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रविवार, 17 मार्च 2013

बेर बीमारियाँ ठीक करने में अत्यंत उपयोगी :-

बेर पौष्टिक फल है इसे गरीबों का फल भी कहा जाता है यह बहुत ज्यादा तापमान या बहुत सूखे क्षेत्रों में बहुत ज्यादा मात्रा में पाया जाता है भारत में लगभग इसकी ४० प्रजातियाँ पाई जाती है बेर का पेड़ ७.१२ मीटर लम्बा होता है तथा उसका तना ३० से.मी.चौड़ा, शाखाएँ झुकी हुई, तेजी से बढ़ने वाला है इसकी उम्र लगभग २५ साल की होती बेर का रंग पिला, हरा, लाल, बैंगनी और गहरा कत्थई व आकार में गोल अंडाकार होता है पका हुआ बेर बहुत मीठा ज्युसी व नरम रहता है एक साल में पेड़ से ५०-२५० की.ग्रा.बेर तक प्राप्त होते है ।

बेर बीमारियाँ ठीक करने में अत्यंत उपयोगी :-

त्वचा पर कट या घाव होने पर फल का गूदा घिसकर लगाने से कटा हुआ स्थान जल्दी ठीक होता है ।

फैंफडे सम्बन्धी बिमारियों या बुखार ठीक करने के लिए इसका ज्यूस अत्यंत गुणकारी है बेर को नमक और काली मिर्च के साथ खाने से अपच की समस्या दूर होती है ।

सूखे हुए बेर को खाने से कब्जियत दूर होती है ।

बेर को छांछ के साथ लेने से भी घबराना, उलटी होना, व पेट दर्द की समस्या ख़त्म हो जाती है ।

इसकी पत्तियां तेल के साथ पुल्टिस बनाकर लगाने से लीवर सम्बन्धी समस्या आस्थामाँ या मसूड़ों के घाव को भरने में मदद मिलती है ।

बेर की जड़ों का ज्यूस थोड़ी सी मात्रा में पीने से गठिया एवं वात जैसी बिमारियों को भी कम करता है बेर शरीर के लिए अत्यंत लाभदायक व स्वास्थ्यवर्धक होने के साथ-साथ आम आदमी की पहुँच में है हर वर्ग का व्यक्ति इसे आसानी से उपयोग में ले सकता है पर इतना जरुर ध्यान रखें की बेर को ३-४ बार अच्छे पानी से धोकर ही खाएं ।

बेर के लाभ :-

शक्कर , विटामिन सी, फास्फोरस व कैल्सियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है ।

बेर की पत्तियों में ६१ आवश्यक प्रोटीन पाए जाने के साथ विटामिन सी केरित लाइड और बी काम्प्लेक्स भी अधिक मात्रा में पाए जाते है ।

बेर को पकाकर बैककर व उबालकर चावल या अन्य अनाजों के साथ चटनी बनाकर खाई जाती है ।

इसमें जैम , टाफी , आचार आदि भी बनाए जा सकते है ।

तना बहुत मजबूत होने के कारण इसकी नाव , औजार घर के खम्बे , खिलौने आदि बनाए जाते है ।

यह पित्त और बलगम को ख़त्म करता है .

बेर के गुदे को आँखों में लगाने से आँखों के रोग समाप्त होते है .

इसकी छाल का लेप करने से चेचक के दाने ख़त्म हो जाते है .



बेर में पाए जाने वाले पौष्टीक तत्व इस प्रकार है :-

कार्बोज २०-३० जी एम्

प्रोटीन २.५ जी एम्

वसा ०.०७ जी एम्

थाइमन ०.०२ एमजी

रायबोफ्लेबिन ०.०३ एम् जी

कैल्शियम २५.६ एम् जी

आयरन १.५-१.८ एम् जी फस फोर्स २६.८ एम् जी

आयुर्वेदिक चिकित्सा के अनुसार गुड़ का उपभोग

आयुर्वेदिक चिकित्सा के अनुसार गुड़ का उपभोग 
गुड़ और शक्कर ईख, ताड़ आदि के रस को गरम कर सुखाने से प्राप्त होने वाला ठोस पदार्थ । इसका रंग हलके पीले से लेकर गाढ़े भूरे तक हो सकता है। भूरा रंग कभी कभी काले रंग का भी आभास देता है। यह खाने में मीठा होता है। प्राकृतिक पदार्थों में सबसे अधिक मीठा कहा जा सकता है। अन्य वस्तुओं की मिठास की तुलना गुड़ से की जाती हैं। साधारणत: यह सूखा, ठोस पदार्थ होता हैं, पर वर्षा ऋतु जब हवा में नमी अधिक रहती है तब पानी को अवशोषित कर अर्धतरल सा हो जाता है। यह पानी में अत्यधिक विलेय होता है और इसमें उपस्थित अपद्रव्य, जैसे कोयले, पत्ते, ईख के छोटे टुकड़े आदि, सरलतर से अलग किए जा सकते हैं। अपद्रव्यों में कभी कभी मिट्टी का भी अंश रहता है, जिसके सूक्ष्म कणों को पूर्णत: अलग करना तो कठिन होता हैं किंतु बड़े बड़े का विलयन में नीचे बैठ जाते हैं तथा अलग किए जा सकते हैं। गरम करने पर यह पहले पिघलने सा लगता है और अंत में जलने के पूर्व अत्यधिक भूरा काला सा हो जाता है।

भारत के ग्रामीण इलाकों मे गुड़ का उपयोग चीनी के स्थान पर किया जाता है। गुड़ लोहतत्व का एक प्रमुख स्रोत है और रक्ताल्पता (एनीमिया) के शिकार व्यक्ति को चीनी के स्थान पर इसके सेवन की सलाह दी जाती है।
गुड़ उपयोगी खाद्य पदार्थ माना जाता है। इसका उपयोग भारत में अति प्राचीन काल से होता आ रहा है। भारत की साधारण जनता इसका व्यापक रूप में उपयोग करती है ।गुजरात और कोलाहपुर का गुड़ और शक्कर विशेष प्रकार के हैं तथा यह भोजन का एक आवश्यक व्यंजन है। इसमें कुछ ऐसे पौष्टिक तत्व विद्यमान रहते हैं जो चीनी में नहीं रहते। स्वच्छ चीनी में केवल चीनी ही रहती हैं, पर गुड़ में 90 प्रतिशत के लगभग ही चीनी रहती है। शेष में ग्लूकोज, खनिज पदार्थ, विटामिन आदि स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयोगी पदार्थ भी रहते हैं। आयुर्वेदिक दवाओं तथा भोज्य पदार्थों में विभिन्न रूपों में इसका उपयोग होता है।गुड़ को बनाते समय इसमे विभिन्न मसाले डाल कर मसाले वाला गूड़ तैयार किया जाता है। मसालों मे प्रमुख रूप से इलायची, सौंफ, काली मिर्च, मूँगफली और कसा हुआ नारियल मिलाया जाता है। इसे आम तौर पर भोजन के पश्चात हाजमा दुरुस्त करने के लिए खाया जाता है।कुछ लोगों द्वारा गुड़ को विशेष रूप से परिशुद्ध चीनी से अधिक पौष्टिक माना जाता है,

परिशुद्ध चीनी के विपरीत, इसमे अधिक खनिज लवण होते है। इसके अतिरिक्त, इसकी निर्माण प्रक्रिया मे रासायनिक वस्तुएं इस्तेमाल नहीं की जाती है। भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा के अनुसार गुड़ का उपभोग गले और फेफड़ों के संक्रमण के उपचार में लाभदायक होता है; साहू और सक्सेना ने पाया कि चूहों मे गुड़ के प्रयोग से कोयले और सिलिका धूल से होने वाली फेफड़ों की क्षति को रोका जा सकता है। गांधी जी के अनुसार चूँकि गुड़ तेजी से रक्त में नही मिलता है इसलिए यह चीनी की तुलना में, अधिक स्वास्थ्यवर्धक है। वैसे, वह अपने स्वयं के व्यक्तिगत आहार में भी इसका प्रयोग करते थे साथ ही वह दूसरो को भी इसके प्रयोग की सलाह देते थे। इसमें सकरोज 59.7 प्रतिशत, ग्लूकोज 21.8 प्रतिशत, खनिज तरल 3.26 प्रतिशत तथा जल अंश 8.86 प्रतिशत मौजूद होते हैं। इनके अलावा गुड़ में कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा तथा ताम्र भी अच्छी मात्रा में होता है। खनिज तरल होने के कारण ही गुड़ का रंग हमेशा काला दिखाई देता है। गुड़ में ग्लूकोज होने के कारण यह जल्दी हजम हो जाता है। गुड़ में ‘बी’ ग्रुप के कुछ जीवन सत्व भी मिलते हैं।गुड़ खाने का मतलब है शरीर से अवांछित कणों की साफ़ सफाई निकासी .गुड़ हमारे श्वसनी क्षेत्र (Respiratory tracts),खाना ले जाने वाली पाइप,भोजन की नली जो भोजन को मुख से आमाशय या उदर तक पहुंचाती है (food pipe ,oesophagus) को स्वच्छ रखता है .पेट और आँतों की सफाई करता है रक्तविकार वाले व्यक्ति को चीनी के स्थान पर गुड़ की चाय, दूध, लस्सी किसी भी पेय में लाभदायक है। खाने के बाद २५ग्राम गुड़ नित्य खाने से उदर- वायु, उदर- विकार ठीक होते हैं, शरीर में यौवन बना रहता है। शारीरिक श्रम करने वाले मजदूर गुड़ खाकर अपने शरीर की टूट-फूट को ठीक कर लेते हैं, थकावट मिटा लेते हैं। ह्रदय की दुर्बलता में गुण खाने से लाभ होता है। सर्द ऋतु में गुण और काले तिल के लड्डू खाने से ज़काम, खाँसी, दमा, ब्रांकाइटिस आदि रोग दूर होते हैं। यहाँ पर मैं आपको ज्ञान के लिए बता दूं के परम पूज्य स्वामी रामदेव जी के द्वारा निर्मित मधुरम शक्कर इसका एक मात्र उदाहरण है।इस शक्कर से आप चाय तक बना सकते हैं क्योंकि ये बिल्कुल रासायन रहित है और दूध में डाल कर उबाल सकते हैं जबकि बाजार से मिलने वाली शक्कर से चाय,दूध फट जाते हैं।दुर्भाग्य से मिलावट के कारण इन स्वदेशी उत्पादों की गुणवता पर असर पड़ा है।

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