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शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

वाह! चायवाले ने गरीब बच्चों के लिए खोल डाला स्कूल:-

वाह! चायवाले ने गरीब बच्चों के लिए खोल डाला स्कूल:-

कटक के एक छोटे से टी-स्टॉल का मालिक गरीब बच्चों की मदद करत करते उनके लिए एक शिक्षक भी बन गया।हर सुबह चाय के ठेला चलाने वा प्रकाश राव कुछ गरीब बच्चों को दूध बेचता है जो उसके स्टॉल के करीब आते हैं। अगर यह 55 साल का चायवाला इस ओर कदम नहीं बढ़ाता तो शायद यह बच्चे कभी पढ़ ही नहीं पाते।

प्रकाश को 11 कक्षा में छात्रवृत्ति के बाद भी पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी जिसके कारण वह शिक्षा की अहमियत जान चुका था। इसके कारण ही प्रकाश ने बस्ती में रहने वाले बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया गया। इस गांव के 2 किमी के आस पास 4 सरकारी स्कूल हैं पर ज्यादातर मां बाप बेहद गरीब परिवार से हैं और वह अपने बच्चों को इस कारण वहां नहीं भेज सकते।

ऐसे बच्चों की मदद प्रकाश ने करी जिससे वह पास में ही अच्छी शिक्षा मुफ्त में ले पाएं।राव ने सभी बच्चों को कक्षा 3 तक पढ़ाता है और इसको पास करने वाले छात्रों को वह सरकारी स्कूल भेजने में भी मदद करता है।बस्ती में रहने वाली एक मां बी नागरातनम के मुताबिक स्कूल से बच्चों का मन पढ़ने में लग गया।इससे पहले सभी बच्चे आवारा घूमते रहते थे अब पढ़ाई में अपना ध्यान लगाकर वह अपना भविष्य बना रहे हैं।

हालांकि स्कूल बनाने का यह सपना इतना आसान नहीं था। प्रकाश को किसी वित्तीय संस्थान से कोई मदद नहीं मिली और उसने अपने बल पर यह काम पूरा किया। स्कूल के लिए पूरे महीने के किराया 10,000 रुपए होता है जिसमें 4 शिक्षकों का वेतन अलग होता है। प्रकाश अपने टी स्टॉल से 20,000 रुपए का फायदा महीने में कमाता है और कभी किसी बिल के भुगतान में देरी नहीं करता।

मौसमी फलों का सेवन अवश्य करना चाहिए।




मकोय (रसभरी)

- आजकल मकोय के फलों का मौसम चल रहा है।मौसमी फलों का सेवन अवश्य करना चाहिए।

- यह हर जगह अपने आप ही उग जाती है। सर्दियों में इसके नन्हे नन्हे लाल लाल फल बहुत अच्छे लगते हैं ।ये फल बहुत स्वादिष्ट होते हैं और लाभदायक भी।इसके फल जामुनी रंग के या हलके पीले -लाल रंग के होते हैं ।

- मकोय के फल सवेरे सवेरे खाली पेट खाने से अपच की बीमारी ठीक होती है।

- शहद मकोय के गुणों को सुरक्षित रख कर दोषों... को दूर करता है।

- यह वात , पित्त और कफ नाशक होता है।

- यह सूजन और दर्द को दूर करता है।

- शुगर की बीमारी हो या फिर कमजोरी हो तो मकोय के सूखे बीजों का पावडर एक एक चम्मच सवेरे शाम लें . किडनी की बीमारी हों तो 10-15 दिन लगातार इसकी सब्जी खाइए . इसके 10 ग्राम सूखे पंचांग का 200 ग्राम पानी में काढ़ा बनाकर पीयें .

- बुढापे में हृदय गति कम हो जाए तो इसके 10 ग्राम पंचांग का काढ़ा पीयें । हृदय की किसी भी प्रकार की बीमारी के लिए 5 ग्राम मकोय का पंचांग और 5 ग्राम अर्जुन की छाल ; दोनों को मिलाकर 400 ग्राम पानी में पकाएँ । जब एक चौथाई रह जाए तो पी लें ।

- लीवर ठीक नहीं है , पेट खराब है , आँतों में infection है , spleen बढ़ी हुई है या फिर पेट में पानी भर गया है ; सभी का इलाज है मकोय की सब्जी . रोज़ इसकी सब्जी खाएं । या फिर इसके 10 ग्राम पंचांग का काढ़ा पीयें ।

- पीलिया होने पर इसके पत्तों का रस 2-4 चम्मच पानी मिलाकर ले लें ।

- अगर नींद न आये तो इसकी 10 ग्राम जड़ का काढ़ा लें । अगर साथ में गुड भी मिला लें तो नींद तो अच्छी आयेगी ही साथ ही सवेरे पेट भी अच्छे से साफ़ होगा ।

- त्वचा सम्बन्धी बीमारियाँ भी इसके नित्य प्रयोग से ठीक होती हैं ।

- यह सर्दी -खांसी , श्वास के रोग , हिचकी आदि को ठीक करता है।

कोई भी साथ नहीं आने वाला है। अकेले ही जाना है।

महामूर्ख कौन ?
"ज्ञानचंद नामक एक जिज्ञासु भक्त था। वह सदैव  प्रभुभक्ति में लीन रहता था। रोज सुबह उठकर पूजा- पाठ, ध्यान-भजन करने का उसका नियम था। उसके बाद वह दुकान में काम करने जाता। दोपहर के भोजन के समय वह दुकान बंद कर देता और फिर दुकान  नहीं खोलता था। बाकी के समय में वह साधु- संतों को भोजन करवाता, गरीबों की सेवा करता, साधु- संग एवं दान-पुण्य करता। व्यापार में जो भी मिलता उसी में संतोष रखकर प्रभुप्रीति के लिए  जीवन बिता  था। उसके ऐसे व्यवहार से लोगों को आश्चर्य होता और लोग उसे पागल समझते। लोग कहतेः  'यह तो महामूर्ख है। कमाये हुए सभी पैसों को दान में  लुटा देता है। फिर दुकान भी थोड़ी देर के लिए ही खोलता है। सुबह का कमाई करने का समय भी पूजा- पाठ में गँवा देता है। यह तो पागल ही है।'
एक बार गाँव के नगरसेठ ने उसे अपने पास बुलाया।  उसने एक लाल टोपी बनायी थी। नगरसेठ ने वह टोपी ज्ञानचंद को देते हुए कहाः  'यह टोपी मूर्खों के लिए है। तेरे जैसा महान् मूर्ख मैंने अभी तक नहीं देखा, इसलिए यह टोपी तुझे पहनने के लिए देता हूँ। इसके बाद यदि कोई तेरे से भी ज्यादा बड़ा मूर्ख दिखे तो तू उसे पहनने के लिए दे  देना।'
ज्ञानचंद शांति से वह टोपी लेकर घर वापस आ गया। एक दिन वह नगर सेठ खूब बीमार पड़ा। ज्ञानचंद उससे मिलने गया और उसकी तबीयत के हालचाल पूछे। नगरसेठ ने कहाः  'भाई ! अब तो जाने की तैयारी कर रहा हूँ।' ज्ञानचंद ने पूछाः 'कहाँ जाने की तैयारी कर रहे हो?
वहाँ आपसे पहले किसी व्यक्ति को सब तैयारी करने के  लिए भेजा कि नहीं? आपके साथ आपकी स्त्री, पुत्र, धन, गाड़ी, बंगला वगैरह आयेगा कि नहीं?' 'भाई ! वहाँ कौन साथ आयेगा? कोई भी साथ नहीं आने
वाला है। अकेले ही जाना है। कुटुंब-परिवार, धन-दौलत,  महल-गाड़ियाँ सब छोड़कर यहाँ से जाना है। आत्मा- परमात्मा के सिवाय किसी का साथ नहीं रहने वाला है।' सेठ के इन शब्दों को सुनकर ज्ञानचंद ने खुद को दी गयी वह लाल टोपी नगरसेठ को वापस देते हुए कहाः 'आप ही इसे पहनो।'
नगरसेठः 'क्यों?' 
ज्ञानचंदः 'मुझसे ज्यादा मूर्ख तो आप हैं। जब  आपको पता था कि पूरी संपत्ति, मकान, परिवार वगैरह सब यहीं रह जायेगा, आपका कोई भी साथी आपके साथ नहीं आयेगा, भगवान के सिवाय कोई भी सच्चा सहारा नहीं है, फिर भी आपने  पूरी जिंदगी इन्हीं सबके पीछे क्यों बरबाद कर दी?
सुख में आन बहुत मिल बैठत रहत चौदिस घेरे। विपत पड़े सभी संग छोड़त कोउ न आवे नेरे।।

जब कोई धनवान एवं शक्तिवान होता है तब सभी 'सेठ... सेठ.... साहब... साहब...' करते रहते हैं और अपने स्वार्थ के लिए आपके आसपास घूमते रहते हैं। परंतु जब कोई मुसीबत आती है तब कोई भी मदद के लिए पास नहीं आता। ऐसा जानने के बाद भी आपने  क्षणभंगुर वस्तुओं एवं संबंधों के साथ प्रीति की, भगवान से दूर रहे एवं अपने भविष्य का सामान इकट्ठा न किया तो ऐसी अवस्था में आपसे महान् मूर्ख दूसरा कौन हो सकता है?
गुरु तेगबहादुर जी ने कहा हैः
करणो हुतो सु ना कीओ परिओ लोभ के फंध।
नानक समिओ रमि गइओ अब किउ रोवत अंध।।

सेठ जी ! अब तो आप कुछ भी नहीं कर सकते। आप  भी देख रहे हो कि कोई भी आपकी सहायता करने वाला नहीं है।'  क्या वे लोग महामूर्ख नहीं हैं जो जानते हुए भी मोह- माया में फँसकर ईश्वर से विमुख रहते हैं? संसार की चीजों में, संबंधों का संग एवं दान-पुण्य करते हुए  जिंदगी व्यतीत करते तो इस प्रकार दुःखी होने एवं पछताने का समय न आता।" — जय महाकाल

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