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मंगलवार, 20 जून 2023

पुराने समय में शूद्रों पर किस तरह के दिल दहलाने वाले अत्याचार किए जाते थे ?

 

चित्र स्रोत: गूगल

इस एक प्रश्न ने आज समाज में जैसी खाई पैदा कर दी है वो अब शायद ही कभी भर पाए। वैसे तो ये जवाब देने लायक प्रश्न ही नहीं है किन्तु फिर भी संक्षेप में आपकी शंका का समाधान कर देता हूँ।

कुछ लोगों के नाम बताता हूँ। मुझे पूरा विश्वास है कि यदि आपने रामायण और महाभारत पढ़ा है तो इनके नाम तो जानते ही होंगे। यदि नहीं सुने तो अनुरोध है कि एक बार अपने धार्मिक ग्रंथों को अवश्य पढ़ें।

चलिए पहले रामायण को देखते हैं।

  • रामायण के रचनाकार महर्षि वाल्मिकी वैसे तो ब्राह्मण थे किंतु रामायण के सबसे प्रसिद्ध संस्करण रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने इन्हे रत्नाकर नामक डाकू बताया है को शुद्र था। मानस के अनुसार शुद्र होते हुए भी उस व्यक्ति ने महर्षि का पद प्राप्त किया।
  • एक बालक ऐसा हुआ को श्रीराम का ऐसा भक्त बना जैसा आज तक कोई नही हुआ। महादेव के वरदान से उसने इतनी लंबी आयु पाई कि रामायण को 11 बार और महाभारत को 16 बार होते हुए देखा। उन्होंने पक्षीराज गरुड़ के भ्रम को दूर किया। उनका नाम था काकभुशंडी और उन्होंने शुद्र वर्ण में ही जन्म लिया।
  • एक ब्राह्मण कन्या ने शूद्र वर्ण के एक नाई से विवाह किया। उनका एक पुत्र हुआ, और ऐसा हुआ कि अल्पायु में ही सारे शास्त्रों का ज्ञाता बन गया। अपने कर्म से (ध्यान दें, कर्म से ना कि जन्म से) उसने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया। प्रताप उनका ऐसा था कि स्वयं श्रीराम उनकी मृत्यु के पश्चात उनके आश्रम में पधारे। उनका नाम था महर्षि मातंग और वे शूद्र थे।
  • इन्ही महर्षि मातंग की एक शिष्या थी जो जन्म से भीलनी थी। श्रीराम ने ना केवल इनका आशीर्वाद लिया बल्कि इनके जूठे बेर भी खाये। उस स्त्री का नाम था शबरी और वो भी शूद्र ही थी।
  • एक निषाद भी श्रीराम के अभिन्न मित्र थे। वनवास के समय श्रीराम इनके साथ ही रुके और साथ भोजन किया। इनका नाम था गुह और वे भी शूद्र ही थे।
  • एक व्यक्ति ने श्रीराम को नदी पार करवाई। उनके चरण अपने हाथों से धोए और जाते समय श्रीराम के हृदय से लगने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उस व्यक्ति का नाम था केवट और वो भी शुद्र ही था।
  • जब श्रीराम के पिता महाराज दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया तो जिन व्यक्तियों को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था उनमें एक थे महर्षि जाबालि। ये भी जन्म से शूद्र ही थे।
  • रामायण काल से बहुत पहले श्रीराम के एक पूर्वज थे जिन्होंने क्षत्रिय होते हुए भी केवल धर्म की रक्षा के लिए एक शुद्र के दास के रूप में कार्य किया। उनका नाम सभी जानते हैं, वे थे महाराज हरिश्चंद्र

आइए अब महाभारत को भी देख लिया जाए।

  • महाभारत के रचनाकार और हिन्दू धर्म के सर्वकालिक महान ऋषियों में से एक महर्षि व्यास भी शूद्र ही थे। प्रताप ऐसा था कि राजा महाराजा क्या, स्वयं भगवान श्रीकृष्ण भी उनके आगे शीश नवाते थे।
  • महर्षि व्यास की ही माता सत्यवती, जिससे हस्तिनापुर जैसे महान साम्राज्य के क्षत्रिय राजा शांतनु ने विवाह किया, शूद्र ही थी।
  • सत्यवती के ही पालक पिता दाशराज, एक शूद्र के अड़ जाने पर भीष्म ने समर्थ होते हुए भी उन्हें विवश नहीं किया बल्कि उनकी इच्छा का मान रखते हुए राज सिंहासन और अपने जीवन के सभी सुखों का त्याग कर दिया।
  • हस्तिनापुर जैसे विशाल महाजनपद के महामंत्री महात्मा विदुर, जिनकी गाथा से महाभारत भरा हुआ है, शूद्र वर्ण के ही थे।
  • कर्ण भले ही जन्म से क्षत्रिय हों लेकिन उनका ये रहस्य उनकी मृत्यु के बाद ही खुला। उससे पहले जीवन भर वे सूतपुत्र के नाम से ही जाने गए जो उच्च कुल का नहीं माना जाता था। फिर भी दुर्योधन जैसे राजकुल के क्षत्रिय के वे प्रिय मित्र थे, अंग महाजनपद के राजा बने और महाभारत के युद्ध में उस सेना के सेनापति भी बने जिसके सेनापति भीष्म जैसे क्षत्रिय और द्रोण जैसे ब्राह्मण रह चुके थे।
  • महाभारत में ऐसा वर्णन है कि राजकुल में जन्मे भीम ने शूद्र वर्ण में जन्मे कई मल्लों को अपने गुरु का स्थान दिया।
  • एक कुबड़ी थी जिसका नाम था त्रिवक्रा जिसे स्वयं श्रीकृष्ण ने स्पर्श कर स्वस्थ कर दिया था और अपने भक्त का स्थान दिया। वो भी शूद्र ही थी।
  • आज कल कथा कहते हुए हर धार्मिक पुस्तक में जिन सूत जी का वर्णन आता है उनका वास्तविक नाम था उग्रश्रवा सौती। ये भी जन्म से शूद्र ही थे पर कर्म से महान ऋषि हुए।
  • एक पौराणिक काल के क्षत्रिय राजा थे रंतिदेव। इनके यहाँ तो साक्षात् त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) ने एक साथ ब्राह्मण, शूद्र और चांडाल के रूप में अवतार लिया और इन क्षत्रिय राजा ने स्वयं अपने भोजन का भाग उन्हें दिया।

पौराणिक काल की बात बहुत हो गयी हो तो आधुनिक काल में आते हैं।

  • एक राजा था धनानंद। उसने एक ब्राह्मण का घोर अपमान किया। वो ब्राह्मण यदि चाहता तो किसी और क्षत्रिय राजा के पास जाकर सहायता मांग सकता था किन्तु उसने शूद्र वंश में जन्मे एक बालक को शिक्षा देकर इतना महान बनाया कि उसने ना सिर्फ धनानंद को परास्त किया बल्कि समस्त आर्यावर्त पर राज किया। और उसके बाद उसी शूद्र वर्ण के उत्तराधिकारियों ने सम्पूर्ण भारत पर 137 वर्षों तक अखंड राज्य किया। वो ब्राह्मण थे चाणक्य और वो शूद्र बालक थे चन्द्रगुप्त मौर्य
  • रुकिए श्रीमान! जिस राजा धनानंद और नन्द वंश की बात हमने अभी किया वो स्वयं शूद्र वर्ण के ही थे। और उस शूद्र वर्ण के राजाओं ने डेढ़ शताब्दियों तक इस देश पर राज्य किया।
  • कुछ नाम सुनिए - अवन्ति वर्मन, चिंतामणि धोबा, मयूरध्वज, सुहेलदेव, दलदेव, सतन पासी, बिजली पासी, लक्ष्मण पासी, पूँजा भील, कोटिया भील, बूंदा सिंह मीणा, जैत मीणा, बड़ा मीणा, आशा भील, मनोहर भील, विश्वासु भील, मांडलिक, नीलध्वज, चीला राय, लक्ष्मी नारायण, रघुदेव, मल्हार राव होल्कर, जादू राय, दलपत शाह, नरसिंह राय, महामणिक्य। अब आप कहेंगे इनमें क्या समानता है। तो भाई सबके आगे राजा लगा दीजिये। सब के सब किसी ना किसी प्रान्त के राजा थे और शूद्र वर्ण से ही थे। ऐसे वैसे शूद्र नहीं, आज काल हम जिन्हे महादलित कहते हैं, वे थे।
  • कुछ और नाम सुन लीजिये - घासीदास, रामदेव, रविदास, अच्युतनन्द, भोज भगत, बोगर, दादू दयाल, गाडगे महाराज, गोरोबा, गोरखनाथ, गुलाबराव, कबीर, कनकदास, कांचीपूर्ण, माधव देव, मत्स्येन्द्र नाथ, नंदनार, नरहरि सोनार, नारायण गुरु, निसर्गदत्त, पोतुलूरी वीरब्रह्मम, रामानंद राय, सरला दास, सिद्धरामेश्वर, तुकाराम, वैकुण्द स्वामी, वलम राम। अब आप फिर पूछेंगे कि इन सब में क्या समानता है? तो ये सभी भारत के हर प्रान्त के प्रसिद्ध संत हैं। सब के सब शूद्र वर्ण से ही हैं।

इन में से किस पर आपको दिल दहला देने वाले अत्याचार हुआ दिख रहा है?

समस्या ये है कि आज किसी को अपने इतिहास से कोई लेना देना नहीं है। सही इतिहास कोई पढ़ना नहीं चाहता किन्तु दलितों पर अत्याचार के ऊपर सोशल मीडिया पर भाषण जरूर देना चाहता है। अंबेडकर की बात हर कोई करना चाहता है लेकिन ये जानना नहीं चाहता कि दलित होते हुए भी उस ज़माने में अंबेडकर सूट-बूट और टाई पहनकर लन्दन पढाई करने कैसे पहुंचे।

हां, आधुनिक काल में दलितों पर अत्याचार हुआ है पर थोड़ा जानने का प्रयत्न कीजिये कि उन पर अत्याचार किस काल में आरम्भ हुआ। थोड़ा इतिहास पढ़ेंगे तो समझ आ जाएगा कि मुगलों और अंग्रेजों ने किस प्रकार समाज में इस खाई को पैदा किया। आज भी वही हो रहा है, पहले गोरे अंग्रेज अपने फायदे के लिए ऐसा करते थे और अब काले अंग्रेज वोटों के लिए करते हैं।

इस बात को आप तब ही समझ पाएंगे जब "वर्ण" और "जाति" का अंतर समझ पाएंगे। इस लेख

[1]
को पढ़ें, शायद चीजें कुछ और साफ हो जाये।

और हां, जिसे शंबूक नामक काल्पनिक चरित्र के कीड़े ने काट रखा है तो वे इस लेख

[2]
को पढ़ लें, शंबूक के प्रति आपका मोह भंग हो जाएगा।

आशा है कि आपकी दुविधा का अंत हो गया होगा।

फुटनोट

#देवाधिदेवमहादेवशिवकेरहस्य

 #देवाधिदेवमहादेवशिवकेरहस्य






भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है।

🔱1. आदिनाथ शिव : -सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।

🔱2. शिव के अस्त्र-शस्त्र : - शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।

🔱3. भगवान शिव का नाग : - शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।

🔱4. शिव की अर्द्धांगिनी : - शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।

🔱5. शिव के पुत्र : - शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।

🔱6. शिव के शिष्य : - शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।

🔱7. शिव के गण : - शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है।

🔱8. शिव पंचायत : - भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।

🔱9. शिव के द्वारपाल : - नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।

🔱10. शिव पार्षद : - जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।

🔱11. सभी धर्मों का केंद्र शिव : - शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में वि‍भक्त हो गई।

🔱12. बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय : -  ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।

🔱13. देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव : - भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।

🔱14. शिव चिह्न : - वनवासी से लेकर सभी साधारण व्‍यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्‍थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।

🔱15. शिव की गुफा : - शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।

🔱16. शिव के पैरों के निशान : - श्रीपद- श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।

रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्‍वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।

तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।

जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के मंदिर के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।

रांची- झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर 'रांची हिल' पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' कहा जाता है।

🔱17. शिव के अवतार : - वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।

🔱18. शिव का विरोधाभासिक परिवार : - शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।

🔱19.निवास :-  ति‍ब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।

🔱20.शिव भक्त : - ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।

🔱21.शिव ध्यान : - शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।

🔱22.शिव मंत्र : - दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।

🔱23.शिव व्रत और त्योहार : - सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।

🔱24.शिव प्रचारक : - भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

🔱25.शिव महिमा : - शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया था। शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव ने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।

🔱26.शैव परम्परा : - दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।

🔱27.शिव के प्रमुख नाम : - शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।

🔱28.अमरनाथ के अमृत वचन : - शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।

🔱29.शिव ग्रंथ : - वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।

🔱30.शिवलिंग : - वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।

🔱31.बारह ज्योतिर्लिंग : - सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।

 दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्‍योति पिंड पृथ्‍वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्‍योतिर्लिंग में शामिल किया गया।

🔱32.शिव का दर्शन : - शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

🔱33.शिव और शंकर : - शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं- शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।

🔱34. देवों के देव महादेव : -  देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। वे राम को भी वरदान देते हैं और रावण को भी।

🔱35. शिव हर काल में : - भगवान शिव ने हर काल में लोगों को दर्शन दिए हैं। राम के समय भी शिव थे। महाभारत काल में भी शिव थे और विक्रमादित्य के काल में भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है। भविष्य पुराण अनुसार राजा हर्षवर्धन को भी भगवान शिव ने दर्शन दिये थे।।

।।ॐ नमः शिवाय, हर हर महादेव जी।।
🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏

कभी पेशाब रुक जाए तो क्या करें

(1)👉 *कभी पेशाब रुक जाए तो क्या करें*           
यह एक प्रसिद्ध एलोपैथी चिकित्सक 70 वर्षीय ईएनटी विशेषज्ञ का अनुभव है।  
आइए सुनते हैं अनुठा अनुभव..👉   

एक सुबह वे अचानक उठे।  उन्हें मुत्रत्याग करने की जरूरत थी, लेकिन वे कर नहीं सके (कुछ लोगों को बाद की उम्र में कभी-कभी यह समस्या होती है)। उन्होंने बार-बार कोशिश की, लेकिन लगातार कोशिश नाकाम रही। तब उन्होंने महसूस किया कि एक समस्या खड़ी हो गयी है।

एक डॉक्टर होने के नाते, वे ऐसी शारीरिक समस्याओं से अछूते नहीं थे; उनका निचला पेट भारी हो गया। बैठना या खड़े़ रहना दुस्वार होने लगा, तल-पेट में दबाव बढ़ने लगा ।

तब उन्होंने एक जाने-माने यूरोलॉजिस्ट को फोन पर बुलाया और स्थिति के बारे में बताया।  मूत्र-रोग विशेषज्ञ ने उत्तर दिया: "मैं इस समय एक बाहरी क्षेत्र के अस्पताल में हूँ, और आपके क्षेत्र के क्लिनिक में दो घंटे में पहुँच पाऊँगा। क्या आप इतने लंबे समय तक इसका सामना कर सकते हैं?"
उन्होंने उत्तर दिया: "मैं कोशिश करूँगा।"
उसी समय, उन्हें बचपन की एक अन्य एलोपैथिक महिला-डॉक्टर का ध्यान आया। बड़ी मुश्किल से उन्होंने अपनी दोस्त-डाक्टर को स्थिति के बारे में बताया।
उस सहेली ने उत्तर दिया:-  *"ओह, आपका मूत्राशय भर गया है। और कोशिश करने पर भी आप मुत्रत्याग कर नहीं पा रहे... चिंता न करें। जैसा मैं बता रही हूं, वैसा ही करें। आप इस समस्या से छुटकारा पा जाएंगे।"*  
और उसने निर्देश दिया:- 
"सीधे खड़े हो जाइये, और जोर से बार-बार कूदिये। कूदते समय दोनों हाथों को ऊपर यूॅं उठाए रखें, मानो आप किसी पेड़ से आम तोड़ रहे हों। ऐसा 10 से 15 बार करें।"
बूढ़े डॉक्टर ने सोचा: "क्या? सचमुच मैं इस स्थिति में कूद पाऊंगा? इलाज थोड़ा संदिग्ध लग रहा था। फिर भी डॉक्टर ने कोशिश की... 
3 से 4 बार छलांग लगाने पर ही उन्हें पेशाब की तलब लगी और उन्हें राहत मिल गयी।  
 उन्होंने इतनी सरल विधि से समस्या को हल करने के लिए अपनी मित्र डॉक्टर को सहर्ष धन्यवाद दिया। 
अन्यथा, उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ता, मूत्राशय की जाॅंच, इंजेक्शन, एंटीबायोटिक्स आदि के साथ साथ कैथेटर डालना होता... उनके और करीबी लोगों के लिए मानसिक तनाव के साथ लाखों का बिल भी होता।
 
कृपया वरिष्ठ नागरिकों के साथ साझा करें। इस असहनीय अनुभव वाले किसी भी व्यक्ति के लिए यह एक बहुत ही सरल उपाय है.... 

सभी *वरिष्ठ नागरिक* (55 से ऊपर की उम्र के) कृपया अवश्य पढ़ें, हो सकता है आपके लिए फायदेमंद हो .. 
           
*आप जानते हैं कि मन चाहे कितना ही जोशीला हो पर साठ की उम्र पार होने पर यदि आप अपनेआप को फुर्तीला और ताकतवर समझते हों तो यह गलत है।  वास्तव में ढलती उम्र के साथ शरीर उतना ताकतवर और फुर्तीला नहीं रह जाता।*

आपका शरीर ढलान पर होता है, जिससे ‘हड्डियां व जोड़ कमजोर होते हैं, पर *कभी-कभी मन भ्रम बनाए रखता है कि ‘ये काम तो मैं चुटकी में कर लूँगा’।*  पर बहुत जल्दी सच्चाई सामने आ जाती है मगर एक नुकसान के साथ।

सीनियर सिटिजन होने पर जिन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए, ऐसी कुछ टिप्स दे रहा हूं। 

 -- *धोखा तभी होता है जब मन सोचता है कि ‘कर लूंगा’ और शरीर करने से ‘चूक’ जाता है।  परिणाम एक एक्सीडेंट और शारीरिक क्षति!*
ये क्षति फ्रैक्चर से लेकर ‘हेड इंज्यूरी’ तक हो सकती है।  यानी कभी-कभी जानलेवा भी हो जाती है।

-- *इसलिए जिन्हें भी हमेशा हड़बड़ी में काम करने की आदत हो, बेहतर होगा कि वे अपनी आदतें बदल डालें।*

*भ्रम न पालें, सावधानी बरतें क्योंकि अब आप पहले की तरह फुर्तीले नहीं रहे।*

छोटी सी चूक कभी बड़े नुक़सान का कारण बन जाती है।

-- *सुबह नींद खुलते ही तुरंत बिस्तर छोड़ खड़े न हों, क्योंकि आँखें तो खुल जाती हैं मगर शरीर व नसों का रक्त प्रवाह पूर्ण चेतन्य अवस्था में नहीं हो पाता ।*

अतः पहले बिस्तर पर कुछ मिनट बैठे रहें और पूरी तरह चैतन्य हो लें।  कोशिश करें कि बैठे-बैठे ही स्लीपर/चप्पलें पैर में डाल लें और खड़े होने पर मेज या किसी सहारे को पकड़कर ही खड़े हों। अक्सर यही समय होता है डगमगाकर गिर जाने का।

-- गिरने की सबसे ज्यादा घटनाएं बाथरुम/वॉशरुम या टॉयलेट में ही होती हैं।  आप चाहे अकेले हों, पति/पत्नी के साथ या संयुक्त परिवार में रहते हों लेकिन बाथरुम में अकेले ही होते हैं।

-- *यदि आप घर में अकेले रहते हों, तो और अधिक सावधानी बरतें क्योंकि गिरने पर यदि उठ न सके तो दरवाजा तोड़कर ही आप तक सहायता पहुँच सकेगी, वह भी तब जब आप पड़ोसी तक समय से सूचना पहुँचाने में सफल हो सकेंगे।*
— *याद रखें बाथरुम में भी मोबाइल साथ हो ताकि वक्त जरुरत काम आ सके।*

-- देशी शौचालय के बजाय हमेशा यूरोपियन कमोड वाले शौचालय का ही इस्तेमाल करें।  यदि न हो तो समय रहते बदलवा लें, इसकी तो जरुरत पड़नी ही है, अभी नहीं तो कुछ समय बाद।

संभव हो तो कमोड के पास एक हैंडिल लगवा लें।  कमजोरी की स्थिति में इसे पकड़ कर उठने के लिए ये जरूरी हो जाता है।

बाजार में प्लास्टिक के वेक्यूम हैंडिल भी मिलते हैं, जो टॉइल जैसी चिकनी सतह पर चिपक जाते हैं, पर *इन्हें हर बार इस्तेमाल से पहले खींचकर जरूर जांच-परख लें।*

-- *हमेशा आवश्यक ऊँचे स्टूल पर बैठकर ही नहायें।*

बाथरुम के फर्श पर रबर की मैट जरूर बिछाकर रखें ताकि आप फिसलन से बच सकें।

-- *गीले हाथों से टाइल्स लगी दीवार का सहारा कभी न लें, हाथ फिसलते ही आप ‘डिस-बैलेंस’ होकर गिर सकते हैं।*

-- बाथरुम के ठीक बाहर सूती मैट भी रखें जो गीले तलवों से पानी सोख ले।  कुछ सेकेण्ड उस पर खड़े रहें फिर फर्श पर पैर रखें वो भी सावधानी से। 

-- *अंडरगारमेंट हों या कपड़े, अपने चेंजरूम या बेडरूम में ही पहनें।  अंडरवियर, पाजामा या पैंट खडे़-खडे़ कभी नहीं पहनें।*

हमेशा दीवार का सहारा लेकर या बैठकर ही उनके पायचों में पैर डालें, फिर खड़े होकर पहनें, वर्ना दुर्घटना घट सकती है।

*कभी-कभी स्मार्टनेस की बड़ी कीमत चुकानी पड़ जाती है।*

-- अपनी दैनिक जरुरत की चीजों को नियत जगह पर ही रखने की आदत डाल लें, जिससे उन्हें आसानी से उठाया या तलाशा जा सके।

*भूलने की आदत हो, तो आवश्यक चीजों की लिस्ट मेज या दीवार पर लगा लें, घर से निकलते समय एक निगाह उस पर डाल लें, आसानी रहेगी।*

-- जो दवाएं रोजाना लेनी हों, उनको प्लास्टिक के प्लॉनर में रखें जिससे जुड़ी हुई डिब्बियों में हफ्ते भर की दवाएँ दिन-वार के साथ रखी जाती हैं।

*अक्सर भ्रम हो जाता है कि दवाएं ले ली हैं या भूल गये।प्लॉनर में से दवा खाने में चूक नहीं होगी।*

-- *सीढ़ियों से चढ़ते उतरते समय, सक्षम होने पर भी, हमेशा रेलिंग का सहारा लें, खासकर ऑटोमैटिक सीढ़ियों पर।*

ध्यान रहे अब आपका शरीर आपके मन का *ओबिडियेंट सरवेन्ट* नहीं रहा।

— बढ़ती आयु में कोई भी ऐसा कार्य जो आप सदैव करते रहे हैं, उसको बन्द नहीं करना चाहिए। 

कम से कम अपने से सम्बन्धित अपने कार्य स्वयं ही करें।

— *नित्य प्रातःकाल घर से बाहर निकलने, पार्क में जाने की आदत न छोड़ें, छोटी मोटी एक्सरसाइज भी करते रहें। नहीं तो आप योग व व्यायाम से दूर होते जाएंगे और शरीर के अंगों की सक्रियता और लचीला पन कम होता जाएगा।  हर मौसम में कुछ योग-प्राणायाम अवश्य करते रहें।*

— *अपना पानी, भोजन, दवाई इत्यादि स्वयं लें जिससे शरीर में सक्रियता बनी रहे।*

बहुत आवश्यक होने पर ही दूसरों की सहायता लेनी चाहिए। 

— *घर में छोटे बच्चे हों तो उनके साथ अधिक समय बिताएं, लेकिन उनको अधिक टोका-टाकी न करें। 

-- *ध्यान रखें कि अब आपको सब के साथ एडजस्ट करना है न कि सब को आपसे।*

-- इस एडजस्ट होने के लिए चाहे, बड़ा परिवार हो,  छोटा परिवार हो या कि पत्नी/पति हो, मित्र हो, पड़ोसी या समाज।

*एक मूल मंत्र सदैव उपयोग करें।*    
    
1. *नोन* अर्थात नमक।  भोजन के प्रति स्वाद पर नियंत्रण रखें।   

2. *मौन*  कम से कम एवं आवश्यकता पर ही बोलें।   

3. *कौन* (मसलन कौन आया  कौन गया, कौन कहां है, कौन क्या कर रहा है) अपनी दखलंदाजी कम कर दें।                 

*नोन, मौन, कौन* के मूल मंत्र को जीवन में उतारते ही *वृद्धावस्था* प्रभु का वरदान बन जाएगी जिसको बहुत कम लोग ही उपभोग कर पाते हैं। 

*कृपया इस संदेश को अपने घर, रिश्तेदारों, आसपड़ोस के वरिष्ठ सदस्यों को भी अवश्य प्रेषित करें।*🌹❤️              
   *जिन्हें सुबह या रात में सोते समय  पेशाब करने जाना पड़ता हैं उनके लिए विशेष सूचना!!*

        हर एक व्यक्ति को इसी साढ़े तीन मिनिट में सावधानी बरतनी चाहिए।

*यह इतना महत्व पूर्ण क्यों है?*
        यही साढ़े तीन मिनिट अकस्माक होने वाली मौतों की संख्या कम कर सकते हैं।

        जब जब ऐसी घटना हुई हैं, परिणाम स्वरूप तंदुरुस्त व्यक्ति भी रात में ही मृत पाया गया हैं।

        ऐसे लोगों के बारे में हम कहते हैं, कि कल ही हमने इनसे बात की थी। ऐसा अचानक क्या हुआ? यह कैसे मर गया?

       इसका मुख्य कारण यह है कि रात मे जब भी हम मूत्र विसर्जन के लिए जाते हैं, तब अचनाक या ताबड़तोब उठते हैं, परिणाम स्वरूप मस्तिष्क तक रक्त नही पहुंचता है।

       यह साढ़े तीन मिनिट बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।

      मध्य रात्रि जब हम पेशाब करने उठते है तो हमारा ईसीजी का पैटर्न बदल सकता है। इसका कारण यह है, कि अचानक खड़े होने पर मस्तिष्क को रक्त नहीं पहुच पाता और हमारे ह्रदय की क्रिया बंद हो जाती है।

   साढ़े तीन मिनिट का प्रयास एक उत्तम उपाय है।

1. *नींद से उठते समय आधा मिनिट गद्दे पर लेटे हुए रहिए।*

2. *अगले आधा मिनिट गद्दे पर बैठिये।*

3. *अगले अढाई मिनिट पैर को गद्दे के नीचे झूलते छोड़िये।*

   साढ़े तीन मिनिट के बाद  और ह्रदय की क्रिया भी बंद नहीं होगी! इससे अचानक होने वाली मौतें भी कम होंगी।

     आपके प्रियजनों को लाभ हो अतएव सजग करने हेतु अवश्य प्रसारित करे।
                 
            *धन्यवाद!!*

  
       
🙏निवेदन एवं आग्रह 🙏
🫀👍

सोमवार, 19 जून 2023

भविष्य को देखते हुये कौन सा व्यापार शुरु करना चाहिये?


 

पिछले कुछ सालों में व्यापार करने के तरीकों में काफ़ी बदलाव आया है।

तकनीकी के विकास के साथ-साथ व्यापार चलाने के तरीक़ों में भी विकास हुआ है।

पहले जहां, छोटे-बड़े हर तरह के व्यापार को बही-खाते पर मैनुअली मैनेज किया जाता था, वहीं अब व्यापार को ऐप, सॉफ़्टवेयर और बिज़नेस प्लेटफ़ॉर्म की मदद से मैनेज किया जाता है।

वर्तमान में ज़्यादातर व्यापार ऑनलाइन होने लगे हैं। ऐसे में अगर आप कोई नया व्यापार शुरू करने की योजना। बना रहे हैं, तो सभी बातों को ध्यान में रखकर ही शुरू करें।

नीचे मैं आपको कुछ व्यवसायों के बारे में बताने जा रहा हूं, जिनकी भविष्य में माँग बहुत ज़्यादा बढ़ने वाली है।

1- क्लाउड किचन:

क्लाउड किचन एक तरह का ऑनलाइन रेस्टोरेंट होता है, जहां से खाना केवल ऑनलाइन ऑर्डर किया जा सकता है। इसकी कोई फ़िज़िकल ब्रांच नहीं होती है, जहां बैठकर खाना खाया जा सके। पिछले कुछ समय में ही क्लाउड किचन का व्यापार काफ़ी बढ़ गया है। हालांकि, अभी क्लाउड किचन केवल बड़े शहरों में देखे जाते हैं, लेकिन आने वाले कुछ समय में ही छोटे शहरों में भी क्लाउड किचन काफ़ी देखे जा सकते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि आज के डिजिटल युग में जितनी रेस्टोरेंट या होटल जकार खाने वालों की संख्या है, उससे ज़्यादा लोग ऑनलाइन खाना ऑर्डर करके घर पर खाते हैं। यह देखकर मैं कह सकती हूं कि भविष्य में क्लाउड किचन की माँग और भी बढ़ने वाली है।

2- वेडिंग प्लानिंग:

पहले बड़े शहर हो या छोटे शहर, हर जगह शादी की पूरी ज़िम्मेदारी घर के लोग, रिस्तेदार, और दोस्त मिलकर संभाल लेते थे। लेकिन समय के साथ धीरे-धीरे काफ़ी बदलाव हुआ। कुछ समय पहले तक बड़े शहरों के केवल धनी लोग ही शादी की पूरी ज़िम्मेदारी वेडिंग प्लानर हो देते थे, लेकिन अब धीरे-धीरे यह चलन छोटे शहरों में भी बढ़ता जा रहा है। अब तो मध्यमवर्गीय परिवार वाले भी शादी की ज़िम्मेदारी वेडिंग प्लानर को देने लगे हैं। इसे देखकर मैं कह सकती हूं कि आने वाले समय में यह चलन और भी बढ़ेगा और वेडिंग प्लानिंग करने वालों की माँग बढ़ेगी।

3- हायरिंग कंसलटेंसी फ़र्म:
आज के समय में हायरिंग कंसलटेंसी फ़र्म की अच्छी माँग है और यह भविष्य में और भी बढ़ने वाली है। ज़्यादातर स्टार्टअप के पास अपनी हायरिंग टीम नहीं होती है। वो कर्मचारियों को हायर करने के लिए कंसलटेंसी फ़र्म का सहारा लेते हैं। यह देखते हुए कहा जा सकता है कि भविष्य के हिसाब से यह एक बेहतरीन व्यापार विकल्प हो सकता है। ज़रूरी नहीं है कि आप बड़े स्तर की हायरिंग कंसलटेंसी फ़र्म खोलें। आपके क्षेत्र में जिस तरह के कर्मचारियों की ज़्यादा माँग होती है, आप उससे संबंधित कंसलटेंसी फ़र्म खोल सकते हैं।

4- हर तरह का ऑनलाइन व्यापार:

वर्तमान समय में रोटी, कपड़ा और मकान सब कुछ ऑनलाइन मिलने लगा है। मकान ऑनलाइन मिलने से मतलब है कि आज के समय में घर की ऑनलाइन बुकिंग की जा सकती है। पहले जहां केवल शहरों में ही ऑनलाइन सामान ख़रीदे जा सकते थे। वहीं, आज के समय सुदूरवर्ती क्षेत्रों में भी ऑनलाइन डिलीवरी होने लगी है। इसलिए कह सकते हैं कि ऑनलाइन ख़रीदारी का बाज़ार दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। ऐसे में अगर आप कोई व्यापार शुरू करना चाहते हैं, तो उसे ऑफ़लाइन के साथ-साथ ऑनलाइन भी चलाएँ। इससे आपके व्यापार का दायरा बढ़ेगा और आपको ज़्यादा ग्राहक भी मिलेंगे।

इसके अलावा कई और व्यापार हैं, जिनकी भविष्य में काफ़ी माँग बढ़ने वाली है।

हालांकि, भविष्य में ज़्यादातर व्यापार ऑनलाइन होंगे, इसलिए बेहतर यही होगा कि आप जो भी व्यापार शुरू करें, उसे ऑनलाइन ही रखें।

केवल यही नहीं अपने व्यापार को ऑनलाइन मैनेज भी करें।

हर तरह के छोटे-बड़े व्यापार के लिए करेंट अकाउंट ज़रूरी होता है।

और आजकल आसानी से व्यापार के लिए ऑनलाइन करेंट अकाउंट खुलवाया जा सकता है।

इसके साथ ही व्यापार की बिलिंग, अकाउंटिंग, टैक्स, इन्वेंटरी, रिपोर्ट्स, कैशफ़्लो जैसी ज़रूरतों को भी ऑनलाइन ही मैनेज किया जा सकता है।

वर्तमान में कई ऐप और बिज़नेस प्लेटफ़ॉर्म उपलब्ध हैं, जिनकी मदद से व्यापार की लगभग सभी ज़रूरतों को बड़ी आसानी से मैनेज किया जा सकता है।

बस अपने व्यापार के लिए कोई ऐप या बिज़नेस प्लेटफ़ॉर्म चुनते समय यह देखें कि कौन सा ऐप या प्लेटफ़ॉर्म आपके व्यापार की ज़्यादातर ज़रूरतों को एक ही जगह पूरा करता है।

MyMoney भी एक ऐसी ही ऐप है, जिसकी मदद से व्यापार की कई ज़रूरतों को एक जगह बड़ी आसानी से मैनेज किया जा सकता है।

इसकी मदद से व्यापार के लिए ज़ीरो बैलेंस करेंट बिज़नेस अकाउंट खुलवाया जा सकता है।

व्यापार की बिलिंग, अकाउंटिंग, टैक्स और इन्वेंटरी को भी मैनेज किया जा सकता है।

व्यापार संबंधी कई महत्वपूर्ण रिपोर्ट्स प्राप्त की जा सकती है।

केवल यही नहीं MyMoney की मदद से ज़रूरत पड़ने पर व्यापार के कैशफ़्लो को सही रखने के लिए या व्यापार को आगे बढ़ाने के लिए उचित दर पर बिज़नेस लोन भी लिया जा सकता है।

इस तरह मैं कह सकती हूं कि एक ही ऐप का इस्तेमाल करके व्यापार की लगभग सभी ज़रूरतों को एक ही जगह पूरा करके व्यापार को आगे बढ़ाया जा सकता है।

आप अपनी पसंद के हिसाब से ऊपर बताए गए व्यापार में से कोई एक चुन सकते हैं और उसे अपनी पसंद की किसी ऐप से मैनेज कर सकते हैं।

इससे व्यापार को मैनेज करना काफ़ी आसान हो जाता है और भविष्य में व्यापार को आगे बढ़ाने में भी काफ़ी मदद मिलती है।

भारत का एक ऐसा रहस्यमई मंदिर जहां सुनामी लहर आते ही 2 किलोमीटर पीछे चली गई

 

दरअसल तमिलनाडु के कन्याकुमारी से 75 किलोमीटर दूर श्रीचंद मुरुगन यानी भगवान कार्तिकेय का मंदिर है। 17 वीं शताब्दी में डचो ने इस मंदिर पर आक्रमण करके मंदिर का सारा खजाना और भगवान कार्तिकेय की पंचतंत्र लोहे से बनी मूर्ति चुरा कर भाग रहे थे, लेकिन जैसे ही वे समुद्र के बीच पहुंचे अचानक मौसम बिगड़ गया, जिससे समुंद्र में भयानक तूफान और बारिश होने लगी। इतने में नाविक बोला ये इस मूर्ति का प्रकोप है। हम इसे नहीं ले जा सकते और जहाज के कैप्टन ने जान बचाने के लिए उस मूर्ति को समंदर में छोड़ दिया, जिसके थोड़ी देर बाद तूफान थम गया। 1 दिन भगवान श्री चंद्र मुरुगन अपने भक्तों के सपने में आए और उसे मूर्ति के बारे में बताया। भगवान बोले समुंद्र में मेरे ऊपर इक नींबू तैरता हुआ दिखेगा। उसी के ठीक नीचे मेरी मूर्ति है और उस मूर्ति को ढूंढ कर इस मंदिर का निर्माण किया गया। साल 2004 में इस मंदिर के पास भयानक सुनामी आई लेकिन। मंदिर के पास आते ही 2 किलो मीटर दूर चली गई भगवान कार्तिके के इस चमत्कार के लिए कमेंट में जय कार्तिकेय भगवान जरूर लिखे


किन परिस्थितियों में एक स्त्री चरित्रहीन हो जाती है?

 

  • वर्तमान में अधिकांश स्त्रियां तन को खूबसूरत बनाए रखने के लिए अपना मन और स्तन अर्पण कर देती हैं। किसी को धन का अभाव मिटाना होता है।
  • रति रहस्य, स्त्री जातक आदि शास्त्रों में बीस प्रकार चरित्रहीन स्त्रियों का उल्लेख मिलता है। इन्हे छिनाल, कालगर्ल भी कहते हैं। लेकिन वैश्या नहीं होती।
  • छिनाल लकड़ी अगर अय्याश पुरुष के चंगुल में फंस जाए, तो ये अंगूर को मौसमी बनाकर ही दम लेते हैं।
  • विदेशों में कालगर्ल का कल्चर आम है और भारत में आम दबाकर चूसने, खाने वाले पुरुषों की संख्या में इजाफा हो रहा है।
  • चरित्रहीनता के चलते कत्लेआम भी होने लगे हैं। सुबह शाम नर नारी सेटिंग करते, चूमते, घूमते मिल जायेंगे। ये लोग राम राम नहीं करते बल्कि बड़े आराम से दाम अदा कर, अपना काम निपटाकर निकल लेते हैं।
  • कुपत्ति, धुश्चरिता, कर्कशा, उन्मादी आदि 20 तरह की स्त्रियां या युवतियां चरित्र हीन होती हैं। इनमें कामवासना अत्याधिक होने से एक मर्द के द्वारा किया गया सेक्स दर्द यानि आनंद नहीं दे पाता।
  • इससे नारी मन नहीं भरता। स्तन में भी करंट नहीं आता। रोज 4 से 5 पुरुषों के साथ हमबिस्तर होने में मानसिक शांति मिलती है।

कुंवारी लड़की को छिनाल बनाने की विधि

  • एक युवा नेता के दुनिया भर का ताम झाम देखकर एक कन्या बहुत फिदा हो गई और नेता से सच्चा प्रेम करने लगी।
  • प्रेमिका नेताजी के लिए समर्पण को आतुर थी और एक दिन नेता जी ने उसका लोकार्पण करवा दिया।
  • जब वह एक बार में 5/7 लोगों के साथ हमबिस्तर होकर यौन सुख पा लिया, तो धीरे धीरे कालगर्ल बन गई।
  • याद रखें जवानी के दिनों में दर्पण बहुत धोखे में रखता है और इसी के कारण भी लड़कियां, अपना सब कुछ अर्पण कर कुवारेपन में ही घर्षण का परम सुख उठा लेती हैं। किसी किसी के पेट में भी आभूषण आ जाता है।
  • राजनीति में नई नई आई एक अनुभवी महिला नेत्री से सलाह मांगी कि नेतागिरी में प्रसिद्धि का सही तरीका क्या है। तब नेत्री न बताया कि आप अंदर चड्डी पहनना बंद कर दो। आपको 5 साल में ही भारत सरकार से पदम भूषण भी मिल सकता है।
  • इसलिए प्रदूषण फैलने वाले खर दूषण जैसे आसुरी नेताओं से दूर ही रहें।
  • ऐसे ही एक विवाहित महिला द्वारा अपने पति के अलावा किसी अन्य के साथ चौरी छुपे स्वैच्छिक सेक्स या संभोग करने वाली स्त्री को व्यभिचारी कहते हैं।
  • व्यभिचार का अर्थ है चरित्र हीनता। ऐसी स्त्री को छिनाल, कालगर्ल कहते हैं ओर पुरुष छिनरा होते हैं।
  • विवाहित पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के अलावा किसी अन्य के साथ शारीरिक संबंध बनाकर संभोग करना पुरुषों का व्यभिचार कहलाता है। इन्हे राबाज की उपाधि से भी नवाजा जाता है।
  • छिनाल का मतलब वेश्या नहीं होता इसका अर्थ है अविश्वसनीय है। छिनाल एक प्रकार से औरतों को दी जाने वाली गाली भी है।
  • परस्त्रीगामी और लम्पट के लिए हिन्दी में छिनाल का पुरुषवाची शब्द छिनरा है।
  • व्यभिचारिणी; कुलटा, जिसका संबंध बहुत से पर-पुरुषों से हो। बदज़ात, शरीर, होशयार, चालाक, मक्कारा, बेहया।
  • स्त्रियों के झगड़े, विवाद के दौरान शहर की हर पुरानी गली में ये गाली बड़े आराम से सुनी जा सकती है।

स्त्रियां कितने तरह की होती हैं…

  • व्यभिचारिणी महिलाओं या युवतियों को कालगर्ल, पतिहन्ता या बदचलन, छिनाल और कुपत्ती भी कहा जाता है। इनके चक्कर में उलझा, फंसा पुरुष अंत में एक बात कहता है।

छिनालो मेरा सब कुछ छिना -लो

  • छिनाल और फिनायल दोनों ही गंदगी, संक्रमण को साफ करने में लाजवाब है। छिनाल स्त्री हमेशा पुरुष के अंदर की ओर फिनायल बाहर की सफाई करने में कारगर होती हैं।
  • छिनाल के चक्कर में उलझा व्यक्ति की चाल, ढाल, गाल, खाल खराब हो जाती है। घर में तालमेल बिगड़ने लगता है। साल में 100 बार पत्नी भूचाल ला देती है।
  • बीबी के सवाल ऐसे होते हैं कि ज़बाब देना मुश्किल हो जाता है। बात बात पर उसे उबाल आता है। छिनाल की नाल (खर्चे) भरते भरते आदमी का हाल बेहाल हो जाता है।
    • बदचलन, छिनाल तथा पतिहन्ता 20 तरह की बताई हैं। स्त्रियों की पहचान कैसे करें…

छिनाल शब्द की उत्पत्ति के रहस्य

  • स्त्री जातक के अनुसार छिनाल शब्द की अविष्कारक नारियां ही हैं। आपने देखा होगा कि कुछ महिलाएं किसी भी खराब या अच्छी वस्तु, भोजन को त्याज्य बताते हुए नार को छी: छी: छी: करने की आदत होती हैं। छिनाल शायद छि:नार का अपभ्रंश हो गया हो।

संस्कृत शब्द है छिनाल

  • छिनाल शब्द बना है संस्कृत के छिन्न से जिसका मतलब विभक्त , कटा हुआ, फाड़ा हुआ, खंडित , टूटा हुआ , नष्ट किया हुआ आदि है।
  • चरित्र के संदर्भ में छिनाल शब्द अर्थात जिस नारी का नाड़ा जगह जगह खुलकर उसने अनेक मर्दों का काढ़ा (वीर्य) पा लिया हो उसका चरित्र खंडित, नष्ट हो चुका हो। उसे चरित्रहीन स्त्री या छिनाल कहते हैं।
  • छिनाल का संधि विच्छेद करें, तो छिन्न+नार= छिन्नार, छिनार या छिनाल होगा।
  • जॉन प्लैट्स के हिन्दुस्तानी-इंग्लिश-उर्दू कोश में छिनाल का विकासक्रम इसप्रकार है-छिन्ना+नारी =छिन्नाली। छिनाल। इसी तरह हिन्दी शब्दसागर में -छिन्ना+नारी से उसकी व्युत्पत्ति बताते हुए इसके प्राकृत रूप छिणणालिआ! छिणणाली ! छिनारि के क्रम में इसका विकासक्रम छिनाल बताया गया है।

पुराणों में पूज्यनीय छिन्न, छिन्नमस्तक

  • छिन्न शब्द ने गिरे हुए चरित्र के विपरीत पुराणों में वर्णित देवी-देवताओं के किन्ही रूपों के लिए भी कुछ खास शब्द गढ़े हैं जैसे छिन्नमस्ता या छिन्नमस्तक। इनका मतलब साफ है- खंडित सिर वाली वाले देवी देवता।
  • भगवान श्रीगणेश, भैरोनाथ, खाटू श्याम आदि छिन्नमस्तक रूप के लिए हैं जिसमें उनके मस्तक कटा हुआ दिखाया जाता है।
  • एक तांत्रिक देवी छिन्नमस्ता देवी अघोरी तांत्रिकों में पूजी जाती हैं। Picassoऔर दस महाविद्याओं में उनका स्थान है। इनका रूप भयंकर है और ये अपना कटा सिर हाथ में लेकर रक्तपान करती चित्रित की जाती हैं।
  • हिन्दी में सिर्फ छिन्न शब्द बहुत कम इस्तेमाल होता है। साहित्यिक भाषा में फाड़ा हुआ, विभक्त आदि के अर्थ में विच्छिन्न शब्द प्रयोग होता है जो इसी से जन्मा है।
  • छिन्न-भिन्न का अर्थ जिसमें किसी समूह को बांटने, विभक्त करने, खंडित करने या छितराने का भाव निहित है। छिन्न बना है छिद् धातु से जिसमें यही सारे अर्थ निहित है। इससे ही बना है छिद्र जिसका अर्थ दरार, सूराख़ होता है।

छेद के भेद

  • छेदः भी इससे ही बना है जिससे बना छेद शब्द हिन्दी में प्रचलित है। संस्कृत में बढ़ई के लिए छेदिः शब्द है क्योंकि वह लकड़ी की काट-छांट करता है।

छिनरा छिनरी से मिले हँस-हँस होय निहाल।

  • भारत के लोग अदभुत हैं। लोक ने उस स्त्री में छिपे छिनाल को खोज लिया जिसके गालों में हँसने पर गड्ढे पड़ते हों- हँसत गाल गड़हा परै, कस न छिनरी होय।’

पतिव्रता नारी की कथा

  • भारत में पतिव्रता स्त्री, सुहागिन महिला का बहुत मान सम्मान है, इन्हें देवी का दर्जा प्राप्त है।
  • पतिव्रता की परिभाषा….जो स्त्रियां भूलकर भी किसी अन्य पुरुष की तरफ आकर्षित न हों। सदैव अपने पति को परमेश्वर मानकर सेवा में लगी रहें।
  • पराए या अन्य पुरुष के बारे में कभी कोई चिंतन, मंथन, शोधन, भोजन, छोड़ना न करे, वो स्त्रिवको पतिव्रता बताया है।
  • हिंदुस्तान के हिन्दू धर्म में माँ अनुसुइया तथा सती सावित्री के किस्से बहुत सहते-सुनाए जाते हैं। कहते हैं कि पतिव्रता स्त्री में इतना बल, आत्मविश्वास होता है कि वो ब्रह्मांड को हिला सकती है।
  • महादेव की पत्नी महादुर्गा, पतिव्रता महादेवी के रूप में सृष्टि में पूजनीय है।
  • माँ अनसुइया ने ब्रह्मा-विष्णु-महेश टिनन मुख्य देवताओं को अपने पतिव्रता तपोबलबच्चा-बालक बना दिया था।
  • भारतीय ग्रन्थों में पतिव्रता स्त्रियों के नामों का उल्लेख मिलता है-
  • पतिव्रता नारियां चार प्रकार की होती हैं- स्वभाव से उत्तम, मध्यम, नीच, लघु ये चरित्रवान होती है। इनके चित्र अनेक हो सकते हैं लेकिन चरित्र खराब नहीं होता।

देश में लाखों स्त्रियां पतिव्रता हुई हैं, जिनकी गाँव में कथा गाते हैं।


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