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बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

आयूर्वेद के अनुसार कभी भी दो विरुद्ध वस्तूये एक साथ नहीं खानी चाहिए

मित्रो, आयूर्वेद के अनुसार कभी भी दो विरुद्ध वस्तूये एक साथ नहीं खानी चाहिए ।
... विरुद्ध वस्तुओ से अभिप्राय ऐसी वस्तूए जिनका गुण - धर्म अलग हो ।

ऐसी कुछ 103 चीज़े आयूर्वेद में बाताई गई है । जो एक साथ कभी नहीं खानी चाहिए ।

उदाहरण के लिये प्याज और दूध कभी एक साथ न खाये । एक दुसरे के जानी दुशमन हैं । इसको खाने से सबसे ज्यादा चमड़ी के रोग आपको होगें दाद,खाज ,खुजली,एगसिमा ,सोराईसिस, आदि ।

ऐसी ही कटहल (jack fruit )और दूध कभी न खाये । ये भी जानी दुश्मन हैं ।

ऐसे ही खट्टे फ़ल जिनमे सिट्रिक ऐसिड होता है कभी न खायें । एक सिट्रिक तो इनसान का बनाया है एक भगवान का बनाया है । जैसे संतरा । कभी दूध के साथ न खाये ।

आयुर्वेद के अनुसार अगर कोई खट्‌टा फ़ल दूध के साथ खाने वाला है वो एक ही है आवला । आवला दूध के साथ जरुर खाये ।

इसी तरह शहद और घी कभी भी एक साथ न खायें ।

आम की दोस्ती दूध से जबरद्स्त हैं लेकिन खट्टे आम की नहीं |इसलिये मैग़ो शेक पी रहे है तो ध्यान रखे आम खट्‌टा ना हो । ।

ऐसी ही उरद की दाल और दही एक दुसरे के जानी दुशमन हैं ।
उरद की दाल पर भारत में जितनी रिसर्च हो चुकी हैं तो ये पता लगा ये दालो की राजा है । हमेशा अकेले ही खाये दही के साथ तो भूल कर भी ना खाये ।

आप इसका अपने शरीर पर परिकक्षण करे । एक खाने से पहले अपना b.P चैक करें । फ़िर उरद की दाल और दही खाये । आप पायेगें 22 से 25 % आपका B.P बढ़ा हुआ होगा । अर्थात ये अगर रोज रोज आप उरद की दाल , दही खा रहें है तो 5,6 महीने में हार्ट अटैक आ ही जायेगा ।

इसका मतलब (दही वाड़ा ) कभी नहीं ।
क्योंके दही वाड़ा मे अगर वाड़ा उरद की दाल का बना हैं । और आप उसे दही के साथ खा रहें है तो बहुत तकलीफ़ करने वाला है ।

हां अगर आपको खाना है तो जरुर खायें लेकिन दही के साथ नहीं चटनी के साथ खायें ।

इस लिये अगर घर में विवाह है तो मीनो बनाते समय जरुर ध्यान रखें । उरद की दाल का वड़ा दही के साथ परोस कर दोहरे पाप के भागी न बने ।क्योंके आतिथि देवो भव । मेहमान भगवान का रुप हैं । उसके हनिकारक वस्तुये न खिलाये ।

या वो वड़ा मूंग की दाल का बनवाये । उरद की दाल का है तो दही के साथ नहीं चटनी के साथ खाये ।


आयुर्वेद के मुताबिक किस-किस चीज को साथ नहीं खाना चाहिए और क्यों, जानते हैं :


दूध के साथ दही लें या नहीं? दूध और दही दोनों की तासीर अलग होती है। दही एक खमीर वाली चीज है। दोनों को मिक्स करने से बिना खमीर वाला खाना (दूध) खराब हो जाता है। साथ ही, एसिडिटी बढ़ती है और गैस, अपच व उलटी हो सकती है। इसी तरह दूध के साथ अगर संतरे का जूस लेंगे तो भी पेट में खमीर बनेगा। अगर दोनों को खाना ही है तो दोनों के बीच घंटे-डेढ़ घंटे का फर्क होना चाहिए क्योंकि खाना पचने में कम-से-कम इतनी देर तो लगती ही है।



दूध के साथ तला-भुना और नमकीन खाएं या नहीं? दूध में मिनरल और विटामिंस के अलावा लैक्टोस शुगर और प्रोटीन होते हैं। दूध एक एनिमल प्रोटीन है और उसके साथ ज्यादा मिक्सिंग करेंगे तो रिएक्शन हो सकते हैं। फिर नमक मिलने से मिल्क प्रोटींस जम जाते हैं और पोषण कम हो जाता है। अगर लंबे समय तक ऐसा किया जाए तो स्किन की बीमारियां हो सकती हैं। आयुर्वेद के मुताबिक उलटे गुणों और मिजाज के खाने लंबे वक्त तक ज्यादा मात्रा में साथ खाए जाएं तो नुकसान पहुंचा सकते हैं। लेकिन मॉडर्न मेडिकल साइंस ऐसा नहीं मानती।



सोने से पहले दूध पीना चाहिए या नहीं? आयुर्वेद के मुताबिक नींद शरीर के कफ दोष से प्रभावित होती है। दूध अपने भारीपन, मिठास और ठंडे मिजाज के कारण कफ प्रवृत्ति को बढ़ाकर नींद लाने में सहायक होता है। मॉडर्न साइंस में भी माना जाता है कि दूध नींद लाने में मददगार होता है। इससे सेरोटोनिन हॉर्मोन भी निकलता है, जो दिमाग को शांत करने में मदद करता है। वैसे, दूध अपने आप में पूरा आहार है, जिसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और कैल्शियम होते हैं। इसे अकेले पीना ही बेहतर है। साथ में बिस्किट, रस्क, बादाम या ब्रेड ले सकते हैं, लेकिन भारी खाना खाने से दूध के गुण शरीर में समा नहीं पाते।



दूध में पत्ती या अदरक आदि मिलाने से सिर्फ स्वाद बढ़ता है, उसका मिजाज नहीं बदलता। वैसे, टोंड दूध को उबालकर पीना, खीर बनाकर या दलिया में मिलाकर लेना और भी फायदेमंद है। बहुत ठंडे या गर्म दूध की बजाय गुनगुना या कमरे के तापमान के बराबर दूध पीना बेहतर है।



नोट : अक्सर लोग मानते हैं कि सर्जरी या टांके आदि के बाद दूध नहीं लेना चाहिए क्योंकि इससे पस पड़ सकती है, यह गलतफहमी है। दूध में मौजूद प्रोटीन शरीर की टूट-फूट को जल्दी भरने में मदद करते हैं। दूध दिन भर में कभी भी ले सकते हैं। सोने से कम-से-कम एक घंटे पहले लें। दूध और डिनर में भी एक घंटे का अंतर रखें।



खाने के साथ छाछ लें या नहीं? छाछ बेहतरीन ड्रिंक या अडिशनल डाइट है। खाने के साथ इसे लेने से खाने का पाचन भी अच्छा होता है और शरीर को पोषण भी ज्यादा मिलता है। यह खुद भी आसानी से पच जाती है। इसमें अगर एक चुटकी काली मिर्च, जीरा और सेंधा नमक मिला लिया जाए तो और अच्छा है। इसमें अच्छे बैक्टीरिया भी होते हैं, जो शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं। मीठी लस्सी पीने से फालतू कैलरी मिलती हैं, इसलिए उससे बचना चाहिए। छाछ खाने के साथ लेना या बाद में लेना बेहतर है। पहले लेने से जूस डाइल्यूट हो जाएंगे।



दही और फल एक साथ लें या नहीं? फलों में अलग एंजाइम होते हैं और दही में अलग। इस कारण वे पच नहीं पाते, इसलिए दोनों को साथ लेने की सलाह नहीं दी जाती। फ्रूट रायता कभी-कभार ले सकते हैं, लेकिन बार-बार इसे खाने से बचना चाहिए।



आयुर्वेद के मुताबिक परांठे या पूरी आदि तली-भुनी चीजों के साथ दही नहीं खाना चाहिए क्योंकि दही फैट के पाचन में रुकावट पैदा करता है। इससे फैट्स से मिलनेवाली एनर्जी शरीर को नहीं मिल पाती।



दूध के साथ फल खाने चाहिए या नहीं? दूध के साथ फल लेते हैं तो दूध के अंदर का कैल्शियम फलों के कई एंजाइम्स को एड्जॉर्ब (खुद में समेट लेता है और उनका पोषण शरीर को नहीं मिल पाता) कर लेता है। संतरा और अनन्नास जैसे खट्टे फल तो दूध के साथ बिल्कुल नहीं लेने चाहिए। व्रत वगैरह में बहुत से लोग केला और दूध साथ लेते हैं, जोकि सही नहीं है। केला कफ बढ़ाता है और दूध भी कफ बढ़ाता है। दोनों को साथ खाने से कफ बढ़ता है और पाचन पर भी असर पड़ता है। इसी तरह चाय, कॉफी या कोल्ड ड्रिंक के रूप में खाने के साथ अगर बहुत सारा कैफीन लिया जाए तो भी शरीर को पूरे पोषक तत्व नहीं मिल पाते।



मछली के साथ दूध पिएं या नहीं? दही की तासीर ठंडी है। उसे किसी भी गर्म चीज के साथ नहीं लेना चाहिए। मछली की तासीर काफी गर्म होती है, इसलिए उसे दही के साथ नहीं खाना चाहिए। इससे गैस, एलर्जी और स्किन की बीमारी हो सकती है। दही के अलावा शहद को भी गर्म चीजों के साथ नहीं खाना चाहिए।



फल खाने के फौरन बाद पानी पी सकते हैं, खासकर तरबूज खाने के बाद? फल खाने के फौरन बाद पानी पी सकते हैं, हालांकि दूसरे तरल पदार्थों से बचना चाहिए। असल में फलों में काफी फाइबर होता है और कैलरी काफी कम होती है। अगर ज्यादा फाइबर के साथ अच्छा मॉइश्चर यानी पानी भी मिल जाए तो शरीर में सफाई अच्छी तरह हो जाती है। लेकिन तरबूज या खरबूज के मामले में यह थ्योरी सही नहीं बैठती क्योंकि ये काफी फाइबर वाले फल हैं। तरबूज को अकेले और खाली पेट खाना ही बेहतर है। इसमें पानी काफी ज्यादा होता है, जो पाचन रसों को डाइल्यूट कर देता है। अगर कोई और चीज इसके साथ या फौरन बाद/पहले खाई जाए तो उसे पचाना मुश्किल होता है। इसी तरह, तरबूज के साथ पानी पीने से लूज-मोशन हो सकते हैं। वैसे तरबूज अपने आप में काफी अच्छा फल है। यह वजन घटाने के इच्छुक लोगों के अलावा शुगर और दिल के मरीजों के लिए भी अच्छा है।



खाने के साथ फल नहीं खाने चाहिए। कार्बोहाइड्रेट और प्रोटींस के पाचन का मिकैनिज्म अलग होता है। कार्बोहाइड्रेट को पचानेवाला स्लाइवा एंजाइम एल्कलाइन मीडियम में काम करता है, जबकि नीबू, संतरा, अनन्नास आदि खट्टे फल एसिडिक होते हैं। दोनों को साथ खाया जाए तो कार्बोहाइड्रेट या स्टार्च की पाचन प्रक्रिया धीमी हो जाती है। इससे कब्ज, डायरिया या अपच हो सकती है। वैसे भी फलों के पाचन में सिर्फ दो घंटे लगते हैं, जबकि खाने को पचने में चार-पांच घंटे लगते हैं। मॉडर्न मेडिकल साइंस की राय कुछ और है। उसके मुताबिक, फ्रूट बाहर एसिडिक होते हैं लेकिन पेट में जाते ही एल्कलाइन हो जाते हैं। वैसे भी शरीर में जाकर सभी चीजें कार्बोहाइड्रेट, फैट, प्रोटीन आदि में बदल जाती हैं, इसलिए मॉडर्न मेडिकल साइंस तरह-तरह के फलों को मिलाकर खाने की सलाह देता है।



मीठे फल और खट्टे फल एक साथ न खाएं आयुर्वेद के मुताबिक, संतरा और केला एक साथ नहीं खाना चाहिए क्योंकि खट्टे फल मीठे फलों से निकलनेवाली शुगर में रुकावट पैदा करते हैं, जिससे पाचन में दिक्कत हो सकती है। साथ ही, फलों की पौष्टिकता भी कम हो सकती है। मॉडर्न मेडिकल साइंस इससे इत्तफाक नहीं रखती।



खाने के साथ पानी पिएं या नहीं? पानी बेहतरीन पेय है, लेकिन खाने के साथ पानी पीने से बचना चाहिए। खाना लंबे समय तक पेट में रहेगा तो शरीर को पोषण ज्यादा मिलेगा। अगर पानी ज्यादा लेंगे तो खाना फौरन नीचे चला जाएगा। अगर पीना ही है तो थोड़ा पिएं और गुनगुना या नॉर्मल पानी पिएं। बहुत ठंडा पानी पीने से बचना चाहिए। पानी में अजवाइन या जीरा डालकर उबाल लें। यह खाना पचाने में मदद करता है। खाने से आधा घंटा पहले या एक घंटा बाद गिलास भर पानी पीना अच्छा है।



लहसुन या प्याज खाने चाहिए या नहीं? लहसुन और प्याज को रोजाना के खाने में शामिल किया जाना चाहिए। लहसुन फैट कम करता है और बैड कॉलेस्ट्रॉल (एलडीएल) घटाकर गुड कॉलेस्ट्रॉल (एचडीएल) बढ़ाता है। इसमें एंटी-बॉडीज और एंटी-ऑक्सिडेंट गुण होते हैं। प्याज से भूख बढ़ती है और यह खून की नलियों के आसपास फैट जमा होने से रोकता है। लंबे समय तक इसके इस्तेमाल से सर्दी-जुकाम और सांस संबंधी एलर्जी का मुकाबला अच्छे से किया जा सकता है। लहसुन और प्याज कच्चा या भूनकर, दोनों तरह से खा सकते हैं। लेकिन लहसुन कच्चा खाना बेहतर है। कच्चे लहसुन को निगलें नहीं, चबाकर खाएं क्योंकि कच्चा लहसुन कई बार पच नहीं पाता। साथ ही, उसमें कई ऐसे तेल होते हैं, जो चबाने पर ही निकलते हैं और उनका फायदा शरीर को मिलता है।



परांठे के साथ दही खाएं या नहीं? आयुर्वेद के मुताबिक परांठे या पूरी आदि तली-भुनी चीजों के साथ दही नहीं खाना चाहिए क्योंकि दही फैट के पाचन में रुकावट पैदा करता है। इससे फैट्स से मिलनेवाली एनजीर् शरीर को नहीं मिल पाती। दही खाना ही है तो उसमें काली मिर्च, सेंधा नमक या आंवला पाउडर मिला लें। हालांकि रोटी के साथ दही खाने में कोई परहेज नहीं है। मॉडर्न साइंस कहता है कि दही में गुड बैक्टीरिया होते हैं, जोकि खाना पचाने में मदद करते हैं इसलिए दही जरूर खाना चाहिए।



फैट और प्रोटीन एक साथ खाएं या नहीं? घी, मक्खन, तेल आदि फैट्स को पनीर, अंडा, मीट जैसे भारी प्रोटींस के साथ ज्यादा नहीं खाना चाहिए क्योंकि दो तरह के खाने अगर एक साथ खाए जाएं, तो वे एक-दूसरे की पाचन प्रक्रिया में दखल देते हैं। इससे पेट में दर्द या पाचन में गड़बड़ी हो सकती है।



दूध, ब्रेड और बटर एक साथ लें या नहीं? दूध को अकेले लेना ही बेहतर है। तब शरीर को इसका फायदा ज्यादा होता है। आयुर्वेद के मुताबिक प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फैट की ज्यादा मात्रा एक साथ नहीं लेनी चाहिए क्योंकि तीनों एक-दूसरे के पचने में रुकावट पैदा कर सकते हैं और पेट में भारीपन हो सकता है। मॉडर्न साइंस इसे सही नहीं मानता। उसके मुताबिक यह सबसे अच्छे नाश्तों में से है क्योंकि यह अपनेआप में पूरा है।



तरह-तरह की डिश एक साथ खाएं या नहीं? एक बार के खाने में बहुत ज्यादा वैरायटी नहीं होनी चाहिए। एक ही थाली में सब्जी, नॉन-वेज, मीठा, चावल, अचार आदि सभी कुछ खा लेने से पेट में खलबली मचती है। रोज के लिए फुल वैरायटी की थाली वाला कॉन्सेप्ट अच्छा नहीं है। कभी-कभार ऐसा चल जाता है।



खाने के बाद मीठा खाएं या नहीं? मीठा अगर खाने से पहले खाया जाए तो बेहतर है क्योंकि तब न सिर्फ यह आसानी से पचता है, बल्कि शरीर को फायदा भी ज्यादा होता है। खाने के बाद में मीठा खाने से प्रोटीन और फैट का पाचन मंदा होता है। शरीर में शुगर सबसे पहले पचता है, प्रोटीन उसके बाद और फैट सबसे बाद में।



खाने के बाद चाय पिएं या नहीं? खाने के बाद चाय पीने से कई फायदा नहीं है। यह गलत धारणा है कि खाने के बाद चाय पीने से पाचन बढ़ता है। हालांकि ग्रीन टी, डाइजेस्टिव टी, कहवा या सौंफ, दालचीनी, अदरक आदि की बिना दूध की चाय पी सकते हैं।



छोले-भठूरे या पिज्जा/बर्गर के साथ कोल्ड ड्रिंक्स लें या नहीं? कोल्ड ड्रिंक में मौजूद एसिड की मात्रा और ज्यादा शुगर फास्ट फूड (पिज्जा, बर्गर, फ्रेंच फ्राइस आदि) में मौजूद फैट के साथ अच्छा नहीं माना जाता। तला-भुना खाना एसिडिक होता है और शुगर भी एसिडिक होती है। ऐसे में दोनों को एक साथ लेना सही नहीं है। साथ ही बहुत गर्म और ठंडा एक साथ नहीं खाना चाहिए। गर्मागर्म भठूरे या बर्गर के साथ ठंडा कोल्ड ड्रिंक पीना शरीर के तापमान को खराब करता है। स्नैक्स में मौजूद फैटी एसिड्स शुगर का पाचन भी खराब करते हैं। फास्ट फूड या तली-भुनी चीजों के साथ कोल्ड ड्रिंक के बजाय जूस, नीबू-पानी या छाछ ले सकते हैं। जूस में मौजूद विटामिन-सी खाने को पचाने में मदद करता है।


भारी काबोर्हाइड्रेट्स के साथ भारी प्रोटीन खाएं या नहीं? मीट, अंडे, पनीर, नट्स जैसे प्रोटीन ब्रेड, दाल, आलू जैसे भारी कार्बोहाइड्रेट्स के साथ न खाएं। दरअसल, हाई प्रोटीन को पचाने के लिए जो एंजाइम चाहिए, अगर वे एक्टिवेट होते हैं तो वे हाई कार्बो को पचाने वाले एंजाइम को रोक देते हैं। ऐसे में दोनों का पाचन एक साथ नहीं हो पाता। अगर लगातार इन्हें साथ खाएं तो कब्ज की शिकायत हो सकती है।
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http://www.youtube.com/watch?v=YI5XgzMvSU0

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सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

पारद शिवलिंग

पारद शिवलिंग…………………….

पारद (पारा) को रसराज कहा जाता है। पारद से बने शिवलिंग की पूजा करने से बिगड़े काम भी बन जाते हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार पारद शिवलिंग साक्षात भगवान शिव का ही रूप है इसलिए इसकी पूजा विधि-विधान से करने से कई गुना फल प्राप्त होता है तथा हर मनोकामना पूरी होती है। घर में पारद शिवलिंग सौभाग्य, शान्ति, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के लिए अत्यधिक सौभाग्यशाली है। दुकान, ऑफिस व फैक्टरी में व्यापारी को बढाऩे के लिए पारद शिवलिंग का पूजन एक अचूक उपाय है। शिवलिंग के मात्र दर्शन ही सौभाग्यशाली होता है। इसके लिए किसी प्राणप्रतिष्ठा की आवश्कता नहीं हैं। पर इसके ज्यादा लाभ उठाने के लिए पूजन विधिक्त की जानी चाहिए।

# पूजन की विधि ……………………

सर्वप्रथम शिवलिंग को सफेद कपड़े पर आसन पर रखें।
स्वयं पूर्व-उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बैठ जाए।
अपने आसपास जल, गंगाजल, रोली, मोली, चावल, दूध और हल्दी, चन्दन रख लें।
सबसे पहले पारद शिवलिंग के दाहिनी तरफ दीपक जला कर रखो।
थोडा सा जल हाथ में लेकर तीन बार निम्न मन्त्र का उच्चारण करके पी लें।
प्रथम बार ॐ मुत्युभजाय नम:
दूसरी बार ॐ नीलकण्ठाय: नम:
तीसरी बार ॐ रूद्राय नम:
चौथी बार ॐशिवाय नम:
हाथ में फूल और चावल लेकर शिवजी का ध्यान करें और मन में ''ॐ नम: शिवाय`` का 5 बार स्मरण करें और चावल और फूल को शिवलिंग पर चढ़ा दें।
इसके बाद ॐ नम: शिवाय का निरन्तर उच्चारण करते रहे।
फिर हाथ में चावल और पुष्प लेकर ''ॐ पार्वत्यै नम:`` मंत्र का उच्चारण कर माता पार्वती का ध्यान कर चावल पारा शिवलिंग पर चढ़ा दें।
इसके बाद ॐ नम: शिवाय का निरन्तर उच्चारण करें।
फिर मोली को और इसके बाद बनेऊ को पारद शिवलिंग पर चढ़ा दें।
इसके पश्चात हल्दी और चन्दन का तिलक लगा दे।
चावल अर्पण करे इसके बाद पुष्प चढ़ा दें।
मीठे का भोग लगा दे।
भांग, धतूरा और बेलपत्र शिवलिंग पर चढ़ा दें।
फिर अन्तिम में शिव की आरती करे और प्रसाद आदि ले लो।
जो व्यक्ति इस प्रकार से पारद शिवलिंग का पूजन करता है इसे शिव की कृपा से सुख समृद्धि आदि की प्राप्ति होती है।

#लाभ……………………..

इसे घर में स्थापित करने से भी कई लाभ हैं, जो इस प्रकार हैं…………………
* पारद शिवलिंग सभी प्रकार के तन्त्र प्रयोगों को काट देता है.
* पारद शिवलिंग जहां स्थापित होता है उसके १०० फ़ीट के दायरे में उसका प्रभाव होता है. इस प्रभाव से परिवार में शांति और स्वास्थ्य प्राप्ति होती है.
* पारद शिवलिंग शुद्ध होना चाहिये, हस्त निर्मित होना चाहिये, स्वर्ण ग्रास से युक्त होना चाहिये, उसपर फ़णयुक्त नाग होना चाहिये. कम से कम सवा किलो का होना चाहिये.
* य़दि बहुत प्रचण्ड तान्त्रिक प्रयोग या अकाल मृत्यु या वाहन दुर्घटना योग हो तो ऐसा शुद्ध पारद शिवलिंग उसे अपने ऊपर ले लेता है. ऐसी स्थिति में यह अपने आप टूट जाता है, और साधक की रक्षा करता है.
* पारद शिवलिंग की स्थापना करके साधना करने पर स्वतः साधक की रक्षा होती रहती है.विशेष रूप से महाविद्या और काली साधकों को इसे अवश्य स्थापित करना चाहिये.
* पारद शिवलिंग को घर में रखने से सभी प्रकार के वास्तु दोष स्वत: ही दूर हो जाते हैं साथ ही घर का वातावरण भी शुद्ध होता है।
* पारद शिवलिंग साक्षात भगवान शिव का स्वरूप माना गया है। इसलिए इसे घर में स्थापित कर प्रतिदिन पूजन करने से किसी भी प्रकार के तंत्र का असर घर में नहीं होता और न ही साधक पर किसी तंत्र क्रिया का प्रभाव पड़ता है।
* यदि किसी को पितृ दोष हो तो उसे प्रतिदिन पारद शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। इससे पितृ दोष समाप्त हो जाता है।
* अगर घर का कोई सदस्य बीमार हो जाए तो उसे पारद शिवलिंग पर अभिषेक किया हुआ पानी पिलाने से वह ठीक होने लगता है।
* पारद शिवलिंग की साधना से विवाह बाधा भी दूर होती है।

# शुद्ध पारद शिवलिंग की पहचान*******

पारद शिवलिंग पारा अर्थात Mercury का बना होता है. आज कल बाजार में पारद शिवलिंग बने बनाए मिलते है. ये सर्वथा अशुद्ध एवं किन्ही विशेष परिस्थितियों में हानि कारक भी होते है. जैसे सुहागा एवं ज़स्ता के संयोग से बना शिवलिंग भी पारद शिवलिंग जैसा ही लगता है. इसी प्रकार एल्युमिनियम से बना शिवलिंग भी पारद शिवलिंग जैसा ही लगता है. किन्तु उपरोक्त दोनों ही शिवलिंग घर में या पूजा के लिए नहीं रखने चाहिए. इससे रक्त रोग, श्वास रोग एवं मानसिक विकृति उत्पन्न होती है. अतः ऐसे शिवलिंग या इन धातुओ से बने कोई भी देव प्रतिमा घर या पूजा के स्थान में नहीं रखने चाहिए.
पारद शिव लिंग का निर्माण क्रमशः तीन मुख्या धातुओ के रासायनिक संयोग से होता है. “अथर्वन महाभाष्य में लिखा है क़ि-“द्रत्यान्शु परिपाकेनलाब्धो यत त्रीतियाँशतः. पारदम तत्द्वाविन्शत कज्जलमभिमज्जयेत. उत्प्लावितम जरायोगम क्वाथाना दृष्टोचक्षुषः तदेव पारदम शिवलिंगम पूजार्थं प्रति गृह्यताम. अर्थात अपनी सामर्थ्य के अनुसार कम से कम कज्जल का बीस गुना पारद एवं मनिफेन (Magnesium) के चालीस गुना पारद, लिंग निर्माण के लिए परम आवश्यक है. इस प्रकार कम से कम सत्तर प्रतिशत पारा, पंद्रह प्रतिशत मणि फेन या मेगनीसियम तथा दस प्रतिशत कज्जल या कार्बन तथा पांच प्रतिशत अंगमेवा या पोटैसियम कार्बोनेट होना चाहिए.ऐसे पारद शिवलिंग को आप केवल बिना पूजा के अपने घर में रख सकते है. यदि आप चाहें तो इसकी पूजा कर सकते है. किन्तु यदि अभिषेक करना हो तो उसके बाद इस शिवलिंग को पूजा के बाद घर से बाहर कम से कम चालीस हाथ की दूरी पर होना चाहिए. अन्यथा इसके विकिरण का दुष्प्रभाव समूचे घर परिवार को प्रभावित करेगा. किन्तु यदि रोज ही नियमित रूप से अभिषेक करना हो तो इसे घर में स्थायी रूप से रखा जा सकता है. ऐसे व्यक्ति बहुत बड़े तपोनिष्ठ उद्भात्त विद्वान होते है. यह साधारण जन के लिए संभव नहीं है. अतः यदि घर में रखना हो तो उसका अभिषेक न करे.
पारद शिवलिंग यदि कोई अति विश्वसनीय व्यक्ति बनाने वाला हो तो उससे आदेश या विनय करके बनवाया जा सकता है. वैसे भी इसका परीक्षण किया जा सकता है. यदि इस शिवलिंग को अमोनियम हाईड्राक्साइड से स्पर्श कराया जाय तो कोई दुर्गन्ध नहीं निकलेगा. किन्तु पोटैसियम क्लोरेट से स्पर्श कराया जाय तो बदबू निकलने लगेगी. यही नहीं पारद शिव लिंग को कभी भी सोने से स्पर्श न करायें नहीं तो यह सोने को खा जाता है.
यद्यपि पारद शिवलिंग एवं इसके साथ रखे जाने वाले दक्षिणा मूर्ती शंख की बहुत ही उच्च महत्ता बतायी गयी है. विविध धर्म ग्रंथो में इसकी भूरी भूरी प्रशंसा की गयी है. किन्तु यदि इसके निर्माण की विश्वसनीयता पर तनिक भी संदेह हो तो इसका परित्याग ही सर्वथा अच्छा है. अतः सामान्य रूप से बाज़ार में मिलाने वाले पारद शिवलिंग के नाम पर कोई शिवलिंग तब तक न खरीदें जब तक आप उसकी शुद्धता पर आश्वस्त न हो जाएँ.

#अब मैं पार्थिव पारद शिवलिंग के निर्माण के तत्वों एवं उसकी प्रक्रिया के बारे में बताना चाहूँगा………..

* अबरताल- इसका अंग्रेजी या वैज्ञानिक नाम आर्सेनिक है. यह एक प्रकार का विष भी है. किन्तु पारे के मिश्रण से यह एक बहुत ही शक्तिशाली विषघ्न भी बन जाता है. पारे के साथ यह बहुत ही आसानी से घुल मिल जाता है. तथा बहुत ही शीघ्र पारा ठोस रूप धारण कर लेता है. कहा भी गया है कि “ पार्थिव पारदो लिंगम श्नोश्रेयमभिशंसितम“. अर्थात अबरताल के संयोग से बना शिवलिंग सर्वपाप ह़र होता है. किन्तु आर्सेनिक को प्राकृतिक अवस्था में ही होना चाहिए. अन्यथा शोधित आर्सेनिक लवणीकृत (आक्सी डेनटीफायिड) हो जाता है. जो हानिकारक होता है. यदि आर्सेनिक का कणीय अयन 122 : 2200 का हो तों ऐसे आर्सेनिक का पारे के साथ संयोग सर्वोत्तम माना जाता है. ऐसे शिवलिंग का वजन तीन छटाक से किसी भी हालत में ज्यादा नहीं होना चाहिए.

*मृगालक…………….. इसे अंग्रेजी या विज्ञान क़ी भाषा में फास्फोरस कहते है. फास्फोरस एक अति शीघ्र ज्वलन शील पदार्थ होता है. किन्तु प्राकृतिक अवस्था में यह सुषुप्त होता है. पारद के साथ यह थोड़ी कठिनाई से मिलता है. इसीलिए इसमें हाडकेशर या जिल्कोनाईट मिला दिया जाता है. मृगालक के साथ पारद शिवलिंग बनाना थोड़ा कठिन होता है. क्योकि इसे पिघलाने में विस्फोट का भय ज्यादा होता है. शास्त्रों में इसे त्रिताप ह़र कहा गया है.& “विनश्यते त्रयो तापा मृग लिंगम परिपासते” पारद शिवलिंग के लिये मृगालक का कणीय अयन 988 : 453 होना चाहिए. इस शिवलिंग का वजन किसी भी अवस्था में एक पाँव से ज्यादा नहीं होना चाहिए.

*अपन्हुत…………… इसका दूसरा नाम तूतफेन भी है. इसका अंग्रेजी नाम क्युप्रिकमेटासाईड भी है. यह पारद शिवलिंग का सबसे उत्कृष्ट स्वरुप है. जिस घर में इस लिंग क़ी पूजा होगी वहां कलिकाल अपना कोई भी प्रभाव नहीं ड़ाल सकता है पारद शिवलिंग निर्माण में अपन्हुत का कणीय अयन 2400 : 3600 का होना चाहिए. इसके वजन का कोई प्रमाण नहीं है. पौराणिक कथन के अनुसार लंका में रावण ने पांच सहस्र प्रस्थ वजन का शिवलिंग विश्वकर्मा से बनवाया था. एक प्रस्थ में पांच किलो होता है. यही कारण है कि लंका एक अभेद्य दुर्ग बन गया था.

*जिरायत………………. इसका एक नाम पहाडी सुहागा भी है. अंग्रेजी में इसे ट्राईडेनियम कहते है. यह बहुत ही आसानी से बन जाता है. कारण यह है कि यह बहुत हलके ताप पर भी पारा में मिल जाता है. इसे अक्सर लोग घरो में शौकिया तौर पर रखते है. इसका न तों कोई लाभ है और न ही कोई हानि. यह बहुत ही चमकीला होता है. किन्तु पानी के संयोग होने से यह शिवलिंग यह एक बदबूदार गंध उत्पन्न करता है. अतः इसे पूजा करने के लिये नहीं रखा जाता है. इसे शीशे के मर्तबान में रखना चाहिए. खुले में इसे नहीं रखना चाहिए. ज्यादा आर्द्र स्थान पर इसे नहीं रखना चाहिए. यह एक अति तीव्र हींग शोधक पदार्थ भी है.

* वज्रदंती……………. यह अभ्रक या Ore का अशुद्ध रूप है यह शिवलिंग बहुत कठिनाई से बनता है. वर्त्तमान समय में यह शिवलिंग बनवाना बहुत ही महँगा है. कारण यह है कि वज्रदंती आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक अति प्रतिबंधित या सुरक्षित धातु हो गयी है. सरकार क़ी अनुमति से ही इसे खरीदा जाता है. इसका कणीय अयन 23 :12 का होना चाहिए. इसका वजन घर के प्रयोग के लिये दो छटाक से ज्यादा नहीं होना चाहिए. बाहर स्थापना के लिये इसके वजन का कोई प्रमाण नहीं है.( पुराणों में कहा गया है कि जब इन्द्र भगवान राक्षसो से पराजित होकर स्वर्ग से निकाल दिये गये तों उनकी पत्नी शची ने माता कालिका से इस विपदा के निवारण का उपाय पूछा. माता कालिका ने कहा कि हे इन्द्रानी यदि तुम पृथ्वी पर किसी भी तीर्थ क्षत्र में वज्रदंती पारद शिवलिंग क़ी स्थापना कर दो तों राक्षस बिना किसी युद्ध के स्वयं ही भय भीत होकर स्वर्ग छोड़ कर पाताल में भाग जायेगें. तब इन्द्रानी ने भगवान त्वष्टा से विनय कर के वज्रदंती के पारद शिवलिंग का निर्माण कराया था. तथा उसे प्रभास क्षेत्र में स्थापित किया था. जिसके प्रभाव से राक्षस स्वर्ग छोड़ कर पलायित हो गये थे.)
* कज्जल…………. यह एक प्रकार का ठोस कालिख होता है. इसे नौसादर एवं एवं तूतिया जलाकर बनाते है. इसे अंग्रेजी में जिंककार्बेट कहते है. इस शिवलिंग का प्रयोग तांत्रिक काम के लिये ज्यादा करते है. यह एक अति प्रचलित पारद शिवलिंग का रूप है. इसके निर्माण में कम से कम 70 हिस्सा पारा एवं 30 हिस्सा काज़ल होना चाहिए. काज़ल बहुत ही आसानी से पारा में मिल जाता है. यह बना बनाया बाजार में जहां तहाँ मिल जाता है. किन्तु उसमें पारा बहुत ही कम होता है. प्रायः देखने में आया है कि ऐसे शिवलिंग में पारा मात्र 10 प्रतिशत ही होता है. इसमें कज्जल का कणीय अयन 190 ; 30 का होना चाहिए. इसका वजन तीन छटाक से ज्यादा नहीं होना चाहिए. (महाराजा बलि ने भगवान विष्णु क़ी आज्ञा से पाताल में एक करोड़ कज्जल पारद शिवलिंग का निर्माण कराया था. राजा मुचुकुन्द ने अपने गुरु आचार्य अभिन्नदोह के आदेश से अनार्यगत या यायावर प्रदेश में अपनी ऊंचाई का कज्जल शिवलिंग बनवाया था. जो आज भी कावा या बगदाद में है. जहां मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग अपना सबसे पवित्र तीर्थ यात्रा “हज’ पूरी करते है.)

दमा रोग(asthama) ठीक करने के आसान उपा

दमा रोग(asthama) ठीक करने के आसान उपाय

श्वास अथवा दमा श्वसन तंत्र की भयंकर कष्टदायी बीमारी है। यह रोग किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है।श्वास पथ की मांसपेशियों में आक्छेप होने से सांस लेने निकालने में कठिनाई होती है।खांसी का वेग होन…और श्वासनली में कफ़ जमा हो जाने पर तकलीफ़ ज्यादा बढ जाती है।रोगी बुरी तरह हांफ़ने लगता है।

एलर्जी पैदा करने वाले पदार्थ या वातावरण के संपर्क में आने से,बीडी,
सिगरेट धूम्रपान करने से,ज्यादा सर्द या ज्यादा गर्म मौसम,स
ुगन्धित पदार्थों,आर्द्र हवा,ज्यादा कसरत करने और मानसिक तनाव से दमा का रोग उग्र हो जाता है।

यहां ऐसे घरेलू नुस्खों का उळ्लेख किया जा रहा है जो इस रोग ठीक करने,दौरे को नियंत्रित करने,और श्वास की कठिनाई में राहत देने वाल सिद्ध हुए हैं–

१) तुलसी के १५-२० पत्ते पानी से साफ़ करलें फ़िर उन पर काली मिर्च का पावडर बुरककर खाने से दमा मे राहत मिलती है।

२) एक केला छिलका सहित भोभर या हल्की आंच पर भुन लें। छिलका उतारने के बाद काली मिर्च का पावडर उस पर बुरककर खाने से श्वास की कठिनाई तुरंत दूर होती है।

३) दमा के दौरे को नियंत्रित करने के लिये हल्दी एक चम्मच दो चम्मच शहद में मिलाकर चाटलें।

४) तुलसी के पत्ते पानी के साथ पीस लें ,इसमें दो चम्मच शहद मिलाकर सेवन करने से दमा रोग में लाभ मिलता है।

५) पहाडी नमक सरसों के तेल मे मिलाकर छाती पर मालिश करने से फ़ोरन शांति मिलती है।

६) मैथी के बीज १० ग्राम एक गिलास पानी मे उबालें तीसरा हिस्सा रह जाने पर ठंडा करलें और पी जाएं। यह उपाय दमे के अलावा शरीर के अन्य अनेकों रोगों में फ़ायदेमंद है।

७) एक चम्मच हल्दी एक गिलास दूध में मिलाकर पीने से दमा रोग काबू मे रहता है।एलर्जी नियंत्रित होती है।

८) सूखे अंजीर ४ नग रात भर पानी मे गलाएं,सुबह खाली पेट खाएं।इससे श्वास नली में जमा बलगम ढीला होकर बाहर निकलता है।

९) सहजन की पत्तियां उबालें।छान लें उसमें चुटकी भर नमक,एक चौथाई निंबू का रस,और काली मिर्च का पावडर मिलाकर पियें।दमा का बढिया इलाज माना गया है।

१०) शहद दमा की अच्छी औषधि है।शहद भरा बर्तन रोगी के नाक के नीचे रखें और शहद की गन्ध श्वास के साथ लेने से दमा में राहत मिलती है।

११) दमा में नींबू का उपयोग हितकर है।एक नींबू का रस एक गिलास जल के साथ भोजन के साथ पीना चाहिये।

१२) लहसुन की ५ कली चाकू से बारीक काटकर ५० मिलि दूध में उबालें।यह मिक्श्चर सुबह-शाम लेना बेहद लाभकारी है।

१३)-अनुसंधान में यह देखने में आया है कि आंवला दमा रोग में अमृत समान गुणकारी है।एक चम्मच आंवला रस मे दो चम्मच शहद मिलाकर लेने से फ़ेफ़डे ताकतवर बनते हैं।

14) दमे का मरीज उबलते हुए पानी मे अजवाईन डालकर उठती हुई भाप सांस में खींचे ,इससे श्वास-कष्ट में तुरंत राहत मिलती है।

१५) लौंग ४-५ नग लेकर १०० मिलिलिटर पानी में उबालें आधा रह जाने पर छान लें और इसमें एक चम्मच शहद मिलाकर गरम गरम पीयें। ऐसा काढा बनाकर दिन में तीन बार पीने से रोग नियंत्रित होकर दमे में आशातीत लाभ होता है।

१६) चाय बनाते वक्त २ कली लहसुन की पीसकर डाल दें। यह दमे में राहत पहुंचाता है। सुबह-शाम पीयें।

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