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शनिवार, 2 जुलाई 2022

सनातन धर्म की जानकारी

ऐसी जानकारी व्हाट्सएप पर बार-बार नहीं आती, और आगे भेजें, ताकि लोगों को सनातन धर्म की जानकारी हो  सके आपका आभार धन्यवाद होगा




1-अष्टाध्यायी               पाणिनी
2-रामायण                    वाल्मीकि
3-महाभारत                  वेदव्यास
4-अर्थशास्त्र                  चाणक्य
5-महाभाष्य                  पतंजलि
6-सत्सहसारिका सूत्र      नागार्जुन
7-बुद्धचरित                  अश्वघोष
8-सौंदरानन्द                 अश्वघोष
9-महाविभाषाशास्त्र        वसुमित्र
10- स्वप्नवासवदत्ता        भास
11-कामसूत्र                  वात्स्यायन
12-कुमारसंभवम्           कालिदास
13-अभिज्ञानशकुंतलम्    कालिदास  
14-विक्रमोउर्वशियां        कालिदास
15-मेघदूत                    कालिदास
16-रघुवंशम्                  कालिदास
17-मालविकाग्निमित्रम्   कालिदास
18-नाट्यशास्त्र              भरतमुनि
19-देवीचंद्रगुप्तम          विशाखदत्त
20-मृच्छकटिकम्          शूद्रक
21-सूर्य सिद्धान्त           आर्यभट्ट
22-वृहतसिंता               बरामिहिर
23-पंचतंत्र।                  विष्णु शर्मा
24-कथासरित्सागर        सोमदेव
25-अभिधम्मकोश         वसुबन्धु
26-मुद्राराक्षस               विशाखदत्त
27-रावणवध।              भटिट
28-किरातार्जुनीयम्       भारवि
29-दशकुमारचरितम्     दंडी
30-हर्षचरित                वाणभट्ट
31-कादंबरी                वाणभट्ट
32-वासवदत्ता             सुबंधु
33-नागानंद                हर्षवधन
34-रत्नावली               हर्षवर्धन
35-प्रियदर्शिका            हर्षवर्धन
36-मालतीमाधव         भवभूति
37-पृथ्वीराज विजय     जयानक
38-कर्पूरमंजरी            राजशेखर
39-काव्यमीमांसा         राजशेखर
40-नवसहसांक चरित   पदम् गुप्त
41-शब्दानुशासन         राजभोज
42-वृहतकथामंजरी      क्षेमेन्द्र
43-नैषधचरितम           श्रीहर्ष
44-विक्रमांकदेवचरित   बिल्हण
45-कुमारपालचरित      हेमचन्द्र
46-गीतगोविन्द            जयदेव
47-पृथ्वीराजरासो         चंदरवरदाई
48-राजतरंगिणी           कल्हण
49-रासमाला               सोमेश्वर
50-शिशुपाल वध          माघ
51-गौडवाहो                वाकपति
52-रामचरित                सन्धयाकरनंदी
53-द्वयाश्रय काव्य         हेमचन्द्र

वेद-ज्ञान:-

प्र.1-  वेद किसे कहते है ?
उत्तर-  ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक को वेद कहते है।

प्र.2-  वेद-ज्ञान किसने दिया ?
उत्तर-  ईश्वर ने दिया।

प्र.3-  ईश्वर ने वेद-ज्ञान कब दिया ?
उत्तर-  ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में वेद-ज्ञान दिया।

प्र.4-  ईश्वर ने वेद ज्ञान क्यों दिया ?
उत्तर- मनुष्य-मात्र के कल्याण         के लिए।

प्र.5-  वेद कितने है ?
उत्तर- चार ।                                                  
1-ऋग्वेद 
2-यजुर्वेद  
3-सामवेद
4-अथर्ववेद

प्र.6-  वेदों के ब्राह्मण ।
        वेद              ब्राह्मण
1 - ऋग्वेद      -     ऐतरेय
2 - यजुर्वेद      -     शतपथ
3 - सामवेद     -    तांड्य
4 - अथर्ववेद   -   गोपथ

प्र.7-  वेदों के उपवेद कितने है।
उत्तर -  चार।
      वेद                     उपवेद
    1- ऋग्वेद       -     आयुर्वेद
    2- यजुर्वेद       -    धनुर्वेद
    3 -सामवेद      -     गंधर्ववेद
    4- अथर्ववेद    -     अर्थवेद

प्र 8-  वेदों के अंग हैं ।
उत्तर -  छः ।
1 - शिक्षा
2 - कल्प
3 - निरूक्त
4 - व्याकरण
5 - छंद
6 - ज्योतिष

प्र.9- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने किन किन ऋषियो को दिया ?
उत्तर- चार ऋषियों को।
         वेद                ऋषि
1- ऋग्वेद         -      अग्नि
2 - यजुर्वेद       -       वायु
3 - सामवेद      -      आदित्य
4 - अथर्ववेद    -     अंगिरा

प्र.10-  वेदों का ज्ञान ईश्वर ने ऋषियों को कैसे दिया ?
उत्तर- समाधि की अवस्था में।

प्र.11-  वेदों में कैसे ज्ञान है ?
उत्तर-  सब सत्य विद्याओं का ज्ञान-विज्ञान।

प्र.12-  वेदो के विषय कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-   चार ।
        ऋषि        विषय
1-  ऋग्वेद    -    ज्ञान
2-  यजुर्वेद    -    कर्म
3-  सामवे     -    उपासना
4-  अथर्ववेद -    विज्ञान

प्र.13-  वेदों में।

ऋग्वेद में।
1-  मंडल      -  10
2 - अष्टक     -   08
3 - सूक्त        -  1028
4 - अनुवाक  -   85 
5 - ऋचाएं     -  10589

यजुर्वेद में।
1- अध्याय    -  40
2- मंत्र           - 1975

सामवेद में।
1-  आरचिक   -  06
2 - अध्याय     -   06
3-  ऋचाएं       -  1875

अथर्ववेद में।
1- कांड      -    20
2- सूक्त      -   731
3 - मंत्र       -   5977
          
प्र.14-  वेद पढ़ने का अधिकार किसको है ?                                                                                                                                                              उत्तर-  मनुष्य-मात्र को वेद पढ़ने का अधिकार है।

प्र.15-  क्या वेदों में मूर्तिपूजा का विधान है ?
उत्तर-  बिलकुल भी नहीं।

प्र.16-  क्या वेदों में अवतारवाद का प्रमाण है ?
उत्तर-  नहीं।

प्र.17-  सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?
उत्तर-  ऋग्वेद।

प्र.18-  वेदों की उत्पत्ति कब हुई ?
उत्तर-  वेदो की उत्पत्ति सृष्टि के आदि से परमात्मा द्वारा हुई । अर्थात 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 43 हजार वर्ष पूर्व । 

प्र.19-  वेद-ज्ञान के सहायक दर्शन-शास्त्र ( उपअंग ) कितने हैं और उनके लेखकों का क्या नाम है ?
उत्तर- 
1-  न्याय दर्शन  - गौतम मुनि।
2- वैशेषिक दर्शन  - कणाद मुनि।
3- योगदर्शन  - पतंजलि मुनि।
4- मीमांसा दर्शन  - जैमिनी मुनि।
5- सांख्य दर्शन  - कपिल मुनि।
6- वेदांत दर्शन  - व्यास मुनि।

प्र.20-  शास्त्रों के विषय क्या है ?
उत्तर-  आत्मा,  परमात्मा, प्रकृति,  जगत की उत्पत्ति,  मुक्ति अर्थात सब प्रकार का भौतिक व आध्यात्मिक  ज्ञान-विज्ञान आदि।

प्र.21-  प्रामाणिक उपनिषदे कितनी है ?
उत्तर-  केवल ग्यारह।

प्र.22-  उपनिषदों के नाम बतावे ?
उत्तर-  
01-ईश ( ईशावास्य )  
02-केन  
03-कठ  
04-प्रश्न  
05-मुंडक  
06-मांडू  
07-ऐतरेय  
08-तैत्तिरीय 
09-छांदोग्य 
10-वृहदारण्यक 
11-श्वेताश्वतर ।

प्र.23-  उपनिषदों के विषय कहाँ से लिए गए है ?
उत्तर- वेदों से।
प्र.24- चार वर्ण।
उत्तर- 
1- ब्राह्मण
2- क्षत्रिय
3- वैश्य
4- शूद्र

प्र.25- चार युग।
1- सतयुग - 17,28000  वर्षों का नाम ( सतयुग ) रखा है।
2- त्रेतायुग- 12,96000  वर्षों का नाम ( त्रेतायुग ) रखा है।
3- द्वापरयुग- 8,64000  वर्षों का नाम है।
4- कलयुग- 4,32000  वर्षों का नाम है।
कलयुग के 5122  वर्षों का भोग हो चुका है अभी तक।
4,27024 वर्षों का भोग होना है। 

पंच महायज्ञ
       1- ब्रह्मयज्ञ   
       2- देवयज्ञ
       3- पितृयज्ञ
       4- बलिवैश्वदेवयज्ञ
       5- अतिथियज्ञ
   
स्वर्ग  -  जहाँ सुख है।
नरक  -  जहाँ दुःख है।.

*#भगवान_शिव के  "35" रहस्य!!!!!!!!

भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है।

*🔱1. आदिनाथ शिव : -* सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।

*🔱2. शिव के अस्त्र-शस्त्र : -* शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।

*🔱3. भगवान शिव का नाग : -* शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।

*🔱4. शिव की अर्द्धांगिनी : -* शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।

*🔱5. शिव के पुत्र : -* शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।

*🔱6. शिव के शिष्य : -* शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।

*🔱7. शिव के गण : -* शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। 

*🔱8. शिव पंचायत : -* भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।

*🔱9. शिव के द्वारपाल : -* नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।

*🔱10. शिव पार्षद : -* जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।

*🔱11. सभी धर्मों का केंद्र शिव : -* शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में वि‍भक्त हो गई।

*🔱12. बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय : -*  ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।

*🔱13. देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव : -* भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।

*🔱14. शिव चिह्न : -* वनवासी से लेकर सभी साधारण व्‍यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्‍थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।

*🔱15. शिव की गुफा : -* शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।

*🔱16. शिव के पैरों के निशान : -* श्रीपद- श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।

रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्‍वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।

तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।

जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।

रांची- झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर 'रांची हिल' पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' कहा जाता है।

*🔱17. शिव के अवतार : -* वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।

*🔱18. शिव का विरोधाभासिक परिवार : -* शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।

*🔱19.*  ति‍ब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।

*🔱20.शिव भक्त : -* ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।

*🔱21.शिव ध्यान : -* शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।

*🔱22.शिव मंत्र : -* दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।

*🔱23.शिव व्रत और त्योहार : -* सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।

*🔱24.शिव प्रचारक : -* भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

*🔱25.शिव महिमा : -* शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया था। शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव ने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।

*🔱26.शैव परम्परा : -* दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।

*🔱27.शिव के प्रमुख नाम : -*  शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।

*🔱28.अमरनाथ के अमृत वचन : -* शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।

*🔱29.शिव ग्रंथ : -* वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।

*🔱30.शिवलिंग : -* वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।

*🔱31.बारह ज्योतिर्लिंग : -* सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।

 दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्‍योति पिंड पृथ्‍वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्‍योतिर्लिंग में शामिल किया गया।

*🔱32.शिव का दर्शन : -* शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

*🔱33.शिव और शंकर : -* शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं- शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।

*🔱34. देवों के देव महादेव :* देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। वे राम को भी वरदान देते हैं और रावण को भी।

*🔱35. शिव हर काल में : -* भगवान शिव ने हर काल में लोगों को दर्शन दिए हैं। राम के समय भी शिव थे। महाभारत काल में भी शिव थे और विक्रमादित्य के काल में भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है। भविष्य पुराण अनुसार राजा हर्षवर्धन को भी भगवान शिव ने दर्शन दिए थे,

जय जय श्री राम

ऑफ़लाईन माँ चाहिए

ऑफ़लाईन माँ चाहिए

पांचवीं कक्षा के छात्रों से बात करने के बाद शिक्षक ने उन्हें एक निबंध लिखने को दिया कि वे "कैसी माँ' पसंद करते हैं?
सभी ने अपनी माँ की प्रशंसा करते हुए विवरण लिखा।
उसमें एक छात्र ने निबंधपाठ का शीर्षक लिखा-         
   "ऑफ़लाईन माँ.."

मुझे "माँ" चाहिए, पर मुझे ऑफ़लाईन चाहिए। मुझे एक अनपढ़ माँ चाहिए, जो "मोबाईल" का इस्तेमाल करना नहीं जानती हो, लेकिन मेरे साथ हर जगह जाने को तैयार और आतुर हो।

मैं नहीं चाहता कि "माँ" "जीन्स" और "टी-शर्ट" पहने.. बल्कि छोटू की माँ की तरह साड़ी पहने। मुझे एक ऐसी माँ चाहिए जो बच्चे की तरह गोद में सिर रखकर मुझे सुला सके। _मुझे "माँ" चाहिए, लेकिन "ऑफ़लाईन।

उसके पास "मैं" और मेरे पिताजी के लिए "मोबाईल" की तुलना में "अधिक समय" होगा।

ऑफलाईन "माँ" हो तो पिताजी से झगड़ा नहीं होगा। जब मैं शाम को सोने जाऊँगा तो वीडियो गेम खेलने की बजाय वो मुझे एक कहानी सुनाकर सुलाएगी।
माँ, आप ऑनलाईन पिज़्ज़ा ऑर्डर मत कीजिए। घर पर कुछ भी बनाइए; पापा और मैं मजे से खाएंगे। मुझे बस ऑफलाईन "माँ" चाहिए।

इतना पढ़ने के बाद पूरी क्लास में मॉनिटर के रोने की आवाज सुनाई दी। हर एक छात्र और क्लास टीचर की आँखों से आंसू बह रहे थे।

माँ, मॉडर्न रहो लेकिन अपने बच्चे के बचपन का ख्याल रखो। मोबाईल की आवाज की वजह से इसे दूर मत करो! यह बचपन कभी वापस नहीं आएगा।

फ़ॉर्वर्डेड पोस्ट-
यह वह पोस्ट है जिसने मुझे झकझोर दिया एक वास्तविक चित्रण।
अपने ही बच्चों का बचपन छीनने बाली कथित मॉडर्न माँओ सॉरी *"ममा"* को समर्पित यह रचना है।
महिलाओं की झूटी जिंदगी उनके अपने लिए कितनी घातक है। उन्ही को सोचना जरूरी है। इस जीन्स बाली जिंदगी में आँचल और पल्लू अब कहाँ रहा। बच्चे का बड़ा अधिकार और संरक्षण इस भौतिकता और फूहड़पन ने छीन लिया।

जगन्नाथ रथ यात्रा आज से होगी शुरू

जगन्नाथ रथ यात्रा आज से होगी शुरू 
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भगवान जगन्नाथ के याद में निकाली जाने वाली 'जगन्नाथ रथ यात्रा' का लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं। आपको बता दें कि जगन्नाथ मंदिर हिन्दुओं के चार धाम में से एक है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है, जो भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। यह भारत के ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ 'जगत के स्वामी' होता है। इसलिए पुरी नगरी 'जगन्नाथपुरी' कहलाती है। इस रथ यात्रा को देखने के लिए हर साल दस लाख से अधिक तीर्थयात्री आते हैं। कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस रथ यात्रा में भाग लेता है वह जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है। उनके रथ पर भगवान जगन्नाथ की एक झलक बहुत ही शुभ मानी जाती है। इस त्योहार को ‘घोसा यात्रा’, ‘दशवतार यात्रा’, ‘नवादिना यात्रा’ या ‘गुंडिचा यात्रा’ के नाम से भी जाना जाता है। 

श्री जगन्‍नाथ रथ यात्रा शुभ मुहूर्त
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श्री जगन्‍नाथ रथ यात्रा की तिथि: 1 जुलाई 2022, शुक्रवार, 
द्वितीय तिथि का आरंभ : 30 जून, सुबह 10:49 
द्वितीय तिथि की समाप्ति : 1 जुलाई, दोपहर 01:09 तक

जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व
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दस दिन तक के  इस महोत्सव से व्यक्ति की सभी परेशानियां समाप्त हो जाती हैं। इस रथयात्रा का पुण्य 100 यज्ञों के बराबर होता है। इस समय उपासना के दौरान अगर कुछ उपाय किये जाएं तो श्री जगन्नाथ अपने भक्तों की समस्या को जड़ से खत्म कर देते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस रथ यात्रा भगवान जगन्‍नाथ जी के मंदिर से निकालकर प्रसिद्ध गुंडिचा माता के मन्दिर तक पहुंचाया जाता है। जहां पर भगवान जगन्‍नाथ जी सात दिनों तक विश्राम करते हैं। सात दिनों तक विश्राम करके के बाद में मंदिर में वापीस आ जाते हैं। इस रथ यात्रा में शामिल होने से व्यक्ति के जीवन से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं।

रथ यात्रा के उत्सव की शुरुआत 01 जुलाई से
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इस मंदिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव पूरी दुनिया में मशहूर है, हर साल आषाढ़ माह की शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को रथयात्रा आरम्भ होती है और शुक्ल पक्ष के 11 वें दिन समाप्त होती है। इस साल रथ यात्रा के उत्सव की शुरुआत 01 जुलाई 2022, दिन शुक्रवार से हो रही है। ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि के बीच भक्तगण इन रथों को खींचते हैं।

रथयात्रा में सबसे आगे बलरामजी का रथ होता है
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गौरतलब है कि रथयात्रा में सबसे आगे बलरामजी का रथ, उसके बाद बीच में देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है। तीनों के रथ को खींचकर मौसी के घर यानी कि गुंडीचा मंदिर लाया जाता है जो कि जगन्नाथ मंदिर से करीब तीन किलोमीटर दूर है।

भगवान जगन्नाथ के रथ को 'नंदीघोष' कहते हैं
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बलरामजी के रथ को 'तालध्वज' कहते हैं, जिसका रंग लाल और हरा होता है। देवी सुभद्रा के रथ को 'दर्पदलन' या 'पद्म रथ' कहा जाता है, जो काले या नीले और लाल रंग का होता है, जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को 'नंदीघोष' या 'गरुड़ध्वज' कहते हैं। इसका रंग लाल और पीला होता है।
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मंगलवार, 28 जून 2022

आषाढ़ अमावस्या आज कालसर्प और पितृदोष से मिलेगी मुक्ति

आषाढ़ अमावस्या आज
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कालसर्प और पितृदोष से मिलेगी मुक्ति
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वैसे तो हिंदू धर्म में हर माह पड़ने वाली अमावस्या और पूर्णिमा की तिथि का महत्व है। लेकिन आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि का अपना अलग ही महत्व है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने के बाद जरूरतमंदों को दान देता है, उसके जीवन में सुख-समृद्धि हमेशा बरकरार रहती है। इतना ही नहीं इस दिन कालसर्प दोष और पितृदोष से मुक्ति के लिए भी पूजा किया जाता है। 

आषाढ़ अमावस्या तिथि
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हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 28 जून मंगलवार को सुबह 05 बजकर 52 मिनट पर शुरू हो रही है। अमावस्या तिथि का समापन 29 जून बुधवार को सुबह 08 बजकर 21 मिनट पर होगा।

आषाढ़ अमावस्या पर पितृदोष के लिए करें ये उपाय
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पितृदोष से मुक्ति के लिए आषाढ़ माह के अमावस्या के दिन पवित्र नदी में स्नान करने के बाद पीपल के वृक्ष में जल चढ़ाएं। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखकर जरूरतमंदों को किए गए दान से पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं और पितृदोष से मुक्ति मिलती है। इस दिन पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।

आषाढ़ी अमावस्या पर पितरों को इस तरह करें प्रसन्न
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1. इस दिन सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदियों में स्नान करना चाहिए। अगर आप किसी नदी के तट पर न जा सकें तो घर में ही जल में गंगा जल डालकर स्नान करें। इसके बाद पितरों के निमित्त श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करें। साथ ही पशु पक्षियों को भी भोजन कराएं। इससे आपके पितर बहुत प्रसन्न होते हैं।

2. अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करें। एक कलश में जल और दूध और मिश्री मिश्रित करके जल पेड़ में अर्पित करें और सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इससे भी आपको पि​तरों का आशीष प्राप्त होता है।

3. अगर आपके घर में पितृदोष लगा हुआ है, तो आपको अमावस्या के दिन पीपल का पौधा लगाना चाहिए और इसी सेवा करनी चाहिए। हर अमावस्या पर इस पौधे के नीचे दीपक जलाना चाहिए। इससे पितृ दोष का प्रभाव दूर होता है और आपके जीवन की तमाम समस्याओं का अंत होता है।

4. अमावस्या के दिन किसी ब्राह्मण को घर में बुलाकर उन्हें ससम्मान भोजन कराएं और सामर्थ्य के अनुसार दान देकर विदा करें। इसके अलावा गरीब और जरूरतमंदों को दान दें। इससे भी आपको पितरों का आशीष प्राप्त होता है।

5. पितरों की शांति के लिए आप अमावस्या के दिन रामचरितमानस या गीता का पाठ करें। इसके अलावा पितरों का आशीष प्राप्त करने के लिए उनके मंत्र का जाप करें।

 करें यह मंत्र जाप
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ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्.
ॐ आद्य-भूताय विद्महे सर्व-सेव्याय धीमहि, शिव-शक्ति-स्वरूपेण पितृ-देव प्रचोदयात्.
ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च, नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:

काल सर्प दोष से मुक्ति के लिए इस विधि से करें पूजा
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जिस इंसान के कुंडली में काल सर्पदोष है वो आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष के अमावस्या को शिव मंदिर में कालसर्प दोष की पूजा किसी विद्वान द्वारा करवा सकते हैं। इस दिन यदि आप महामृत्युंजयमंत्र का जप करते हैं तो राहु-केतु का असर खत्म हो जाता है।

शुक्रवार, 24 जून 2022

मोटरसाइकिल सवार को हेलमेट से क्या मदद मिलती है यदि वे 60-70 मील प्रति घंटे की रफ्तार से दुर्घटनाग्रस्त होते हैं ?

मोटरसाइकिल सवार को हेलमेट से क्या मदद मिलती है यदि वे 60-70 मील प्रति घंटे की रफ्तार से दुर्घटनाग्रस्त होते हैं

यदि वे 60-70 मील प्रति घंटे की रफ्तार से दुर्घटनाग्रस्त होते हैं तो मोटरसाइकिल सवार को क्या मदद मिलेगी यह इसपर निर्भर करता है की दुर्घटना कैसे हुई ।

अगर ईंट की दीवार से टकरा गयी , या एक ट्रक जैसी गाडी के निचे चली गई, तो हेलमेट कुछ नहीं करेगा। हालाँकि, ऐसी दुर्घटनाएँ कम होता है।

राइडर्स मुख्य रूप से यात्री कारों से दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं, जो गली में हाइवे की तुलना में बहुत अधिक सामान्य है, या वे बाहर फिसल जाते हैं और स्लाइड करते हैं।

कार से टकराने पर बाइक चालक बाइक से उछल जाते हैं और कार के ऊपर से दूसरी तरफ जाकर गिरते हैं । हेलमेट, जाहिर है, आपके चेहरे को फुटपाथ के कंकरों से और आपकी खोपड़ी को टूटने से से बचाता है। ध्यान दें कि भले ही आपके वाहन की गति 70 हो गई हो, लेकिन कार से दुर्घटनाग्रस्त होने पर आप नीचे गिर जाते हैं, और जब तक आप जमीन से टकराते हैं, इस दरमियान आपकी गति बहुत धीमी गति से बढ़ती है ।

यदि आप 70 पर जा रहे हैं और बिना कुछ किए नीचे गिर जाते हैं, तो आप , 70 की स्पीड में क्षैतिज रूप से जा रहे हैं । जब आप जमीन से टकराते हैं तो क्षैतिज गति किसी कुर्सी से गिरने वाली गति से बहुत अधिक नहीं होती है। ऐसा नहीं है कि यदि आप ऐसा होता है तो आपके सिर को चोट नहीं पहुंचेगी। इस परिस्थिति में, घर्षण बड़ा खतरा है। क्या आपका फुटपाथ पर कभी घुटना और खाल छिला है? शायद, 1-2 मील प्रति घंटा की स्लाइड होगी । और यह चोट लगी है 70 मील प्रति घंटे की रफ़्तार से, इसलिए यह स्लाइड आपकी त्वचा और अन्य नरम चीजों को चिथडा कर देगी। तो, हेलमेट आपके सर , नाक और कान को आपके सर से जोड़े रखता है। और यह गिरावट के प्रभाव को अपेक्षाकृत कम करता है।

देखिये इन सभी हेलमेटों में क्या कॉमन है :


बहुत सारे घर्षण , प्रभाव या कोई नुकसान नहीं।

क्या आपको लगता है कि आपका चेहरा हेलमेट के प्लास्टिक के समान हो सकता है?

बुढ़ापे में घुटने दर्द ना हो इसके लिए क्या करना चाहिए ?

 

बुढ़ापे में घुटने दर्द ना हो इसके लिए क्या करना चाहिए ?

प्राचीन काल से ही मनुष्य अपने रोगों का इलाज जड़ी बूटियों के माध्यम से करता आया है। कालांतर में लिखी इसी विधा की कई किताबें आज भी दुनिया के तमाम प्रकार के रोगों का इलाज कर रही हैं। हड्डियां मानव श्रृंखला की जड़ होती हैं जब इन्हीं में दर्द शुरू हो जाये तब इंसान दुख ग्रस्त हो जाता है। इन्हीं जोड़ों में एक जोड़ घुटने का भी होता है जो पैरों के बीच स्थित होता है। घुटना दर्द एक ऐसा रोग है जो आज के दौर में आम हो गया है। मसलन यह मर्ज बीते दौर में बुढ़ापे का रोग कहलाता था लेकिन आज समाज का हर तबका इसकी जद में आ चुका है।

बदलते दौर में लगातार जीवनशैली में परिवर्तन और गलत खान पान के अलावा पुरानी चोट ओर मधुमेह सहित मोटापा भी इसका बड़ा कारण माना जाता है। खान पान में विकृतियों के चलते इंसान की हड्डियों में यूरिक एसिड जमा होकर दर्द बढ़ा देता है। घुटना दर्द के लिए आज के दौर में कई प्रकार की चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध हैं लेकिन आयुर्वेद द्वारा काफी हद तक इस रोग पर विजय प्राप्त की जा सकती है। आज इस लेख के माध्यम से हम आपको आयुर्वेद द्वारा घुटना दर्द में। फायदे और नुकसान पर प्रकाश डालेंगे।

आयुर्वेदिक उपचार के फायदे।[1]

जड़ी बूटियों द्वारा निर्मित दवाएं हमारे जीवन को नया प्रकाश देती हैं। मसलन कुछ ऐसे उपाय हैं जिनसे हम घुटने दर्द में लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

दूध और अश्वगंधा का सेवन

दूध पीकर नवजात शिशु बड़ा होता है। दूध ऐसा पदार्थ है जिसमें कैल्शियम की भरपूर मात्रा पाई जाती है। अश्वगंधा एक ऐसी जड़ी होती है जो शरीर की हड्डियों को प्रचुरता से विटामिन डी प्रदान करती है। एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण खाकर एक गिलास गुनगुना दूध पीने से घुटने में उठ रहा दर्द समाप्त हो जाता है।

लहसुन और सरसों तेल के फायदे

लहसुन एक प्राकृतिक दर्द नाशक माना जाता है। हड्डियों के दर्द में 10 से 15 कली लहसुन को सरसों के तेल में अच्छे से उबालकर जोड़ों पर मालिश करें। इससे दर्द में राहत मिलती है। इसके अलावा लहसुन को उबालकर बचे हुए पानी की एक चम्मच मात्रा दिन में सूप की भांति 2 बार सेवन करने से घुटना दर्द समाप्त हो जाता है।

लौंग के फायदे

लौंग ऐसा दर्द निवारक है जो मिनटों में दर्द दूर भगा देता है। चार से 5 कली लौंग को तवे पर भूनकर इसे चूर्ण बना लें। इसी चूर्ण में एक चम्मच देशी शहद मिलाकर खाली पेट इस्तेमाल करने से घुटना दर्द दूर होने लगता है। इसे नियमित तौर पर इस्तेमाल करने से शरीर मे मौजूद हड्डियों के समस्त विकार दूर होने लगते हैं।

आयुर्वेदिक उपचार के नुकसान[2]

आदिकाल से दवाओं के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली जड़ी बूटियों का वैसे तो कोई नुकसान देखने को नहीं मिलता लेकिन कुछ सावधानियां ना बरतने पर यह जानलेवा साबित हो सकता है। मसलन जब भी हम इस उपचार माध्यम का प्रयोग करें चिकित्सक की सलाह जरूर लें। औषधि इस्तेमाल करने से पहले उसकी मात्रा के बारे में अच्छे से जान लें। यदि गलत मात्रा का सेवन किया गया तो यह इंसान के आंतरिक अंगों को प्रभावित कर सकता है जो किसी भी रूप में शरीर पर साइड इफेक्ट के रूप में सामने आ जाता है।

रामबाण औषध

स्तोत्-गुगल फोटो

हड़जाेड़ ( Hadjod ) को आयुर्वेद में हड्डी जोड़ने की कारगर दवा बताया गया है। इसे अस्थि संधानक या अस्थिशृंखला ( Asthisamharaka ) के नाम से भी जानते हैं। यह छह इंच की खंडाकार बेल होती है। इसके हर खंड से एक नया पौधा पनप सकता है। हृदय के आकार जैसी दिखने वाली पत्तियों वाले इस पौधेे में लाल रंग के मटर के दाने के बराबर फल लगते हैं। जानते हैं इसके बारे में:-

उपयोग और लाभ

भूरे रंग का हड़जाेड़ ( Cissus Quadrangularis ) पौधा स्वाद में कसैला और तीखा होता है। इसकी बेल में हर 5-6 इंच पर गांठ होती है। इस पौधे की प्रकृति गर्म होती है। जैसा कि इसके नाम से ही साफ है कि यह टूटी हड्डियों को जोड़ने मेंं कारगर है ( Plants Used For Healing Of Bone Fracture )। यह खाने और लगाने दोनों में काम आता है।

ऐसे लें :

250-500 मिलीग्राम की मात्रा में सुबह-शाम दूध के साथ लें। इसका रस निकालकर ठंडे दूध के साथ ले सकते हैं। इसका 5-6 अंगुल तना लेकर बारीक टुकड़े काटकर काढ़ा बना लें व सुबह-शाम पीएं।

खास बातें : हड़जाेड़ ( Veld Grape ) में सोडियम, पोटैशियम, कार्बोनेट भरपूर पाया जाता है। इसमें मौजूद कैल्शियम कार्बोनेट और फॉस्फेट हड्डियों को मजबूत करता है। आयुर्वेद सेंट्रल लैब के एक शोध में पाया गया कि हड़जाेड़ ( Devil's Backbone ) के उपयोग से हड्डी के जुड़ने का समय 33-50 फीसदी तक कम हो जाता है। यानी प्लास्टर के साथ हड़जाेड़ ( Pirandai ) लिया जाए तो हड्डी जल्दी जुड़ती है। ये हड्डियों को लचीला भी बनाता है इसलिए इसका प्रयोग खिलाड़ी भी करते हैं।[3]

फुटनोट

किन 25 लोगों को नहीं देना पड़ेगा टोल टैक्स, भारत सरकार द्वारा जारी की गई लिस्ट?

 

किन 25 लोगों को नहीं देना पड़ेगा टोल टैक्स, भारत सरकार द्वारा जारी की गई लिस्ट?

टोल टैक्स या टोल वह शुल्क है जो वाहन चालकों को कुछ अंतरराज्यीय एक्सप्रेसवे, सुरंगों, पुलों और अन्य राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों को पार करते समय चुकाना पड़ता है। इन सड़कों को टोल रोड कहा जाता है और ये भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के नियंत्रण में हैं।

टोल टैक्स का उपयोग सड़क निर्माण और रखरखाव के लिए किया जाता है। इसलिए, यह टोल टैक्स लगाकर नवनिर्मित टोल सड़कों की लागत को कवर करता है। भारत सरकार ने फास्टैग पेश किया है जो कैशलेस टोल टैक्स भुगतान के लिए RFID (रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन) तकनीक का उपयोग करते हैं।

हालांकि राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) के अनुसार, राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क (दरों और संग्रह का निर्धारण) नियम, 2008 के नियम 11 के अनुसार टोल टैक्स का भुगतान करने से छूट प्राप्त लोगों और वाहनों की एक सूची है।

भारत के राष्ट्रपति

भारत के उपराष्ट्रपति

भारत के प्रधानमंत्री

किसी राज्य का राज्यपाल

भारत के मुख्य न्यायाधीश

लोक सभा के अध्यक्ष

संघ के कैबिनेट मंत्री

किसी राज्य का मुख्यमंत्री

सुप्रीम कोर्ट के जज

संघ राज्य मंत्री

एक केंद्र शासित प्रदेश के उपराज्यपाल

चीफ ऑफ स्टाफ जो पूर्ण सामान्य या समकक्ष रैंक का पद धारण करता है

किसी राज्य की विधान परिषद के सभापति

किसी राज्य की विधान सभा के अध्यक्ष

उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश

उच्च न्यायालय के न्यायाधीश

ससद सदस्य

थल सेनाध्यक्ष के सेना कमांडर और अन्य सेवाओं में समकक्ष

संबंधित राज्य के भीतर किसी राज्य सरकार के मुख्य सचिव

सचिव, भारत सरकार

राज्यों की परिषद सचिव

सचिव, लोक सभा

राजकीय यात्रा पर विदेशी गणमान्य व्यक्ति

किसी राज्य की विधान सभा के सदस्य और अपने-अपने राज्य के भीतर किसी राज्य की विधान परिषद के सदस्य, यदि वह राज्य के संबंधित विधानमंडल द्वारा जारी अपना पहचान पत्र प्रस्तुत करता है या नहीं

परमवीर चक्र, अशोक चक्र, महावीर चक्र, कीर्ति चक्र, वीर चक्र, और शौर्य चक्र से सम्मानित व्यक्ति, यदि ऐसा पुरस्कार प्राप्तकर्ता ऐसे पुरस्कार के लिए उपयुक्त या सक्षम प्राधिकारी द्वारा विधिवत प्रमाणित अपना फोटो पहचान पत्र प्रस्तुत करता है

हालांकि अन्य श्रेणी भी हैं जिन्हें टोल टैक्स से छूट दी गई है।

केंद्र और राज्य के सशस्त्र बल वर्दी में। इसमें अर्धसैनिक बल और पुलिस, एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट, अग्निशमन विभाग या संगठन, एम्बुलेंस के रूप में उपयोग , अंतिम संस्कार वैन के रूप में उपयोग, यांत्रिक वाहन जो विशेष रूप से शारीरिक अक्षमता से पीड़ित व्यक्ति के उपयोग के लिए डिज़ाइन और निर्मित किए जाते हैं।

कहां लिखा है कि लड़कियों को शिव भक्ति में #नशा करना, और गांजा फुकना और ऐसे छोटे कपड़े पहन कर नशे करके #नाचना

⛳🚩⛳🌹🌺🌻🌼ये जो #माथे पर #टीका लगाकर #उल्टे सीधे कपड़े पहनकर, गले मे #रुद्राक्ष जैसी परम #पवित्र माला डालकर, #गांजा फुकते हुए, और नाम के आगे भक्त महाभक्त #परमभक्त लगाकर लोग गुगल से लेकर फेसबुक तक धर्म का #मजाक बनाये बैठे हैं #शर्म नहीं आती है ऐसे #निच हरकत करते हुए??

और खास कर ये ऐसे लड़कियां जो बहुत बड़े शिव भक्त का #ठेकेदार बनी फिर रही है, कहां लिखा है कि लड़कियों को शिव भक्ति में #नशा करना, और गांजा फुकना और ऐसे छोटे कपड़े पहन कर नशे करके #नाचना??

अपने कायदे में रहें तो ही अच्छा होगा धर्म #संस्कृति को बदनाम कर के रख दिया है लोगों ने,

#सुल्फे के साथ फोटो डालना अपने साथ साथ हमारे #सनातन समाज और धर्म का भी #अपमान करना आराध्य #महादेवजी की सुल्फे के साथ फोटो बनाकर पेश करना, अरे मूर्खो क्या ईश्वर को भूख प्यास लगती है क्या ईश्वर नशा करते है या ईश्वर #मादक पदार्थो का सेवन करते है बिल्कुल नही करते हैं।

ये सब झूठ है एक दम महाझूठ जिसे कुछ नशेड़ी और दिमाग से #विकलांग लोगों ने धर्म के नाम पर #शौक़ बना दिया है अपनी मर्जी पूरी करने के लिए,

#यदग्रे चानुबन्धे च सुखं मोहनमात्मनः।

#निद्रालस्यप्रमादोत्थं तत्तामसमुदाहृतम्‌॥

यानी जो सुख #भोगकाल में तथा परिणाम में भी आत्मा को मोहित करने वाला है, वह निद्रा, आलस्य और प्रमाद (नशा) से उत्पन्न सुख #तामस कहा गया है.

इसके अलावा भी #गीता में कई जगह नशा न करने की सलाह दी गई है।

आज की युवा पीढ़ी सुल्फा भांग गांजा बीड़ी सिगरेट शराब का नाम भगवान से जोड़ते है इनका सेवन करते है अपने भगवानो को भी नही बख्शते ।

अपनी फोटो लाइक करवाने के लिए कपड़े बदल बदलकर और हाथ मे सुल्फा लेकर फोटो खिंचवाने वाले लोगों ने ही हमारे धर्म में ये नशेड़ीपना फैलाया है📙📒🚩⛳🌺🌻🌹

योगिनी एकादशी व्रत आज

 योगिनी एकादशी व्रत आज

आषाढ़ कृष्ण एकादशी को योगिनी एकादशी कहते हैं। हर शाप का होता है यह व्रत करने से निवारण


योगिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है। पंचांग के अनुसार, यह एकादशी आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पड़ती है। मान्यता है कि योगिनी एकादशी का व्रत रखने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा मान्यता यह भी है कि इस व्रत के प्रभाव से किसी के दिए हुए श्राप का निवारण हो जाता है।


योगिनी एकादशी तिथि

पंचांग के मुताबिक साल 2022 में योगिनी एकादशी 24 जून, शुक्रवार को है। एकदशी तिथि का आरंभ 23 जून को रात 9 बजकर 41 मिनट से हो रहा है। जबकि एकादशी तिथि की समाप्ति 24 जून को रात 11 बजकर 12 मिनट पर होगी। एकादशी व्रत का पारण 25 जून को सुबह 5 बजकर 41 मिनट के बाद और 8 बजकर 12 मिनट से बीच किया जा सकता है। पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय सुबह 5 बजकर 41 मिनट है।  


योगिनी एकादशी व्रत पूजा विधि

अन्य एकादशी व्रत के जैसा ही योगिनी एकादशी व्रत का नियम एक दिन पहले यानी दशमी से ही शुरू हो जाता है। ऐसे में दशमी तिथि की रात से ही जौ, गेहूं और मूंग की दाल से बना भोजन नहीं किया जाता है। साथ ही व्रत के दिन नमक वाले भोज्य पदार्थ का सेवन नहीं किया जाता है। एकादशी वाले दिन सुबह स्नान के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है। इसके बाद पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की प्रतिमा रखकर पूजा की जाती है। पूजन के दौरान भगवान विष्णु को पीले फूल और पीली मिठाईयों का भोग लगाया जाता है। पूजा खत्म होने के बाद भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की आरती की जाती है।


योगिनी एकादशी व्रत का महत्व

धार्मिक मान्यतानुसार योगिनी एकादशी का व्रत करने से जीवन में सुख-समृद्धि और आनंद की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि योगिनी एकादशी का व्रत तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। मान्यता है कि योगिनी एकादशी का व्रत करने से बहुत अधिक पुण्य मिलता है।


योगिनी एकादशी की व्रत कथा

स्वर्ग की अलकापुरी नामक नगरी में कुबेर नाम का राजा था। वह शिव के उपासक था। हेम नाम का माली पूजन के लिए उसके यहां फूल लाया करता था। हेम की पत्नी थी विशालाक्षी। वह बहुत सुंदर स्त्री थी। एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प तो ले आया लेकिन मन भटकने की वजह से वो पत्नी को देखकर कामासक्त हो गया और उसके साथ रमण करने लगा। उधर पूजा में विल्म्ब होने के चलते राजा कुबेर ने सेवकों से माली के न आने का कारण पूछा तो सेवकों ने राजा को सारी बात सच बता दी। यह सुनकर कुबेर बहुत क्रोधित हुआ और उसने माली को श्राप दे दिया।


राजा कुबेर ने दिया माली को ये श्राप

गुस्से में कुबेर ने हेम माली से कहा कि तूने कामवश होकर भगवान शिव का अनादर किया है। मैं तुझे श्राप देता हूं कि तू स्त्री का वियोग सहेगा और मृत्युलोक(पृथ्वी)में जाकर कोढ़ी बनेगा। कुबेर के श्राप से हेम माली का स्वर्ग से पतन हो गया और वह उसी क्षण पृथ्वी पर गिर गया। पृथ्वीलोक में आते ही उसके शरीर में कोढ़ हो गया। वो कई समय तक ये दु:ख भोगता रहा।


मार्कण्डेय ऋषि ने बताया कुष्ठ रोग निवारण उपाय

एक एक दिन वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुंच गया। उसे देखकर मार्कण्डेय ऋषि बोले तुमने ऐसा कौन सा पाप किया है, जिसके प्रभाव से तुम्हारी यह हालत हो गई। हेम माली ने पूरी बात उन्हें बता दी। उसकी व्यथा सुनकर ऋषि ने उसे योगिनी एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। हेम माली ने विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत किया, जिसका उसे सफल परिणाम मिला। वो कुष्ठ रोग से मुक्ति पाकर अपने पुराने रूप में आ गया औूर पत्नी के साथ सुखी जीवन यापन करने लगा।

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