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गुरुवार, 1 मई 2014

अक्षय तृतीया

विज्ञानसम्मत दृश्यगणित के अनुसार, शुक्रवार, 2 मई को वैशाख-शुक्ल-तृतीया (अक्षय तृतीया) सूर्योदय से मध्याथ्काल में 12.04 बजे तक विद्यमान रहने से स्नान-दान का पर्वकाल इसी समय में रहेगा। वस्तुत: दान देने से तन-मन-धन, तीनों शुद्ध हो जाते हैं।वैशाख मास को भगवान विष्णु के नाम पर 'माधव मास' कहा जाता है। इस मास के शुक्लपक्ष की तृतीया को सनातन ग्रंथों में अक्षय-फलदायी बताया गया है। इसी कारण इस तिथि का नाम 'अक्षय तृतीया' पड़ गया। भविष्य पुराण में कहा गया है- 'यत् किंचिद् दीयते दानं स्वल्पं वा यदि वा बहु। तत् सर्वमक्षयं यस्मात् तेनेयमक्षया स्मृता।।' अर्थात इस तिथि में थोड़ा या बहुत, जितना और जो कुछ भी दान दिया जाता है, उसका फल अक्षय हो जाता है। अक्षय तृतीया पर मूल्यवान वस्तुएं खरीदने का प्रचलन बन गया है, लेकिन सनातन धर्म के ग्रंथों में इसे संग्रह का नहीं, बल्कि जरूरतमंदों को दान करने का पर्व बताया गया है।

भारतीय काल-गणना के अनुसार, वैशाख-शुक्ल-तृतीया से ही त्रेतायुग का शुभारंभ हुआ था। त्रेतायुग की प्रारंभिक तिथि होने के कारण इसे 'युगादि तिथि' भी कहते हैं। पृथ्वीचंद्रोदय नामक ग्रंथ में सौर पुराण का यह कथन दिया गया है- 'युगादौ तु नर: स्नात्वा विधिवल्लवणोदधौ। गोसहस्र प्रदानस्य फलं प्राप्नोति मानव:।।' अर्थात युगादि तिथि के दिन किसी तीर्थ, पवित्र नदी अथवा सरोवर में स्नान कर दान करने से एक सहश्च गायों के दान (गोदान) का पुण्यफल मिलता है। ऋषि-मुनियों का निर्देश है कि अक्षय तृतीया के दिन हर व्यक्ति को अपनी साम‌र्थ्य के अनुसार दान अवश्य करना चाहिए। भविष्योत्तर पुराण में जौ-चने का सत्तू, दही-चावल, गन्ने का रस, दूध से बनी मिठाई, शक्कर, जल से भरे घड़े, अन्न तथा ग्रीष्म ऋतु में उपयोगी वस्तुओं के दान की बात कही गई है। सामान्यत: सत्तू, पानी से भरी सुराही अथवा घड़े के साथ ताड़ के पंखे का दान किए जाने का प्रचलन है। यह समाज सेवा है, जो सबसे बड़ा धार्मिक कार्य है। इस दिन समाजसेवी संस्थाएं प्यासे पथिकों के लिए पौशाला (प्याऊ) लगवाती हैं। कुछ लोग शीतल जल का शर्बत पिलाते हैं। सही मायनों में तन-मन-धन से गरीबों की सेवा ही नारायण की अर्चना है। बृहत्पाराशर संहिता में कहा गया है- 'दानमेकं कलौ युगे' अर्थात कलियुग में दान अकेले ही सारा पुण्य दे देता है। भगवान कृष्ण का गीता में उपदेश है-'यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम्' अर्थात यज्ञ, दान और तप मनीषियों को पावन करने वाले हैं। श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार, -'शुध्यंति दानै: संतुष्ट्या द्रव्याणि' अर्थात धन दान और संतोष से शुद्ध होता है। इससे अभिप्राय यह है कि धन होने पर दान जरूर करें, इससे मन को संतोष मिलता है और चित्त शुद्ध हो जाता है।
अक्षय तृतीया संग्रह करने की बजाय दान देने की प्रेरणा देती है, परंतु आजकल इस तिथि का व्यावसायीकरण हो गया है। इस संदर्भ में यह कहा जाने लगा है कि अक्षय तृतीया को सोना या सोने के आभूषण खरीदने से समृद्धि बढ़ती है। यह तिथि अपने नाम के अनुरूप अक्षय फल देने में समर्थ है, पर संग्रह करना इस पावन तिथि का मूल उद्देश्य नहीं है। इस तिथि की प्रशस्ति दान से जुड़ी है, संग्रह करने से नहीं। निर्णयसिंधु में भविष्योत्तर पुराण के संदर्भ से स्वर्ण-दान की बात कही गई है, स्वर्ण के क्रय की नहीं। इसलिए इस तिथि को दान का महापर्व कहा जाए, तो अतिशयोक्ति न होगी। दान देने से मन में परोपकार की भावना का उदय होता है तथा आसक्ति और लोभ का दमन होता है।
अक्षय तृतीया का मुहूर्तविज्ञानसम्मत दृश्यगणित के अनुसार, शुक्रवार, 2 मई को वैशाख-शुक्ल-तृतीया (अक्षय तृतीया) सूर्योदय से मध्याथ्काल में 12.04 बजे तक विद्यमान रहने से स्नान-दान का पर्वकाल इसी समय में रहेगा। वस्तुत: दान देने से तन-मन-धन, तीनों शुद्ध हो जाते हैं।

शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

अगर भगवान एक हैं तो मंदिर, चर्च, गुरुद्वारा तोड़ तोड़ कर वह मस्जिद क्यों बनाये जाते हैं ?

सूचना : इस पोस्ट में हर एक मुद्दे का सबुत मिलेगा ! Share please.
http://en.wikipedia.org/wiki/Conversion_of_non-Muslim_places_of_worship_into_mosques

मित्रो, मंदिर-मस्जिद के विवाद को हम भी पसंद नहीं करते, लेकिन याद रखिये बलि हमेशा बकरी की दी जाती हैं, शेर की नहीं ! क्या सेक्युलरिजम का ठेका सिर्फ हिन्दुओ ने ले रखा हैं ? ताली एक हाथ से नहीं, दोनों हाथो से बजती हैं ! कांग्रेस ने हमारी इतिहास के किताबो से इस तरह खिलवाड़ किया हैं की सेक्युलर हिंदू आज सच से अनजान है और कहते कहते हैं की मुसलमानों ने हमारा क्या बिगाड़ा ? मंदिर-मस्जिद की राजनीति से क्या होगा ?

आज हम आप कों मंदिर तोड़कर उस जगह मस्जिद बनाने की इस्लामी परंपरा के बारे में बताने जा रहे हैं ! http://en.wikipedia.org/wiki/Negationism_in_India_–_Concealing_the_Record_of_Islam

अगर भगवान एक हैं तो मंदिर, चर्च, गुरुद्वारा तोड़ तोड़ कर वह मस्जिद क्यों बनाये जाते हैं ?

मुसलमानों ने हिंदुओ पर 1100 साल तक राज किया हैं ! इस दौरान मुसलमानों ने करोडो मासूम हिंदुओ का कत्लेआम किया, करोडो हिंदुओ का धर्मपरिवर्तन कर उन्हें मुसलमान बनाया, और हजारों हिंदू-जैन-बौद्ध मंदिरों कों मस्जिदों में तबदील कर दिया ! भारत में करीब 2000 हिंदू - बौद्ध मंदिरों की जगह आज भी मस्जिदे खड़ी हैं !

http://en.wikipedia.org/wiki/Hindu_Temples_-_What_Happened_to_Them
http://ajitvadakayil.blogspot.in/2011/07/unquantified-holocaust-and-genocide.html

इसी तरह ईसाइयो के चर्च, यहूदि (ज्यु) के सिनेगॉग, पारसी (जोरास्ट्रियन) के फायर टेम्पल (अग्यारी), सिक्खो के गुरुद्वारा तोड़कर उस जगह मुस्लिमों ने मस्जिदे बनायीं !

The conversion of non-Muslim places of worship like Hindu Temples into mosques occurred primarily during the life of Muhammad and continued during subsequent Islamic conquests and under historical Muslim rule. As a result, numerous Hindu temples, churches, synagogues, the Parthenon and Zoroastrian temples were converted into mosques.
http://en.wikipedia.org/wiki/Conversion_of_non-Muslim_places_of_worship_into_mosques

1. बनारस के काशी विश्वनाथ शिव मंदिर की मूल जगह पर आज भी ग्यानव्यापी मस्जिद खड़ी हैं ।
http://en.wikipedia.org/wiki/Kashi_Vishwanath_Temple

http://khabar.ibnlive.in.com/latest-news/news/-181291.html?ref=hindi.in.com

2. अयोध्या के राम मंदिर की जगह इस्लामी मुग़ल सम्राट बाबर ने बनायीं थी बाबरी मस्जिद ।
http://en.wikipedia.org/wiki/Babri_Mosque

http://www.rediff.com/news/2003/aug/25ayo1.htm

3. भोजशाला के सरस्वती मंदिर कों अलाउद्दीन खिलजी ने कमाल मौला मस्जिद में तबदील किया ।
http://en.wikipedia.org/wiki/Bhoj_Shala

4. मथुरा के कृष्ण मंदिर कों महमूद गज़नवी ने तोडा, औरंगजेब की बनायीं मस्जिद पड़ोस में आज भी हैं ।
http://en.wikipedia.org/wiki/Mathura_temple
http://www.thenational.ae/news/world/south-asia/hindus-in-india-claim-two-more-mosques
http://back2godhead.com/vrndavana-land-of-no-return-part-2/

5. गुजरात के सोमनाथ मंदिर कों मोहम्मद घोरी ने ध्वस्त किया, औरंगजेब ने वहा मस्जिद बनायीं ।
http://en.wikipedia.org/wiki/Somnath

6. इंडोनेशिया की मेनारा कुदुस मस्जिद हिंदू बौद्ध मंदिर की जगह बनायीं गयी हैं ।
http://en.wikipedia.org/wiki/Menara_Kudus_Mosque
http://tinyurl.com/m69yn47

6. कुतुब मीनार और उस के पास स्थित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद जैन हिन्दू मंदिर को तोड़कर बनायीं गयी हैं ।
http://en.wikipedia.org/wiki/Qutb_complex
http://www.nalandainternational.org/index.php/the-quwwat-ul-islam-mosque-qutub-minar

7. ताजमहल असल में तेजो महल शिव मंदिर हैं ।
http://news.bbc.co.uk/dna/place-lancashire/plain/A5220http://www.nalandainternational.org/index.php/the-quwwat-ul-islam-mosque-qutub-minar
http://www.youtube.com/watch?v=hv3rAVuBU1s
http://oyepages.com/blog/view/id/5067b50b54c881b20e000016
http://en.wikipedia.org/wiki/P._N._Oak

हिंदुओ ने सेक्युलरिजम के कारण ई.711 से 1857 तक, याने करीब 1100 साल मुसलमानों की गुलामी की हैं और बाद में ब्रिटिशो की और आज सेक्युलर कांग्रेस की !

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सोमवार, 7 अप्रैल 2014

गोबर के घूर से उत्पत्ति होने के कारन उनका नाम गोरक्षनाथ पड़ा

गुरु गोरक्षनाथ जी का प्रादुर्भाव उस समय हुआ। जब इस्लामिक अत्याचार और जोर- जबरदस्ती धर्मान्तरण का बलात्कारी दौर चल रहा था।
एक तरफ बुत के नाम पर मंदिरों, मूर्तियों का भंजन करना ही अपना कर्तब्य समझना, दूसरी तरफ एक हाथ में तलवार दुसरे हाथ में कुरान लेकर भारत भूमि को रौदा जाना, तो वही कुछ चालक सूफी संत जो अन्य धर्मो के प्रति समादर का भाव दिखाते थे।

वे भगवा कपडा भी पहन लेते थे जिससे हिन्दुओ को ठगा जा सके, पूरे भारत और हिन्दू समाज को निगल जाने का प्रयत्न कर रहे थे भगवान शंकर ने स्वयं गुरु गोरक्षनाथ के रूप में अवतार लेकर इस धरा के कष्ट को दूर करने का कार्य किया। बहुत से हिन्दुओ को उन्होंने मुसलमान होने से बचाया..तथा उन लोगो को पुनः हिन्दू बनाया..जिनको मुगलों ने जबरदस्ती बलात्कार करके मुस्लिम बनाया था....

योगी मछंदरनाथ भ्रमण करते हुए अलख जगातेहुए जा रहे थे।
एक गाँव में उनका डेरा पड़ा हुआ था। वे प्रवचन कर रहे थे वहा उनका बड़ा ही स्वागत हुआ।

प्रातः काल एक ब्राह्मणी जिसके कोई संतान नहीं थी बड़ी ही दुखियारी दिख रही थी योगी मछंदर नाथ बड़े ही ख्याति प्राप्त दयालु संत थे उस ब्राह्मणी ने अपना दुःख योगी से कहा अपना आचल फैलाकर उनके चरणों पर गिर पड़ी।
योगी ने एक भभूति की पुडिया उस महिला को दिया उसकी बिधि बताया की आज ही रात्रि में उसे वह खा लेगी उसे बड़ा ही तेजस्वी पुत्र प्राप्त होगा, योगी जी तो चले गए रात्रि में उसने बड़ी ही प्रसन्नता से अपने पति से सब घटना क्रम को बताया उसके पति ने योगी को गाली देते हुए उस भभूति को पास के एक गोबर के घूर पर फेक दिया आई-गयीबात समाप्त हो गयी।

बहुत दिन बीत गये मछंदरनाथ एक बार पुनः उसी रास्ते से जा रहे थे उसी गाव में रुके और उस ब्राह्मणी को बुलाया की वह मेरा आशिर्बाद कहा गया वह पूरी घटना को योगी जी से सुनाया योगी जी बड़े ही दुखी हुए क्यों की उनके गए हुए कोई दस वर्ष बीत गए थे उन्होंने पूछा की वह राखी कहा फेका था बताये हुए उस घूर पर जाकर उन्होंने अपने शिष्य को आवाज लगायी तो एक सुन्दर बालक गुरु की जय-जय कार करता हुआ बाहर निकला और गुरु के पीछे-पीछे चल दिया गोबर के घूर से उत्पत्ति होने के कारन उनका नाम गोरक्षनाथ पड़ा वे गुरु के बड़े अनन्य ही भक्त और अनुरागी थे उन्होंने इस नाथ परंपरा को आगे ही नहीं बढाया बल्कि योगियों की एक ऐसी श्रृखला पूरे देश में खड़ी कर दी जिससे मुसलमानों के सूफियो द्वारा जो धर्मान्तरण हो रहा था उस पर केवल रोक ही नहीं लगी बल्कि गुरु गोरक्षनाथ ने धर्मान्तरित लोगो की घर वापसी भी की,

उन्होंने योगियों की एक अद्भुत टोली का निर्माण किया जिसने गावं -गावं में जागरण का अद्भुत काम कियाजगद्गुरु शंकराचार्य के पश्चात् धर्म रक्षा हेतु शायद ही किसी ने इतनी बड़ी संख्या में धर्म प्रचारकों की श्रृखला खड़ी की हो वे सूफियो के इस षणयंत्र को समझते थे सूफियो का आन्दोलन ही था हिन्दुओ का धर्मान्तरण करना और भारत भूमि का इस्लामीकरण करना.

कहते है की एक बार योगी मछंदरनाथ एक स्त्री राज्य में चले गए और वह केरानी के षणयंत्र में फंस गए, दरबार में पहुचने के पश्चात् उन्होंने कहा की मै किसी महिला के हाथ का भिक्षा नहीं लेता रानी नेकहा की आप को अपने ऊपर विस्वास नहीं है क्या ? योगी उसके चाल में फंस चुके थे रानी के दरबार में कोई पुरुष का प्रवेश नहीं था भजन करते-करते योगी का मन लग गया और वही रहने लगे बहुत दिन बीतने के पश्चात् सभी योगियों को बड़ी चिंता हुई कुछ योगी तो शिष्य गोरक्षनाथ को चिढाते की जिस गुरु के प्रति इतनी श्रद्धा रखते हो वह गुरु कैसा निकला वह तो एक रानी के चक्कर में फंस गया है, वे अपने गुरु के प्रति श्रद्धा भक्ति से समर्पित थे अपने गुरु की खोज में चल दिए और उस राज्य में पहुच गए लेकिन क्या था वह तो पुरुष प्रवेश ही बर्जित था

वे गुरु भक्त थे हार नहीं माने और अपनी धुन बजाना शुरू किया उसमे जो सुर -तान निकला ''जाग मछंदर गोरख आया '' उस समय वे रानीके साथ झुला झूल रहे थे उन्हें ध्यान में आया की अरे ये तो मेरा प्रिय शिष्य गोरख है यो मछंदरनाथ जैसे थे वैसे हीअपने प्रिय शिष्य के पास चल दिए इस प्रकार वे केवल हिन्दू समाज की रक्षा ही नहीं की बल्कि अपने गुरु को भी सदमार्ग पर वापस लाये.

जिस प्रकार देश -धर्म की रक्षा हेतु शंकराचार्य काप्रादुर्भाव हुआ उसी प्रकार गोरक्षनाथ इस भारत भूमि पर अवतरित हुए, जैसे शंकराचार्य अपने गुरु गौडपाद के बड़े ही प्रिय और भक्त थे उसी प्रकार गोरक्षनाथ भी योगीमछंदरनाथ के प्रिय और भक्त थे, जिस प्रकार बौद्ध धर्म से वैदिक धर्मकी रक्षा शंकराचार्य ने की उसी प्रकार गुरु गोरक्षनाथ ने इस्लाम से हिन्दू धर्म की रक्षा की इन दोनों में इतनी ही समानता नहीं पायी जाती बल्कि दोनों को ही हिन्दूसमाज भगवान शंकर का अवतारमानता है समय-समय पर इस भारत भूमि और हिन्दू धर्मको बचाने के लिए महापुरुषों की जो श्रृंखला आयी उसमे गुरु गोरक्षनाथ का महत्व पूर्णस्थान है

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