक्रमण किया और अत्याचारियों के ईंट का जवाब पत्थर से दिया ।

गुरु गोविंद साहब द्वारा दिए गये उपदेश
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गुरु गोविंद सिंह के दिए उपदेश आज भी खालसा पंथ और सिखों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। 
बचन करके पालना: अगर आपने किसी को वचन दिया है तो उसे हर कीमत में निभाना होगा। 
किसी दि निंदा, चुगली, अतै इर्खा नै करना : किसी की चुगली व निंदा करने से हमें हमेशा बचना चाहिए और किसी से ईर्ष्या करने के बजाय परिश्रम करने में फायदा है।
कम करन विच दरीदार नहीं करना : काम में खूब मेहनत करें और काम को लेकर कोताही न बरतें।
गुरुबानी कंठ करनी : गुरुबानी को कंठस्थ कर लें।
दसवंड देना : अपनी कमाई का दसवां हिस्सा दान में दे दें।
गुरु गोविंद सिंह जी की रचनाएं
गुरु गोविंद सिंह जी ने न सिर्फ अपने महान उपदेशों के द्वारा लोगों को सही मार्गदर्शन दिया, बल्कि उन्होंने समाज में हो रहे अत्याचारों और अपराधों के खिलाफ भी विरोध किया। उनके द्वारा लिखी कुछ रचनाएं इस प्रकार से हैं-
जाप साहिब
अकाल उत्सतत
बचित्र नाटक
चंडी चरित्र
जफर नामा
खालसा महिमा

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