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बुधवार, 29 नवंबर 2023

मेडिकल माफिया को भगाएं, आंवला अपनाएं।

 जिस दिन आपकी सब्ज़ी और खाने में आंवले का उपयोग होना शुरू हो गया उस दिन से आधा मेडिकल माफिया जो आपको दिन-रात लूटता आ रहा है वह भाग जाएगा।

सनातन भारत में सब्जी में खट्टापन लाने के लिये टमाटर के स्थान पर आंवले का प्रयोग होता था। इसलिये सनातन हिंदुओ की हड्डियां महर्षि दधीचि की तरह कठोर होती थीं इतनी मजबूत होती थी कि, महाराणा प्रताप का महावज़नी भाला उठा सकतीं थी। आज तमाम तरह के कैल्शियम विटामिन्स खाने के बाद भी जवानी में ही हड्डियां कीर्तन करने लगती हैं। जिस मौसम में देशी टमाटर मिलें तो ठीक लेकिन अंडे जैसे आकार के अंग्रेजी टमाटर खाने के स्थान पर आंवले का प्रयोग आपकी सब्ज़ी को स्वादिष्ट भी बनाएगा और आपको मेडिकल माफिया के मकड़जाल से भी बाहर निकालेगा। आंवला ही एक ऐसा फल है। जिसमें सब तरह के रस होते है। जैसे आंवला, खट्टा भी है, मीठा भी, कड़वा भी है और नमकीन भी। आँवले का सनातन संस्कृति में महत्तम इतना है कि, दीपावली के कुछ दिन बाद आँवला नवमी मनाई जाती है। आपको करना केवल इतना है कि, साबुत या कटा हुआ आँवला, बिना बच्चों और घर के आधुनिक सदस्यों को बताए सब्ज़ी में डाल देना है। अगर आँवला साबुत डाला है तो, सब्ज़ी बनने के बाद उसको ऐसे ही खा सकतें है। जब आंवला नहीं मिलता तो आँवले को सुखा कर पीस कर इसका प्रयोग उचित है।

मेडिकल माफिया को भगाएं, आंवला अपनाएं।
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आमतौर पर आंवला को इंडियन गूजबेरी (भारतीय करौंदा) कहा जाता है। इन पेड़ों की बेरी को इनके औषधीय गुणों के कारण औषधीय फार्मूलेशन में प्रयुक्त किया जाता है। आंवला के पेड़ पर छोटी बेरीज़ होती हैं जो गोल और पीले-हरे रंग की होती है। इसके कई स्वास्थ्य फ़ायदों के कारण इसे सुपरफूड कहा जाता है। प्राचीन आयुर्वेद में आंवला को खट्टा, नर्स, अमरता और माता जैसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है।

आंवला की एक अनोखी स्वाद विशेषता होती है, जिसमे पांच अलग-अलग स्वाद जैसे तीखा, कसैला, मीठा, कड़वा, खट्टा और इसके अलावा अन्य स्वाद भी भरे होते हैं। यह मन और शरीर के बेहतर स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है। यही कारण है कि इसे एक दिव्य औषधि ”दिव्यौषदा” के रूप में जाना जाता है। आंवला को संस्कृत में अमालाकी कहा जाता है जिसका अर्थ है जीवन का अमृत।

आंवला की रासायनिक संरचना

आंवला का फल एस्कॉर्बिक एसिड (विटामिन सी), कैरोटीन का एक अच्छा स्रोत है। इसमें अलग-अलग पॉलीफेनोल्स होते हैं जैसे कि एलेजिक एसिड, गैलिक एसिड, एपिजेनिन, क्वेरसेटिन, ल्यूटोलिन एवं कोरिलागिन। आंवला की लगभग अनुमानित संरचना नीचे दी गई टेबल में दी गई है।

घटकमात्रा (प्रति 100 ग्राम)
कार्बोहाइड्रेट10 ग्राम
प्रोटीन0.80 ग्राम
फ़ैट0.50 ग्राम
कुल कैलोरी44 किलोकैलोरी
फ़ाइबर4.3 ग्राम
मैग्नीशियम10 मिलीग्राम
कैल्शियम25 मिलीग्राम
आयरन0.31 मिलीग्राम
पोटैशियम 198 मिलीग्राम
ज़िंक0.12 मिलीग्राम

आंवला के अन्य नाम

Amla (Gooseberry) ke anya naam

  • संस्कृत में इसे आमलकी, श्रीफला, शीतफला, धात्री, तिष्यफला के नाम से जाना जाता है।
  • हिंदी में इसे आंवला के नाम से जाना जाता है।
  • मराठी में इसे अवला के नाम से जाना जाता है।
  • अंग्रेजी में इसे इंडियन गूज़बेरी के नाम से जाना जाता है।
  • कन्नड़ में इसे नेल्ली के नाम से जाना जाता है।
  • तमिल में इसे नेल्लिकाई के नाम से जाना जाता है।
  • तेलुगु में इसे उशीरी काया के नाम से जाना जाता है।
  • मलयालम में इसे नेल्ली के नाम से जाना जाता है।

आंवला के औषधीय और स्वास्थ्य में फ़ायदे

1: आंवला और हाइपरटेंशन

आंवला विभिन्न एंटीऑक्सिडेंट का अच्छा स्रोत है। यह मानव के तनाव में होने के दौरान शरीर द्वारा निर्मित मुक्त रैडिकल को साफ करने के लिए जाना जाने वाला एक एंटीऑक्सिडेंट गुण है। आंवला में एंटीऑक्सिडेंट के साथ-साथ पोटैशियम भी काफ़ी मात्रा में होता है। इसलिए, ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने की पोटैशियम की क्षमता के कारण, ब्लड प्रेशर की समस्याओं से पीड़ित रोगियों के आहार में इसका नियमित रूप से उपयोग किया जाता है। पोटैशियम द्वारा हाइपरटेंशन के प्रबंधन में शामिल मुख्य मकैनिज़्म ब्लड वेसल्स को फैलाना है, जो ब्लड प्रेशर की संभावनाओं को और कम कर देता है। इस स्थिति में आंवला का जूस पीना असरदार हो सकता है।

2: डायबिटीज़ में आंवला

परंपरागत रूप से, आंवला का उपयोग डायबिटीज़ को नियंत्रित करने के लिए घरेलू उपचार के रूप में किया जाता है। डायबिटीज़ के पीछे का मुख्य कारण तनाव होना है। आंवला विटामिन C का अच्छा स्रोत है। यह एक शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट है जो मुक्त रेडिकल के बनाव और ऑक्सीडेटिव तनाव के असर को बदलने में मदद करेगा। आंवला के उत्पादों का नियमित सेवन डायबिटीज़ की संभावनाओं को रोक सकता है। अन्य मैकेनिज़्म में, आंवला के रेशे शरीर में अतिरिक्त शुगर को नियमित ब्लड शुगर के स्तर तक अवशोषित करने में मदद कर सकते हैं। इसलिए आंवला को अपने डायबिटीज़ डाइट प्लान में शामिल करने से डायबिटीज़ के असरदार प्रबंधन में मदद मिल सकती है।

3: आंवला और पाचन तंत्र

आंवला की बेरीज़ में पर्याप्त मात्रा में घुलनशील फाइबर होते हैं। ये फ़ाइबर आंतों की गति को विनियमित करने में भूमिका निभाते हैं, जो खराब बाउअल सिंड्रोम को कम करने में मदद कर सकते है। आंवले में विटामिन C की अधिक मात्रा होने के कारण, यह आवश्यक खनिजों की अच्छी मात्रा को अवशोषित करने में भी मदद करता है। इसलिए यह विभिन्न हेल्थ सप्लीमेंट के साथ तालमेल रखता है।

प्रतिदिन एक आंवला आपके स्वास्थ्य पर कैसे प्रभाव डाल सकता है? इसका सेवन करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?

स्वास्थ्य और फिटनेस के प्रति बढ़ते रुझान के साथ, जिन खाद्य पदार्थों को कभी कई उपचारों और दवाओं में आयुर्वेदिक खजाने के रूप में उपयोग किया जाता था, वे अब प्रमुखता प्राप्त कर रहे हैं। ऐसा ही एक हरे रंग का फल है आंवला जिसे इंडियन गूसबेरी के नाम से जाना जाता है। काढ़ा से लेकर अचार और जूस तक, इस सदियों पुराने फल में शक्तिशाली औषधीय गुण हैं जो एक ही समय में तीनों दोषों (कफ/वात/पित्त) को लगभग ठीक कर सकते हैं। यहां कुछ और कारण बताए गए हैं कि क्यों स्वास्थ्य विशेषज्ञ आंवला को दैनिक आहार में शामिल करने का सुझाव देते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि जब आप रोजाना आंवला खाते हैं तो क्या होता

आपको रोजाना आंवला क्यों खाना चाहिए?

संस्कृत में आंवला का अनुवाद अमलकी के रूप में किया जाता है जिसका अर्थ है जीवन का अमृत जो इसके शक्तिशाली गुणों को परिभाषित करता है जो प्रतिरक्षा को बढ़ावा दे सकता है, पाचन, चयापचय और आंत के स्वास्थ्य में सुधार कर सकता है। विटामिन सी, फाइबर और खनिज जैसे एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर, आंवले में संतरे और अन्य खट्टे फलों की तुलना में लगभग 10 गुना अधिक विटामिन सी होता है, जो मुक्त कणों से होने वाले नुकसान को कम करने में मदद करता है और कोशिका पुनर्जनन में मदद करता है। रोजाना आंवला खाने से बांझपन, पाचन संबंधी समस्याएं, सर्दी, खांसी और एलर्जी जैसी कई अंतर्निहित बीमारियों के इलाज में मदद मिलती है। इसके अलावा, आंवले में उत्कृष्ट सूजनरोधी, कैंसररोधी गुण होते हैं, इसलिए इस फल को कच्चा या जूस के रूप में खाने से कई स्वास्थ्य समस्याएं स्वाभाविक रूप से ठीक हो सकती हैं


आपको प्रतिदिन कितना आंवला खाना चाहिए और क्यों?

 विशेषज्ञों के अनुसार, एक औसत वयस्क प्रतिदिन लगभग 75-90 मिलीग्राम आंवला खा सकता है। 100 ग्राम आंवले की एक खुराक में लगभग 300 मिलीग्राम विटामिन सी, आहार फाइबर, कैल्शियम, आयरन और पॉलीफेनोल्स, एल्कलॉइड और फ्लेवोनोइड जैसे एंटीऑक्सिडेंट होते हैं। रोजाना आंवला खाने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, उम्र से संबंधित मैक्यूलर डिजनरेशन का खतरा कम होता है और विटामिन की उपस्थिति के कारण आंखों की रोशनी में सुधार होता है। इसके अलावा, इसमें आहार फाइबर और टैनिक जैसे एसिड की उपस्थिति के कारण यह वजन कम करने में मदद करता है। प्रोटीन, जो वसा जलाने, पोषण देने और सूजन को कम करने में मदद करता है। यहां बताया गया है कि आप आंवले को अपनी दिनचर्या में कैसे शामिल कर सकते है

आंवले को दैनिक आहार में कैसे शामिल करें?

आंवले का मीठा, खट्टा, तीखा स्वाद और तीखी सुगंध कुछ लोगों के लिए इसे कच्चा खाना मुश्किल बना देती है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना ​​है कि इसे कच्चा खाना या जूस के रूप में खाना या सिर्फ धूप में सुखाना इसके लाभों को प्राप्त करने का सबसे अच्छा तरीका हो सकता है। हरा फल. वास्तव में, आंवले के निर्जलित और धूप में सुखाए गए संस्करण में पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होती है, जो इसे किसी भी समय खाने के लिए एक आदर्श चीज़ बनाता है

 

ये है आंइस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती देने वाले विश्व के महान भारतीय गणितज्ञ डॉ . वशिष्ठ नारायण सिंह

 

एक बूढ़ा आदमी हाथ में पेंसिल लेकर यूं ही पूरे घर में चक्कर काट रहा था, कभी अख़बार, कभी कॉपी, कभी दीवार, कभी घर की रेलिंग, जहां भी उनका मन करता, वहां कुछ लिखते, कुछ बुदबुदाते हुए।।घर वाले भी उन्हें देखते रहते हैं, कभी आंखों में आंसू तो कभी चेहरे पर मुस्कराहट ओढ़े।

77 साल का 'पगला सा' यह आदमी अपने जवानी में 'वैज्ञानिक जी' के नाम से मशहूर था। मिलिए…... ये है आंइस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती देने वाले विश्व के महान भारतीय गणितज्ञ डॉ . वशिष्ठ नारायण सिंह जो छात्र के रूप में एक किंवदंती बन चुके है।

लेकिन ये इस देश का दुर्भाग्य ही है कि 47 साल से मानसिक बीमारी सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित वशिष्ठ नारायण सिंह बेहतर इलाज के अभाव में पटना के एक अपार्टमेंट में गुमनामी का जीवन बिता रहे हैं।

इनके बारे में मेरे द्वारा लिखा जाना सूर्य को दीयां दिखाने के समान होगा। लेकिन आपकी जानकारी के लिए उनकी कुछ उपलब्धियों का जिक्र जरूर करना चाहूंगा। जिसके बारे में जानकर विकृत हो जाएगी सारी दुनिया विशेषकर महानतम भारत देश और यह समाज…

  • श्री वशिष्ठ का जन्म 2 अप्रैल 1942 में भारत के बिहार में भोजपुर जिले के बसंतपुर गाँव में लाल बहादुर सिंह और लाहसो देवी के यहाँ हुआ था।
  • प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा नेतरहाट आवासीय विद्यालय से प्राप्त की और परीक्षा में सर्वोच्च स्थान पाया।
  • श्री वशिष्ठ के लिए पटना विश्वविद्यालय के कानून बदलाव किये। जिसमे श्री वशिष्ठ को B..Sc. के तीन वर्षीय पाठ्यक्रम के स्थान पर दो वर्षीय पाठ्यक्रम में उपस्थित होने की अनुमति दी गई और पटना साइंस कॉलेज से B. Sc.आनर्स में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया।
  • श्री वशिष्ठ की इस प्रतिभा को हमारे देश का कोई भी बुद्धजीवी पहचान नही सका बल्कि सात समंदर पार कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन कैली की नज़र उन पर पड़ी और उनकी प्रतिभा को पहचाना। 1965 में श्री वशिष्ठ नारायण अमरीका चले गए। वहाँ उन्होंने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की और वॉशिंगटन विश्वविद्यालय में मैथमेटिक्स के एसोसिएट प्रोफेसर बन गए। 1969 में "द पीस आफ स्पेस थ्योरी" विषयक पर उनके शोध पत्र ने दुनिया मे तहलका मचा दिया और बर्कले यूनिवर्सिटी ने उन्हें " जीनियसों का जीनियस " कहा।
  • अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA में काम करते हुए विदेशी धरती पर जब श्री वशिष्ठ का मन नही लगा तो, 1971 में देश सेवा का प्रण लिए वतन वापसी की और IIT कानपुर, फिर टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च, बंबई और फिर Indian Statistical Institute, कोलकाता में नौकरी की और 2014 में, उन्हें मधेपुरा में भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय (बी.एन.एम.यू.) में एक अतिथि प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया। डॉ० वशिष्ठ के बारे में मशहूर है कि नासा में अपोलो की लांचिंग से पहले जब 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए तो कंप्यूटर ठीक होने पर उनका और कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन एक समान था।

बीमारी और सदमा

खुद को कमरे में बंद करके दिन-दिन भर पढ़ते रहना, रात भर जागना डॉ० वशिष्ठ के व्यवहार में शामिल था। वह कुछ दवाइयां भी खाते थे लेकिन वे किस बीमीरी की थीं, इस सवाल को टाल दिया करते थे। उनके इस व्यवहार से उनकी पत्नी जल्द परेशान हो गईं और तलाक़ ले लिया। यह डॉ० वशिष्ठ के लिए बड़ा सदमा था। तक़रीबन यही वह वक्त था जब वह आई.एस.आई. कोलकाता में अपने सहयोगियों के बर्ताव से भी वशिष्ठ परेशान थे क्योंकि कई वरिष्ठ प्रोफ़ेसर्स उनके शोध को अपने नाम से छपवा लिया करते थे और यह बात उनको बहुत परेशान करती थी।

इसे के चलते 1974 में उन्हें पहला दौरा पड़ा, जिसके बाद उन्हें 1976 में रांची के मानसिक आरोग्यशाला में भर्ती करवाया गया। सरकार द्वारा इलाज के लिए दी जाने वाली वित्तीय मदद बहुत ही कम होने के कारण उचित इलाज नही हो सका।

श्री वशिष्ठ का परिवार भी शायद अब उनके इलाज को लेकर नाउम्मीद हो चुका है। लेकिन उनके किताबों से भरे बक्से, दीवारों पर श्री वशिष्ठ की लिखी हुई बातें, उनकी लिखी कॉपियां अब उनको भी डराती होंगी। डर इस बात का कि क्या वशिष्ठ बाबू के बाद ये सब रद्दी की तरह बिक जाएगा।

बहुत ही मामूली आदमी का बेटा श्री वशिष्ठ से आखिर क्या गलती हुई कि आज वह इस स्थिति में हैं ? सिर्फ और सिर्फ यही कि देशप्रेम में उन्होंने अमेरिका में न जाने कितने ऑफर ठुकरा दिए और अपनी मातृभूमि की सेवा करने चले आए। लेकिन भारत माता की छाती पर पहले से बैठे सु० ( कु० ) पुत्रों ने उनको पागल बना कर वशिष्ठ पागल की उपाधि से नवाजा। जिस वशिष्ठ का एक जमाना था जिसे गणित में आर्यभट्ट व रामानुजम का विस्तार माना जाता था, वही वशिष्ठ , जिनके चलते पटना विश्वविद्यालय को अपना कानून बदलना पड़ा था । इस चमकीले तारे के खाक बनने की लम्बी दास्तान है। खैर , उन तमाम लोगों को बहुत - बहुत धन्यवाद , जो अपने को अनाम / गुमनाम रखते हुए , डॉ वशिष्ठ के भोजन , पटना में उनके रहने का इंतजाम , दवाई आदि का प्रबंध किए हुए हैं ।

इस देश में एक मिनिस्टर का कुत्ता बीमार पड़ जाए तो डॉक्टरों की लाइन लग जाती है, लेकिन डॉ० वशिष्ठ जैसे सपूतों को इस समाज ने मानसिक रोगी बना दिया। डॉ०वशिष्ठ का क्या गया ? गया तो इस देश - समाज का , जो उनका उपयोग नहीं कर पाया ।

स्रोत: गूगल, विकिपीडिया, बीबीसी

कांग्रेस वामपंथी शिवसेना यानी पूरा विपक्ष यही कामना कर रहा था कि कश मजदूर सुरंग में से बाहर ना निकल सके उनका मौत हो जाए और हम इसे मोदी को बदनाम करने के लिए एक बड़े मुद्दे के तौर पर देश में उठा सकें

 

टनल में फंसे मजदूर बाहर आ गए।

मूर्खों की फौज की छाती पर सांप लोट रहा होगा लेकिन बाकी देश खुशी से झूम रहा है।

अपने आप में अभूतपूर्व रहा है ये रेस्क्यू ऑपरेशन। हर राहतकर्मी को बहुत बधाई उनकी कठोर मेहनत और सफलता के लिए।

केंद्र सरकार और उनकी टीम ने जिस तरह से घोड़े खोल दिए थे गरीब मजदूरों को बचाने के लिए उससे इस देश के हर गरीब को ये मेसेज भी गया है कि उसके भी जान की कीमत है, उसकी भी परवाह करनेवाला पीएम है

वरना इत्तेफाक देखिए कि अभी ही नेटफ्लिक्स पर द रेलवे मेन करके वेबसीरीज़ आ रही है 1984 के भोपाल गैस कांड पर जिसको देखकर समझ आता है कि लोगों को मरता छोड़ देने वाली सरकारें भी देखी हैं इस देश ने। एक भारतीय होने के नाते गर्व से सीना चौड़ा हो गया है देश की इस कामयाबी पर।

कांग्रेस वामपंथी शिवसेना यानी पूरा विपक्ष यही कामना कर रहा था कि कश मजदूर सुरंग में से बाहर ना निकल सके उनका मौत हो जाए और हम इसे मोदी को बदनाम करने के लिए एक बड़े मुद्दे के तौर पर देश में उठा सकें

मजदूरों के निकलने से सबसे बड़ा दुख भारत के विपक्ष को हो रहा है

इनका दुख ये भी था कि मजदूरों को बचाने मोदी जी गेती फावड़ा लेकर सुरंग में क्यों नहीं जा रहे है..

मनमोहन सिंह PM होते तो कब का ही सुरंग में जाकर मजदूरों को निकाल लाते …जिनको निकलने में कई सप्ताह लग गए।

और आज अगर चिच्चा होते, तो मजदूर 16 दिन पहले ही बाहर निकाल लेते, क्योंकि चिच्चा खुदाई में कितने माहिर थे, सारी दुनिया जानती है।

प्राचीन समय में लकड़ी के इस यंत्र से ऋषि-मुनि यज्ञ के लिए करते थे अग्नि उत्पन्न, आज भी होता है इसका उपयोग

 

प्राचीन समय में लकड़ी के इस यंत्र से ऋषि-मुनि यज्ञ के लिए करते थे अग्नि उत्पन्न, आज भी होता है इसका उपयोग


हिंदू धर्म में अनेक परंपराएं हैं। इनमें से कुछ का पालन आज भी किया जाता है। ऐसी ही एक परंपरा है यज्ञ। पुरातन काल से ही हमारे ऋषि मुनि जनकल्याण के लिए यज्ञ करते आ रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि यज्ञ करने से देवता प्रसन्न होते हैं और मनोकामना भी पूरी करते हैं।

धर्म ग्रंथों के अनुसार त्रेतायुग और द्वापर युग में राजा-महाराज अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए यज्ञ करते थे। यज्ञ करवाने के लिए सिद्धि मुनियों को बुलवाया जाता था। लेकिन यहां एक बात अचंभित करने वाली है कि उस समय माचिस या ऐसी कोई चीज नहीं होती थी, जिससे कि आग जलाई जा सके तो फिर ऋषि-मुनि किस प्रकार अग्नि प्रज्वलित करते थे। आज हम आपको इससे जुड़ी खास बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार है…

अरणी मंथन से उत्पन्न की जाती थी अग्नि
शमी को शास्त्रों में अग्नि का स्वरूप कहा गया है जबकि पीपल को भगवान का। इन दोनों की वृक्षों की लकड़ी से अरणी मंथन काष्ठ बनता है। उसमें अग्रि विद्यमान होती है, ऐसा हमारे शास्त्रों में उल्लेख है। इन लकड़ियों का विशेष प्रकार से उपयोग करने पर अग्नि उत्पन्न की जा सकती है। साथ ही इसके लिए विशेष मंत्र भी बोलकर अग्नि देवता का आवाहन भी किया जाता है।

कैसे करते हैं इसका उपयोग?
अरणी शमी की लकड़ी का एक तख्ता होता है जिसमें एक छिछला छेद रहता है। इस छेद पर पीपल की लकड़ी की छड़ी को मथनी की तरह तेजी से चलाया जाता है। इससे तख्ते में चिंगारी उत्पन्न होने लगती है, फिर हवा देकर इस आग को बढ़ाया जाता है और यज्ञ में इसका उपयोग किया जाता है। भारत में पुराने समय में हर काम के लिए आग जलाने के लिए यही तरीका अपनाया जाता था। अरणी में छड़ी के टुकड़े को उत्तरा और तख्ते को अधरा कहा जाता है।

अग्नि देवता का करते हैं आवाहन
अरणी मंथन का उपयोग कर यज्ञ के लिए अग्नि उत्पन्न करना पूरी तरह से वैज्ञानिक तरीका है, लेकिन इसके साथ-साथ ऋषि-मनि विशेष मंत्रों के माध्यम से अग्नि देवता का आवाहन भी करते थे। ऐसी मान्यता है कि उन मंत्रों से प्रभावित होकर अग्नि देवता स्वयं यज्ञ कुंड में प्रकट होते थे और समिधा आदि को ग्रहण करते हैं।

माता सती से जुड़े 51 शक्तिपीठ,,,,,, जो आज वर्तमान के पूरे भारतीय उपमहाद्वीपयथा भारत, नेपाल, पाकिस्तान, श्री लंका और बांग्लादेश में स्थित हैं,,

माता सती से जुड़े 51 शक्तिपीठ,,,,,, 

जो आज वर्तमान के पूरे भारतीय उपमहाद्वीप
यथा भारत, नेपाल, पाकिस्तान, श्री लंका और बांग्लादेश में स्थित हैं,,, 

1.-हिंगलाज,,,,
🚩कराची से 125 किमी दूर है। यहां माता का ब्रह्मरंध (सिर) का ऊपरी भाग गिरा था.
इसकी शक्ति-कोटरी (भैरवी-कोट्टवीशा) है व भैरव को भीम लोचन कहते हैं।

2.-शर्कररे,,,,
🚩पाक के कराची के पास यह शक्तिपीठ स्थित है.
यहां माता की आंख गिरी थी.
इसकी शक्ति- महिषासुरमर्दिनी व भैरव को क्रोधिश कहते हैं।
 
3.-सुगंधा...
🚩बांग्लादेश के शिकारपुर के पास दूर सोंध नदी के किनारे स्थित है.

माता की नासिका गिरी थी यहां.
इसकी शक्ति सुनंदा है व भैरव को त्र्यंबक कहते हैं.

4.-महामाया...
🚩भारत के कश्मीर में पहलगांव के निकट माता का कंठ गिरा था.
इसकी शक्ति है महामाया और भैरव को त्रिसंध्येश्वर कहते हैं.

5:-ज्वालाजी...
🚩हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में माता की जीभ गिरी थी. 

इसे ज्वालाजी स्थान कहते हैं.
इसकी शक्ति है सिद्धिदा (अंबिका) व भैरव को उन्मत्त कहते हैं।

6.-त्रिपुरमालिनी...
🚩पंजाब के जालंधर में देवी तालाब, जहां माता का बायां वक्ष (स्तन) गिरा था.
इसकी शक्ति है त्रिपुरमालिनी व भैरव को भीषण कहते हैं.

7.-वैद्यनाथ..
🚩झारखंड के देवघर में स्थित वैद्यनाथधाम जहां माता का हृदय गिरा था.
इसकी शक्ति है जय दुर्गा और भैरव को वैद्यनाथ कहते हैं.

8.-महामाया...
🚩नेपाल में गुजरेश्वरी मंदिर, जहां माता के दोनों घुटने (जानु) गिरे थे.

इसकी शक्ति है महशिरा (महामाया) और भैरव को कपाली कहते हैं.

9.-दाक्षायणी...
🚩तिब्बत स्थित कैलाश मानसरोवर के मानसा के पास पाषाण शिला पर माता का दायां हाथ गिरा था. 

इसकी शक्ति है दाक्षायणी और भैरव अमर.
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10.-विरजा...
🚩ओडिशा के विराज में उत्कल में यह शक्तिपीठ स्थित है.
यहां माता की नाभि गिरी थी.
इसकी शक्ति विमला है व भैरव को जगन्नाथ कहते हैं.

11.-गंडकी..
🚩नेपाल में मुक्ति नाथ मंदिर, जहां माता का मस्तक या गंडस्थल अर्थात कनपटी गिरी थी.
इसकी शक्ति है गंडकी चंडी व भैरव चक्रपाणि हैं.

12.-बहुला..
🚩प. बंगाल के अजेय नदी तट पर स्थित बाहुल स्थान पर माता का बायां हाथ गिरा था.
इसकी शक्ति है देवी बाहुला व भैरव को भीरुक कहते हैं.
 
13.-उज्जयिनी...
🚩प. बंगाल के उज्जयिनी नामक स्थान पर माता की दाईं कलाई गिरी थी.
इसकी शक्ति है मंगल चंद्रिका और भैरव को कपिलांबर कहते हैं.

14.-त्रिपुर सुंदरी..
🚩त्रिपुरा के राधाकिशोरपुर गांव के माता बाढ़ी पर्वत शिखर पर माता का दायां पैर गिरा था.
इसकी शक्ति है त्रिपुर सुंदरी व भैरव को त्रिपुरेश कहते हैं.

15.-भवानी..
🚩बांग्लादेश चंद्रनाथ पर्वत पर छत्राल (चट्टल या चहल) में माता की दाईं भुजा गिरी थी.
भवानी इसकी शक्ति हैं व भैरव को चंद्रशेखर कहते हैं.

16.-भ्रामरी..
🚩प. बंगाल के जलपाइगुड़ी के त्रिस्रोत स्थान पर माता का बायां पैर गिरा था.
इसकी शक्ति है भ्रामरी और भैरव को अंबर और भैरवेश्वर कहते हैं.
 
17.-कामाख्या...
🚩असम के कामगिरि में स्थित नीलांचल पर्वत के कामाख्या स्थान पर माता का योनि भाग गिरा था.
कामाख्या इसकी शक्ति है व भैरव को उमानंद कहते हैं.

18.-प्रयाग..
🚩उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (प्रयाग) के संगम तट पर माता के हाथ की अंगुली गिरी थी.
इसकी शक्ति है ललिता और भैरव को भव कहते हैं.

19.-जयंती...
🚩बांग्लादेश के खासी पर्वत पर जयंती मंदिर, जहां माता की बाईं जंघा गिरी थी.
इसकी शक्ति है जयंती और भैरव को क्रमदीश्वर कहते हैं.

20.-युगाद्या...
🚩प. बंगाल के युगाद्या स्थान पर माता के दाएं पैर का अंगूठा गिरा था.

इसकी शक्ति है भूतधात्री और भैरव को क्षीर खंडक कहते हैं.

21.-कालीपीठ...
🚩कोलकाता के कालीघाट में माता के बाएं पैर का अंगूठा गिरा था.

इसकी शक्ति है कालिका और भैरव को नकुशील कहते हैं.

22.-किरीट...
🚩प. बंगाल के मुर्शीदाबाद जिला के किरीटकोण ग्राम के पास माता का मुकुट गिरा था.

इसकी शक्ति है विमला व भैरव को संवत्र्त कहते हैं.

23.-विशालाक्षी..
🚩यूपी के काशी में मणिकर्णिका घाट पर माता के कान के मणिजडि़त कुंडल गिरे थे.

शक्ति है विशालाक्षी मणिकर्णी व भैरव को काल भैरव कहते हैं.

24.-कन्याश्रम...
🚩कन्याश्रम में माता का पृष्ठ भाग गिरा था.

इसकी शक्ति है सर्वाणी और भैरव को निमिष कहते हैं.

25.-सावित्री..
🚩हरियाणा के कुरुक्षेत्र में माता की एड़ी (गुल्फ) गिरी थी.

इसकी शक्ति है सावित्री और भैरव को स्थाणु कहते हैं।

26.-गायत्री...
🚩अजमेर के निकट पुष्कर के मणिबंध स्थान के गायत्री पर्वत पर दो मणिबंध गिरे थे.

इसकी शक्ति है गायत्री और भैरव को सर्वानंद कहते हैं.

27.-श्रीशैल..
🚩बांग्लादेश केशैल नामक स्थान पर माता का गला (ग्रीवा) गिरा था.

इसकी शक्ति है महालक्ष्मी और भैरव को शम्बरानंद कहते हैं.

28.-देवगर्भा...
🚩प. बंगाल के कोपई नदी तट पर कांची नामक स्थान पर माता की अस्थि गिरी थी.

इसकी शक्ति है देवगर्भा और भैरव को रुरु कहते हैं.

29.-कालमाधव...
🚩मध्यप्रदेश के शोन नदी तट के पास माता का बायां नितंब गिरा था जहां एक गुफा है.

इसकी शक्ति है काली और भैरव को असितांग कहते हैं।

30.-शोणदेश...
🚩मध्यप्रदेश के शोणदेश स्थान पर माता का दायां नितंब गिरा था.

इसकी शक्ति है नर्मदा और भैरव को भद्रसेन कहते हैं.

31.-शिवानी...
🚩यूपी के चित्रकूट के पास रामगिरि स्थान पर माता का दायां वक्ष गिरा था.
इसकी शक्ति है शिवानी और भैरव को चंड कहते हैं.

32.-वृंदावन...
🚩मथुरा के निकट वृंदावन के भूतेश्वर स्थान पर माता के गुच्छ और चूड़ामणि गिरे थे.

इसकी शक्ति है उमा और भैरव को भूतेश कहते हैं।

33 नारायणी...
🚩कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग पर शुचितीर्थम शिव मंदिर है, जहां पर माता के दंत (ऊर्ध्वदंत) गिरे थे.
 
शक्तिनारायणी और भैरव संहार हैं.

34 वाराही...
🚩पंचसागर (अज्ञात स्थान) में माता की निचले दंत (अधोदंत) गिरे थे.

इसकी शक्ति है वराही और भैरव को महारुद्र कहते हैं.

35.-अपर्णा...
🚩बांग्लादेश के भवानीपुर गांव के पास करतोया तट स्थान पर माता की पायल (तल्प) गिरी थी.

इसकी शक्ति अर्पणा और भैरव को वामन कहते हैं.

36.-श्रीसुंदरी...
🚩लद्दाख के पर्वत पर माता के दाएं पैर की पायल गिरी थी.

इसकी शक्ति है श्रीसुंदरी और भैरव को सुंदरानंद कहते हैं.

37.-कपालिनी...
🚩पश्चिम बंगाल के जिला पूर्वी मेदिनीपुर के पास तामलुक स्थित विभाष स्थान पर माता की बायीं एड़ी गिरी थी.

इसकी शक्ति है कपालिनी (भीमरूप) और भैरव को शर्वानंद कहते हैं।

38.-चंद्रभागा...
🚩गुजरात के जूनागढ़ प्रभास क्षेत्र में माता का उदर गिरा था.

इसकी शक्ति है चंद्रभागा और भैरव को वक्रतुंड कहते हैं.

39.-अवंती...
🚩उज्जैन नगर में शिप्रा नदी के तट के पास भैरव पर्वत पर माता के ओष्ठ गिरे थे.

इसकी शक्ति है अवंति और भैरव को लम्बकर्ण कहते हैं.

40.-भ्रामरी...
🚩महाराष्ट्र के नासिक नगर स्थित गोदावरी नदी घाटी स्थित जनस्थान पर माता की ठोड़ी गिरी थी.

शक्ति है भ्रामरी और भैरव है विकृताक्ष.

41.-सर्वशैल स्थान
🚩आंध्रप्रदेश के कोटिलिंगेश्वर मंदिर के पास माता के वाम गंड (गाल) गिरे थे.

इसकी शक्ति है राकिनी और भैरव को वत्सनाभम कहते हैंं.

42.-गोदावरीतीर...
🚩यहां माता के दक्षिण गंड गिरे थे.

इसकी शक्ति है विश्वेश्वरी और भैरव को दंडपाणि कहते हैं.

43.-कुमारी..
🚩बंगाल के हुगली जिले के रत्नाकर नदी के तट पर माता का दायां स्कंध गिरा था.

इसकी शक्ति है कुमारी और भैरव को शिव कहते हैं.

44.-उमा महादेवी..
🚩भारत-नेपाल सीमा पर जनकपुर रेलवे स्टेशन के निकट मिथिला में माता का बायां स्कंध गिरा था.

इसकी शक्ति है उमा और भैरव को महोदर कहते हैं।

45.-कालिका...
🚩पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के नलहाटि स्टेशन के निकट नलहाटी में माता के पैर की हड्डी गिरी थी.

इसकी शक्ति है कालिका देवी और भैरव को योगेश कहते हैं.

46.-जयदुर्गा..
🚩कर्नाट (अज्ञात स्थान) में माता के दोनों कान गिरे थे.

इसकी शक्ति है जयदुर्गा और भैरव को अभिरु कहते हैं.

47.-महिषमर्दिनी..
🚩पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में पापहर नदी के तट पर माता का भ्रुमध्य (मन:) गिरा था.

शक्ति है महिषमर्दिनी व भैरव वक्रनाथ हैं.

48.-यशोरेश्वरी...
🚩बांग्लादेश के खुलना जिला में माता के हाथ और पैर गिरे (पाणिपद्म) थे.

इसकी शक्ति है यशोरेश्वरी और भैरव को चण्ड कहते हैं.

49.-फुल्लरा...
🚩पश्चिम बंगला के लाभपुर स्टेशन से दो किमी दूर अट्टहास स्थान पर माता के ओष्ठ गिरे थे.

इसकी शक्ति है फुल्लरा और भैरव को विश्वेश कहते हैं.

50.-नंदिनी...
🚩पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के नंदीपुर स्थित बरगद के वृक्ष के समीप माता का गले का हार गिरा था.
शक्ति नंदिनी व भैरव नंदीकेश्वर हैं.

51.-इंद्राक्षी...
🚩श्रीलंका में संभवत: त्रिंकोमाली में माता की पायल गिरी थी. 
इसकी शक्ति है इंद्राक्षी और भैरव को राक्षसेश्वर कहते हैं.

जय माँ...!!🚩🚩

जहाँ विज्ञान डगमगाता है। वहीं से आस्था की शुरूआत होती है। विज्ञान और धर्म विपरीत नहीं बल्कि पूरक है।

विदेशी टनल एक्सपर्ट अर्नाल्ड डिक्स जितने बार भी टनल के अंदर गए और बाहर निकले, उतनी बार पास वापस स्थापित पूजा स्थल के आगे घुटनों पर बैठकर हाथ जोड़े और आंख बंद करके अरदास किया।
इन्हीं अमेरिकी एक्सपर्ट ने आते ही टनल के मुहाने से हटाए गए पूजा स्थल को वापस रखवाया था। कहा था कि हिमालय ने गुस्सा दिखाया है। उन्होंने मजदूरों को बंधक बनाया है। अब हिमालय ही जब चाहेगा, तब उनको छोड़ेगा।
 
 हुआ भी ऐसा ही। अमेरिकी मशीन आगर भी पहली बार किसी मिशन पर टूट गया और दरवाजे तक पहुंचकर भी सारे एक्सपर्ट लाचार हो गए थे।

 अमेरिकी टनल विशेषज्ञ ने कहा था कि उन्होंने मां काली से एक डील की है। शायद अब वे उस आध्यात्म अनुभव को साझा करेंगे।

आज भी अर्नाल्ड उस छोटे से चबूतरे वाले मंदिर के में देवी, भोलेनाथ और बाबा बौखनाथ की पूजा की और बहुत देर तक वहीं बैठे रहे।

 सबसे अजूबा तब हुआ, जब इसी पूजा स्थल के पीछे चट्टान पर पानी की धारा निकल गई। और उससे बाबा भोलेनाथ की आकृति सी बन गई। मौसम अचानक साफ हो गया। जबकि बारिश का अनुमान मौसम विभाग ने बता रखा था। उसे देखकर अर्नाल्ड ने कहा कि आज हिमालय और यहां के बाबा भोलेनाथ खुशखबरी देने वाले हैं। 

 एक दूसरे धर्म के प्रख्यात इंजीनियर द्वारा हिंदू धर्म की मान्यताओं को इस स्तर तक समझना और इज्जत देना काफी कुछ कह जाता है।

 जहाँ विज्ञान डगमगाता है। वहीं से आस्था की शुरूआत होती है। विज्ञान और धर्म विपरीत नहीं बल्कि पूरक है।

 ये बात बड़े बड़े वैज्ञानिक ओर अर्नाल्ड डिक्स जैसे लोग तो समझते है लेकिन भारत मे ही कुछ अधकचरे वामी नही समझते।
साभार

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