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सोमवार, 22 जनवरी 2024

राम मंदिर न बन पाए, इसके लिए सबसे पहले गम्भीर प्रयास किसका रहा?

राम मंदिर न बन पाए, इसके लिए सबसे पहले गम्भीर प्रयास किसका रहा?
मंदिर निर्माण का श्रेय जिसे है मिल रहा है..उनकी बल्ले बल्ले हैं… जिन्हें नही मिल रहा मुंह फुलाये पड़े हैं और अड़ंगे लगाने का अथक प्रयास कर रहे हैं, उनकी एक ही तमन्ना है…कैसे भी प्राण प्रतिष्ठा टल जाए…
चलिए बनाने का श्रेय लेने सभी सामने आ रहे हैं…पर इसे न बनाने देने का का श्रेय भला कौन लेना चाहेगा…? स्वीकार भले ही कोई न करे, पर भारत जानता है कि पर्दे के सामने और पीछे से अड़ंगे लगाने में कौन सक्रिय रहा है..!

हालांकि 1992 के बाद से खुलेआम मंदिर का विरोध करने वालों की संख्या कम होती गयी और 2019 तक ऐसी स्थिति बन गयी थी कि कोई भी मंदिर के विरोध में मुंह सिर्फ किंतु परन्तु के साथ ही खोलता था।

पर एक ऐसा शख्स जो आजीवन मंदिर बनने के विरोध में खड़ा रहा, उसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं..

आगे का लेख Mann Jee भाई का लिखा हुआ है-

हिन्दुस्थान की आज़ादी को मात्र २ वर्ष हुए थे कि दिसंबर १९४९ में अयोध्या जी में रामलला प्रकट भये। इस घटना का विवरण अनेक जगह मिलता है - ये भी पढ़ने को मिलता है कि किस प्रकार चच्चा नेहरू ने उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री श्री गोबिंद बल्लभ पंत और गृह मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री को निर्देश दिए थे कि ये मूर्तियां वहां रहने ना पाए। किन्तु इस असल राजनैतिक उथल पुथल के पीछे एक कांग्रेसी नेता का हाथ था।

२२ दिसंबर १९४९ को जब ये सब घटनाक्रम शुरू हुआ तो फैज़ाबाद कांग्रेस कमिटी के गांधीवादी नेता श्री अक्षय ब्रह्मचारी ने घटनास्थल जा दौरा किया और भगवा "आ तक " की खूब भर्त्स्ना की।

ब्रह्मचारी ने खुद वहां के कारसेवको से हाथापाई की - ऊपर उच्च कमान को चिठियाँ लिखी - चच्चा नेहरू को उलाहना दिया कि क्या नेहरू आदर्शवाद में ये सब सम्प्रय्दिकता देखने को मिलेगी। जब ब्रह्मचारी को कोई सफलता ना मिली तो वो गाँधी बाबा की भांति आमरण अनशन पर बैठे। शास्त्री जी के कहने पर चार दिन बाद अपना अनशन तोडा। किन्तु ब्रह्मचारी जी असल गांधीवादी थे। २६ जनवरी १९५० को जब देश का संविधान लांच हुआ तो ब्रह्मचारी ने फिर आमरण अनशन छेड़ा - कारण - बाबरी से वो मूर्तियां हटाओ। इस बार अनशन पूरे ३२ दिन चला। संसद में बाकायदा चर्चा हुई कि क्या गाँधी बाबा के असल चेले को ऐसे मरने छोड़ दिया जाएगा। खैर - ब्रह्मचारी ने खुद ही अपना उपवास तोडा।

अपना शेष जीवन अक्षय ब्रह्मचारी ने इसी लड़ाई में लगाया - लाख कोशिश की कि राम मंदिर ना बनने पाए। इतनी पक्की जान थे ब्रह्मचारी जी कि २०१० में अल्लाह को प्यारे हुए। मरते दम इन्होने शास्त्री जी को कोसा था कि उनके चलते पहला अनशन तोडना पड़ा ना तो नौबत इतनी ना आती।

अक्षय ब्रह्मचारी जी एक सच्चे गाँधीवादी कांग्रेसी कार्यकर्त्ता थे जिनका रक्त आज भी कांग्रेस में बह रहा है।
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